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डेली न्यूज़

  • 29 Jan, 2024
  • 72 min read
शासन व्यवस्था

हेल्थकेयर में जेनरेटिव AI का एथिकल प्रयोग

प्रिलिम्स के लिये:

हेल्थकेयर में जेनेरेटिव AI का एथिकल प्रयोग, विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO), जेनेरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), लार्ज मल्टी-मोडल मॉडल (LMM)।

मेन्स के लिये:

हेल्थकेयर में जेनरेटिव AI का एथिकल प्रयोग, सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी), अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-प्रौद्योगिकी और जैव-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में जागरूकता।

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) ने चैटजीपीटी (ChatGPT), बार्ड (Bard) और बर्ट (Bert) जैसी जेनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) प्रौद्योगिकियों के परिवर्तनकारी प्रभाव को स्वीकार करते हुए स्वास्थ्य सेवा में लार्ज मल्टी-मोडल मॉडल (LMM) के एथिकल/नैतिक प्रयोग और संचालन के लिये दिशानिर्देश जारी किया है।

लार्ज मल्टी-मोडल मॉडल (Large Multi-Modal Models- LMM) क्या है?

  • LMM ऐसा मॉडल है जो मानव जैसी धारणा की नकल करने के लिये कई संवेदी इनपुट का प्रयोग करता है। यह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) को मानव संचार की एक विस्तृत शृंखला पर प्रतिक्रिया करने में सहायता करता है, जिससे संचार अधिक वास्तविक और सहज हो जाती है।
  • LMM कई डेटा प्रकारों को एकीकृत करते हैं, जैसे इमेज, टेक्स्ट, लैंग्वेज, ऑडियो और अन्य विविधता। यह मॉडलों को छवियों, वीडियो और ऑडियो को समझने और उपयोगकर्त्ताओं के साथ संवाद करने में मदद करता है। 
  • मल्टीमॉडल LMM के कुछ उदाहरणों में GPT-4V, MedPalm M, Dall-E, Stable Diffusion और Midjourney शामिल हैं।

 स्वास्थ्य देखभाल में LMM के प्रयोग के संबंध में WHO के दिशानिर्देश क्या हैं?

  • WHO का नया मार्गदर्शन स्वास्थ्य देखभाल में LMM के पाँच व्यापक अनुप्रयोगों की रूपरेखा प्रदान करता है:
    • निदान और नैदानिक देखभाल, जैसे रोगियों के लिखित प्रश्नों का उत्तर देना;
    • रोगी-निर्देशित उपयोग, जैसे लक्षणों की जाँच और उपचार के लिये;
    • लिपिकीय और प्रशासनिक कार्य, जैसे इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड के भीतर रोगियों के विज़िट (Patient Visits) का दस्तावेज़ीकरण और सारांश बनाना;
    • चिकित्सा और नर्सिंग शिक्षा, जिसमें प्रशिक्षुओं को नकली रोगी मुठभेड़ प्रदान करना शामिल है, और;
    • इसमें औषधियों के लिये नए यौगिकों की पहचान सहित वैज्ञानिक अनुसंधान और औषधि विकास शामिल है।

नोट: भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद् (Indian Council of Medical Research- ICMR) ने जून 2023 में बायोमेडिकल अनुसंधान और स्वास्थ्य देखभाल में AI के लिये एथिकल/नैतिक दिशानिर्देश जारी किये।

स्वास्थ्य सेवा में LMM के बारे में WHO ने क्या चिंताएँ जताई हैं? 

  • तेज़ी से अपनाने और सावधानी की आवश्यकता:
    • LMM को अपनाने की दर किसी भी अन्य उपभोक्ता प्रौद्योगिकी से आगे निकल गई है, जो अद्वितीय है।
      • LMM मानव संचार की नकल करने और स्पष्ट प्रोग्रामिंग के बिना कार्य करने की क्षमता के लिये जाना जाता है।
    • हालाँकि इसे तेज़ी से अपनाने से इसके संभावित खतरों तथा लाभों का तुलनात्मक अध्ययन आवश्यक है।
  • जोखिम और चुनौतियाँ:
    • अपने आशाजनक अनुप्रयोगों के बावजूद LMM जोखिम उत्पन्न कर सकते हैं जिसमें झूठे, गलत या पक्षपातपूर्ण जानकारी शामिल हैं जो स्वास्थ्य संबंधी निर्णयों को प्रभावित कर सकते हैं।
    • इन मॉडलों को प्रशिक्षित करने के लिये उपयोग किया जाने वाला डेटा गुणवत्ता अथवा पूर्वाग्रह के मुद्दों से प्रभावित हो सकता है जो संभावित रूप से नस्ल, जातीयता, लिंग, लिंग पहचान अथवा आयु के आधार पर होने वाली असमानताओं को जारी रखने में भूमिका निभा सकता है।
  • LMM की पहुँच और वहनीयता:
    • इसके अतिरिक्त अन्य चिंताएँ भी हैं जैसे: LMM की पहुँच तथा वहनीयता एवं स्वास्थ्य देखभाल में ऑटोमेशन पूर्वाग्रह (Automation Bias) (स्वचालित प्रणालियों पर बहुत अधिक भरोसा करने की प्रवृत्ति) का जोखिम जिससे पेशेवर एवं मरीज़ द्वारा त्रुटियों को नज़रअंदाज़ करने की संभावना बढ़ जाती है।
  • साइबर सुरक्षा:
    • रोगी की जानकारी की संवेदनशीलता तथा इन एल्गोरिदम की विश्वसनीयता पर निर्भरता को देखते हुए साइबर सुरक्षा एक अन्य महत्त्वपूर्ण मुद्दा है।

LMM से संबंधित WHO की प्रमुख सिफारिशें क्या हैं?

  • WHO द्वारा LMM विकास तथा नियोजन के सभी चरणों में सरकारों, प्रौद्योगिकी कंपनियों, स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं, रोगियों एवं नागरिक समाज को शामिल करते हुए एक सहयोगात्मक दृष्टिकोण पर संपर्क स्थापित किया गया।
  • AI प्रौद्योगिकियों को प्रभावी ढंग से विनियमित करने के लिये वैश्विक सहकारी नेतृत्त्व की आवश्यकता पर बल दिया गया। सभी देशों की सरकारों को LMM जैसी AI प्रौद्योगिकियों के विकास एवं उपयोग को प्रभावी ढंग से विनियमित करने के लिये सहयोगात्मक रूप से प्रयास करना चाहिये।
  • यह नया मार्गदर्शन उनकी जटिलताओं और नैतिक विचारों को ध्यान में रखते हुए स्वास्थ्य सेवा में LMM की क्षमता का उपयोग करने के लिये एक रोडमैप प्रदान करता है।
    • मई 2023 में WHO ने स्वास्थ्य के लिये AI के डिज़ाइन, विकास और नियोजन करने के दौरान नैतिक सिद्धांतों तथा उचित शासन को क्रियान्वित करने के महत्त्व पर प्रकाश डाला था जैसा कि स्वास्थ्य के लिये AI की नैतिकता और शासन पर WHO के मार्गदर्शन में बताया गया है।
  • WHO द्वारा पहचाने गए छह मूल सिद्धांत निम्नलिखित हैं:
    • स्वायत्तता की रक्षा करना।
    • मानव कल्याण, मानव सुरक्षा और सार्वजनिक हित को बढ़ावा देना।
    • पारदर्शिता, व्याख्यात्मकता और सुगमता सुनिश्चित करना।
    • उत्तरदायित्व और जवाबदेही सुनिश्चित करना।
    • समावेशिता और समानता सुनिश्चित करना।
    • प्रतिक्रियाशील और सतत् AI को बढ़ावा देना।

वैश्विक स्तर पर AI वर्तमान में किस प्रकार संचालित है?

  • भारत:
    • नीति आयोग ने AI के लिये राष्ट्रीय रणनीति और रिस्पॉन्सिबल AI फॉर ऑल रिपोर्ट जैसे मुद्दों पर कुछ मार्गदर्शक दस्तावेज़ जारी किये हैं।
    • भारत सामाजिक और आर्थिक समावेशन, नवाचार और भरोसे को प्रोत्साहित करता है।
  • ब्रिटेन:
    • ब्रिटेन ने AI के लिये मौजूदा नियमों को लागू करने हेतु विभिन्न क्षेत्रों में नियामकों से जानकारी एकत्रित करने के लिये सरल दृष्टिकोण को अपनाया है।
    • कंपनियों द्वारा पालन किये जाने वाले पाँच सिद्धांतों को रेखांकित करते हुए एक श्वेतपत्र प्रकाशित किया गया जिसमें सुरक्षा और मज़बूती; पारदर्शिता एवं व्याख्यात्मकता; निष्पक्षता; जवाबदेही तथा शासन; प्रतिस्पर्द्धात्मकता एवं निवारण की व्याख्या की गई है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका:
    • अमेरिका ने AI बिल ऑफ राइट्स (AIBoR) हेतु एक ब्लूप्रिंट जारी किया, जिसमें आर्थिक एवं नागरिक अधिकारों के लिये AI के नकारात्मक प्रभाव को रेखांकित किया गया है तथा इन प्रभावों को कम करने हेतु पाँच सिद्धांत दिये गए हैं।
    • यह ब्लूप्रिंट स्वास्थ्य, श्रम और शिक्षा जैसे कुछ क्षेत्रों हेतु नीतिगत हस्तक्षेप के साथ यूरोपीय संघ की तरह क्षैतिज रणनीति के बजाय AI शासन के लिये क्षेत्र विशेष का समर्थन करता है, जिससे क्षेत्रीय संघीय एजेंसियों को अपनी योजनाओं को तैयार करने की अनुमति मिलती है।
  • चीन:
    • वर्ष 2022 में चीन ने विशिष्ट प्रकार के एल्गोरिदम और AI को लक्षित करने वाले विश्व के कुछ पहले राष्ट्रीय बाध्यकारी नियम बनाए हैं।
    • इसने अनुशंसा एल्गोरिदम को विनियमित करने हेतु कानून बनाया, जिसमें इस बात पर ध्यान दिया गया कि वे सूचना का प्रसार कैसे करते हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स  

प्रश्न.1  विकास की वर्तमान स्थिति में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence), निम्नलिखित में से किस कार्य को प्रभावी रूप से कर सकती है? (2020)

  1. औद्योगिक इकाइयों में विद्युत की खपत कम करना 
  2.  सार्थक लघु कहानियों और गीतों की रचना 
  3.  रोगों का निदान 
  4.  टेक्स्ट-से-स्पीच (Text-to-Speech) में परिवर्तन 
  5.  विद्युत ऊर्जा का बेतार संचरण

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2, 3 और 5
(b) केवल 1, 3 और 4
(c) केवल 2, 4 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर: (b)


प्रश्न. 2  निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2018)

 कभी-कभी खबरों में रहे शब्द                 संदर्भ/विषय

  1. बेल II प्रयोग              -                    कृत्रिम  बुद्धिमत्ता
  2.  ब्लॉकचेन                  -                    डिजिटल/क्रिप्टोकरेंसी                    
  3.  CRISPR - Cas9     -                     कण भौतिकी

उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं?

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: B 


मेन्स:

प्रश्न: निषेधात्मक श्रम के कौन से क्षेत्र हैं जिन्हें रोबोट द्वारा स्थायी रूप से प्रबंधित किया जा सकता है? उन पहलों पर चर्चा कीजिये जो प्रमुख शोध संस्थानों में शोध को वास्तविक और लाभकारी नवाचार के लिये प्रेरित कर सकती हैं।  (2015)

प्रश्न. "चौथी औद्योगिक क्रांति (डिजिटल क्रांति) के प्रादुर्भाव ने ई-गवर्नेंस को सरकार का अविभाज्य अंग बनाने में पहल की है"। विवेचन कीजिये। (2020)


आंतरिक सुरक्षा

BSF क्षेत्राधिकार का विस्तार

प्रिलिम्स के लिये:

सीमा सुरक्षा बल (BSF), सात केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल, दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC),1973, पासपोर्ट अधिनियम 1967, पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम 1920, मादक औषधियाँ (नारकोटिक ड्रग्स) और ‘नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस’ (NDPS) अधिनियम, 1985 

मेन्स के लिये:

BSF क्षेत्राधिकार का विस्तार, आंतरिक सुरक्षा के लिये चुनौतियाँ पैदा करने में बाहरी राज्य और गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं की भूमिका।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स 

चर्चा में क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court - SC) पंजाब में सीमा सुरक्षा बल (Border Security Force- BSF) के अधिकार क्षेत्र के विस्तार के विवाद पर सुनवाई करने के लिये तैयार है।

  • गृह मंत्रालय द्वारा 2021 में, एक अधिसूचना जारी की गई थी, जिसमें पंजाब, पश्चिम बंगाल और असम को शामिल करने के लिये BSF के अधिकार क्षेत्र का विस्तार किया गया था, बाद में पंजाब सरकार द्वारा इसे  चुनौती दी।

सीमा सुरक्षा बल (BSF) क्या है?

BSF क्षेत्राधिकार क्यों बढ़ाया गया?

  • BSF का क्षेत्राधिकार:
  • BSF के क्षेत्राधिकार का विस्तार:
    • अक्टूबर 2021 में, जारी अधिसूचना से पहले BSF पंजाब, पश्चिम बंगाल और असम में सीमा के 15 किलोमीटर के भीतर अपनी शक्तियों का प्रयोग कर सकता था। केंद्र ने इसका विस्तार सीमा के 50 किलोमीटर के अंदर तक कर दिया है।
      • अधिसूचना में कहा गया है कि 50 किलोमीटर के बड़े क्षेत्राधिकार के भीतर, BSF केवल CrPC, पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम और पासपोर्ट अधिनियम के तहत शक्तियों का प्रयोग कर सकता है।
      • अन्य केंद्रीय कानूनों के लिये, 15 किलोमीटर की सीमा बनी हुई है।
    • मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नगालैंड, त्रिपुरा, जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख राज्यों में यह राज्य के पूरे क्षेत्र तक फैला हुआ है।
  • क्षेत्राधिकार के विस्तार के कारण:
    • ड्रोन और UAV का उपयोग बढ़ा:  BSF के अधिकार क्षेत्र का विस्तार,  ड्रोन और मानव रहित हवाई वाहनों (Unmanned Aerial Vehicles - UAV) के बढ़ते उपयोग के जवाब में किया गया था, जो लंबी दूरी तय करने की क्षमता रखते हैं और हथियारों तथा जाली मुद्रा  की तस्करी के लिये उपयोग किये जाते हैं।
    • मवेशी तस्करी: मवेशी तस्करी एक और मुद्दा है जिससे निपटना BSF का लक्ष्य है। क्षेत्राधिकार का विस्तार BSF को उन तस्करों द्वारा उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करने में सहायता करता है जो इन सैन्य बलों के मूल क्षेत्राधिकार से परे क्षेत्रों का लाभ उठाने का प्रयास कर सकते हैं।
      • तस्कर प्रायः BSF के क्षेत्राधिकार से बाहर शरण लेते हैं।
    • समान क्षेत्राधिकार: पंजाब, पश्चिम बंगाल और असम में BSF क्षेत्राधिकार का विस्तार 50 किलोमीटर की सीमा को मानकीकृत करके भारत के सभी राज्यों में BSF के अधिकार क्षेत्र में एकरूपता स्थापित करता है, जो पहले से ही राजस्थान में लागू थी।
      • इसके अतिरिक्त, अधिसूचना ने गुजरात में क्षेत्राधिकार को 80 किलोमीटर से घटाकर 50 किलोमीटर कर दिया।

BSF क्षेत्राधिकार के विस्तार से संबंधित राज्यों द्वारा उठाए गए मुद्दे क्या हैं?

  • राज्य की शक्तियों के संदर्भ में चिंताएँ: 
    • BSF के क्षेत्राधिकार का विस्तार पुलिस और लोक व्यवस्था से संबंधित मामलों पर कानून बनाने की राज्य की विशेष शक्तियों का अतिक्रमण कर सकता है।
    • ये शक्तियाँ संविधान के अनुच्छेद 246 के अनुसार राज्य सूची की प्रविष्टि 1 और 2 के तहत राज्यों को प्रदान की गई हैं।
      • हालाँकि केंद्र सरकार के पास संघ सूची की प्रविष्टि 1 (भारत की रक्षा), 2 (सशस्त्र बल) और 2A (सशस्त्र बलों की तैनाती) के तहत निर्देश जारी करने की विधायी क्षमता भी है।
    • BSF के क्षेत्राधिकार का विस्तार करके, केंद्र सरकार ने उन क्षेत्रों में कदम बढ़ा दिया है जहाँ पारंपरिक रूप से राज्यों का अधिकार है।
  • असहयोगी संघवाद:
    • कुछ राज्य BSF के क्षेत्राधिकार के विस्तार को संघवाद के सिद्धांतों के लिये एक चुनौती के रूप में देखते हैं, जो केंद्र सरकार और राज्यों के बीच शक्तियों के वितरण पर ज़ोर देता है।
  • भौगोलिक अंतर:
    • पंजाब में, बड़ी संख्या में शहर और कस्बे 50 किलोमीटर के क्षेत्राधिकार में आते हैं, जबकि गुजरात तथा राजस्थान में, अंतर्राष्ट्रीय सीमा से लगे क्षेत्र बहुत कम आबादी वाले हैं, जिनमें मुख्य रूप से दलदली भूमि या रेगिस्तान शामिल हैं।
    • यह भौगोलिक अंतर क्षेत्राधिकार विस्तार के प्रभाव को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों में से एक है।

राज्यों के क्षेत्राधिकार से समझौता किये बिना सीमा प्रबंधन हेतु क्या करने की आवश्यकता है?

  • सहयोगात्मक दृष्टिकोण:
    • सीमा सुरक्षा को संयुक्त रूप से प्रबंधित करने के लिये केंद्रीय और राज्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
    • विभिन्न सुरक्षा बलों के बीच सूचना साझा करने और समन्वय के लिये एक रूपरेखा स्थापित करने की आवश्यकता है।
      • विशिष्ट सीमा क्षेत्रों के लिये केंद्रीय और राज्य पुलिस कर्मियों को शामिल करते हुए संयुक्त कार्य बल के गठन की आवश्यकता है।
  • राज्य पुलिस की भागीदारी:
    • BSF जैसे केंद्रीय बलों के प्रयासों को पूरा करने के लिये सीमा निगरानी में राज्य पुलिस की इकाइयों को शामिल करने की आवश्यकता है।
      • तटरक्षक बल और भारतीय नौसेना द्वारा समुद्र में की गई व्यवस्था के समान एक मॉडल अपनाने की आवश्यकता है, जहाँ प्रत्येक बल के पास विशेष क्षेत्राधिकार तो हों लेकिन सभी पारस्परिक सतर्कता में संलग्न रहें। 
  • प्रौद्योगिकी एकीकरण:
    • सीमा पर निगरानी बढ़ाने के लिये ड्रोन, सेंसर और संचार प्रणालियों सहित उन्नत निगरानी प्रौद्योगिकियों में निवेश किया जाना चाहिये।
    • एक केंद्रीकृत सूचना-साझाकरण प्लेटफॉर्म स्थापित किया जाना चाहिये जो रियल-टाइम एनालिसिस/वास्तविक समय विश्लेषण के लिये विभिन्न स्रोतों से डेटा को एकीकृत करता है।
  • स्पष्ट कानूनी ढाँचा:
    • एक स्पष्ट कानूनी ढाँचा विकसित किया जाना चाहिये जो सीमावर्ती क्षेत्रों में केंद्रीय और राज्य बलों दोनों की भूमिकाओं, ज़िम्मेदारियों एवं क्षेत्राधिकार को रेखांकित करे।
    • सीमा पार की घटनाओं से निपटने और आवश्यकता पड़ने पर संयुक्त जाँच करने के लिये प्रोटोकॉल स्थापित किया जाना चाहिये।
  • नियमित परामर्श:
    • सीमा प्रबंधन से संबंधित चिंताओं और चुनौतियों के समाधान के लिये केंद्र तथा राज्य अधिकारियों के बीच नियमित परामर्श एवं बैठक आयोजित करने की आवश्यकता है।
    • उभरती सुरक्षा गतिशीलता के आधार पर रणनीतियों को अनुकूलित करने के लिये निरंतर संवाद हेतु एक मंच स्थापित किया जाना चाहिये।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:
    • सीमा सुरक्षा मामलों पर पड़ोसी देशों के साथ सहयोग बढ़ाने के लिये राजनयिक पहल में संलग्न होने की आवश्यकता है।
    • अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिये पड़ोसी देशों के साथ संयुक्त पहल, सूचना साझाकरण और समन्वित गश्ती/सुरक्षा गतिविधि की आवश्यकता है।

राज्यों में सशस्त्र बलों की तैनाती से संबंधित सांविधानिक उपबंध क्या हैं?

  • अनुच्छेद 355 के तहत केंद्र सरकार को किसी राज्य को "बाह्य आक्रमण तथा आंतरिक अशांति" से संरक्षा करने के लिये सेना तैनात करने का अधिकार है, इनमें वे मामले भी शामिल हैं जिनमें राज्य द्वारा केंद्र से सहायता का अनुरोध नहीं किया गया है एवं केंद्रीय बलों की सहायता प्राप्त करने में अनिच्छुक है।
  • संघ के सशस्त्र बलों की तैनाती के लिये किसी राज्य के विरोध के मामले में केंद्र के लिये सही रास्ता पहले संबंधित राज्य को अनुच्छेद 355 के तहत निर्देश जारी करना है।
  • राज्य द्वारा केंद्र सरकार के निर्देश का अनुपालन नहीं करने की स्थिति में केंद्र अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) के तहत आगे की कार्रवाई कर सकता है।

भारत में केंद्र-राज्य संबंधों से संबंधित सांविधानिक उपबंध क्या हैं?

  • विधायी संबंध:
    • संविधान के भाग-XI में अनुच्छेद 245 से 255 तक केंद्र-राज्य विधायी संबंधों की चर्चा की गई है।
      • भारतीय संविधान की संघीय प्रकृति के आलोक में यह क्षेत्र और विधि दोनों ही आधार पर केंद्र तथा राज्यों के बीच विधायी शक्तियों को विभाजित करता है।
    • विधायी विषयों का विभाजन (अनुच्छेद 246): भारतीय संविधान में सातवीं अनुसूची में तीन सूचियों: सूची- I (संघ), सूची- II (राज्य) और सूची- III (समवर्ती) के माध्यम से केंद्र तथा राज्यों के बीच विभिन्न विषयों के विभाजन का प्रावधान किया गया है।
    • राज्य के क्षेत्राधिकार में संसदीय विधान (अनुच्छेद 249): असामान्य परिस्थिति में शक्तियों के इस विभाजन को संशोधित या निलंबित कर दिया जाता है। 
  • प्रशासनिक संबंध (अनुच्छेद 256-263):
    • संविधान के भाग XI में अनुच्छेद 256-263 तक केंद्र तथा राज्यों के प्रशासनिक संबंधों की चर्चा की गई है।
  • वित्तीय संबंध (अनुच्छेद 256-291):
    • संविधान के भाग XII में अनुच्छेद 268 से 293 केंद्र-राज्य वित्तीय संबंधों से संबंधित हैं।
      • चूँकि भारत एक संघीय देश है इसलिये जब कराधान के विषय में यह शक्तियों के विभाजन का अनुपालन करता है तथा राज्यों को धन आवंटित करना केंद्र का उत्तरदायित्व है।
  • अनुच्छेद-131: आरंभिक अधिकारिता:
    • सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court- SC) (भारत के एक संघीय न्यायालय के रूप में) के पास भारतीय संघ की विभिन्न इकाइयों के बीच उत्पन्न होने वाले विवादों का निर्णय करने की आरंभिक अधिकारिता (Original Jurisdiction) है, जिनमें निम्नलिखित विवाद शामिल हैं:
      • केंद्र तथा एक या अधिक संघ के राज्यों के बीच के विवाद।
      • एक ओर केंद्र और किसी राज्य या राज्यों एवं दूसरी ओर एक या अधिक अन्य राज्यों के बीच के विवाद।
      • परस्पर दो या अधिक राज्यों के बीच का विवाद।
        • उपर्युक्त मामलों के संबंध में SC के पास अनन्य आरंभिक अधिकारिता है, जिसका अर्थ है कि देश का कोई अन्य न्यायालय संबद्ध विवादों पर निर्णय नहीं कर सकता है एवं SC के पास ऐसे विवादों की प्रथमतः सुनवाई करने की शक्ति है जिसमें अपील की आवश्यकता नहीं होती।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:  

प्रश्न. सीमा प्रबंधन विभाग निम्नलिखित में से किस केंद्रीय मंत्रालय का एक विभाग है? (2008)

(a) रक्षा मंत्रालय
(b) गृह मंत्रालय
(c) नौवहन, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय
(d) पर्यावरण और वन मंत्रालय

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिये बाह्य राज्य और गैर-राज्य कारकों द्वारा प्रस्तुत बहुआयामी चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये। इन संकटों का मुकाबला करने के लिये आवश्यक उपायों पर भी चर्चा कीजिये। (2021)


भारतीय राजनीति

इदाते आयोग की रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC), इदाते आयोग की रिपोर्ट, भारत में विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजातियाँ (NT, SNT और DNT), अनुसूचित जनजातियों के लिये राष्ट्रीय आयोग

मेन्स के लिये:

अनुसूचित जनजाति के लिये राष्ट्रीय आयोग की भूमिका, अनुसूचित जनजाति की समस्याएँ, इदाते आयोग की रिपोर्ट की सिफारिशों की प्रासंगिकता

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने भारत में विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजातियों (NT, SNT और DNT) की चिंताओं को दूर करने के लिये इदाते आयोग की रिपोर्ट की सिफारिशों को क्रियान्वित करने के महत्त्व पर ज़ोर दिया।

  • NHRC ने सरकार से आभ्यासिक अपराधी अधिनियम, 1952 (Habitual Offenders Act, 1952) को निरस्त करने या अधिनियम के तहत अनिवार्य नोडल अधिकारियों के साथ गैर-अधिसूचित जनजाति समुदाय से एक प्रतिनिधि नियुक्त करने का आग्रह किया।
    • इसके अतिरिक्त, इसने SC/ST/OBC श्रेणियों से DNT/NT/SNT को बाहर करने और उनके लिये अनुरूप नीतियाँ बनाने की सिफारिश की।

इदाते आयोग (Idate Commission) की प्रमुख सिफ़ारिशें क्या थीं?

  • परिचय:
    • इसकी स्थापना वर्ष 2014 में विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजातियों (DNT) की एक राज्यव्यापी सूची संकलित करने के लिये भीकू रामजी इदाते के नेतृत्व में की गई थी।
    • एक अन्य आदेश अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणियों से बाहर रखे गए लोगों की पहचान और उनकी भलाई के लिये कल्याणकारी उपायों की सिफारिश करना था।
  • सिफारिशें:
    • SC/ST/OBC सूची में चिह्नित नहीं किये गए व्यक्तियों को OBC श्रेणी में निर्दिष्ट किया जाए।
    • अत्याचारों को रोकने और समुदाय के सदस्यों के बीच सुरक्षा की भावना को बहाल करने के लिये अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 में तीसरी अनुसूची को शामिल करके वैधानिक तथा संवैधानिक सुरक्षा उपायों को बढ़ाना।
    • DNT, SNT और NT के लिये कानूनी स्थिति वाले एक स्थायी आयोग का गठन किया जाए।
    • महत्त्वपूर्ण आबादी वाले राज्यों में इन समुदायों के कल्याण के लिये एक अलग विभाग बनाए जाएँ।
    • DNT परिवारों की अनुमानित संख्या और वितरण निर्धारित करने के लिये उनका गहन सर्वेक्षण किया जाए।

विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजातियाँ कौन हैं?

  • परिचय:
    • इन्हें 'विमुक्त जाति' के नाम से भी जाना जाता है। ये समुदाय सबसे अधिक असुरक्षित और वंचित हैं।
    • ब्रिटिश शासन के दौरान आपराधिक जनजाति अधिनियम, 1871 जैसे कानूनों के तहत गैर-अधिसूचित समुदायों को 'जन्मजात अपराधी' के रूप में अधिसूचित/अंकित किया गया था।
      • उन्हें वर्ष 1952 में भारत सरकार द्वारा आधिकारिक तौर पर गैर-अधिसूचित कर दिया गया था।
    • इनमें से कुछ समुदाय जिन्हें गैर-अधिसूचित के रूप में सूचीबद्ध किया गया था, वे भी घुमंतू थे।
      • घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू समुदायों को उन लोगों के रूप में परिभाषित किया जाता है जो हर समय एक ही स्थान पर रहने के बदले एक स्थान से दूसरे स्थान पर चले जाते हैं।
    • ऐतिहासिक रूप से, घुमंतू जनजातियों और गैर-अधिसूचित जनजातियों को कभी भी निजी भूमि या गृह स्वामित्व तक पहुँच नहीं थी।
    • अधिकांश DNT अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणियों के अंतर्गत आते हैं, कुछ DNT अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) या अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणियों में से किसी में भी शामिल नहीं हैं।
  • NT, SNT और DNT समुदायों के लिये प्रमुख समितियाँ/आयोग:
    • संयुक्त प्रांत (अब उत्तर प्रदेश) में आपराधिक जनजाति जाँच समिति, 1947 का गठन किया गया।
    • नंतशयनम आयंगर समिति, 1949 
      • इस समिति की अनुशंसा के आधार पर आपराधिक जनजाति अधिनियम, 1871 को निरस्त कर दिया गया।
      • काका कालेलकर आयोग (जिसे पहला ओबीसी आयोग भी कहा जाता है) का गठन वर्ष 1953 में किया गया था।
    • बी.पी. मंडल आयोग, 1980
      • आयोग ने NT, SNT और DNT समुदायों के मुद्दे से संबंधित कुछ सिफारिशें भी कीं।
    • राष्ट्रीय संविधान कार्यकरण समीक्षा आयोग’(National Commission to Review the Working of the Constitution - NCRWC), 2002 ने माना कि DNT को गलत तरीके से अपराध प्रवण माना गया है और उनके साथ गलत व्यवहार किया गया है। साथ ही कानून और व्यवस्था एवं सामान्य समाज के प्रतिनिधियों द्वारा शोषण किया जाता है।
  • वितरण:
    • भारत में, लगभग 10% आबादी NT, SNT और DNT समुदायों से बनी है।
    • जहाँ विमुक्त जनजातियों की संख्या लगभग 150 है, वहीं घुमंतू जनजातियों की जनसंख्या में लगभग 500 विभिन्न समुदाय शामिल हैं।
      • यह अनुमान लगाया गया है कि दक्षिण एशिया में विश्व की सबसे बड़ी खानाबदोश आबादी है।

घुमंतू जनजातियों के सामने क्या चुनौतियाँ हैं?

  • बुनियादी अवसंरचना सुविधाओं का अभाव: इन समुदायों के सदस्यों के पास पेयजल, आश्रय और स्वच्छता आदि संबंधी बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं। इसके अलावा ये स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा जैसी सुविधाओं से वंचित रहते हैं।
  • सामाजिक सुरक्षा कवर का अभाव: चूँकि इन समुदायों के लोग प्रायः यात्रा पर रहते हैं, इसलिये इनका कोई स्थायी ठिकाना नहीं होता है। नतीजतन उनके पास सामाजिक सुरक्षा कवर का अभाव होता है और उन्हें राशन कार्ड, आधार कार्ड आदि भी नहीं जारी किया जाता है।
  • स्थानीय प्रशासन का दुर्व्यवहार: विमुक्‍त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू समुदायों के संबंध में प्रचलित गलत तथा अपराधिक धारणाओं के कारण आज भी उन्हें स्थानीय प्रशासन एवं पुलिस द्वारा प्रताड़ित किया जाता है।
  • संदिग्ध (Ambiguous) जाति वर्गीकरण: इन समुदायों के बीच जाति वर्गीकरण बहुत स्पष्ट नहीं है, कुछ राज्यों में इन समुदायों को अनुसूचित जाति में शामिल किया जाता है, जबकि कुछ अन्य राज्यों में उन्हें अन्य पिछड़े वर्ग (OBC) के तहत शामिल किया जाता है।

इन जनजातियों के लिये क्या विकासात्मक प्रयास किये गए हैं?

  • DNT के लिये डॉ. अंबेडकर प्री-मैट्रिक और पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति:
  • DNT बालकों और बालिकाओं हेतु छात्रावासों के निर्माण संबंधी नानाजी देशमुख योजना:
    • वर्ष 2014-15 में शुरू की गई यह केंद्र प्रायोजित योजना, राज्य सरकारों/केंद्रशासित प्रदेशों/केंद्रीय विश्वविद्यालयों के माध्यम से लागू की गई है।
    • इस कार्यक्रम का लक्ष्य उन DNT छात्रों को छात्रावास आवास प्रदान करना है जो SC, ST या OBC की श्रेणियों में नहीं आते हैं।
      • इस सहायता का उद्देश्य उनकी उच्च शिक्षा को आगे बढ़ाने में सुविधा प्रदान करना है।
  • DNT के आर्थिक सशक्तीकरण हेतु योजना:
    • इनका उद्देश्य निःशुल्क प्रतियोगी परीक्षा कोचिंग, स्वास्थ्य बीमा, आवास सहायता तथा आजीविका पहल प्रदान करना है।
    • इसके तहत वर्ष 2021-22 से शुरू होने वाले पाँच वर्षों में 200 करोड़ रुपए के व्यय को सुनिश्चित किया गया।
    • DWBDNC (गैर-अधिसूचित, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू समुदायों के लिये विकास तथा कल्याण बोर्ड) को इस योजना के कार्यान्वयन का कार्य सौंपा गया।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (NHRC)

  • परिचय:
    • यह जीवन, स्वतंत्रता, समानता, व्यक्तियों की गरिमा से संबंधित अधिकारों तथा भारतीय संविधान द्वारा गारंटीकृत अधिकारों एवं भारतीय न्यायालयों द्वारा कार्यान्वन करने योग्य अंतर्राष्ट्रीय अनुबंधों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
  • गठन:
    • इसका गठन मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के तहत 12 अक्तूबर 1993 को किया गया।
    • मानव अधिकार संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2006 और मानव अधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2019 द्वारा संशोधित।
    • इसका गठन पेरिस सिद्धांतों के अनुरूप हुआ जिन्हें मानवाधिकारों के संरक्षण एवं संवर्द्धन के लिये अंगीकृत किया गया।
  • संघटन:
    • आयोग में एक अध्यक्ष, पाँच पूर्णकालिक सदस्य तथा सात मानद सदस्य शामिल होते हैं।
    • अध्यक्ष भारत का पूर्व मुख्य न्यायाधीश अथवा सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश होता है।
  • नियुक्ति एवं कार्यकाल:
    • आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति छह सदस्यीय समिति की अनुशंसाओं पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
    • समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा के उपसभापति, संसद के दोनों सदनों में विपक्ष के नेता और केंद्रीय गृह मंत्री शामिल होते हैं।
    • अध्यक्ष और सदस्य तीन वर्ष की अवधि के लिये अथवा 70 वर्ष की आयु तक पद पर बने रहते हैं।
  • भूमिका तथा कार्य:
    • इसके पास न्यायिक कार्यवाही सहित सिविल न्यायालय की शक्तियाँ होती हैं।
    • मानवाधिकार उल्लंघनों की जाँच के लिये केंद्र अथवा राज्य सरकार के अधिकारियों अथवा अन्वेषण अभिकरणों की सेवाओं का उपयोग करने का अधिकार।
    • मामलों के घटित होने के एक वर्ष के भीतर उनकी जाँच कर सकता है।
    • इसके कार्य मुख्यतः अनुशंसात्मक प्रकृति के होते हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:  

प्रश्न. भारत के 'चांगपा' समुदाय के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2014) 

  1. वे मुख्य रूप से उत्तराखंड राज्य में रहते हैं।  
  2. वे पश्मीना बकरियों को पालते हैं जिनसे उन्नत ऊन प्राप्त होता है। 
  3. इन्हें अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में रखा गया है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 और 3 
(c) केवल 3 
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (b) 


मेन्स:

प्रश्न. स्वतंत्रता के बाद अनुसूचित जनजातियों (ST) के प्रति भेदभाव को दूर करने के लिये राज्य द्वारा की गई दो प्रमुख विधिक पहलें क्या हैं? (2017)


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

तीसरा दक्षिण शिखर सम्मेलन

प्रिलिम्स के लिये:

77 देशों का समूह (G77) और चीन, दक्षिण-दक्षिण सहयोग, व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD), सतत विकास के लिये 2030 एजेंडा

मेन्स के लिये:

तीसरा दक्षिण शिखर सम्मेलन, द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह तथा भारत से जुड़े समझौते और/या भारत के हितों को प्रभावित करने वाले समझौते।

स्रोत: अफ्रीका न्यूज़

चर्चा में क्यों?

हाल ही में चीन और 77 देशों के समूह (G77) के सदस्य तीसरे दक्षिण शिखर सम्मेलन (South Summit) के लिये कंपाला, युगांडा में एकत्रित हुए।

  • व्यापार, निवेश, सतत् विकास, जलवायु परिवर्तन, गरीबी उन्मूलन और डिजिटल अर्थव्यवस्था सहित अन्य विषयों पर दक्षिण-दक्षिण सहयोग को मज़बूत करने के लिये, तीसरे दक्षिण शिखर सम्मेलन में चीन तथा G77 के 134 सदस्यों को एक साथ लाया गया। इस शिखर सम्मेलन की थीम, "लीविंग नो वन बिहाइंड" थी।

 G77 क्या है?

  • स्थापना:
    • 15 जून 1964 को  77 देशों का समूह (G-77) तब अस्तित्व में आया जब इन देशों ने जिनेवा में व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (United Nations Conference on Trade and Development - UNCTAD) के पहले सत्र के दौरान एक संयुक्त घोषणा पर हस्ताक्षर किये।
      • G77 समूह में चीन को छोड़कर 134 सदस्य हैं क्योंकि चीनी सरकार खुद को सदस्य नहीं मानती है, बल्कि एक भागीदार मानती है जो समूह को राजनीतिक और वित्तीय सहायता प्रदान करती है। हालाँकि समूह (G 77) चीन को अपना सदस्य बताता है।
  • उद्देश्य:
    • G77 विकासशील देशों का सबसे बड़ा अंतर-सरकारी संगठन है।
    • इसे विकासशील देशों के आर्थिक हितों को बढ़ावा देने और संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक मुद्दों पर चर्चा करने की उनकी क्षमता में सुधार करने के लिये बनाया गया था।
  • संरचना:
    • एक अध्यक्ष, जो इसके प्रवक्ता के रूप में कार्य करता है, प्रत्येक चैप्टर में समूह की कार्रवाई का समन्वय करता है।
    • इसकी अध्यक्षता, जो समूह 77 की संगठनात्मक संरचना के भीतर सर्वोच्च राजनीतिक निकाय है, क्षेत्रीय आधार पर (अफ्रीका, एशिया-प्रशांत, लैटिन अमेरिका और कैरेबियन के बीच) घूमती (rotate) है और चैप्टर द्वारा एक वर्ष के लिये आयोजित की जाती है।
      • चैप्टर, जो क्षेत्रीय प्रभागों को संदर्भित करते हैं, वर्तमान में, युगांडा अध्यक्ष है, प्रवक्ता के रूप में कार्य करता है और अफ्रीकी सम्मलेन के भीतर सदस्य देशों की ओर से जी77 के कार्यों का समन्वय करता है।
      • G77 में चैप्टर विभिन्न स्थानों पर समूह के कार्यालय हैं जहाँ वे अपनी गतिविधियों का समन्वय करते हैं और विभिन्न संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों तथा अंतर्राष्ट्रीय मंचों में अपने हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
      • G77 के चैप्टर जिनेवा (UN), रोम (FAO), वियना (UNIDO), पेरिस (यूनेस्को), नैरोबी (UNEP) और 24 के समूह में वाशिंगटन, DC (IMF और विश्व बैंक) में हैं। 
      • वर्ष 2024 के लिये युगांडा गणराज्य के पास G77 की अध्यक्षता है।
  • दक्षिण शिखर सम्मेलन:
    • दक्षिण शिखर सम्मेलन 77 के समूह का सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय है।
      • पहला और दूसरा दक्षिण शिखर सम्मेलन क्रमशः वर्ष 2000 में हवाना, क्यूबा में और वर्ष 2005 में दोहा, कतर में आयोजित किया गया था।

तीसरे दक्षिण शिखर सम्मेलन के आउटकम डॉक्यूमेंट की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान का आह्वान:
    • सदस्य देशों ने इस तथ्य पर बल दिया गया कि "शांति के बिना सतत् विकास असंभव हैं तथा  सतत् विकास के बिना शांति स्थापना असंभव हैं" एवं "इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष के न्यायसंगत व शांतिपूर्ण समाधान" का आह्वान किया।
  • विभिन्न एजेंडा का सार्वभौमिक कार्यान्वयन:
  • निर्धनता उन्मूलन:
    • सदस्य देशों ने गरीबी उन्मूलन को सबसे बड़ी वैश्विक चुनौती तथा सतत् विकास के लिये एक अनिवार्य आवश्यकता के रूप में प्रदर्शित कर इसकी दिशा में प्रगति करने पर बल दिया।
    • कार्यान्वयन हेतु पर्याप्त साधनों के महत्त्व पर ज़ोर देते हुए नेताओं ने विकसित देशों से विकास के लिये एक सुदृढ़ तथा विस्तारित वैश्विक साझेदारी के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के एक नए चरण के लिये प्रतिबद्ध होने का आग्रह किया।
  • बहुपक्षीय संस्थाओं को सुदृढ़ बनाना:
    • शिखर सम्मेलन ने अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था में सुधार हेतु संयुक्त राष्ट्र महासभा (UN General Assembly- UNGA) और आर्थिक और सामाजिक परिषद (Economic and Social Council- ECOSOC) की भूमिका को सुदृढ़ करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
    • इस तथ्य पर प्रकाश डाला गया कि वैश्विक वित्तीय प्रणाली विकासशील देशों के लिये वैश्विक सुरक्षा तंत्र प्रदान करने में विफल रही। व्यापक सुधार प्रस्तावित किये गए जिनमें वार्षिक रूप से 500 बिलियन अमेरिकी डॉलर का SDG प्रोत्साहन, MDB का पर्याप्त वित्तपोषण तथा ज़रूरतमंद देशों के लिये आकस्मिक वित्तपोषण के विस्तार की सुविधा शामिल है।
    • जलवायु वित्त में सार्थक योगदान के लिये आह्वान किया गया, जिसमें प्रति वर्ष 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर का आबंटन तथा वर्ष 2025 तक अनुकूलन वित्त को दोगुना करना, वर्ष 2024 संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (UNFCCC COP 29) में एक नए महत्त्वाकांक्षी वित्त लक्ष्य को प्रोत्साहित करना शामिल है।
  • वित्त पोषण संबंधी आवश्यकताएँ और ऋण समाधान:
    • सदस्य देशों ने बहुपक्षीय विकास बैंकों (Multilateral Development Banks- MDB) से रियायती वित्त तथा अनुदान के माध्यम से निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों सहित सभी विकासशील देशों की वित्तपोषण आवश्यकताओं को पूरा करने का आग्रह किया।
    • नेताओं ने जलवायु तथा प्रकृति के लिये स्वैप सहित सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals- SDG) के लिये ऋण स्वैप (Debt Swap) को बढ़ाने का आह्वान किया।
  • समावेशन और समानता हेतु तत्काल सुधार:
    • शिखर सम्मेलन में नेताओं ने समावेशन तथा समानता पर आधारित एक अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय तंत्र की आवश्यकता पर बल देते हुए ग्लोबल साउथ के महत्त्व को पहचानने एवं उसका लाभ उठाने के लिये बहुपक्षीय संगठनों में तत्काल सुधार का आह्वान किया।

ग्लोबल साउथ क्या है?

  • परिचय:
    • ग्लोबल साउथ, जिसे अमूमन पूर्णतः भौगोलिक अवधारणा के रूप में गलत समझा जाता है, भू-राजनीतिक, ऐतिहासिक तथा विकासात्मक कारकों पर आधारित विविध देशों को संदर्भित करता है।
      • हालाँकि यह मात्र अवस्थिति द्वारा परिभाषित नहीं है, यह मुख्य तौर पर विकास संबंधी चुनौतियों का सामना करने वाले देशों का प्रतिनिधित्व करता है।
      • ग्लोबल साउथ में शामिल कई देश उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित हैं, जैसे- भारत, चीन तथा अफ्रीका के अर्द्ध उत्तरी हिस्से में स्थित सभी देश।
        • हालाँकि ऑस्ट्रेलिया तथा न्यूज़ीलैंड दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित हैं किंतु ये ग्लोबल साउथ में शामिल नहीं हैं।
  •   ऐतिहासिक संदर्भ:
    • ब्रांट लाइन: यह रेखा वर्ष 1980 के दशक में पूर्व जर्मन चांसलर विली ब्रांट द्वारा प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के आधार पर उत्तर-दक्षिण विभाजन के दृश्य चित्रण के रूप में प्रस्तावित की गई थी।
      • यह रेखा वैश्विक आर्थिक विभाजन का प्रतीक है, जो ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड को छोड़कर, अफ्रीका, मध्य पूर्व, भारत तथा चीन के कुछ हिस्सों को कवर करते हुए महाद्वीपों में ज़िगजैग बनाती हुई अर्थात् टेढ़ी-मेढ़ी रेखा बनाती हुई गुज़रती है।

  • G77 मुख्य रूप से ग्लोबल साउथ के विकासशील देशों का एक गठबंधन है, जिसका गठन संयुक्त राष्ट्र में आर्थिक और विकास के मुद्दों को सामूहिक रूप से हल करने के लिये किया गया है।
  • ग्लोबल साउथ का पुनरुत्थान:
    • आर्थिक संचरण:
      • कोविड-19 जनित आर्थिक असंतुलन: कोविड महामारी ने मौजूदा आर्थिक असमानताओं को बढ़ा दिया, सीमित स्वास्थ्य देखभाल बुनियादी ढाँचे, बाधित आपूर्ति शृंखलाओं और लॉकडाउन के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों पर भारी निर्भरता के कारण वैश्विक दक्षिण देशों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला।
      • व्यापार और आपूर्ति शृंखलाओं में बदलाव: महामारी के बाद और रूस-यूक्रेन युद्ध जैसे हालिया भू-राजनीतिक संघर्षों के संदर्भ में वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं के पुनर्मूल्यांकन ने उत्पादन केंद्रों को फिर से स्थापित करने पर वार्ता शुरू की, जिससे कुछ ग्लोबल साउथ अर्थव्यवस्थाओं को पुनर्गठन तथा अपनी भूमिकाओं को बढ़ाने का अवसर मिला।
    • भू-राजनीतिक वास्तविकताएँ:
      • ग्लोबल साउथ की सामूहिक आवाज़ ने G20 जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर लोकप्रियता हासिल की, जिससे शक्ति के संचरण में बदलाव के साथ उनके दृष्टिकोण व हितों पर अधिक मंथन को बढ़ावा मिला।
    • पर्यावरण एवं जलवायु प्रभाव:
      • जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता: ग्लोबल साउथ जलवायु परिवर्तन से असमान रूप से प्रभावित है, जिससे जलवायु अनुकूलन, समुत्थानशक्ति-निर्माण और न्यायसंगत वैश्विक जलवायु कार्रवाई की आवश्यकता पर चर्चा चल रही है।
      • नवीकरणीय ऊर्जा और सतत् विकास: वैश्विक दक्षिण के भीतर सतत् विकास लक्ष्यों, नवीकरणीय ऊर्जा निवेश और पर्यावरण संरक्षण पहल पर ज़ोर ने वैश्विक ध्यान एवं समर्थन आकर्षित किया।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

निम्नलिखित में से किस समूह के सभी चारों देश G20 के सदस्य हैं? (2020)

(a) अर्जेंटीना, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका एवं तुर्की
(b) ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, मलेशिया एवं न्यूज़ीलैंड
(c) ब्राज़ील, ईरान, सऊदी अरब एवं वियतनाम
(d) इंडोनेशिया, जापान, सिंगापुर एवं दक्षिण कोरिया

उत्तर: (a)


मेन्स:

Q. उभरती हुई वैश्विक व्यवस्था में, भारत द्वारा प्राप्त नव-भूमिका के कारण, उत्पीड़ित एवं उपेक्षित राष्ट्रों के मुखिया के रूप में दीर्घ काल से संपोषित भारत की पहचान लुप्त हो गई है। विस्तार से समझाइये। (2019)


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

पल्सर ग्लिच

प्रिलिम्स के लिये:

पल्सर ग्लिच, PSR B1919+21, न्यूट्रॉन तारा, सुपरफ्लुइड्स के गुण

मेन्स के लिये:

पल्सर ग्लिच, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

वर्ष 1967 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के दो खगोलविदों ने पहले पल्सर अर्थात एक प्रकार के घूर्णित न्यूट्रॉन तारे की खोज की जिसे बाद में PSR B1919+21 नाम दिया गया, जिसने न्यूट्रॉन तारों तथा उनके रहस्यमय पल्सर समकक्षों के गहन अध्ययन में सहायता प्रदान की।

पल्सर क्या हैं?

  • परिचय:
    • पल्सर तेज़ी से घूर्णन करने वाले न्यूट्रॉन तारे हैं जो सेकंड से लेकर मिलीसेकंड तक के नियमित अंतराल पर विकिरण का स्पंदन होता है।
    • पल्सर में प्रबल चुंबकीय क्षेत्र होते हैं जो कणों को उनके चुंबकीय ध्रुवों के साथ जोड़ते हैं तथा यह उन्हें सापेक्ष गति प्रदान करते हैं जिससे प्रकाश की दो शक्तिशाली किरणें,प्रत्येक ध्रुव से एक, उत्पन्न होती हैं।
    • पृथ्वी की दृष्टि रेखा को पार करने वाली प्रकाश किरणों के कारण पल्सर आवधिकता प्रदर्शित करते हैं; जब प्रकाश पृथ्वी से दूर होता है तो पल्सर उन बिंदुओं पर 'अप्रभावी' हो जाता है।
      • इन स्पंदनों के बीच का समय पल्सर की 'अवधि' को दर्शाता है।

पल्सर की खोज और उनके व्यवहार से संबंधित सिद्धांत क्या हैं?

  • न्यूट्रॉन की खोज से संबंध:
    • पल्सर की खोज जेम्स चैडविक की वर्ष 1932 में न्यूट्रॉन की खोज से संबंधित है।
      • एक समूह के रूप में न्यूट्रॉन समान ऊर्जा साझा करने का विरोध करते हैं और न्यूनतम संभव ऊर्जा स्तर प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। भारी तारों के विनाश होने पर उनके कोर में विस्फोट होता है। यदि वे ब्लैक होल बनने के लिये पर्याप्त रूप से प्रभावी नहीं हैं तो वे न्यूट्रॉन के एक पिंड में परिवर्तित हो जाते हैं जिससे एक न्यूट्रॉन तारा निर्मित होता है।
  • घूर्णन करते न्यूट्रॉन तारे के रूप में पल्सर:
    • आकाश के एक संकीर्ण हिस्से से उत्पन्न होने तथा पुनः आवृति करने के संकेतों के परिणामस्वरूप वैज्ञानिकों का अनुमान है कि पल्सर घूर्णन करने वाले न्यूट्रॉन तारें होते हैं।
      • संबद्ध तारे के ध्रुवों के समीप से उत्सर्जित रेडियो सिग्नल एक संकीर्ण शंकु का निर्माण करते हैं जो प्रत्येक घूर्णन के दौरान पृथ्वी के समीप से गुज़रता है, ठीक उसी प्रकार जैसे कि समुद्र में एक जहाज़ के ऊपर चमकते लाइटहाउस से उत्सर्जित प्रकाश गुज़रता है।

  • अप्रत्याशित ग्लिच (Unexpected Glitches):
    • समय के साथ न्यूट्रॉन तारों के घूर्णन की गति धीमी हो गई। घूर्णन दर में इस कमी के माध्यम से संरक्षित ऊर्जा का प्रयोग तारे के बाह्य क्षेत्र में विद्युत आवेशों को उत्प्रेरित करने के लिये किया गया, जिसके परिणामस्वरूप रेडियो सिग्नल उत्पन्न हुए।
    • वर्ष 1969 में शोधकर्त्ताओं ने पल्सर PSR 0833-45 में एक ग्लिच देखा।
      • पल्सर की घूर्णन दर में अचानक बदलाव और उसके बाद धीरे-धीरे विराम की विशेषता वाले ग्लिच के कारण पल्सर की गतिकी में जटिलता उत्पन्न हुई।
    • बाद के दशकों में 3,000 से अधिक पल्सर का अवलोकन किया गया, जिसमें लगभग 700 ग्लिच दर्ज किये गए।
      • इन ग्लिच से वैज्ञानिकों को इन खगोलीय घटनाओं को नियंत्रित करने वाले अंतर्निहित तंत्रों की गहनता से जाँच करने हेतु प्रेरणा मिली।

पल्सर किस प्रकार निर्मित होते हैं?

  • सुपरनोवा विस्फोट:
    • पल्सर का निर्माण सूर्य से 1.4 से 3.2 गुना द्रव्यमान वाले विशाल तारों के अवशेषों से हुआ है। जब ऐसे तारे का परमाणु ईंधन समाप्त हो जाता है तो उसमें सुपरनोवा विस्फोट होता है।
  • न्यूट्रॉन तारे का निर्माण:
    • सुपरनोवा के दौरान तारे की बाह्य परतें अंतरिक्ष में निक्षेपित होने के साथ आंतरिक क्रोड गुरुत्वाकर्षण के कारण संकुचित हो जाता है। इसमें गुरुत्वाकर्षण दबाव इतना तीव्र हो जाता है कि यह इलेक्ट्रॉन अपघटन दबाव से भी अधिक हो जाता है, जिससे इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन एक साथ संघट्ट होकर न्यूट्रॉन बनाते हैं।
  • न्यूट्रॉन तारों के लक्षण:
    • यह काफी अधिक सघन होने के साथ इसका गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र तीव्र/प्रबल (पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण का लगभग 2 x 10^11 गुना) होता है।
  • कोणीय संवेग संरक्षण:
    • जैसे ही तारे का विघटन होता है/विखंडित होता है, यह अपने कोणीय संवेग को संरक्षित कर लेता है। विखंडन के कारण तारे का आकार बहुत छोटा हो जाता है, जिससे घूर्णन गति में अप्रत्याशित वृद्धि होती है।
  • पल्सर उत्सर्जन:
    • तेजी से घूर्णन करने वाला न्यूट्रॉन तारा अपनी चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के साथ विद्युत चुंबकीय विकिरण की किरणें उत्सर्जित करता है। यदि न्यूट्रॉन तारे के घूर्णन पर पृथ्वी इन किरणों को प्रतिच्छेद करती है, तो खगोलविद् विकिरण के आवधिक स्पंदों का अवलोकन करते हैं, और इस प्रकार पिंड की पल्सर के रूप में पहचान की जाती है।

पल्सर को चन्द्रशेखर सीमा से किस प्रकार निर्धारित किया जाता है?

  • चन्द्रशेखर सीमा एक स्थिर श्वेत वामन तारे का अधिकतम द्रव्यमान है। यह सूर्य के द्रव्यमान का लगभग 1.4 गुना है।
    • इस सीमा/लिमिट का नाम भारतीय मूल के खगोल भौतिकविद सुब्रमण्यम चन्द्रशेखर के नाम पर रखा गया था, जिन्होंने वर्ष 1930 में इसकी गणना की थी।
  • यदि कोई तारा चन्द्रशेखर सीमा से अधिक विशाल है, तो उसका विखंडन/विध्वंस होता रहेगा और वह न्यूट्रॉन तारा बन जाएगा। यह विखंडन/विध्वंस गुरुत्वाकर्षण बल के कारण होता है।
  • पल्सर से पल्स आवर्ती रूप से दिखाई देते हैं क्योंकि वे न्यूट्रॉन तारों के घूर्णन के समान दर पर उत्सर्जित होते हैं। दूर से, स्पंदन/पल्स घूमते हुए प्रकाश स्तंभ किरण (Lighthouse Beam) के समान दिखते हैं।

पल्सर में ग्लिच की घटना का कारण:

  • न्यूट्रॉन तारे की संरचना:
    • एक ठोस परत और एक सुपरफ्लुइड्स क्रोड की विशेषता वाला एक न्यूट्रॉन तारा, खगोलीय गतिकी को नियंत्रित करने वाले बलों की परस्पर क्रिया के लिये एक विशिष्ट पृष्ठभूमि प्रदान करता है।
    • क्रस्ट/पर्पटी के मंदन और सुपरफ्लुइड्स क्रोड के अंदर निरंतर भँवर गति/चक्राकार गति के बीच का अंतर ग्लिच की उत्पत्ति को समझने में महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
  • न्यूट्रॉन तारों के अंदर सुपरफ्लुइड्स अवस्था:
    • ग्लिच के बाद का व्यवहार इन ब्रह्मांडीय पिंडों के अंदर एक सुपरफ्लुइड्स स्थिति की विद्यमानता का सुझाव देता है। 
      • न्यूट्रॉन तारा एक ठोस परत और क्रोड वाला 20 किमी चौड़ा पिंड है। इसके कोर में मुख्यतः सुपरफ्लुइड्स होता है, और कोई ठोस भाग नहीं होता है।
  • सुपरफ्लुइड्स के विशिष्ट गुण:
    • सुपरफ्लुइड्स, जब एक कंटेनर के अंदर गतिमान होते हैं, तो एक असाधारण विशेषता प्रदर्शित करते हैं - वे अनिश्चित काल तक गमन करते रहते हैं। घर्षण के बिना सतत गति की यह विशेषता, न्यूट्रॉन तारों के अंदर सुपरफ्लुइड्स क्रोड के व्यवहार को समझने में महत्त्वपूर्ण हो जाती है।

नोट: वैज्ञानिकों द्वारा इस दिशा में की गई प्रगति के बावजूद ग्लिच तंत्र का अभी भी अध्ययन किया जा रहा है। इस आलोक में विवादास्पद विवरण, अंतरिक्ष-आधारित ट्रिगर और समय के साथ ग्लिच के विकास पर अधिक शोध किया जा सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. हाल ही में वैज्ञानिकों ने पृथ्वी से अरबों प्रकाश-वर्ष दूर विशालकाय ‘ब्लैकहोलों’ के विलय का प्रेक्षण किया। इस प्रेक्षण का क्या महत्त्व है?

(a) ‘हिग्स बोसॉन कणों’ का अभिज्ञान हुआ।
(b) ‘गुरुत्वीय तरंगों’ का अभिज्ञान हुआ।
(c) ‘वॉर्महोल’ से होते हुए अंतरा-मंदाकिनीय अंतरिक्ष यात्रा की संभावना की पुष्टि हुई।
(d) इसने वैज्ञानिकों को ‘विलक्षणता (सिंगुलैरिटि)’ को समझना सुकर बनाया।

उत्तर: (b)


प्रश्न. अभिकथन (A) : रेडियो तरंगें चुंबकीय क्षेत्रों में मुड़ जाती हैं। 

कारण (R) : रेडियो तरंगें प्रकृति में विद्युत चुंबकीय होती हैं। (2008)

इन दोनों कथनों का सावधानीपूर्वक परीक्षण कीजिये और नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर इन प्रश्नांशों के उत्तर चुनिये: 

(a) A और R दोनों सत्य हैं और R, A की सही व्याख्या है
(b) A और R दोनों सत्य हैं लेकिन R, A की सही व्याख्या नहीं है
(c) A सत्य है परंतु R असत्य है
(d) A असत्य है परंतु R सत्य है 

उत्तर: (A)


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