विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
डार्क एनर्जी
प्रिलिम्स के लिये:Dark Energy, Dark Matter, Radiation डार्क एनर्जी, डार्क मैटर, रेडिएशन मेन्स के लिये:ब्रह्मांड के विस्तार में डार्क एनर्जी की भूमिका। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
ब्रह्मांड की ऊर्जा संरचना विकिरण और अन्य प्रकार के पदार्थों का एक सूक्ष्म संतुलित मिश्रण है।
- 68% की विशाल हिस्सेदारी के साथ, डार्क एनर्जी ब्रह्मांड के विस्तार को निर्धारित करने में प्रमुख भूमिका निभाती है।
ब्रह्मांड में डार्क एनर्जी क्या है?
- परिचय:
- डार्क एनर्जी ऊर्जा का एक रहस्यमयी रूप है जो ब्रह्मांड की समग्र ऊर्जा सामग्री का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बनाती है।
- इसे ब्रह्मांड के अवलोकन किये गए त्वरित विस्तार के लिये ज़िम्मेदार माना जाता है।
- ब्रह्मांड का लगभग 68% भाग डार्क एनर्जी है और डार्क मैटर लगभग 27% है।
- पृथ्वी पर मौजूद बाकी सभी वस्तुएँ, हमारे सभी उपकरणों से अब तक देखी गई सभी वस्तुएँ, सभी सामान्य पदार्थ ब्रह्मांड के 5% से भी कम हिस्से का निर्माण करते हैं।
- डार्क एनर्जी के संदर्भ में समझने हेतु मुख्य बिंदु:
- अदृश्य बल स्टीयरिंग विस्तार:
- डार्क एनर्जी एक अदृश्य प्रभाव है जो ब्रह्मांड के त्वरित विस्तार के लिये ज़िम्मेदार है, यह गुरुत्त्वाकर्षण के विपरीत है जो वस्तुओं को एक साथ आकर्षित करता है। डार्क एनर्जी एक प्रतिकारक बल के रूप में कार्य करती है, जो आकाशगंगाओं को एक दूसरे से दूर धकेलती है।
- अंतरिक्ष की विशेषताएँ:
- अंतरिक्ष के रिक्त होने की धारणा के विपरीत, डार्क एनर्जी एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। अंतरिक्ष मात्र एक रिक्त विस्तार नहीं है अपितु यह एक गतिशील, विस्तरण योग्य माध्यम है जो ऊर्जा की उपस्थिति पर प्रतिक्रिया करता है।
- ऊर्जा रूपों द्वारा निर्धारित विस्तरण:
- संतुलनकारी कार्य:
- ब्रह्मांड के अंतरिक्ष विस्तार की सामान्य दर डार्क एनर्जी की उपस्थिति से निर्धारित होती है, जो इसके ऊर्जा प्रवाह को भी नियंत्रित करती है। ब्रह्मांड की स्थिरता बनाए रखने के लिये कई प्रकार की ऊर्जा के साथ सावधानीपूर्वक संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता होती है।
- निहितार्थ:
- अवलोकन योग्य ब्रह्मांड पर डार्क एनर्जी की मात्रा का महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
- अत्यधिक धनात्मक ऊर्जा की मात्रा के परिणामस्वरूप आकाशगंगाएँ प्रकाश की तुलना में तेज़ी से हमसे दूर जा सकती हैं, जिससे केवल आस-पास के क्षेत्र ही दिखाई देंगे।
- इसके विपरीत अत्यधिक ऋणात्मक ऊर्जा के कारण ब्रह्मांड का संकुचन एक छोटे आकार में हो सकता है।
- अवलोकन योग्य ब्रह्मांड पर डार्क एनर्जी की मात्रा का महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
- डार्क एनर्जी की विलेयता:
- अपनी व्यापकता के बावजूद डार्क एनर्जी ब्रह्मांड के विशाल विस्तार में अविश्वनीय रूप से विरल है। इसकी विरलता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि एक घन किलोमीटर में यह चीनी के एक क्रिस्टल जितनी विरल होती है। यह विरलता इस बल की रहस्यमय प्रकृति और प्रसार पर प्रश्नचिह्न खड़े करती है।
- अदृश्य बल स्टीयरिंग विस्तार:
डार्क एनर्जी की संभावित व्याख्याएँ क्या हैं?
- अंतरिक्ष की विशेषताएँ:
- अल्बर्ट आइंस्टीन पहले व्यक्ति थे जिन्होंने यह महसूस किया कि यह खाली जगह कुछ नहीं है।
- आइंस्टीन के गुरुत्त्वाकर्षण सिद्धांत का एक संस्करण, वह संस्करण जिसमें ब्रह्माण्ड संबंधी स्थिरांक शामिल है, का अर्थ है कि इस "रिक्त स्थान" की अपनी ऊर्जा हो सकती है।
- चूँकि यह ऊर्जा स्वयं अंतरिक्ष का गुण है, इसलिये अंतरिक्ष के विस्तार के साथ यह कम नहीं होगी। अंतरिक्ष के विस्तार के साथ अधिक ऊर्जा अनुभव की जा सकेगी। परिणामस्वरूप, ऊर्जा का यह रूप ब्रह्मांड को तेज़ी से विस्तारित करने का कारण बनेगा।
- पदार्थ का क्वांटम सिद्धांत:
- अंतरिक्ष कैसे ऊर्जा प्राप्त करता है, इसकी एक और व्याख्या पदार्थ के क्वांटम सिद्धांत से आती है।
- इस सिद्धांत मे "रिक्त स्थान" वास्तव में अस्थायी ("आभासी") कणों से भरा होता है जो लगातार बनते हैं और फिर गायब हो जाते हैं।
- पाँचवाँ मूलभूत बल:
- ब्रह्मांड में चार मूलभूत बल हैं और काल्पनिक सिद्धांतों ने पाँचवें बल का प्रस्ताव दिया है, जिसे चार बलों द्वारा समझाया नहीं जा सकता है।
- इस पाँचवें बल को छिपाने या स्क्रीन करने के लिये डार्क एनर्जी के कई मॉडल विशेष तंत्र का उपयोग करते हैं।
- कुछ सिद्धांतकारों ने यूनानी दार्शनिकों के पाँचवें तत्त्व के नाम पर इसे "क्विंटेसेंस" नाम दिया है।
- हालाँकि अभी तक ऐसा कोई भी सिद्धांत सिद्ध नहीं हुआ है। इसके कारण, डार्क एनर्जी को "विज्ञान में सबसे गहरे रहस्य" के रूप में जाना जाता है।
सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. वैज्ञानिक निम्नलिखित में से किस/किन परिघटना/परिघटनाओं को ब्रह्मांड के निरंतर विस्तरण के साक्ष्य के रूप में उद्धृत करते हैं? (2012)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) 1 और 2 उत्तर: (a) व्याख्या:
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सामाजिक न्याय
मनरेगा योजना
प्रिलिम्स के लिये:महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (MGNREGS), कोविड-19, आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) मेन्स के लिये:मनरेगा योजना, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, विकास से संबंधित मुद्दे। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (MGNREGS) में महिलाओं की भागीदारी में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, जो चालू वित्तीय वर्ष 2023-24 में एक ऐतिहासिक वृद्धि है।
मनरेगा (MGNREGA) में महिलाओं की भागीदारी के रुझान क्या हैं?
- महिला भागीदारी रुझान:
- पिछले दशक में महिलाओं की भागीदारी में क्रमिक वृद्धि हुई है, जिसका प्रतिशत वर्ष 2020-21 में कोविड-19 के प्रकोप के दौरान 53.19% से बढ़कर वर्तमान 59.25% हो गया है।
- केरल, तमिलनाडु, पुडुचेरी और गोवा जैसे दक्षिणी राज्यों में महिलाओं की भागीदारी की दर उल्लेखनीय रूप से उच्च है, जो 70% से अधिक है, जबकि उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश जैसे उत्तरी राज्य लगभग 40% या उससे कम हैं।
- ऐतिहासिक असमानताओं के बावजूद, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और लक्षद्वीप जैसे कुछ राज्यों ने चालू वित्तीय वर्ष में महिलाओं की भागीदारी दरों में वृद्धिशील प्रतिशत के कारण हाल ही में सुधार दिखाया है।
- ग्रामीण श्रम बल के रुझान:
- MGNREGS से परे, सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) ग्रामीण क्षेत्रों में महिला श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) में पर्याप्त वृद्धि दर्शाता है।
- उल्लेखनीय आँकड़े बताते हैं कि ग्रामीण महिला LFPR में सत्र 2017-18 में 18.2% से बढ़कर सत्र 2022-23 में 30.5% हो गई है, साथ ही इसी अवधि के दौरान महिला बेरोज़गारी दर में 3.8% से 1.8% की गिरावट आई है।
MGNREGA योजना क्या है?
- परिचय:
- MGNREGA ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा वर्ष 2005 में शुरू किये गए विश्व के सबसे बड़े रोज़गार गारंटी कार्यक्रमों में से एक है।
- यह योजना न्यूनतम वेतन पर सार्वजनिक कार्यों से संबंधित अकुशल शारीरिक कार्य करने के इच्छुक किसी भी ग्रामीण परिवार के वयस्क सदस्यों को प्रत्येक वित्तीय वर्ष में न्यूनतम एक सौ दिनों के रोज़गार की कानूनी गारंटी प्रदान करता है।
- सक्रिय कर्मचारी: 14.32 करोड़ (सत्र 2023-24)
- प्रमुख विशेषताएँ:
- MGNREGA के डिज़ाइन की आधारशिला इसकी कानूनी गारंटी है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि कोई भी ग्रामीण वयस्क कार्य के लिये अनुरोध कर सकता है और उसे 15 दिनों के भीतर कार्य मिलना चाहिये।
- यदि यह प्रतिबद्धता पूरी नहीं होती है, तो "बेरोज़गारी भत्ता" प्रदान किया जाना चाहिये।
- इसके लिये आवश्यक है कि महिलाओं को इस तरह से प्राथमिकता दी जाए कि कम से कम एक तिहाई महिलाएँ लाभार्थी हों जिन्होंने पंजीकरण कराकर काम के लिये अनुरोध किया हो।
- MGNREGA की धारा 17 में मनरेगा के तहत निष्पादित सभी कार्यों का सामाजिक लेखा-परीक्षण अनिवार्य है।
- MGNREGA के डिज़ाइन की आधारशिला इसकी कानूनी गारंटी है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि कोई भी ग्रामीण वयस्क कार्य के लिये अनुरोध कर सकता है और उसे 15 दिनों के भीतर कार्य मिलना चाहिये।
- क्रियान्वित संस्था:
- भारत सरकार का ग्रामीण विकास मंत्रालय (MRD) राज्य सरकारों के साथ मिलकर इस योजना के संपूर्ण क्रियान्वयन की निगरानी कर रहा है।
- उद्देश्य:
- यह अधिनियम ग्रामीण लोगों की क्रय शक्ति में सुधार लाने के उद्देश्य से पेश किया गया था, इसका उद्देश्य मुख्य रूप से ग्रामीण भारत में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों को अर्ध या अकुशल कार्य प्रदान करना है।
- यह देश में अमीर और गरीब के बीच के अंतर को कम करने का प्रयास करता है।
- 2022-23 की उपलब्धियाँ:
- इससे देशभर में लगभग 11.37 करोड़ परिवारों को रोज़गार मिला है।
- इसमें से 289.24 करोड़ व्यक्ति-दिवस रोज़गार उत्पन्न हुआ है, जिसमें:
- 56.19% महिलाएँ
- 19.75% अनुसूचित जाति (SC)
- 17.47% अनुसूचित जनजाति (ST)
योजना के क्रियान्वयन में चुनौतियाँ क्या हैं?
- धन वितरण में विलंब और अपर्याप्तता:
- अधिकांश राज्य मनरेगा द्वारा अनिवार्य 15 दिनों के भीतर मज़दूरी का भुगतान करने में विफल रहे हैं। इसके अलावा, मज़दूरी के भुगतान में देरी के लिये श्रमिकों को मुआवज़ा नहीं दिया जाता है।
- इसने योजना को आपूर्ति-आधारित कार्यक्रम में बदल दिया है और इसके बाद, श्रमिकों ने इसके तहत काम करने में रुचि लेना बंद कर दिया है।
- वित्त मंत्रालय की स्वीकारोक्ति सहित अब तक पर्याप्त सबूत हैं कि वेतन भुगतान में देरी अपर्याप्त धन का परिणाम है।
- अधिकांश राज्य मनरेगा द्वारा अनिवार्य 15 दिनों के भीतर मज़दूरी का भुगतान करने में विफल रहे हैं। इसके अलावा, मज़दूरी के भुगतान में देरी के लिये श्रमिकों को मुआवज़ा नहीं दिया जाता है।
- जाति आधारित अलगाव:
- जाति के आधार पर विलंब में महत्त्वपूर्ण भिन्नताएँ थीं। अनुसूचित जाति के श्रमिकों को 46% और अनुसूचित जनजाति के श्रमिकों के लिये 37% भुगतान अनिवार्य सात दिनों की अवधि में पूरा किया गया था, जबकि यह गैर-ST/SC श्रमिकों के लिये निराशाजनक (26%) था।
- जाति-आधारित अलगाव का नकारात्मक प्रभाव मध्य प्रदेश, झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल जैसे निर्धन राज्यों में विशेष तौर पर महसूस किया गया।
- PRI की अप्रभावी भूमिका:
- बहुत कम स्वायत्तता के कारण पंचायती राज संस्थान (PRI) इस अधिनियम को प्रभावी और कुशल तरीके से लागू करने में सक्षम नहीं हैं।
- बड़ी संख्या में अपूर्ण कार्य:.
- मनरेगा के तहत कार्यों को पूर्ण करने में देरी हुई है और परियोजनाओं का निरीक्षण अनियमित रहा है। साथ ही, मनरेगा के तहत कार्य की गुणवत्ता और संपत्ति निर्माण का भी मुद्दा है।
- जॉब कार्ड का निर्माण:
- फर्ज़ी जॉब कार्डों की मौजूदगी, फर्ज़ी नामों को शामिल करना, गायब प्रविष्टियाँ और जॉब कार्ड में प्रविष्टियाँ करने में देरी से संबंधित कई मुद्दे हैं।
मनरेगा के अंतर्गत कौन-सी पहल हैं?
- अमृत सरोवर: इसका उद्देश्य देश के प्रत्येक ज़िले में कम से कम 75 अमृत सरोवरों (तालाबों) का निर्माण/नवीनीकरण करना है जो सतही तथा भूमिगत दोनों जगह जल की उपलब्धता बढ़ाने में मदद करेंगे।
- ‘जलदूत’ ऐप: इसे 2-3 चयनित खुले कुओं के माध्यम से वर्ष में दो बार किसी ग्राम पंचायत में जल स्तर का मापन करने के लिये सितंबर 2022 में लॉन्च किया गया था।
- MGNREGS के लिये लोकपाल: MGNREGS के कार्यांवयन से संबंधित विभिन्न स्रोतों से प्राप्त शिकायतों की सुचारू रिपोर्टिंग तथा वर्गीकरण के लिये फरवरी 2022 में लोकपाल ऐप लॉन्च किया गया।
आगे की राह
- पारदर्शी एवं समय पर वेतन भुगतान के लिये डिजिटल उपकरणों का लाभ उठाते हुए राज्यों तथा कार्यान्वयन एजेंसियों को निरंतर निधि प्रवाह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
- बहिष्करण त्रुटियों पर ध्यान केंद्रित करना तथा उन क्षेत्रों की पहचान करना जहाँ हाशिये पर रहने वाले SC और ST परिवार मनरेगा के लाभों से वंचित हैं।
- विधानसभाओं, नागरिक समाज तथा श्रमिक संघों के माध्यम से सार्वजनिक भागीदारी को शामिल करते हुए सूचित निर्णयों के लिये राज्य एवं केंद्रीय रोज़गार गारंटी परिषदों को सशक्त बनाना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन "महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम" से लाभ पाने के पात्र हैं? (2011) (A) केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के परिवारों के वयस्क सदस्य। उत्तर: (D) व्याख्या:
अतः विकल्प D सही उत्तर है। |
सुरक्षा
INS इंफाल
प्रीलिम्स के लिये:INS इंफाल, भारतीय नौसेना, INS सूरत, ब्रह्मोस क्रूज़ मिसाइल, 15B परियोजना मेन्स के लिये:रक्षा प्रौद्योगिकी, समुद्री सुरक्षा |
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
चर्चा में क्यों?
हाल ही में INS (Indian Naval Ship- भारतीय नौसेना जहाज) इंफाल (पेनांट D68) को भारतीय नौसेना में शामिल किया गया है।
INS इंफाल क्या है?
- परिचय:
- INS इंफाल चार 'प्रोजेक्ट 15 ब्रावो विशाखापत्तनम क्लास' गाइडेड मिसाइल विध्वंसक में से तीसरा है।
- चौथे प्रोजेक्ट का नाम INS सूरत होगा।
- INS इंफाल दुनिया में सबसे तकनीकी रूप से उन्नत निर्देशित मिसाइल विध्वंसक में से एक है।
- इसे 20 अप्रैल, 2019 को लॉन्च किया गया और इसका नाम 'इंफाल' रखा गया।
- INS इंफाल चार 'प्रोजेक्ट 15 ब्रावो विशाखापत्तनम क्लास' गाइडेड मिसाइल विध्वंसक में से तीसरा है।
- विशेषताएँ:
- 7,400 टन के विस्थापन के साथ जहाज़ की लंबाई 163 मीटर और चौड़ाई 17 मीटर है तथा यह भारत में निर्मित सबसे शक्तिशाली युद्धपोतों में से एक है।
- यह संयुक्त गैस और गैस विन्यास में चार शक्तिशाली गैस टर्बाइनों द्वारा संचालित है तथा 30 समुद्री मील से अधिक की गति प्राप्त करने में सक्षम है।
- यह दुनिया की सबसे तेज़ सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल ब्रह्मोस को लॉन्च करने में सक्षम है।
- यह जहाज़ परमाणु, जैविक और रासायनिक युद्ध स्थितियों में लड़ने के लिये भी सुसज्जित है।
- यह अत्याधुनिक हथियारों और सेंसरों से लैस है, जिसमें सतह से सतह पर मार करने वाली मिसाइलें, सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलें, पनडुब्बी रोधी युद्ध रॉकेट लॉन्चर (ASW) और टॉरपीडो लॉन्चर, ASW हेलीकॉप्टर, रडार, सोनार एवं इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम शामिल हैं।
- महत्त्व:
- जहाज़ "जलमेव यस्य, बलमेव तस्य" के सिद्धांत को पुष्ट करता है, जिसका अर्थ है कि समुद्र को नियंत्रित करने से अपार शक्ति मिलती है। इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में जहाँ कई शक्तियाँ प्रभाव डालने के लिये प्रतिबद्ध हैं, INS इंफाल स्वयं को एक महत्त्वपूर्ण समुद्री अभिकर्त्ता के रूप में स्थापित करने के भारत के प्रयासों में योगदान देता है।
- हिमालय जैसी भौगोलिक बाधाओं और पड़ोसी देशों की चुनौतियों के कारण भारत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिये समुद्री मार्गों पर बहुत अधिक निर्भर है।
- INS इंफाल इन महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्गों को सुरक्षित करने, व्यापार जहाज़ो के लिये सुरक्षित मार्ग सुनिश्चित करने और इस तरह भारत के आर्थिक हितों की रक्षा करने में सहायता करता है।
15B परियोजना क्या है?
- भारत का स्वदेशी विध्वंसक पोत निर्माण कार्यक्रम वर्ष 1990 के दशक के अंत में तीन दिल्ली श्रेणी (P-15 वर्ग) युद्धपोतों के साथ शुरू हुआ तथा इसके एक दशक बाद तीन कोलकाता श्रेणी (P-15A) विध्वंसक युद्धपोतों को शामिल किया गया।
- वर्तमान में 15A परियोजना में प्राप्त सफलता एवं तकनीकी प्रगति के बाद, P-15B (विशाखापत्तनम श्रेणी) के तहत कुल चार युद्धपोतों (विशाखापत्तनम, मोर्मुगाओ, इम्फाल, सूरत) की योजना बनाई गई है।
- 15B परियोजना का लक्ष्य कोलकाता श्रेणी के विध्वंसक युद्धपोतों के उन्नत संस्करण को विशाखापत्तनम श्रेणी के विध्वंसक के रूप में निर्मित करना था।
- इस श्रेणी की पहचान इसके प्रमुख पोत के नाम से की जाती है इसलिये इसे विशाखापत्तनम श्रेणी के रूप में जाना जाता है।
- प्रोजेक्ट 15B के तहत, तकनीकी प्रगति और हथियार, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं अन्य प्रणालियों में सुधार को शामिल करते हुए पुराने जहाज़ों की क्षमताओं को बढ़ाने के उद्देश्य से जनवरी 2011 में एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किये गए थे।
- प्रोजेक्ट 15B का प्रमुख जहाज़ INS विशाखापत्तनम (पेनांट नंबर D66) है, जिसे नवंबर 2021 में चालू किया गया था।
- INS मोरमुगाओ (D67) दिसंबर 2022 में कमीशन/प्रमाणित किया गया दूसरा जहाज़ है और INS सूरत (कमीशन पर D69 नामित किया जाएगा) को मई 2023 में लॉन्च किया गया था।
- इन जहाज़ों को भारतीय नौसेना के युद्धपोत डिज़ान ब्यूरो द्वारा निर्मित किया गया है और मुंबई में मझगाँव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (MDSL) द्वारा निर्मित किया गया है।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
PwC का वैश्विक जोखिम सर्वेक्षण, 2023
प्रिलिम्स के लिये:साइबर जोखिम, साइबर सुरक्षा, जेनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रैनसमवेयर अटैक मेन्स के लिये:भारत में साइबर जोखिम से संबंधित चुनौतियाँ, भारत में साइबर-सुरक्षा के लिये प्रावधान |
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
चर्चा में क्यों?
वैश्विक सलाहकार फर्म, PwC के वैश्विक जोखिम सर्वेक्षण, 2023 के अनुसार, साइबर जोखिम भारतीय संगठनों के लिये सबसे बड़ा खतरा है।
सर्वेक्षण की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- साइबर जोखिम:
- साइबर जोखिमों को भारतीय संगठनों द्वारा सामना किये जाने वाले सबसे बड़े खतरे के रूप में संदर्भित किया गया है। 38% उत्तरदाता साइबर खतरों के प्रति उच्च अथवा अत्यधिक असुरक्षित महसूस करते हैं।
- जलवायु परिवर्तन (37%) तथा मुद्रास्फीति (36%) भारतीय संगठनों के लिये शीर्ष खतरों में दूसरे एवं तीसरे स्थान पर हैं।
- डिजिटल तथा प्रौद्योगिकी संबंधी जोखिम चौथे स्थान पर हैं, 35% भारतीय व्यापारी इन जोखिमों को लेकर चिंतित हैं।
- साइबर जोखिमों को भारतीय संगठनों द्वारा सामना किये जाने वाले सबसे बड़े खतरे के रूप में संदर्भित किया गया है। 38% उत्तरदाता साइबर खतरों के प्रति उच्च अथवा अत्यधिक असुरक्षित महसूस करते हैं।
- जोखिम प्रबंधन:
- भारतीय संगठन साइबर सुरक्षा में सक्रिय रूप से निवेश कर रहे हैं, अधिकांश लोग आगामी 1-3 वर्षों में साइबर सुरक्षा उपकरण (55%) तथा AI-संबंधित प्रौद्योगिकियों (55%) में निवेश की योजना बना रहे हैं, जो वैश्विक रुझानों (क्रमशः 51% व 49%) के अनुरूप है।
- इन निवेशों को सुदृढ़ करने के लिये 71% भारतीय संगठन सक्रिय रूप से जोखिम प्रबंधन तथा अवसर की पहचान के लिये साइबर सुरक्षा एवं IT डेटा का अनुप्रयोग कर रहे हैं, जो वैश्विक औसत 61% से अधिक है।
- सर्वेक्षण से यह भी पता चला है कि कैसे संगठन जोखिम प्रबंधन के लिये जेनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों का उपयोग कर रहे हैं, 48% भारतीय उद्यमों ने बड़े पैमाने पर स्वचालित जोखिम मूल्यांकन और प्रतिक्रिया के लिये AI तथा मशीन लर्निंग को प्रयोग में लाया गया है। यह वैश्विक प्रतिक्रिया 50% से थोड़ा कम है।
- यह रणनीतिक दृष्टिकोण साइबर सुरक्षा को मज़बूत करने और लचीलेपन के लिये विकसित प्रौद्योगिकियों को अपनाने की प्रतिबद्धता का प्रतीक है।
- विरासत प्रौद्योगिकियाँ:
- 42% भारतीय संगठन पुरानी प्रौद्योगिकियों (पुरानी प्रौद्योगिकी प्रणालियों और बुनियादी ढाँचे) के कारण बढ़ी हुई सुरक्षा कमज़ोरियों से जूझ रहे हैं, जो वैश्विक औसत 36% से अधिक है।
- इसके अलावा 46% भारतीय कंपनियों को पुरानी तकनीक, नवोन्वेषी जोखिम समाधानों के लिये सीमित बजट के कारण रखरखाव से संबंधित लागत में वृद्धि का सामना करना पड़ता है, जो वैश्विक आँकड़े 39% से अधिक है।
- निवेश में लचीलापन:
- पिछले वर्ष के दौरान 88% भारतीय संगठनों ने लचीलेपन के निर्माण में सक्रिय रूप से निवेश किया है, जो वैश्विक औसत 77% से अधिक है।।
- इस निवेश में एक टीम शामिल होती है, जिसमें व्यापार निरंतरता, साइबर, संकट प्रबंधन और जोखिम प्रबंधन जैसे कार्यों के सदस्य शामिल होते हैं, जो जोखिम की घटनाओं के घटित होने पर तेज़ी से प्रतिक्रिया देते हैं।
- पिछले वर्ष के दौरान 88% भारतीय संगठनों ने लचीलेपन के निर्माण में सक्रिय रूप से निवेश किया है, जो वैश्विक औसत 77% से अधिक है।।
साइबर जोखिम भारतीय संगठनों के लिये एक प्राथमिक खतरा क्यों हैं?
- मैलवेयर, ट्रोजन और स्पाइवेयर से जुड़े साइबर जोखिम प्रमुख रूप से भारतीय संगठनों के लिये सबसे बड़े खतरे के रूप में उभरे हैं, जो विशेष रूप से रैंसमवेयर हमलों में पर्याप्त वृद्धि से उजागर हुए हैं।
- रोकथाम के बावजूद, इन जोखिमों का इस बात पर बड़ा प्रभाव पड़ता है कि बाज़ार उन्हें कैसे देखता है, जो स्टॉक की कीमतों को प्रभावित करता है और विश्वास को खत्म करता है।
- फिरौती का भुगतान करने वाली कंपनियों ने बैकअप पर निर्भर रहने वाली कंपनियों की तुलना में डेटा रिकवरी की लागत दोगुनी हो गई है, जो रैंसमवेयर मांगों के आगे घुटने टेकने के वित्तीय नुकसान पर बल देती है।
- IT संगठन महत्त्वपूर्ण डेटा की एक विविध शृंखला संग्रहीत करते हैं, जिसमें व्यक्तिगत रूप से पहचान योग्य जानकारी, बौद्धिक संपदा, एक्सेस क्रेडेंशियल और वित्तीय डेटा शामिल होते हैं।
- यह बहु-आयामी डेटा ख़तरे फैलाने वालों को कई प्रकार की दुर्भावनापूर्ण गतिविधियों को अंजाम देने और बनाए रखने के लिये उत्तोलन प्रदान करता है।
- लीक हुआ डेटा, विशेष रूप से बौद्धिक संपदा, सॉफ्टवेयर के अवमूल्यन और प्रतिकृति को जन्म दे सकता है, जिससे राजस्व धाराओं के लिये गंभीर खतरा पैदा हो सकता है।
- डेटा का आंतरिक मूल्य और संगठन के हितधारकों पर संभावित प्रभाव से सफल फिरौती वसूली की संभावना बढ़ जाती है।
भारतीय संगठनों हेतु साइबर जोखिमों को संबोधित करने वाले कानून:
- सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम, 2000:
- यह साइबर सुरक्षा, डेटा सुरक्षा और साइबर अपराध से संबंधित प्राथमिक कानून है। हैकिंग, सेवा से इनकार करने वाले हमले, फ़िशिंग, मैलवेयर हमले, पहचान धोखाधड़ी और इलेक्ट्रॉनिक चोरी जैसी गतिविधियों को दंडनीय अपराध के रूप में पहचानना।
- डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (DPDP) अधिनियम, 2023:
- DPDP अधिनियम, 2023 वैध उद्देश्यों के लिये ऐसे डेटा के वैध प्रसंस्करण पर ज़ोर देते हुए व्यक्तियों के डिजिटल व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा के अधिकार को स्वीकार करने वाला कानून है।
- यह डेटा प्रोसेसर पर जवाबदेही और ज़िम्मेदारियाँ थोपता है। DPDP अधिनियम, 2023 कर्मचारियों और ग्राहकों द्वारा व्यक्तिगत डेटा के उपयोग के बारे में चिंताओं को संबोधित करता है, जिससे डेटा गोपनीयता के उच्च मानक को बढ़ावा मिलता है।
- DPDP अधिनियम, 2023 वैध उद्देश्यों के लिये ऐसे डेटा के वैध प्रसंस्करण पर ज़ोर देते हुए व्यक्तियों के डिजिटल व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा के अधिकार को स्वीकार करने वाला कानून है।
- राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति 2013:
- इसे खतरे की रोकथाम और प्रतिक्रिया के लिये क्षमताओं का निर्माण, सुभेद्यता को कम करने व राष्ट्रीय सुरक्षा को डिजिटल रूप से सुदृढ़ करके साइबरस्पेस में सूचना एवं बुनियादी ढाँचे की सुरक्षा के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- यह एक सुरक्षित कंप्यूटिंग वातावरण सुनिश्चित करने, इलेक्ट्रॉनिक लेनदेन में विश्वास को बढ़ावा देने और साइबरस्पेस सुरक्षा के लिये हितधारकों के कार्यों का मार्गदर्शन करने पर केंद्रित है।
- राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति 2020:
- Aims to improve cyber awareness and cybersecurity through more stringent audits. Empanelled cyber auditors will look more carefully at the security features of organizations than are legally necessary now. इसका उद्देश्य अधिक कड़े ऑडिट के माध्यम से साइबर जागरूकता और साइबर सुरक्षा में सुधार करना है। पैनल में शामिल साइबर ऑडिटर संगठनों की सुरक्षा सुविधाओं पर कानूनी तौर पर वर्तमान की तुलना में अधिक सावधानी से ध्यान देने ।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:Q.1 भारत में, साइबर सुरक्षा घटनाओं पर रिपोर्ट करना निम्नलिखित में से किसके/किनके लिये विधितः अधिदेशात्मक है?(2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: D मेन्स:Q1. साइबर सुरक्षा के विभिन्न तत्त्व क्या हैं? साइबर सुरक्षा की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए, जाँच कीजिये कि भारत ने किस हद तक एक व्यापक राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति सफलतापूर्वक विकसित की है। (2022) |