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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

स्पेस एंड बियॉन्ड: ISRO का उदय

  • 28 Aug 2024
  • 23 min read

प्रिलिम्स के लिये: राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस, विक्रम लैंडर, आदित्य-L 1, पृथ्वी-सूर्य लैग्रेंज बिंदु, L 1, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO), X-रे पोलरिमीटर सैटेलाइट (XPoSat), NASA का इमेजिंग एक्स-रे पोलारिमेट्री एक्सप्लोरर (IPEX), फ्लाइट टेस्ट व्हीकल एबॉर्ट मिशन -1 (TV-D1), गगनयान, पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यान, पुष्पक, लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (SSLV), अग्निकुल कॉसमॉस, विक्रम 1 प्रक्षेपण यान, PSLV-C58, लो अर्थ ऑर्बिट (LEO), गगनयात्री, अगली पीढ़ी का प्रक्षेपण यान (NGLV), NASA-ISRO SAR (NISAR), सीड-स्टेज फंडिंग, ब्रेन ड्रेन, अंतरिक्ष मलबा, ISRO की अंतरिक्ष स्थिति आकलन रिपोर्ट- 2023, बजट 2024-25, भारतीय अंतरिक्ष नीति- 2023, सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP), अनुसंधान और विकास (R&D), अंतरिक्ष पर्यटन उद्योग

मेन्स के लिये: अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में भारत की उपलब्धियों का महत्त्व और अंतरिक्ष क्षेत्र से जुडी चुनौतियाँ।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 23 अगस्त, 2023 को चंद्रमा की सतह पर विक्रम लैंडर की सफल लैंडिंग के उपलक्ष्य में राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस मनाया गया।    

  • वर्ष 2023 में चंद्रयान-3 के प्रक्षेपण के साथ भारत चंद्रमा पर सफलतापूर्वक उतरने वाला चौथा देश बन गया और उसके दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र में पहुँचने वाला पहला देश बन गया।
  • यह दिन भारत की अंतरिक्ष अन्वेषण क्षमताओं पर प्रकाश डालता है। इसका उद्देश्य भावी पीढ़ियों को विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) में कॅरियर बनाने के लिये प्रेरित करना है, जिससे भारत के चल रहे अंतरिक्ष प्रयासों में योगदान मिल सके।

भारत की अंतरिक्ष क्षेत्र में हाल की प्रमुख उपलब्धियाँ क्या हैं?

  • चंद्रयान-3 के हालिया निष्कर्ष: चंद्रयान-3 के लैंडिंग स्थल के आस-पास का क्षेत्र काफी हद तक एक समान है। चंद्रमा की सतह के नीचे कभी गर्म, पिघली हुई चट्टान या मैग्मा का एक समुद्र मौजूद था।  
    • चंद्रमा की भूपर्पटी अनेक परतों से बनी है, जो चंद्र मैग्मा महासागर (LMO) परिकल्पना का समर्थन करती है। 
    • इसके अतिरिक्त चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के आस-पास की ऊपरी मृदा में अपेक्षा से कहीं ज़्यादा खनिज मौजूद हैं, जो चंद्र भूपर्पटी की निचली परतों का निर्माण करते हैं।
  • आदित्य-L1 मिशन: सितंबर, 2023 में प्रक्षेपित किया गया आदित्य-L1, पृथ्वी-सूर्य के प्रथम लैग्रेंज बिंदु, L1 से सूर्य का अध्ययन करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।  
    • जुलाई, 2024 में इसने L1 बिंदु के चारों ओर अपनी प्रथम परिक्रमा पूरी कर ली है तथा सौर तूफानों के अध्ययन में इसने पहले ही महत्त्वपूर्ण योगदान दे दिया है।
  • XPoSat लॉन्च: जनवरी, 2024 को ISRO ने अंतरिक्ष में विकिरण ध्रुवीकरण का अध्ययन करने के उद्देश्य से X-रे पोलरिमीटर सैटेलाइट (XPoSat) लॉन्च किया। 
  • गगनयान TV-D1 परीक्षण: ISRO ने गगनयान मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन के लिये संशोधित L- 40 विकास इंजन का प्रयोग कर अपने फ्लाइट टेस्ट व्हीकल एबॉर्ट मिशन-1 (TV-D1) का संचालन किया।
    • इस परीक्षण ने क्रू एस्केप सिस्टम (CES) क्षमताओं का प्रदर्शन किया, जिसमें परीक्षण वाहन से पृथक् होना, क्रू मॉड्यूल सुरक्षा और बंगाल की खाड़ी में स्पलैशडाउन से पूर्व अवत्‍वरण शामिल है। 
  • RLV-TD प्रयोग: ISRO ने मार्च और जून 2024 में पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यान पुष्पक के डाउनस्केल्ड संस्करण का उपयोग करके दो लैंडिंग प्रयोग किये। 
    • इन परीक्षणों में अंतरिक्ष लैंडिंग स्थितियों का अनुसरण किया गया, जिसमें लैंडिंग प्रदर्शन का आकलन करने के लिये पुष्पक को चिनूक हेलीकॉप्टर से उतारा गया।
  • SSLV विकास: अगस्त, 2024 में ISRO ने लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (SSLV) की तीसरी और अंतिम विकास उड़ान का संचालन किया, जिसमें EOS-08 तथा SR-0 डेमोसैट उपग्रहों को सफलतापूर्वक कक्षा में प्रक्षेपित किया गया। 
    • लगातार दो सफल परीक्षण उड़ानों के साथ ISRO ने SSLV विकास को पूरा किया और इसका औद्योगिक क्षेत्र में स्थानांतरण किया।
  • मंगल ऑर्बिटर मिशन (MOM): भारत का पहला अंतरग्रहीय मिशन मंगल ऑर्बिटर मिशन (MOM), वर्ष 2013 में PSLV-C25 द्वारा प्रक्षेपित किया गया था।
    • ISRO मंगल की कक्षा में सफलतापूर्वक अंतरिक्ष यान स्थापित करने वाली चौथी अंतरिक्ष एजेंसी बन गई।
    • MOM का उद्देश्य मंगल की यात्रा और कक्षा में प्रवेश के दौरान स्वायत्त संचालन के लिये उन्नत तकनीक का प्रदर्शन करना है साथ ही यह अपने पाँच वैज्ञानिक पेलोड के साथ मंगल की सतह की विशेषताओं, खनिज विज्ञान तथा वायुमंडल का अध्ययन करना है।
  • निजी अंतरिक्ष मिशन: मार्च, 2024 में अग्निकुल कॉसमॉस ने अपने SoRTeD-01 वाहन का पहला प्रक्षेपण किया, जो भारत भूमि पर अपने पहले चरण में सेमी-क्रायोजेनिक इंजन द्वारा संचालित किया गया था।
    • स्काईरूट एयरोस्पेस अपने विक्रम 1 प्रक्षेपण यान की ओर बढ़ रहा है। 
    • ध्रुव स्पेस और बेलाट्रिक्स एयरोस्पेस ने जनवरी, 2024 में PSLV-C58 मिशन के चौथे चरण पर प्रयोग किये तथा इसे अपने पेलोड के लिये परिक्रमा मंच के रूप में इस्तेमाल किया।

ISRO के आगामी अंतरिक्ष मिशन क्या हैं?

  • चंद्रयान-4: भारत का चंद्रयान-4 मिशन, जो वर्ष 2027 के लिये निर्धारित है, एक सैंपल रेटर्न मिशन होगा, जिसे चंद्रमा से शैल और मृदा के नमूने पृथ्वी पर लाने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
    • इस अंतरिक्ष यान में पाँच मॉड्यूल होंगे, जबकि चंद्रयान-3 के तीन मॉड्यूल में एक प्रणोदन मॉड्यूल, एक लैंडर और एक रोवर शामिल थे। 
    • मिशन में कई चरण होंगे, चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश करने के बाद दो मॉड्यूल अलग हो जाएँगे और नमूने एकत्र करने के लिये चंद्रमा पर उतरेंगे। 
    • फिर एक मॉड्यूल नमूनों के साथ चंद्रमा की कक्षा में मुख्य अंतरिक्ष यान में वापस आ जाएगा। इन नमूनों को एक अलग अर्थ री-एंट्री व्हीकल में स्थानांतरित किया जाएगा, जो उन्हें वापस पृथ्वी पर लाएगा।
  • गगनयान मिशन: गगनयान परियोजना में 3 सदस्यों के दल को 3 दिनों के लिये 400 किलोमीटर [पृथ्वी की निम्न कक्षा (LEO)] की कक्षा में प्रक्षेपित करके मानव अंतरिक्ष उड़ान क्षमता का प्रदर्शन करने की परिकल्पना की गई है।
    • ISRO अपने अंतरिक्ष यात्री-उम्मीदवारों, जिन्हें गगनयात्री के रूप में जाना जाता है, को अंतरिक्ष उड़ान के लिये प्रशिक्षित करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। 
    • ISRO चालक दल की उड़ान से पहले कम से कम चार और अबॉर्ट टेस्ट करेगा, जिसमें वर्ष 2024 के अंत में पहला मानव रहित गगनयान मिशन अपेक्षित है। इसके अतिरिक्त ISRO की योजना वर्ष 2035 तक एक अंतरिक्ष स्टेशन, भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) स्थापित करने की है।
  • नेक्स्ट जेनरेशन लॉन्च व्हीकल: BAS और एक व्यापक चंद्र कार्यक्रम का समर्थन करने के लिये ISRO एक नया प्रक्षेपण यान नेक्स्ट जेनरेशन लॉन्च व्हीकल (NGLV) विकसित कर रहा है, जिसे वर्तमान PSLV या GSLV रॉकेट की तुलना में भारी पेलोड के प्रबंधन के लिये डिज़ाइन किया गया है।
  • निसार (NISAR): NASA-ISRO SAR (NISAR) एक लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) वेधशाला है, जिसे NASA और ISRO द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया जा रहा है। 
    • यह 12 दिनों में पूरे विश्व का मानचित्रण करेगा, जिसके तहत यह पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र, बर्फ द्रव्यमान, वनस्पति बायोमास, समुद्र के स्तर में वृद्धि, भूजल इत्यादि के अतिरिक्त प्राकृतिक जोखिम जैसे: भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखी तथा भू-स्खलन की आवृत्ति में होने वाले परिवर्तन को समझने के लिये स्थानिक व सामयिक रूप से सुसंगत डेटा प्रदान करेगा।

भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • सीमित बजट: भारत का अंतरिक्ष बजट प्रमुख अंतरिक्ष-यात्रा करने वाले अन्य देशों की तुलना में काफी कम है। 
    • 2023-24 में ISRO का बजट लगभग 1.7 बिलियन अमरीकी डॉलर था, जो NASA के 25.3 बिलियन अमरीकी डॉलर के बजट से काफी कम था।
    • अल्प वित्तपोषण के कारण शुरू की जा सकने वाली परियोजनाओं का दायरा और पैमाना सीमित हो जाता है।
  • प्रौद्योगिकी अंतर: भारत ने उल्लेखनीय प्रगति की है, किंतु मानव अंतरिक्ष उड़ान, पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यान और गहन अंतरिक्ष अन्वेषण जैसे कुछ उन्नत क्षेत्रों में अभी भी प्रौद्योगिकी अंतर है।
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी: निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिये हाल ही में नीतिगत बदलावों के बावजूद, भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में अभी भी सरकार का वर्चस्व है।
    • हाल के वर्षों में स्टार्ट-अप फंडिंग में वृद्धि हुई है, लेकिन प्रारंभिक चरण और सीड-स्टेज फंडिंग में वृद्धि के बावजूद, भारतीय अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी स्टार्टअप में निजी क्षेत्र की भागीदारी के लिये उभरते पारिस्थितिकी तंत्र में अभी तक कोई दीर्घकालिक निवेश नहीं देखा गया है।
    • इसके अलावा इस क्षेत्र में अभी तक यूनिकॉर्न का उदय नहीं हुआ है।
  • वाणिज्यिक व्यवहार्यता: सरकारी अनुबंधों से परे वाणिज्यिक रूप से व्यवहार्य अंतरिक्ष उद्योग विकसित करना एक चुनौती बनी हुई है।
    • वर्ष 2023 में वैश्विक वाणिज्यिक अंतरिक्ष बाज़ार का मूल्य लगभग 630 बिलियन अमरीकी डॉलर था (मैककिंसे एंड कंपनी के अनुसार), लेकिन भारत की हिस्सेदारी लगभग 2-3% है।
  • अविकसित घरेलू आपूर्ति शृंखला: भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र को आवश्यक घटकों और सामग्रियों के लिये अविकसित घरेलू आपूर्ति शृंखला के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे आयात पर काफी भारी निर्भरता होती है। 
    • वित्त वर्ष 2021-22 में आयात 2,114 करोड़ रुपए था, जबकि निर्यात केवल 174.9 करोड़ रुपए था। आयात पर निर्भरता से लागत बढ़ती है तथा कार्यक्रम की अनुसूची और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न होता है।
  • बुनियादी ढाँचा और विनिर्माण: भारत में कुछ महत्त्वपूर्ण अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों तथा घटकों के लिये उन्नत विनिर्माण क्षमताओं का अभाव है। 
    • उदाहरण हेतु भारत अभी भी अपने उपग्रहों के लिये कई उच्च-स्तरीय सेंसर और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का आयात करता है। 
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:हालाँकि भारत का कई देशों के साथ सहयोग है फिर भी यह अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन जैसी प्रमुख परियोजनाओं का हिस्सा नहीं है। 
    • भू-राजनीतिक विचार कभी-कभी भारत की कुछ प्रौद्योगिकियों और साझेदारियों तक पहुँच को सीमित कर देते हैं। 
  • अंतरिक्ष मलबे का प्रबंधन: जैसे-जैसे भारत अपनी अंतरिक्ष गतिविधियों को बढ़ाता है, अंतरिक्ष मलबे का प्रबंधन महत्त्वपूर्ण होता जाता है।
    • इसरो की अंतरिक्ष स्थिति आकलन रिपोर्ट 2023 के अनुसार, भारतीय प्रक्षेपणों से 82 रॉकेट निकायों को वर्ष 2023 तक कक्षा में रखा गया था। 
    • PSLV -C3 का ऊपरी चरण वर्ष 2001 में दुर्घटनावश 371 भागों में  टूट गया। 52 PSLV-C3 मलबे वर्ष 2023 के अंत तक कक्षा में थे। 
  • नियामक ढाँचा: निजी अंतरिक्ष गतिविधियों के लिये नियामक वातावरण अभी भी विकसित हो रहा है।
    • भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe) की स्थापना वर्ष 2020 में निजी क्षेत्र की अंतरिक्ष गतिविधियों को विनियमित करने हेतु की गई थी, लेकिन इसकी रूपरेखा को अभी भी परिष्कृत किया जा रहा है।
  • कादमिक-उद्योग-सरकारी सहयोग की कमी: अंतरिक्ष क्षेत्र में अकादमिक संस्थानों, उद्योग और सरकारी एजेंसियों के बीच सहयोग फिलहाल अपर्याप्त है।
    •  थॉमसन रॉयटर्स की एक रिपोर्ट बताती है कि केवल 0.4% पेटेंट ही उद्योग और अकादमिक जगत के बीच सहयोग का परिणाम हैं। 
    • शोध संस्थानों से उद्योग को प्रौद्योगिकी हस्तांतरित करने हेतु एक संरचित ढाँचे की अनुपस्थिति नवाचार में बाधा डालती है। हालाँकि विश्वविद्यालयों के साथ इसरो की चर्चा में सुधार हो रहा है, लेकिन इनका दायरा और पैमाना दोनों ही सीमित हैं।

आगे की राह 

  • बजट आवंटन में वृद्धि:
    • बजट में वृद्धि से उन्नत अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के अधिक व्यापक अनुसंधान, विकास और कार्यान्वयन की अनुमति मिलेगी।
    • बजट वर्ष 2024-25 में अंतरिक्ष विभाग को वर्ष 2023-24 में अपने खर्चों की तुलना में 18% की वृद्धि मिली।
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा दें:
    • निजी कंपनियों के लिये एक स्पष्ट नियामक ढाँचा प्रदान करने के लिये भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023 को लागू करना आवश्यक है।
    • अगले 10 वर्षों में अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था को पाँच गुना बढ़ाने के लक्ष्य के साथ बजट 2024-25 में अंतरिक्ष स्टार्ट-अप के लिये उद्यम पूंजी निधि के रूप में 1,000 करोड़ रुपए अर्थात् लगभग 120 मिलियन अमेरिकी डॉलर की राशि की घोषणा की गई थी।
    • अंतरिक्ष परियोजनाओं के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी (Public-Private Partnerships- PPP) को प्रोत्साहित करने से दोनों क्षेत्रों की शक्तियों का लाभ उठाया जा सकता है तथा नवाचार और दक्षता को बढ़ावा मिल सकता है।
  • प्रौद्योगिकी विकास पर ध्यान:
    • महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के लिये अनुसंधान और विकास (Research and Development- R&D) में महत्त्वपूर्ण निवेश आवश्यक है। इसमें प्रक्षेपण लागत को कम करने हेतु पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण वाहनों का विकास, अधिक कुशल अंतरिक्ष यात्रा के लिये प्रणोदन प्रणालियों को उन्नत करना और उपग्रह क्षमताओं को बढ़ाने के लिये अंतरिक्ष-ग्रेड इलेक्ट्रॉनिक्स का निर्माण करना शामिल है।
  • मानव संसाधन विकास:
    • कुशल कार्यबल तैयार करने के लिये विश्वविद्यालयों में अंतरिक्ष शिक्षा कार्यक्रमों को बढ़ावा देना महत्त्वपूर्ण है।
    • अग्रणी वैश्विक अंतरिक्ष एजेंसियों के साथ आदान-प्रदान कार्यक्रम बनाने से ज्ञान साझा करने में सुविधा होगी तथा भारतीय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को अत्याधुनिक कार्य-प्रणालियों से परिचित कराया जा सकेगा।
  • विनिर्माण क्षमताओं में वृद्धि:
    • रणनीतिक साझेदारी के माध्यम से वैश्विक नेताओं द्वारा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को प्रोत्साहित करने से भारत को अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों में अपनी विनिर्माण क्षमताओं को तेज़ी से आगे बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:
    • आर्टेमिस समझौते में भारत की भागीदारी से उन्नत प्रशिक्षण, तकनीकी प्रगति और वैज्ञानिक अवसरों तक पहुँच आसान हो जाएगी।
    • वैश्विक अंतरिक्ष पहलों और मिशनों में सक्रिय भागीदारी से भारत की प्रतिष्ठा बढ़ सकती है तथा सीखने के अवसर मिल सकते हैं। 
  • अंतरिक्ष सेवाओं का व्यावसायीकरण:
    • कृषि, आपदा प्रबंधन और दूरसंचार जैसे क्षेत्रों में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के व्यावसायिक अनुप्रयोगों को विकसित करने तथा बढ़ावा देने से राजस्व के नए स्रोत सृजित हो सकते हैं।
    • अंतरिक्ष पर्यटन उद्योग के विकास को समर्थन देने से भारत इस उभरते बाज़ार में अग्रणी स्थान पर आ सकता है तथा घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों तरह के निवेश को आकर्षित कर सकता है।
  • अंतरिक्ष मलबा प्रबंधन:
    • अंतरिक्ष मलबे को हटाने और उसके शमन के लिये प्रौद्योगिकियों में निवेश करना टिकाऊ अंतरिक्ष परिचालन हेतु महत्त्वपूर्ण है।
    • हाल ही में इसरो ने वर्ष 2030 तक मलबा-मुक्त अंतरिक्ष मिशन संचालित करने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)

इसरो द्वारा प्रक्षेपित मंगलयान

  1. को मंगल ऑर्बिटर मिशन भी कहा जाता है। 
  2. के कारण अमेरिका के बाद मंगल ग्रह की परिक्रमा करने वाला भारत दूसरा देश बना। 
  3. ने भारत को अपने अंतरिक्ष यान को अपने पहले ही प्रयास में मंगल ग्रह की परिक्रमा करने में सफल होने वाला एकमात्र देश बना दिया।

उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?

(a) केवल
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न: अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों पर चर्चा कीजिये। इस प्रौद्योगिकी का प्रयोग भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में किस प्रकार सहायक हुआ है? (2016)

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