भारतीय अर्थव्यवस्था
स्वामी कोष
प्रिलिम्स के लिये:स्वामी कोष, वैकल्पित निवेश फंड मेन्स के लिये:स्वामी फंड के उद्देश्य और महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मुंबई में स्वामी (सस्ते और मध्यम-आय वर्ग के आवासों के लिये विशेष विंडो) कोष के तहत एक आवासीय परियोजना को पूरा करने के लिये किये गए निवेश के पूर्ण निष्कासन की घोषणा की है।
- इसके अंतर्गत सात परियोजनाओं में 1,500 से अधिक घरों को पहले ही पूरा कर लिया गया है और हर साल कम-से-कम 10,000 घरों को पूरा करने का लक्ष्य है।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- यह एक सरकार समर्थित कोष है जिसे सेबी (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) के साथ पंजीकृत श्रेणी- II एआईएफ (वैकल्पिक निवेश कोष) डेट कोष के रूप में वर्ष 2019 में स्थापित किया गया था।
- वर्ष 2019 में रियल एस्टेट सेक्टर ने तरलता दबाव और कैश ट्रैप की स्थिति का सामना किया जिससे सरकार को इस योजना को शुरू करने के लिये प्रेरित करना मुश्किल हो गया।
- तरलता दबाव या कैश ट्रैप एक ऐसी स्थिति है जहां ब्याज दरें इतनी कम हो जाती हैं कि निवेशक निवेश करने के बजाय बचत करना पसंद करते हैं।
- एसबीआई (भारतीय स्टेट बैंक) सीएपी वेंचर्स कोष का निवेश प्रबंधक है जो एसबीआई कैपिटल मार्केट्स तथा एसबीआई की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है।
- कोष के प्रायोजक के रूप में भारत सरकार का सचिव,आर्थिक मामलों के विभाग तथा वित्त मंत्रालय को शामिल किया गया है।
- यह एक सरकार समर्थित कोष है जिसे सेबी (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) के साथ पंजीकृत श्रेणी- II एआईएफ (वैकल्पिक निवेश कोष) डेट कोष के रूप में वर्ष 2019 में स्थापित किया गया था।
- पात्रता मापदंड:
- SWAMIH से लास्ट मील फंडिंग की मांग करने वाली उन रियल एस्टेट परियोजनाओं को रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम (रेरा) के तहत पंजीकृत होना चाहिये जो अपर्याप्त राशि के कारण बंद पड़ी हुई है।.
- इनमें से प्रत्येक परियोजना पूरी होने के बहुत करीब होनी चाहिये।
- इन्हें 'सस्ती और मध्यम आय परियोजना' श्रेणी (ऐसी आवास परियोजनाएँ जिनमें आवास इकाइयों का आकार 200 वर्ग मीटर से अधिक नहीं हैं) के अंतर्गत भी आना चाहिये।
- नेट-वर्थ पॉजिटिव परियोजनाएँ भी स्वामी फंडिंग के लिये पात्रता रखती हैं। नेट-वर्थ पॉजिटिव परियोजनाएँ वे हैं जिनके लिये परिसंपत्ति का मूल्य देयता से अधिक होता है |
- SWAMIH से लास्ट मील फंडिंग की मांग करने वाली उन रियल एस्टेट परियोजनाओं को रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम (रेरा) के तहत पंजीकृत होना चाहिये जो अपर्याप्त राशि के कारण बंद पड़ी हुई है।.
- उद्देश्य:
- रुकी हुई आवास परियोजनाओं को पूरा करने में सक्षम बनाने और घर खरीदारों को अपार्टमेंट की डिलीवरी सुनिश्चित करने के लिये वित्तपोषण प्रदान करना।
- स्वामी फंड का महत्त्व:
- यह रियल एस्टेट क्षेत्र में तरलता को अनलॉक करने में मदद करता है तथा सीमेंट और स्टील जैसे कोर उद्योग को बढ़ावा देता है।
वैकल्पिक निवेश कोष:
- परिचय:
- भारत में स्थापित या निगमित कोई भी कोष जो निजी रूप से एक जमा निवेश साधन है तथा अपने निवेशकों के लाभ के लिये एक परिभाषित निवेश नीति के अनुसार निवेश करने हेतु परिष्कृत निवेशकों, चाहे भारतीय हो या विदेशी, से धन एकत्र करता है।
- भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) विनियम (AIFs), 2012 के विनियम 2(1)(बी) में AIFs की परिभाषा दी गई है।
- AIF में कोष प्रबंधन गतिविधियों को विनियमित करने के लिये सेबी (म्यूचुअल फंड) विनियम, 1996, सेबी (सामूहिक निवेश योजना) विनियम, 1999 या बोर्ड के किसी अन्य विनियम के तहत शामिल धन शामिल नहीं है।
- भारत में स्थापित या निगमित कोई भी कोष जो निजी रूप से एक जमा निवेश साधन है तथा अपने निवेशकों के लाभ के लिये एक परिभाषित निवेश नीति के अनुसार निवेश करने हेतु परिष्कृत निवेशकों, चाहे भारतीय हो या विदेशी, से धन एकत्र करता है।
श्रेणियाँ:
- श्रेणी- I:
- इन कोषों का निवेश उन व्यवसायों में किया जाता है जिनमें वित्तीय रूप से बढ़ने की क्षमता होती है जैसे स्टार्टअप, लघु और मध्यम उद्यम।
- सरकार इन उपक्रमों में निवेश को प्रोत्साहित करती है क्योंकि उच्च उत्पादन और रोज़गार सृजन के संबंध में उनका अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- उदाहरणों में अवसंरचना कोष, एंजेल फंड, वेंचर कैपिटल फंड और सोशल वेंचर फंड शामिल हैं।
- श्रेणी- II:
- इस श्रेणी के तहत ‘इक्विटी सिक्योरिटीज़’ और ‘डेट सिक्योरिटीज़’ में निवेश किये गए कोष शामिल हैं। वे कोष जो पहले से क्रमशः श्रेणी- I और III के अंतर्गत नहीं हैं, उन्हें भी इसमें शामिल किया गया है।
- श्रेणी- II AIFS के लिये किये गए किसी भी निवेश हेतु सरकार द्वारा कोई रियायत नहीं दी जाती है।
- इन उदाहरणों में रियल एस्टेट फंड, डेट फंड, प्राइवेट इक्विटी फंड शामिल हैं।
- इस श्रेणी के तहत ‘इक्विटी सिक्योरिटीज़’ और ‘डेट सिक्योरिटीज़’ में निवेश किये गए कोष शामिल हैं। वे कोष जो पहले से क्रमशः श्रेणी- I और III के अंतर्गत नहीं हैं, उन्हें भी इसमें शामिल किया गया है।
- श्रेणी- III:
- ये ऐसे कोष हैं जो कम समय में रिटर्न देते हैं।
- ये कोष अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये जटिल और विविध व्यापारिक रणनीतियों का उपयोग करते हैं। विशेष रूप से सरकार द्वारा इन निधियों हेतु कोई रियायत या प्रोत्साहन नहीं दिया गया है।
- उदाहरणों में ‘हेज फंड’, सार्वजनिक इक्विटी कोष में निजी निवेश आदि शामिल हैं।
RERA:
- शुरुआत:
- रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम (RERA), 2016 संसद द्वारा पारित एक अधिनियम है जो 1 मई, 2017 से पूरी तरह से लागू हुआ।
- प्रभावी अधिकार क्षेत्र के नियमन के लिये राज्य में नियामक (RERA) का कार्यान्वयन प्रभावी है।
- रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम (RERA), 2016 संसद द्वारा पारित एक अधिनियम है जो 1 मई, 2017 से पूरी तरह से लागू हुआ।
- लक्ष्य:
- यह घर खरीदारों की सुरक्षा करने के साथ-साथ रियल एस्टेट की बिक्री/खरीद में दक्षता और पारदर्शिता लाकर रियल एस्टेट क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देने में मदद करता है।
स्रोत- द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
उत्सर्जन गैप रिपोर्ट 2021: यूएनईपी
प्रिलिम्स के लिये:ग्रीनहाउस गैस, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम, उत्सर्जन गैप रिपोर्ट, शुद्ध-शून्य उत्सर्जन मेन्स के लिये:उत्सर्जन गैप रिपोर्ट 2021 के अंतर्गत नई शमन प्रतिबद्धताएँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme- UNEP) की उत्सर्जन गैप रिपोर्ट, 2021 (Emissions Gap Report, 2021) जारी की गई है।
- यह UNEP उत्सर्जन गैप रिपोर्ट का बारहवाँ संस्करण है। यह सूचित करता है कि नई राष्ट्रीय जलवायु प्रतिबद्धताओं ने शमन के अन्य उपायों के साथ मिलकर दुनिया को सदी के अंत तक वैश्विक तापमान में वृद्धि को कम करके 2.7 डिग्री सेल्सियस तक रखने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
प्रमुख बिंदु
- GHGs में निरंतर वृद्धि:
- वर्ष 2020 में 5.4% की अभूतपूर्व गिरावट के बाद वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन कोविड-पूर्व स्तर पर वापस आ रहा है और वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों (GHG) की सांद्रता में वृद्धि जारी है।
- नई शमन प्रतिबद्धताएँ:
- वर्ष 2030 के लिये नई शमन प्रतिबद्धताओं में कुछ प्रगति दिखाई दे रही है, लेकिन वैश्विक उत्सर्जन पर उनका कुल प्रभाव अपर्याप्त है।
- एक समूह के रूप में G20 सदस्य अपनी मूल या वर्ष 2030 तक नई प्रतिबद्धताओं को प्राप्त करने की दिशा पर परिलक्षित नहीं हैं।
- दस G20 सदस्य अपने पिछले राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) को प्राप्त करने की दिशा में कार्यरत हैं, जबकि सात सदस्य इस लक्षित दिशा से काफी दूर हैं।
- शर्त रहित एनडीसी की तुलना में वर्ष 2030 के लिये नई प्रतिबद्धताएँ वर्ष 2030 के लिये अनुमानित उत्सर्जन को केवल 7.5% कम करती हैं, जबकि 2 डिग्री सेल्सियस के लिये 30% और 1.5 डिग्री सेल्सियस के लिये 55% कम करने की आवश्यकता होगी।
- शुद्ध-शून्य उत्सर्जन:
- वैश्विक उत्सर्जन के लक्ष्य को आधे से अधिक को कवर करने वाले 50 देशों द्वारा किये गए दीर्घकालिक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन में बड़ी विभिन्नताएँ परिलक्षित हुई हैं।
- शुद्ध शून्य उत्सर्जन का आशय है कि सभी मानव निर्मित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को शमन उपायों के माध्यम से वातावरण से हटा दिया जाना चाहिये। इस प्रकार प्राकृतिक और कृत्रिम सिंक के माध्यम से हटाए जाने के बाद पृथ्वी के नेट क्लाइमेट बैलेंस को कम करना चाहिये।
- G20 सदस्यों के NDC लक्ष्यों में से कुछ ने शुद्ध-शून्य प्रतिबद्धताओं को अपनाकर उत्सर्जन को सही दिशा प्रदान की है।
- इन प्रतिबद्धताओं को निकट अवधि के लक्ष्यों और कार्यों के साथ वापस जुड़ने की तत्काल आवश्यकता है जो यह विश्वास दिलाते हैं कि शुद्ध-शून्य उत्सर्जन अंततः प्राप्त किया जा सकता है और कार्बन क्रेडिट शेष रखा जा सकता है।
- वैश्विक उत्सर्जन के लक्ष्य को आधे से अधिक को कवर करने वाले 50 देशों द्वारा किये गए दीर्घकालिक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन में बड़ी विभिन्नताएँ परिलक्षित हुई हैं।
- ग्लोबल वार्मिंग:
- यदि बिना किसी शर्त के वर्ष 2030 तक सभी प्रतिबद्धताओं तथा 2.6 डिग्री सेल्सियस को भी लागू किया जाता है तो सदी के अंत में ग्लोबल वार्मिंग का अनुमान 2.7 डिग्री सेल्सियस रहेगा।
- यदि शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्रतिबद्धताओं को अतिरिक्त रूप से पूरी तरह से लागू किया जाता है तो यह अनुमान लगभग 2.2 डिग्री सेल्सियस तक कम हो जाएगा।
- मीथेन उत्सर्जन:
- जीवाश्म ईंधन, अपशिष्ट और कृषि क्षेत्रों से मीथेन के उत्सर्जन में कमी अल्पावधि के लिये उत्सर्जन गैप तथा वार्मिंग को कम करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकती है।
- कार्बन बाज़ार:
- कार्बन बाज़ार वास्तविक उत्सर्जन में कमी और महत्त्वाकांक्षा को बढ़ावा दे सकता है, लेकिन केवल तभी जब नियमों को स्पष्ट रूप से परिभाषित और डिज़ाइन किया गया हो तथा यह सुनिश्चित करने के लिये लेन-देन उत्सर्जन में वास्तविक कमी को दर्शाने के साथ साथ प्रगति को ट्रैक और पारदर्शिता प्रदान करने की व्यवस्था द्वारा समर्थित हो।
- वर्तमान स्थिति:
- वर्तमान वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की सांद्रता पिछले दो मिलियन वर्षों में किसी भी समय की तुलना में अधिक है।
- वर्तमान में वर्ष 2020 के लिये कुल वैश्विक ग्रीन हॉउस उत्सर्जन का कोई अनुमान उपलब्ध नहीं है।
- हालाँकि COVID-19 महामारी में वर्ष 2020 में एक छोटी सी गिरावट के साथ CO2 उत्सर्जन में अभूतपूर्व 5.4% की गिरावट दर्ज की गई |
- 2010 से 2019 तक भूमि उपयोग परिवर्तन (LUC) के साथ GHG उत्सर्जन में औसतन 1.3% प्रतिवर्ष की वृद्धि हुई हैं।
- GHG उत्सर्जन 2019 के अनुसार, LUC उत्सर्जन के बिना CO2 (GtCO2e) का 51.5 गीगाटन और भूमि-उपयोग परिवर्तन (LUC) के साथ 58.1 GtCO2e का रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुँच गया।
- भारत में उत्सर्जन को कम करने के लिये प्रमुख पहल:
- भारत स्टेज- IV (BS-IV) से भारत स्टेज-VI (BS-VI) उत्सर्जन मानदंडों में बदलाव।
- उजाला योजना के तहत एलईडी बल्ब का वितरण |
- अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन का गठन।
- जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (एनएपीसीसी) का शुभारंभ।
- 2025 तक भारत में इथेनॉल सम्मिश्रण का रोडमैप।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP)
- परिचय:
- 05 जून, 1972 को स्थापित संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) एक प्रमुख वैश्विक पर्यावरण प्राधिकरण है।
- इसका प्राथमिक कार्य वैश्विक पर्यावरण एजेंडा को निर्धारित करना, संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर सतत् विकास को बढ़ावा देना और वैश्विक पर्यावरण संरक्षण के लिये एक आधिकारिक अधिवक्ता के रूप में कार्य करना है।
- मुख्यालय:
- नैरोबी (केन्या)।
- प्रमुख रिपोर्ट्स:
- उत्सर्जन गैप रिपोर्ट, वैश्विक पर्यावरण आउटलुक, इन्वेस्ट इनटू हेल्थी प्लेनेट रिपोर्ट।
- प्रमुख अभियान:
- ‘बीट पॉल्यूशन’, ‘UN75’, विश्व पर्यावरण दिवस, वाइल्ड फॉर लाइफ।
उत्सर्जन गैप रिपोर्ट:
- यह 2030 में अनुमानित उत्सर्जन और पेरिस समझौते के 1.5 डिग्री सेल्सियस तथा 2 डिग्री सेल्सियस लक्ष्यों के अनुरूप स्तरों के बीच के अंतर का आकलन करता है। हर साल यह रिपोर्ट इस अंतराल को समाप्त करने के तरीके पेश करती है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
रक्षा संयुक्त कार्य समूह: भारत-इज़रायल
प्रिलिम्स के लिये:भारत-इज़रायल के मध्य आदान-प्रदान की गई विभिन्न प्रौद्योगिकियाँ मेन्स के लिये:भारत-इज़रायल संबंध और मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत और इज़रायल के बीच द्विपक्षीय रक्षा सहयोग पर संयुक्त कार्य समूह (JWG) की 15वीं बैठक में सहयोग के नए क्षेत्रों की पहचान करने के लिये एक व्यापक दस वर्षीय रोडमैप तैयार करने हेतु टास्क फोर्स बनाने पर सहमति हुई है।
प्रमुख बिंदु:
- JWG दोनों देशों के रक्षा मंत्रालयों का शीर्ष निकाय है जिसका उद्देश्य "द्विपक्षीय रक्षा सहयोग के सभी पहलुओं की व्यापक समीक्षा और मार्गदर्शन करना है।
- बैठक में रक्षा उद्योग सहयोग पर एक सब-वर्किंग ग्रुप (एसडब्ल्यूजी) बनाने का भी निर्णय लिया गया। एसडब्ल्यूजी के गठन का मुख्य उद्देश्य है:
- द्विपक्षीय संसाधनों का कुशल उपयोग।
- प्रौद्योगिकियों का प्रभावी प्रवाह और औद्योगिक क्षमताओं को साझा करना।
- यह भी निर्णय लिया गया कि सेवा स्तर की स्टाफ वार्ता को एक विशिष्ट समयसीमा में निर्धारित किया जाए।
भारत-इज़रायल रक्षा सहयोग:
- पृष्ठभूमि: दोनों देशों के बीच सामरिक सहयोग 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान शुरू हुआ।
- 1965 में इज़रायल ने पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में भारत को M-58 160-mm मोर्टार गोला बारूद की आपूर्ति की।
- इज़रायल उन कुछ देशों में से एक था, जिन्होंने 1998 में भारत के पोखरण परमाणु परीक्षणों की निंदा न करने का फैसला किया था।
- इसने परमाणु परीक्षणों के बाद प्रतिबंधों और अंतर्राष्ट्रीय अलगाव की स्थिति में भी भारत के साथ अपने हथियारों का व्यापार जारी रखा।
- संबंधित राष्ट्रीय हित: भारत और इज़रायल के मज़बूत द्विपक्षीय संबंध दोनों देशों के राष्ट्रीय हितों से प्रेरित हैं।
- भारत के सैन्य आधुनिकीकरण का लंबे समय से प्रतीक्षित लक्ष्य।
- अपने हथियार उद्योग के व्यावसायीकरण में इज़रायल का तुलनात्मक लाभ।
- विस्तार: भारत को इज़रायली हथियारों की बिक्री के अलावा अंतरिक्ष, आतंकवाद और साइबर सुरक्षा तथा खुफिया साझाकरण जैसे अन्य डोमेन को शामिल करने के लिये रक्षा सहयोग का दायरा बढ़ाया गया है।
- भारत वर्ष 2017 में 715 मिलियन अमेरिकी डाॅलर की बिक्री के साथ इज़रायल का सबसे बड़ा हथियार आयातक था।
- स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) की रिपोर्ट के अनुसार, इज़रायल रूस और अमेरिका के बाद भारत को रक्षा वस्तुओं का तीसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्त्ता है।
- भारत द्वारा इज़रायल से आयातित रक्षा प्रौद्योगिकियाँ:
- मानव रहित विमान (यूएवी):
- खोजकर्ता: यह निगरानी, लक्ष्य प्राप्ति, तोपखाना समायोजन और क्षति मूल्यांकन के लिये एक बहु-मिशन सामरिक मानव रहित विमान (यूएवी) है।
- हेमीज़ 900: दिसंबर 2018 में अदानी डिफेंस एंड एलबिट सिस्टम्स ने हैदराबाद में पहले भारत-इज़रायल संयुक्त उद्यम का उद्घाटन किया।
- हीरोन (Heron): यह एक मध्यम-ऊँचाई लंबी-यूएवी प्रणाली है जिसे मुख्य रूप से रणनीतिक कार्यों के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- वायु रक्षा प्रणाली:
- बराक: सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल को कम दूरी की वायु रक्षा इंटरसेप्टर के रूप में तैनात किया जा सकता है। भारत में बराक (BARAK) संस्करण को बराक-8 (नौसेना जहाज़ों के लिये) के रूप में जाना जाता है।
- मिसाइल:
- स्पाइक: ये 4 किमी. तक की रेंज वाली चौथी पीढ़ी की एंटी-टैंक मिसाइल हैं, जिन्हें फायर-एंड-फॉरगेट मोड में संचालित किया जा सकता है।
- ये राफेल एडवांस्ड डिफेंस सिस्टम्स इज़रायल द्वारा निर्मित हैं।
- क्रिस्टल मेज: यह हवा-से-सतह पर मार करने वाली मिसाइल AGM-142A Popeye का एक भारतीय संस्करण है, जिसे संयुक्त रूप से इज़रायल स्थित राफेल और अमेरिका स्थित लॉकहीड मार्टिन द्वारा विकसित किया गया है।
- स्पाइक: ये 4 किमी. तक की रेंज वाली चौथी पीढ़ी की एंटी-टैंक मिसाइल हैं, जिन्हें फायर-एंड-फॉरगेट मोड में संचालित किया जा सकता है।
- सेंसर:
- सर्च ट्रैक एंड गाइडेंस रडार (STGR): भारत ने INS कोलकाता, INS शिवालिक और कमोर्टा-क्लास फ्रिगेट्स को BARAK-8 SAM मिसाइलों को तैनात करने हेतु अनुकूल बनाने के लिये STGR रडार का आयात किया।
- फाल्कन: इस एयरबोर्न वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम (AWACS) को भारतीय वायुसेना की ‘आई इन द स्काई’ (Eyes in the Skies) के रूप में भी जाना जाता है।
- मानव रहित विमान (यूएवी):
- भारत-इज़रायल रक्षा सहयोग का महत्त्व:
- गश्त और निगरानी: इज़रायल से आयातित उपकरण युद्ध के समय सशस्त्र बलों की संचालन क्षमता को आसान बनाता है।
- उदाहरण के लिये मिसाइल रक्षा प्रणालियों और गोला-बारूद ने भारत तथा पाकिस्तान के बीच बालाकोट हवाई हमलों के बाद उत्पन्न तनाव की स्थिति को नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- मेक इन इंडिया: निर्यात उन्मुख इज़रायली रक्षा उद्योग और संयुक्त उद्यम स्थापित करने के लिये इसका खुलापन रक्षा में 'मेक इन इंडिया' और 'मेक विद इंडिया' दोनों का पूरक है।
- विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता: इज़रायल हमेशा एक 'नो क्वेश्चन आस्किंग सप्लायर' रहा है, यानी यह अपने उपयोग की सीमा लक्षित किये बिना अपनी सबसे उन्नत तकनीक को भी स्थानांतरित करता है।
- वर्ष 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान इसकी विश्वसनीयता को बल मिला।
- गश्त और निगरानी: इज़रायल से आयातित उपकरण युद्ध के समय सशस्त्र बलों की संचालन क्षमता को आसान बनाता है।
आगे की राह
- भारत-इज़रायल-अमेरिका त्रिभुज: जैसा कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में शक्ति संतुलन बनाए रखने में संयुक्त राज्य अमेरिका भारत के लिये प्रमुख भूमिका निभाता है, जिसके परिणामस्वरूप भविष्य में अधिक प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरणीय होने की संभावना है।
- भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक समझ में सुधार के साथ इन प्रौद्योगिकियों को सेना के विभिन्न विभागों में लचीले ढंग से तैनात किया जा सकता है।
- संयुक्त उद्यमों को बढ़ाना: भारत-इज़रायल रक्षा सहयोग को संयुक्त उद्यमों (Joint Ventures) और संयुक्त अनुसंधान एवं विकास (R&D) के संदर्भ में बढ़ाया जाना चाहिये जो एक प्रमुख वैश्विक शक्ति बनने की भारत की महत्त्वाकांक्षा को वास्तविक रूप देने हेतु एक बल गुणक हो सकता है।
- तकनीकी विशेषज्ञता का दोहन: भारत और इज़रायल के बीच रणनीतिक सहयोग की अपार संभावनाओं के साथ आगे बढ़ने के लिये तैयार है। हथियारों का व्यापार इस द्विपक्षीय जुड़ाव का आधार बना रहेगा क्योंकि दोनों देश व्यापक अभिसरण चाहते हैं।
- एक बढ़ती हुई साझेदारी के पक्ष में वैचारिक और नेतृत्व विकास के साथ भारत को एक रुग्ण स्वदेशी रक्षा उद्योग का आधुनिकीकरण करने के लिये इज़रायल की तकनीकी विशेषज्ञता का उपयोग करने का समय आ गया है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय समाज
भारत में आकस्मिक मृत्यु और आत्महत्या रिपोर्ट 2020: एनसीआरबी
प्रिलिम्स के लिये:भारत में आकस्मिक मृत्यु और आत्महत्या रिपोर्ट 2020, NCRB मेन्स के लिये:जनसंख्या और संबद्ध मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) ने भारत में दुर्घटनाओं से होने वाली मौतों और आत्महत्याओं की रिपोर्ट 2020 जारी की।
प्रमुख बिंदु
- आत्महत्या श्रेणियाँ:
- रिपोर्ट में आत्महत्याओं को नौ श्रेणियों में विभाजित किया गया है- दैनिक मज़दूर, गृहिणियों और कृषि क्षेत्र में काम करने वाले लोग, 'पेशेवर/वेतनभोगी व्यक्तियों', 'छात्रों', 'स्व-नियोजित व्यक्तियों', 'सेवानिवृत्त व्यक्तियों' के तहत सूचीबद्ध किया गया है।
- NCRB ने 2014 में ही 'दुर्घटनाग्रस्त मौतों और आत्महत्याओं' के अपने आँकड़ों में दैनिक ग्रामीणों को वर्गीकृत करना शुरू कर दिया था।
- रिपोर्ट में आत्महत्याओं को नौ श्रेणियों में विभाजित किया गया है- दैनिक मज़दूर, गृहिणियों और कृषि क्षेत्र में काम करने वाले लोग, 'पेशेवर/वेतनभोगी व्यक्तियों', 'छात्रों', 'स्व-नियोजित व्यक्तियों', 'सेवानिवृत्त व्यक्तियों' के तहत सूचीबद्ध किया गया है।
- आत्महत्याओं की संख्या:
- भारत में आत्महत्याएँ वर्ष 2019 की तुलना में वर्ष 2020 में 10% बढ़कर 1,53,052 के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुँच गईं।
- वर्ष 2014 और वर्ष 2020 के बीच आत्महत्या से मरने वालों में दैनिक वेतन भोगियों की हिस्सेदारी दोगुनी हो गई है, इसके बाद 'गृहिणियों', स्व-नियोजित व्यक्तियों, किसानों और सेवानिवृत्त व्यक्तियों का नंबर आता है।
- पेशेवर/वेतनभोगी व्यक्तियों के समूह ने आत्महत्याओं में वृद्धि दर्ज की।
- बेरोज़गार व्यक्तियों के समूह में आत्महत्याओं में वृद्धि देखी गई और उनका अनुपात वर्ष 2019 से थोड़ा बढ़ गया।
- वर्ष 2019 से दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों में कमी आई है और यह संख्या वर्ष 2010 के बाद सबसे कम है।
- कुल आत्महत्याओं में छात्रों की हिस्सेदारी पिछले कुछ वर्षों में लगातार बढ़ रही है और अब वर्ष 1995 के बाद से उच्चतम स्तर पर पहुँच गई है।
- राज्यवार विश्लेषण:
- राज्यों में सबसे खराब स्थिति महाराष्ट्र की है, जहाँ कृषि क्षेत्र में 4,006 आत्महत्याएँ हुई हैं, जिसमें कृषि श्रमिकों की आत्महत्याओं में 15% की वृद्धि शामिल है।
- खराब रिकॉर्ड वाले अन्य राज्यों में कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश शामिल हैं।
- कारण-वार विश्लेषण:
- आत्महत्या के कारणों में जो ऐसी मौतों का कम-से-कम एक प्रतिशत हैं:
- गरीबी और बेरोज़गारी में सबसे ज़्यादा वृद्धि दर्ज की गई।
- इसके बाद नशीली दवाओं का दुरुपयोग या शराब की लत, बीमारी और पारिवारिक समस्याएँ आती हैं।
- हालाँकि छात्रों की आत्महत्या से होने वाली मौतों में वृद्धि दर्ज की गई है, यह परीक्षा की तुलना में अपेक्षाकृत लंबी अवधि की संभावनाओं (शायद शिक्षा जारी रखने में असमर्थता) से संबंधित थी।
- आत्महत्या के कारणों में जो ऐसी मौतों का कम-से-कम एक प्रतिशत हैं:
- संबंधित पहल:
- मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017: इसका उद्देश्य मानसिक बीमारी वाले व्यक्तियों को मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करना है।
- किरण: सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने चिंता, तनाव, अवसाद, आत्महत्या के विचार व अन्य मानसिक स्वास्थ्य चिंताओं का सामना कर रहे लोगों को सहायता प्रदान करने के लिये 24/7 टोल-फ्री हेल्पलाइन शुरू की है।
- मनोदर्पण पहल: यह आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत शिक्षा मंत्रालय की एक पहल है। इसका उद्देश्य कोविड-19 के समय में छात्रों, परिवार के सदस्यों और शिक्षकों को उनके मानसिक स्वास्थ्य एवं कल्याण के लिये मनोसामाजिक सहायता प्रदान करना है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो
- NCRB की स्थापना केंद्रीय गृह मंत्रालय के अंतर्गत वर्ष 1986 में इस उद्देश्य से की गई थी कि भारतीय पुलिस में कानून व्यवस्था को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिये पुलिस तंत्र को सूचना प्रौद्योगिकी समाधान और आपराधिक गुप्त सूचनाएँ प्रदान करके समर्थ बनाया जा सके।
- यह राष्ट्रीय पुलिस आयोग (1977-1981) और गृह मंत्रालय के कार्य बल (1985) की सिफारिशों के आधार पर स्थापित किया गया था।
- NCRB देश भर में अपराध के वार्षिक व्यापक आँकड़े ('भारत में अपराध' रिपोर्ट) एकत्रित करता है।
- वर्ष 1953 से प्रकाशित होने के बाद यह रिपोर्ट देश भर में कानून और व्यवस्था की स्थिति को समझने में एक महत्त्वपूर्ण उपकरण के रूप में कार्य करती है।
- NCRB के दूसरे सीसीटीएनएस हैकथॉन और साइबर चैलेंज 2020-21 का उद्घाटन समारोह नई दिल्ली में आयोजित किया गया।
स्रोत: द हिंदू
सामाजिक न्याय
मनरेगा में फंड की कमी
प्रिलिम्स के लिये:मनरेगा, राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय मेन्स के लिये:मनरेगा से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
केंद्र की प्रमुख ग्रामीण रोज़गार योजना (मनरेगा) वित्तीय वर्ष के आधी अवधि के दौरान ही समाप्त हो गई है। इसका अभिप्राय यह है कि जब तक राज्य अपने स्वयं के फंड/निधि का उपयोग नहीं करते तब तक मनरेगा श्रमिकों के भुगतान के साथ-साथ सामग्री की लागत प्रदान करने में देरी होगी।
- इससे पूर्व सरकार ने विभिन्न जनसंख्या समूहों के लिये फंड के निचले स्तर को सही ढंग से प्रतिबिंबित करने हेतु इस चालू वित्तीय वर्ष (2021-22) से लागू किये गए अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य के लिये श्रेणी-वार वेतन भुगतान प्रणाली की शुरुआत की।
प्रमुख बिंदु
- मनरेगा योजना:
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, जिसे पहले राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम के रूप में जाना जाता था, को भारत में रोज़गार सृजन और सामाजिक सुरक्षा बढ़ाने के लिये वर्ष 2005 में पारित किया गया था।
- यह योजना एक मांग-संचालित मज़दूरी रोजगार योजना है, जो ग्रामीण विकास मंत्रालय के अधीन कार्य करती है।
- ग्रामीण क्षेत्र में एक परिवार के प्रत्येक वयस्क सदस्य जिसके पास जॉब कार्ड है, योजना के तहत नौकरी के लिये पात्र है।
- इस योजना में वयस्क सदस्य स्वयंसेवकों को अकुशल शारीरिक कार्य के लिये एक वित्तीय वर्ष में 100 दिनों की गारंटीकृत रोज़गार प्रदान करने की परिकल्पना की गई है।
- इसमें 100% शहरी आबादी वाले ज़िलों को छोड़कर भारत के सभी ज़िलों को शामिल किया गया है।
- सूखे/प्राकृतिक आपदा अधिसूचित ग्रामीण क्षेत्रों में अतिरिक्त 50 दिनों के अकुशल मज़दूरी रोज़गार का भी प्रावधान है।
- मनरेगा की धारा 3(4) के अनुसार, राज्य अपने स्वयं के फंड से अधिनियम के तहत गारंटीकृत अवधि से अधिक अतिरिक्त दिन रोज़गार प्रदान करने का प्रावधान कर सकते हैं।
- मनरेगा से संबंधित मुद्दे:
- कम मज़दूरी दर
- वर्तमान में 21 प्रमुख राज्यों में से कम-से-कम 17 की मनरेगा मज़दूरी दर कृषि के लिये राज्य की न्यूनतम मज़दूरी से भी कम है। यह कमी न्यूनतम वेतन के 2-33% की सीमा में है।
- राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) के वर्ष 2017 केआँकड़ों से पता चलता है कि सामान्य खेतिहर मज़दूरों हेतु औसत दैनिक मज़दूरी पुरुषों के लिये 264.05 रुपए और महिलाओं के लिये 205.32 रुपए है।
- नाममात्र की मज़दूरी या कम मज़दूरी दरों के परिणामस्वरूप मनरेगा योजनाओं में काम करने के लिये श्रमिकों में कम रुचि देखी गई है, जिससे ठेकेदारों और बिचौलियों को स्थानीय स्तर पर नियंत्रण करने का अवसर मिल जाता था।
- अपर्याप्त वित्तपोषण:
- धन की कमी के कारण राज्य सरकारों को मनरेगा के तहत रोज़गार की मांग को पूरा करने में मुश्किल होती है।
- मज़दूरी के भुगतान में देरी:
- अधिकांश राज्य मनरेगा द्वारा अनिवार्य रूप से 15 दिनों के भीतर मज़दूरी का भुगतान करने में विफल रहे हैं। साथ ही वेतन भुगतान में देरी के लिये श्रमिकों को मुआवज़ा नहीं दिया जाता है।
- इसने योजना को आपूर्ति आधारित कार्यक्रम में बदल दिया है और बाद में श्रमिकों ने इसके तहत काम करने में कम रुचि लेना शुरू कर दिया था।
- सर्वोच्च न्यायालय के वर्ष 2016 के एक फैसले ने मनरेगा के तहत लंबित मज़दूरी भुगतान को "राज्य द्वारा किया गया एक स्पष्ट संवैधानिक उल्लंघन" और "बेगार का एक आधुनिक रूप" बताया।
- अधिकांश राज्य मनरेगा द्वारा अनिवार्य रूप से 15 दिनों के भीतर मज़दूरी का भुगतान करने में विफल रहे हैं। साथ ही वेतन भुगतान में देरी के लिये श्रमिकों को मुआवज़ा नहीं दिया जाता है।
- PRI की अप्रभावी भूमिका:
- बहुत कम स्वायत्तता के कारण ग्राम पंचायतें इस अधिनियम को प्रभावी और कुशल तरीके से लागू करने में सक्षम नहीं हैं।
- अधूरे कार्यों की अधिक संख्या :
- मनरेगा के तहत कार्यों को पूरा करने में देरी हुई है और परियोजनाओं का निरीक्षण अनियमित रहा है। साथ ही मनरेगा के तहत काम की गुणवत्ता व संपत्ति निर्माण का मुद्दा भी एक प्रमुख समस्या रही है।
- जॉब कार्ड का निर्माण:
- फर्जी जॉब कार्ड, फर्जी नामों को शामिल करना, लापता प्रविष्टियाँ और जॉब कार्ड में प्रविष्टियाँ करने में देरी से संबंधित कई मुद्दे हैं।
- कम मज़दूरी दर
आगे की राह
- सुनिश्चित रोज़गार प्रदान करना:
- सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि मांग के बावजूद रोज़गार प्रदान किया जाए।
- सरकार को योजना का विस्तार करने और मूल्य संवर्द्धन पर ध्यान देना चाहिये तथा सामुदायिक संसाधनों को बढ़ाना चाहिये।
- योजना को सुदृढ़ बनाना:
- विभिन्न सरकारी विभागों तथा कार्य के आवंटन और मापन के तंत्र के बीच बेहतर समन्वय की आवश्यकता है।
- यह हाल के वर्षों में सबसे अच्छी कल्याणकारी योजनाओं में से एक है, इसने ग्रामीण क्षेत्र के गरीबों की मदद की है। हालाँकि सरकारी अधिकारियों को बिना काम को अवरुद्ध किये योजना को लागू करने के लिये पहल करनी चाहिये।
- जेंडर वेज़ गैप:
- भुगतान में कुछ विसंगतियों को भी दूर करने की आवश्यकता है। इस क्षेत्र की महिलाएँ अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में औसतन 22.24% कम कमाती हैं।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
राष्ट्रव्यापी न्यूमोकोकल कॉन्जुगेट वैक्सीन अभियान
प्रिलिम्स के लिये:न्यूमोकोकल कॉन्जुगेट वैक्सीन, निमोनिया, सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम, आज़ादी का अमृत महोत्सव, मिशन इंद्रधनुष मेन्स के लिये:सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम के तहत न्यूमोकोकल कॉन्जुगेट वैक्सीन (PCV) के राष्ट्रव्यापी विस्तार के लाभ एवं भारत में स्वास्थ्य संबंधी सुधार |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने निमोनिया के कारण 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर को कम करने के उद्देश्य से न्यूमोकोकल 13-वैलेंट कॉन्जुगेट वैक्सीन (PCV) का राष्ट्रव्यापी विस्तार का कार्य शुरू किया है।
- इसे 'आज़ादी का अमृत महोत्सव' के भाग के रूप में सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (UIP) के तहत लॉन्च किया गया था।
- यह देश में पहली बार था कि पीसीवी सार्वभौमिक उपयोग के लिये उपलब्ध होगा।
प्रमुख बिंदु
- न्यूमोकोकल कॉन्जुगेट वैक्सीन (PCV):
- एक न्यूमोकोकल कॉन्जुगेट वैक्सीन जिसमें स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनिया जीवाणु के 13 अलग-अलग स्ट्रेन होते हैं, का इस्तेमाल बच्चों में न्यूमोकोकल रोग की रोकथाम और प्रतिरक्षा प्रणाली वाले रोगियों के अध्ययन में किया जाता है।
- कॉन्जुगेट वैक्सीन को दो अलग-अलग घटकों के संयोजन का उपयोग करके बनाया जाता है।
- एक न्यूमोकोकल कॉन्जुगेट वैक्सीन जिसमें स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनिया जीवाणु के 13 अलग-अलग स्ट्रेन होते हैं, का इस्तेमाल बच्चों में न्यूमोकोकल रोग की रोकथाम और प्रतिरक्षा प्रणाली वाले रोगियों के अध्ययन में किया जाता है।
- न्यूमोकोकल रोग:
- परिचय: यह स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनिया के कारण होने वाला एक जीवाणु संक्रमण है, जिसे कभी-कभी न्यूमोकोकस के रूप में जाना जाता है।
- लक्षण: ये बैक्टीरिया कई तरह की बीमारियों का कारण बन सकते हैं, जिनमें निमोनिया भी शामिल है, जो एक प्रकार का फेफड़ों का संक्रमण है। न्यूमोकोकल बैक्टीरिया निमोनिया के सबसे सामान्य कारणों में से एक है।
- सुभेद्य जनसंख्या: 2 वर्ष से कम उम्र के बच्चे, विशेष चिकित्सीय स्थितियों वाले लोग, 65 वर्ष या उससे अधिक उम्र के वयस्क और सिगरेट पीने वालों को इससे सबसे अधिक जोखिम होता है।
- भारत में स्थिति: भारत में लगभग 16% बच्चों की मृत्यु निमोनिया के कारण होती है।
- निमोनिया संक्रामक है और खाँसने या छींकने से फैल सकता है। यह तरल पदार्थों जैसे बच्चे के जन्म के दौरान रक्त और दूषित सतहों के माध्यम से भी फैल सकता है।
- सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (UIP):
- शुरुआत:
- भारत में टीकाकरण कार्यक्रम को वर्ष 1978 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा 'प्रतिरक्षण के विस्तारित कार्यक्रम (EPI)' के रूप में प्रस्तुत किया गया था।
- वर्ष 1985 में कार्यक्रम को 'सार्वभौमिक प्रतिरक्षण कार्यक्रम (UIP)' के रूप में संशोधित किया गया था।
- कार्यक्रम का उद्देश्य:
- तीव्र टीकाकरण कवरेज़,
- सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार,
- स्वास्थ्य सुविधा स्तर पर विश्वसनीय कोल्ड चेन सिस्टम स्थापित करना,
- प्रदर्शन की निगरानी के लिये ज़िलेवार प्रणाली की शुरुआत
- वैक्सीन उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना।
- विशेषताएँ:
- UIP वैक्सीन-रोकथाम योग्य 12 बीमारियों के खिलाफ बच्चों और गर्भवती महिलाओं में मृत्यु दर तथा रुग्णता को रोकती है। अतीत में यह देखा गया कि प्रतिरक्षण कवरेज़ में वृद्धि की दर धीमी हो गई और वर्ष 2009 से वर्ष 2013 के बीच इसमें प्रतिवर्ष 1% की दर से वृद्धि देखी गई थी।
- राष्ट्रीय स्तर पर 10 बीमारियों के खिलाफ प्रतिरक्षा - डिप्थीरिया, पर्टुसिस, टेटनस, पोलियो, खसरा, रूबेला, बचपन में तपेदिक का गंभीर रूप, रोटावायरस डायरिया, हेपेटाइटिस बी और मेनिनजाइटिस व हीमोफिलस इन्फ्लुएंज़ा टाइप बी के कारण होने वाला निमोनिया।
- उप-राष्ट्रीय स्तर पर 2 बीमारियों के खिलाफ- न्यूमोकोकल न्यूमोनिया और जापानी एन्सेफलाइटिस जिनमें से न्यूमोकोकल कॉन्जुगेट वैक्सीन का राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार किया गया है,जबकि जेई वैक्सीन केवल स्थानिक ज़िलों में उपलब्ध कराई जाती है।
- कवरेज में तेज़ी लाने के लिये मिशन इंद्रधनुष की परिकल्पना की गई थी तथा इसका कार्यान्वयन वर्ष 2015 से किया गया था ताकि पूर्ण टीकाकरण कवरेज़ को 90% तक बढ़ाया जा सके।
- हाल ही में उन बच्चों और गर्भवती महिलाओं को कवर करने के लिये सघन मिशन इंद्रधनुष (IMI) 3.0 योजना शुरू की गई है, जो कोविड-19 महामारी के दौरान नियमित टीकाकरण से वंचित रह गए थे
- UIP वैक्सीन-रोकथाम योग्य 12 बीमारियों के खिलाफ बच्चों और गर्भवती महिलाओं में मृत्यु दर तथा रुग्णता को रोकती है। अतीत में यह देखा गया कि प्रतिरक्षण कवरेज़ में वृद्धि की दर धीमी हो गई और वर्ष 2009 से वर्ष 2013 के बीच इसमें प्रतिवर्ष 1% की दर से वृद्धि देखी गई थी।
- शुरुआत: