विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
अनुसंधान और विकास के लिये सतत् वित्तपोषण
- 01 Mar 2024
- 16 min read
प्रिलिम्स के लिये:विज्ञान के लिये सतत् वित्तपोषण, रमन प्रभाव, भौतिकी में नोबेल पुरस्कार, सकल घरेलू उत्पाद (GDP) मेन्स के लिये:विज्ञान के लिये सतत् वित्तपोषण, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, संवृद्धि और विकास |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय विज्ञान दिवस प्रतिवर्ष 28 फरवरी को मनाया जाता है जो रमन प्रभाव की खोज को संदर्भित करता है और भारत के विकास में वैज्ञानिकों के योगदान को मान्यता प्रदान करता है।
- यह सतत् विकास को बढ़ावा देने में विज्ञान के महत्त्व पर प्रकाश डालता है।
राष्ट्रीय विज्ञान दिवस क्या है?
- परिचय:
- राष्ट्रीय विज्ञान दिवस भारतीय भौतिक विज्ञानी चंद्रशेखर वेंकट रमन द्वारा रमन प्रभाव की खोज करने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
- रमन प्रभाव का तात्पर्य उस घटना से है जिसमें पारदर्शी पदार्थ से गुज़रने पर प्रकाश प्रकीर्णित हो जाता है जिससे तरंगदैर्ध्य (Wavelength) और ऊर्जा में परिवर्तन होता है।
- रमन प्रभाव की खोज वर्ष 1928 में 28 फरवरी को सी.वी. रमन द्वारा की गई थी।
- भौतिकी के क्षेत्र में उनके महत्त्वपूर्ण योगदान को मान्यता प्रदान करने हेतु वर्ष 1930 में उन्हें भौतिकी का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।
- राष्ट्रीय विज्ञान दिवस भारतीय भौतिक विज्ञानी चंद्रशेखर वेंकट रमन द्वारा रमन प्रभाव की खोज करने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
- वर्ष 2024 का विषय: राष्ट्रीय विज्ञान दिवस 2024 का विषय 'विकसित भारत के लिये स्वदेशी तकनीक' था।
- महत्त्व:
- यह दिवस हमारे दैनिक जीवन में वैज्ञानिक अनुप्रयोगों के महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये मनाया जाता है।
- इस दिवस का उद्देश्य मानव कल्याण में वैज्ञानिकों के प्रयासों और उपलब्धियों को मान्यता प्रदान कर उन्हें स्वीकार करना है।
- राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के उपलक्ष्य पर हमें विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हुई प्रगति को समझने के साथ-साथ उन अन्य क्षेत्रों की खोज करना आवश्यक है जहाँ और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है।
अनुसंधान और विकास (R&D) के संबंध में भारत का परिव्यय कितना है?
- भारत का अनुसंधान और विकास व्यय:
- अनुसंधान और विकास (R&D) के संबंध में भारत का परिव्यय वर्ष 2020-21 में घट कर सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 0.64% हो गया जो वर्ष 2008-2009 में 0.8% और वर्ष 2017-2018 में 0.7% था।
- सरकारी अभिकरणों द्वारा अनुसंधान और विकास परिव्यय बढ़ाने हेतु आह्वान किया जाता रहा है किंतु इसका समाधान नहीं किया गया जो एक चिंताजनक विषय है।
- वर्ष 2013 में विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार नीति बनाई गई जिसका लक्ष्य अनुसंधान तथा विकास पर सकल व्यय (GERD) को सकल घरेलू उत्पाद के 2% तक बढ़ाना था, यह लक्ष्य वर्ष 2017-2018 के आर्थिक सर्वेक्षण में पुनः निर्धारित किया गया।
- हालाँकि R&D परिव्यय में हुई कमी के कारण स्पष्ट नहीं हैं। इसके संभावित कारकों में सरकारी अभिकरणों के के बीच अपर्याप्त समन्वय और अनुसंधान एवं विकास परिव्यय को प्राथमिकता देने के लिये सुदृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी शामिल हो सकती है।
- अनुसंधान और विकास (R&D) के संबंध में भारत का परिव्यय वर्ष 2020-21 में घट कर सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 0.64% हो गया जो वर्ष 2008-2009 में 0.8% और वर्ष 2017-2018 में 0.7% था।
- विकसित देशों का अनुसंधान एवं विकास व्यय:
- तुलनात्मक रूप से, अधिकांश विकसित देश अपने सकल घरेलू उत्पाद का 2% से 4% के बीच अनुसंधान एवं विकास के लिये आवंटित करते हैं।
- वर्ष 2021 में, आर्थिक सहयोग और विकास संगठन के सदस्य देशों ने अनुसंधान एवं विकास पर सकल घरेलू उत्पाद का औसतन 2.7% व्यय किया, जबकि अमेरिका तथा ब्रिटेन पिछले दशक में लगातार 2% से अधिक रहे।
- विज्ञान के माध्यम से सार्थक विकास को आगे बढ़ाने के लिये विशेषज्ञ भारत को वर्ष 2047 तक अनुसंधान एवं विकास हेतु सालाना अपने सकल घरेलू उत्पाद का कम से कम 1%, आदर्श रूप से 3% आवंटित करने का सुझाव देते हैं।
अनुसंधान एवं विकास हेतु सतत् वित्तपोषण में क्या चुनौतियाँ हैं?
- बजट का कम उपयोग:
- आवंटन के बावजूद, जैव प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Biotechnology- DBT), विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology- DST) तथा वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान विभाग (Department of Scientific and Industrial Research- DSIR) जैसे विभागों ने लगातार अपने बजट आवंटन का कम उपयोग किया है।
- सत्र 2022-2023 में, DBT ने अपने अनुमानित बजट आवंटन का केवल 72% उपयोग किया, DST ने केवल 61% उपयोग किया और DSIR ने अपने आवंटन का 69% खर्च किया।
- आवंटन के बावजूद, जैव प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Biotechnology- DBT), विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology- DST) तथा वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान विभाग (Department of Scientific and Industrial Research- DSIR) जैसे विभागों ने लगातार अपने बजट आवंटन का कम उपयोग किया है।
- संवितरण में विलंब:
- क्षमता की कमी के कारण अनुदान और वेतन वितरण में विलंब होता है, जिससे वैज्ञानिक अनुसंधान तथा विकास परियोजनाओं की प्रगति प्रभावित होती है।
- अनुसंधान और विकास पर भारत के कम व्यय का व्यापक मुद्दा कम उपयोग के प्रभाव को बढ़ाता है, जो बढ़ी हुई फंडिंग तथा व्यय में बेहतर दक्षता दोनों की आवश्यकता का संकेत देता है।
- अनिश्चित सरकारी बजट आवंटन:
- विज्ञान के लिये सरकारी फंडिंग अनिश्चित है और यह राजनीतिक प्राथमिकताओं, आर्थिक स्थितियों एवं विभिन्न क्षेत्रों में संसाधनों की प्रतिस्पर्द्धी मांगों में बदलाव के अधीन है।
- सरकारी बजट के भीतर R&D फंडिंग को प्राथमिकता न दिये जाने से अन्य क्षेत्रों की तुलना में अपर्याप्त आवंटन हुआ।
- यह राष्ट्रीय विकास और नवाचार के लिये वैज्ञानिक अनुसंधान के महत्त्व की मान्यता की कमी के कारण हो सकता है।
- अपर्याप्त निजी क्षेत्र निवेश:
- सत्र 2020-2021 में, निजी क्षेत्र के उद्योग ने GERD में 36.4% का योगदान दिया, जबकि केंद्र सरकार की हिस्सेदारी 43.7% थी।
- आर्थिक रूप से विकसित देशों में, अनुसंधान एवं विकास निवेश का एक बड़ा हिस्सा (औसतन 70%) निजी क्षेत्र से आता है।
- नियामक रोडमैप में स्पष्टता की कमी जो निवेशकों को हतोत्साहित कर सकती है, बौद्धिक संपदा अधिकारों की चोरी के विषय में चिंताएँ तथा अनुसंधान एवं विकास का आकलन करने की भारत की अपर्याप्त क्षमता, इन क्षेत्रों का समर्थन करने के लिये निजी क्षेत्र की अनिच्छा में योगदान कर सकती है।
- सत्र 2020-2021 में, निजी क्षेत्र के उद्योग ने GERD में 36.4% का योगदान दिया, जबकि केंद्र सरकार की हिस्सेदारी 43.7% थी।
भारत अपने अनुसंधान एवं विकास व्यय में कैसे सुधार कर सकता है?
- सतत् निवेश:
- विज्ञान को बढ़ावा देने के लिये अत्यधिक तथा धन की निरंतर आवश्यकता होती है। "विकसित राष्ट्र" बनने के लिये, भारत को विकसित देशों की तुलना में अनुसंधान एवं विकास में अधिक निवेश करना चाहिये।
- परोपकारी वित्त पोषण:
- परोपकार के माध्यम से अनुसंधान एवं विकास में निवेश करने के लिये धनी व्यक्तियों, निगमों तथा फाउंडेशनों को प्रोत्साहित करने से वित्त पोषण में काफी वृद्धि हो सकती है।
- वैज्ञानिक अनुसंधान के लिये समर्पित निधि अथवा अनुदान स्थापित करने से सामाजिक प्रगति में योगदान देने में रुचि रखने वाले लोगों से दान आकर्षित किया जा सकता है।
- उद्योग-अकादमिक सहयोग:
- शिक्षा जगत एवं उद्योग के बीच साझेदारी को सुगम बनाने से दोनों क्षेत्रों के संसाधनों तथा विशेषज्ञता का लाभ उठाया जा सकता है।
- शैक्षणिक संस्थान वैज्ञानिक ज्ञान एवं कौशल प्रदान करते हैं, जबकि उद्योग अनुसंधान के लिये धन, उपकरण तथा वास्तविक दुनिया के मुद्दों की आपूर्ति कर सकते हैं। साथ ही कर छूट या अन्य सरकारी प्रोत्साहन इस प्रकार की साझेदारियों को प्रोत्साहित कर सकते हैं।
- वेंचर कैपिटल और एंजल इन्वेस्टर्स:
- व्यवसायीकरण की उच्च क्षमता वाली अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं में निवेश करने के लिये उद्यम पूंजी फर्मों तथा एंजेल निवेशकों को प्रोत्साहित करना धन का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत हो सकते है।
- स्टार्टअप तथा छोटे उद्यम प्राय: नवप्रवर्तन को बढ़ावा देते हैं और साथ ही अपने शोध प्रयासों को बढ़ाने हेतु निजी निवेश से लाभ भी उठा सकते हैं।
- सरकारी पहल:
- अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों का समर्थन करने के लिये पर्याप्त धन तथा कुशल उपयोग सुनिश्चित करने हेतु राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन जैसी पहल के कार्यान्वयन में तेज़ी लाना महत्त्वपूर्ण है।
अनुसंधान एवं विकास से संबंधित सरकारी पहल क्या हैं?
- उत्कृष्टता केंद्रों का विकास
- राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन का निर्माण
- वैभव फैलोशिप
- वैश्विक नवाचार सूचकांक 2023: भारत ने नवीनतम GII, 2023 में 40वाँ स्थान प्राप्त किया।
- अटल न्यू इंडिया चैलेंज 2.0
- नवीन विज्ञान पुरस्कारों की घोषणा (विज्ञान युवा-शांति स्वरूप भटनागर)
- पोस्ट-डॉक्टरल फ़ेलोशिप (PDF): सरकार ने पोस्ट-डॉक्टरल फ़ेलोशिप (PDF) की संख्या वार्षिक 300 से बढ़ाकर 1000 कर दी गई है।
- इसके अतिरिक्त SERB-रामानुजन फैलोशिप, SERB-रामलिंगास्वामी पुनः प्रवेश फेलोशिप तथा SERB-विज़िटिंग एडवांस्ड ज्वाइंट रिसर्च (VAJRA) फैकल्टी योजना को भारतीय मूल के प्रतिभाशाली शोधकर्त्ताओं को काम करने तथा भारत में विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार (STI) पारिस्थितिकी तंत्र में योगदान की दिशा में बढ़ावा देने के लिये तैयार किया गया है।
निष्कर्ष
- विज्ञान के लिये स्थायी वित्त पोषण से संबंधित चुनौतियों का समाधान करने हेतु सरकारी एजेंसियों, नीति निर्माताओं, अनुसंधान संस्थानों और निजी क्षेत्र से वित्त पोषण तंत्र को सुव्यवस्थित करने, क्षमता निर्माण पहल में सुधार करने और नवाचार तथा अनुसंधान उत्कृष्टता की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है।
- इसके अतिरिक्त, विज्ञान के वित्तपोषण को प्राथमिकता देने और सामाजिक-आर्थिक विकास को आगे बढ़ाने व वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका को पहचानने के लिये निरंतर प्रतिबद्धता की आवश्यकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न.1 राष्ट्रीय नवप्रवर्तक प्रतिष्ठान-भारत (नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन इंडिया- एन.आई.एफ.) के संबंध में निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (2015)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (a) प्रश्न. 2 निम्नलिखित में से किस क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिये शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार दिया जाता है? (2009) (a) साहित्य उत्तर: (c) प्रश्न. 3 अटल नवप्रवर्तन (इनोवेशन) मिशन किसके अधीन स्थापित किया गया है? (2019) (a) विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में सार्वजनिक निजी भागीदारी (पी.पी.पी.) की आवश्यकता क्यों है? भारत में रेलवे स्टेशनों के पुनर्विकास में पी.पी.पी. मॉडल की भूमिका का परीक्षण कीजिये। (2022) प्रश्न. सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पी.पी.पी.) मॉडल के अधीन संयुक्त उपक्रमों के माध्यम से भारत में विमानपत्तनों के विकास का परीक्षण कीजिये। इस संबंध में प्राधिकरणों के समक्ष कौन सी चुनौतियाँ हैं? (2017) |