बिहार Switch to English
मनेर शरीफ
चर्चा में क्यों?
बिहार के मुख्यमंत्री ने मनेर शरीफ में हजरत मखदूम शाह कमालुद्दीन अहमद याहिया मनेरी के 756वें उर्स में शामिल हुए।
मुख्य बिंदु
- मनेर शरीफ के बारे में: पटना ज़िले में स्थित इस शहर का पुराना नाम मनियार मथान था जिसका अर्थ है संगीतमय शहर।
- इस शहर में सूफी संत मखदूम याह्या मनेरी और मखदूम शाह दौलत की कब्रें हैं, जिन्हें बड़ी दरगाह (महान तीर्थस्थल) और छोटी दरगाह (छोटा तीर्थस्थल) के नाम से जाना जाता है।
- वर्ष 1616 में मखदूम शाह दौलत को यहाँ दफनाया गया था और वर्ष 1619 में बिहार के शासक इब्राहिम खान ने यहाँ छोटी दरगाह का निर्माण करवाया था।
- उर्स: बिहार सरकार के पर्यटन विभाग और ज़िला प्रशासन के सहयोग से प्रत्येक वर्ष मनेर दरगाह परिसर में मखदूम शाह की जन्मस्थली पर सलाना उर्स आयोजन किया जाता है।
मखदूम याह्या मनेरी
- इन्हें मखदूम-उल-मुल्क बिहारी और मखदूम-ए-जहाँ के नाम से भी जाना जाता है। इनका जन्म जुलाई 1264 ईस्वी को पटना के पास एक गाँव मनेर में हुआ था।
- इन्हें अरबी, फ़ारसी, तर्कशास्त्र, दर्शनशास्त्र, धर्म और तसव्वुफ़ (सूफीवाद) की गहरी समझ थी।
- फिरदौसी संप्रदाय से सबंध रखने वाले इनके पिता मखदूम कमालुद्दीन याह्या मनेरी बिन इज़राइल बिन ताज फकीह अल-खलील (फिलिस्तीन) से थे, जो मनेर के एक सूफी संत थे।
![](/hindi/images/articles/1739193143_BPSC-Mains%28H%29.jpg)
![](/hindi/images/articles/1739193143_BPSC-Mains-%28H%29.jpg)
राजस्थान Switch to English
धाकड़ समाज का 32वाँ राष्ट्रीय अधिवेशन
चर्चा में क्यों?
मुख्यमंत्री ने कोटा के दशहरा मैदान में धाकड़ समाज के 32वें राष्ट्रीय अधिवेशन को संबोधित किया।
मुख्य बिंदु
- अपने संबोधन में मुख्यमंत्री ने धाकड़ समाज को देश के समग्र विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाला समाज बताते हुए उनके इतिहास, कठिन परिश्रम, सेवा-भाव पर प्रकाश डाला।
- श्री धरणीधर भगवान के उपासक धाकड़ समाज अब केवल कृषि कार्यों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि उद्यमिता के क्षेत्र में भी अपनी पहचान बना रहा है।
- मुख्यमंत्री ने अधिवेशन में किसानों, युवाओं और महिलाओं के उत्थान पर ज़ोर दिया।
- अधिवेशन में मौजूद लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने देश को प्रगति की दिशा में आगे बढ़ाने के लिये किसानों की समृद्धि और खुशहाली पर विशेष ज़ोर दिया।
धाकड़ समाज
- धाकड़ समाज मुख्यतः राजस्थान और मध्य प्रदेश में एक हिंदू कृषक क्षत्रिय जाति है, जिसका उल्लेख कई शिलालेखों में भी मिलता है।
- ये राजस्थान के टोंक, बूंदी, कोटा, झालावाड़, सवाईमाधोपुर, चित्तौड़गढ़ और अजमेर ज़िलों में रहते हैं।
- 'धाकड़' शब्द का अर्थ है वह जो किसी से नहीं डरता बल्कि साहसपूर्वक परिस्थितियों का सामना करता है।
- ये खुद को बलदाऊजी (भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम) के वंशज मानते हैं।
- ये हिंदी बोलते हैं और देवनागरी का उपयोग करते हैं।
![](/hindi/images/articles/1739193181_RAS-Foundation-%28H%29.jpg)
![](/hindi/images/articles/1739193181_RAS-Foundation-Mobile-%28H%29.jpg)
मध्य प्रदेश Switch to English
अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राज्यपाल ने अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा के कुलगुरू के पद पर डॉ. राजेंद्र कुमार कुड़रिया को नियुक्त किया।
मुख्य बिंदु
- राजेंद्र कुमार कुड़रिया: शासकीय विज्ञान महाविद्यालय, जबलपुर के भौतिक शास्त्र के प्राध्यापक हैं। उनका कार्यकाल, पद धारण करने की तिथि से 4 वर्ष अथवा 70 वर्ष की आयु जो भी पहले हो, के लिये रहेगा।
- अवधेश प्रताप सिंहविश्वविद्यालय: इसका नाम स्वतंत्रता सेनानी कैप्टन अवधेश प्रताप सिंह के नाम पर रखा गया है।
- विश्वविद्यालय की स्थापना 20 जुलाई, 1968 को रीवा में हुई थी और इसे फरवरी 1972 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) से मान्यता मिली थी।
- कैप्टन अवधेश प्रताप सिंह: भारत के एक राजनेता एवं भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे। स्वतंत्रता के बाद वर्ष 1948 में विंध्य प्रदेश की स्थापना पर, उन्होंने (1948 से 1949 तक) पहले मुख्यमंत्री के रूप में नेतृत्व किया और बाद में वह संविधान सभा के सदस्य मनोनीत किये गए।
रीवा ज़िला
- उत्तर प्रदेश सीमा (इलाहाबाद) से सटा यह ज़िला मध्य प्रदेश के विंध्य पठार के एक हिस्से में बसा हुआ है और टोंस एवं उसकी सहायक नदियों द्वारा सिंचित है।
- रीवा मूल रूप से गोंड,कोल आदिवासियों का निवास स्थान रहा है।
- रीवा ज़िले में बघेली एक प्रमुख भाषा है।
- पुरवा जलप्रपात रीवा जिले में प्रवाहित टोंस या तमस नदी पर स्थित एक 70 मीटर ऊँचा झरना है और इसकी सहायक नदी (बीहड़ नदी) पर चचाई जलप्रपात स्थित है।
![](/hindi/images/articles/1739193216_MPPSC-Foundation%28H%29.jpg)
![](/hindi/images/articles/1739193216_MPPSC-Foundation-%28H%29.jpg)
उत्तर प्रदेश Switch to English
टूरिज़्म का हब बना उत्तर प्रदेश
चर्चा में क्यों?
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के नेतृत्व में राज्य अपनी ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहरों को संरक्षित कर पर्यटन के नए हब के रूप में अपनी पहचान बना है।
मुख्य बिंदु
- उत्तर प्रदेश में पर्यटन: उत्तर प्रदेश में पर्यटन का विकास न केवल प्रदेश की अर्थव्यवस्था को मज़बूती दे रहा है, बल्कि लाखों लोगों के लिये रोजगार के नए अवसर भी सृजित कर रहा है। मुख्यमंत्री के नेतृत्व में राज्य की ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहरों को संरक्षित कर एक नए पर्यटन हब के रूप में पहचान बनाई जा रही है।
- वर्ष 2024 में 65 करोड़ से अधिक पर्यटक उत्तर प्रदेश आए, जिन्होंने इसे भारत की पर्यटन राजधानी बना दिया।
- अयोध्या का राम मंदिर, वाराणसी का काशी विश्वनाथ मंदिर, मथुरा-वृंदावन आदि धार्मिक स्थलों ने उत्तर प्रदेश को विश्वस्तरीय आध्यात्मिक केंद्र में बदल दिया है। जिससे पर्यटकों की संख्या में अभूतपुर्व वृद्धि हुई है।
- स्वदेश दर्शन-2 : केंद्र सरकार की स्वदेश दर्शन-2 योजना के अंतर्गत नैमिषारण्य, प्रयागराज और महोबा को विकसित किया जा रहा है।
- महाकुंभ मेला: प्रयागराज में 13 जनवरी से 26 फरवरी 2025 तक आयोजित हो रहे इस मेले में लगभग 40 करोड़ श्रद्धालुओं के आने की संभावना है। इस मेले नए निश्चित ही उत्तर प्रदेश को विश्वस्तर पर एक नई पहचान दिलाई है। इससे होटल व्यवसाय, ट्रांसपोर्ट, गाइड सेवाओं और हस्तशिल्प उद्योग को भी बढ़ावा मिला है।
- पर्यटन का महत्त्व: उत्तर प्रदेश में पर्यटन आर्थिक विकास के एक प्रमुख चालक के रूप में उभरा है। यह सबसे तेज़ी से आगे बढ़ते आर्थिक क्षेत्रों में से एक है और इसका व्यापार, रोज़गार सृजन, निवेश, अवसंरचना विकास एवं सामाजिक समावेशन पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
उत्तर प्रदेश में प्रमुख दर्शनीय स्थल
स्थल |
जनपद |
स्थल |
जनपद |
ताज़महल |
आगरा |
संत कबीर निर्वाण स्थल |
मगहर (संत कबीर नगर) |
वृंदावन के मंदिर |
मथुरा |
माथाकुँअर बुद्ध प्रतिमा |
कुशीनगर |
खानकाह रशीदिया |
मैनपुरी |
दशावतार मंदिर |
देवगढ़ (ललितपुर) |
भगवान वराह मंदिर |
सोरों (कासगंज) |
हरिदेव जी मंदिर |
मथुरा |
रूमी दरवाज़ा |
लखनऊ |
लाडली जी (राधा) मंदिर |
मथुरा |
गोला गोकर्णनाथ मंदिर |
लखीमपुर खीरी |
भीतरगाँव गुप्तकालीन मंदिर |
कानपुर |
चक्रतीर्थ नैमिषारण्य |
सीतापुर |
भारद्वाज आश्रम एवं अक्षयवट |
प्रयागराज |
आनंद भवन |
प्रयागराज |
शाकंभरी देवी मंदिर |
सहारनपुर |
कड़कशाह बाबा की मज़ार |
कौशांबी |
दानतीर्थ (हस्तिनापुर) |
मेरठ |
बावनी इमली शहीद स्थल |
फतेहपुर |
झारखंडेश्वर मंदिर |
हापुड़ |
फाँसी इमली शहीद स्थल |
प्रयागराज |
व्यास टीला एवं नरसिंह टीला |
जालौन |
शहीद स्थल छावनी |
बस्ती |
विंध्यवासिनी मंदिर |
मिर्ज़ापुर |
कनक भवन |
अयोध्या |
लोधेश्वर मंदिर |
बाराबंकी |
सप्तमातृका की प्रतिमा |
कन्नौज |
भृगु मंदिर |
बलिया |
जे.के. मंदिर |
कानपुर नगर |
मुगल घाट |
फर्रुखाबाद |
दिगंबर जैन मूर्तियाँ |
इटावा |
औघड़नाथ मंदिर |
मेरठ |
शुक्ल तालाब |
कानपुर देहात |
जायसी स्मारक |
रायबरेली |
गोरखनाथ मंदिर |
गोरखपुर |
अशफाक उल्ला की मज़ार |
शाहजहाँपुर |
बौद्ध स्तूप |
कुशीनगर एवं पिपरहवा (सिद्धार्थ नगर) |
श्री दाओजी महाराज |
हाथरस |
बाबा सोमनाथ जी का मंदिर |
देवरिया |
चाइना मंदिर |
श्रावस्ती |
कामदगिरि पर्वत |
चित्रकूट |
रानी महल |
झाँसी |
कालिंजर दुर्ग |
बाँदा |
मकरबाई मंदिर |
महोबा |
रज़ा लाइब्रेरी |
रामपुर |
शेख सलीम चिश्ती का मकबरा |
फतेहपुर सीकरी (आगरा) |
शिब्ली एकेडमी |
आज़मगढ़ |
इमामबाड़ा एवं छतर मंजिल |
लखनऊ |
देवीपाटन (पाटेश्वरी देवी) मंदिर |
बलरामपुर |
लाल दरवाज़ा मस्जिद |
जौनपुर |
अरगा पार्वती मंदिर |
गोंडा |
हाज़ी वारिस अली की मज़ार (देवा शरीफ) |
बाराबंकी |
रेणुकेश्वर महादेव मंदिर |
सोनभद्र |
सैयद सालार मसूद गाज़ी की दरगाह |
बहराइच |
सीतावुंड घाट |
सुल्तानपुर |
कपिल मुनि आश्रम, रामेश्वरधाम मंदिर एवं भेदवुंड |
फर्रुखाबाद |
सीता समाहित स्थल (सीतामढ़ी) |
भदोही (संत रविदास नगर) |
महर्षि दधीचि आश्रम |
सीतापुर |
चौरासी गुंबद |
कालपी (जालौन) |
क्षेमकली देवी मंदिर, पद्मावती सती मंदिर, जयचंद का किला एवं हाज़ी शरीफ दरगाह |
कन्नौज |
बेल्हा देवी मंदिर |
प्रतापगढ़ |
भरत वुंड |
अयोध्या |
एजाज अली हॉल |
बिजनौर |
सैयद महमूद शाह अशरफ जहाँगीर की दरगाह |
अंबेडकर नगर |
शुक्रताल का प्राचीन शिव मंदिर |
मुज़फ्फरनगर |
सैयद शाह अब्दुल रज्जाक की दरगाह |
बाराबंकी |
धानापुर शहीद स्मारक |
चंदौली |
महर्षि दुर्वासा आश्रम |
प्रयागराज |
लॉर्ड कार्नवालिस का मकबरा |
गाज़ीपुर |
वुंतेश्वर मंदिर |
बाराबंकी |
श्री सनातन धर्म मंदिर |
गौतमबुद्ध नगर |
सलामत शाह की मज़ार |
बाराबंकी |
देवकली मंदिर |
औरैया |
राजराजेश्वरी श्रीविद्या मंदिर |
उन्नाव |
विक्टोरिया हॉल घंटाघर |
हरदोई |
दाऊजी मंदिर |
मथुरा |
यज्ञशाला |
बागपत |
तुलसी स्मारक |
बाँदा |
![](/hindi/images/articles/1739193256_UPPCS-Foundation%28H%29.jpg)
![](/hindi/images/articles/1739193256_UPPCS-Foundation-M%28H%29.jpg)
छत्तीसगढ़ Switch to English
NCST द्वारा जनजातीय विस्थापन पर सर्वेक्षण
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) ने तेलंगाना, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और ओडिशा की सरकारों को निर्देशित किया है कि वे माओवादी हिंसा के कारण छत्तीसगढ़ से विस्थापित होकर पड़ोसी राज्यों में कठिनाइयों का सामना कर रहे आदिवासी लोगों की वास्तविक संख्या का पता लगाने के लिये एक सर्वेक्षण करें।
मुख्य बिंदु
- विस्थापित जनजातीय लोगों की पहचान:
- पैनल ने तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और महाराष्ट्र में विस्थापित जनजातीय लोगों की सही संख्या और स्थान निर्धारित करने की आवश्यकता पर बल दिया, ताकि अगली कार्रवाई की योजना प्रभावी ढंग से बनाई जा सके।
- सर्वेक्षण और डेटा संकलन के लिये समन्वय:
- NCST ने छत्तीसगढ़ सरकार को सर्वेक्षण कराने के लिये तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और महाराष्ट्र सरकारों के साथ समन्वय करने हेतु एक नोडल अधिकारी नियुक्त करने का निर्देश दिया।
- इन राज्यों से आँकड़े एकत्र करने के बाद, छत्तीसगढ़ सरकार को एक समेकित रिपोर्ट तैयार करनी होगी और उसे आगे की कार्रवाई के लिये NCST को प्रस्तुत करना होगा।
- इस मुद्दे को उजागर करने वाली याचिका:
- आयोग को मार्च 2022 में एक याचिका प्राप्त हुई, जिसमें उल्लेख किया गया था कि गोट्टी कोया समुदाय के सदस्य, जो वर्ष 2005 में माओवादी छापामारों और भारतीय सुरक्षा बलों के बीच हिंसा के कारण छत्तीसगढ़ से भाग गए थे, अपने नए स्थानों पर गंभीर कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं।
- विस्थापित आदिवासियों की अनुमानित संख्या:
- जनजातीय अधिकार कार्यकर्त्ताओं का अनुमान है कि वामपंथी उग्रवाद के कारण लगभग 50,000 आदिवासी छत्तीसगढ़ से विस्थापित हुए हैं।
- वे वर्तमान में ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र के वनों में 248 बस्तियों में रह रहे हैं।
- भूमि पुनर्ग्रहण एवं विस्थापन संबंधी चिंताएँ:
- रिपोर्टों से पता चलता है कि तेलंगाना सरकार ने कम से कम 75 बस्तियों में आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों (IDP) से भूमि वापस ले ली है, जिससे उनकी आजीविका खतरे में पड़ गई है और वे अधिक असुरक्षित हो गए हैं।
- आयोग ने याचिका का उल्लेख करते हुए यह आरोप लगाया कि वन विभाग के अधिकारियों ने आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्तियों के आवासों को नष्ट कर दिया और उनकी कृषि फसलों को भी नष्ट कर दिया।
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST)
- परिचय:
- NCST की स्थापना वर्ष 2004 में अनुच्छेद 338 में संशोधन करके और 89वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 के माध्यम से संविधान में एक नया अनुच्छेद 338A जोड़कर की गई थी। इसलिये, यह एक संवैधानिक निकाय है।
- इस संशोधन द्वारा पूर्ववर्ती राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आयोग को दो पृथक आयोगों द्वारा प्रतिस्थापित किया गया:
- राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST)
- उद्देश्य:
- अनुच्छेद 338A, अन्य बातों के साथ-साथ, NCST को संविधान के तहत या किसी अन्य कानून के तहत या सरकार के किसी अन्य आदेश के तहत अनुसूचित जनजातियों (ST) को प्रदान किये गए विभिन्न सुरक्षा उपायों के कार्यान्वयन की देखरेख करने और ऐसे सुरक्षा उपायों के कामकाज का मूल्यांकन करने की शक्तियां प्रदान करता है।
- संघटन:
- इसमें एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और तीन अन्य सदस्य होते हैं, जिन्हें राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुहर सहित वारंट द्वारा नियुक्त करते हैं।
- कम से कम एक सदस्य महिला होनी चाहिये।
- अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्य 3 वर्ष की अवधि के लिये पद धारण करते हैं।
- अध्यक्ष को केंद्रीय कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया है, उपाध्यक्ष को राज्य मंत्री का दर्जा दिया गया है तथा अन्य सदस्यों को भारत सरकार के सचिव का दर्जा दिया गया है।
- सदस्य दो कार्यकाल से अधिक के लिये नियुक्ति के पात्र नहीं हैं।
गोट्टी कोया जनजाति
- परिचय:
- गोट्टी कोया भारत के कुछ बहु-नस्लीय और बहुभाषी जनजातीय समुदायों में से एक है।
- वे आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और ओडिशा राज्यों में गोदावरी नदी के दोनों किनारों पर वनों, मैदानों और घाटियों में रहते हैं।
- ऐसा कहा जाता है कि वे उत्तर भारत के बस्तर स्थित अपने मूल निवास से मध्य भारत में प्रवास कर आये थे।
- भाषा:
- कोया भाषा, जिसे कोयी भी कहा जाता है, एक द्रविड़ भाषा है। यह गोंडी से बहुत मिलती-जुलती है और इस पर तेलुगु का बहुत प्रभाव है।
- अधिकांश कोया लोग कोयी के अतिरिक्त गोंडी या तेलुगु भी बोलते हैं।
- पेशा:
- परंपरागत रूप से वे पशुपालक और झूम खेती करने वाले किसान थे, लेकिन आजकल उन्होंने स्थायी खेती के साथ-साथ पशुपालन और मौसमी वन संग्रह को भी अपना लिया है।
- वे ज्वार, रागी, बाजरा और अन्य मोटे अनाज उगाते हैं।
- समाज एवं संस्कृति:
- सभी गोटी कोया पाँच उपविभागों में से एक से संबंधित हैं जिन्हें गोत्रम कहा जाता है। हर गोटी कोया एक कबीले में जन्म लेता है और उसे उस कबीले को छोड़ने की अनुमति नहीं होती है।
- उनका परिवार पितृवंशीय और पितृस्थानीय होता है। इस परिवार को "कुटुम" कहा जाता है। एकल परिवार ही इसका प्रमुख प्रकार है।
- कोया लोगों में एकपत्नीत्व प्रथा प्रचलित है।
- वे अपने स्वयं के जातीय धर्म का पालन करते हैं, लेकिन कई हिंदू देवी-देवताओं की भी पूजा करते हैं।
- कई गोट्टी कोया देवी हैं, जिनमें सबसे महत्त्वपूर्ण "धरती माता" है।
- वे ज़रूरतमंद परिवारों की सहायता करने और उन्हें खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के लिये गाँव स्तर पर सामुदायिक निधि और अनाज बैंक चलाते हैं।
- वे मृतकों को या तो दफना देते हैं या उनका दाह संस्कार कर देते हैं। वे मृतकों की याद में मेनहिर बनवाते हैं।
- उनके मुख्य त्योहार विज्जी पांडुम (बीज आकर्षण त्यौहार) और कोंडाला कोलुपु (पहाड़ी देवताओं को प्रसन्न करने का त्यौहार) हैं।
- वे त्योहारों और विवाह समारोहों के अवसर पर पर्माकोक (बाइसन सींग नृत्य) नामक एक उत्साही और रंग-बिरंगे नृत्य का प्रदर्शन करते हैं।
![](/hindi/images/articles/1739193318_state-pcs.jpg)
![](/hindi/images/articles/1739193318_state-pcs1.jpg)
छत्तीसगढ़ Switch to English
2026 तक माओवाद का उन्मूलन
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने घोषणा की है कि सरकार 31 मार्च, 2026 तक "नक्सलवादियों" का पूर्ण रूप से नाश कर देगी और यह सुनिश्चित करेगी कि उग्रवाद के कारण किसी भी नागरिक की मृत्यु न हो।
मुख्य बिंदु
- बीजापुर ऑपरेशन:
- गृह मंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि सुरक्षा बलों ने छत्तीसगढ़ के बीजापुर में 31 माओवादियों को मार गिराकर तथा भारी मात्रा में हथियार और विस्फोटक बरामद करके महत्त्वपूर्ण सफलता प्राप्त की।
- छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने कहा कि देश और राज्य से माओवाद समाप्त हो जाएगा।
- इस बात पर भी ज़ोर दिया गया कि माओवादियों द्वारा बिछाए गए इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (IED) को हटाने तथा बस्तर क्षेत्र में स्कूल, अस्पताल, सड़क, जलापूर्ति, आँगनवाड़ी और मोबाइल टावर सहित आवश्यक बुनियादी ढाँचा उपलब्ध कराने के प्रयास जारी हैं।
- 2024 में माओवादी हताहत:
- पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, सुरक्षा बलों ने छत्तीसगढ़ में अलग-अलग मुठभेड़ों में 219 माओवादियों को मार गिराया।
माओवाद
- परिचय:
- माओवाद माओ त्से तुंग द्वारा विकसित साम्यवाद का एक रूप है। यह सशस्त्र विद्रोह, जन-आंदोलन और रणनीतिक गठबंधनों के संयोजन के माध्यम से राज्य सत्ता पर कब्ज़ा करने का सिद्धांत है।
- माओ ने इस प्रक्रिया को 'दीर्घकालिक जनयुद्ध' कहा, जिसमें सत्ता पर कब्ज़ा करने के लिये 'सैन्य लाइन' पर ज़ोर दिया जाता है।
- माओवाद माओ त्से तुंग द्वारा विकसित साम्यवाद का एक रूप है। यह सशस्त्र विद्रोह, जन-आंदोलन और रणनीतिक गठबंधनों के संयोजन के माध्यम से राज्य सत्ता पर कब्ज़ा करने का सिद्धांत है।
- माओवादी विचारधारा:
- माओवादी विचारधारा का केंद्रीय विषय राज्य सत्ता पर कब्ज़ा करने के साधन के रूप में हिंसा और सशस्त्र विद्रोह का प्रयोग करना है।
- माओवादी उग्रवाद सिद्धांत के अनुसार, 'हथियार रखने पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता'।
- माओवादी विचारधारा का केंद्रीय विषय राज्य सत्ता पर कब्ज़ा करने के साधन के रूप में हिंसा और सशस्त्र विद्रोह का प्रयोग करना है।
- भारतीय माओवादी:
- भारत में सबसे बड़ा और सबसे हिंसक माओवादी संगठन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) है जिसका गठन वर्ष 2004 में हुआ था।
- CPI (माओवादी) और उसके अग्रणी संगठनों को गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत प्रतिबंधित कर दिया गया।
- फ्रंट ऑर्गनाइजेशन मूल माओवादी पार्टी की शाखाएँ हैं, जो कानूनी उत्तरदायित्व से बचने के लिये अलग अस्तित्व का दावा करती हैं।
![](/hindi/images/articles/1739193326_state-pcs.jpg)
![](/hindi/images/articles/1739193326_state-pcs1.jpg)