भारतीय अर्थव्यवस्था
लोकसभा अध्यक्ष की भूमिका
- 12 Jun 2024
- 21 min read
प्रिलिम्स के लिये:18वीं लोकसभा, गठबंधन सरकार, लोकसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, साधारण बहुमत, स्थगन, अविश्वास और निंदा प्रस्ताव, कार्य मंत्रणा समिति, सामान्य प्रयोजन समिति और नियम समिति, अधिकार और विशेषाधिकार मेन्स के लिये:भारत में लोकसभा अध्यक्ष के बारे में मुख्य तथ्य, गठबंधन सरकार में अध्यक्ष की भूमिका |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
एक गठबंधन सरकार में लोकसभा अध्यक्ष की न केवल सदन के कुशल संचालन के लिये बल्कि विपक्ष और सत्तारूढ़ दल तथा उसके सहयोगियों के बीच शक्ति संतुलन बनाए रखने के लिये भी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है, जैसा कि 18वीं लोकसभा का आगामी सत्र प्रदर्शित करेगा।
भारत में लोकसभा अध्यक्ष के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- परिचय:
- लोकसभा अध्यक्ष सदन का संवैधानिक और औपचारिक प्रमुख होता है।
- संसद के प्रत्येक सदन का अपना पीठासीन अधिकारी होता है।
- लोकसभा के लिये एक अध्यक्ष और उपाध्यक्ष तथा राज्यसभा के लिये एक सभापति एवं उपसभापति होते हैं।
- संसदीय गतिविधियों, कार्यप्रणाली और प्रक्रिया के संबंध में अध्यक्ष को लोकसभा के महासचिव तथा सचिवालय के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा सहायता प्रदान की जाती है।
- लोकसभा अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष कार्यों का निर्वहन करता है।
- लोकसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष दोनों की अनुपस्थिति में सभापति पैनल का कोई सदस्य सदन की अध्यक्षता करता है। हालाँकि, लोकसभा अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद रिक्त होने पर सभापति पैनल का कोई सदस्य सदन की अध्यक्षता नहीं कर सकता।
- निर्वाचन:
- सदन अपने पीठासीन अधिकारी का चुनाव उपस्थित सदस्यों के साधारण बहुमत से करता है, जो सदन में मतदान करते हैं।
- आमतौर पर, सत्तारूढ़ दल के सदस्य को लोकसभा अध्यक्ष के रूप में चुना जाता है, जबकि उपाध्यक्ष विपक्षी दल से चुना जाता है।
- ऐसे भी उदाहरण हैं जब सत्तारूढ़ दल से बाहर के सदस्यों को लोकसभा अध्यक्ष पद के लिये चुना गया।
- गैर-सत्तारूढ़ दल से संबंधित GMC बालयोगी और मनोहर जोशी 12वीं और 13वीं लोकसभा में अध्यक्ष के रूप में कार्यरत थे।
- जब लोकसभा भंग हो जाती है तो अध्यक्ष, नया अध्यक्ष के चुने जाने के पूर्व तक नई लोकसभा की पहली बैठक तक अपने पद पर बना रहता है।
- निष्कासन:
- संविधान ने निचले सदन को आवश्यकता पड़ने पर लोकसभा अध्यक्ष को हटाने का अधिकार दिया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 94 के अनुसार सदन प्रभावी बहुमत (उपस्थित और मतदान करने वाले सदन की प्रभावी शक्ति (कुल शक्ति-रिक्तियों) के 50% से अधिक) द्वारा पारित प्रस्ताव के माध्यम से 14 दिनों के नोटिस पर लोकसभा अध्यक्ष को हटा सकता है।
- लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 7 और 8 के तहत लोकसभा सदस्य होने से अयोग्य घोषित होने पर लोकसभा अध्यक्ष को हटाया भी जा सकता है।
- अध्यक्ष अपना त्याग-पत्र उपाध्यक्ष को भी दे सकता है।
- संविधान ने निचले सदन को आवश्यकता पड़ने पर लोकसभा अध्यक्ष को हटाने का अधिकार दिया है।
- शक्ति और कर्त्तव्यों के स्रोत:
- लोकसभा अध्यक्ष को अपनी शक्तियाँ और कर्त्तव्य तीन स्रोतों से प्राप्त होते हैं:
- भारत का संविधान,
- लोकसभा की प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियम,
- संसदीय परंपराएँ (अवशिष्ट शक्तियाँ जो नियमों में अलिखित या अनिर्दिष्ट हैं)
- लोकसभा अध्यक्ष को अपनी शक्तियाँ और कर्त्तव्य तीन स्रोतों से प्राप्त होते हैं:
- लोकसभा अध्यक्ष की स्वतंत्रता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के प्रावधान:
- उन्हें कार्यकाल की सुरक्षा प्रदान की जाती है। उन्हें केवल लोकसभा द्वारा प्रभावी बहुमत से पारित प्रस्ताव द्वारा ही हटाया जा सकता है।
- उनके वेतन और भत्ते भारत की संचित निधि पर भारित होते हैं इसलिये वे संसद के वार्षिक मतदान के अधीन नहीं होते हैं।
- उनके कार्य और आचरण पर लोकसभा में किसी ठोस प्रस्ताव के अलावा चर्चा या आलोचना नहीं की जा सकती।
- सदन में प्रक्रिया को विनियमित करने, कार्य संचालन करने या व्यवस्था बनाए रखने की उनकी शक्तियाँ किसी न्यायालय के अधिकार क्षेत्र के अधीन नहीं हैं।
- वह पहले चरण में मतदान नहीं कर सकता। वह केवल बराबरी की स्थिति में ही निर्णायक मत का प्रयोग कर सकता है। इससे लोकसभा अध्यक्ष का पद निष्पक्ष हो जाता है।
- वरीयता क्रम में उन्हें भारत के मुख्य न्यायाधीश के साथ छठे स्थान पर रखा गया है।
प्रोटेम स्पीकर:
- जब पिछली लोकसभा का अध्यक्ष नवनिर्वाचित लोकसभा की पहली बैठक से ठीक पहले अपना पद खाली कर देता है, तो राष्ट्रपति लोकसभा के एक सदस्य को प्रोटेम स्पीकर (Speaker Pro Tem) के रूप में नियुक्त करता है।
- सामान्यतः इस पद पर सबसे वरिष्ठ सदस्य का चयन किया जाता है।
- प्रोटेम स्पीकर को राष्ट्रपति स्वयं शपथ दिलाता है।
- वह नवनिर्वाचित लोकसभा की पहली बैठक की अध्यक्षता करता है और उसके पास अध्यक्ष की सभी शक्तियाँ होती हैं।
- इसका प्रमुख कार्य नए सदस्यों को शपथ दिलाना और सदन को नए अध्यक्ष का चुनाव करने में सक्षम बनाना है।
- जब सदन द्वारा नए लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव कर लिया जाता है तब प्रोटेम स्पीकर का कार्यकाल समाप्त हो जाता है।
लोकसभा अध्यक्ष की भूमिकाएँ और ज़िम्मेदारियाँ क्या हैं?
- सदन की कार्यवाही की अध्यक्षता करना:
- लोकसभा अध्यक्ष निचले सदन के सत्रों की देखरेख करते हैं तथा सदस्यों के बीच अनुशासन और मर्यादा सुनिश्चित करते हैं।
- लोकसभा अध्यक्ष संसदीय बैठकों के लिये एजेंडा तय करता है और प्रक्रियात्मक नियमों की व्याख्या करता है। वह स्थगन, अविश्वास और निंदा प्रस्ताव जैसे प्रस्तावों को अनुमति देता है, जिससे व्यवस्थित संचालन सुनिश्चित होता है।
- लोकसभा अध्यक्ष सदन के भीतर (a) भारत के संविधान, (b) लोक सभा के प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियमों तथा (c) संसदीय मिसालों के प्रावधानों का अंतिम व्याख्याता होता है।
- कोरम लागू करना और अनुशासनात्मक कार्रवाई:
- कोरम या गणपूर्ति के अभाव में लोकसभा अध्यक्ष आवश्यक उपस्थिति पूरी होने तक बैठक स्थगित कर देता है।
- लोकसभा अध्यक्ष को संविधान की 10वीं अनुसूची के तहत अनियंत्रित व्यवहार को दंडित करने और दलबदल के आधार पर सदस्यों को अयोग्य ठहराने का भी अधिकार है।
- समितियों का गठन:
- सदन की समितियों का गठन लोकसभा अध्यक्ष द्वारा किया जाता है और वे अध्यक्ष के समग्र निर्देशन में कार्य करती हैं।
- सभी संसदीय समितियों के अध्यक्षों को लोकसभा अध्यक्ष द्वारा नामित किया जाता है।
- कार्य मंत्रणा समिति, सामान्य प्रयोजन समिति और नियम समिति जैसी समितियाँ सीधे उनकी अध्यक्षता में काम करती हैं।
- सदन के विशेषाधिकार:
- लोकसभा अध्यक्ष सदन, उसकी समितियों और सदस्यों के अधिकारों और विशेषाधिकारों का संरक्षक होता है।
- किसी विशेषाधिकार के प्रश्न को परीक्षण, जाँच और रिपोर्ट के लिये विशेषाधिकार समिति को भेजना पूर्णतः अध्यक्ष पर निर्भर करता है।
- वह सदन के नेता के अनुरोध पर सदन की ‘गुप्त’ बैठक की अनुमति दे सकता है। जब सदन गुप्त रूप से बैठता है, तो लोकसभा अध्यक्ष की अनुमति के बिना कोई भी अजनबी कक्ष, लॉबी या दीर्घाओं में मौजूद नहीं हो सकता।
- प्रशासनिक प्राधिकारी:
- लोकसभा सचिवालय के प्रमुख के रूप में, अध्यक्ष संसद भवन के भीतर प्रशासनिक मामलों और सुरक्षा व्यवस्था का प्रबंधन करते हैं। वे संसदीय बुनियादी ढाँचे में परिवर्तन और परिवर्द्धन को नियंत्रित करते हैं।
- अंतर-संसदीय संबंध:
- लोकसभा अध्यक्ष भारतीय संसदीय समूह के पदेन अध्यक्ष के रूप में कार्य करते हैं, जो अंतर-संसदीय संबंधों को सुगम बनाता है। वह विदेश में प्रतिनिधिमंडलों का नेतृत्व करते हैं और भारत में विधायी निकायों के पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन की अध्यक्षता करते हैं।
लोकसभा अध्यक्ष/उपाध्यक्ष से संबंधित संवैधानिक प्रावधान
- अनुच्छेद 93/178: लोकसभा/विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की नियुक्ति।
- अनुच्छेद 94/179: लोकसभा/विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद छोड़ना/त्याग-पत्र देना/पद से हटाया जाना।
- अनुच्छेद 95/180: उपसभापति या अन्य व्यक्ति(यों) की लोकसभा/विधानसभा के अध्यक्ष के रूप में कार्य करने या पद के कर्त्तव्यों का पालन करने की शक्ति।
- अनुच्छेद 96/181: लोकसभा अध्यक्ष या उपसभापति को पद से हटाने का प्रस्ताव विचाराधीन होने पर उनका अध्यक्षता न करना।
- अनुच्छेद 97/186: लोकसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के वेतन और भत्ते।
अध्यक्ष/उपाध्यक्ष से संबंधित न्यायिक प्रावधान
- किहोतो होलोहन बनाम ज़ाचिल्हू मामले, 1993 में, सर्वोच्च न्यायालय ने घोषित किया कि पीठासीन अधिकारी का निर्णय अंतिम नहीं है और किसी भी अदालत में उस पर सवाल उठाया जा सकता है। यह दुर्भावना, दुराग्रह आदि के आधार पर न्यायिक समीक्षा के अधीन है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने केशम मेघचंद्र सिंह बनाम माननीय अध्यक्ष मणिपुर विधानसभा एवं अन्य मामले, 2020 में फैसला दिया कि विधानसभाओं और संसद के अध्यक्षों को असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर तीन महीने की अवधि के भीतर अयोग्यता याचिकाओं पर फैसला करना चाहिये।
- नबाम रेबिया बनाम उप-सभापति मामले, 2016 में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि यदि किसी अध्यक्ष को हटाने का नोटिस लंबित है तो वह दल-बदल विरोधी कानून (संविधान की 10वीं अनुसूची) के तहत अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय लेने से अक्षम हो जाएगा।
- दूसरे शब्दों में, इस निर्णय ने पदच्युति नोटिस का सामना कर रहे लोकसभा अध्यक्ष को दल-बदल विरोधी कानून के तहत विधानसभा सदस्यों के विरुद्ध अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय लेने से रोक दिया।
- इसके अलावा, वर्ष 2023 में, सुभाष देसाई बनाम महाराष्ट्र के राज्यपाल के प्रधान सचिव मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष को विधायकों की अयोग्यता की याचिका पर निर्णय लेने के लिये समय-सीमा निर्धारित करने का निर्देश दिया।
लोकसभा अध्यक्ष के कार्यालय से संबंधित मुद्दे क्या हैं?
- पक्षपात का मुद्दा: लोकसभा अध्यक्ष, जो अक्सर सत्ताधारी पार्टी से संबंधित होते हैं, पर पक्षपात का आरोप लगाया जाता है। किहोटो होलोहन बनाम ज़ाचिल्हू मामले (Kihoto Hollohan versus Zachilhu case) में सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे उदाहरणों पर प्रकाश डाला है जहाँ लोकसभा अध्यक्ष ने कथित तौर पर अपने दल के पक्ष में कार्य किया है।
- उदाहरण के लिये, धन विधेयक और राजनीतिक दल-बदल के मामलों पर निर्णय लेने में राजनीतिक संबद्धता वाले लोकसभा अध्यक्षों की विवेकाधीन शक्तियाँ इसका एक उदाहरण है।
- वर्ष 2017 में मणिपुर विधानसभा दल-बदल विरोधी मामले में अदालत ने चार सप्ताह की उचित अवधि दी थी, लेकिन दल-बदल की शिकायत वर्षों तक लंबित रही।
- राष्ट्रीय हित के ऊपर दल हितों को प्राथमिकता देना: वक्ताओं के पास ऐसी वाद-विवाद या चर्चाओं को प्रतिबंधित करने का अधिकार है जो राजनीतिक दलों के एजेंडे को प्रभावित कर सकती हैं, यदि वे चर्चाएँ राष्ट्र की भलाई के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- कार्यवाही में व्यवधान और रुकावट में वृद्धि: यदि लोकसभा अध्यक्ष को पक्षपाती माना जाता है तो इससे विपक्ष में निराशा और व्यवधान उत्पन्न हो सकता है, जिससे अंततः संसद की कार्यवाही में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
- समितियों और जाँच को नज़रअंदाज़ करना: उचित समिति समीक्षा के बिना विधेयकों को जल्दबाज़ी में पारित करने से अप्रभावी कानून (जिस पर पर्याप्त विचार-विमर्श नहीं किया गया हो) बन सकता है।
- उदाहरण: वर्ष 2020 में संसदीय समिति को भेजे बिना तीन कृषि कानूनों को पारित करने को विपक्ष द्वारा व्यापक विरोध और बाद में उन्हें वापस लेने का कारण बताया गया है।
आगे की राह
- स्थिरता बनाए रखना: लोकसभा अध्यक्ष की निष्पक्षता और न्यायसंगतता महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि उन्हें विविध राजनीतिक हितों की जटिल गतिशीलता को संतुलित करना होता है।
- अविश्वास प्रस्ताव की स्वीकृति, वाद-विवाद के लिये समय का आवंटन तथा सदस्यों की मान्यता जैसे मुद्दों पर उनके निर्णय सरकार की स्थिरता पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाल सकते हैं।
- विवादों के समाधान में भूमिका:
- गठबंधन सरकार में, जहाँ अलग-अलग विचारधाराओं और एजेंडों वाली कई दल एक साथ आते हैं, वहाँ संघर्ष तथा विवाद अपरिहार्य हैं।
- लोकसभा अध्यक्ष को इन विवादों में मध्यस्थता करने तथा सभी हितधारकों को स्वीकार्य समाधान ढूँढने में निष्पक्षता बनाए रखनी चाहिये।
- विधायी परिणामों पर प्रभाव: विधायी एजेंडे को नियंत्रित करके, लोकसभा अध्यक्ष विधेयकों के पारित होने और सरकार की समग्र नीति दिशा को प्रभावित कर सकता है।
- भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा, "अध्यक्ष की भूमिका सिर्फ सदन चलाने तक ही सीमित नहीं है; बल्कि सरकार और विपक्ष के बीच सेतु बनने और यह सुनिश्चित करने की भी है कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया कायम रहे”।
- गैर-पक्षपात सुनिश्चित करना: पूर्ण गैर-पक्षपात सुनिश्चित करने के लिये लोकसभा अध्यक्ष द्वारा अपने राजनीतिक दल से त्याग-पत्र देने की प्रथा को संविधान के शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत को कायम रखने के लिये आगे बढ़ाया जा सकता है।
- वर्ष 1967 में लोकसभा अध्यक्ष बनने पर एन. संजीव रेड्डी द्वारा अपने दल से त्याग-पत्र देना, गैर-पक्षपातपूर्ण आचरण का सकारात्मक उदाहरण प्रस्तुत करता है।
- ब्रिटेन में स्पीकर पूरी तरह से गैर-दलीय सदस्य होता है। वहाँ परंपरा है कि स्पीकर को अपनी पार्टी से त्याग-पत्र देना होता है और राजनीतिक रूप से तटस्थ रहना होता है।
निष्कर्ष:
- लोकसभा अध्यक्ष केवल पीठासीन अधिकारी नहीं होते, बल्कि सदन के कामकाज को आकार देने और सत्तारूढ़ दल तथा विपक्ष के बीच संतुलन को प्रभावित करने में शक्ति रखते हैं, खासकर गठबंधन सरकार के मामले में। अध्यक्ष के निर्णयों और कार्यों का सरकार के कामकाज तथा स्थिरता पर दूरगामी प्रभाव पड़ सकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारतीय संसदीय प्रणाली में अध्यक्ष की शक्तियों और ज़िम्मेदारियों पर प्रकाश डालते हुए संसदीय लोकतंत्र को सुनिश्चित करने में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका के बारे में चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. लोकसभा के उपाध्यक्ष के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त कथनों में कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. आपकी दृष्टि में, भारत में कार्यपालिका की जवाबदेही को निश्चित करने में संसद कहाँ तक समर्थ है? (2021) प्रश्न. आपके विचार में सहयोग, स्पर्धा एवं संघर्ष ने किस प्रकार से भारत में महासंघ को किस सीमा तक आकार दिया है? अपने उत्तर को प्रामाणित करने के लिये कुछ हालिया उदाहरण उद्धत कीजिये। (2020) |