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जैव विविधता और पर्यावरण

उत्सर्जन गैप रिपोर्ट, 2020

  • 11 Dec 2020
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme- UNEP) द्वारा  उत्सर्जन गैप रिपोर्ट, 2020 (Emissions Gap Report, 2020) जारी की गई है।

  • UNEP की वार्षिक रिपोर्ट अनुमानित उत्सर्जन और स्तरों के मध्य अंतर को मापती है ताकि पेरिस समझौते के लक्ष्यों के अनुरूप इस सदी में वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तर (Pre-Industrial level) से 2 डिग्री सेल्सियस कम रखा जा सके।

प्रमुख बिंदु:

वर्ष 2019 के लिये विश्लेषण:

  • रिकॉर्ड उच्च ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन: 
    • यदि रिपोर्ट में दिये आँकड़ों पर गौर करें तो लगातार तीसरे वर्ष ग्लोबल ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि दर्ज की गई है। जो वर्ष 2019 में बढ़कर अब तक के रिकॉर्ड स्तर 59.1 गीगाटन (ग्रीन हाउस गैस + भूमि उपयोग में आया परिवर्तन) पर पहुँच चुकी है।
    • ऐसे कुछ संकेत मिले हैं जो कि वैश्विक GHG उत्सर्जन में धीमी वृद्धि को दर्शाते हैं।
      • हालाँकि आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (Organisation of Economic Cooperation and Development- OECD) अर्थव्यवस्थाओं में GHG उत्सर्जन में गिरावट आ रही है, जबकि गैर- OECD अर्थव्यवस्थाओं में वृद्धि हो रही है। 
  • दर्ज कार्बन उत्सर्जन:
    • जीवाश्म कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन (जीवाश्म ईंधन और कार्बोनेट से) कुल GHG उत्सर्जन में अधिक है।
    • वर्ष 2019 में जीवाश्म CO2 उत्सर्जन रिकॉर्ड 38.0 GtCO2 तक पहुँच गया।
  • वनाग्नि के कारण GHG उत्सर्जन में वृद्धि :
    • वर्ष 2010 के बाद से वैश्विक GHG उत्सर्जन औसतन प्रतिवर्ष 1.4% बढ़ा है, वर्ष 2019 में वनाग्नि की घटनाओं में वृद्धि के कारण इसमें 2.6% अधिक की  वृद्धि हुई है।
  • G20 देशों द्वारा भारी मात्रा में उत्सर्जन: 
    • पिछले एक दशक में शीर्ष चार उत्सर्जक देशों (चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका, EU27 + यूनाइटेड किंगडम और भारत) ने भूमि उपयोग में परिवर्तन (Land Use Changes -LUC) के बिना कुल GHG उत्सर्जन में 55% का योगदान दिया है।
    • शीर्ष सात उत्सर्जकों (रूसी संघ, जापान और अंतर्राष्ट्रीय ट्रासंपोर्ट सहित) ने 65% योगदान दिया है, जिसमें G20 सदस्यों का 78% हिस्सा है। 
      • प्रति व्यक्ति उत्सर्जन को शामिल करने पर देशों की रैंकिंग बदल जाती है।
  • खपत-आधारित उत्सर्जन: 
    • दोनों प्रकार के उत्सर्जन में समान दरों पर गिरावट आई है
    • एक सामान्य प्रवृत्ति है कि समृद्ध देशों में क्षेत्र-आधारित उत्सर्जन की तुलना में  खपत-आधारित उत्सर्जन (उत्सर्जन उस देश को आवंटित किया जाता है जहाँ वस्तुओं का उत्पादन न करके उनका क्रय और उपभोग किया जाता है) उच्च होता है, क्योंकि उनके यहाँ आमतौर पर क्लीनर उत्पादन, अपेक्षाकृत अधिक सेवाएँ और प्राथमिक तथा माध्यमिक उत्पादों का आयात अधिक होता है।

महामारी का प्रभाव:

  • उत्सर्जन स्तर: गैर-CO2 के कम प्रभावित होने की संभावना के चलते GHG उत्सर्जन में गिरावट की आशा के साथ वर्ष 2019 के उत्सर्जन स्तरों की तुलना में वर्ष 2020 में CO2 उत्सर्जन में लगभग 7% की कमी आ सकती है।
  • GHG जैसे- मीथेन (CH4) और नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) उत्सर्जन के परिणामस्वरूप वायुमंडलीय सांद्रता में वर्ष 2019 और 2020 में वृद्धि जारी रही।
  • महामारी के कारण उत्सर्जन में सबसे कम गिरावट दर्ज करने वाले क्षेत्र:
    • सबसे बड़ा बदलाव सीमित गतिशीलता के चलते ट्रांसपोर्ट के क्षेत्र में हुआ है, हालाँकि अन्य क्षेत्रों में भी कटौती हुई है।

मुद्दे और संभावित समाधान:

  • विश्व अभी भी इस सदी में 3°C से अधिक तापमान वृद्धि की ओर बढ़ रहा है।
    • पेरिस समझौते के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य 2°C के लिये मौजूदा कोशिशों के मुक़ाबले कार्यवाही को तिगुना और 1.5°C के लक्ष्य हेतु प्रयासों में पाँच गुना तीव्रता होनी चाहिये।
  • वैश्विक तापमान में 3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि दुनिया भर में मौसम से संबंधित भयावह घटनाओं का कारण बन सकता है।
    • संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों का मानना है कि कोविड-प्रेरित आर्थिक मंदी का सामना कर रहे देशों के लिये इससे बचने का तरीका ग्रीन रिकवरी नीतियों और कार्यक्रमों  को प्रोत्साहित करना है।
    • संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, ग्रीन रिकवरी में शून्य उत्सर्जन तकनीक और बुनियादी ढाँचे में निवेश, जीवाश्म ईंधन सब्सिडी को कम करना, नए कोयला संयंत्रों पर रोक तथा प्रकृति आधारित समाधानों को बढ़ावा देना शामिल है।
    • इस तरह की कार्रवाई वर्ष 2030 तक अनुमानित उत्सर्जन में 25% तक की कटौती कर सकती है और पेरिस संधि में निर्धारित 2°C के दीर्घकालिक लक्ष्य को प्राप्त करने की संभावना में 66% की वृद्धि कर सकती है।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम:

  • यह संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी है। इसकी स्थापना वर्ष 1972 में मानव पर्यावरण पर स्टॉकहोम में आयोजित संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के दौरान हुई थी। 
  • इस संगठन का उद्देश्य मानव पर्यावरण को प्रभावित करने वाले सभी मामलों में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ाना तथा पर्यावरण संबंधी जानकारी का संग्रहण, मूल्यांकन एवं पारस्परिक सहयोग सुनिश्चित करना है।
  • UNEP पर्यावरण संबंधी समस्याओं के तकनीकी एवं सामान्य निदान हेतु एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य करता है। UNEP अन्य संयुक्त राष्ट्र निकायों के साथ सहयोग करते हुए सैकड़ों परियोजनाओं पर सफलतापूर्वक कार्य कर चुका है।
  • मुख्यालय: नैरोबी (केन्या) में है।
  • प्रमुख रिपोर्ट: उत्सर्जन गैप रिपोर्ट (Emission Gap Report), वैश्विक पर्यावरण आउटलुक (Global Environment Outlook), फ्रंटियर्स (Frontiers), इन्वेस्ट इनटू हेल्दी प्लेनेट (Invest into Healthy Planet)।
  • प्रमुख अभियान: बीट प्रदूषण (Beat Pollution), UN75, विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day), वाइल्ड फॉर लाइफ (Wild for Life)।

स्रोत: DTE

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