परमाणु ऊर्जा चालित रेलगाड़ियाँ
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय रेलवे ((IR), परमाणु ऊर्जा, गैर-जीवाश्म ईंधन, सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम (NPCIL), स्मॉल रिएक्टर, शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन, भारतीय सौर ऊर्जा निगम (SECI), थोरियम रिएक्टर। मेन्स के लिये:भारतीय रेलवे के लिये ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों की आवश्यकता और महत्त्व। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
भारतीय रेलवे (Indian Railways- IR) कैप्टिव इकाइयों के माध्यम से परमाणु ऊर्जा के उपयोग की संभावना तलाश रही है, क्योंकि वह गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों और नवीकरणीय स्रोतों पर निर्भरता बढ़ाना चाहती है।
- परमाणु ऊर्जा के अलावा रेलवे पहले से ही सौर ऊर्जा इकाइयों और पवन-आधारित विद्युत संयंत्रों को चालू करने की प्रक्रिया में है।
परमाणु ऊर्जा चालित रेलगाड़ियाँ क्या हैं?
- परिचय: परमाणु ऊर्जा चालित रेलगाड़ी, परमाणु प्रतिक्रिया से उत्पन्न ऊष्मा का उपयोग करके उच्च दबाव वाली भाप उत्पन्न करती है।
- यह भाप दो टर्बाइनों को चलाती है, एक टर्बाइन ट्रेन को शक्ति प्रदान करती है, जबकि दूसरी टर्बाइन एयर कंडीशनर और लाइट जैसे उपकरणों के लिये विद्युत् उत्पन्न करती है।
- परमाणु ऊर्जा चालित रेलगाड़ियों की अवधारणा पर पहली बार वर्ष 1950 के दशक में गंभीरता से विचार किया गया, जब यह USSR के परिवहन मंत्रालय का आधिकारिक लक्ष्य बन गया।
- परमाणु ऊर्जा से चलने वाली ट्रेनों का संचालन: प्रस्तावित डिज़ाइन में एक पोर्टेबल परमाणु रिएक्टर शामिल है, जो भाप बनाने के लिये तरल पदार्थ को गर्म करता है। यह भाप इलेक्ट्रिक टर्बाइन चलाती है, जिससे ट्रेन हेतु विद्युत् उत्पन्न होती है।
- सुरक्षा संबंधी विचार: थोरियम रिएक्टरों के उपयोग पर विचार किया जाता है क्योंकि अन्य परमाणु सामग्रियों की तुलना में इनमें विकिरण का जोखिम अपेक्षाकृत कम होता है। रिएक्टर के डिजाइन में जोखिम को कम करने और दुरुपयोग को रोकने के लिये सुरक्षा सुविधाएँ शामिल हैं।
- संभावित लाभ:
- कार्बन उत्सर्जन में कमी: परमाणु ऊर्जा जीवाश्म ईंधन की तुलना में CO2 उत्सर्जन को काफी हद तक कम कर सकती है, जो जलवायु परिवर्तन से निपटने के वैश्विक प्रयासों के अनुरूप है।
- ऊर्जा दक्षता: परमाणु रिएक्टर न्यूनतम ईंधन के साथ उच्च ऊर्जा उत्पादन करते हैं। इससे लंबी दूरी पर रेल परिवहन की परिचालन लागत और पर्यावरणीय प्रभाव को संभावित रूप से कम किया जा सकता है।
- कम बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता: परमाणु ऊर्जा से चलने वाली रेलगाड़ियाँ ओवरहेड विद्युत लाइनों से स्वतंत्र रूप से संचालित हो सकती हैं, जिससे बुनियादी ढाँचे की लागत कम हो सकती है और परिचालन में अधिक लचीलापन आ सकता है।
- विस्तारित रेंज: परमाणु ऊर्जा से चलने वाली रेलगाड़ियाँ बार-बार ईंधन भरने की आवश्यकता के बिना लंबी दूरी तक चल सकती हैं। यह व्यापक रेल नेटवर्क पर माल ढुलाई और यात्री सेवाओं के लिये फायदेमंद होगा।
- उच्च दक्षता: परमाणु रिएक्टर निरंतर विद्युत् प्रदान कर सकते हैं, जिससे रेल परिवहन का प्रदर्शन बेहतर हो सकता है। अतः उच्च परिचालन दक्षता की संभावना एक प्रमुख लाभ है।
- परमाणु ऊर्जा चालित रेलगाड़ियों की चुनौतियाँ:
- विकिरण जोखिम: परमाणु सामग्री को संभालना और विकिरण रिसाव के खिलाफ सुरक्षा सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ हैं। यात्रियों और चालक दल की सुरक्षा के लिये पर्याप्त सुरक्षा तथा सुरक्षा उपाय आवश्यक हैं।
- उच्च लागत: परमाणु ऊर्जा से चलने वाली रेलगाड़ियों को विकसित करने और लागू करने की शुरुआती लागत बहुत ज़्यादा है। इसमें छोटे, सुरक्षित रिएक्टर विकसित करने तथा उन्हें लोकोमोटिव में एकीकृत करने का खर्च शामिल है।
- तकनीकी जटिलता: चलती रेलगाड़ियों के लिये परमाणु रिएक्टरों की डिज़ाइनिंग और रखरखाव में जटिल इंजीनियरिंग चुनौतियाँ शामिल हैं।
भारतीय रेलवे जीवाश्म ईंधन स्रोतों पर निर्भरता कम करने हेतु क्या योजना बना रही है?
- परमाणु ऊर्जा अन्वेषण: परमाणु ऊर्जा के उपयोग की संभावना तलाशने के लिये भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम (Nuclear Power Corporation of India- NPCIL) के साथ विचार-विमर्श की योजना बनाई गई है।
- भारतीय रेलवे अपने स्वयं के कैप्टिव उपयोग वाले विद्युत संयंत्र, स्मॉल रिएक्टर, कैप्टिव विद्युत उत्पादन इकाइयाँ आदि स्थापित करने की योजना बना रहा है।
- शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य: रेलवे की योजना वर्ष 2030 तक शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन बनने की है। इसके लिये भारतीय रेलवे को वर्ष 2029-30 तक 30,000 मेगावाट नवीकरणीय क्षमता की आवश्यकता होगी।
- नवीकरणीय ऊर्जा के वर्तमान प्रयास: नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग के लिये रेलवे भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम (Solar Energy Corporation of India- SECI), NTPC, नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) के साथ साझेदारी की संभावना तलाश रहा है।
- नवीकरणीय ऊर्जा उपलब्धियाँ: वर्ष 2023 में लगभग 147 मेगावाट सौर संयंत्र (छतों पर और ज़मीन पर दोनों) तथा लगभग 103 मेगावाट पवन ऊर्जा संयंत्र चालू किये गए हैं।
- रेलवे ने वित्तवर्ष 24 तक लगभग 63,500 किलोमीटर या कुल ब्रॉड-गेज नेटवर्क के 96% से अधिक का विद्युतीकरण कर दिया है।
- 2,637 स्टेशनों और सेवा भवनों को सौर रूफटॉप संयंत्र प्रदान किये गए हैं, जिनकी कुल विद्युत उत्पादन क्षमता 177 मेगावाट है।
भारतीय रेलवे को ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों की आवश्यकता क्यों है?
- उच्च ऊर्जा खपत: भारतीय रेलवे वार्षिक रूप से 20 बिलियन kWh से अधिक विद्युत की खपत करता है, जो देश की कुल विद्युत खपत का लगभग 2% है। खपत का यह उच्च स्तर अधिक स्थायी ऊर्जा समाधानों की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
- विद्युत की बढ़ती मांग: विद्युतीकरण के चल रहे प्रयासों के कारण विद्युत की आवश्यकता वर्ष 2012 में 4,000 मेगावाट से बढ़कर 2032 तक लगभग 15,000 मेगावाट हो जाने का अनुमान है।
- यह पर्याप्त वृद्धि विविध ऊर्जा स्रोतों की आवश्यकता को उजागर करती है।
- विद्युतीकरण लक्ष्य: भारतीय रेलवे का लक्ष्य वर्ष 2030 तक अपने ब्रॉड-गेज नेटवर्क का 100% विद्युतीकरण करना है। यह महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य विद्युत की मांग में उल्लेखनीय वृद्धि करेगा, जिससे इस आवश्यकता को स्थायी रूप से पूरा करने हेतु वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों की आवश्यकता होगी।
- पर्यावरणीय प्रभाव: रेलवे की डीज़ल और विद्युत पर निर्भरता के कारण उच्च CO2 उत्सर्जन होता है।
- लो-कार्बन रणनीति के एक हिस्से के रूप में भारतीय रेलवे ने वर्ष 2030 तक वर्ष 2005 के स्तर से नीचे अपने उत्सर्जन की गहनता में 33% की कमी लाने का लक्ष्य रखा है।
- घटता राजस्व अधिशेष: रेलवे की राजस्व आय मुश्किल से उसके राजस्व व्यय के बराबर रह पाई है।
- वर्ष 2013-14 और वर्ष 2023-24 के बीच रेलवे के राजस्व व्यय में 7.2% की वार्षिक दर से वृद्धि होने का अनुमान है, जो इसकी राजस्व प्राप्तियों (6.3% की वार्षिक वृद्धि) से अधिक है।
- भारतीय रेलवे का लक्ष्य बाहरी ऊर्जा स्रोतों पर अपने खर्च को कम करने के लिये स्वयं ऊर्जा उत्पन्न करना है।
- लागत अनुकूलन: भारतीय रेलवे विद्युत का सबसे बड़ा उपभोक्ता है और अपनी ट्रेनों एवं कार्यालयों को चलाने के लिये वार्षिक रूप से करीब 20,000 करोड़ रुपए खर्च करता है।
- रेलवे अक्षय ऊर्जा खरीद और विद्युत उत्पादन के लिये कम लागत वाले मॉडल के माध्यम से लागत कम करने की कोशिश कर रहा है।
निष्कर्ष
भारतीय रेलवे के लिये ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों की आवश्यकता कई महत्त्वपूर्ण कारकों से प्रेरित है जैसे उच्च ऊर्जा खपत और लागत, विद्युतीकरण के कारण विद्युत की बढ़ती मांग, पर्यावरणीय प्रभाव तथा ऊर्जा सुरक्षा एवं लागत प्रबंधन की आवश्यकता, जबकि परमाणु ऊर्जा से चलने वाली ट्रेनों की परिकल्पना कार्बन उत्सर्जन को कम करने तथा दक्षता में सुधार करने का वादा करती है। सुरक्षा, लागत एवं सार्वजनिक स्वीकृति से संबंधित महत्त्वपूर्ण बाधाओं को खत्म किया जाना चाहिये। जैसे-जैसे शोध जारी है और प्रौद्योगिकी आगे बढ़ रही है, परमाणु ऊर्जा रेल परिवहन के भविष्य में एक भूमिका निभा सकती है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारतीय रेलवे के लिये ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों की आवश्यकता पर चर्चा कीजिये? परमाणु ऊर्जा रेलवे को वर्ष 2030 तक शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जक बनने में कैसे मदद कर सकती है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. भारत के संदर्भ में 'अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आई. ए. ई. ए.)' के 'अतिरिक्त नयाचार (एडीशनल प्रोटोकॉल)' का अनुसमर्थन करने का निहितार्थ क्या है? (2018) (a) असैनिक परमाणु रिएक्टर आई. ए. ई. ए. के रक्षोपायों के अधीन आ जाते हैं। उत्तर: (a) प्रश्न. नाभिकीय रिएक्टर में भारी जल का कार्य होता है: (2011) (a) न्यूट्रॉन की गति को धीमा करना। उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न: किराये को विनियमित करने के लिये रेल टैरिफ प्राधिकरण की स्थापना से नकदी की कमी से जूझ रही भारतीय रेलवे को गैर-लाभकारी मार्गों और सेवाओं को संचालित करने के दायित्व के लिये सब्सिडी की मांग करनी पड़ेगी। विद्युत क्षेत्र के अनुभव को ध्यान में रखते हुए चर्चा कीजिये कि क्या प्रस्तावित सुधार से उपभोक्ताओं, भारतीय रेलवे या निजी कंटेनर ऑपरेटरों को लाभ होने की उम्मीद है। (2014) प्रश्न. पारंपरिक ऊर्जा उत्पादन के विपरीत सूर्य के प्रकाश से विद्युत ऊर्जा प्राप्त करने के लाभों का वर्णन कीजिये। इस प्रयोजनार्थ हमारी सरकार द्वारा प्रस्तुत पहल क्या हैं? (2020) प्रश्न. ऊर्जा की बढ़ती हुई ज़रूरतों के परिप्रेक्ष्य में क्या भारत को अपने नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम का विस्तार करना जारी रखना चाहिये? नाभिकीय ऊर्जा से संबंधित तथ्यों और आशंकाओं की विवेचना कीजिये। (2018) |
प्रधानमंत्री जन-धन योजना के दस वर्ष
प्रिलिम्स के लिये:प्रधानमंत्री जन-धन योजना, प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना, ओवरड्राफ्ट सुविधा, वित्तीय साक्षरता, जन धन दर्शक ऐप, माइक्रो इंश्योरेंस, वित्तीय समावेशन हेतु राष्ट्रीय रणनीति, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (PMJJBY), प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (PMSBY), अटल पेंशन योजना (APY), माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफाइनेंस एजेंसी बैंक (MUDRA), डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPI) मेन्स के लिये:प्रधानमंत्री जन-धन योजना (PMJDY) एवं भारतीय बैंकिंग पर इसका प्रभाव, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप। |
स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड
चर्चा में क्यों ?
वर्ष 2024 में प्रधानमंत्री जन-धन योजना (PMJDY) का दसवाँ वर्ष है। PMJDY को दस वर्ष पूर्व 28 अगस्त, 2014 को लॉन्च किया गया था।
- सरकार का लक्ष्य चालू वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान PMJDY के तहत 3 करोड़ से अधिक खाते खोलना है।
प्रधानमंत्री जन-धन योजना की उपलब्धियाँ क्या हैं?
- खाता विस्तार: मार्च, 2015 में PMJDY ने 147 मिलियन खाते खोले थे, जो मार्च, 2024 में 520 मिलियन खातों तक पहुँच गया है।
- जमा संग्रहण: मार्च, 2015 में जमा संग्रहण 15,600 करोड़ रुपए था, जो मार्च, 2024 में बढ़कर 2.32 ट्रिलियन रुपए हो गया।
- पिछले 10 वर्षों में जमा संग्रहण 30% की चक्रवृद्धि औसत वृद्धि दर से बढ़ा है।
- मार्च, 2015 में औसत शेष राशि 1,065 रुपए से बढ़कर मार्च 2024 में 4,476 रुपए हो गई, जो पिछले दशक में लगभग चार गुना है।
- बैंकिंग अवसंरचना का विस्तार: जन धन दर्शक (JDD) ऐप पर 1.3 मिलियन से अधिक बैंकिंग टच पॉइंट मैप किये गए हैं।
- जुलाई, 2023 तक JDD ऐप पर कुल 6,01,000 गाँव मैप किये गए हैं। इनमें से कुल मैप किये गए गाँवों में से 5,99,468 (99.7%) गाँवों में बैंकिंग आउटलेट (बैंक शाखा, बैंकिंग कॉर्नर, या 5 किमी के दायरे में इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक) की सुविधाएँ हैं।
- जन धन दर्शक ऐप एक मोबाइल एप्लीकेशन है, जो नागरिकों को शाखाओं, ATM, बैंकिंग संवाददाता (BC), IPPB आदि जैसे बैंकिंग टचपॉइंट्स का पता लगाने में मदद करता है।
- ग्रामीण-शहरी समानता: वित्त मंत्रालय के अनुसार, PMJDY ने कुल 53.13 करोड़ PMJDY खातों की उपलब्धि हासिल की, जिसमें से 55.6% (29.56 करोड़) जन-धन खाताधारक महिलाएँ हैं और 66.6% (35.37 करोड़) जन धन खाते ग्रामीण तथा अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में हैं।
- डिजिटल भुगतान में वृद्धि: UPI वित्तीय लेन-देन की कुल संख्या वित्त वर्ष 2018 में 920 मिलियन से बढ़कर वित्त वर्ष 2024 में 131.2 बिलियन हो गई है।
- इसी तरह पॉइंट ऑफ सेल (PoS) और ई-कॉमर्स पर RuPay कार्ड लेनदेन की कुल संख्या वित्त वर्ष 2018 में 670 मिलियन से बढ़कर वित्त वर्ष 2023 में 1.26 बिलियन हो गई है।
- प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT): PMJDY ने 312 प्रमुख योजनाओं के माध्यम से 53 केंद्रीय सरकारी मंत्रालयों से लाभार्थियों को लगभग 361 बिलियन अमरीकी डॉलर सीधे हस्तांतरित किये।
- कोविड-19 के दौरान प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (PMGKY) के तहत PMJDY खातों ने तीन महीने (अप्रैल, मई और जून 2020) के लिये 500 रुपए प्रति माह के एकमुश्त अनुग्रह भुगतान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे 206.4 मिलियन महिला खाताधारक लाभान्वित हुई।
- ओवरड्राफ्ट (OD) खाते: मार्च, 2024 तक ऐसे PMJDY खाताधारकों के लिये 190 करोड़ रुपए की स्वीकृत राशि के साथ कुल 1,17,701 ओवरड्राफ्ट सुविधा खाते खोले गए हैं। इस सीमा का उपयोग 80.5% है।
- इसने सबसे गरीब लोगों के लिये औपचारिक वित्तीय प्रणाली से ऋण तक पहुँच सुनिश्चित की है।
- कम शून्य शेष वाले खाते: यद्यपि PMJDY के तहत शून्य शेष वाले खातों की अनुमति है और न्यूनतम शेष राशि बनाए रखना अनिवार्य नहीं है, फिर भी केवल 8.4% खातों में शून्य शेष राशि है।
- विश्व बैंक द्वारा प्रशंसा: विश्व बैंक के अनुसार, भारत ने छह वर्षों में इतना कुछ हासिल कर लिया है जितना वह पाँच दशकों में नहीं कर पाता।
- जन धन-आधार-मोबाइल (JAM) त्रिमूर्ति ने वित्तीय समावेशन दर को वर्ष 2008 के 25% से बढ़ाकर 80% वयस्कों तक पहुँचा दिया है, यह प्रगति जिसे पूरा होने में 47 वर्षों का समय लगता, डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPI) के कारण संभव हुई है।
PMJDY क्या है?
- PMJDY एक वित्तीय समावेशन कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य किफायती तरीके से वित्तीय सेवाओं जैसे मूल बचत और जमा खाते, धन प्रेषण, ऋण, बीमा, पेंशन तक पहुँच सुनिश्चित करना है।
- इस योजना के अंतर्गत जिन व्यक्तियों के पास कोई अन्य खाता नहीं है, वे किसी भी बैंक शाखा या बिज़नेस कॉरेस्पोंडेंट (बैंक मित्र) आउटलेट में मूल बचत बैंक जमा (BSBD) खाता खोल सकते हैं।
- विशेषताएँ:
- कोई न्यूनतम शेष राशि नहीं: PMJDY खातों में कोई न्यूनतम शेष राशि बनाए रखने की आवश्यकता नहीं है।
- निःशुल्क डेबिट कार्ड: PMJDY खाताधारकों को निःशुल्क रुपे डेबिट कार्ड प्रदान किया जाता है।
- दुर्घटना बीमा: 1 लाख रुपए का दुर्घटना बीमा कवर (वर्ष 2018 से खोले गए नए PMJDY खातों के लिये 2 लाख रुपए तक बढ़ाया गया) PMJDY खाताधारकों को जारी किये गए रुपे कार्ड के साथ उपलब्ध है।
- OD सुविधा: पात्र खाताधारकों को 10,000 रुपए तक की ओवरड्राफ्ट (OD) सुविधा उपलब्ध है।
- DBT लाभ: PMJDY खाते DBT, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (PMJJBY), प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (PMSBY), अटल पेंशन योजना (APY), माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफाइनेंस एजेंसी बैंक (MUDRA) योजना के लिये पात्र हैं।
- हालाँकि PMJDY खाते के साथ कोई अनिवार्य निःशुल्क चेक बुक सुविधा नहीं है। बैंक PMJDY खातों पर चेक बुक जारी कर सकते हैं, जिनकी कीमत हो भी सकती है और नहीं भी।
PMJDY से जुड़ी चुनौतियाँ क्या हैं?
- एक से अधिक खाते: बड़े बीमा कवर, आकस्मिक मृत्यु लाभ कवर और ओवरड्राफ्ट सुविधा पाने के लालच में लोग आधार कार्ड, पैन कार्ड आदि जैसे विभिन्न पहचान दस्तावेज़ों का उपयोग करके विभिन्न बैंकों में कई खाते खोल लेते हैं।
- बैंकों पर आर्थिक बोझ: बहुत अधिक संख्या में ऐसे खाते जिनमें लगातार कम शेष राशि रहती है, उनके प्रबंधन में बैंकों के लिये वित्तीय समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
- धन शोधन: ऐसी चिंताएँ हैं कि गरीबों के जन धन खातों का उपयोग काले धन के संचालकों द्वारा धन शोधन में किया जाता है।
- विमुद्रीकरण के बाद जनधन खातों का उपयोग धन शोधन के लिये किया गया।
- ओवरड्राफ्ट सुविधा में कमी: OD सुविधा प्रदान करना संबंधित बैंकों का विवेकाधिकार है। कई बैंक OD सुविधा देने से मना कर देते हैं, जिससे उद्देश्य पूरा नहीं हो पाता।
- अधिकार का दुरुपयोग: कभी-कभी व्यवसाय संवाददाता (Business Correspondents- BC) अधिकार का दुरुपयोग करते हैं और गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों का जीवन दयनीय बना देते हैं।
- BC उन सेवाओं के लिये अतिरिक्त शुल्क ले सकते हैं जो निःशुल्क या न्यूनतम लागत वाली मानी जाती हैं, जैसे बैंक खाते खोलना, लेन-देन की प्रक्रिया करना या ऋण प्रदान करना।
- बैड लोन: यह संभावना है कि ओवरड्राफ्ट सुविधा बैंकों के लिये बैड लोन के रूप में समाप्त हो सकती है, क्योंकि इस योजना में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि बैंक ऋण कैसे वसूल सकते हैं।
- अतीत में अनेक ऋण माफी योजनाओं के कारण लोग ऋण को मुफ्त में मिलने वाली वस्तु मानने लगे हैं।
- वित्तीय एवं प्रौद्योगिकी निरक्षरता: बचत, उधार, निवेश और व्यय के बारे में निर्णय लेने के लिये ग्रामीण लोगों में जागरूकता, ज्ञान तथा कौशल की कमी है।
- वित्तीय सेवा क्षेत्र की दिग्गज कंपनी वीज़ा द्वारा किये गए सर्वेक्षण से पता चला है कि 65% भारतीयों में वित्तीय साक्षरता का अभाव है।
आगे की राह
- केंद्रीकृत सत्यापन प्रणाली: बायोमेट्रिक और डिजिटल पहचान सत्यापन का उपयोग करके खातों के दोहराव को रोकने के लिये एक केंद्रीकृत प्रणाली लागू करना।
- व्यक्तियों को एक से अधिक खाते रखने के स्थान पर एक ही खाता रखने के लिये प्रोत्साहित करना, जैसे कि बढ़े हुए लाभ या कम शुल्क।
- वित्तीय समावेशन के लिये राष्ट्रीय रणनीति (NSFI): वर्ष 2025-30 के लिये आगामी NFSI को लक्षित जनसंख्या के बीच सामाजिक सुरक्षा योजना की पहुँच और जागरूकता बढ़ाने हेतु PMJDY पर ज़ोर देना चाहिये।
- सभी के लिये बीमा: भारत को केवल खातों और शेष राशि पर ध्यान केंद्रित करने से हटकर आगे बढ़ने की आवश्यकता है।
- PMJDY खाताधारकों को सूक्ष्म बीमा योजनाओं के अंतर्गत कवरेज सुनिश्चित करने के लिये प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।
- PMJDY खाताधारकों की माइक्रो-क्रेडिट और फ्लेक्सी-आवर्ती जमा जैसे माइक्रो निवेश तक पहुँच में सुधार की आवश्यकता है।
- OD खातों की पहुँच में वृद्धि: ओडी खातों की पहुँच में सुधार किया जाना चाहिये ताकि PMJDY विकास के एक अच्छे चरण के लिये उत्प्रेरक बन सके और विकसित भारत की दिशा में योगदान दे सके।
- नए फोकस क्षेत्र: केंद्र का मानना है कि PMJDY ने वयस्क आबादी के अधिकांश हिस्से को शामिल कर लिया है। अब हमारा ध्यान संपूर्ण वयस्क आबादी और वयस्कता प्राप्त करने वालों को भी शामिल करने पर है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: आलोचनात्मक रूप से चर्चा कीजिये कि पिछले 10 वर्षों में प्रधानमंत्री जन-धन योजना ने भारत में वित्तीय समावेशन में किस प्रकार मदद की है। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न: भारत में बैंकों द्वारा प्राथमिकता क्षेत्र ऋण में निम्नलिखित को ऋण देना शामिल है: (2013) (a) कृषि उत्तर: (d) प्रश्न. 'प्रधानमंत्री जन धन योजना' निम्नलिखित में से किसके लिये प्रारंभ की गई है? (2015) (a) गरीब लोगों को अपेक्षाकृत कम ब्याज-दर पर आवास-ऋण प्रदान करने के लिये। उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. प्रधानमंत्री जन धन योजना (पी.एम.जे.डी.वाई.) बैंकरहितों को संस्थागत वित्त में लाने के लिये आवश्यक है। क्या आप सहमत हैं कि इससे भारतीय समाज के गरीब तबके का वित्तीय समावेश होगा? अपने मत की पुष्टि के लिये तर्क प्रस्तुत कीजिये। (2016) प्रश्न .भारत की संभावित वृद्धि के कई कारकों में से बचत दर सबसेअधिक प्रभावी है। क्या आप सहमत हैं? विकास क्षमता के लिये अन्य कौन से कारक उपलब्ध हैं? (2017) |
भारत की सीमा पार नदियाँ
प्रिलिम्स के लिये:डंबूर बाँध, गोमती नदी, भारत और बांग्लादेश के बीच सीमा पार नदियाँ, नदियों को जोड़ने के लिये राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना, कोसी नदी। मेन्स के लिये:भारत में सीमा पार नदियाँ और संबंधित मुद्दे, भारत तथा पड़ोसी देशों के बीच जल बँटवारे से जुड़े मुद्दे, जल प्रबंधन। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
बांग्लादेश में हाल ही में भयंकर बाढ़ आई है, जिसके कारण यह चिंता उत्पन्न हो गई है कि पानी भारत के त्रिपुरा में स्थित डंबूर बाँध से पानी छोड़े जाने के कारण आ रहा है।
- हालाँकि भारत सरकार ने स्पष्ट किया है कि बाढ़ बाँध से पानी छोड़े जाने के कारण नहीं, बल्कि दोनों देशों से होकर बहने वाली गुमटी नदी के बड़े जलग्रहण क्षेत्रों में भारी वर्षा के कारण आई है।
गोमती नदी और डंबूर बाँध तथा डंबूर झील:
- गोमती नदी:
- इसे गोमती या गुमटी के नाम से भी जाना जाता है, जो त्रिपुरा से निकलती है और बांग्लादेश के कोमिला ज़िले से होकर बहती है।
- गोमती नदी के दाहिने किनारे की सहायक नदियों में कांची गैंग (Kanchi Gang), पितृ गैंग (Pitra Gang), सैन गैंग (San Gang), मैलाक छारा (Mailak Chhara) और सुरमा छारा (Surma Chhara) शामिल हैं, जबकि बाएँ किनारे की सहायक नदियाँ एक छारी (Ek Chhari), महारानी छारा (Maharani Chhara) तथा गंगा हैं।
- डंबूर बाँध:
- यह त्रिपुरा में गोमती नदी पर बना है।
- इसकी ऊँचाई 30 मीटर है और इससे बिजली ग्रिड में जाती है। बांग्लादेश त्रिपुरा से 40 मेगावाट (MW) बिजली लेता है।
- डंबूर झील:
- यह अगरतला के पास गंडचेर्रा में स्थित है और तीर्थमुख जलविद्युत परियोजना के निकट है, जो गोमती/गुमटी नदी का स्रोत है।
- राइमा और सरमा नदियों के संगम से निर्मित यह नदी अपनी विविध मछली प्रजातियों के लिये जानी जाती है।
- इस झील पर हर वर्ष 14 जनवरी को वार्षिक 'पौष संक्रांति मेला' आयोजित होता है।
भारत की पड़ोसी देशों से सीमा पार बहने वाली नदियाँ कौन-सी हैं?
- भारत-बांग्लादेश: भारत और बांग्लादेश 54 नदियों को साझा करते हैं, जिसमें बांग्लादेश के माध्यम से बंगाल की खाड़ी में बहने वाली सबसे अधिक नदियाँ भारत से आती हैं। प्रमुख नदियाँ हैं:
- गंगा (बांग्लादेश में पद्मा): यह प्रमुख नदी उत्तर भारत के गंगा के मैदान से होकर बांग्लादेश में प्रवेश करती है।
- इसकी बायीं ओर की प्रमुख सहायक नदियों में गोमती, घाघरा, गंडक और कोसी शामिल हैं।
- दाहिने तट की प्रमुख सहायक नदियों में यमुना, सोन, पुनपुन और दामोदर शामिल हैं।
- घाघरा: तिब्बती पठार से निकलकर यह नदी पटना के निकट गंगा में मिलती है तथा विशेष रूप से मानसून के दौरान अपने उच्च प्रवाह के लिये प्रसिद्ध है।
- सोन नदी: कैमूर पर्वतमाला से होकर बहती हुई यह नदी बिहार में पटना में गंगा में मिलने से पहले 487 मील की दूरी तय करती है।
- बांग्लादेश में गंगा की केवल एक सहायक नदी महानंदा है, जबकि इसकी अन्य सहायक नदियाँ इच्छामती, नवगंगा, भैरब, कुमार, गोआरी मधुमती और अरियल खान हैं।
- तीस्ता: यह नदी हिमालय से निकलती है और सिक्किम तथा पश्चिम बंगाल से होकर बहती हुई असम में ब्रह्मपुत्र एवं बांग्लादेश में यमुना (जिसे भारत में ब्रह्मपुत्र कहा जाता है) में मिल जाती है।
- बांग्लादेश भारत से तीस्ता नदी के जल के उचित आवंटन का समर्थन कर रहा है, जो वर्ष 1996 की गंगा जल संधि के समान है। हालाँकि यह अनुरोध सफल नहीं हुआ है।
- भारत और बांग्लादेश के बीच वर्ष 1996 की गंगा जल संधि का उद्देश्य जल प्रवाह अधिकारों के विवादों को हल करना था, जो वर्ष 1975 में फरक्का बैराज के निर्माण के बाद उभरा था, जिसका उद्देश्य कलकत्ता बंदरगाह को बनाए रखने के लिये गंगा के जल को हुगली नदी की ओर मोड़ना था।।
- फेनी: यह नदी त्रिपुरा की राजधानी अगरतला से 135 किलोमीटर दक्षिण में बहती है। इसके 1,147 वर्ग किलोमीटर जलग्रहण क्षेत्र में से 535 वर्ग किलोमीटर भारत में है, जबकि शेष बांग्लादेश में है।
- यह भारत-बांग्लादेश सीमा का हिस्सा है।
- फेनी नदी पर 1.9 किलोमीटर लंबा पुल मैत्री सेतु भारत और बांग्लादेश को जोड़ने के लिये त्रिपुरा में बनाया गया है।
- फेनी नदी की कुछ उल्लेखनीय सहायक नदियों में मुहुरी नदी, रैडक नदी, चांदखीरा नदी, रियांग नदी और कुशियारा नदी शामिल हैं।
- कुशियारा नदी: यह बराक नदी की एक सहायक नदी है, जो भारत-बांग्लादेश सीमा पर अमलशीद विभाजन बिंदु से निकलती है, जहाँ बराक कुशियारा और सुरमा नदियों में विभाजित हो जाती है।
- यह असम से शुरू होती है और नागालैंड तथा मणिपुर से सहायक नदियों को अपने में समाहित करती है।
- ब्रह्मपुत्र नदी: यह तिब्बत में कैलाश पर्वत के पास यारलुंग त्संगपो के रूप में चेमायुंगडुंग ग्लेशियर से निकलती है, जो भारत और बांग्लादेश से होकर प्रवाहित होती है तथा दोनों देशों के बीच एक प्राकृतिक सीमा बनाती है।
- यह बांग्लादेश में प्रवेश करने से पहले अरुणाचल प्रदेश, असम और मेघालय से होकर बहती है (जिसे जमुना कहा जाता है)।
- इसकी प्रमुख सहायक नदियों में भारत में सुबनसिरी, कामेंग, मानस और धनसिरी नदियाँ तथा बांग्लादेश में तीस्ता नदी शामिल हैं।
- ब्रह्मपुत्र नदी बांग्लादेश में गंगा नदी से मिलती है और पद्मा नदी बनाती है, जो फिर मेघना नदी में मिल जाती है तथा मेघना मुहाना के माध्यम से बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है।
- मेघना: भारत में बराक नदी असम के करीमगंज ज़िले में 2 धाराओं सूरमा और कुशियारा में विभाजित हो जाती है। सूरमा और कुशियारा बांग्लादेश के किशोरगंज ज़िले में फिर से मिल जाती हैंतथा मेघना के नाम से जानी जाती हैं।
- बांग्लादेश में चाँदपुर तक इसे ऊपरी मेघना के नाम से जाना जाता है और चाँदपुर में पद्मा से मिलने के बाद इसे लोवर मेघना के नाम से जाना जाता है।
- जमुना (भारत में ब्रह्मपुत्र कहा जाता है): जमुना ब्रह्मपुत्र की एक सहायक नदी है, जो बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र के तीस्ता से मिलने के स्थान पर मुख्यधारा से अलग हो जाती है और बांग्लादेश में ग्वालुंडो घाट तक जमुना नाम से बहती है, जहाँ यह पद्मा नदी (भारत में गंगा कहा जाता है) से मिलती है।
- गंगा (बांग्लादेश में पद्मा): यह प्रमुख नदी उत्तर भारत के गंगा के मैदान से होकर बांग्लादेश में प्रवेश करती है।
- भारत-चीन: चीन से भारत की ओर बहने वाली सीमा पार की नदियाँ दो मुख्य समूहों में आती हैं।
- ब्रह्मपुत्र नदी प्रणाली: पूर्वी तरफ ब्रह्मपुत्र नदी प्रणाली, जिसमें सियांग नदी (ब्रह्मपुत्र नदी की मुख्य धारा) और उसकी सहायक नदियाँ, अर्थात् सुबनसिरी एवं लोहित शामिल हैं, जिसमें ब्रह्मपुत्र नदी को चीन में यालुज़ांगबू या त्सांगपो कहा जाता है; तथा
- सिंधु नदी प्रणाली: पश्चिमी ओर की सिंधु नदी प्रणाली, जिसमें सिंधु नदी और सतलुज नदी शामिल हैं।
- भारत और चीन ने दो समझौता ज्ञापनों (MoU) पर हस्ताक्षर किये हैं, जिसके तहत चीन इन दोनों नदियों के बारे में भारत को जल विज्ञान संबंधी जानकारी उपलब्ध करा सकेगा।
- भारत-पाकिस्तान:
- सिंधु नदी: सिंधु भारत में सीमा पार बहने वाली नदी है, जो पश्चिमी तिब्बत से निकलकर कश्मीर से उत्तर-पश्चिम में बहती है और फिर पाकिस्तान से दक्षिण-पश्चिम की ओर बहती हुई अंततः कराची के पास अरब सागर में मिल जाती है।
- सिंधु नदी और भारत से पश्चिम की ओर बहने वाली अन्य नदियों का जल स्वतंत्रता के बाद से ही भारत व पाकिस्तान के बीच एक विवादास्पद मुद्दा रहा है।
- सतलुज: यह सिंधु नदी की एक प्रमुख सहायक नदी है, जो तिब्बत में राक्षस झील से निकलती है।
- यह नदी सिंधु नदी के समानांतर लगभग 400 किलोमीटर तक बहती हुई हिमाचल प्रदेश के शिपकी ला दर्रे से भारत में प्रवेश करती है तथा पंजाब से होकर आगे बढ़ती है।
- वहाँ, यह ब्यास नदी से मिलती है, जो चेनाब नदी में मिलने से पहले भारत-पाकिस्तान सीमा का हिस्सा बनती है।
- संयुक्त प्रवाह पंजनद नदी बनाता है, जो सिंधु नदी में मिल जाता है।
- चिनाब: यह सिंधु नदी की एक प्रमुख सहायक नदी है, जो हिमाचल प्रदेश के तांडी में चंद्रा और भागा धाराओं के संगम से निकलती है।
- अपने ऊपरी हिस्से में चंद्रभागा के नाम से जानी जाने वाली यह नदी जम्मू-कश्मीर से होकर पश्चिम की ओर बहती है और फिर दक्षिण-पश्चिम में पाकिस्तान में प्रवेश करती है।
- यह नदी पंजाब प्रांत के निचले जलोढ़ क्षेत्र में गिरती है और सतलुज नदी में मिलने से पहले त्रिमू के पास झेलम नदी से मिलती है।
- झेलम:
- कश्मीर घाटी में वेरीनाग झरने से निकलकर यह नदी जम्मू-कश्मीर और पंजाब से होकर बहती है।
- यह नदी श्रीनगर और वुलर झील से होकर गिलगित के पास एक घाटी से होकर पाकिस्तान में प्रवेश करती है तथा झंग के पास चिनाब नदी में मिल जाती है।
- ब्यास:
- ब्यास नदी हिमाचल प्रदेश में रोहतांग दर्रे के पास ब्यास कुंड से निकलती है।
- यह कुल्लू घाटी से होकर बहती है और पंजाब में हरिके स्थान पर सतलुज नदी में मिल जाती है।
- रावी:
- रावी नदी हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा ज़िले के बड़ा भंगाल से निकलती है। यह नदी बड़ा बाँसू, त्रेता, चनोता और उल्हांसा से होकर बहती है तथा पंजाब राज्य में प्रवेश करने से पहले 158 किलोमीटर की दूरी तय करती है।
- इसकी प्रसिद्ध सहायक नदियाँ बुढिल, सिउल, बलजेरी, छतरारी और बैरा हैं।
- वर्ष 1960 की सिंधु जल संधि के तहत व्यास, रावी और सतलुज नदियों का नियंत्रण भारत को तथा सिंधु, चिनाब व झेलम नदियों का नियंत्रण पाकिस्तान को आवंटित किया गया है।
- सिंधु नदी: सिंधु भारत में सीमा पार बहने वाली नदी है, जो पश्चिमी तिब्बत से निकलकर कश्मीर से उत्तर-पश्चिम में बहती है और फिर पाकिस्तान से दक्षिण-पश्चिम की ओर बहती हुई अंततः कराची के पास अरब सागर में मिल जाती है।
- भारत-नेपाल:
- कोसी और गंडक नेपाल से भारत में बहने वाली प्रमुख नदियाँ हैं। अन्य महत्त्वपूर्ण नदियों में राप्ती, नारायणी तथा काली शामिल हैं।
- नेपाल से भारत में प्रवेश करने वाली ये नदियाँ मुख्यतः तिब्बती पठार और हिमालय पर्वतमाला से निकलती हैं।
- कोसी:
- कोसी नदी चीन, नेपाल और भारत से होकर बहने वाली एक अंतर्राष्ट्रीय नदी है, जो गंगा की एक प्रमुख सहायक नदी है।
- हिमालय में सुन कोसी, अरुण कोसी व तमूर कोसी के संगम से निकलकर यह नदी नेपाल और बिहार से होकर बहती हुई बिहार में गंगा में मिल जाती है।
- कोसी अपनी निरंतर बदलती धारा और बाढ़ के लिये जानी जाती है, जिसके कारण इसे "बिहार का शोक" उपनाम दिया गया है।
- गंडक:
- इसे गंडकी या नारायणी नदी के नाम से भी जाना जाता है, यह उत्तरी भारत और नेपाल से होकर बहती है।
- इसका उद्गम तिब्बत में नेपाल सीमा के पास 7,620 मीटर की ऊँचाई पर होता है।
- यह पटना के पास गंगा में मिलने से पहले बिहार और उत्तर प्रदेश से होकर बहती है।
- इसकी प्रमुख सहायक नदियों में मायांगदी, बारी, त्रिशूली, पंचंद, सरहद और बूढ़ी गंडक शामिल हैं।
- शारदा/काली/महाकाली नदी:
- इसका उद्गम उत्तराखंड के कालापानी से होता है। यह नेपाल और भारत की पश्चिमी सीमा पर बहती है।
- घाघरा नदी में मिलने और काली नदी के रूप में पहाड़ियों से गुजरने के बाद, यह तराई क्षेत्रों में प्रवेश करती है जहाँ इसे शारदा नदी के नाम से जाना जाता है।
- इस नदी पर सिंचाई और पनबिजली/जलविद्युत के लिये भारत-नेपाल की संयुक्त परियोजना पंचेश्वर बाँध स्थित है।
- भारत और नेपाल परंपरागत रूप से सुगौली संधि, 1816 की व्याख्या पर असहमत रहे हैं, जिसने नेपाल में महाकाली नदी के साथ सीमा का सीमांकन किया था, दोनों देशों के बीच इस बात पर मतभेद है कि कौन-सी धारा नदी का स्रोत है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न. भारत की प्रमुख सीमा पार नदियाँ कौन-सी हैं? भारत में सीमा पार नदियों के प्रबंधन में चुनौतियों और अवसरों की जाँच कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स प्रश्न. तीस्ता नदी के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (b) प्रश्न. सिंधु नदी प्रणाली के संदर्भ में, निम्नलिखित चार नदियों में से तीन नदियाँ इनमें से किसी एक नदी में मिलती हैं जो सीधे सिंधु नदी से मिलती है। निम्नलिखित में से वह नदी कौन-सी है, जो सिंधु नदी से सीधे मिलती है? (2021) (a) चेनाब उत्तर: (d) प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त में से कौन-से युग्म सही सुमेलित हैं? (a) 1, 2 और 4 उत्तर: (a) मेन्सप्रश्न 1. सिंधु जल संधि का एक विवरण प्रस्तुत कीजिये तथा बदलते हुए द्विपक्षीय संबंधों के संदर्भ में उसके पारिस्थितिक, आर्थिक एवं राजनीतिक निहितार्थों का परीक्षण कीजिये। (2016) प्रश्न 2. नमामी गंगे और स्वच्छ गंगा का राष्ट्रीय मिशन (एन.एम.सी.जी.) कार्यक्रमों पर तथा इससे पूर्व की योजनाओं से मिश्रित परिणामों के कारणों पर चर्चा कीजिये। गंगा नदी के परिरक्षण में कौन-सी प्रमात्रा छलांगें, क्रमिक योगदानों की अपेक्षा ज्यादा सहायक हो सकती हैं? (2015) |
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में उच्च घर्षण दर
प्रिलिम्स के लिये:क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक, भारतीय रिज़र्व बैंक, गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ, डिजिटल बैंकिंग, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, एक ज़िला एक उत्पाद मेन्स के लिये:क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में चुनौतियाँ, ग्रामीण विकास, बैंकिंग क्षेत्र और सुधार |
स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय वित्त मंत्री ने क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRB) में उच्च कर्मचारी-हितैषी नीतियों को अपनाने का आग्रह करते हुए इन संस्थानों में कर्मचारियों की उच्च-घर्षण दरों पर चर्चा की।
- इसमें कर्मचारी संतुष्टि बढ़ाने, ग्राहक सेवा में सुधार लाने तथा अंततः क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के प्रदर्शन को बढ़ावा देने के लिये सुधारों की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया।
नोट: घर्षण दर एक माप है जो उस दर को मापता है, जिस पर कर्मचारी स्वेच्छा से या अनैच्छिक रूप से किसी संगठन को छोड़ते हैं।
RRB को उच्च घर्षण दर का सामना क्यों करना पड़ रहा है?
- कर्मचारी लाभों का अभाव: RRB कर्मचारी अक्सर अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (SCB) में बेहतर अवसरों के कारण नौकरी छोड़ देते हैं, जो समान वेतनमान के बावजूद बेहतर सुविधाएँ प्रदान करते हैं।
- राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के अनुसार, 43 RRB में कर्मचारियों की कुल संख्या वित्त वर्ष 2022 में 95,833 से घटकर वित्त वर्ष 2023 में 91,664 हो गई, जबकि शाखाओं की संख्या वित्त वर्ष 2022 में 21,892 से बढ़कर वित्त वर्ष 2023 में 21,995 हो गई।
- चुनौतीपूर्ण कार्य वातावरण: अन्य राज्यों से RRB में कार्य करने के लिये आने वाले कर्मचारियों को ग्रामीण जीवन के अनुकूल होने में कठिनाई होती है, जिसके कारण उन्हें अन्य अवसरों की तलाश करनी पड़ती है।
- धीमी कॅरियर वृद्धि: SCB की तुलना में RRB धीमी पदोन्नति और कम प्रोत्साहन प्रदान करते हैं, जिससे कर्मचारियों में असंतोष उत्पन्न होता है।
RRB कर्मचारी प्रतिधारण में कैसे सुधार कर सकते हैं?
- स्थानीय पोस्टिंग को प्राथमिकता देना: कर्मचारियों को उनके गृह क्षेत्रों में कार्य करने के लिये नियुक्त करना, उन्हें अपने व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन को बेहतर ढंग से संतुलित करने में मदद कर सकता है, जिससे अन्य अवसरों के लिये नौकरी छोड़ने की इच्छा कम हो सकती है।
- कर्मचारी लाभ बढ़ाना: RRB को ऐसे लाभ और सुविधाएँ प्रदान करने का प्रयास करना चाहिये जो SCB द्वारा प्रदान की जाने वाली सुविधाओं के साथ प्रतिस्पर्धी हों, जैसे कि बेहतर आवास, स्वास्थ्य सेवा तथा सेवानिवृत्ति योजनाएँ।
- कॅरियर विकास में तेज़ी लाना: तेज़ी से पदोन्नति ट्रैक और अधिक लगातार कॅरियर उन्नति के अवसरों को लागू करना कर्मचारियों को संगठन के भीतर रहने एवं आगे बढ़ने के लिये प्रेरित कर सकता है।
- सहायक कार्य वातावरण: RRB को नौकरी की संतुष्टि बढ़ाने के लिये लचीली कार्य स्थितियों, नियमित प्रशिक्षण और पेशेवर विकास कार्यक्रम प्रस्तुत करके अधिक कर्मचारी-अनुकूल संस्कृति को बढ़ावा देना चाहिये।
- ग्रामीण क्षेत्रों में तैनात कर्मचारियों को बेहतर आवास विकल्प और सामुदायिक सहभागिता गतिविधियों जैसी अतिरिक्त सहायता प्रदान करने से उन्हें अपनी भूमिकाओं को निभाने तथा आगे बढ़ने में मदद मिल सकती है।
- डिजिटल क्षमताओं का विस्तार: मोबाइल बैंकिंग जैसी डिजिटल बैंकिंग सेवाओं को बढ़ाने से RRB को अपने प्रदर्शन को बेहतर बनाने और तकनीक-प्रेमी कर्मचारियों को आकर्षित करने में मदद मिल सकती है, जो नवाचार तथा सुविधा को महत्व देते हैं।
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक क्या हैं?
- परिचय: ग्रामीण ऋण पर नरसिम्हम समिति (1975) ने RRB की स्थापना की सिफारिश की थी।
- RRB अधिनियम, 1976 के तहत वर्ष 1975 में RRB की स्थापना की गई थी, जिसका उद्देश्य छोटे और सीमांत किसानों, कृषि मजदूरों, कारीगरों एवं छोटे उद्यमियों को ऋण तथा अन्य सुविधाएँ प्रदान करके ग्रामीण अर्थव्यवस्था को विकसित करना था, जिससे ग्रामीण व अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में कृषि, व्यापार, वाणिज्य एवं उद्योग को समर्थन मिला।
- RRB सरकार द्वारा अधिसूचित क्षेत्रों में काम करते हैं, जो एक राज्य में एक या अधिक ज़िलों को कवर करते हैं।
- इनका उद्देश्य सहकारी समितियों के स्थानीय लोगों को वाणिज्यिक बैंकों की व्यावसायिकता के साथ जोड़ना था।
- मार्च, 2023 तक, 12 अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों द्वारा प्रायोजित 43 RRB थे, जो 26 राज्यों और 3 केंद्र शासित प्रदेशों में संचालित हो रहे थे।
- पहला RRB प्रथम बैंक था, जिसका मुख्यालय उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में था।
- RRB का स्वामित्व केंद्र सरकार, संबंधित राज्य सरकार और प्रायोजक बैंक के पास 50:15:35 के अनुपात में होता है (प्रत्येक RRB किसी विशेष बैंक द्वारा प्रायोजित होता है)।
- भारत में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) संपूर्ण बैंकिंग प्रणाली की देखरेख करता है, जबकि NABARD बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 के तहत RRB सहित ग्रामीण वित्तीय संस्थानों की देखरेख करता है।
- RRB सरकार द्वारा अधिसूचित क्षेत्रों में काम करते हैं, जो एक राज्य में एक या अधिक ज़िलों को कवर करते हैं।
- RRB अधिनियम, 1976 के तहत वर्ष 1975 में RRB की स्थापना की गई थी, जिसका उद्देश्य छोटे और सीमांत किसानों, कृषि मजदूरों, कारीगरों एवं छोटे उद्यमियों को ऋण तथा अन्य सुविधाएँ प्रदान करके ग्रामीण अर्थव्यवस्था को विकसित करना था, जिससे ग्रामीण व अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में कृषि, व्यापार, वाणिज्य एवं उद्योग को समर्थन मिला।
- वित्तीय प्रदर्शन: पिछले तीन वर्षों में RRB ने उल्लेखनीय सुधार प्रदर्शित किया है। वित्त वर्ष 23 के दौरान RRB का कुल कारोबार 10 लाख करोड़ रुपए को पार कर गया, जो साल-दर-साल 10.1% की दर से बढ़ रहा है।
- मार्च, 2023 तक सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (NPA) 7.28% पर थीं, जो सात वर्षों में सबसे कम थी, जबकि निवल NPA लगभग 3.2% था।
- RRB ने वित्त वर्ष 22-23 में 4,974 करोड़ रुपए का अब तक का सबसे अधिक समेकित शुद्ध लाभ दर्ज किया। वित्त वर्ष 23-24 में तीसरी तिमाही तक शुद्ध लाभ 5,236 करोड़ रुपए था।
- चुनौतियाँ:
- परिसंपत्ति गुणवत्ता अनुरक्षण: RRB के लिये परिसंपत्ति गुणवत्ता बनाए रखना एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है, विशेषकर जब वे ग्रामीण और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में ऋण का विस्तार करने तथा अपने पोर्टफोलियो को बढ़ाने के लिये काम करते हैं।
- सीमित डिजिटल अवसंरचना: क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को अक्सर डिजिटल बैंकिंग सेवाओं को उन्नत करने और बनाए रखने में कठिनाई होती है, विशेष रूप से खराब कनेक्टिविटी वाले क्षेत्रों में, जो बड़े बैंकों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने की उनकी क्षमता में बाधा उत्पन्न कर सकती है।
- कॉर्पोरेट प्रशासन के मुद्दे: मज़बूत कॉर्पोरेट प्रशासन सुनिश्चित करना एक सतत् चुनौती है, जिसमें RRB को विश्वसनीयता और दक्षता बनाए रखने के लिये अपनी आंतरिक प्रक्रियाओं तथा अनुपालन में सुधार करने की आवश्यकता है।
- ऋण पहुँच बढ़ाने का दबाव: क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों पर कृषि ऋण संवितरण और अन्य प्राथमिकता क्षेत्र ऋण में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने का दबाव है, जिसके लिये संसाधनों तथा जोखिमों के बीच सावधानीपूर्वक संतुलन की आवश्यकता है।
- बढ़ी हुई प्रतिस्पर्द्धा: निजी क्षेत्र के बैंकों की बढ़ती उपस्थिति ने प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ा दिया है, क्योंकि ये बैंक बेहतर प्रौद्योगिकी, अधिक व्यापक सेवाएँ और अधिक सुव्यवस्थित ग्राहक अनुभव प्रदान करते हैं।
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को निजी बैंकों के उन्नत संसाधनों और बुनियादी ढाँचे के साथ प्रतिस्पर्धा करने में संघर्ष करना पड़ता है।
- लघु वित्त बैंकों ने विशेष सेवाएँ और उन्नत प्रौद्योगिकी की पेशकश करके प्रतिस्पर्द्धा बढ़ा दी है, जिससे RRB की ग्राहकों को आकर्षित करने तथा बनाए रखने की क्षमता को और चुनौती मिल रही है।
- गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ: NPA के भारी बोझ ने RRB के वित्तीय स्वास्थ्य को प्रभावित किया है, जिसके कारण उन्हें अपनी सेवाओं का विस्तार करने के बजाय इन समस्याग्रस्त ऋणों को कम करने पर ध्यान केंद्रित करना पड़ रहा है।
RRB के प्रदर्शन को बढ़ावा देने के अवसर:
- परिचालन मॉडल की समीक्षा करना: दक्षता बढ़ाने के लिये क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को उनके प्रायोजक बैंकों के साथ विलय करने के संभावित लाभों और चुनौतियों पर विचार करना।
- कोई भी निर्णय लेने से पहले सेवा वितरण और ग्रामीण फोकस पर समेकन के प्रभाव का आकलन करना।
- MSME क्लस्टरों के साथ RRB का मानचित्रण: ऋण वितरण को बढ़ाने और स्थानीय व्यवसायों को समर्थन देने के लिये सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (Micro, Small, and Medium Enterprises- MSME) के साथ आरआरबी परिचालन को संरेखित करना।
- अनुरूप वित्तीय उत्पादों के क्षेत्रों की पहचान करने के लिये MSME क्लस्टरों का उपयोग कीजिये।
- ग्रामीण क्षेत्रों में MSME को लक्षित वित्तीय उत्पाद और सेवाएँ प्रदान करना, उद्यमशीलता तथा आर्थिक विकास को बढ़ावा देना।
- वित्तीय समावेशन प्रयासों का विस्तार करना: प्रधानमंत्री मुद्रा योजना और PM विश्वकर्मा जैसी सरकारी योजनाओं के लिये पहुँच तथा समर्थन बढ़ाना तथा अविकसित क्षेत्रों में इन कार्यक्रमों की पहुँच में सुधार करना।
- स्थानीय विकास को समर्थन देने और ऋण पहुँच बढ़ाने के लिये पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना तथा एक ज़िला एक उत्पाद (One District One Product- ODOP) जैसी योजनाओं को सक्रिय रूप से बढ़ावा देना एवं लागू करना।
- ऋण वृद्धि के लिये CASA अनुपात का लाभ उठाना: स्वस्थ चालू खाता बचत खाता (Current Account Savings Account- CASA) अनुपात का उपयोग, विशेष रूप से MSME और कृषि जैसे वंचित क्षेत्रों को अधिक ऋण प्रदान करने के लिये किया जाना चाहिये।
- ग्राहक सहभागिता में वृद्धि: प्रदर्शन और ग्राहक संतुष्टि को बढ़ावा देने के लिये बेहतर स्थानीय संपर्क तथा व्यक्तिगत सेवाओं के माध्यम से ग्राहक संबंधों में सुधार करना।
- प्रायोजक बैंकों के साथ सहयोग: तकनीकी सहायता प्राप्त करने, सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने और विकास एवं स्थिरता के लिये आवश्यक संसाधनों तक पहुँच हेतु प्रायोजक बैंकों के साथ मिलकर कार्य करना।
- परिसंपत्ति गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करना: प्रभावी जोखिम प्रबंधन प्रथाओं को लागू करके और ऋण पोर्टफोलियो की नियमित समीक्षा करके परिसंपत्ति गुणवत्ता को बनाए रखना व सुधार करना।
राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक
- ग्रामीण क्षेत्रों में संस्थागत ऋण की आवश्यकता को पूरा करने के लिये RBI ने वर्ष 1979 में कृषि और ग्रामीण विकास के लिये संस्थागत ऋण की व्यवस्था की समीक्षा हेतु समिति (CRAFICARD) का गठन किया था।
- समिति की सिफारिशों के परिणामस्वरूप NABARD का निर्माण हुआ, जिसकी स्थापना वर्ष 1982 में राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक अधिनियम, 1981 के तहत भारतीय रिज़र्व बैंक से कृषि ऋण कार्यों तथा कृषि पुनर्वित्त एवं विकास निगम (ARDC) से पुनर्वित्त कार्यों को स्थानांतरित करके की गई थी।
- NABARD स्वयं को "ग्रामीण समृद्धि को बढ़ावा देने के लिये राष्ट्र का विकास बैंक" के रूप में देखता है, जो ग्रामीण आजीविका और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करता है।
- महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ:
- स्वयं सहायता समूह बैंक-लिंकेज कार्यक्रम (Self Help Group-Bank Linkage Programme-SHG-BLP): वर्ष 1992 में शुरू की गई यह पहल विश्व की सबसे बड़ी माइक्रोफाइनेंस परियोजना के रूप में विकसित हो गई है, जिसने वित्तीय समावेशन को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ाया है।
- किसान क्रेडिट कार्ड: NABARD द्वारा डिज़ाइन किया गया यह कार्ड लाखों किसानों के लिये एक आवश्यक वित्तीय साधन बन गया है।
- ग्रामीण अवसंरचना: NABARD ने भारत की कुल ग्रामीण अवसंरचना के लगभग पाँचवें हिस्से को वित्तपोषित किया है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. ग्रामीण भारत में वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के सामने आने वाली चुनौतियों की जाँच कीजिये। उनकी प्रभावशीलता बढ़ाने के लिये क्या कदम उठाए जा सकते हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा/से संस्थान अनुदान/प्रत्यक्ष ऋण सहायता प्रदान करता/करते है/हैं? (2013)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (c) |