डोकरा कला | छत्तीसगढ़ | 09 Apr 2025
चर्चा में क्यों?
बैंकॉक की अपनी यात्रा के दौरान, भारत के प्रधानमंत्री ने थाई प्रधानमंत्री श्रेष्ठा थाविसिन और उनकी पत्नी को पारंपरिक भारतीय हस्तशिल्प भेंट किया।
- उपहारों में एक डोकरा पीतल की मयूर नाव थी जिस पर एक आदिवासी सवार बना हुआ था, जो छत्तीसगढ़ की आदिवासी धातु कलाकृति का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जो भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और शिल्प कौशल को दर्शाता है।
मुख्य बिंदु
- डोकरा कला के बारे में:
- यह प्राचीन बेल मेटल शिल्प का एक रूप है, जिसका उपयोग झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और तेलंगाना जैसे राज्यों में रहने वाले ओझा धातु कारीगरों द्वारा किया जाता है ।
- इस कारीगर समुदाय की शैली और कारीगरी विभिन्न राज्यों में भिन्न होती है।
- सदियों पुरानी खोई हुई मोम की ढलाई पद्धति का उपयोग करके तैयार की गई यह मूर्ति छत्तीसगढ़ की जटिल आदिवासी कलात्मकता को दर्शाती है। हर टुकड़ा अद्वितीय है और सावधानीपूर्वक हस्तनिर्मित है।
- मोहनजोदड़ो (हड़प्पा सभ्यता) की नृत्यांगना अब तक ज्ञात सबसे प्रारंभिक डोकरा कलाकृतियों में से एक है।
- प्रतीकात्मकता और सौंदर्यात्मक आकर्षण:
- जटिल डिज़ाइन और ज्वलंत लाख की नक्काशी से सुसज्जित मोर के आकार की यह नाव सुंदरता, रचनात्मकता और सांस्कृतिक गहराई का प्रतीक है।
- नाव को धीरे-धीरे चलाते हुए जनजातीय आकृति मानव-प्रकृति सामंजस्य का सार प्रस्तुत करती है - जो डोकरा कला का एक केंद्रीय रूपांकन है।
- पीतल से निर्मित यह मूर्ति समय के साथ स्वाभाविक रूप से समृद्ध पट्टिका (पेटिना) प्राप्त कर लेती है, जिससे इसका प्राचीन आकर्षण और ऐतिहासिक आकर्षण बढ़ जाता है।
- यह मात्र एक सजावटी वस्तु नहीं है, बल्कि यह भारत की जनजातीय विरासत का सम्मान करती है तथा सादगी, कलात्मक अभिव्यक्ति और प्रकृति के साथ गहन संबंध का मिश्रण दर्शाती है।
- सोना चढ़ाया बाघ आकृति कफ़लिंक:
- भारत के प्रधानमंत्री ने थाई प्रधानमंत्री की पत्नी को सोने की परत चढ़ी एक जोड़ी कफ़लिंक भेंट की, जिस पर मोतियों से सुसज्जित एक जटिल बाघ आकृति बनी हुई थी।
- बाघ का आकर्षक चेहरा शक्ति, अधिकार और शाही आकर्षण का प्रतीक है।
- राजस्थान और गुजरात का एक पारंपरिक मीनाकारी शिल्प डिज़ाइन में जीवंत रंग और कलात्मकता जोड़ता है।
बिम्सटेक शिखर सम्मेलन में भारत की सक्रिय भूमिका:
- भारत के प्रधानमंत्री ने बैंकॉक में आयोजित बिम्सटेक शिखर सम्मेलन में भाग लिया , जहाँ उन्होंने बिम्सटेक बैंकॉक विज़न 2030 और बिम्सटेक समुद्री परिवहन समझौते को अपनाने की सराहना की।
- उन्होंने क्षेत्रीय संपर्क, व्यापार, तकनीकी नवाचार और बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में आपदा प्रबंधन जैसे प्रमुख क्षेत्रों में सहयोग को गहरा करने के लिये भारत की मज़बूत प्रतिबद्धता दोहराई।

भारत रत्न पंडित रविशंकर जयंती | उत्तर प्रदेश | 09 Apr 2025
चर्चा में क्यों?
7 अप्रैल, 2025 को सितार वादक और संगीतकार पंडित रविशंकर की 103वीं जयंती मनाई गई।
मुख्य बिंदु
- पंडित रविशंकर के बारे में:
- पंडित रविशंकर, जिनका जन्म 7 अप्रैल, 1920 को वाराणसी में हुआ था, भारतीय शास्त्रीय संगीत के महान सितारवादक और संगीतकार थे।
- उनका मूल नाम रवींद्र शंकर चौधरी था और वे अपने पिता श्याम शंकर चौधरी और माता हेमांगिनी देवी के सातवें पुत्र थे।
- 18 साल की उम्र में उन्होंने सितार सीखना शुरू किया और इसके लिये मैहर के उस्ताद अलाउद्दीन खान से दीक्षा ली।
- उन्होंने 25 वर्ष की आयु में प्रसिद्ध गीत "सारे जहाँ से अच्छा" की पुनः रचना की।
- उन्होंने वर्ष 1949 से 1956 तक नई दिल्ली में ऑल इंडिया रेडियो के संगीत निदेशक के रूप में कार्य किया।
- इसके बाद, 1960 के दशक में वायलिन वादक येहुदी मेनुहिन और जॉर्ज हैरीसन के साथ भारतीय शास्त्रीय संगीत की शिक्षा दी और प्रस्तुतियाँ दीं, जिससे इसे पश्चिमी दुनिया में लोकप्रिय बनाने में मदद मिली।
- पंडित रवि शंकर ने भारतीय शास्त्रीय संगीत को पश्चिमी दुनिया से परिचित कराया।
- वीटल्स के जॉर्ज हैरीसन ने उन्हें 'विश्व संगीत का गॉडफादर' बताया।
- वर्ष 1986 से 1992 तक वह राज्यसभा के मनोनीत सदस्य भी रहे।
- 11 दिसंबर, 2012 को 92 वर्ष की आयु में उनका निधन गया।
- सम्मान और पुरस्कार
- यूनेस्को सद्भावना राजदूत (1999): सांस्कृतिक योगदान के लिये नियुक्त।
- पद्म भूषण (1967): भारत का तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान।
- पद्म विभूषण (1981): असाधारण सेवा के लिये दूसरा सबसे बड़ा नागरिक पुरस्कार।
- कालिदास सम्मान (1986): भारतीय शास्त्रीय संगीत में उत्कृष्टता के लिये मध्य प्रदेश का प्रमुख पुरस्कार।
- संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (1987): भारत में संगीत के क्षेत्र में श्रेष्ठता का प्रतीक।
- ग्रैमी पुरस्कार (चार बार): 2013 में मरणोपरांत लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार सहित, विभिन्न श्रेणियों में सम्मानित।
- उन्हें वर्ष 1999 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया। इसके अतिरिक्त उन्हे अनेक सम्मान और पुरस्कार मिले, जिनमें शामिल हैं:
भारतीय शास्त्रीय संगीत
- परिचयः
- शास्त्रीय भारतीय संगीत, संगीत का एक जटिल और प्राचीन रूप है जिसकी जड़ें हिंदू धर्म के सबसे प्राचीन ग्रंथ वेदों में निहित हैं, जो लगभग 1500 ईसा पूर्व के हैं।
- इसे दो मुख्य परंपराओं में विभाजित किया गया है: हिंदुस्तानी संगीत, (जो उत्तर भारत में प्रचलित है) और कर्नाटक संगीत (जो दक्षिण भारत में लोकप्रिय) है।
- ऐतिहासिक पृष्ठभूमिः
- भारतीय शास्त्रीय संगीत की उत्पत्ति सामवेद जैसे प्राचीन ग्रंथों से हुई है, जो इसकी गहन ऐतिहासिक पृष्ठभूमि एवं भारतीय परंपराओं से संबंध को प्रदर्शित करता है।
- महत्त्व
- शास्त्रीय संगीत में गुरु-शिष्य परंपरा (शिक्षक-शिष्य परंपरा) की प्रमाणिकता को संरक्षित करते हुए एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक ज्ञान एवं कौशल का हस्तांतरण सुनिश्चित हुआ है।
- शास्त्रीय संगीत में नियमों तथा परंपराओं (जैसे कि राग प्रणाली, जो पीढ़ियों से चली आ रही है) का पालन किया गया है, जिससे भारत की संगीत विरासत का संरक्षण सुनिश्चित हुआ है।
- शास्त्रीय संगीत एक सामान्य सांस्कृतिक सूत्र के रूप में कार्य करते हुए विविध पृष्ठभूमि के लोगों को एकजुट करने में भूमिका निभाता है।
- इसकी क्षेत्रीय, भाषायी एवं धार्मिक बाधाओं को कम करने के माध्यम से राष्ट्रीय एकता की भावना को बढ़ावा देने में भूमिका है।
- शास्त्रीय संगीत में विभिन्न क्षेत्रीय शैलियों एवं वाद्ययंत्रों का समायोजन शामिल है, जो भारत की सांस्कृतिक विविधता का परिचायक है। इस समावेशिता से विभिन्न समुदायों के बीच सद्भाव तथा समन्वय को बढ़ावा मिलता है।
उत्तर प्रदेश अग्निशमन विभाग गोवा सरकार से सम्मानित | उत्तर प्रदेश | 09 Apr 2025
चर्चा में क्यों?
1 अप्रैल, 2025 को गोवा सरकार ने उत्तर प्रदेश अग्निशमन विभाग को सम्मानित किया।
मुख्य बिंदु
- मुद्दे के बारे में:
- यह सम्मान समारोह गोवा के अग्निशमन और आपातकालीन सेवा निदेशालय द्वारा प्रदान किया गया।
- गोवा की राजधानी पणजी में इस सम्मान समारोह का आयोजन हुआ।
- यह सम्मान महाकुंभ 2025, प्रयागराज में उत्कृष्ट अग्निशमन और आपदा प्रबंधन सेवाओं के लिये दिया गया।
- अग्निशमन विभाग की उपलब्धियाँ:
- 45 दिनों में 185 आग की घटनाओं को नियंत्रित किया, जिनमें से 24 बड़ी आग की घटनाएँ थीं।
- इसके अलावा, लगभग 86 छोटी आग की घटनाओं पर तुरंत काबू पा लिया गया।
- लगभग 16.5 करोड़ रुपए के संभावित नुकसान को बचाया गया।
कुंभ मेले के बारे में:
- वर्ष 2025 में महाकुंभ मेला प्रयागराज में 13 जनवरी से 26 फरवरी 2025 तक आयोजित किया गया, जिसमें 66.30 करोड़ से अधिक श्रद्धालु आए।
- 'कुंभ' शब्द की उत्पत्ति 'कुंभक' (अमरता के अमृत का पवित्र घड़ा) धातु से हुई है।
- पुष्यभूति वंश के राजा हर्षवर्द्धन ने प्रयागराज में कुंभ मेले का आयोजन प्रारंभ किया।
- यह तीर्थयात्रियों का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण समागम है जिसके दौरान प्रतिभागी पवित्र नदी में स्नान या डुबकी लगाते हैं। यह समागम 4 अलग-अलग जगहों पर होता है, अर्थात्:
- हरिद्वार में गंगा के तट पर।
- उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर।
- नासिक में गोदावरी (दक्षिण गंगा) के तट पर।
- प्रयागराज में गंगा, यमुना और पौराणिक अदृश्य सरस्वती के संगम पर
बिहार में खेलो इंडिया गेम्स | बिहार | 09 Apr 2025
चर्चा में क्यों?
खेलो इंडिया यूथ गेम्स (KIYG) का सातवाँ संस्करण 4 मई से 15 मई, 2025 तक बिहार के पाँच शहरों- पटना, राजगीर, गया, भागलपुर और बेगूसराय में आयोजित किया जाएगा।
मुख्य बिंदु
- गेम्स के बारे में
- KIYG भारत में स्कूल और कॉलेज के छात्रों के लिये एक राष्ट्रीय स्तर की बहु-विषयक खेल प्रतियोगिता है।
- प्रधानमंत्री ने वर्ष 2018 में नई दिल्ली के इंदिरा गांधी एरिना में खेलो इंडिया स्कूल गेम्स के पहले संस्करण की शुरुआत की।
- वर्ष 2019 में इनका नाम बदलकर खेलो इंडिया यूथ गेम्स कर दिया गया I
- ये भारत सरकार की खेलो इंडिया पहल का हिस्सा हैं।
- इसका उद्देश्य खेल संस्कृति को बढ़ावा देना और ज़मीनी स्तर पर खेल प्रतिभाओं को पहचान दिलाना है।
- ये गेम्स दो श्रेणियों में आयोजित किये जाते हैं:
- 17 वर्ष से कम उम्र के स्कूली छात्र
- 21 वर्ष से कम उम्र के कॉलेज के छात्र।
- खेलो इंडिया यूथ गेम्स का छठा संस्करण 19 से 31 जनवरी, 2024 तक तमिलनाडु के चार शहरों: चेन्नई, त्रिची, मदुरै और कोयंबटूर में आयोजित किया गया।
- खेलो इंडिया ऐप
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वर्ष 2019 में प्रधानमंत्री ने खेल और फिटनेस को बढ़ावा देने के लिये खेलो इंडिया ऐप लॉन्च किया था।
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यह ऐप लोगों को खेल आयोजनों के बारे में अपडेट रहने में मदद करता है और स्वस्थ जीवन शैली को बढ़ावा देता है।

शाहबाद जंगल बचाओ आंदोलन | राजस्थान | 09 Apr 2025
चर्चा में क्यों?
राजस्थान के शाहबाद जंगल में पंप स्टोरेज परियोजना के लिये पेड़ों को काटे जाने की योजना के खिलाफ कार्यकर्त्ताओं द्वारा विरोध प्रदर्शन किया जा रहा हैI
मुख्य बिंदु
- परियोजना के बारे में
- शाहपुर पंप स्टोरेज परियोजना एक ऑफ-स्ट्रीम क्लोज्ड लूप पंप स्टोरेज परियोजना है। इसके तहत दो जलाशयों का निर्माण किया जाएगा। वहीं प्रस्तावित निचले जलाशय को भरने के लिये पास की कुनो नदी से पानी पंप किया जाएगा।
- पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने हैदराबाद स्थित कंपनी ग्रीनको एनर्जीज प्राइवेट लिमिटेड को बारां ज़िले की शाहाबाद तहसील में शाहपुर पंप स्टोरेज परियोजना स्थापित करने की मंजूरी दी है।
- यह परियोजना कलौनी, बैंत और मुंगावली गाँवों में 624.17 हेक्टेयर भूमि को कवर करती है। इसमें से 408 हेक्टेयर क्षेत्र में जंगल हैं।
- यह परियोजना क्षेत्र शाहाबाद संरक्षण रिजर्व के अंतर्गत आता है, जोकि वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम (WPAA) 2022 की अनुसूची-I के तहत संरक्षित वन्यजीव प्रजातियों का घर है।
- विरोध का कारण
- इस परियोजना के तहत 4 लाख से ज्यादा पेड़ काटे जाने की योजना है, जिससे जंगल नष्ट हो जाएंगे।
- इतने बड़े पैमाने पर पेड़ काटने से जलवायु पर प्रतिकूल असर पड़ेगा और इस क्षेत्र द्वारा हर साल सोखी जा रही 22.5 लाख मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण भी रुक जाएगा।
- इससे स्थानीय पारिस्थितिकी पर गहरा असर पड़ेगा। साथ ही, इस परियोजना के कारण स्थानीय निवासियों की जीविका भी संकट में पड़ सकती है।
- पर्यावरणविदों का कहना है कि इससे वन्यजीवों, वनस्पतियों और दुर्लभ औषधीय जड़ी-बूटियों को गंभीर नुकसान हो सकता है।
- साथ ही पेड़ों के काटे जाने से मिट्टी का भी कटाव होगा और साथ ही पर्यावरण से जुड़े महत्त्वपूर्ण लाभ भी अवरुद्ध हो सकते हैं।
- इस जल विद्युत परियोजना से कुनो चीता योजना के तहत नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से लाए गए चीतों की आवाजाही और कल्याण पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
- शाहबाद जंगल
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शाहबाद जंगल जैवविविधता से भरपूर है और यह संरक्षित वन्यजीव प्रजातियों का घर है।
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यह जंगल राजस्थान के बारां में हैं, जो मध्य प्रदेश के कुनो नेशनल पार्क में चीतों के लिये निर्धारित आवास के बेहद नज़दीक हैं।
- शाहाबाद का वन क्षेत्र माधव राष्ट्रीय उद्यान और चीता कॉरिडोर के बीच स्थित है, जो प्रस्तावित परियोजना से बाधित होगा।
कूनो नदी
- कूनो नदी कूनो राष्ट्रीय उद्यान के मध्य से होकर बहती है और यह मध्य प्रदेश में दक्षिण से उत्तर की ओर प्रवाहित होती है।
- यह नदी विंध्यपर्वत शृंखला से उत्पन्न होकर मध्य प्रदेश के गुना, शिवपुरी, श्योपुर और मुरैना जैसे विभिन्न ज़िलों से होकर गुजरती है।
- कूनो नदी का क्षेत्र भारत की प्रसिद्ध चीता परियोजना का भी हिस्सा है, जो कूनो राष्ट्रीय उद्यान में स्थित है।
- यह नदी क्षेत्रीय जैवविविधता का समर्थन करती है और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
कूनो राष्ट्रीय उद्यान (NP):
- कूनो राष्ट्रीय उद्यान (NP) (श्योपुर, मध्य प्रदेश) को वर्ष 1981 में एक वन्यजीव अभयारण्य के रूप में स्थापित किया गया था और वर्ष 2018 में इसे राष्ट्रीय उद्यान में अपग्रेड किया गया।
- भूगोल: इसमें मुख्य रूप से शुष्क पर्णपाती वन हैं और चंबल की एक प्रमुख सहायक नदी कुनो नदी उद्यान से होकर बहती है।
- जीव-जंतु: तेंदुआ, धारीदार लकड़बग्घा, भारतीय भेड़िया, कृष्णमृग, सांभर हिरण, घड़ियाल (कुनो नदी)।
- वनस्पति: प्राथमिक वृक्ष प्रजातियाँ करधई, खैर और सलाई हैं।
लोक नर्तक राम सहाय पांडे | मध्य प्रदेश | 09 Apr 2025
चर्चा में क्यों?
8 अप्रैल, 2025 को पद्मश्री से सम्मानित लोक नृत्य कलाकार राम सहाय पांडे का मध्य प्रदेश के सागर ज़िले में निधन हो गया।
मुख्य बिंदु
- राम सहाय पांडे के बारे में:
- उनका जन्म 11 मार्च 1933 को सागर ज़िले के मड़धार पठा गाँव में हुआ था।
- वे एक कृषक ब्राह्मण परिवार से थे और चार भाई-बहनों में सबसे छोटे थे।
- उन्होंने राई नृत्य को सम्मानित कला के रूप में स्थापित किया। उन्होंने राई नृत्य को 24 देशों में पहचान दिलाई और बुंदेलखंडी लोक नृत्य नाट्य कला परिषद की स्थापना की।
- वर्ष 2022 में उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया।
- इसके अलावा, वर्ष 1980 में उन्हें 'नृत्य शिरोमणि' की उपाधि से नवाजा गया।
राई नृत्य

- राई नृत्य बुंदेलखंड का सबसे प्रसिद्ध नृत्य है।
- यह नृत्य विशेष रूप से विवाह और जन्म उत्सव जैसे विशेष अवसरों पर किया जाता है।
- इसमें पुरुष और महिलाएँ दोनों नाचते हैं। राई नृत्य करने वाली महिलाओं को बेड़नियाँ और पुरुषों को मृदंगधारी कहते हैं।
- महिलाएँ पैरों में घुंघरू बाँधकर और सज-धज कर मृदंग की थाप पर नाचती हैं। इस दौरान पुरुष और महिलाएँ देशी स्वांग भी गाते हैं।
- राई नृत्य न केवल सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखता है, बल्कि इसमें छिपी लोक कला और परंपराओं को भी प्रकट करता है, जो बुंदेलखंड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की प्रतीक हैं।
- मध्य प्रदेश में बेदिया जनजाति इस लोक नृत्य को करती है।
- वैश्य समुदाय में बच्चे के जन्म के अवसर पर यह अहीर जनजाति की महिलाओं द्वारा भी किया जाता है।