छत्तीसगढ़
गोट्टी कोया जनजातियों की स्थिति पर रिपोर्ट
- 11 Nov 2024
- 7 min read
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने केंद्रीय गृह मंत्रालय और छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और ओडिशा से माओवादी हिंसा के कारण छत्तीसगढ़ से विस्थापित हुए गोट्टी कोया जनजातियों की स्थिति पर विस्तृत रिपोर्ट देने को कहा है।
प्रमुख बिंदु
- पृष्ठभूमि और विस्थापन चुनौतियाँ:
- आयोग को मार्च 2022 में एक याचिका प्राप्त हुई, जिसमें बताया गया कि माओवादी हिंसा के कारण 2005 में छत्तीसगढ़ से पलायन करने वाले गोट्टी कोया जनजातियों को अब पड़ोसी राज्यों में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
- जनजातीय अधिकार कार्यकर्त्ताओं के अनुसार लगभग 50,000 गोट्टी कोया जनजाति विस्थापित हो गए हैं, जो अब ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र में 248 बस्तियों में रह रहे हैं।
- चिंताएँ:
- तेलंगाना सरकार ने कम से कम 75 बस्तियों में आंतरिक रूप से विस्थापित गोट्टी कोया परिवारों से भूमि वापस ले ली, जिससे उनकी आजीविका प्रभावित हुई और उनकी असुरक्षा बढ़ गई।
- अधिकारियों के अनुसार, छत्तीसगढ़ से आये गोट्टी कोया लोग तेलंगाना में अनुसूचित जनजाति में नहीं आते, इसलिये उन्हें वहाँ वन अधिकार प्राप्त नहीं हैं।
- आयोग ने आर्थिक एवं सामाजिक अध्ययन केंद्र के निदेशक तथा वन विभाग के प्रतिनिधियों से तेलंगाना में गोट्टी कोया बस्तियों में किये गये सर्वेक्षणों के निष्कर्ष प्रस्तुत करने को कहा।
- विस्थापित जनजातियों पर सरकारी आँकड़े:
- सरकार ने संसद को बताया कि पुनर्वास कार्यक्रमों के बावजूद छत्तीसगढ़ के जनजाति परिवार वापस लौटने को तैयार नहीं हैं।
- केंद्रीय जनजातीय मामलों के राज्य मंत्री के अनुसार, सुकमा, बीजापुर और दंतेवाड़ा ज़िलों में वामपंथी उग्रवाद के कारण 2,389 परिवारों के 10,489 लोग विस्थापित हुए।
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग
- परिचय:
- इसकी स्थापना 2004 में अनुच्छेद 338 में संशोधन करके और 89वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 के माध्यम से संविधान में एक नया अनुच्छेद 338A जोड़कर की गई थी। इसलिये, यह एक संवैधानिक निकाय है।
- इस संशोधन द्वारा पूर्ववर्ती राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आयोग को दो पृथक आयोगों द्वारा प्रतिस्थापित किया गया:
- राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC)
- राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST)
- उद्देश्य:
- अनुच्छेद 338A, अन्य बातों के साथ-साथ, NCST को संविधान के तहत या किसी अन्य कानून के तहत या सरकार के किसी अन्य आदेश के तहत अनुसूचित जनजातियों को प्रदान किये गए विभिन्न सुरक्षा उपायों के कार्यान्वयन की देखरेख करने और ऐसे सुरक्षा उपायों के कामकाज का मूल्यांकन करने की शक्तियाँ प्रदान करता है।
- संघटन:
- इसमें एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और तीन अन्य सदस्य होते हैं, जिन्हें राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुहर सहित वारंट द्वारा नियुक्त करते हैं।
- कम से कम एक सदस्य महिला होनी चाहिये।
- अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्य 3 वर्ष की अवधि के लिये पद धारण करते हैं।
- इसमें एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और तीन अन्य सदस्य होते हैं, जिन्हें राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुहर सहित वारंट द्वारा नियुक्त करते हैं।
गोट्टी कोया जनजाति
- गोट्टी कोया भारत के कुछ बहु-नस्लीय और बहुभाषी जनजातीय समुदायों में से एक है।
- वे आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और ओडिशा राज्यों में गोदावरी नदी के दोनों किनारों पर वनों, मैदानों और घाटियों में रहते हैं ।
- ऐसा कहा जाता है कि वे उत्तर भारत के बस्तर स्थित अपने मूल निवास से मध्य भारत में प्रवास कर आये थे ।
भाषा:
- कोया भाषा, जिसे कोयी भी कहा जाता है, एक द्रविड़ भाषा है। यह गोंडी से मिलती-जुलती है और इस पर तेलुगु का बहुत प्रभाव है।
- अधिकांश कोया लोग कोयी के अलावा गोंडी या तेलुगु भी बोलते हैं।
पेशा:
- परंपरागत रूप से वे पशुपालक और झूम कृषि करने वाले किसान थे, लेकिन आजकल उन्होंने स्थायी कृषि के साथ-साथ पशुपालन और मौसमी वन संग्रह को भी अपना लिया है।
- वे ज्वार, रागी, बाजरा की कृषि करते हैं।
समाज और संस्कृति:
- सभी गोट्टी कोया पाँच उपविभागों में से एक से संबंधित हैं जिन्हें गोत्रम कहा जाता है। हर गोट्टी कोया एक कबीले में पैदा होता है, और वह इसे छोड़ नहीं सकता।
- उनका परिवार पितृवंशीय और पितृस्थानीय होता है। इस परिवार को "कुटुम" कहा जाता है। एकल परिवार ही इसका प्रमुख प्रकार है।
- कोया लोगों में एकपत्नीत्व प्रथा प्रचलित है।
- वे अपने स्वयं के जातीय धर्म का पालन करते हैं, लेकिन कई हिंदू देवी-देवताओं की भी पूजा करते हैं।
- कई गोट्टी कोया देवता महिला हैं, जिनमें सबसे महत्त्वपूर्ण "माता पृथ्वी" है।
- वे जरूरतमंद परिवारों की मदद करने और उन्हें खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के लिये गाँव स्तर पर सामुदायिक निधि और अनाज बैंक चलाते हैं।
- वे मृतकों को या तो दफना देते हैं या उनका दाह संस्कार कर देते हैं। वे मृतकों की याद में मेन्हीर बनवाते हैं।
- उनके मुख्य त्योहार विज्जी पंडुम (बीज आकर्षक त्योहार) और कोंडालाकोलुपु (पहाड़ी देवताओं को प्रसन्न करने का त्योहार) हैं।
- वे त्यौहारों और विवाह समारोहों के दौरान पर्माकोक (बाइसन सींग नृत्य) नामक एक रंगीन नृत्य करते हैं ।