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भारतीय इतिहास

महाकुंभ मेला 2025

  • 15 Nov 2024
  • 14 min read

प्रिलिम्स के लिये:

गोदावरी नदी, शिप्रा नदी, अर्द्ध-कुंभ, विजयनगर साम्राज्य, दिल्ली सल्तनत और मुगल, यूनेस्को, अमूर्त सांस्कृतिक विरासत

मेन्स के लिये:

कुंभ का महत्त्व, ऐतिहासिक विकास।

स्रोत: पी.आई.बी

चर्चा में क्यों?

वर्ष 2025 में महाकुंभ मेला प्रयागराज में 13 जनवरी से 26 फरवरी 2025 तक आयोजित किया जाएगा जिसमें आध्यात्मिक शुद्धि, सांस्कृतिक उत्सव एवं एकता के प्रतीक के रूप में लाखों तीर्थयात्री आएंगे।

  • 'कुंभ' शब्द की उत्पत्ति 'कुंभक' (अमरता के अमृत का पवित्र घड़ा) धातु से हुई है।

कुंभ मेले के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?

परिचय: 

  • यह तीर्थयात्रियों का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण समागम है जिसके दौरान प्रतिभागी पवित्र नदी में स्नान या डुबकी लगाते हैं। यह समागम 4 अलग-अलग जगहों पर होता है, अर्थात्:
    • हरिद्वार में गंगा के तट पर।
    • उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर।
    • नासिक में गोदावरी (दक्षिण गंगा) के तट पर।
    • प्रयागराज में गंगा, यमुना और पौराणिक अदृश्य सरस्वती के संगम पर।

कुंभ के विभिन्न प्रकार:

  • कुंभ मेला 12 वर्षों में 4 बार मनाया जाता है।
  • हरिद्वार और इलाहाबाद में अर्द्धकुंभ मेला हर छठे वर्ष आयोजित किया जाता है।
  • महाकुंभ मेला 144 वर्षों (12 'पूर्ण कुंभ मेलों' के बाद) के बाद प्रयाग में मनाया जाता है।
  • प्रयागराज में प्रतिवर्ष माघ (जनवरी-फरवरी) महीने में माघ कुंभ मनाया जाता है।

ऐतिहासिक विकास: 

  • पृष्ठभूमि: आदि शंकराचार्य द्वारा रचित महाकुंभ मेले की उत्पत्ति पुराणों से हुई है जिसमें देवताओं और राक्षसों के बीच अमृत के पवित्र घड़े के लिये संघर्ष का वर्णन है, जिसमें भगवान विष्णु (मोहिनी रूप में) ने घड़े को राक्षसों से बचाया।
  • प्राचीन उत्पत्ति: मौर्य और गुप्त काल (चौथी शताब्दी ईसा पूर्व से छठी शताब्दी ईस्वी) के दौरान कुंभ मेले की शुरुआत भारतीय उपमहाद्वीप के तीर्थयात्रियों के छोटे-छोटे आयोजन के रूप में हुई। 
    • हिंदू धर्म के उदय के साथ इसका महत्त्व बढ़ गया (विशेष रूप से गुप्त जैसे शासकों के अधीन, जिन्होंने इसको और भी महत्त्व दिया)।
  • मध्यकाल में संरक्षण: चोल और विजयनगर साम्राज्यों, दिल्ली सल्तनत और मुगलों जैसे शाही राजवंशों द्वारा इसे समर्थन मिला। 
    • अकबर ने धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देने के क्रम में वर्ष 1565 में नागा साधुओं को मेले में शाही प्रवेश का नेतृत्व करने का सम्मान दिया।
    • पुष्यभूति वंश के राजा हर्षवर्द्धन ने प्रयागराज में कुंभ मेले का आयोजन प्रारंभ किया।
  • औपनिवेशिक काल: कुंभ मेले के महत्त्व और विविधता से प्रभावित होकर ब्रिटिश प्रशासकों ने इस उत्सव का अवलोकन करने के साथ इसका दस्तावेज़ीकरण किया। 
    • 19वीं शताब्दी में जेम्स प्रिंसेप ने इसकी अनुष्ठानिक प्रथाओं और सामाजिक-धार्मिक गतिशीलता का वर्णन किया।
  • स्वतंत्रता के बाद का महत्त्व: कुंभ मेला राष्ट्रीय एकता और भारत की सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है जिसे वर्ष 2017 में यूनेस्को द्वारा इसकी प्राचीन परंपराओं के लिये मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप में मान्यता दी गई।

कुंभ 2019 के 3 गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड:

  • सबसे बड़ी यातायात एवं भीड़ प्रबंधन योजना। 
  • पेंट माई सिटी योजना के तहत सार्वजनिक स्थलों की सबसे बड़ी पेंटिंग प्रक्रिया।
  • सबसे बड़ा स्वच्छता और अपशिष्ट निपटान तंत्र।

कुंभ का महत्त्व:

  • आध्यात्मिक प्रासंगिकता: ऐसा माना जाता है कि त्रिवेणी संगम (गंगा, यमुना, सरस्वती संगम) के पवित्र जल में स्नान करने से पापों से मुक्ति तथा आध्यात्मिक मुक्ति (मोक्ष) की ओर मार्गदर्शन मिलता है।
  • सांस्कृतिक प्रदर्शन: कुंभ मेले में भक्ति कीर्तन, भजन और कथक, भरतनाट्यम और कुचिपुड़ी जैसे पारंपरिक नृत्य आध्यात्मिक एकता तथा दिव्य प्रेम के विषयों पर प्रकाश डालते हैं।  
  • ज्योतिषीय महत्त्व: सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति की स्थिति के आधार पर निर्धारित, यह आयोजन आध्यात्मिक गतिविधियों के लिये अत्यधिक शुभ है।
    • नासिक और उज्जैन में, यह मेला तब आयोजित होता है जब कोई ग्रह सिंह राशि में होता है, तो उसे सिंहस्थ कुंभ कहा जाता है।

अनुष्ठान एवं गतिविधियाँ:

  • शाही स्नान: संत और अखाड़े जुलूस के साथ औपचारिक रूप से स्नान करते है, इसे 'राजयोगी स्नान' के नाम से भी जाना जाता है, यह महाकुंभ मेले की शुरुआत का प्रतीक है।
    • 'अखाड़ा' शब्द की उत्पत्ति 'अखंड' से हुई है, जिसका अर्थ है अविभाज्य। आदि गुरु शंकराचार्य ने 'सनातन' जीवन शैली की रक्षा के लिये तपस्वी संगठनों को एकजुट करने का प्रयास किया।
    • अखाड़े सामाजिक व्यवस्था, एकता, संस्कृति और नैतिकता के प्रतीक हैं, जो आध्यात्मिक तथा नैतिक मूल्यों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। वे सद्गुण, नैतिकता, आत्म-संयम, करुणा एवं धार्मिकता पर ज़ोर देते हैं साथ ही विविधता में एकता के प्रतीक हैं।
    • अखाड़ों को उनके इष्ट देवता के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है।
      • शैव अखाड़े: भगवान शिव की विभिन्न रूपों में पूजा करते हैं।
      • वैष्णव अखाड़े: भगवान विष्णु की विभिन्न रूपों में पूजा करते हैं।
      • उदासीन अखाड़ा: चंद्र देव (प्रथम सिख गुरु, गुरु नानक के पुत्र) द्वारा स्थापित।
  • पेशवाई जुलूस: अखाड़ों के पारंपरिक जुलूस का एक भव्य नजारा, जिसे 'पेशवाई ' के नाम से जाना जाता है, जिसमें हाथी, घोड़े और रथों पर प्रतिभागी शामिल होते हैं।
  • आध्यात्मिक प्रवचन: इस कार्यक्रम में श्रद्धेय संतों और आध्यात्मिक नेताओं द्वारा आध्यात्मिक प्रवचन के साथ-साथ भारतीय संगीत, नृत्य तथा शिल्प का जीवंत संगम भी शामिल होता है।

यूनेस्को (UNESCO) की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची

  • यह प्रतिष्ठित सूची उन अमूर्त विरासत तत्त्वों से बनी है जो सांस्कृतिक विरासत की विविधता को प्रदर्शित करने और इसके महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने में मदद करती है।
  • यह सूची वर्ष 2008 में स्थापित की गई थी जब अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा हेतु अभिसमय लागू हुआ था।

यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त भारत की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत:

अमूर्त सांस्कृतिक विरासत:

  • अमूर्त सांस्कृतिक विरासत वे प्रथाएँ, अभिव्यक्तियाँ, ज्ञान और कौशल हैं जिन्हें समुदाय, समूह तथा कभी-कभी व्यक्ति अपनी सांस्कृतिक विरासत के हिस्से के रूप में पहचानते हैं।
  • इसे जीवित सांस्कृतिक विरासत भी कहा जाता है, इसे आमतौर पर निम्नलिखित रूपों में से एक में व्यक्त किया जाता है:
    • मौखिक परंपराएँ
    • कला प्रदर्शन
    • सामाजिक प्रथाएँ
    • अनुष्ठान और उत्सव कार्यक्रम
    • प्रकृति और ब्रह्मांड से संबंधित ज्ञान और अभ्यास
    • पारंपरिक शिल्प कौशल

क्र.सं.

अमूर्त सांस्कृतिक विरासत 

शिलालेख का वर्ष

1

कुटियाट्टम, संस्कृत रंगमंच

2008

2

वैदिक मंत्रोच्चार की परंपरा

2008

3

रामलीला, रामायण का पारंपरिक प्रदर्शन

2008

4

रम्माण, गढ़वाल हिमालय, भारत का धार्मिक उत्सव और अनुष्ठान रंगमंच

2009

5

छऊ नृत्य

2010

6

राजस्थान के कालबेलिया लोकगीत और नृत्य

2010

7

मुदियेट्टू, केरल का अनुष्ठान रंगमंच और नृत्य नाटक

2010

8

लद्दाख का बौद्ध मंत्रोच्चार: ट्रांस-हिमालयी लद्दाख क्षेत्र में पवित्र बौद्ध ग्रंथों का पाठ

2012

9

मणिपुर का संकीर्तन, अनुष्ठानिक गायन, ढोलवादन और नृत्य

2013

10

पंजाब के जंडियाला गुरु के ठठेरों में पीतल और तांबे के बर्तन बनाने की पारंपरिक कला

2014

11

नवरोज़

2016

12

योग

2016

१३

कुंभ मेला

2017

14

कोलकाता में दुर्गा पूजा

2021

15

गुजरात का गरबा

2023

 

दृष्टि मेन्स प्रश्न

प्रश्न: कुंभ मेला भारत की सांस्कृतिक विविधता और आध्यात्मिक विरासत को किस प्रकार दर्शाता है। चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत के धार्मिक इतिहास के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

  1. स्थाविरवादी महायान बौद्ध धर्म से संबद्ध हैं।  
  2. लोकोत्तरवादी संप्रदाय बौद्ध धर्म के महासंघिक संप्रदाय की एक शाखा थी।  
  3. महासंधिकों द्वारा बुद्ध के देवत्वारोपण ने महायान बौद्ध धर्म को प्रोत्साहित किया। 

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? 

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (B) 


प्रश्न 2. मणिपुरी संकीर्तन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

  1. यह एक गीत और नृत्य प्रदर्शन है।
  2.  केवल करताल (सिमबल) ही वह एक मात्र वाद्ययंत्र है जो इस प्रदर्शन में प्रयुक्त होता है।
  3.  यह भगवान कृष्ण के जीवन और लीलाओं को वर्णित करने के लिये किया जाता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) 1, 2 और 3
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2 और 3
(d) केवल 1

Ans: (b)


प्रश्न 3. भारत की संस्कृति एवं परंपरा के संदर्भ में 'कलारीपयट्टू' क्या है? (2014)

(a) यह शैवमत का एक प्राचीन भक्ति पंथ है जो अभी भी दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में प्रचलित है।
(b) यह काँसे और पीतल के काम की एक प्राचीन शैली का है जो अभी भी कोरोमंडल क्षेत्र के दक्षिणी हिस्से में पाई जाती है।
(c) यह नृत्य-नाटिका का एक प्राचीन रूप है और मालाबार के उत्तरी हिस्से में एक जीवंत परंपरा है।
(d) यह एक प्राचीन मार्शल कला और दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में एक जीवंत परंपरा है। 

Ans: (d)

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