आंतरिक सुरक्षा
पर्सपेक्टिव: इंडो-पैसिफिक केंद्र में
- 26 Dec 2023
- 20 min read
प्रिलिम्स के लिये:इंडो-पैसिफिक, एक्ट ईस्ट पॉलिसी, भारतीय नौसेना मेन्स के लिये: |
प्रसंग क्या है?
भारतीय नौसेना के तीन दिवसीय वार्षिक शीर्ष-स्तरीय क्षेत्रीय रणनीतिक संवाद, "हिंद प्रशांत क्षेत्रीय संवाद 2023" (Indo-Pacific Regional Dialogue- IPRD 2023) में भारत के उपराष्ट्रपति ने कहा कि समुद्र अपनी विशाल आर्थिक क्षमता के कारण वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा के लिये नई सीमा के रूप में उभर रहा है।
- उन्होंने समुद्र और उसकी संपत्तियों पर दावों की संभावना को नियंत्रित करने के लिये एक नियामक व्यवस्था एवं उसके प्रभावी प्रवर्तन की आवश्यकता पर बल दिया।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की क्या भूमिका रही है?
- मानवीय सहायता:
- आपदा राहत कार्य:
- भारत सक्रिय रूप से आपदा राहत कार्यों में लगा हुआ है तथा भूकंप, चक्रवात और सुनामी जैसी घटनाओं के बाद निपटने के लिये कर्मियों एवं संसाधनों को तैनात कर रहा है।
- चिकित्सा कूटनीति:
- इंडो-पैसिफिक ने भारत को विशेष रूप से कोविड-19 महामारी के दौरान चिकित्सा सहायता के एक महत्त्वपूर्ण प्रदाता के रूप में उभरते हुए देखा है।
- आपदा राहत कार्य:
- सुरक्षा प्रदाता:
- समुद्री सुरक्षा:
- भारत ने समुद्री मार्गों की सुरक्षा और समुद्री डकैती से निपटने के लिये संयुक्त अभ्यास तथा गश्त करते हुए अपनी समुद्री उपस्थिति बढ़ा दी है।
- हिंद महासागर नौसेना संगोष्ठी (Indian Ocean Naval Symposium- IONS) और चतुर्भुज सुरक्षा संवाद (Quadrilateral Security Dialogue- Quad) जैसी पहल सुरक्षित समुद्री वातावरण सुनिश्चित करने के लिये भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं।
- रणनीतिक साझेदारी:
- द्विपक्षीय और बहुपक्षीय साझेदारियाँ हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की सुरक्षा रणनीति का अभिन्न अंग बन गई हैं।
- अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों और आसियान देशों के साथ सहयोग एक सामूहिक सुरक्षा वास्तुकला बनाने के भारत के प्रयासों को प्रदर्शित करता है।
- समुद्री कूटनीति और क्षमता निर्माण:
- सागर सिद्धांत के तहत भारत क्षेत्र के देशों के साथ संबंधों को मज़बूत करने के लिये समुद्री कूटनीति का उपयोग करते हुए क्षमता निर्माण में लगा हुआ है।
- नियम-आधारित आदेश को कायम रखना
- क्षेत्र में नियम-आधारित व्यवस्था को बनाए रखने में भारत की सक्रिय भूमिका स्थिरता बनाए रखने और समुद्री हितों की सुरक्षा के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
- समुद्री सुरक्षा:
क्षेत्रीय साझेदारी एवं गठबंधन भारत-प्रशांत क्षेत्र में समुद्री कनेक्टिविटी और सुरक्षा को कैसे बढ़ावा देते हैं?
- इंडो-पैसिफिक प्रतिमान का विकास:
- "इंडो-पैसिफिक" शब्द भू-राजनीतिक विमर्श में एक रणनीतिक बदलाव का प्रतिनिधित्व करता है, जो भारतीय और प्रशांत महासागरों के अंतर्संबंध को स्वीकार करता है।
- हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA):
- वर्ष 1997 में स्थापित IORA में 22 सदस्य देश शामिल हैं, जो आर्थिक और क्षेत्रीय एकीकरण को बढ़ावा देते हैं। ब्लू इकोनॉमी और IORA एक्शन प्लान जैसी पहलों के माध्यम से सदस्य देशों का लक्ष्य सतत् विकास एवं समुद्री सहयोग को बढ़ावा देना है।
- हिंद महासागर नौसेना संगोष्ठी (IONS):
- वर्ष 2008 में शुरू किया गया IONS नियम-आधारित समुद्री व्यवस्था को बढ़ावा देने, नौसैनिक सहयोग के लिये एक मंच के रूप में कार्य करता है। संगोष्ठी सूचना साझा करने, सहयोगात्मक प्रशिक्षण और संयुक्त नौसैनिक अभ्यास की सुविधा प्रदान करती है, जिससे सदस्य नौसेनाओं के बीच विश्वास तथा समझ को बढ़ावा मिलता है।
- भारत-प्रशांत महासागर पहल:
- वर्ष 2019 में बैंकॉक में पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा घोषित इंडो-पैसिफिक महासागर पहल एक सुरक्षित समुद्री डोमेन बनाने पर केंद्रित है। यह समावेशिता, स्थिरता तथा अंतर्राष्ट्रीय कानून के प्रति सम्मान बनाए रखने पर ज़ोर देता है।
- चुनौतियाँ और अवसर:
- हालाँकि क्षेत्रीय साझेदारियाँ और गठबंधन समुद्री कनेक्टिविटी एवं सुरक्षा को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं, फिर भी चुनौतियाँ लगातार बनी रहती हैं। अलग-अलग राष्ट्रीय हित, ऐतिहासिक विवाद और भू-राजनीतिक तनाव सहयोगात्मक प्रयासों की प्रभावशीलता में बाधा बन सकते हैं।
- हालाँकि ये चुनौतियाँ राजनयिक संवाद और संघर्ष समाधान के अवसर भी प्रस्तुत करती हैं, जो निरंतर जुड़ाव के महत्त्व को मज़बूत करती हैं।
समुद्री विवादों की संभावना को कैसे कम किया जा सकता है?
समुद्र का विशाल विस्तार लंबे समय से विश्व भर के देशों के लिये आकर्षण और आर्थिक अवसर का स्रोत रहा है। इसका मुख्य कारण समुद्र में मौजूद अपार आर्थिक क्षमता है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिये ऐसे उपाय तलाशना अनिवार्य हो जाता है, जिसमें समुद्र और उनके पास मौजूद मूल्यवान संपत्तियों पर दावों का मुकाबला करने की संभावना हो।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:
- मौजूदा समुद्री संधियों और समझौतों को मज़बूत करना।
- टिकाऊ समुद्री संसाधन प्रबंधन पर सहयोगात्मक अनुसंधान को बढ़ावा देना।
- कानूनी ढाँचे:
- समुद्री विवादों के लिये हेतु व्यापक अंतर्राष्ट्रीय कानूनी ढाँचे का विकास करना।
- समुद्र संबंधी विवादों को सुलझाने में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालयों और न्यायाधिकरणों की भूमिका को बढ़ाना।
- तकनीकी नवाचार:
- उन्नत निगरानी और निरीक्षण प्रौद्योगिकियों में निवेश करना।
- पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिये पर्यावरण अनुकूल समुद्री प्रौद्योगिकियों के विकास को बढ़ावा देना।
- कूटनीति और संघर्ष समाधान:
- विवादित दावों को संबोधित करने के लिये राजनयिक संवाद को प्रोत्साहित करना।
- तनाव बढ़ने से बचने के लिये शांतिपूर्ण संघर्ष समाधान हेतु तंत्र स्थापित करना।
वैश्विक समुदाय की सेवा में वर्तमान कानून और कन्वेंशन कितने प्रभावी रहे हैं?
- समुद्री कानूनों और सम्मेलनों का ऐतिहासिक विकास:
- अंतर्राष्ट्रीय समुद्री कानून का विकास:
- वर्ष 1982 में समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCLOS) की स्थापना ने समुद्री कानून के विकास में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि प्राप्त की, जिसने दुनिया के महासागरों के उपयोग में देशों के अधिकारों और ज़िम्मेदारियों के लिये एक व्यापक ढाँचा प्रदान किया।
- प्रमुख सम्मेलन और संधियाँ:
- रक्षा, सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण पर अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (International Maritime Organization- IMO) सम्मेलन जैसे विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय समझौते, समुद्री गतिविधियों को नियंत्रित करने वाले वैश्विक कानूनी ढाँचे में योगदान करते हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय समुद्री कानून का विकास:
- उपलब्धियाँ और सकारात्मक प्रभाव:
- सुरक्षा और नेविगेशन:
- समुद्र में जीवन की सुरक्षा के लिये अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन (SOLAS) और नाविकों के लिए प्रशिक्षण, प्रमाणन एवं निगरानी के मानकों पर अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन (STCW) ने सुरक्षा मानकों में उल्लेखनीय वृद्धि की है, जिससे समुद्री दुर्घटनाओं तथा हताहतों की संख्या में कमी आई है।
- पर्यावरण संरक्षण:
- जहाज़ों से होने वाले प्रदूषण की रोकथाम के लिये अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय (MARPOL Convention) जैसे सम्मेलनों ने शिपिंग गतिविधियों के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने और तेल रिसाव तथा वायु उत्सर्जन जैसे मुद्दों को संबोधित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- विवाद समाधान:
- UNCLOS ने समुद्री विवादों के शांतिपूर्ण समाधान के लिये एक तंत्र प्रदान किया है, जो संघर्षों की रोकथाम और राष्ट्रों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने में योगदान देता है।
- सुरक्षा और नेविगेशन:
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और सहभागिता:
- अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की भूमिका:
- IMO और समुद्र के कानून के लिये अंतर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरण (ITLOS) जैसे संगठन सहयोग को सुविधाजनक बनाने तथा मौजूदा कानूनी ढाचे में मौजूद कमियों को दूर करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- द्विपक्षीय और बहुपक्षीय समझौते:
- समुद्री शासन के लिये अधिक सूक्ष्म और अनुकूलनीय दृष्टिकोण को बढ़ावा देने, मौजूदा सम्मेलनों के पूरक हेतु राष्ट्र तेज़ी से द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय समझौतों में संलग्न हो रहे हैं।
- समीक्षा की आवश्यकता:
- समुद्र के मौजूदा कानूनों के पुनर्मूल्यांकन और समीक्षा की आवश्यकता है। तात्कालिकता को क्षेत्रीय विवादों द्वारा उजागर किया गया है, उदाहरण के लिये पैरासेल और स्प्रैटली द्वीप समूह, स्कारबोरो शोल एवं सेंट थॉमस।
- अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की भूमिका:
- चुनौतियाँ और सीमाएँ:
- प्रवर्तन मुद्दे:
- व्यापक कानूनी ढाँचे के अस्तित्व के बावजूद, प्रवर्तन एक महत्त्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है, कुछ देशों में अंतर्राष्ट्रीय समुद्री कानूनों को लागू करने और बनाए रखने की क्षमता या इच्छा की कमी है।
- उभरते खतरे:
- साइबर खतरों एवं समुद्री डकैती जैसी नई चुनौतियों का आगमन उभरते जोखिमों से निपटने के लिये मौजूदा समुद्री कानूनों के निरंतर अनुकूलन और सुधार की आवश्यकता को प्रदर्शित करता है।
- शासन में कमियाँ:
- शासन में खामियाँ मौजूद हैं, खासकर राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे के क्षेत्रों में, जहाँ मौजूदा कानूनी उपकरणों की प्रभावशीलता सीमित है।
- प्रवर्तन मुद्दे:
- भारत के समुद्री हितों पर जलवायु परिवर्तन का संभावित प्रभाव क्या है?
- भारत की कमज़ोरियाँ और चुनौतियाँ:
- वर्तमान ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन परिदृश्यों के कारण समुद्र के जलस्तर तथा प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति में लगातार वृद्धि हो रही है।
- पूर्वानुमान संकेत देते हैं कि सदी के अंत तक बॉम्बे सात द्वीपों में वापस आ सकता है, तथा लक्षद्वीप द्वीप समूह के महत्त्वपूर्ण हिस्से पहले से ही जलमग्न हैं।
- समुद्र के बढ़ते स्तर के कारण अगत्ती द्वीप जैसे तटीय क्षेत्रों में कटाव हो रहा है।
- क्षेत्र में जैवविविधता पर प्रभाव सीधे तौर पर समुद्री जीवन को प्रभावित करता है, जिससे भारत में दस लाख से अधिक लोग प्रभावित होते हैं जो अपनी आजीविका के लिये समुद्र पर निर्भर हैं।
- बढ़ते तापमान के कारण मछलियाँ ठंडे जल की ओर पलायन कर रही हैं, जिससे मछली पकड़ने पर निर्भर लोगों की आजीविका प्रभावित हो रही है।
- महासागरीय धाराओं में प्रत्याशित परिवर्तन से पता चलता है कि भारत के पश्चिमी तट पर अधिक चरम मौसम की घटनाओं का अनुभव होगा, जो खाद्य सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न करेगा।
- वर्तमान ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन परिदृश्यों के कारण समुद्र के जलस्तर तथा प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति में लगातार वृद्धि हो रही है।
- आर्थिक प्रभाव:
- भारत के समुद्री हितों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव तात्कालिक भौतिक क्षति से कहीं अधिक है।
- बाधित बंदरगाहों, क्षतिग्रस्त जहाज़ों और समझौता किये गए समुद्री बुनियादी ढाँचे से पर्याप्त आर्थिक नुकसान हो सकता है, जिससे व्यापार, शिपिंग एवं समग्र समुद्री अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है।
भारत की समुद्री सुरक्षा क्षमता कितनी मज़बूत है?
- ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:
- भारत का समुद्री इतिहास समृद्ध है, समुद्री यात्रा की विरासत सदियों पुरानी है। हालाँकि आधुनिक चुनौतियों के लिये एक पृथक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है, जिसमें समुद्री डकैती, आतंकवाद और क्षेत्रीय विवादों जैसे समकालीन खतरों से निपटने हेतु अत्याधुनिक तकनीकों की आवश्यकता होती है।
- नौसेना संपत्तियाँ और क्षमताएँ:
- नौसेना के सतही बेड़े:
- भारत की नौसैनिक ताकत उसके सतही बेड़े में निहित है, जिसमें विध्वंसक, फ्रिगेट और कार्वेट का मिश्रण शामिल है।
- पनडुब्बी बेड़े:
- स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बियों के शामिल होने से भारतीय नौसेना की पनडुब्बी शाखा में महत्त्वपूर्ण प्रगति देखी गई है।
- विमान वाहक क्षमता:
- INS विक्रमादित्य की कमीशनिंग और स्वदेशी विमान वाहक, INS विक्रांत का चल रहा विकास, हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री शक्ति पेश करने के लिये भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है।
- नौसेना के सतही बेड़े:
- तकनीकी तत्परता:
- निगरानी और रिकॉनिसेंस:
- भारत ने उपग्रहों अनमैन्ड एरियल व्हीकल (UAV) और समुद्री गश्ती विमानों की तैनाती के माध्यम से समुद्री निगरानी में प्रगति की है।
- संचार और नेटवर्किंग:
- समुद्री सुरक्षा के लिये प्रभावी संचार महत्त्वपूर्ण है और भारत ने सुरक्षित संचार प्रणालियों एवं नेटवर्क-केंद्रित युद्ध क्षमताओं में निवेश किया है।
- साइबर सुरक्षा और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध:
- जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी विकसित होती है, वैसे-वैसे साइबरस्पेस में खतरे भी बढ़ते हैं। भारत ने समुद्री हितों की सुरक्षा में साइबर सुरक्षा और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध के महत्त्व को पहचाना है। नौसेना नेटवर्क को साइबर खतरों तथा इलेक्ट्रॉनिक हस्तक्षेप से बचाने के लिये सरकार द्वारा मज़बूत उपाय किये गए हैं।
- निगरानी और रिकॉनिसेंस:
आगे की राह
- अनुकूलन और शमन उपाय:
- भारत को अपने समुद्री हितों की सुरक्षा के लिये मज़बूत अनुकूलन और शमन रणनीतियों की आवश्यकता है। लचीले बुनियादी ढाँचे, आपदा प्रबंधन के लिये नवीन प्रौद्योगिकियों और सतत् तटीय विकास में निवेश अनिवार्य है।
- राजनयिक और क्षेत्रीय सहयोग:
- जलवायु परिवर्तन के समुद्री प्रभावों को संबोधित करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय साझेदारों और क्षेत्रीय गठबंधनों के साथ सहयोग महत्त्वपूर्ण है। अनुसंधान, प्रौद्योगिकी साझाकरण और नीति ढाँचे में सहयोग जोखिमों को कम करने एवं स्थायी समाधान सुनिश्चित करने में सहायता कर सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से किसके द्वारा भारत एवं पूर्वी एशिया के बीच नौ संचालन समय (नेविगेशन टाइम) और दूरी अत्यधिक कम किये जा सकते हैं? (2011)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: B मेन्स:प्रश्न 1. 2012 में समुद्री डकैती के उच्च जोखिम क्षेत्रों के लिये देशांतरी अंकन अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन द्वारा अरब सागर में 65 डिग्री पूर्व से 78 डिग्री पूर्व तक खिसका दिया गया था। भारत के समुद्री सुरक्षा सरोकारों पर इसका क्या परिणाम है? (2014) प्रश्न 2. परियोजना 'मौसम' भारत सरकार की अपने पड़ोसियों के साथ संबंध की सुदृढ़ करने की एक अद्वितीय विदेश नीति पहल माना जाता है। क्या इस परियोजना का एक रणनीतिक आयाम है? चर्चा कीजिये। (2015) |