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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

इंडो-पैसिफिक क्षेत्र और भारत

  • 10 Sep 2020
  • 9 min read

Fप्रिलिम्स के लिये

इंडो-पैसिफिक क्षेत्र 

मेन्स के लिये

इंडो-पैसिफिक क्षेत्र का महत्त्व और संबंधित चुनौतियाँ, भारत और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र

चर्चा में क्यों?

इंडो-पैसिफिक यानी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के उद्देश्य से हाल ही में भारत, ऑस्ट्रेलिया और फ्रांँस के बीच त्रिपक्षीय वार्ता का आयोजन किया गया।

प्रमुख बिंदु

  • विदेश मंत्रालय द्वारा इस संबंध में जारी बयान के अनुसार, बैठक के दौरान मुख्य तौर पर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
  • इसके अलावा बैठक में कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के मद्देनज़र समुद्री सुरक्षा को बढ़ावा देने और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को अधिक लचीला बनाने पर भी चर्चा की गई।
    • समुद्री सुरक्षा सहयोग के अंतर्गत मानवीय सहायता एवं आपदा राहत, समुद्री क्षेत्र जागरूकता (MDA), पारस्परिक रसद समर्थन और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में मैत्रीपूर्ण देशों की क्षमता निर्माण में सहायता जैसे क्षेत्र शामिल हैं।
  • बैठक में तीनों पक्षों ने कोरोनावायरस महामारी के संदर्भ में उभरती चुनौतियों पर भी चर्चा की, जिसमें हिंद महासागर के देशों पर महामारी का वित्तीय प्रभाव भी शामिल है।
  • तीनों देशों ने वार्षिक आधार पर इस वार्ता को जारी रखने की भी बात की है।

महत्त्व

  • इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में फ्रांँस और ऑस्ट्रेलिया भारत के प्रमुख भागीदार हैं और इस बैठक से तीनों देशों को विगत वर्षों में द्विपक्षीय माध्यम से हासिल हुई प्रगति को और आगे बढ़ाने का अवसर प्राप्त हुआ।
  • ऑस्ट्रेलिया और फ्रांँस, इंडो-पैसिफिक तथा हिंद महासागर क्षेत्र में भारत के लिये प्रमुख रणनीतिक साझेदार के रूप में सामने आए हैं और बीते कुछ वर्षों में तीनों देशों के सहयोग में, विशेष रूप से समुद्री क्षेत्र में, काफी वृद्धि हुई है।
    • उदाहरण के लिये भारत ने दोनों देशों (फ्रांँस और ऑस्ट्रेलिया) के साथ रसद समझौते (Logistics Agreements) किये हैं।
  • ध्यातव्य है कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के आक्रामक व्यवहार का सामना करने के लिये भारत, फ्रांँस और ऑस्ट्रेलिया के साथ अपने सहयोग को बढ़ावा दे रहा है, क्योंकि इन देशों के पास चीन की चुनौती का सामना करने के लिये पर्याप्त क्षमता मौजूद है।
  • यह त्रिपक्षीय वार्ता ‘क्वाड’ (Quad) देशों- जिसमें अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत शामिल हैं- के अतिरिक्त है जिससे यह चीन के बढ़ते प्रभाव के विरुद्ध निर्मित हो रहे वैश्विक गठबंधन को अधिक कूटनीतिक शक्ति प्रदान करेगा।

इंडो-पैसिफिक क्षेत्र का अर्थ

  • जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, हिंद (Indo) यानी हिंद महासागर (Indian Ocean) और प्रशांत (Pacific) यानी प्रशांत महासागर के कुछ भागों को मिलाकर जो समुद्र का एक हिस्सा बनता है, उसे हिंद प्रशांत क्षेत्र (Indo-Pacific Area) कहते हैं। वहीं इस क्षेत्र में शामिल देशों को ‘इंडो-पैसिफिक देशों’ की संज्ञा दी गई है।
  • यद्यपि यह अभी विकास की प्रक्रिया से गुज़र रही एक अवधारणा है, किंतु कई विश्लेषक इस अवधारणा को पश्चिम से पूर्व की ओर सत्ता तथा प्रभाव के स्थानातंरण की तरह देखते हैं।
  • इंडो-पैसिफिक क्षेत्र का भौगोलिक प्रसार अभी तक सही ढंग से परिभाषित नहीं किया गया है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अलग-अलग हितधारकों ने इसे अलग-अलग तरह से मान्यता दी है।
    • उदाहरण के लिये अमेरिका के लिये यह क्षेत्र भारत के पश्चिमी तट तक फैला हुआ है, जो कि यूएस इंडो-पैसिफिक कमांड की भौगोलिक सीमा है, जबकि भारत के लिये इसमें पूरा हिंद महासागर और पश्चिमी प्रशांत महासागर शामिल है।

इंडो-पैसिफिक क्षेत्र का महत्त्व

  • वर्तमान में हम कह सकते हैं कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र विश्व में आर्थिक विकास का गुरुत्वाकर्षण केंद्र बना हुआ है। विश्व की चार बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ यथा- अमेरिका, चीन, जापान और भारत इसी क्षेत्र में स्थित हैं, जो कि इस क्षेत्र की महत्ता को काफी अधिक बढ़ा देते हैं। इस प्रकार यह क्षेत्र या तो विश्व के आर्थिक विकास को आगे बढ़ाने वाले एक इंजन के तौर पर कार्य कर सकता है या फिर विश्व की अर्थव्यवस्था के विध्वंसक के रूप में कार्य कर सकता है।
  • इंडो-पैसिफिक क्षेत्र संपूर्ण विश्व में शांति और समृद्धि को बढ़ावा देने में अनिवार्य भूमिका अदा कर सकता है।
  • इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में विश्व का सबसे अधिक आबादी वाला देश (चीन), सबसे अधिक आबादी वाला लोकतांत्रिक देश (भारत) और सबसे अधिक आबादी वाला मुस्लिम बहुल राज्य (इंडोनेशिया) शामिल हैं, जिसके कारण यह देश भू-राजनीतिक दृष्टि से भी काफी महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
    • दुनिया की दस सबसे बड़ी स्थायी सेनाओं में से सात इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में शामिल हैं, यही कारण है कि अमेरिका के मतानुसार, ‘इंडो-पैसिफिक क्षेत्र अमेरिका के भविष्य के लिये सबसे अधिक परिणामी क्षेत्र है।’

इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के समक्ष चुनौतियाँ

  • इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की अभी तक कोई स्पष्ट परिभाषा मौजूद नहीं है और सभी देश अपने-अपने रणनीतिक हितों को ध्यान में रख कर इसे परिभाषित करने का प्रयास कर रहे हैं। 
  • जानकारों का मानना है कि विगत कुछ वर्षों में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र अमेरिका और चीन की प्रतिद्वंद्विता का एक नया केंद्र बिंदु बन गया है, इस क्षेत्र की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाओं (अमेरिका और चीन) के बीच व्यापार युद्ध तथा तकनीकी प्रतिस्पर्द्धा के कारण इस क्षेत्र के अन्य देशों और संपूर्ण वैश्विक अर्थव्यवस्था पर काफी गहरा प्रभाव पड़ सकता है।

भारत और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र

  • इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के कई देश खासतौर पर ऑस्ट्रेलिया, जापान, अमेरिका और इंडोनेशिया आदि भारत की भूमिका को इस क्षेत्र में काफी महत्त्वपूर्ण मानते हैं। ये सभी देश दक्षिण चीन सागर और पूर्वी चीन सागर में चीन का मुकाबला करने के लिये भारत को एक विकल्प के रूप में देख रहे हैं।
  • हालाँकि भारत इस क्षेत्र में शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने की दिशा में कार्य करने को तत्पर है, भारत के लिये इंडो-पैसिफिक क्षेत्र का अर्थ एक मुक्त, खुले और समावेशी क्षेत्र से है।
  • भारत हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के सभी देशों और उन सभी देशों को इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की परिभाषा में शामिल करता है, जिनके हित इस क्षेत्र से जुड़े हुए हैं। 
  • इस प्रकार भारत इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की अमेरिकी परिभाषा का अनुपालन नहीं करता है, जिसका एकमात्र लक्ष्य चीन की प्रभाव को सीमित करना अथवा समाप्त करना है। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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