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प्रश्न :
देवनागरी लिपि के विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी।
05 Nov, 2020 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भूमिका
- देवनागरी लिपि के विकास पर टिप्पणी
- निष्कर्ष
लिपि का विकास भाषा के विकास के बाद होता है। लिपियों के विकास की पंरपरा प्रायः क्रमानुसार होती है, उसमें सबसे पहले चित्रलिपि, फिर सूत्रलिपि, फिर प्रतीकात्मक लिपि तथा अक्षरात्मक लिपि से होते हुये अंत में वर्णात्मक लिपि के विकास को माना गया है। देवनागरी एक अक्षरात्मक लिपि है क्योंकि इसके सारे व्यंजन स्वरों के माध्यम से ही उच्चरित होते हैं।
भारत में लिपि के विकास की परंपरा में ब्राह्मी लिपि को प्रस्थान बिंदु माना जाता है। इसी की परंपरा में आगे चलकर देवनागरी का विकास हुआ है। ब्राह्मी लिपि के दो रूप प्रचलित रहे हैं- दक्षिणी ब्राह्मी और उत्तरी ब्राह्मी। उत्तरी ब्राह्मी से उत्तर भारतीय लिपियों का विकास हुआ है जबकि दक्षिणी ब्राह्मी से द्रविड़ परिवार की लिपियों का। उत्तरी ब्राह्मी से ही गुप्तकाल में गुप्त लिपि विकसित हुई और जब यह साधारण प्रयोग में टेढ़े-मेढ़े अक्षरों से युक्त हो गई तो इसे कुटिल लिपि कहा जाने लगा।
कुटिल लिपि से दो प्रकार की परंपराएँ विकसित हुईं। कश्मीर के पंडितों ने इस कुटिल लिपि को ‘शारदा लिपि’ कहा। कश्मीर के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों जैसे- गुजरात, मध्यप्रदेश महाराष्ट्र आदि में कुटिल लिपि से विकसित होने वाली लिपि को ‘प्राचीन नागरी’ कहा गया। इस प्राचीन नागरी से पुनः कई विकास हुए तथा आधुनिक आर्यभाषाओं जैसे हिंदी, गुजराती, मराठी और बांग्ला इत्यादि के लिये अलग-अलग लिपियाँ विकसित हुई।
हिंदी भाषा के लिये विकसित होने वाली लिपि को ही देवनागरी कहा गया देवनागरी लिपि के प्रयोग का पहला उदाहरण सातवीं शताब्दी में सम्राट हर्षवर्धन के समय से मिलने लगता है। दसवीं शताब्दी तक इस लिपि का क्षेत्र पंजाब से बंगाल तथा नेपाल से दक्षिण भारत तक हो गया था। दसवीं शताब्दी से 19वीं शताब्दी तक यह लिपि किसी न किसी रूप में हिंदी देश की मुख्य लिपि बनी रही।
19वीं तथा 20वीं शताब्दी में मानकीकरण के वैयक्तिक और संस्थागत प्रयासों की मदद से अखिल भारतीय लिपि के रूप में विकसित होने लगी। आज भी यह एकमात्र लिपि है जो भारत की सभी भाषाओं की भीषण विशेषताओं को धारण करके राष्ट्रीय एकीकरण का सशक्त माध्यम बन सकती है।
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