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विशेष: पोखरण-2: 'बुद्ध की मुस्कान' के 20 बरस

  • 12 May 2018
  • 19 min read

संदर्भ एवं पृष्ठभूमि
वर्ष 1998 में भारत ने आज से 20 साल पहले 11 मई को राजस्थान के पोखरण में परमाणु परीक्षण कर दुनिया को चौंका दिया था। अचानक किये गए इन परमाणु परीक्षणों से अमेरिका, पाकिस्तान सहित सभी देश अचंभित रह गए थे। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की अगुआई में यह मिशन कुछ इस तरह से अंजाम दिया गया कि अमेरिका समेत पूरी दुनिया को इसकी भनक तक नहीं लगी। 

  • इससे पहले 1974 में भारत ने अपना पहला परमाणु परीक्षण (पोखरण-1) कर दुनिया को भारत की ताकत का लोहा मनवाया था। इसके बाद अंतरराष्ट्रीय जगत में भारत का स्थान और उसकी साख एक मजबूत राष्ट्र के तौर पर उभरी।

पोखरण-1
18 मई, 1974 की सुबह आकाशवाणी के दिल्ली केंद्र पर चल रहे फिल्मी गीतों के प्रोग्राम को अचानक ही बीच में रोककर उद्घोषणा हुई...कृपया एक महत्त्वपूर्ण प्रसारण की प्रतीक्षा करें। कुछ ही क्षण पश्चात् उद्घोषक का स्वर गूँज उठा... "आज सुबह 8.05 पर पश्चिमी भारत के एक अज्ञात स्थान पर शांतिपूर्ण कार्यों के लिये भारत ने एक भूमिगत परमाणु परीक्षण किया है।" इस परीक्षण से पाँच दिन पहले 13 मई को परमाणु ऊर्जा आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष होमी सेठना की देखरेख में भारत के परमाणु वैज्ञानिकों ने परमाणु डिवाइस को असेंबल करना शुरू किया था और 14 मई की रात डिवाइस को अंग्रेज़ी अक्षर एल की शक्ल में बने शाफ्ट में पहुँचा दिया गया था। यह था भारत का पहला परमाणु परीक्षण जो थार मरुस्थल में जैसलमेर से 110 किमी. दूर पोखरण के निकट बुद्ध पूर्णिमा के दिन 18 मई को निर्जन क्षेत्र में किया गया था। शायद इसीलिये पोखरण-1 को 'बुद्ध की मुस्कान' (Buddha is Smiling) कोड नाम दिया गया था। परीक्षण के लिये पोखरण को इसलिये चुना गया था क्योंकि यहाँ से मानव बस्ती बहुत दूर थी।

(टीम दृष्टि इनपुट)

पोखरण-2

  • आज से 20 साल पहले और पोखरण-1 के लगभग 24 साल बाद भारत ने पोखरण में ही 11 मई और 13 मई 1998 को पांच परमाणु परीक्षण किये। 
  • इससे पहले 10 मई की रात को योजना को अंतिम रूप देते हुए इस ऑपरेशन को 'ऑपरेशन शक्ति' नाम दिया गया। 
  • 11 मई को किये गए पहले परीक्षण ने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया। अचानक किये गए इन परमाणु परीक्षणों से अमेरिका, पाकिस्तान समेत कई देश दंग रह गए थे। 
  • इस ऑपरेशन को पूरा किया गया था तत्कालीन प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार और डीआरडीओ के प्रमुख डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के नेतृत्व में, जो बाद में देश के राष्ट्रपति बने।
  • 11 मई को हुए परमाणु परीक्षण में 15 किलोटन का विखंडन (Fission) उपकरण और 0.2 किलोटन का सहायक उपकरण शामिल था। 
  • इन परमाणु परीक्षणों के बाद जापान और अमेरिका सहित कई बड़े प्रमुख देशों ने भारत पर विभिन्न प्रकार के प्रतिबंध लगा दिये। 
  • तब एकमात्र इज़राइल ही ऐसा देश था, जिसने भारत के इस परीक्षण का समर्थन किया था।
  • 11 मई, 1998 को किये गए परमाणु परीक्षण के उपलक्ष्य में इस दिन (11 मई) को आधिकारिक तौर पर भारत में राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस के रूप में घोषित किया गया। 

जवाब में बना पाकिस्तान  का परमाणु बम 
इन परीक्षणों के ठीक 17 दिन बाद पाकिस्तान ने 28 व 30 मई, 1998 को चगाई-1 व चगाई-2 के नाम से अपने परमाणु परीक्षण किये। 

उल्लेखनीय है कि पाकिस्तानी परमाणु बम के सूत्रधार पूर्व प्रधानमंत्री ज़ुल्फिकार अली भुट्टो ने जब 70 के दशक में इन पर काम शुरू किया था तो इसे इस्लामी बम का नाम दिया था। 1971 में भारत के हाथों युद्ध में पराजय  और बांग्लादेश की स्थापना के बाद ज़ुल्फिकार अली भुट्टो ने पाकिस्तान की सत्ता संभाली थी। बाद में 5 जुलाई, 1977 को उनके सेनाध्यक्ष जनरल ज़िया उल हक ने उन्हें प्रधानमंत्री के पद से हटाकर रावलपिंडी जेल में बंद कर दिया था तथा 4 अप्रैल, 1979 को फाँसी दे दी थी। जेल में बंद भुट्टो ने एक किताब लिखी थी, जिसका नाम था 'इफ आई एम असेसिनेटेड'। इसमें उन्होंने विस्तार से बताया था कि किस तरह पाकिस्तानी बम की शुरुआत हुई। इसी किताब में एक स्थान पर उन्होंने लिखा है...'हम घास खाएंगे, लेकिन बम ज़रूर बनाएंगे।'

(टीम दृष्टि इनपुट)

पूर्ण गोपनीयता और सावधानी बरती गई थी 

  • अमेरिकी गुप्तचर एजेंसी CIA भारत पर नज़र रखे हुए थी और उसने पोखरण पर निगरानी रखने के लिये चार उपग्रह तैनात किये थे। 
  • इस प्रोजेक्ट के साथ जुड़े वैज्ञानिक कुछ इस कदर सतर्कता बरत रहे थे कि वे एक-दूसरे से भी कोड भाषा में बात करते थे और एक-दूसरे को छद्म नामों से बुलाते थे। 
  • परीक्षण वाले दिन सभी को सेना की वर्दी में परीक्षण स्थल पर ले जाया गया था ताकि गुप्तचर एजेंसी को लगे कि सेना के जवान ड्यूटी दे रहे हैं। 'मिसाइलमैन' अब्दुल कलाम भी सेना की वर्दी में वहाँ मौजूद थे। 
  • तड़के लगभग 3 बजे परमाणु बमों को सेना के 4 ट्रकों के ज़रिये ट्रांसफर किया गया। इससे पहले इन्हें मुंबई से भारतीय वायु सेना के विमान से जैसलमेर एयर बेस लाया गया था। 
  • वैज्ञानिकों ने इस मिशन को पूरा करने के लिये रेगिस्तान में बड़े गड्ढे खोदे और इनमें परमाणु बम रखे गए। इन गड्ढों पर बालू के पहाड़ बनाए गए जिनसे मोटे-मोटे तार बाहर निकले हुए थे। 
  • जब विस्फोट किया गया तो आसमान में रेत का गुबार उठा और विस्फोट की जगह पर एक बड़ा गड्ढा बन गया। इससे कुछ दूरी पर खड़ा 20 वैज्ञानिकों का समूह पूरे घटनाक्रम पर नज़र रखे हुए था।
  • पोखरण परीक्षण रेंज पर 5 परमाणु बमों के परीक्षणों से भारत पहला ऐसा परमाणु शक्ति संपन्न देश बन गया, जिसने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किये थे। 
  • परीक्षण के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने घोषणा की थी, 'आज, 15.45 बजे भारत ने पोखरण रेंज में तीन भूमिगत परमाणु परीक्षण किये।' 
  • प्रधानमंत्री स्वयं परीक्षण स्थल पर मौजूद थे और 'मिसाइलमैन' अब्दुल कलाम ने परीक्षण सफल होने की घोषणा की थी। 

परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह क्या है?
लगभग सभी प्रमुख अंतरराष्ट्रीय संगठनों/समूहों की सदस्यता भारत को मिल चुकी है, लेकिन परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (Nuclear Suppliers Group-NSG) की सदस्यता के लिये लंबे समय से प्रयासरत रहने के बावजूद चीन के सक्रिय विरोध के कारण भारत इस समूह का सदस्य नहीं बन पाया है। 

  • चीन अंतरराष्ट्रीय परमाणु व्यापार को नियंत्रित करने के उद्देश्य से 48-सदस्यीय एनएसजी के विस्तार के लिये समान मानदंड-आधारित दृष्टिकोण का समर्थन करता है। 
  • भारत ने 2008 में एनएसजी की सदस्यता के लिये आवेदन किया था, लेकिन इस पर अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है।
  • इसका लक्ष्य परमाणु सामग्री, तकनीक एवं उपकरणों के निर्यात को नियंत्रित करना है। 
  • परमाणु हथियार बनाने के लिये इस्तेमाल की जाने वाली सामग्री की आपूर्ति से लेकर नियंत्रण तक सभी इसी के दायरे में आते हैं।
  • एनएसजी परमाणु प्रौद्योगिकी और हथियारों के वैश्विक निर्यात पर नियंत्रण रखता है। 
  • एनएसजी यह भी सुनिश्चित करता है कि परमाणु ऊर्जा का उपयोग केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये ही किया जाए।
  • उल्लेखनीय है कि इसका गठन 1974 में भारत के परमाणु परीक्षण की प्रतिक्रियास्वरूप किया गया था।

(टीम दृष्टि इनपुट)

क्यों ज़रूरी थे 1998 में परमाणु परीक्षण?
यह वह समय था जब दुनिया में परमाणु अप्रसार संधि को लेकर चर्चाएं जोरों पर थीं। देश के प्रमुख परमाणु वैज्ञानिक अनिल काकोडकर के मुताबिक वह समय भारत के लिये फैसले की घड़ी थी। अगर भारत बिना परमाणु शक्ति बने सीटीबीटी पर हस्ताक्षर कर देता, तो फिर उसे परमाणु परीक्षण करने का मौका कभी नहीं मिलता; और यदि भारत हस्ताक्षर करने से मना करता तो उससे पूछा जाता कि वह परमाणु हथियारों पर पाबंदी से पीछे क्यों हट रहा है। 

लगाए गए थे प्रतिबंध
आज जिस प्रकार अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देश ईरान के परमाणु कार्यक्रम को मुद्दा बनाकर उसके खिलाफ प्रतिबंध लगाते-हटाते रहते हैं, ठीक उसी प्रकार पोखरण-2 के बाद भारत पर भी प्रतिबंधों की बाढ़ सी आ गई थी। इस परीक्षण के बाद भारत के सामने कई मुसीबतें एक साथ आ गईं और आर्थिक, सैन्य प्रतिबंध लगाकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसे अलग-थलग कर दिया गया। भारतीय विदेश नीति निर्धारकों के लिये यह एक बड़ी चुनौती थी, जिसका काफी लंबे समय तक सामना करना पड़ा।

भारत के प्रधानमंत्री का पत्र अमेरिकी राष्ट्रपति के नाम 
परमाणु परीक्षण के तुरंत बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन को पत्र लिखा था, 'पिछले कई साल से भारत के इर्द-गिर्द सुरक्षा संबंधी माहौल, विशेषकर परमाणु सुरक्षा से जुड़े माहौल के लगातार बिगड़ने से मैं चिंतित हूं। हमारी सीमा पर एक आक्रामक परमाणु शक्ति संपन्न देश है...एक ऐसा देश जिसने 1962 में भारत पर हमला कर दिया था। हालाँकि उस देश के साथ पिछले एक दशक में भारत के संबंध सुधर गए हैं, लेकिन अविश्वास की स्थिति बनी हुई है, जिसकी मुख्य वज़ह अनसुलझा सीमा विवाद है।' भारत के खिलाफ अमेरिका प्रतिबंध न लगाए, इस ओर संकेत करते हुए भारतीय प्रधानमंत्री ने बिल क्लिंटन को लिखा था, 'हम आपके देश के साथ अपने मैत्री और सहयोग की कद्र करते हैं। मुझे लगता है कि भारत की सुरक्षा के प्रति हमारी चिंता को आप समझ पाएंगे।'

(टीम दृष्टि इनपुट)

लेकिन अमेरिका वही सोच रहा था, जिसका अंदेशा पहले से ही था...प्रतिबंध। 

  • परमाणु परीक्षण के फौरन बाद अमेरिका ने विदेश सचिव स्तर की वार्ता को सस्पेंड कर दिया। 
  • दो वर्षों के दौरान अमेरिका ने लगभग 200 से ज्यादा कंपनियों को प्रतिबंधों की सूची में डाला।
  • इस सूची में परमाणु ऊर्जा विभाग, डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (डीआरडीओ) और डिपार्टमेंट ऑफ स्पेस की कंपनियों का नाम शामिल था।
  • इनके साथ ही कई ऐसी निजी फर्मों को भी प्रतिबंधित कर दिया गया जो उनके साथ पहले से काम कर रहे थे।
  • उस वक्त की सबसे पहली और बड़ी चुनौती भारत के सामने यही थी कि अंतरराष्ट्रीय असंतोष को कम करके अमेरिका के विश्वास में आए अंतर को कैसे कम किया जाए। 

परीक्षण क्यों? और उनके बाद प्रतिबद्धता 

  • भारत पर परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर करने का दबाव बढ़ गया था 
  • अंतरराष्ट्रीय जगत में भारत का पक्ष मज़बूती से सामने रखना 
  • विश्वसनीय न्यूनतम सुरक्षा उपायों के लिये ये परीक्षण किये गए
  • पड़ोसी देशों से बढती सुरक्षा चुनौतियों के लिये आवश्यक हो गया था परीक्षण करना 
  • न्यूनतम भयादोहन और खुद की सुरक्षा के लिये ज़रूरी था ऐसा करना 
  • वैज्ञानिकों और सेना का मत था कि परमाणु शक्ति हासिल किये बिना शत्रु को रोकना संभव नहीं हो पाएगा 
  • 1962 में चीन और 1965 एवं 1971 में पाकिस्तान से युद्ध के बाद देश की सुरक्षा के लिये यह आवश्यक हो गया था 
  • युद्ध की स्थिति में भारत पहले परमाणु अस्त्रों का प्रयोग नहीं करेगा
  • गैर-परमाणु राष्ट्रों के खिलाफ परमाणु अस्त्रों का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा
  • भारत भविष्य में किये जाने वाले परमाणु परीक्षणों पर अस्थायी रोक लगाएगा 

परमाणु अप्रसार संधि क्या है?

  • परमाणु अप्रसार संधि (Non Proliferation Treaty-NPT) परमाणु हथियारों का विस्तार रोकने और परमाणु तकनीक के शांतिपूर्ण ढंग से इस्तेमाल को बढ़ावा देने के अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों का एक हिस्सा है। 
  • एनपीटी 1970 में अस्तित्व में आई थी और अब तक संयुक्त राष्ट्र संघ के 188 सदस्य देशों ने इसके पक्ष में समर्थन दिया है।
  • इस संधि पर हस्ताक्षर करने वाले देश भविष्य में परमाणु हथियार विकसित नहीं कर सकते। 
  • भारत, पाकिस्तान, इज़राइल, उत्तरी कोरिया और दक्षिण सूडान संयुक्त राष्ट्र के ऐसे सदस्य देश हैं, जिन्होंने एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं। 
  • हालाँकि ये देश शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन इसकी निगरानी अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के पर्यवेक्षक करते हैं। 

बिग 5 क्लब
इस संधि को जब 1970 में लागू किया गया तो इसका उद्देश्य परमाणु हथियारों को उन पाँच देशों तक सीमित रखना था, जो यह स्वीकार करते थे कि उनके पास ऐसे हथियार हैं। ये पाँच देश थे--अमेरिका, तत्कालीन सोवियत संघ (वर्तमान रूस), चीन, ब्रिटेन और फ्राँस। हालाँकि चीन और फ्राँस ने इस संधि पर 1992 में हस्ताक्षर किये थे। ये पाँच 'परमाणु हथियार संपन्न' राष्ट्र संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य हैं और इस संधि के तहत इस बात से बंधे हुए है कि 'गैर-परमाणु' देशों को न तो हथियार देंगे और न ही इन्हें हासिल करने में उनकी मदद करेंगे। 

भारत क्यों नहीं करता इस पर हस्ताक्षर?: भारत लंबे समय से पाँच देशों के इस परमाणु एकाधिकार की आलोचना करता रहा है और इसी के विरोध में इस पर हस्ताक्षर करने से इनकार करता रहा है।

निष्कर्ष: हाल ही में 1998 के परमाणु परीक्षण पर एक फिल्म भी बनी है...'परमाणु: द स्टोरी ऑफ पोखरण'। इससे पता चलता है कि पोखरण-2 का स्वतंत्र भारत के इतिहास में क्या महत्त्व है। इस परमाणु विस्फोट ने भारत को विश्व में बतौर परमाणु संपन्न राष्ट्र स्थापित कर दिया था। भारत के महान वैज्ञानिक और पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम का कहना था कि ‘सपने वे नहीं जो सोते हुए देखे जाएं, बल्कि सपने वे हैं जो इंसान को सोने न दें।’ डॉ. कलाम के नेतृत्व में ही भारत ने अपना दूसरा परमाणु परीक्षण किया था। अपने वैज्ञानिकों की दक्षता और कड़ी मेहनत की वज़ह से आज भारत की गिनती परमाणु शक्ति संपन्न देशों में होती है। भारत की परमाणु शक्ति संपन्नता किसी देश को धमकाने के लिये नहीं, बल्कि देश की सुरक्षा के लिये है, जिसे शायद ही कभी इस्तेमाल किया जाए। लेकिन परमाणु बम बनाकर भारत ने यह ज़रूर साबित कर दिया है कि वह किसी से कम नहीं है। 

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