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डेली न्यूज़

  • 29 Aug, 2024
  • 67 min read
प्रारंभिक परीक्षा

RBI द्वारा एकीकृत ऋण इंटरफेस की शुरूआत

स्रोत: द हिंदू 

भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) भारत के ऋण क्षेत्र को बदलने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर यूनिफाइड लेंडिंग इंटरफेस (Unified Lending Interface- ULI) शुरू करने की योजना बना रहा है। ULI को RBI ने 2023 में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर लॉन्च किया था।

एकीकृत लेंडिंग इंटरफेस (ULI) क्या है?

  • परिचय: ULI एक डिजिटल प्लेटफॉर्म है, जिससे ऋण देने की प्रक्रिया आसान होने की उम्मीद है।
    • इससे किसानों और MSME उधारकर्त्ताओं को बैंकिंग सेवाएँ प्रदान करते हुए, बिना किसी बाधा के ऋण उपलब्ध कराया जा सकेगा।
  • ULI की मुख्य विशेषताएँ:
    • सहमति-आधारित डिजिटल पहुँच: ULI सहमति-आधारित प्रणाली के माध्यम से ऋणदाताओं को भूमि रिकॉर्ड सहित ग्राहकों के वित्तीय और गैर-वित्तीय दोनों डेटा तक डिजिटल पहुँच प्रदान करेगा।
    • सामान्य और मानकीकृत API: ULI में मानकीकृत एप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस (Application Programming Interface- API) की सुविधा होगी जो ‘प्लग एंड प्ले दृष्टिकोण की अनुमति देगा, डेटा एक्सेस को सरल करेगा और तकनीकी जटिलता को कम करेगा।
      • 'प्लग एंड प्ले' अवधारणा से तात्पर्य बिजली, नेटवर्क जैसी आवश्यक अवसंरचना के साथ तैयार सुविधाओं से है, जो उद्योगों को तुरंत परिचालन शुरू करने की अनुमति देती है।
  • संभावित लाभ:
    • बाधा रहित ऋण: ULI का लक्ष्य कागज़ी कार्रवाई को न्यूनतम करके, विशेष रूप से छोटे और ग्रामीण उधारकर्त्ताओं के लिये निर्बाध ऋण देने का अनुभव प्रदान करना है।
    • मूल्यांकन समय में कमी: विभिन्न स्रोतों से डेटा को समेकित करके, ULI क्रेडिट मूल्यांकन के लिये आवश्यक समय को कम कर देगा।
    • केंद्रीकृत डेटा एक्सेस: यह प्लेटफॉर्म कई स्रोतों से वित्तीय और गैर-वित्तीय डेटा को एकीकृत करेगा, जिससे यह ऋणदाताओं के लिये आसानी से उपलब्ध हो जाएगा।
    • कृषि और MSME पर ध्यान: ULI से कृषि और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (MSME) जैसे क्षेत्रों में ऋण की बड़ी व अधूरी मांग को पूरा करने की उम्मीद है।
  • अन्य डिजिटल पहलों से संबंध:
    • JAM-UPI-ULI: ULI, JAM (जन धन, आधार और मोबाइल), UPI और ULI की 'न्यू ट्रिनिटी' का हिस्सा होगा, जो भारत के डिजिटल अवसंरचना में एक महत्त्वपूर्ण प्रगति का प्रतिनिधित्व करता है।
    • डिजिटल अवसंरचना: इन प्रणालियों के एकीकरण का उद्देश्य ऋण की बड़ी व अधूरी मांग को पूरा करना और वित्तीय समावेशन को बढ़ाना है।

भारत में ऋण सुविधा प्रदान करने वाले अन्य प्लेटफॉर्म कौन-से हैं?

  • सार्वजनिक ऋण रजिस्ट्री (PCR): PCR एक केंद्रीय डेटाबेस है, जो ऋणदाताओं को ऋण योग्यता का आकलन करने और ऋण बाज़ार में सूचना विषमता को कम करने में सहायता लिये उधारकर्त्ताओं की व्यापक ऋण जानकारी संग्रहीत करता है।
  • अकाउंट एग्रीगेटर (AA) फ्रेमवर्क: AA फ्रेमवर्क एक सहमति-आधारित RBI-विनियमित प्लेटफॉर्म है, जो ग्राहकों को अपनी वित्तीय जानकारी को विभिन्न संस्थानों में साझा करने, ऋणदाताओं के लिये पहुँच को सुव्यवस्थित करने एवं उचित ऋण निर्णय लेने में सुविधा प्रदान करने में सक्षम बनाता है। 
  • क्रेडिट सूचना कंपनियाँ (CIC): CIBIL, इक्विफैक्स, एक्सपेरियन आदि जैसी कंपनियाँ व्यक्तियों और व्यवसायों की क्रेडिट सूचनाएँ एकत्र करती हैं तथा उसका रखरखाव करती हैं।
  • ट्रेड रिसीवेबल्स डिस्काउंटिंग सिस्टम (TReDS): TReDS एक इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म है, जो MSME को प्रतिस्पर्धी दरों पर अपने व्यापार प्राप्तियों की नीलामी करने की अनुमति देता है।
  • Peer-to-Peer (P2P) लेंडिंग प्लेटफॉर्म: फेयरसेंट और लेंडबॉक्स जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म व्यक्तियों को एक-दूसरे से सीधे पैसे उधार देने और उधार लेने की अनुमति देते हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा उपवाक्य, उत्तर-हर्ष-कालीन स्रोतों में प्रायः उल्लिखित 'हुंडी' के स्वरूप की परिभाषा बताता है ?  (2020) 

(a) राजा द्वारा अपने अधीनस्थों को दिया गया परामर्श
(b) प्रतिदिन का लेखा-जोखा अंकित करने वाली बही
(c) विनिमय पत्र
(d) सामंत द्वारा अपने अधीनस्थों को दिया गया आदेश

उत्तर: (c)


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए : (2020) 

  1. कृषि क्षेत्र को अल्पकालीन साख परिदान करने के संदर्भ में, 'ज़िला केंद्रीय सहकारी बैंक (DCCBs)' 'अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों' एवं 'क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों' की तुलना में अधिक ऋण देते हैं।
  2. डी.सी.सी.बी. (DCCBs) का एक सबसे प्रमुख कार्य 'प्राथमिक कृषि साख समितियों' को निधि उपलब्ध कराना है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं ?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और  न ही 2

उत्तर: (b)


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-अमेरिका रक्षा समझौते से सहयोग बढ़ेगा

प्रिलिम्स के लिये:

लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA), आपूर्ति सुरक्षा व्यवस्था (SOSA), संपर्क अधिकारियों की नियुक्ति के संबंध में समझौता ज्ञापन, रक्षा प्राथमिकताएँ और आवंटन प्रणाली (DPAS), रक्षा सहयोग पर संयुक्त घोषणा, संचार संगतता और सुरक्षा समझौता (COMCASA), MH-60R सीहॉक हेलीकॉप्टर, सिग सॉयर राइफलें, M777 हॉवित्जर

मेन्स के लिये:

भारत-अमेरिका संबंध, भारत-अमेरिका रक्षा संबंध, चुनौतियाँ, अवसर और आगे की राह

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत और अमेरिका ने दो प्रमुख समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं - एक गैर-बाध्यकारी आपूर्ति व्यवस्था की सुरक्षा (Security of Supplies Arrangement- SOSA) और दूसरा संपर्क अधिकारियों की नियुक्ति के संबंध में समझौता ज्ञापन।

  • दोनों देशों ने रक्षा औद्योगिक सहयोग के लिये 2023 अमेरिका-भारत रोडमैप के हिस्से के रूप में प्राथमिकता वाले सह-उत्पादन परियोजनाओं को बढ़ाने पर भी सहमति व्यक्त की।

भारत और अमेरिका के बीच हस्ताक्षरित प्रमुख रक्षा समझौते क्या हैं?

  • आपूर्ति व्यवस्था की सुरक्षा (SOSA):
    • आपूर्ति व्यवस्था की सुरक्षा (SOSA) अमेरिका और भारत के बीच एक समझौता है।
      • ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, डेनमार्क, एस्टोनिया, फिनलैंड, इज़रायल, इटली, जापान, लातविया, लिथुआनिया, नीदरलैंड, नॉर्वे, कोरिया गणराज्य, सिंगापुर, स्पेन, स्वीडन और UK के बाद भारत अमेरिका का 18वाँ SOSA साझेदार है।
    • यह दोनों देशों को राष्ट्रीय रक्षा के लिये एक-दूसरे की वस्तुओं और सेवाओं को प्राथमिकता देने की अनुमति देता है, जिससे आपात स्थितियों के दौरान आपूर्ति शृंखला में लचीलापन सुनिश्चित होता है।
    • SOSA के अंतर्गत अमेरिकी रक्षा ठेकेदार भारत से शीघ्र डिलीवरी की मांग कर सकते हैं, इसके विपरीत अमेरिकी ठेकेदार भारत से शीघ्र डिलीवरी की मांग कर सकते हैं।
    • यद्यपि कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है, लेकिन SOSA पारस्परिक सद्भावना के आधार पर कार्य करता है, जिसमें भारतीय कंपनियाँ अमेरिकी ऑर्डरों को प्राथमिकता देती हैं और अमेरिका अपनी रक्षा प्राथमिकताएँ तथा आवंटन प्रणाली (Defense Priorities and Allocations System- DPAS) के माध्यम से आश्वासन देता है, जिसका प्रबंधन रक्षा विभाग (Department of Defence- DoD) एवं वाणिज्य विभाग (Department of Commerce- DOC) द्वारा किया जाता है।
  • संपर्क अधिकारियों पर समझौता ज्ञापन:
    • समझौता ज्ञापन (MoU) का उद्देश्य संपर्क अधिकारियों की एक प्रणाली स्थापित करके भारत और अमेरिका के बीच सूचना-साझाकरण को बढ़ावा देना है।
    • इसकी शुरुआत फ्लोरिडा में अमेरिकी विशेष अभियान कमान में भारत के एक अधिकारी की तैनाती से होगी
    • यह पहल सितंबर, 2013 के रक्षा सहयोग पर संयुक्त घोषणापत्र और अमेरिका-भारत रक्षा संबंधों के लिये वर्ष 2015 की रूपरेखा सहित पिछले समझौतों पर आधारित है, जो द्विपक्षीय रक्षा संबंधों को मज़बूत करने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
  • पारस्परिक रक्षा खरीद (RDP) समझौता:
    • भारत और अमेरिका पारस्परिक रक्षा खरीद (Reciprocal Defence Procurement- RDP) समझौते पर चर्चा कर रहे हैं, जिसे अभी अंतिम रूप दिया जाना है।
    • इन्हें अमेरिका और उसके सहयोगियों के बीच रक्षा उपकरणों के युक्तिकरण, मानकीकरण, विनिमेयता तथा अंतर-संचालनशीलता को बढ़ाने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
    • अमेरिका ने अब तक 28 देशों के साथ RDP समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं।
    • यह समझौता अमेरिकी कंपनियों को भारत की "मेक इन इंडिया" पहल जैसे कुछ खरीद प्रतिबंधों को दरकिनार करने में सक्षम बनाएगा, जिससे भारत में विनिर्माण आधारों की स्थापना और स्थानीय फर्मों के साथ घनिष्ठ सहयोग में सुविधा होगी।
  • SOSA बनाम RDP:
    • SOSA और RDP दोनों का उद्देश्य दो देशों के बीच रक्षा संबंधों को बढ़ाना है, लेकिन उनके उद्देश्य अलग-अलग हैं। 
    • SOSA संकट के दौरान रक्षा आपूर्ति शृंखला को बनाए रखने पर ध्यान केंद्रित करता है, जबकि RDP एक कानूनी रूप से बाध्यकारी ढाँचा स्थापित करता है जिसके लिये रक्षा आदेशों को प्राथमिकता देने की आवश्यकता होती है, जिससे अधिक संयुक्त उत्पादन और तकनीकी सहयोग की सुविधा मिलती है।

भारत-अमेरिका रक्षा सहयोग में क्या प्रगति हुई है?

  • GSOMIA: भारत-अमेरिका रक्षा सहयोग की नींव 2002 के जनरल सिक्योरिटी ऑफ मिलिट्री इंफॉर्मेशन एग्रीमेंट (GSOMIA) के साथ रखी गई थी, जिससे संवेदनशील सैन्य सूचनाओं को साझा करने में सुविधा हुई।
  • LEMOA: इसके बाद वर्ष 2016 में लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA) हुआ, जिसने दोनों सेनाओं के बीच पारस्परिक रसद समर्थन हेतु रूपरेखा स्थापित की।
  • COMCASA और BECA: वर्ष 2018 में संचार संगतता और सुरक्षा समझौता (COMCASA)ने सुरक्षित सैन्य संचार और उन्नत रक्षा प्रौद्योगिकियों तक पहुँच को बढ़ाया, जबकि वर्ष 2020 में बुनियादी विनिमय और सहयोग समझौते (BECA) ने सैन्य अभियानों के लिये महत्त्वपूर्ण भू-स्थानिक डेटा को साझा करने में सक्षम बनाया।
  • 2+2 वार्ता: संयुक्त अभ्यास और 2+2 मंत्रिस्तरीय वार्ता द्वारा समर्थित ये आधारभूत समझौते सामूहिक रूप से अंतर-संचालन और विश्वास को बढ़ावा देते हैं, तथा गहन सहयोग के लिए मंच तैयार करते हैं।
  • सामरिक व्यापार प्राधिकरण टियर-1 स्थिति: 2000 के दशक की शुरुआत से भारत-अमेरिका रक्षा संबंधों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। भारत को वर्ष 2016 में एक प्रमुख रक्षा साझेदार नामित किया गया था और वर्ष 2018 में सामरिक व्यापार प्राधिकरण टियर-1 का दर्जा दिया गया था, जिससे उन्नत प्रौद्योगिकियों तक पहुँच संभव हो गई।
  • DTTI: वर्ष 2012 में स्थापित रक्षा व्यापार और प्रौद्योगिकी पहल (DTTI) का उद्देश्य रक्षा व्यापार को सुव्यवस्थित करना एवं रक्षा प्रौद्योगिकियों के सह-उत्पादन व सह-विकास को बढ़ावा देना था, जो क्रेता-विक्रेता संबंध से साझेदारी मॉडल में बदलाव को दर्शाता है।
  • सैन्य खरीद: भारत की सेना ने अमेरिका से MH-60R  सीहॉक हेलीकॉप्टर, सिग सॉयर राइफल और M777 हॉवित्जर खरीदे।
    • भारत में GE F-414 जेट इंजन के निर्माण और MQ-9B हाई-एल्टीट्यूड लॉन्ग-एंड्योरेंस (HALE) UAV की खरीद के लिये चल रही चर्चा भारत की 'मेक इन इंडिया' पहल के अनुरूप स्वदेशी उत्पादन और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर बढ़ते महत्त्व को दर्शाती है।
  • INDUS-X: जून 2023 में भारत-अमेरिका रक्षा त्वरण पारिस्थितिकी तंत्र (INDUS-X:) के शुभारंभ ने रक्षा नवाचार और औद्योगिक सहयोग को बढ़ावा दिया।
    • वर्ष 2023 में, रक्षा सहयोग रोडमैप ने सूचना, निगरानी और पूर्व परिक्षण (ISR), अंडरसी डोमेन जागरूकता और एयर कॉम्बैट सिस्टम जैसे प्राथमिकता वाले क्षेत्रों पर प्रकाश डाला।
  • I2U2 समूह: I2U2 में भारत, इज़राइल, अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात शामिल हैं, जो जल, ऊर्जा, परिवहन, अंतरिक्ष, स्वास्थ्य एवं खाद्य सुरक्षा सहित विभिन्न क्षेत्रों में संयुक्त निवेश व नई पहलों के लिये समर्पित हैं।

समय के साथ भारत और अमेरिका के संबंध कैसे विकसित हुए हैं?

  • शीत युद्ध काल:
    • शीत युद्ध के दौरान, भारत और अमेरिका विपरीत पक्षों पर थे, भारत गुटनिरपेक्षता का अनुसरण कर रहा था तथा पाकिस्तान अमेरिका के साथ था। 
    • वर्ष 1990 के दशक में भारत के आर्थिक उदारीकरण और शीत युद्ध की समाप्ति के बाद संबंधों में सुधार हुआ। 
    • वर्ष 2000 में राष्ट्रपति क्लिंटन की भारत यात्रा ने एक महत्त्वपूर्ण मोड़ दिया, जिससे रणनीतिक वार्ता एवं आर्थिक सहयोग में वृद्धि हुई, जिसे वर्ष 2004 में रणनीतिक साझेदारी में अगले चरण (NSSP) द्वारा और मज़बूत किया गया।
  • परमाणु समझौता:
    • वर्ष 2008 के असैन्य परमाणु समझौते ने भारत के परमाणु अलगाव को समाप्त कर दिया और इसे एक जिम्मेदार परमाणु शक्ति के रूप में मान्यता दी, रक्षा एवं उच्च तकनीक क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ाया तथा भारत की वैश्विक स्थिति को बढ़ाने के लिये अमेरिकी प्रतिबद्धता को मज़बूत किया।
  • आर्थिक तालमेल: वर्ष 2023-24 में द्विपक्षीय व्यापार 118.28 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुँच गया, जिससे अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया।
    • अमेरिका-भारत रणनीतिक स्वच्छ ऊर्जा साझेदारी और कोविड-19 टीकों पर सहयोग जैसी पहलों के साथ सहयोग का विस्तार स्वच्छ ऊर्जा, डिजिटल अर्थव्यवस्था एवं स्वास्थ्य सेवा तक हो गया है।
  • प्रौद्योगिकी सहयोग: यह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), क्वांटम कंप्यूटिंग और 5G में सहयोग के साथ द्विपक्षीय संबंधों की आधारशिला बन गया है।
    • यूएस इंडिया साइंस एंड टेक्नोलॉजी एंडोमेंट फंड और यूएस इंडिया एआई इनिशिएटिव एवं आईसीईटी जैसी हालिया पहल तकनीकी सहयोग के रणनीतिक महत्त्व को उजागर करती हैं।
    • भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा हस्ताक्षरित आर्टेमिस समझौते द्विपक्षीय नागरिक अंतरिक्ष संयुक्त कार्य समूह के माध्यम से दोनों देशों के सहयोग के साथ अंतरिक्ष अन्वेषण के भविष्य के लिये एक साझा दृष्टिकोण स्थापित करते हैं।
  • भू-राजनीतिक संरेखण: चीन के उदय ने भारत और अमेरिका को रणनीतिक रूप से करीब ला दिया है।
    • क्वाड का पुन:प्रवर्तन और भारत का अमेरिकी इंडो-पैसिफिक रणनीति में शामिल होना इस संरेखण को दर्शाता है, जो ‘स्वतंत्र और खुले इंडो-पैसिफिक’ पर जोर देता है तथा भू-राजनीतिक सहयोग को गहरा करता है।

भारत-अमेरिका संबंधों के लिये चुनौतियाँ क्या हैं?

  • मानवाधिकार और लोकतांत्रिक मूल्य: अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से मुसलमानों के साथ व्यवहार को लेकर चिंताओं से अमेरिका और भारत के बीच संबंध प्रभावित हुए हैं। नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को रद्द करने से धर्मनिरपेक्षता एवं सहिष्णुता के प्रति भारत की प्रतिबद्धता के विषय पर चर्चा शुरू हो गई है।
  • चीन के साथ रणनीतिक प्रतिस्पर्द्धा: जबकि दोनों देश चीन को एक रणनीतिक चुनौती के रूप में देखते हैं, उनके दृष्टिकोण कभी-कभी अलग हो जाते हैं। चीन के साथ भारत के आर्थिक संबंध कभी-कभी अमेरिकी हितों के अनुकूल नहीं होते हैं, जिससे तनाव उत्पन्न होता है। 
  • व्यापार और आर्थिक विवाद: व्यापार विवाद, संरक्षणवादी उपाय और बाज़ार पहुँच एवं बौद्धिक संपदा अधिकारों पर चिंताएँ एक व्यापक व्यापार सौदाकारी तक अभिगम के प्रयासों को जटिल बनाती हैं।
  • भू-राजनीतिक संरेखण: शीत युद्ध के दौरान भारत की गुटनिरपेक्षता की विरासत, जिसके कारण उसका झुकाव सोवियत संघ की ओर था, अभी भी द्विपक्षीय संबंधों में धारणाओं और अपेक्षाओं को प्रभावित करती है।
    • भारत अमेरिका और रूस दोनों के साथ अपने संबंधों को संतुलित करना चाहता है। यह संतुलनकारी कार्य तनाव उत्पन्न कर सकता है, विशेषकर तब जब अमेरिका को उम्मीद है कि रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर भारत रूस की कड़ी निंदा करेगा।

आगे की राह

  • कूटनीतिक चिंताओं का समाधान: भारत और अमेरिका को लोकतंत्र व रणनीतिक सहयोग से संबंधित मुद्दों से निपट कर तनावों को हल करना चाहिये जिसमें iCET जैसी पहलों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
  • वैश्विक सेतु के रूप में भारत की भूमिका: भारत पश्चिम और विकासशील देशों के बीच के अंतर को कम करने के लिये G20 एवं शंघाई सहयोग संगठन (SCO) जैसे मंचों में अपने नेतृत्व का लाभ उठा सकता है।
  • आतंकवाद-रोधी सहयोग को प्रोत्साहन: आतंकवाद-रोधी प्रयासों को गति देते हुए, विशेष रूप से अफगानिस्तान द्वारा तालिबान के नेतृत्व वाले प्रबंधन में और आतंकवादी समूहों के समर्थन को रोकने के लिये पाकिस्तान पर दबाव डालने की आवश्यकता है।
  • उभरती प्रौद्योगिकियों और AI पर फोकस: उभरती प्रौद्योगिकियों और AI पर सहयोग बढ़ाने के साथ ही राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये डेटा विनियमन, सूचना साझाकरण एवं गोपनीयता पर जोर देने की आवश्यकता है।
  • बहुपक्षीय समन्वय को आगे बढ़ाना: अंतर्राष्ट्रीय रणनीतिक मुद्दों को हल करने के लिये क्वाड और I2U2 जैसे मंचों में समन्वय को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।
  • आर्थिक जुड़ाव को बढ़ावा दें: iCET जैसी पहलों के साथ आर्थिक विकास और बाज़ार पहुँच को बढ़ावा देते हुए व्यापार, निवेश एवं तकनीकी सहयोग को बढ़ाने की आवश्यकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत-अमेरिका संबंधों के विकास पर चर्चा कीजिये। भारत-अमेरिका रक्षा संबंध भारत के अन्य प्रमुख शक्तियों के साथ संबंधों को किस प्रकार प्रभावित करते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत ने निम्नलिखित में से किस देश से बराक एंटी मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीदी? (2008)

(a) इज़रायल
(b) फ्राँस
(c) रूस
(d) संयुक्त राज्य अमेरिका 

उत्तर: (a)


प्रश्न. हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका ने ‘ऑस्ट्रेलिया समूह’ तथा ‘वासेनार व्यवस्था’ के नाम से ज्ञात बहुपक्षीय निर्यात नियंत्रण व्यवस्थाओं में भारत को सदस्य बनाए जाने का समर्थन करने का निर्णय लिया है। इन दोनों व्यवस्थाओं के बीच क्या अंतर है? (2011)

  1. ‘ऑस्ट्रेलिया समूह’ एक अनौपचारिक व्यवस्था है जिसका लक्ष्य निर्यातक देशों द्वारा रासायनिक तथा जैविक हथियारों के प्रगुणन में सहायक होने के जोखिम को न्यूनीकृत करना है, जबकि ‘वासेनार व्यवस्था’ OECD के अंतर्गत गठित औपचारिक समूह है जिसके समान लक्ष्य हैं।
  2. ‘ऑस्ट्रेलिया समूह’ के सहभागी मुख्यतः एशियाई, अफ्रीकी और उत्तरी अमेरिका के देश हैं, जबकि ‘वासेनार व्यवस्था’ के सहभागी मुख्यतः यूरोपीय संघ और अमेरिकी महाद्वीप के देश हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. भारत-रूस रक्षा समझौतों की तुलना में भारत-अमेरिका रक्षा समझौतों की क्या महत्ता है ? हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में स्थायित्व के संदर्भ में विवेचना कीजिये। (2020)

प्रश्न. भारत और यूनाइटेड स्टेट्स के बीच संबंधों में खटास के प्रवेश का कारण वाशिंगटन का अपनी वैश्विक रणनीति में अभी तक भी भारत के लिये किसी ऐसे स्थान की खोज़ करने में विफलता है, जो भारत के आत्म-समादर और महत्त्वाकांक्षा को संतुष्ट कर सके।' उपयुक्त उदाहरणों के साथ स्पष्ट कीजिये। (2019)


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत में प्राकृतिक रबड़ की कमी

प्रिलिम्स के लिये:

प्राकृतिक रबड़ (NR), बांग्लादेश में उथल-पुथल, मानसून, टायर उद्योग, लघु एवं सूक्ष्म उद्योग, पॉलिमर, लेटेक्स/संक्षीर, प्रोटीन, स्टार्च, एल्कलॉइड, दोमट या लैटेराइट मृदा, प्राकृतिक रबड़ क्षेत्र का सतत् और समावेशी विकास (SIDNRS), राष्ट्रीय रबड़ नीति- 2019, कार्बन बाज़ार 

मेन्स के लिये:

रबड़ उद्योग और इसकी चुनौतियाँ, सरकारी नीतियाँ और पहल।

स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया 

चर्चा में क्यों?

भारत प्राकृतिक रबड़ (NR) की भारी कमी का सामना कर रहा है, घरेलू उत्पादन मांग से लगभग 5.5 लाख टन कम है।

  • मांग-आपूर्ति अंतर: प्राकृतिक रबड़ उत्पादन में वर्ष 2022-23 में 8.39 लाख टन से वर्ष 2023-24 में 8.57 लाख टन तक की वृद्धि के बावजूद, खपत 13.5 लाख टन से बढ़कर 14.16 लाख टन हो गई है।
    • वर्तमान में लगभग 70% प्राकृतिक रबड़ की खपत टायर उद्योग द्वारा की जाती है। शेष 30% का उपयोग गैर-टायर कंपनियों, मुख्य रूप से लघु एवं सूक्ष्म उद्योग द्वारा किया जाता है, जिन्हें रबड़ की कमी का सबसे अधिक सामना करना पड़ रहा है।
  • आयात निर्भरता: अपर्याप्त घरेलू उत्पादन के कारण भारत ऐतिहासिक रूप से प्राकृतिक रबड़ के आयात पर निर्भर रहा है। 
    • भारत स्थानीय मांग को पूरा करने के लिये वियतनाम और इंडोनेशिया जैसे पड़ोसी देशों से प्राकृतिक रबड़ का आयात करता है।
  • उच्च आयात शुल्क: प्राकृतिक रबड़ के आयात पर अधिक सीमा शुल्क (25% या 30 रुपए प्रति किलोग्राम जो भी अधिक हो) लगता है। दस्ताने और गुब्बारे बनाने के लिये इस्तेमाल किये जाने वाले लेटेक्स रबड़ पर 75% शुल्क लगता है। 
    • हालाँकि लेटेक्स रबड़ की कमी है, लेकिन मेडिकल दस्ताने, गद्दे एवं गुब्बारों के आयात पर बहुत कम शुल्क लगता है, जो कि मात्र 10% है और स्थानीय विनिर्माण के बजाय इन उत्पादों के आयात को बढ़ावा देता है। यह उत्क्रमित शुल्क संरचना का मामला है।
      • उत्क्रमित शुल्क संरचना एक ऐसी स्थिति है, जिसमें प्रयुक्त इनपुट पर कर की दर तैयार माल पर कर की दर से अधिक होती है।
  • भू-राजनीतिक स्थिति: चीन वर्तमान में प्राकृतिक रबड़ का भंडारण कर रहा है और बांग्लादेश, जो कभी एक विश्वसनीय स्रोत था, राजनीतिक विरोध तथा सरकार में बदलाव के कारण उथल-पुथल में है। 
    • बांग्लादेश में उथल-पुथल ने भारत में प्राकृतिक रबड़ की सुचारू आपूर्ति को बाधित कर दिया है।
  • मानसून: भारी मानसून के कारण दोहन गतिविधियों में कमी आने के कारण प्राकृतिक रबड़ की उपलब्धता अनिश्चित है। यह स्थिति विशेष रूप से प्राकृतिक रबड़ पर निर्भर उद्योगों को प्रभावित करती है।

रबड़ के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • परिचय: रबड़ एक लोचदार/प्रत्यास्थ पदार्थ है, जो बाह्य बल लगाने पर विकृत हो जाता है, लेकिन बल हटाने पर अपने मूल आकार को पुनः प्राप्त कर लेता है।
    • यह प्राकृतिक या कृत्रिम हो सकता है। यह अन्य कार्बनिक यौगिकों के साथ-साथ कार्बनिक यौगिक आइसोप्रीन के पॉलिमर/बहुलक से बना होता है।
    • प्राकृतिक रबड़: प्राकृतिक रबड़ पौधों से प्राप्त किया जाता है। इसे बहुलक के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। यह मानव समाज के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण बहुलकों में से एक है।
    • कृत्रिम रबड़: कृत्रिम या मानव निर्मित रबड़ को रासायनिक प्रक्रिया के माध्यम से उत्पादित किया जाता है।
  • भारत में उत्पादन: भारत प्राकृतिक रबड़ का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक, चौथा सबसे बड़ा उपभोक्ता और विश्व में प्राकृतिक रबड़ व कृत्रिम रबड़ दोनों का पाँचवाँ सबसे बड़ा उपभोक्ता है।
    • केरल भारत में रबड़ का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है, जबकि त्रिपुरा दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है।
  • व्यापार परिदृश्य:
    • निर्यात: वर्ष 2022-23 में भारत ने 3,700 टन NR का निर्यात किया।
      • अमेरिका, जर्मनी, UAE, UK और बांग्लादेश ऐसे देश हैं, जो भारत के रबड़ निर्यात के लिये सबसे बड़े बाज़ार हैं।
    • आयात: वर्ष 2022-23 में भारत ने 5,28,677 टन NR का आयात किया।
      • भारत मुख्य रूप से इंडोनेशिया, थाईलैंड, चीन, दक्षिण कोरिया और जापान से रबड़ का आयात करता है।
  • प्राकृतिक रबड़ की वृद्धि के कारक:
    • जलवायु: रबड़ (अमेज़ॅन वर्षावन की मूल वनस्पति) एक उष्णकटिबंधीय वृक्ष है। इसे पूरे वर्ष 20°-35°C या औसत मासिक औसत 27°C के बीच उच्च तापमान की आवश्यकता होती है।
    • मृदा: रबड़ को आमतौर पर ढलान वाली या थोड़ी ऊँची समतल भूमि पर दोमट या लैटेराइट मृदा में उगाया जाता है, जहाँ जल निकासी अच्छी हो और जल संग्रहण का कोई खतरा न हो।
    • वर्षा: 200 सेमी से अधिक।
    • श्रम: इस रोपण फसल के लिये कुशल श्रमिकों की सस्ती और पर्याप्त आपूर्ति की आवश्यकता होती है।
  • रबड़ उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये सरकारी पहल:

रबड़ बोर्ड

  • रबड़ बोर्ड देश में रबड़ उद्योग के समग्र विकास के लिये रबड़ अधिनियम, 1947 के तहत गठित एक वैधानिक निकाय है।
  • यह भारत सरकार के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अधीन कार्य करता है।
  • बोर्ड का मुख्यालय कोट्टायम, केरल में स्थित है।
  • रबड़ अनुसंधान संस्थान रबड़ बोर्ड के अधीन है।

राष्ट्रीय रबड़ नीति 2019 क्या है?

  • मंत्रालय: वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने वर्ष 2019 में राष्ट्रीय रबड़ नीति प्रस्तुत की।
  • नीति का आधार: यह नीति देश में रबड़ उत्पादकों के समक्ष आने वाली समस्याओं के निवारण के लिये रबड़ क्षेत्र पर गठित टास्क फोर्स द्वारा निर्धारित अल्पकालिक और दीर्घकालिक रणनीतियों पर आधारित है।
  • प्रमुख प्रावधान: नीति में रबड़ के नए रोपण और पुनः रोपण, उत्पादकों के लिये सहायता, प्राकृतिक रबड़ का प्रसंस्करण और विपणन, श्रमिकों की कमी, उत्पादक मंच, बाह्य व्यापार, केंद्र-राज्य एकीकृत रणनीति, अनुसंधान, प्रशिक्षण, रबड़ उत्पाद विनिर्माण तथा निर्यात, जलवायु परिवर्तन संबंधी चिंताएँ एवं कार्बन बाज़ार को शामिल किया गया है।
  • कार्यान्वयन और समर्थन: रबड़ बोर्ड मध्यम अवधि ढाँचे (Medium Term Framework- MTF) (2017-18 से 2019-20) में प्राकृतिक रबड़ क्षेत्र के सतत् और समावेशी विकास योजना को कार्यान्वित कर रहा है।
    • विकासात्मक गतिविधियों में रोपण के लिये वित्तीय और तकनीकी सहायता, गुणवत्तायुक्त रोपण सामग्री की आपूर्ति, उत्पादक मंचों हेतु समर्थन, प्रशिक्षण तथा कौशल विकास कार्यक्रम शामिल हैं।

भारत में रबड़ उत्पादन बढ़ाने के लिये क्या किया जा सकता है?

  • राष्ट्रीय रबड़ नीति के अंतर्गत सहायता का विस्तार: नए रबड़ उद्यमियों और पुनर्स्थापित रबड़ उत्पादकों को सब्सिडी और वित्तीय सहायता के माध्यम से सहायता देकर रबड़ के विकास को बढ़ाना।
  • कौशल विकास: खेती की तकनीक और उत्पादकता में सुधार के लिये उत्पादकों हेतु प्रशिक्षण कार्यक्रमों को बढ़ाना।
  • अनुसंधान में निवेश करना: सरकार समर्थित अनुसंधान संस्थानों और विश्वविद्यालयों के माध्यम से उच्च उपज एवं रोग प्रतिरोधी रबड़ किस्मों पर अनुसंधान के लिये वित्त पोषण बढ़ाना।  
  • सहयोगात्मक परियोजनाएँ: रबड़ बागानों और प्रसंस्करण बुनियादी ढाँचे में निवेश करने के लिये सरकार तथा निजी क्षेत्र के बीच सहयोग को बढ़ावा देना।

निष्कर्ष

रबड़ उद्योग भारत की अर्थव्यवस्था के लिये महत्त्वपूर्ण है, लेकिन यह लगातार कमी का सामना कर रहा है, जिससे आयात में वृद्धि औ लागत बढ़ रही है। इस पर ध्यान देने हेतु घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने, आपूर्ति शृंखलाओं में सुधार करने तथा राष्ट्रीय रबड़ नीति 2019 जैसी नीतियों का समर्थन करने की आवश्यकता है। केंद्रित विकास एवं अनुसंधान के साथ भारत आयात-निर्भरता को कम कर सकता है व मांग को पूरा कर सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न.भारत के रबड़ क्षेत्र में मांग आपूर्ति अंतर के कारणों पर चर्चा कीजिये, जिसमें घरेलू उत्पादन में कमी और वैश्विक आपूर्ति शृंखला के मुद्दे शामिल हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिये सरकार द्वारा क्या उपाय अपनाए गए हैं? 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा एक पादप-समूह 'नवीन विश्व (न्यू वर्ल्ड)' में कृषि योग्य बनाया गया तथा इसका ‘प्राचीन विश्व (ओल्ड वर्ल्ड)’ में प्रचलन शुरू किया गया? (2019)

(a) तंबाकू, कोको और रबर
(b) तंबाकू, कपास और रबर
(c) कपास, कॉफी और गन्ना
(d) रबर, कॉफी और गेहूँ

उत्तर: (a)


प्रश्न.  सूची-I को सूची-II से सुमेलित कीजिये और सूचियों के नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (2008)

 सूची-I सूची-II 

 (बोर्ड) (मुख्यालय)

  1. कॉफी बोर्ड 1. बंगलूरू
  2. रबड़ बोर्ड 2. गुंटूर
  3. चाय बोर्ड 3. कोट्टायम 
  4. तंबाकू बोर्ड 4. कोलकाता

कूट:

   A  B  C  D

(a) 2  4  3  1
(b) 1  3  4  2
(c) 2  3  4  1
(d) 1  4  3  2

उत्तर: (b)


मेन्स

प्रश्न. अंग्रेज़ किस कारण भारत से करारबद्ध श्रमिक अन्य उपनिवेशों में ले गए थे? क्या वे वहाँ पर अपनी सांस्कृतिक पहचान को परिरक्षित रखने में सफल रहे हैं? (2018)


भारतीय अर्थव्यवस्था

स्क्रैपिंग सर्टिफिकेट के बदले नए वाहनों पर छूट

प्रिलिम्स के लिये:

स्क्रैपेज सर्टिफिकेट, वाहन स्क्रैपिंग नीति 2021, जमा प्रमाणपत्र, रीसाइक्लिंग उद्योग, BS VI युग , सर्कुलर इकोनॉमी, प्रदूषण , बैटरी अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2022, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम- 2022, ई-अपशिष्ट प्रबंधन नियम- 2022, विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) प्रमाणपत्र। 

मेन्स के लिये:

सर्कुलर इकोनॉमी को बढ़ावा देने में वाहन स्क्रैपिंग नीति 2021 का महत्त्व।

स्रोत : द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

ऑटो निर्माता सीमित समय के लिये पुराने वाहन के स्क्रैपेज सर्टिफिकेट के बदले वाणिज्यिक और यात्री वाहनों पर छूट देने पर सहमत हो गए हैं। 

  • यह स्क्रैपेज छूट, कार डीलरों से अपने वाहन एक्सचेंज करने पर ग्राहकों को मिलने वाली छूट की जगह लेगी।

स्वैच्छिक वाहन-बेड़े आधुनिकीकरण कार्यक्रम (V-VMP) क्या है?

  • स्वैच्छिक वाहन-बेड़े आधुनिकीकरण कार्यक्रम (V-VMP) या वाहन स्क्रैपिंग नीति 2021 भारतीय सड़कों पर पुराने और अनुपयुक्त वाहनों को स्क्रैप करने हेतु एक सरकार प्रायोजित कार्यक्रम है।
    • यह नीति 20 वर्ष से अधिक पुरानी कारों और 15 वर्ष से अधिक पुराने वाणिज्यिक वाहनों के लिये पुनः पंजीकरण रोकती है।
  • वर्तमान घटनाक्रम:
    • छूट पर समझौता: वाहन निर्माता पुराने वाहनों को स्क्रैप करने के बाद नया वाहन खरीदने वाले ग्राहकों को 1.5% से 3% या 25,000 रुपए तक की छूट देने पर सहमत हुए हैं।
    • स्क्रैपेज शर्तें: वाणिज्यिक वाहन (CV) निर्माता दो वर्ष की सीमित अवधि के लिये छूट देने को तैयार हुए हैं और यात्री वाहन (PV) निर्माता जमा प्रमाणपत्र (स्क्रैपेज प्रमाणपत्र) के बदले एक वर्ष के लिये छूट देने को तैयार हैं।
    • राज्य सरकारों द्वारा छूट: राज्य सरकारों ने स्क्रैपेज नीति में बड़ी रुचि ली है।
      • कई राज्य ऐसे है, जो पुनर्नवीनीकृत कारों के लिये रोड टैक्स पर 25-30% छूट दे रहे हैं।
  • स्क्रैपेज पॉलिसी के लिये वाहनों का वर्गीकरण: इन वाहनों को स्क्रैप करने हेतु लागू नियम वाहनों के वर्गीकरण के आधार पर अलग-अलग होंगे।
    • निजी वाहन: सभी निजी कारों को उनके पंजीकरण के 15 वर्ष बाद फिटनेस टेस्ट से गुजरना होगा। अगर कार फिटनेस टेस्ट पास कर लेती है, तो पंजीकरण का नवीनीकरण किया जा सकता है, जो 5 वर्ष के लिये वैध है।
    • वाणिज्यिक वाहन: बस, ट्रक आदि जैसे वाणिज्यिक वाहन पंजीकरण के पहले 8 वर्षों के लिये प्रत्येक दो वर्ष में और 8 वर्ष के बाद प्रत्येक एक में फिटनेस टेस्ट के लिये पात्र हैं, जब तक कि वाहन की पंजीकरण आयु 15 वर्ष तक नहीं पहुँच जाती।
    • सरकारी वाहन: 15 वर्ष से अधिक पुराने सभी राज्य और केंद्र सरकार के वाहनों को स्क्रैप किया जाएगा।
    • विंटेज वाहन: पुरानी कार स्क्रैप पॉलिसी विंटेज वाहनों पर लागू नहीं होती है, क्योंकि उनका रखरखाव अच्छी तरह से किया जाता है तथा उन्हें कम ही प्रयोग में लिया जाता है।
  • V-VMP के लाभ:
    • प्रदूषण में कमी: यह बिना वैध फिटनेस और पंजीकरण के लगभग 1 करोड़ वाहनों को स्क्रैप करके प्रदूषण को कम करेगा।
      • देश के मौजूदा एंड-ऑफ-लाइफ वाहनों (ELV) के बोझ को स्क्रैप करने से वाहन-प्रदूषण के कारण होने वाले उत्सर्जन में 15-20% की कमी आएगी।
    • स्क्रैपेज उद्योग का औपचारिकीकरण: नीति का उद्देश्य भारतीय स्क्रैपेज उद्योग को संगठित, पारदर्शी और पर्यावरण के अनुकूल बनाना भी है।
    • नए वाहनों की मांग: पुराने और अनुपयुक्त वाहनों को स्क्रैप करने से ऑटोमोबाइल उद्योग में मांग बढेगी, क्योंकि पुराने वाहनों को अब नए वाहनों से प्रतिस्थापित किया जाएगा।
    • वाहन सुरक्षा: वाहनों की मांग की प्रकृति में वृद्धि होगी। तुलनात्मक रूप से सुरक्षित और तकनीकी रूप से उन्नत वाहनों जो बेहतर एवं उत्कृष्ट सुविधाओं से लैस होते हैं, की मांग होगी।
    • सर्कुलर इकोनॉमी: इससे रीसाइक्लिंग उद्योग को एक बड़ा प्रोत्साहन मिलेगा।
      • यह न केवल रीसाइक्लिंग क्षेत्र को और अधिक सक्रिय बनाएगा बल्कि इस उद्योग में रोज़गार का भी सृजन होगा।
      • इसके अलावा यह अपशिष्ट और रीसाइक्लिंग प्रबंधन के अनुसंधान एवं विकास में तथा सुधार भी करेगा।
    • सड़क सुरक्षा: इससे सड़क, यात्री और वाहन सुरक्षा में सुधार होगा। 
    • ईंधन दक्षता: इससे ईंधन दक्षता में सुधार होगा। BS VI युग में पेट्रोल इंजनों को डीज़ल इंजनों की तुलना में 25% कम NOx (नाइट्रोजन ऑक्साइड) उत्सर्जित करने के लिये अपग्रेड किया गया।

V-VMP के तहत क्या प्रोत्साहन और हतोत्साहन प्रदान किये जाते हैं?

  • V-VMP के तहत प्रोत्साहन: पुराने वाहनों को स्क्रैप करने के लिये वाहन मालिकों को प्रेरित करने की नीति में विभिन्न प्रोत्साहन तंत्र शामिल किये गए हैं।
    • नए वाहनों पर छूट: स्क्रैपिंग सेंटर द्वारा प्रदान किये गए पुराने वाहन के लिये स्क्रैप मूल्य आमतौर पर नए वाहन की पूर्व-शोरूम-कीमत का लगभग 4-6% होता है। 
      • सरकार ने ऑटो निर्माताओं को एक नया वाहन खरीदते समय स्क्रैपेज प्रमाणपत्र दिखाने पर 5% की छूट देने के लिये एक सलाह जारी की थी। 
    • मोटर वाहन कर में रियायत: राज्य सरकारों को गैर-परिवहन वाहनों के लिये 25% तक और परिवहन वाहनों के लिये 15% तक मोटर वाहन कर में रियायत देने हेतु नियम अधिसूचित किये गए हैं।
    • पंजीकरण शुल्क से राहत: नए वाहन की खरीद के लिये पंजीकरण शुल्क माफ किया जाएगा।
  • V-VMP के तहत हतोत्साहन: 
    • फिटनेस टेस्ट के लिये उच्च शुल्क: यदि कोई वाणिज्यिक वाहन 15 वर्ष से अधिक पुराना है, तो फिटनेस टेस्ट और फिटनेस प्रमाणपत्र जारी करने के लिये अधिक शुल्क लगेगा।
    • उच्च पंजीकरण नवीनीकरण शुल्क: यदि कोई निजी वाहन 15 वर्ष से अधिक पुराना है, तो पंजीकरण नवीनीकरण शुल्क अधिक होगा। 
    • ग्रीन सेस: वाहन स्क्रैप पॉलिसी 2021 की नीति रूपरेखा के अनुसार, रोड टैक्स के अलावा पुराने वाहनों पर 10-15% का ग्रीन सेस लगाया जाएगा।

सर्कुलर इकोनॉमी क्या है?

निष्कर्ष

वाहन स्क्रैपिंग नीति 2021 पुराने और अक्षम वाहनों को स्क्रैप करने को प्रोत्साहित करके वाहनों से होने वाले प्रदूषण को कम करने तथा स्थिरता को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। यह कार्यक्रम वाहन निर्माताओं एवं उपभोक्ताओं को नए, अधिक कुशल वाहन अपनाने के लिये प्रोत्साहित करता है, जिससे सरकार के सर्कुलर अर्थव्यवस्था और पर्यावरण संरक्षण के लक्ष्यों का समर्थन होता है। अंततः V-VMP से उत्सर्जन नियंत्रण व संसाधन प्रबंधन के वैश्विक मानकों के साथ तालमेल बिठाते हुए आर्थिक विकास में योगदान मिलता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. पर्यावरणीय स्थिरता और आर्थिक आधुनिकीकरण की दिशा में भारत के प्रयासों के संदर्भ में वाहन स्क्रैपिंग नीति 2021 के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. अम्ल वर्षा किन पर्यावरण प्रदूषण के कारण होती है (2013)

(a) कार्बन डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन
(b) कार्बन मोनो-ऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड
(c) ओज़ोन और कार्बन डाइऑक्साइड
(d) नाइट्रस ऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड

उत्तर: (d)


मेन्स

प्रश्न. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा हाल ही में जारी किये गए संशोधित वैश्विक वायु गुणवत्ता दिशा-निर्देशों (AQGs) के मुख्य बिंदुओं का वर्णन कीजिये। विगत 2005 के अद्यतन से ये किस प्रकार भिन्न हैं? इन संशोधित मानकों को प्राप्त करने के लिये भारत के राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम में किन परिवर्तनों की आवश्यकता हैं? (2021)

प्रश्न. भारत सरकार द्वारा आरंभ किये गए राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एन.सी.ए.पी.) की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं? (2020)


भारतीय राजनीति

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम, 1989 पर निर्णय

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच न्यायालय, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अग्रिम जमानत, विधान सभा के सदस्य, विशेष न्यायालय

मेन्स के लिये:

नीतियों के डिज़ाइन और कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के संबंध में एक महत्त्वपूर्ण निर्णय दिया। न्यायालय ने जिस महत्त्वपूर्ण प्रश्न पर विचार किया, वह यह था कि अनुसूचित जाति (SC) या अनुसूचित जनजाति (ST) के सदस्यों को धमकाने या उनका अपमान करने के कृत्य स्वतः ही अधिनियम के उल्लंघन हैं या नहीं

  • यह निर्णय एक YouTube चैनल के संपादक को अग्रिम जमानत देने के संदर्भ में आया, जिस पर अधिनियम के तहत आरोप लगे थे।

SC/ST अधिनियम, 1989 के तहत अपमान पर सर्वोच्च न्यायालय का क्या निर्णय है?

  • मामले की पृष्ठभूमि: यह मामला इन आरोपों पर आधारित था कि संपादक (YouTuber) ने विधानसभा के एक सदस्य (MLA) के बारे में अपमानजनक टिप्पणी की थी, जो SC समुदाय से संबंधित है।
  • सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय:
    • अधिनियम का दायरा: सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि SC/ST के सदस्यों को निशाना बनाकर किया गया अपमान या धमकी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत स्वतः ही अपराध नहीं माना जाता।
      • यदि अपमान या धमकी पीड़ित की जातिगत पहचान से विशेष रूप से जुड़ा है तो  ही अधिनियम लागू किया जाना चाहिये।
        • अधिनियम की धारा 3(1)(r) के तहत न्यायालय ने 'अपमान करने के इरादे' की व्याख्या पीड़ित की जातिगत पहचान से निकटता से जुड़े होने के रूप में की।
      • केवल पीड़ित की SC/ST स्थिति जानना पर्याप्त नहीं है; अपमान का उद्देश्य जाति के आधार पर अपमानित करना होना चाहिये।
    • धारा 18 पर स्पष्टीकरण: न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अधिनियम की धारा 18, जो परंपरागत रूप से अग्रिम जमानत को प्रतिबंधित करती है, ऐसी जमानत देने पर पूरी तरह से रोक नहीं लगाती।
      • न्यायालयों को धारा 18 लागू करने से पहले यह निर्धारित करने के लिये प्रारंभिक जाँच करनी चाहिये कि क्या आरोप अधिनियम के तहत अपराध के मानदंडों को पूरा करते हैं।
    • न्यायालय ने संपादक को अग्रिम जमानत दे दी, क्योंकि प्रथम दृष्टया ऐसा कोई साक्ष्य नहीं मिला कि उसके द्वारा की गई टिप्पणी विधायक की जातिगत पहचान के कारण उन्हें अपमानित करने के इरादे से की गई थी।
      • निष्कर्ष के आधार पर न्यायालय ने यह कहा कि संपादक की टिप्पणियों का उद्देश्य विधायक की अनुसूचित जाति की स्थिति के आधार पर अपमान करना नहीं था।

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 क्या है?

  • परिचय: अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989, जिसे SC/ST अधिनियम 1989 के रूप में भी जाना जाता है, एससी और एसटी के सदस्यों को जाति-आधारित भेदभाव और हिंसा से बचाने के लिये अधिनियमित किया गया था।
    • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 और 17 में निहित, इस अधिनियम का उद्देश्य इन हाशिये पर स्थित समुदायों की सुरक्षा सुनिश्चित करना और पिछले कानूनों की अपर्याप्तता को दूर करना है।
  • ऐतिहासिक संदर्भ: यह अधिनियम अस्पृश्यता (अपराध) अधिनियम, 1955 और नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 पर आधारित है, जो जाति के आधार पर अस्पृश्यता तथा भेदभाव को समाप्त करने के लिये स्थापित किये गए थे।
  • नियम और कार्यान्वयन: केंद्र सरकार अधिनियम के कार्यान्वयन के लिये नियम बनाने हेतु अधिकृत है, जबकि राज्य सरकारें और केंद्रशासित प्रदेश केंद्रीय सहायता से इसे लागू करते हैं।
  • मुख्य प्रावधान: SC/ST अधिनियम सदस्यों के खिलाफ शारीरिक हिंसा, उत्पीड़न और सामाजिक भेदभाव सहित विशिष्ट अपराधों को परिभाषित करता है। यह इन कृत्यों को "अत्याचार" के रूप में मान्यता देता है और अपराधियों के लिये कठोर दंड निर्धारित करता है।
    • अधिनियम में अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों के विरुद्ध अत्याचार करने के दोषी पाए जाने वालों के लिये कठोर दंड का प्रावधान किया गया है। इनमें भारतीय दंड संहिता के तहत लगाए गए दंड से अधिक कठोर दंड शामिल हैं।
    • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 18 दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 438 के कार्यान्वयन पर रोक लगाती है, जो अग्रिम जमानत की अनुमति देती है।
    • अधिनियम में त्वरित सुनवाई के लिये विशेष न्यायालयों की स्थापना और अधिनियम के कार्यान्वयन की निगरानी के लिये वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के नेतृत्व में राज्य स्तर पर अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति संरक्षण प्रकोष्ठों की स्थापना का आदेश दिया गया है।
    • अधिनियम के तहत अपराधों की जाँच पुलिस उपाधीक्षक (DSP) के पद से नीचे के अधिकारी द्वारा नहीं की जानी चाहिये और निर्धारित समय सीमा के भीतर पूरी की जानी चाहिये।
    • इस अधिनियम में पीड़ितों को राहत और पुनर्वास प्रदान करने का प्रावधान है, जिसमें वित्तीय मुआवज़ा, कानूनी सहायता और सहायक सेवाएँ शामिल हैं।
  • बहिष्करण:  यह अधिनियम अनुचित जाति और अनुसूचित जनजाति के बीच हुए अपराधों को कवर नहीं करता है; इनमें से कोई भी एक-दूसरे के खिलाफ अधिनियम को लागू नहीं कर सकता है।
  • वर्तमान संशोधन:
    • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 2015: वर्ष 2015 के संशोधन का उद्देश्य अधिक कठोर प्रावधानों को शामिल करके और अधिनियम के दायरे का विस्तार करके अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों को दी जाने वाली सुरक्षा को मज़बूत करना था।
    • जूते की माला पहनाना, मैला ढोने के लिये मजबूर करना और सामाजिक या आर्थिक बहिष्कार तथा किसी भी तरह का सामाजिक बहिष्कार करना जैसे अपराधों की नई श्रेणियों को अब अपराध माना जाता है।
    • यौन शोषण और बिना सहमति के अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की महिलाओं को जानबूझकर छूना अपराध माना जाता है। अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की महिलाओं को देवदासी बनाने जैसी प्रथाएँ स्पष्ट रूप से गैरकानूनी हैं।
    • अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों से संबंधित कर्तव्यों की उपेक्षा करने वाले लोक सेवकों को कारावास का सामना करना पड़ता है।
    • अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 2018: किसी आरोपी को गिरफ्तार करने से पहले वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की मंज़ूरी की आवश्यकता को हटा दिया गया है। बिना पूर्व मंज़ूरी के तत्काल गिरफ्तारी की अनुमति दी गई है।

SC और ST अधिनियम, 1989 की कमियाँ क्या हैं?

  • विशेष न्यायालयों के लिये अपर्याप्त संसाधन: अत्याचार के मामलों को निपटाने हेतु नामित विशेष न्यायालयों में अक्सर पर्याप्त संसाधनों और बुनियादी ढाँचे का अभाव होता है।
    • इनमें से कई अदालतें SC/ST अधिनियम के दायरे से बाहर के मामलों को संभालती हैं, जिसके परिणामस्वरूप अत्याचार के मामलों का लंबित होना और उनका धीमी गति से निपटारा होता है।
  • अपर्याप्त पुनर्वास प्रावधान: अधिनियम पीड़ितों के पुनर्वास पर सीमित विवरण प्रदान करता है तथा अस्पष्ट तरीके से केवल सामाजिक और आर्थिक सहायता पर ही ध्यान केंद्रित करता है।
    • पीड़ितों को शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कठिनाइयों सहित कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। पीड़ितों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने में सहायता करने के लिये अधिक व्यापक पुनर्वास उपायों की आवश्यकता है।
  • जागरूकता का अभाव: पीड़ितों और कानून प्रवर्तन अधिकारियों सहित लाभार्थियों में अक्सर अधिनियम के प्रावधानों के बारे में जागरूकता का अभाव होता है।
    • इस कानून के सख्त प्रावधानों, जिसमें बिना वारंट के गिरफ्तारी और गैर-ज़मानती अपराध शामिल हैं, के कारण दुरुपयोग के आरोप लगे हैं। आलोचकों का तर्क है कि कानून के व्यापक दायरे के कारण गैर-SC/ST पृष्ठभूमि के व्यक्तियों पर झूठे आरोप लगाए जा सकते हैं और उन्हें परेशान किया जा सकता है।
  • कवर किये गए अपराधों का सीमित दायरा: कुछ अपराध, जैसे ब्लैकमेलिंग, जिसके कारण अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के बीच अत्याचार होते हैं, इस अधिनियम के अंतर्गत स्पष्ट रूप से कवर नहीं किये गए हैं।
    • अधिनियम की अत्याचार की परिभाषा में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों द्वारा सामना किये जाने वाले सभी प्रकार के दुर्व्यवहार शामिल नहीं हो सकते हैं, इसलिये ऐसे अपराधों को शामिल करने के लिये संशोधन की आवश्यकता है।

SC और ST अधिनियम, 1989 के संबंध में न्यायिक अंतर्दृष्टि

  • कनुभाई एम. परमार बनाम गुजरात राज्य, 2000: गुजरात उच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि यह अधिनियम अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के बीच किये गए अपराधों पर लागू नहीं होता है। 
    • तर्क यह है कि इस अधिनियम का उद्देश्य अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों को उनके समुदाय से बाहर के व्यक्तियों द्वारा किये गए अत्याचारों से बचाना है।
  • राजमल बनाम रतन सिंह, 1988: पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि SC एवं ST अधिनियम के तहत स्थापित विशेष न्यायालय, विशेष रूप से अधिनियम से संबंधित अपराधों की सुनवाई के लिये नामित हैं।
    • फैसले में इस बात पर जोर दिया गया कि इन अदालतों को नियमित मजिस्ट्रेट या सत्र अदालतों के साथ भ्रमित नहीं किया जाना चाहिये।
  • अरुमुगम सेरवाई बनाम तमिलनाडु राज्य, 2011: सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि SC/ST समुदाय के किसी सदस्य का अपमान करना SC और ST अधिनियम के तहत अपराध है।
  • सुभाष काशीनाथ महाजन बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य, 2018: सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अधिनियम की धारा 18 के तहत अग्रिम जमानत प्रावधानों का बहिष्कार पूर्ण प्रतिबंध नहीं है।
    • इसका अर्थ यह है कि भले ही धारा 18 अग्रिम जमानत पर रोक लगाती हो, फिर भी अदालत ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत दे सकती है, जहाँ अत्याचार या उल्लंघन के आरोप झूठे प्रतीत होते हों।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. SC/ST अधिनियम, 1989 के प्रमुख प्रावधानों पर चर्चा कीजिये। हाल के संशोधन और न्यायिक निर्णय इस कानून के प्रवर्तन और व्याख्या को किस प्रकार आकार देते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

मेन्स

प्रश्न. स्वतंत्रता के बाद अनुसूचित जनजातियों (एस.टी.) के प्रति भेदभाव को दूर करने के लिये, राज्य द्वारा की गई दो मुख्य विधिक पहलें क्या हैं ? (2017)


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