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एडिटोरियल

  • 26 Aug, 2024
  • 32 min read
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र

यह एडिटोरियल 23/08/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Since Chandrayaan-3, what has India’s space programme been up to?” लेख पर आधारित है। इसमें पिछले एक वर्ष में अंतरिक्ष अन्वेषण में भारत की उल्लेखनीय प्रगति पर प्रकाश डाला गया है, जिसमें चंद्रयान-3, आदित्य L1 और गगनयान जैसे सफल मिशन शामिल रहे, साथ ही भविष्य के प्रयासों के लिये रणनीतिक रोडमैप और अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी खिलाड़ियों की बढ़ती भूमिका पर भी चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र, चंद्रयान-3, आदित्य एल1 सौर मिशन, गगनयान, एक्सपोसैट (XPoSat), NSAT-3DS, राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस, न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड, भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023, निसार मिशन, अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन, पुष्पक पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यान, मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (MTCR)। 

मेन्स के लिये:

भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में वर्तमान प्रमुख घटनाक्रम, भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र से संबंधित प्रमुख मुद्दे।

पिछले एक वर्ष में भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र ने उल्लेखनीय वृद्धि और उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं, जो नवाचार और अन्वेषण के एक नए युग की शुरुआत को चिह्नित करता है। चंद्रयान-3 की सफल मून लैंडिंग से लेकर आदित्य L1 सौर मिशन के प्रक्षेपण तक, ISRO ने वैश्विक मंच पर अपनी बढ़ती क्षमताओं का प्रदर्शन किया है। संगठन ने अपने गगनयान मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम में भी प्रगति की है, पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण वाहनों के लिये महत्त्वपूर्ण परीक्षण किये हैं और एक्सपोसैट (XPoSat) एवं NSAT-3DS जैसे मिशनों के साथ अपने उपग्रह पोर्टफोलियो का विस्तार किया है। इसके अलावा, देश ने चंद्र अन्वेषण और मानव अंतरिक्ष उड़ान के लिये महत्त्वाकांक्षी रोडमैप तैयार किये हैं, जिसमें वर्ष 2035 तक एक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की योजना भी शामिल है।

भारत ने इन महत्त्वपूर्ण मील के पत्थरों को चिह्नित करते हुए 23 अगस्त को राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस (National Space Day) मनाया, जो अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में देश की बढ़ती शक्ति की पुष्टि है। हालाँकि, इन प्रभावशाली उपलब्धियों के बावजूद, भारत को अंतरिक्ष क्षेत्र में अपनी क्षमता का पूर्ण उपयोग करने के लिये और भी अधिक लगन से काम करने की आवश्यकता है। जबकि ISRO ने अनुसंधान एवं विकास में प्रगति की है, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के वाणिज्यीकरण में तेज़ी लाने और एक सुदृढ़ निजी अंतरिक्ष उद्योग को बढ़ावा देने की तत्काल आवश्यकता है। न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) को परिचालन ज़िम्मेदारियों का हस्तांतरण और अग्निकुल कॉसमॉस (Agnikul Cosmos) एवं स्काईरूट एयरोस्पेस (Skyroot Aerospace) जैसे निजी खिलाड़ियों का उभार सकारात्मक प्रगति है, लेकिन अंतरिक्ष स्टार्टअप और व्यवसायों के एक संपन्न पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण के लिये अभी और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है।

भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में वर्तमान प्रमुख प्रगतियाँ:

  • अंतरिक्ष विज्ञान मिशनों में प्रगति: चंद्रयान-3 की सफलता के बाद, ISRO अन्य वैज्ञानिक मिशनों पर सक्रियता से कार्य कर रहा है।
    • सितंबर 2023 में लॉन्च किये गए आदित्य-L1 सौर वेधशाला ने जुलाई 2024 में L1 बिंदु के चारों ओर अपनी पहली परिक्रमा पूरी कर ली और यह पहले ही सौर तूफ़ान के अध्ययन में योगदान दे चुकी है।
    • जनवरी 2024 में लॉन्च किया गया एक्स-रे पोलैरिमीटर सैटेलाइट (XpoSat) अंतरिक्ष-आधारित खगोल विज्ञान में भारत की क्षमताओं को आगे बढ़ाएगा।
  • गगनयान मिशन की प्रगति: ISRO अपने मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम ‘गगनयान’ में महत्त्वपूर्ण प्रगति कर रहा है ।
    • एजेंसी ने वर्ष 2023 में क्रू एस्केप सिस्टम (crew escape system) का पहला एबॉर्ट टेस्ट (TV-D1) सफलतापूर्वक आयोजित किया।
      • चार अंतरिक्ष यात्री अभ्यर्थियों (astronaut candidates) का चयन किया गया है और वे कठोर प्रशिक्षण से गुज़र रहे हैं।
    • पहला चालकरहित गगनयान मिशन वर्ष 2024 के अंत में अपेक्षित है, जबकि मानवयुक्त मिशन वर्ष 2025 में प्रस्तावित है।
  • वाणिज्यीकरण और निजीकरण को बढ़ावा: न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) ISRO की प्रौद्योगिकियों के वाणिज्यीकरण में अधिक सक्रिय भूमिका निभा रहा है।
    • NSIL ने मई 2024 में भारतीय रिमोट सेंसिंग उपग्रह डेटा और उत्पादों से संबंधित सभी वाणिज्यिक गतिविधियों को अपने हाथ में ले लिया।
    • मार्च 2024 में अग्निकुल कॉसमॉस ने अपना SoRTeD-01 वाहन सफलतापूर्वक लॉन्च किया, जो भारत में निजी अंतरिक्ष उपक्रमों के लिये एक मील का पत्थर साबित होगा।
  • अगली पीढ़ी के प्रक्षेपण यान का विकास: ISRO पेलोड क्षमता बढ़ाने और प्रक्षेपण लागत को कम करने के लिये अपनी अगली पीढ़ी के प्रक्षेपण यान (Next Generation Launch Vehicle- NGLV) पर सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है।
    • NGLV को त्रि-चरणीय वाहन के रूप में डिज़ाइन किया गया है, जो सेमी-क्रायोजेनिक, लिक्विड और क्रायोजेनिक इंजन द्वारा संचालित होगा।
    • इसके साथ ही, ISRO द्वारा LVM-3 रॉकेट के लिये सेमी-क्रायोजेनिक इंजन का विकास किया जा रहा है, जिसका मई 2024 में सफल प्री-बर्नर इग्निशन परीक्षण (pre-burner ignition tests) किया जाएगा।
    • ये प्रगतियाँ भारत के लिये हैवी-लिफ्ट प्रक्षेपण बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा करने और भविष्य के महत्त्वाकांक्षी अंतरिक्ष मिशनों को समर्थन देने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
    • इसके अलावा, सरकार ने भारतीय अंतरिक्ष नीति (Indian Space Policy) 2023 को मंज़ूरी दी है, जिसमें कहा गया है कि राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी के रूप में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) मुख्य रूप से नई अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों और अनुप्रयोगों के अनुसंधान एवं विकास तथा बाह्य अंतरिक्ष के बारे में मानवीय समझ का विस्तार करने पर ध्यान केंद्रित करेगा।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का विस्तार: भारत अपनी अंतरिक्ष कूटनीति और अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी को सुदृढ़ कर रहा है।
    • NSIL ने GSAT-20/GSAT-N2 उपग्रह के प्रक्षेपण के लिये SpaceX के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं, जो अंतर्राष्ट्रीय प्रक्षेपण क्षमताओं का उपयोग करने के लिये एक व्यावहारिक दृष्टिकोण को परिलक्षित करता है।
    • NISAR मिशन (जिसका प्रक्षेपण वर्ष 2025 के आरंभ में होना अपेक्षित है) के लिये NASA के साथ भारत का सहयोग अंतरिक्ष क्षेत्र में वैश्विक अग्रणी एजेंसियों के साथ बढ़ते तकनीकी सहयोग को परिलक्षित करता है।
    • इसके अतिरिक्त, भारतीय अंतरिक्ष यात्री अभ्यर्थियों को अमेरिका में प्रशिक्षण प्राप्त होगा, जिससे संभवतः अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर भारतीय उपस्थिति दर्ज हो सकेगी।

भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र से संबंधित प्रमुख मुद्दे:

  • निजी क्षेत्र की सीमित भागीदारी: हाल के नीतिगत सुधारों के बावजूद, भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में अभी भी सरकारी संस्थाओं का ही प्रभुत्व बना हुआ है।
    • भारत की 78 बिलियन अमेरिकी डॉलर की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में निजी कंपनियों की हिस्सेदारी अत्यंत कम है।
    • व्यापक विनियामक ढाँचे की कमी और ISRO की सुविधाओं तक सीमित पहुँच ने निजी क्षेत्र के विकास में बाधा उत्पन्न की है।
    • हालाँकि स्काईरूट एयरोस्पेस और अग्निकुल कॉसमॉस जैसे स्टार्टअप ने प्रगति की है, लेकिन उन्हें आगे बढ़ने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
  • अपर्याप्त वित्तपोषण और संसाधन आवंटन: भारत के अंतरिक्ष बजट में वृद्धि हो रही है, लेकिन विश्व के अग्रणी देशों की तुलना में यह मामूली ही है।
    • वर्ष 2023-24 में ISRO का बजट लगभग 1.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो NASA के बजट (25.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर) से कम था।
    • सीमित वित्तपोषण के कारण ISRO की एक साथ कई महत्त्वाकांक्षी परियोजनाओं को आगे बढ़ाने की क्षमता प्रभावित होती है।
    • उदाहरण के लिये, गगनयान मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम के विकास में आंशिक रूप से संसाधन की कमी के कारण ही देरी हुई है।
    • निरंतर, पर्याप्त वित्तपोषण की कमी उन्नत प्रणोदन प्रणालियों और अगली पीढ़ी के प्रक्षेपण वाहनों के विकास जैसी दीर्घकालिक परियोजनाओं को भी प्रभावित करती है, जिससे वैश्विक अंतरिक्ष बाज़ार में भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मकता सीमित हो सकती है।
  • प्रतिभा पलायन और प्रतिभा प्रतिधारण: भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र को शीर्ष प्रतिभा को बनाये रखने में महत्त्वपूर्ण चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
    • शीर्ष भारतीय संस्थानों से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग स्नातकों की एक बड़ी संख्या विदेश में या अन्य क्षेत्रों में अवसर की तलाश करती है।
    • सरकारी संगठनों में प्रतिस्पर्द्धी वेतन का अभाव, सीमित अनुसंधान अवसर और नौकरशाही संबंधी बाधाएँ इस प्रतिभा पलायन या ‘ब्रेन ड्रेन’ में योगदान करती हैं।
    • यद्यपि ISRO के पास समर्पित कार्यबल मौजूद है, फिर भी उसे विशेषज्ञ प्रतिभाओं को आकर्षित करने और उन्हें बनाये रखने में, विशेष रूप से कृत्रिम बुद्धिमत्ता और अंतरिक्ष में प्रयुक्त क्वांटम प्रौद्योगिकियों जैसे उभरते क्षेत्रों में, वैश्विक तकनीकी दिग्गज कंपनियों एवं अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसियों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करनी पड़ती है।
  • कुछ क्षेत्रों में प्रौद्योगिकीय अंतराल: प्रभावशाली उपलब्धियों के बावजूद, भारत कुछ अत्यंत महत्त्वपूर्ण अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों में पीछे है।
    • उदाहरण के लिये, भारत अभी तक पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी में महारत हासिल नहीं कर पाया है (पुष्पक पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यान जैसे प्रयासों के बावजूद), जबकि SpaceX जैसी कंपनियों ने इसे आम बना दिया है।
    • उपग्रह प्रौद्योगिकी में, भारत अभी भी हाई-थ्रूपुट उपग्रहों और उन्नत पृथ्वी अवलोकन क्षमताओं जैसे क्षेत्रों में अन्य उन्नत देशों के स्तर तक पहुँचने का प्रयास कर रहा है।
    • ये अंतराल वैश्विक वाणिज्यिक अंतरिक्ष बाज़ार में भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को सीमित करते हैं, जहाँ बाज़ार की हिस्सेदारी प्रायः अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी द्वारा निर्धारित की जाती है।
  • सीमित अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और बाज़ार पहुँच: हालाँकि ISRO के 60 से अधिक देशों के साथ सहयोगात्मक समझौते हैं, लेकिन इन सहयोगों की गहराई एवं पैमाने प्रायः उनकी क्षमता से कम रह जाते हैं।
    • लागत प्रभावी तरीके से उपग्रह प्रक्षेपित करने की क्षमता होने के बावजूद, वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत की हिस्सेदारी 2% से भी कम है।
    • भू-राजनीतिक कारकों, जैसे कि वर्ष 2016 तक मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था में भारत की गैर-सदस्यता, ने ऐतिहासिक रूप से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और बाज़ार पहुँच को सीमित कर दिया है।
    • यद्यपि भारत की प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष परियोजनाओं को आकर्षित करने तथा वैश्विक वाणिज्यिक प्रक्षेपण बाज़ार में बड़ी हिस्सेदारी पाने की क्षमता में सुधार हो रहा है, लेकिन सीमित वैश्विक विपणन तथा संभावित साझेदार देशों में कठोर विनियामक वातावरण जैसे कारकों के कारण इसमें बाधा उत्पन्न हो रही है।
  • अपर्याप्त अंतरिक्ष अवसंरचना और ज़मीनी सुविधाएँ: भारत की अंतरिक्ष अवसंरचना में सुधार तो हो रहा है, लेकिन यह अभी भी वैश्विक मानकों से पीछे है।
    • देश में केवल एक ही प्रमुख प्रक्षेपण स्थल है (श्रीहरिकोटा में), जिससे प्रक्षेपण आवृत्तियों और लचीलेपन में कमी आती है।
    • समर्पित अंतरिक्ष नेटवर्क का अभाव भारत की जटिल अंतर-ग्रहीय मिशनों को संचालित करने की क्षमता में बाधा डालता है।
  • अविकसित घरेलू आपूर्ति शृंखला: भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र महत्त्वपूर्ण घटकों एवं सामग्रियों के लिये अविकसित घरेलू आपूर्ति शृंखला और भारी आयात से ग्रस्त है।
    • वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान 2,114.00 करोड़ रुपए मूल्य की वस्तुओं का आयात किया गया, जबकि निर्यात से केवल 174.9 करोड़ रुपए की राशि अर्जित हुई।
    • आयात पर निर्भरता से न केवल लागत बढ़ती है, बल्कि कार्यक्रमों की समय-सारणी और राष्ट्रीय सुरक्षा को भी खतरा पैदा होता है।
    • कंपोजिट (composites), उच्च श्रेणी के मिश्र धातु एवं इलेक्ट्रॉनिक घटकों जैसी विशिष्ट सामग्रियों के लिये आपूर्तिकर्ताओं के सुदृढ़ पारितंत्र की कमी ISRO और निजी अंतरिक्ष कंपनियों, दोनों के विकास में बाधा डालती है।
  • नियामक बाधाएँ और नीतिगत अंतराल: हाल के सुधारों के बावजूद, भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र अभी भी नियामक जटिलताओं से जूझ रहा है।
    • एक व्यापक अंतरिक्ष क्रियाकलाप अधिनियम (Space Activities Act) का अभाव निजी खिलाड़ियों के लिये अनिश्चितता पैदा करता है।
    • ऑन-ऑर्बिट सर्विसिंग और अंतरिक्ष संसाधनों के उपयोग जैसे महत्त्वपूर्ण पहलुओं पर स्पष्ट नीतियों का अभाव, उभरते अंतरिक्ष बाज़ारों में भारत को अलाभ की स्थिति में डालता है।
  • अंतरिक्ष संवहनीयता और मलबा प्रबंधन पर सीमित ध्यान: अंतरिक्ष संवहनीयता और मलबा प्रबंधन के प्रति भारत का दृष्टिकोण अपेक्षाकृत निष्क्रिय रहा है।
    • भारत वर्ष 2030 तक मलबा मुक्त अंतरिक्ष मिशन की क्षमता प्राप्त कर लेने का लक्ष्य रखता है, लेकिन देश ने अभी तक एक व्यापक अंतरिक्ष मलबा शमन रणनीति को लागू नहीं किया है।
    • वर्ष 2019 का ASAT परीक्षण, जिसमें मलबे के सैकड़ों टुकड़े उत्पन्न हुए, ने इस अंतराल को उजागर किया।
    • वर्ष 2023 तक भारतीय प्रक्षेपणों से कुल 82 रॉकेट बॉडी को कक्षा में स्थापित किया गया था।
      • वर्ष 2001 में PSLV-C3 का ऊपरी चरण दुर्घटनावश विखंडित हो गया था, जिससे 371 मलबा खंड उत्पन्न हुए थे।
      • वर्ष 2023 के अंत तक PSLV-C3 के 52 मलबे अभी भी कक्षा में मौजूद थे।
  • शैक्षिक-उद्योग-सरकार सहयोग का अभाव: अंतरिक्ष क्षेत्र में शैक्षिक संस्थानों, उद्योग और सरकारी एजेंसियों के बीच तालमेल अभी भी अपर्याप्त है।
    • भारत के केवल 0.4% पेटेंट ही शैक्षिक-उद्योग सहयोग से प्राप्त होते हैं।
    • अनुसंधान संस्थानों से उद्योग तक प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिये संरचित ढाँचे का अभाव नवाचार में बाधा डालता है।
    • यद्यपि विश्वविद्यालयों के साथ ISRO की संलग्नता बढ़ी है, फिर भी इसका दायरा एवं पैमाना अभी सीमित ही है।

भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र को आगे बढ़ाने के लिये कौन-से उपाय किये जा सकते हैं?

  • निजी क्षेत्र के एकीकरण में तेज़ी लाना: निजी भागीदारी को तेज़ी से बढ़ाने के लिये एक ‘अंतरिक्ष क्षेत्र रूपांतरण कार्यक्रम’ ('Space Sector Transformation Program) क्रियान्वित किया जाए।
    • अंतरिक्ष से संबंधित लाइसेंसिंग और अनुमोदन के लिये एक वन-स्टॉप-शॉप की स्थापकी जाए, जिससे नौकरशाही संबंधी बाधाएँ कम होंगी।
    • निवेश आकर्षित करने के लिये कर प्रोत्साहन और सरलीकृत विनियमनों के साथ अंतरिक्ष उद्यम क्षेत्रों (Space Enterprise Zones) का सृजन किया जाए।
    • ISRO की सुविधाओं और विशेषज्ञता को निजी संस्थाओं के साथ साझा करने के लिये एक सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल का विकास किया जाए।
  • प्रतिभा प्रतिधारण एवं विकास पहल: एयरोस्पेस क्षेत्र के टॉपर स्नातकों को प्रतिस्पर्द्धी वेतन और अनुसंधान अनुदान प्रदान करने के लिये एक ‘अंतरिक्ष प्रतिभा प्रतिधारण योजना’ ('Space Talent Retention Scheme) शुरू की जाए।
    • ISRO वैज्ञानिकों को कौशल संवर्द्धन के लिये निजी कंपनियों या विदेशी अंतरिक्ष एजेंसियों में कार्य करने की अनुमति देने के लिये एक ‘अंतरिक्ष अध्ययन-अवकाश कार्यक्रम’ (Space Sabbatical Program) क्रियान्वित किया जाए।
    • स्कूलों और कॉलेजों से युवा प्रतिभाओं की पहचान करने तथा उनका विकास करने के लिये एक ‘एयरोस्पेस इनोवेटर्स’ (Aerospace Innovators) कार्यक्रम का सृजन किया जाए। ज्ञान हस्तांतरण और कौशल विकास के लिये अग्रणी वैश्विक अंतरिक्ष एजेंसियों एवं कंपनियों के साथ आदान-प्रदान कार्यक्रम विकसित किये जाएँ।
  • प्रौद्योगिकी में तेज़ी लाने की रणनीति: पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण वाहनों, क्वांटम संचार और अंतरिक्ष में AI जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हुए ‘अगली पीढ़ी के अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी मिशन’ (Next-Gen Space Tech Mission) की शुरूआत की जाए।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को रणनीतिक रूप से विस्तारित करना: संयुक्त मिशन, प्रौद्योगिकी विनिमय और बाज़ार पहुँच के लिये प्रमुख देशों के साथ द्विपक्षीय ‘अंतरिक्ष सेतु’ (Space Bridges) विकसित किये जाएँ।
    • क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने और भारत के अंतरिक्ष प्रभाव का विस्तार करने के लिये ‘दक्षिण एशियाई अंतरिक्ष गठबंधन’ (South Asian Space Alliance) का निर्माण किया जाए।
    • अंतर्राष्ट्रीय विकास और आपदा प्रबंधन के लिये अंतरिक्ष क्षमताओं का उपयोग करते हुए ‘अंतरिक्ष कूटनीति पहल’ (Space Diplomacy Initiative) को क्रियान्वित किया जाए।
    • भारत के हितों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानूनों और नीतियों के निर्माण में सक्रिय रूप से भागीदारी की जाए।
  • अंतरिक्ष अवसंरचना और सुविधाओं का विकास: प्रक्षेपण क्षमताओं और लचीलेपन को बढ़ाने के लिये पूर्वी तट पर अंतरिक्ष बंदरगाहों (spaceports) की संख्या बढ़ाई जाए।
  • परीक्षण, संयोजन और विशिष्ट अनुसंधान के लिये देश भर में ‘मिनी स्पेस सेंटर’ का नेटवर्क स्थापित किया जाए।
  • उन्नत गहन अंतरिक्ष मिशन क्षमताओं के लिये अनेक ग्राउंड स्टेशनों के साथ अत्याधुनिक गहन अंतरिक्ष नेटवर्क का निर्माण किया जाए।
  • अंतरिक्ष-आधारित सूचना के कुशल डेटा भंडारण, प्रसंस्करण और वितरण के लिये ‘राष्ट्रीय अंतरिक्ष क्लाउड’ (National Space Cloud) का विकास किया जाए।
  • घरेलू आपूर्ति शृंखला को सुदृढ़ करना: वर्ष 2030 तक महत्त्वपूर्ण घटकों में अधिकतम स्थानीयकरण की प्राप्ति के लिये एक ‘अंतरिक्ष घटक स्वदेशीकरण मिशन’ (Space Component Indigenization Mission) लॉन्च की जाए।
    • एक सुदृढ़ आपूर्तिकर्ता पारितंत्र को बढ़ावा देने के लिये प्रमुख औद्योगिक संकुलों में ‘अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी पार्क’ (Space Technology Parks) स्थापित किये जाएँ।
    • स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये घरेलू स्तर पर निर्मित अंतरिक्ष घटकों हेतु अधिमान्य खरीद नीतियाँ लागू की जाएँ।
  • नियामक ढाँचे को सुव्यवस्थित करना: अंतरिक्ष संबंधी सभी गतिविधियों के लिये कानूनी स्पष्टता एवं समर्थन प्रदान करने के लिये एक व्यापक ‘भारतीय अंतरिक्ष गतिविधि अधिनियम’ (Indian Space Activities Act) लागू किया जाए।
    • अंतरिक्ष परियोजनाओं के लिये ‘फास्ट-ट्रैक अनुमोदन प्रणाली’ लागू की जाए, जहाँ सभी मंज़ूरियों के लिये अधिकतम 6 माह की समय-सीमा आरोपित की जाए।
    • अंतरिक्ष पर्यटन, मलबा हटाने और ऑन-ऑर्बिट सर्विसिंग जैसे उभरते क्षेत्रों पर स्पष्ट नीतियाँ विकसित की जाएँ।
  • अंतरिक्ष संवहनीयता को प्राथमिकता देना: स्पष्ट दिशा-निर्देशों और प्रवर्तन तंत्रों के साथ एक ‘राष्ट्रीय अंतरिक्ष मलबा प्रबंधन योजना’ (National Space Debris Management Plan) लागू की जाए।
    • उन्नत ट्रैकिंग एवं मॉनिटरिंग क्षमताओं से सुसज्जित ‘अंतरिक्ष स्थितिजन्य जागरूकता केंद्र’ (Space Situational Awareness Center) की संख्या बढ़ाई जाए।
    • मलबा हटाने की सक्रिय प्रौद्योगिकियों और मिशनों के विकास के लिये समर्पित निधि आवंटित की जाए।
    • सभी भारतीय उपग्रहों और प्रक्षेपण वाहनों के लिये अनिवार्य ‘जीवन-अंत प्रबंधन योजना’ (End-of-Life Management Plans) लागू की जाए।
  • शैक्षिक जगत-उद्योग-सरकार तालमेल को बढ़ावा देना: विश्वविद्यालयों में ‘अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी ऊष्मायन केंद्र’ (Space Technology Incubation Centers) स्थापित किये जाएँ, जिनका प्रबंधन ISRO और उद्योग भागीदारों द्वारा संयुक्त रूप से किया जाए।
    • विभिन्न क्षेत्रों में सहयोगात्मक परियोजनाओं के समन्वय एवं वित्तपोषण के लिये एक ‘राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान कंसोर्टियम’ (National Space Research Consortium) की स्थापना की जाए।
    • वार्षिक रूप से आयोजित ‘भारत अंतरिक्ष नवाचार चुनौती’ (India Space Innovation Challenge) का शुभारंभ किया जाए, जहाँ सफल विचारों के लिये पर्याप्त अनुदान प्रदान किया जाए।

निष्कर्ष:

  • हाल के वर्षों में भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई है, जिसकी पुष्टि चंद्रयान-3 मिशन की सफलता और आदित्य L1 के सफल प्रक्षेपण से हुई है। हालाँकि, भारत को अपनी क्षमता को पूर्णरूपेण साकार करने के लिये एक सुदृढ़ निजी अंतरिक्ष उद्योग को बढ़ावा देने, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ाने और महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों में निवेश करने जैसी चुनौतियों को संबोधित करना होगा। भारत इन बाधाओं को पार कर वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में अपनी स्थिति सुदृढ़ कर सकता है और मानव ज्ञान एवं अन्वेषण की उन्नति में योगदान दे सकता है।

अभ्यास प्रश्न: भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र की हाल की उपलब्धियों पर चर्चा कीजिये और राज्य-नेतृत्व वाले अन्वेषण से एक सुदृढ़, वाणिज्यीकृत अंतरिक्ष उद्योग की ओर संक्रमण करने की राह की चुनौतियों एवं अवसरों का विश्लेषण कीजिये।

 यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा,  विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

मेन्स: 

प्रश्न: भारत के तीसरे चंद्रमा मिशन का मुख्य कार्य क्या है जिसे इसके पहले के मिशन में हासिल नहीं किया जा सका? जिन देशों ने इस कार्य को हासिल कर लिया है उनकी सूची दीजिये। प्रक्षेपित अंतरिक्ष यान की उपप्रणालियों को प्रस्तुत कीजिये और विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के ‘आभासी प्रक्षेपण नियंत्रण केंद्र’ की उस भूमिका का वर्णन कीजिये जिसने श्रीहरिकोटा से सफल प्रक्षेपण में योगदान दिया है। (2023)

प्रश्न. भारत का अपना अंतरिक्ष स्टेशन बनाने की क्या योजना है और इससे हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम को क्या लाभ होगा? (2019)

प्रश्न: अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों पर चर्चा करें।  इस तकनीक के अनुप्रयोग ने भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में किस प्रकार सहायता की?  ( 2016)


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