डेली न्यूज़ (27 Jun, 2023)



भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी

प्रिलिम्स के लिये:

महत्त्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकी पर भारत-अमेरिका पहल, भारत सेमीकंडक्टर मिशन, भारत 6G, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, जीई का F414 लड़ाकू विमान, भारत-अमेरिका रक्षा त्वरण पारिस्थितिकी तंत्र, भू-स्थानिक इंटेलिजेंस के लिये बुनियादी आदान-प्रदान और सहयोग समझौता, संचार संगतता एवं सुरक्षा समझौता, भारतीय महासागर संवाद, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, विश्व व्यापार संगठन, जैव ईंधन

मेन्स के लिये :

भारत और अमेरिका के मध्य सहयोग के क्षेत्र:

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री ने संयुक्त राज्य अमेरिका की महत्त्वपूर्ण यात्रा की।

यात्रा के दौरान चर्चा किये गए सहयोग के प्रमुख क्षेत्र:

  • सेमीकंडक्टर आपूर्ति शृंखलाओं को मज़बूत करना: माइक्रोन प्रौद्योगिकी, इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन के सहयोग से एक नई सेमीकंडक्टर असेंबली और परीक्षण सुविधा में निवेश करेगी।
    • सेमीकंडक्टर आपूर्ति शृंखला में विविधीकरण को बढ़ाने के लिये एप्लाइड मैटेरियल्स भारत में व्यावसायीकरण और नवाचार के लिये एक सेमीकंडक्टर केंद्र स्थापित करेगा।
    • लैम रिसर्च का "सेमीवर्स सॉल्यूशन" सेमीकंडक्टर उद्योग में कार्यबल और शैक्षिक विकास के देश के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये 60,000 भारतीय इंजीनियरों को प्रशिक्षित करेगा।
  • उन्नत दूरसंचार अनुसंधान: ओपन RAN प्रणाली के विकास और उसके उपयोग के साथ-साथ अत्याधुनिक दूरसंचार अनुसंधान तथा विकास हेतु भारत और अमेरिका द्वारा सार्वजनिक-निजी संयुक्त कार्य बल की स्थापना की गई है।
    • भारत और अमेरिका भारत 6G नेक्स्ट जी एलायंस सार्वजनिक-निजी अनुसंधान का सह-नेतृत्व करेंगे, जिसका लक्ष्य लागत कम करना, सुरक्षा बढ़ाना और दूरसंचार नेटवर्क के लचीलेपन में सुधार करना शामिल है।
नोट: ओपन RAN, जिसे ओपन रेडियो एक्सेस नेटवर्क के रूप में भी जाना जाता है, दूरसंचार में रेडियो एक्सेस नेटवर्क को डिज़ाइन और कार्यान्वित करने की एक अवधारणा व दृष्टिकोण है। इसका उद्देश्य हार्डवेयर तथा सॉफ्टवेयर घटकों को अलग करके और बहु-विक्रेता एकीकरण को बढ़ावा देकर पारंपरिक RAN आर्किटेक्चर में अधिक खुलापन, लचीलापन और अंतर-संचालनीयता लाना है।
  • अंतरिक्ष के क्षेत्र में NASA-ISRO सहयोग: भारत ने अंतरिक्ष अन्वेषण के लिये शांतिपूर्ण, टिकाऊ और पारदर्शी सहयोग हेतु प्रतिबद्ध 26 अन्य देशों में शामिल होकर आर्टेमिस समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।
    • नासा वर्ष 2024 में अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के संयुक्त प्रयास के लक्ष्य के साथ भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अंतरिक्ष यात्रियों को उन्नत प्रशिक्षण प्रदान करेगा।
    • नासा और इसरो के बीच मानव अंतरिक्ष उड़ान सहयोग के लिये एक रणनीतिक रूपरेखा वर्ष 2023 के अंत तक विकसित किये जाने की संभावना है।
  • क्वांटम, उन्नत कंप्यूटिंग और कृत्रिम बुद्धिमत्ता: क्वांटम प्रौद्योगिकी, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और उन्नत वायरलेस प्रौद्योगिकियों पर संयुक्त अनुसंधान की सुविधा के लिये भारत-अमेरिका संयुक्त क्वांटम समन्वय तंत्र की स्थापना की गई है।
    • यह जेनरेटिव AI सहित भरोसेमंद और रिस्पॉन्सिबल AI पर संयुक्त सहयोग, AI शिक्षा, कार्यबल हेतु पहल और वाणिज्यिक अवसरों को बढ़ावा देगा।
    • AI पर वैश्विक साझेदारी के अध्यक्ष के रूप में भारत के नेतृत्व की सराहना की गई और भारतीय स्टार्टअप तथा AI अनुसंधान केंद्र में Google के निवेश की सराहना की गई।
  • फाइबर ऑप्टिक्स निवेश: भारत के स्टरलाइट टेक्नोलॉजीज़ लिमिटेड ने कोलंबिया, दक्षिण कैरोलिना के पास ऑप्टिकल फाइबर केबल विनिर्माण इकाई की स्थापना हेतु 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया है, जो भारत से ऑप्टिकल फाइबर के 150 मिलियन डॉलर के वार्षिक निर्यात को संभव बनाएगी।
  • अत्याधुनिक अनुसंधान: यूएस नेशनल साइंस फाउंडेशन का भारत के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के साथ संयुक्त अनुसंधान के क्षेत्र में सहयोग है तथा उभरती प्रौद्योगिकियों पर भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के साथ एक नई सहयोगात्मक व्यवस्था के तहत समझौते पर हस्ताक्षर किये गए।
  • इनोवेशन हैंडशेक: यूएस-इंडिया इनिशिएटिव ऑन क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी (iCET) का समर्थन करने हेतु यूएस-इंडिया कमर्शियल डायलॉग दोनों देशों के स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्रों को जोड़ने के लिये एक नया “इनोवेशन हैंडशेक” लॉन्च करेगा।
  • महत्त्वपूर्ण खनिज साझेदारी: भारत, अमेरिका के नेतृत्व वाली खनिज सुरक्षा साझेदारी (MSP) का नया भागीदार बन गया है, जो वैश्विक स्तर पर विविध और टिकाऊ महत्त्वपूर्ण ऊर्जा खनिज आपूर्ति शृंखला विकसित करने पर केंद्रित है।
    • भारतीय कंपनी एप्सिलॉन कार्बन लिमिटेड अमेरिका में एक ग्रीनफील्ड इलेक्ट्रिक वाहन बैटरी कंपोनेंट फैक्ट्री में निवेश करेगी।
  • रक्षा साझेदारी: भारत में GE के F414 लड़ाकू विमान इंजनों के सह-उत्पादन के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी गई है जिससे अमेरिकी जेट इंजन प्रौद्योगिकी के और अधिक हस्तांतरण की सुविधा प्राप्त होगी।
    • खुफिया, निगरानी और टोही क्षमताओं में वृद्धि करने के लिये भारत जनरल एटॉमिक्स से सशस्त्र MQ-9B सी-गार्जियन UAV खरीदना चाहता है।
    • भारतीय शिपयार्डों में अमेरिकी नौसेना के जहाज़ों की देखभाल और मरम्मत के लिये दोनों देशों के बीच हुए समझौते से घनिष्ठ सहयोग को बढ़ावा मिलने की संभावना है।
    • भारतीय शिपयार्डों के साथ मास्टर शिप मरम्मत समझौते से यात्रा के दौरान और आकस्मिक मरम्मत के लिये अनुबंध प्रक्रियाओं में तेज़ी आएगी।
    • रक्षा प्रौद्योगिकियों पर संयुक्त नवाचार को बढ़ावा देने के लिये भारत-अमेरिका रक्षा त्वरण पारिस्थितिकी तंत्र (India-US Defence Acceleration Ecosystem- INDUS-X) की शुरुआत की गई है, यह भारत के निजी क्षेत्र के रक्षा उद्योग को अमेरिकी रक्षा क्षेत्र के साथ एकीकृत करता है।
    • रक्षा उद्योगों को नीतिगत दिशा देने के लिये रक्षा औद्योगिक सहयोग रोडमैप को अपनाने से काफी मदद मिलेगी।
      • इस रोडमैप का उद्देश्य उन्नत रक्षा प्रणालियों के सह-उत्पादन और सहयोगात्मक अनुसंधान, परीक्षण तथा प्रोटोटाइप निर्माण करना है।

नोट:

  • आतंकवाद और नशीली दवाओं की समस्या के विरुद्ध लड़ाई: अमेरिका और भारत आतंकवाद और हिंसक उग्रवाद के सभी रूपों की निंदा करते हैं और वैश्विक आतंकवाद का मुकाबला करने के लिये एकजुट हैं।
  • दोनों देशों द्वारा संयुक्त राष्ट्र की सूची में शामिल आतंकवादी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई को प्राथमिकता दी गई है और पाकिस्तान को सुझाव दिया है कि वह अपने क्षेत्र को आतंकवादी गतिविधियों के लिये इस्तेमाल करना बंद करे।
    • सिंथेटिक दवाओं सहित अवैध दवाओं के उत्पादन और तस्करी को रोकने के लिये एक मादक द्रव्य निरोधक ढाँचा विकसित किया जाएगा।
  • हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग: सुरक्षित, संरक्षित और स्थिर समुद्री क्षेत्र तथा क्षेत्रीय समन्वय को बढ़ावा देने के लिये अमेरिका हिंद-प्रशांत महासागर पहल में शामिल होगा।
    • पार्टनर्स इन ब्लू पैसिफिक में भारत की भूमिका एक पर्यवेक्षक के रूप में बनी रहेगी।
    • क्षेत्रीय समन्वय को बढ़ाने के लिये विशेषज्ञों और हितधारकों को मंच प्रदान करने हेतु एक हिंद महासागर वार्ता का आयोजन किया जाएगा।
  • बहुपक्षीय प्रणाली में सुधार और इसे मज़बूत करना: दोनों देशों ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी और गैर-स्थायी सदस्यता का विस्तार वाले व्यापक संयुक्त राष्ट्र सुधार एजेंडे का समर्थन किया है।
    • अमेरिका ने संशोधित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता और वर्ष 2028-29 कार्यकाल के लिये एक गैर-स्थायी सदस्य के रूप में भारत की उम्मीदवारी को लेकर समर्थन जताया है।
  • स्वास्थ्य सेवाओं की पहल: कैंसर के लिये AI-सक्षम डिजिटल पैथोलॉजी प्लेटफॉर्म और AI-आधारित स्वचालित रेडियोथेरेपी उपचार विकसित करने के लिये अनुदान के माध्यम से अमेरिका तथा भारत के वैज्ञानिकों के बीच सहयोग को बढ़ावा दिया जाएगा।
    • मधुमेह संबंधी अनुसंधान को आगे बढ़ाने के लिये समझौते किये जाएंगे और कैंसर के खिलाफ प्रगति में तेज़ी लाने के लिये अमेरिका-भारत कैंसर वार्ता की मेज़बानी की जाएगी।
  • समावेशी विकास के लिये डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI):
    • DPI दृष्टिकोण की क्षमता को पहचानते हुए दोनों देशों का लक्ष्य समावेशी विकास, प्रतिस्पर्द्धी बाज़ारों को बढ़ावा देना और व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करने में वैश्विक नेतृत्व प्रदान करना है।
      • गोपनीयता, डेटा सुरक्षा और बौद्धिक संपदा के सुरक्षा उपायों के साथ मज़बूत DPI के विकास और तैनाती के लिये सहयोग किया जाएगा।
    • विकासशील देशों में DPI विकास और तैनाती को सक्षम करने के लिये भारत-अमेरिका वैश्विक डिजिटल विकास साझेदारी के गठन को लेकर संभावनाएँ तलाशी जा रही हैं।
  • भारत-अमेरिका के बीच व्यापार और निवेश साझेदारी को मज़बूत बनाना:
    • उभरती प्रौद्योगिकियों, स्वच्छ ऊर्जा और फार्मास्यूटिकल्स में बढ़ती भागीदारी तथा तकनीकी सहयोग पर ध्यान देने के साथ द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2022 में 191 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गया है।
    • मानकों एवं विनियमों में सामंजस्य स्थापित करना, व्यापार एवं निवेश में बाधाओं को कम करना और अत्याधुनिक डिजिटल अर्थव्यवस्था का समर्थन करना शामिल है।
    • भारत-अमेरिका व्यापार नीति मंच के माध्यम से आगे की भागीदारी के साथ शेष विश्व व्यापार संगठन विवादों और बाज़ार पहुँच के मुद्दों का समाधान करना।
    • अमेरिका के प्राथमिकता प्रणाली कार्यक्रम के तहत भारत की स्थिति की बहाली और एक व्यापार समझौते अधिनियम के रूप में मान्यता देना।
  • सतत् विकास: भारत और अमेरिका के बीच राष्ट्रीय जलवायु और ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये सहयोगात्मक प्रयास जारी रहेंगे, जिसमें हाइड्रोजन ब्रेकथ्रू एजेंडा का सह-नेतृत्व भी शामिल है।
    • भारत में नवीकरणीय ऊर्जा, बैटरी भंडारण और उभरती हरित प्रौद्योगिकी परियोजनाओं के लिये अंतर्राष्ट्रीय निजी वित्त को आकर्षित करने हेतु नवीन निवेश मंच विकसित किये जाएंगे।
    • परिवहन क्षेत्र को कार्बन मुक्त करने और जैव ईंधनों को बढ़ावा देने के लिये पहल की जा रही है।
  • जन-केंद्रित प्रयास:
    • याचिका-आधारित अस्थायी कार्य वीज़ा के लिये वीज़ा नवीनीकरण को सरल बनाने की पहल की गई है जिससे भारतीय नागरिकों को लाभ होगा तथा नवीनीकरण के लिये देश छोड़ने की आवश्यकता नहीं होगी।
    • घनिष्ठ राजनयिक संबंधों को बढ़ावा देने हेतु बंगलूरू और अहमदाबाद में नए वाणिज्य दूतावास खोलने की योजना पर विचार चल रहा है।
    • भारतीय छात्रों के लिये रिकॉर्ड संख्या में वीज़ा जारी करने के साथ छात्र आदान-प्रदान एवं छात्रवृत्तियों की राशि बढ़ाई गई है। इसी के साथ अमेरिकी स्नातक छात्रों के लिये भारत में अध्ययन या इंटर्नशिप के अवसरों में वृद्धि हुई है।
      • शीर्ष नेतृत्व ने ह्यूस्टन विश्वविद्यालय में तमिल अध्ययन चेयर की स्थापना की जो भारत के इतिहास एवं संस्कृति के अनुसंधान और शिक्षण को आगे बढ़ाएगा तथा शिकागो विश्वविद्यालय में विवेकानंद चेयर को बहाल करने का स्वागत किया गया।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न

प्रिलिम्स

प्रश्न. G20 के विषय में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2023)

  1. G20 समूह की स्थापना मूल रूप से वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक गवर्नरों के लिये अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक एवं वित्तीय मुद्दों पर चर्चा करने हेतु एक मंच के रूप में की गई थी।
  2. डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर भारत की G20 प्राथमिकताओं में से एक है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: C


मेन्स:

प्रश्न. भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच संबंधों में खटास के प्रवेश का कारण वाशिंगटन की अपनी वैश्विक रणनीति में अभी तक भी भारत के लिये किसी ऐसे स्थान की खोज करने में विफलता है, जो भारत के आत्मसम्मान और महत्त्वाकांक्षा को संतुष्ट कर सके।' उपयुक्त उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिये। (2019)

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स


लैब-ग्रोन मीट

प्रिलिम्स के लिये:

लैब-ग्रोन मीट, सेल-कल्टीवेटेड चिकन

मेन्स के लिये:

खाद्य सुरक्षा को संबोधित करने में प्रयोगशाला में विकसित मांस की क्षमता, कोशिका-संवर्द्धित मांस के पशु कल्याण निहितार्थ।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कैलिफोर्निया स्थित दो कंपनियों द्वारा लैब-ग्रोन मीट, विशेष रूप से कोशिका-संवर्द्धित चिकन (Cell-Cultivated Chicken) को संयुक्त राज्य अमेरिका की मंज़ूरी के साथ टिकाऊ खाद्य उत्पादन की दुनिया में एक महत्त्वपूर्ण विकास के रूप में देखा जा रहा है।

  • कैलिफोर्निया स्थित दो कंपनियों- गुड मीट और अपसाइड फूड्स को 'कोशिका-संवर्द्धित चिकन' का उत्पादन तथा बिक्री करने के लिये अमेरिकी सरकार की मंज़ूरी मिली है।

लैब-ग्रोन मीट:

  • लैब-ग्रोन मीट, जिसे आधिकारिक तौर पर कोशिका-संवर्द्धित मीट के रूप में जाना जाता है, उस मीट को संदर्भित करता है जो जानवरों से प्राप्त पृथक कोशिकाओं का उपयोग करके प्रयोगशाला में विकसित किया जाता है।
  • प्रतिकृति बनाने और खाद्य मांस के रूप में विकसित होने के लिये इन कोशिकाओं को आवश्यक संसाधन, जैसे- पोषक तत्त्व और एक उपयुक्त वातावरण प्रदान किया जाता है। जिन्हें सेलुलर कल्टीवेशन प्रक्रिया में सहयोग करने के लिये डिज़ाइन किया जाता है।
  • सिंगापुर ऐसा पहला देश था जिसने वर्ष 2020 में वैकल्पिक मांस की बिक्री को मंज़ूरी दी थी।

सेल-कल्टीवेटेड चिकन/कोशिका-संवर्द्धित मांस:

  • सेल-कल्टीवेटेड चिकन से तात्पर्य प्रयोगशाला में अलग-अलग कोशिकाओं का उपयोग करके तैयार किये गए चिकन (मांस) से है जिसमें विकास और प्रतिकृति हेतु आवश्यक तत्त्व मौजूद होते हैं।
  • बायोरिएक्टर, एक विशिष्ट जैविक वातावरण प्रदान करने के लिये डिज़ाइन किये गए विशेष कंटेनर हैं, इनका उपयोग आमतौर पर कृषि प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिये किया जाता है।
  • एक बार जब कोशिकाओं की संख्या पर्याप्त हो जाती है, तो बनावट और दिखने में बेहतर बनाने के लिये उन्हें अक्सर एडिटिव्स के साथ संसाधित किया जाता है, तब जाकर इन्हें उपभोग के लिये तैयार किया जाता है।

मांस उत्पादन के लिये सेल-कल्टीवेशन तकनीक का महत्त्व:

  • जलवायु शमन:
    • पशुधन उत्पादन से जुड़े ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिये प्रयोगशालाओं में तैयार किया जाने मांस एक संभावित समाधान व विकल्प प्रदान करता है।
      • खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO) के अनुसार, वैश्विक मानवजनित GHG उत्सर्जन (मुख्य रूप से मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड के रूप में) में पशुधन उत्पादन का योगदान लगभग 14.5% है।
  • भूमि उपयोग दक्षता:
    • पारंपरिक मांस उत्पादन विधियों की तुलना में कोशिका-संवर्द्धित मांस के लिये काफी कम भूमि की आवश्यकता होती है।
      • वर्ष 2021 की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि प्रयोगशाला में तैयार किये गए मांस में चिकन के मामले में 63% कम भूमि और सूअर के मांस के मामले में 72% कम भूमि का उपयोग होगा।
  • पशु कल्याण:
    • कोशिका-संवर्द्धित मांस के विकास का उद्देश्य पशु संहार की घटनाओं को कम करना है।
    • संवर्द्धित मांस कोशिकाओं से सीधे मांस तैयार कर जानवरों की पीड़ा को कम करने और पशु कल्याण के मानकों में सुधार करने की संभावना प्रदान करता है।
  • खाद्य सुरक्षा एवं पोषण:
    • लैब-ग्रोन मीट में भविष्य की खाद्य सुरक्षा ज़रूरतों को पूरा करने की क्षमता है।
    • कोशिका-संवर्द्धित मांस को स्वास्थ्यवर्द्धक बनाने और कम वसा जैसी विशेष पोषण संबंधी आवश्यकताओं का पूरा करने के लिये संशोधित किया जा सकता है।

कोशिका-संवर्द्धित मांस की चुनौतियाँ:

  • उपभोक्ता स्वीकृति:
    • पारंपरिक मांस के साथ स्वाद, बनावट, रूप और लागत समानता हासिल करना कोशिका-संवर्द्धित विकल्पों के लिये एक चुनौती बनी हुई है। संवर्द्धित मांस को "कृत्रिम" या "अप्राकृतिक" मानने की धारणा से इन उत्पादों की उपभोक्ता स्वीकृति प्रभावित हो सकती है।
  • लागत:
    • कोशिका-संवर्द्धित मांस का मूल्य अधिक रहने की आशंका है। इसका मुख्य कारण कोशिका संवर्द्धन की जटिल तथा संसाधन-गहन प्रक्रिया है। उपयोगिता और गुणवत्ता नियंत्रण प्रक्रियाएँ इसके मूल्य में और अधिक वृद्धि कर सकती हैं।
  • अनुमापकता:
    • वर्तमान में इसके उत्पादन की मात्रा सीमित है तथा उत्पाद की गुणवत्ता एवं स्थिरता को बनाए रखना एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है। कुशल और लागत प्रभावी बायोरिएक्टर प्रणाली विकसित करना तथा उपयुक्त कोशिका संवर्द्धन माध्यम द्वारा अनुमापकता प्राप्त करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।
  • संसाधन:
    • शोधकर्त्ताओं को अंतिम उत्पाद की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिये उच्च गुणवत्ता वाली कोशिकाओं, उपयुक्त विकास माध्यमों तथा अन्य संसाधनों की आवश्यकता होती है।
  • पर्यावरण संबंधी चिंताएँ:
    • कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि यदि अत्यधिक परिष्कृत विकास माध्यमों की आवश्यकता होती है तो कोशिका-संवर्द्धित मांस के उत्पादन का पर्यावरणीय प्रभाव पारंपरिक मांस के उत्पादन से बहुत अधिक हो सकता है।
  • बौद्धिक संपदा और पेटेंट संबंधी मुद्दे:
    • संवर्द्धित मांस के क्षेत्र में अनेक बौद्धिक संपदा और पेटेंट संबंधी विचार शामिल हैं। कंपनियाँ और शोधकर्त्ता संवर्द्धित मांस के उत्पादन में शामिल विभिन्न तकनीकों एवं प्रौद्योगिकियों के लिये पेटेंट दाखिल कर रहे हैं। बौद्धिक संपदा विवादों को हल करने तथा प्रौद्योगिकी तक उचित पहुँच सुनिश्चित करने से इस उद्योग के विकास एवं वृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

आगे की राह

  • प्रयोगशाला में निर्मित मांस/लैब-ग्रोन मीट के लाभों और सुरक्षा के बारे में पारदर्शी संचार के माध्यम से उपभोक्ता जागरूकता और स्वीकृति को बढ़ावा देना।
  • प्रयोगशाला में निर्मित मांस की उत्पादन प्रक्रियाओं, स्वाद, बनावट और लागत दक्षता में सुधार के लिये अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना।
  • लागत कम करने और बाज़ार की मांग को पूरा करने के लिये तकनीकी प्रगति पर ध्यान केंद्रित करना और उत्पादन सुविधाओं को अनुकूलित करना।
  • दुनिया भर में प्रयोगशाला में विकसित मांस बाज़ार का विस्तार करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहित करना, नियमों में सामंजस्य स्थापित करना तथा व्यापार को अधिक सुविधाजनक बनाना।
  • संवर्द्धित मांस एक अपेक्षाकृत नया क्षेत्र है,साथ ही इसमें एक स्पष्ट नियामक ढाँचा स्थापित करना आवश्यक है। सुरक्षा, गुणवत्ता और उपभोक्ता विश्वास सुनिश्चित करने के लिये सरकारों और नियामक निकायों को यह निर्धारित करने की आवश्यकता है कि संवर्द्धित मांस उत्पादों को कैसे वर्गीकृत और विनियमित किया जाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


अंग दान और प्रत्यारोपण से संबंधित नैतिक चिंताएँ

प्रिलिम्स के लिये:

मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994, राष्ट्रीय अंग प्रत्यारोपण दिशा-निर्देश 2023, अंग दान से संबंधित विश्व स्वास्थ्य संगठन के मार्गदर्शक सिद्धांत

मेन्स के लिये:

अंग दान और प्रत्यारोपण - संबंधित नैतिक चिंताएँ, मृतक अंग प्रत्यारोपण

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ओडिशा के एक व्यक्ति, जिसे सिर में गंभीर चोट लगने के बाद ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया था, ने अंगदान कर तीन अलग-अलग राज्यों में चार लोगों को नया जीवन दिया है।

  • चूँकि अंग प्रत्यारोपण से किसी को नया जीवन तो दिया जा सकता है, परंतु इसमें दाता (अंगदान करने वाला व्यक्ति) की सहमति, मानवाधिकारों का उल्लंघन, अंग तस्करी आदि जैसे नैतिक मुद्दे भी जुड़े हुए हैं।

भारत में अंग दान और प्रत्यारोपण का परिदृश्य:

  • अंग दान और प्रत्यारोपण: सर्वाधिक अंग प्रत्यारोपण के मामले में भारत विश्व में तीसरे स्थान पर है। वर्ष 2022 में किये गए कुल प्रत्यारोपणों में मृत दाताओं से प्राप्त अंगों का योगदान लगभग 17.8% था।
    • मृतक दाताओं से प्राप्त अंगों से होने वाले अंग प्रत्यारोपण की कुल संख्या वर्ष 2013 के 837 से बढ़कर वर्ष 2022 में 2,765 हो गई।
    • अंग प्रत्यारोपण की कुल संख्या- मृत और जीवित दोनों दाताओं के अंगों के साथ वर्ष 2013 के 4,990 से बढ़कर 2022 में 15,561 हो गई।

भारत में अंग दान के विनियमन की प्रक्रिया:

  • भारत में मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 मानव अंगों को अलग करने तथा इनके भंडारण के लिये विभिन्न नियम निर्धारित करता है। मानव अंगों के व्यावसायिक उपयोग पर रोक लगाने के लिये यह चिकित्सीय उपयोग हेतु मानव अंगों के प्रत्यारोपण को विनियमित करता है।
  • फरवरी 2023 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने राष्ट्रीय अंग प्रत्यारोपण दिशा-निर्देशों में संशोधन किया, अब 65 वर्ष से अधिक आयु के लोग प्रत्यारोपण के लिये मृत दाताओं से अंग प्राप्त कर सकते हैं।
    • दिशा-निर्देशों ने अंग प्राप्तकर्त्ताओं के लिये आयु सीमा हटा दी है, अधिवास की आवश्यकता को समाप्त कर दिया है और गुजरात, तेलंगाना, महाराष्ट्र तथा केरल जैसे कुछ राज्यों द्वारा पंजीकरण फीस को समाप्त कर दिया है।

अंग दान और प्रत्यारोपण से संबंधित नैतिक चिंताएँ:

  • जीवित व्यक्ति:
    • चिकित्सा के पारंपरिक नियम का उल्लंघन:
      • किडनी दाताओं को स्वस्थ जीवन जीने के लिये जाना जाता है। हालाँकि यूरोपीय संघ और चीन में किये गए अध्ययनों से पता चला है कि उनमें से एक-तिहाई यूरिनरी और चेस्ट में संक्रमण होने से इसकी चपेट में हैं, जो चिकित्सा के पहले पारंपरिक नियम, प्राइमम नॉन नोसेरे (सबसे बढ़कर, कोई नुकसान नहीं पहुँचाता) का उल्लंघन करता है।
      • एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को लाभ पहुँचाने के लिये रोगी बन जाता है जो पहले से ही रोगी है।
    • दान से तस्करी का खतरा:
      • जब अंगों के अधिग्रहण, परिवहन या प्रत्यारोपण में अवैध और अनैतिक गतिविधि शामिल होती है तो अंग दान तस्करी के लिये अतिसंवेदनशील होता है।
      • अपने 1991 के दस्तावेज़ "मानव अंग प्रत्यारोपण पर मार्गदर्शक सिद्धांत" में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने "मानव अंगों की व्यावसायिक तस्करी में वृद्धि, विशेष रूप से जीवित दाताओं, जो प्राप्तकर्त्ताओं से असंबंधित हैं" पर चिंता व्यक्त की है।
    • भावनात्मक दबाव:
      • अंग दान के लिये दाता और प्राप्तकर्त्ता के बीच का संबंध दाता की प्रेरणा को प्रभावित करता है। जीवित दाता आनुवंशिक रूप से प्राप्तकर्त्ता से संबंधित होते हैं तथा अक्सर पारिवारिक संबंधों एवं भावनात्मक बंधनों के कारण बाध्य महसूस करते हैं।
      • नैतिक चिंताओं में अनुचित प्रभाव, भावनात्मक दबाव और जबरदस्ती की संभावना शामिल है।
  • मृत व्यक्ति:
    • सहमति और स्वायत्तता:
      • यह निर्धारित करना महत्त्वपूर्ण है कि क्या व्यक्ति ने जीवित रहते हुए अंग दान के लिये अपनी सहमति व्यक्त की है या नहीं।
      • यदि व्यक्ति की इच्छा या सहमति की जानकारी नहीं हैं तो उसकी ओर से निर्णय लेना नैतिक रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
    • आवंटन एवं निष्पक्षता:
      • यह निर्धारित करना कि अंगों को निष्पक्ष एवं न्यायसंगत रूप से कैसे आवंटित किया जाए, एक सतत् नैतिक चिंता का विषय है।
      • नैतिक चिंताएँ तब उभर कर सामने आ सकती हैं जब धन, सामाजिक स्थिति या भौगोलिक स्थिति जैसे कारकों के आधार पर प्रत्यारोपण तक पहुँच में असमानताएँ पाई जाती हैं।
    • पारदर्शिता और सार्वजनिक विश्वास:
      • जानकारी का प्रकटीकरण, अंग खरीद एवं प्रत्यारोपण प्रक्रियाओं का निपटान तथा अंग दान रजिस्ट्रियों के प्रबंधन से संबंधित नैतिक चिंताओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

नोट:

  • मृत और जीवित अंग प्रत्यारोपण दोनों के अपने-अपने नैतिक विचार हैं, जबकि जीवित दाताओं को कोई नुकसान न हो, स्वायत्तता का सम्मान और आवंटन में निष्पक्षता के कारण मृत अंग प्रत्यारोपण को आमतौर पर नैतिक रूप से अधिक बेहतर माना जाता है।

अंग दान से संबंधित WHO के मार्गदर्शक सिद्धांत:

  • ग्यारह मार्गदर्शक सिद्धांत हैं जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
    • मार्गदर्शक सिद्धांत 1:
      • मृतक के शरीर से अंगों, ऊतकों और कोशिकाओं को प्रत्यारोपण के लिये हटाया जा सकता है यदि:
        • कानून द्वारा आवश्यक कोई भी सहमति प्राप्त की जाती है।
        • यह मानने का कोई कारण नहीं है कि मृत व्यक्ति ने इस तरह के निष्कासन पर आपत्ति जताई थी।
    • मार्गदर्शक सिद्धांत 2:
      • जिस चिकित्सक द्वारा यह निर्धारित किया जाता है कि संभावित दाता की मृत्यु हो गई है, उसे दाता से कोशिकाओं, ऊतकों या अंगों को निकालने के लिये या उसके बाद होने वाले प्रत्यारोपण में सक्रिय रूप से शामिल नहीं किया जाना चाहिये। उसे किसी ऐसे व्यक्ति की देखभाल का प्रभारी भी नहीं होना चाहिये जो संबंधित कोशिकाएँ, ऊतक या अंग प्राप्त करेगा।
    • मार्गदर्शक सिद्धांत 3:
      • मृतक से प्राप्त अंग का अधिकतम क्षमता के साथ चिकित्सीय उपयोग होना चाहिये, जबकि जीवित वयस्क दानकर्त्ता को घरेलू नियमों का पालन करना चाहिये। आमतौर पर जीवित दाताओं का अपने प्राप्तकर्त्ताओं के साथ आनुवंशिक, कानूनी या भावनात्मक संबंध होना चाहिये।
    • मार्गदर्शक सिद्धांत 4:
      • राष्ट्रीय कानून द्वारा अनुमत कुछ स्थितियों को छोड़कर, प्रत्यारोपण के लिये जीवित नाबालिगों से कोई अंग नहीं लिया जाना चाहिये। नाबालिगों की सुरक्षा के लिये विशेष उपाय लागू किये जाने चाहिये और जब भी आवश्यक हो दान से पहले उनकी सहमति प्राप्त की जानी चाहिये। वही सिद्धांत कानूनी रूप से अक्षम व्यक्तियों (जो गवाही देने या मुकदमा चलाने में सक्षम नहीं हैं) पर लागू होते हैं।
    • मार्गदर्शक सिद्धांत 5:
      • कोशिकाओं, ऊतकों तथा अंगों का दान स्वैच्छिक और बिना किसी मौद्रिक क्षतिपूर्ति के होना चाहिये। प्रत्यारोपण के लिये इन वस्तुओं की बिक्री या खरीद प्रतिबंधित होनी चाहिये।
        • हालाँकि आय की हानि सहित दाता द्वारा किये गए उचित और सत्यापन योग्य खर्चों की प्रतिपूर्ति की जा सकती है।
      • इसके अतिरिक्त प्रत्यारोपण के लिये मानव कोशिकाओं, ऊतकों या अंगों की आपूर्ति, प्रसंस्करण, संरक्षण और वसूली की लागत को कवर करने की अनुमति है।

आगे की राह

  • विश्व के अधिकांश हिस्सों में सर्वेक्षणों से पता चलता है कि लोग अंग दान की नैतिक आवश्यकता की सराहना करते हैं लेकिन उनकी परोपकारिता भी इस धारणा पर आधारित है कि अंगों को जरूरतमंद लोगों को उचित तरीके से वितरित किया जाएगा।
  • नैतिक सिद्धांतों को बनाए रखने, दाताओं और प्राप्तकर्त्ताओं के अधिकारों की रक्षा करने, अंगों की तस्करी को रोकने तथा सार्वजनिक विश्वास बनाए रखने के लिये अंग प्रत्यारोपण नीति का विनियमन महत्त्वपूर्ण है।
  • वे एक सुव्यवस्थित, पारदर्शी और नैतिक रूप से सुदृढ़ अंग दान और आवंटन प्रणाली के लिये एक रूपरेखा प्रदान करते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारत के फ्रंटलाइन वनकर्मियों की सुरक्षा

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय वन अधिनियम, 1927, वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972, वन संरक्षण अधिनियम, 1980, सिमलीपाल बाघ अभयारण्य

मेन्स के लिये:

वनकर्मियों की सुरक्षा से संबंधित मुद्दे- आवश्यक कदम

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ओडिशा के सिमलीपाल टाइगर रिज़र्व में शिकारियों द्वारा एक वनकर्मी की गोली मारकर हत्या कर दी, इस प्रकार की यह दूसरी घटना है।

  • भारत के फ्रंटलाइन वन कर्मचारी, जिनमें अनुबंध मज़दूर, गार्ड, वनपाल और रेंजर शामिल हैं, लंबे समय से शिकारियों, अवैध खनन करने वालों, पेड़ काटने वालों, बड़े पैमाने पर अतिक्रमण करने वालों तथा विद्रोहियों के विरुद्ध संघर्ष करते रहे हैं।

वन अधिकारी:

  • वन अधिकारी सरकार द्वारा नियुक्त लोक सेवक हैं जो पूरे भारत के वन क्षेत्रों के प्रशासन और शासन का कार्यभार संभालते हैं।
  • भारत में सभी राज्यों ने भारतीय वन अधिनियम, 1927 के आधार (वन 7वीं अनुसूची के तहत समवर्ती सूची का विषय है) पर अपने क्षेत्र में वनों के प्रशासन के लिये अपने कानून बनाए हैं।
  • वन अधिकारियों को शक्ति प्रदान करने वाले तीन प्राथमिक अधिनियम निम्नलिखित हैं:
    • भारतीय वन अधिनियम, 1927।
    • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972।
    • वन संरक्षण अधिनियम, 1980।
  • वन कर्मचारियों की प्राथमिक ज़िम्मेदारी लुप्तप्राय पशुओं, पेड़ों, रेत, पत्थरों, खनिजों और वन भूमि जैसे मूल्यवान तथा सीमित संसाधनों की सुरक्षा करना है। इस प्रकार के कार्य में उन्हें लगातार एवं निरंतर ही शिकारियों, अवैध खनन करने वालों, पेड़ काटने वालों के हमले का सामना करना पड़ता है।

वन कर्मियों की सुरक्षा से संबंधित चिंताएँ:

  • वन रक्षकों की सशर्त सशस्त्र स्थिति: वन रक्षक हमेशा निहत्थे नहीं होते हैं। राज्य के आधार पर वे विभिन्न हथियारों से सुसज्जित हो सकते हैं। हालाँकि अनिश्चित कानून तथा व्यवस्था की स्थिति के कारण वन रक्षकों को अक्सर हथियारों को ले जाने पर प्रतिबंध का सामना करना पड़ता है विशेष रूप से उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में।
    • सिमलीपाल के मामले में, जो छत्तीसगढ़ के इंद्रावती से बिहार के वाल्मिकी बाघ अभयारण्य तक फैले लाल गलियारे के अंतर्गत आता है, इसी कारण वन कर्मचारियों ने बंदूकें ले जाना बंद कर दिया था।
  • हथियारों के सक्रिय उपयोग के लिये सीमित प्राधिकरण: इसके अतिरिक्त वन अधिकारियों के पास अपने हथियारों का सक्रिय रूप से उपयोग करने का अधिकार नहीं है। किसी भी अन्य नागरिक की तरह वे केवल भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 96 से 106 में उल्लिखित निजी रक्षा के अपने अधिकार का प्रयोग करने के हकदार हैं।
    • इसका मतलब यह है कि वे हथियार सहित बल का प्रयोग केवल स्वयं को या दूसरों को आसन्न नुकसान या खतरे से बचाने के लिये कर सकते हैं।
  • आग्नेयास्त्र ले जाने का जोखिम और विचार: हथियार वास्तव में विद्रोहियों की उपस्थिति के बिना भी विभिन्न स्थितियों में जोखिम उत्पन्न कर सकते हैं क्योंकि जब आग्नेयास्त्र ले जाने तथा उपयोग करने का समय आता है तो कुछ चुनौतियाँ (संभावित दुर्घटनाएँ या हथियारों का दुरुपयोग) एवं विचार उत्पन्न होते हैं।
  • वन्यजीव-मानव संघर्ष: वनवासियों को अक्सर वन्यजीवों और मानव आबादी के बीच संघर्ष का सामना करना पड़ता है। इसमें फसलों पर हमला करने वाले जानवरों, मनुष्यों पर हमला करने वाले जंगली जानवरों और वन आवासों पर अतिक्रमण करने वाली मानव बस्तियों के उदाहरण शामिल हैं।
  • जनशक्ति की कमी: भारत में वन प्रतिष्ठान अग्रिम पंक्ति के कार्यबल के कल्याण और समर्थन पर जटिल नौकरशाही प्रक्रियाओं एवं प्रशासनिक मामलों को प्राथमिकता देते हैं।
    • यह संदिग्ध हो सकता है क्योंकि यह एक ऐसी स्थिति पैदा करता है जहाँ देश भर के वन विभागों में बहुत अधिक रिक्त पद हैं।
    • परिणामस्वरूप वनों की प्रभावी ढंग से रक्षा करने और अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये कर्मियों की संख्या अपर्याप्त है।
  • प्रभावी सुरक्षा की कमी: इंटरनेशनल रेंजर फेडरेशन के अनुसार, वर्ष 2021 में भारत में ड्यूटी के दौरान कुल 31 वन फील्ड स्टाफ सदस्यों की मृत्यु हो गई। इनमें से केवल 8 मामलों को हत्या के रूप में निर्धारित किया गया था, बाकी के लिये जंगल की आग, हाथी/गैंडे के हमले और मोटर दुर्घटनाएँ जैसे कारक ज़िम्मेदार थे।
    • कुछ मामलों में हताहत इसलिये नहीं हुए क्योंकि वे निहत्थे थे, बल्कि इसलिये कि उन्हें हथियारों को चलाना नहीं आता था।

वन अधिकारियों के लिये कानूनी सुरक्षा बढ़ाना:

  • जुलाई 2010 में असम ने सभी वन अधिकारियों के लिये आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 197(2) के प्रावधानों को लागू करके एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया।
    • इस प्रावधान ने उन्हें तब तक गिरफ्तारी और आपराधिक कार्यवाही से सुरक्षा प्रदान की, जब तक कि मजिस्ट्रेट जाँच द्वारा यह निर्धारित नहीं किया गया हो कि आग्नेयास्त्रों "अनावश्यक, अनुचित और अत्यधिक" उपयोग हुआ। राज्य को जाँच के निष्कर्षों की समीक्षा करनी थी, साथ ही उन्हें स्वीकार भी करना था।
  • वर्ष 2012 में बाघों के अवैध शिकार के लगातार मामलों के बाद महाराष्ट्र ने भी इसी तरह का आदेश लागू किया था।

वनवासियों को हथियारों के प्रयोग करने के मामले में अतिरिक्त अधिकार क्यों नहीं: पारिस्थितिकी तंत्र और वन्यजीवों की सुरक्षा: वनों, वन्यजीवों और उनके आवासों की सुरक्षा में वनवासियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। यदि आग्नेयास्त्रों का अंधाधुंध या उचित औचित्य के बिना उपयोग किया जाता है तो पारिस्थितिक तंत्र और वन्य जीवन को अप्रत्याशित हानि हो सकती है।

  • दुरुपयोग की संभावना: अत्यधिक शक्तियों के फलस्वरूप वनवासियों द्वारा दुरुपयोग या कदाचार का खतरा बढ़ सकता है। आग्नेयास्त्रों के दुरुपयोग को रोकने के लिये नियंत्रण और संतुलन बनाए रखने के साथ ही यह सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है कि वनवासी कानून के अनुसार कार्य करें।
  • नागरिक कानून का प्रवर्तन: वनवासियों को मुख्य रूप से कानून प्रवर्तन के स्थान पर संरक्षण और पर्यावरण संरक्षण का कार्य दिया जाता है।
    • उन्हें हथियारों का प्रयोग करने की अत्यधिक शक्तियाँ प्रदान किये जाने से उनकी संरक्षण भूमिकाओं और कानून प्रवर्तन एजेंसियों की ज़िम्मेदारियों के बीच की रेखा धुँधली हो सकती है, जिससे संभावित रूप से उनके समक्ष कर्तव्यों के निर्वहन में भ्रम और संघर्ष की स्थिति पैदा हो सकती है।
  • सुरक्षा और संभावित जोखिमों को संतुलित करना: सुदूर वन क्षेत्रों में वनवासियों को बंदूकों से लैस करने से स्थानीय आबादी की भेद्यता बढ़ सकती है।
    • वनवासियों के हाथों में आग्नेयास्त्रों की उपस्थिति संभावित रूप से संघर्ष को बढ़ा सकती है और इसके अनपेक्षित परिणाम हो सकते हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ वनवासियों एवं स्थानीय निवासियों के मध्य पहले से ही तनाव व्याप्त हो।

आगे की राह

  • व्यावसायिक प्रशिक्षण: भारत में वन फ्रंटलाइन कर्मचारियों को अपने कर्तव्यों को प्रभावी ढंग से पूरा करने के लिये व्यापक प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।
    • इस प्रशिक्षण से उन्हें अपने काम से जुड़ी जटिलताओं और जोखिमों को संभालने के लिये आवश्यक कौशल एवं ज्ञान से लैस किया जाना चाहिये।
    • वनवासियों को अपने कर्तव्यों को प्रभावी ढंग से पूरा करने के लिए संसाधनों और बुनियादी ढाँचे दोनों के संदर्भ में पर्याप्त समर्थन की आवश्यकता है।
  • उचित मुआवज़ा: वन कर्मचारियों को उनकी सेवाओं के लिये उचित और पर्याप्त मुआवज़ा तथा प्रोत्साहन प्रदान किया जाना चाहिये।
    • उनकी नौकरी प्रकृति की मांग और उनके सामने आने वाले जोखिमों को ध्यान में रखते हुए यह सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है कि उन्हें उनके प्रयासों के लिये पर्याप्त रूप से पुरस्कृत किया जाए।
  • कानूनी ढाँचे को मज़बूत बनाना: एक मज़बूत कानूनी ढाँचा सुनिश्चित करना जो वनवासियों की रक्षा करता हो, साथ ही उन्हें अनावश्यक हस्तक्षेप या धमकी के बिना अपने कर्तव्यों का पालन करने में सक्षम बनाना आवश्यक है।
    • हालाँकि रूपरेखा इस तरह बनाई जानी चाहिये कि वनवासियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के अलावा यह भी सुनिश्चित हो कि अधिकारी अपनी शक्ति का दुरुपयोग और वन समुदायों पर अनावश्यक बल प्रयोग नहीं कर रहे हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


हिरासत में प्रताड़ना तथा संबंधित नैतिक चिंताएँ

प्रिलिम्स के लिये:

हिरासत में प्रताड़ित करना, मानवाधिकार, हिरासत में मौत, अनुच्छेद 21, आईपीसी, सीआरपीसी

मेन्स के लिये:

हिरासत में प्रताड़ित करना तथा इसके विरुद्ध नैतिक तर्क

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने वर्ष 2006 में एक 26 वर्षीय व्यक्ति की हिरासत में प्रताड़ना के कारण मौत के लिये ज़िम्मेदार उत्तर प्रदेश के पाँच पुलिसकर्मियों की दोषसिद्धि तथा 10 साल की सज़ा (वर्ष 2019 में दी गई) को बरकरार रखा है।

हिरासत में प्रताड़ना:

  • परिचय:
    • हिरासत में प्रताड़ित करने का मतलब है किसी ऐसे व्यक्ति को शारीरिक या मानसिक पीड़ा या कष्ट पहुँचाना जो पुलिस या अन्य अधिकारियों की हिरासत में है।
    • यह मानवाधिकारों और गरिमा का गंभीर उल्लंघन है तथा सामान्यतः हिरासत में मौतें तब होती हैं जब किसी व्यक्ति को हिरासत में प्रताड़ित किया जाता है।
  • हिरासत में मौत के प्रकार:
    • पुलिस हिरासत में मौत: यह अत्यधिक बल प्रयोग, प्रताड़ना, चिकित्सा देखभाल से इनकार या अन्य प्रकार के दुर्व्यवहार के परिणामस्वरूप हो सकती है।
    • न्यायिक हिरासत में मौत: यह भीड़भाड़, खराब स्वच्छता स्थिति, चिकित्सा सुविधाओं की कमी, जेल या कैद में हिंसा या आत्महत्या के कारण हो सकती है।
    • सेना या अर्द्धसैनिक बलों की हिरासत में मौत: यह प्रताड़ना, न्यायेत्तर हत्याओं, मुठभेड़ों या गोलीबारी की घटनाओं के माध्यम से हो सकती है।

हिरासत में यातना से संबंधित संवैधानिक प्रावधान:

  • भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है, जिसमें यातना तथा अन्य क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार या सज़ा से मुक्त होने का अधिकार शामिल है।
  • अनुच्छेद 20(1) में कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति को तब तक किसी भी अपराध के लिये दोषी नहीं ठहराया जाएगा, जब तक कि उसने ऐसा कोई कार्य करने के समय, जो अपराध के रूप में आरोपित है, किसी प्रवृत्त विधि का अतिक्रमण नहीं किया है।
    • अनुच्छेद 20(3) के अनुसार, किसी को भी अपने विरुद्ध गवाही देने हेतु विवश नहीं किया जा सकता। यह एक बहुत ही उपयोगी नियम है क्योंकि यह अभियुक्तों के कबूलनामे, जब उन्हें ऐसा करने के लिये मजबूर या प्रताड़ित किया जाता है, पर रोक लगता है ।
  • संबंधित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन:
    • अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून, 1948 में एक प्रावधान है जो लोगों को यातना और जबरन गायब करने से बचाता है।
    • संयुक्त राष्ट्र चार्टर, 1945 भी (स्पष्ट रूप से) कैदियों के साथ गरिमापूर्ण व्यवहार करने का आह्वान करता है।
    • नेल्सन मंडेला नियमों को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वर्ष 2015 में कैदियों से सम्मान के साथ व्यवहार करने और यातना एवं अन्य दुर्व्यवहार को प्रतिबंधित करने हेतु अपनाया गया था।

हिरासत में यातना के विरुद्ध नैतिक तर्क:

  • मानवाधिकारों और गरिमा का उल्लंघन करना:
    • प्रत्येक व्यक्ति की अंतर्निहित गरिमा होती है और उसके साथ सम्मान एवं निष्पक्षता से व्यवहार किया जाना चाहिये। हिरासत में हिंसा व्यक्तियों को शारीरिक तथा मनोवैज्ञानिक नुकसान पहुँचाकर उनकी गरिमा छीनकर तथा उन्हें बुनियादी मानवाधिकारों से वंचित करके इस मौलिक सिद्धांत का उल्लंघन करती है।
  • कानून के शासन को नज़रअंदाज/कमज़ोर करना:
    • हिरासत में हिंसा कानून के शासन और उचित प्रक्रिया के सिद्धांतों को कमज़ोर करती है।
    • कानून प्रवर्तन अधिकारियों का कर्तव्य है कि वे कानून को बनाए रखें और लागू करें, लेकिन हिंसा में शामिल होना उन सिद्धांतों के विपरीत है जिनका उन्हें पालन करना चाहिये- न्याय, समानता और मानवाधिकारों की सुरक्षा।
  • दोषी ठहराना:
    • हिरासत में यातना "दोषी साबित होने तक निर्दोष" के सिद्धांत को कमज़ोर करती है। किसी अपराध के लिये दोषी ठहराए जाने से पहले व्यक्तियों को यातना देना निष्पक्ष सुनवाई और उचित प्रक्रिया के उनके अधिकार का उल्लंघन है।
    • यह न्याय प्रणाली की ज़िम्मेदारी है कि वह अपराध या बेगुनाही का निर्धारण करे, न कि यातना के माध्यम से सज़ा दे।
  • व्यावसायिकता और सत्यनिष्ठा के विरुद्ध:
    • पुलिस अधिकारियों और प्राधिकारियों से अपेक्षा की जाती है कि वे व्यावसायिकता, सत्यनिष्ठा एवं मानवाधिकारों के प्रति सम्मान सहित उच्च नैतिक मानकों का पालन करें।
    • हिरासत में हिंसा इन नैतिक सिद्धांतों का उल्लंघन करती है और पूरे व्यवसाय की प्रतिष्ठा को धूमिल करती है।
  • कमज़ोर व्यक्तियों को निशाना बनाता है:
    • नैतिक रूप से इन कमज़ोर व्यक्तियों को और अधिक हानि पहुँचाने के स्थान पर उनके अधिकारों की रक्षा और समर्थन करना अधिक महत्त्वपूर्ण है।
  • कानूनी और नैतिक ज़िम्मेदारी से विश्वासघात:
    • कानून प्रवर्तन अधिकारियों और प्राधिकारियों की उनकी हिरासत में रहने वाले लोगों के कल्याण एवं अधिकारों की रक्षा करने की कानूनी तथा नैतिक ज़िम्मेदारी है। हिंसा या दुर्व्यवहार में संलग्न होना उनकी ज़िम्मेदारी के साथ विश्वासघात और उनकी भूमिकाओं में निहित नैतिक दायित्वों के उल्लंघन को दर्शाता है।

आगे की राह

  • कानूनी प्रणालियों को मज़बूत करने में व्यापक रूप से कानून बनाना शामिल है जो स्पष्ट रूप से हिरासत में यातना को अपराध घोषित करता है तथा त्वरित और निष्पक्ष जाँच सुनिश्चित करता है, ये उपाय हिरासत में यातना से निपटने के लिये उठाए जा सकते हैं।
  • पुलिस सुधारों को ऐसे प्रशिक्षण कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये जो व्यावसायिकता बनाए रखने के साथ सहानुभूति पैदा करने के अतिरिक्त मानवाधिकारों की सुरक्षा पर बल देते हैं।
  • ऐसे मामलों की प्रभावी ढंग से निगरानी और समाधान करने के लिये निरीक्षण तंत्र स्थापित किया जाना चाहिये।
  • नागरिक समाज और मानवाधिकार संगठनों को पीड़ितों की वकालत करनी चाहिये तथा साथ ही त्वरित कानूनी सहायता प्रदान करनी चाहिये,इसके निवारण और न्याय के लिये अंतर्राष्ट्रीय निकायों के साथ सहयोग भी प्राप्त करना चाहिये।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)

  1. न्यायिक हिरासत का अर्थ है कि अभियुक्त संबंधित मजिस्ट्रेट की हिरासत में है और ऐसे आरोपी को पुलिस स्टेशन के हवालात में रखा जाता है, न कि जेल में।
  2. न्यायिक हिरासत के दौरान मामले के प्रभारी पुलिस अधिकारी न्यायालय की मंज़ूरी के बिना संदिग्ध व्यक्ति से पूछताछ नहीं कर सकते।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • न्यायिक हिरासत में एक अभियुक्त संबंधित मजिस्ट्रेट की हिरासत में होता है और जेल में बंद होता है। जबकि पुलिस हिरासत के मामले में एक अभियुक्त को पुलिस स्टेशन में बंद कर करके रखा जाता है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • न्यायिक हिरासत के दौरान मामले का प्रभारी पुलिस अधिकारी संदिग्ध से पूछताछ कर सकता है, लेकिन मजिस्ट्रेट की पूर्व अनुमति के साथ। पुलिस हिरासत के मामले में पुलिस अधिकारी संदिग्ध से पूछताछ कर सकता है लेकिन उसे 24 घंटे के भीतर न्यायालय के सामने पेश करना अनिवार्य है। अतः कथन 2 सही है।
  • अतः विकल्प (b) सही उत्तर है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


रूस में वैगनर विद्रोह

प्रिलिम्स के लिये:

रूस में वैगनर विद्रोह, वैगनर समूह, रूस-यूक्रेन

मेन्स के लिये:

रूस में वैगनर विद्रोह और उसके निहितार्थ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रूस की वैगनर प्राइवेट मिलिट्री कंपनी के प्रमुख ने देश के रक्षा प्रतिष्ठान के खिलाफ एक अल्पकालिक विद्रोह किया, जिसने रूस के समक्ष एक अभूतपूर्व आंतरिक सुरक्षा संकट की स्थिति उत्पन्न कर दी।

पृष्ठभूमि:

  • MoD पर आरोप:
    • वैगनर ग्रुप (प्रिगोझिन) के प्रमुख ने भ्रष्टाचार और अक्षमता का दावा करते हुए रूस के रक्षा मंत्रालय (MoD) के नेतृत्व पर गंभीर आरोप लगाए।
    • वैगनर ग्रुप ने एक वीडियो भी जारी किया जिसमें रक्षा नेतृत्व ने वैगनर प्रमुख पर हवाई हमले का आदेश देने और रोस्तोव-ऑन-डॉन में दक्षिणी सैन्य ज़िला मुख्यालय पर नियंत्रण करने का आरोप लगाया गया।
    • उनकी शिकायतों को दूर करने के प्रयास में वैगनर बलों (Wagner Forces) ने मॉस्को की ओर "न्याय मार्च" शुरू किया, जिसके परिणामस्वरूप झड़पें हुईं और महत्त्वपूर्ण क्षति हुई।
  • राजद्रोह करार:
    • रूसी राष्ट्रपति ने विद्रोह की निंदा करते हुए इसे "देशद्रोह" करार दिया।
    • उन्होंने सुरक्षा बलों को विद्रोह को दबाने का आदेश दिया। हालाँकि वैगनर के पिछले गठबंधन और उसकी प्रभावशीलता के कारण उन्हें दुविधा का सामना करना पड़ा।
  • समझौता वार्ता:
    • रूसी राष्ट्रपति ने बेलारूस के राष्ट्रपति की मदद से प्रिगोझिन के साथ बातचीत की। बातचीत के अनुसार, प्रिगोझिन पीछे हटने और बेलारूस में स्थानांतरित होने पर सहमत हो गया।

वैगनर घटनाक्रम का रूस पर प्रभाव:

  • आंतरिक विभाजन:
    • इस विद्रोह ने रूस की सुरक्षा और सैन्य बलों के भीतर आंतरिक विभाजन की स्थिति को उजागर कर दिया है। तथ्य यह है कि वैगनर सैनिक सशस्त्र विद्रोह शुरू करने तथा पीछे हटने से पहले मास्को की ओर कूच करने में सक्षम थे जो रूसी सुरक्षा तंत्र के भीतर कमज़ोरियों को उजागर करता है।
    • इसके दीर्घकालिक प्रभाव हो सकते हैं तथा संभावित रूप से भविष्य में इसी तरह की कार्यवाहियों को प्रोत्साहित किया जा सकता है।
  • राष्ट्रपति के अधिकार को कमज़ोर करना:
    • इस घटना ने राष्ट्रपति पुतिन की कमज़ोर होती सत्ता को भी उजागर कर दिया है। इस विद्रोह को कुचलने के लिये राष्ट्रीय टेलीविज़न पर वादे करने के बावजूद पुतिन ने अंततः अप्रत्यक्ष संचार का सहारा लिया तथा भाड़े के सैनिकों को पीछे हटने के बदले में माफ कर दिया।
    • यदि यूक्रेन युद्ध बिना किसी ठोस परिणाम के जारी रहता है तो पुतिन को अपने ही सत्ता के भीतर से बढ़ती चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
  • मुद्रा अस्थिरता:
    • वैगनर विद्रोह और इससे उत्पन्न अनिश्चितता के कारण रूसी रूबल विनिमय दर में अस्थिरता की स्थिति पैदा हो गई है। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले यहाँ की मुद्रा में भारी गिरावट देखी गई और यह 15 महीने के सबसे निचले स्तर पर पहुँच गई। इस अस्थिरता का रूसी अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है, जिसमें आयात की लागत में वृद्धि होना, मुद्रास्फीति का दबाव और निवेशकों का विश्वास कम होना शामिल है।
  • सीरिया और लीबिया में भविष्य के ऑपरेशन:
    • वैगनर समूह के विघटन से रूस के लिये एक चुनौती खड़ी हो गई है क्योंकि सशस्त्र और प्रशिक्षित रूसी विश्व के विभिन्न हिस्सों, विशेषकर अफ्रीका तथा मध्य पूर्व में फैले हुए हैं।
    • ऐसी संभावना है कि यह समूह आने वाले समय में एक अलग नाम से फिर से उभर सकता है। यद्यपि इन लोगों को स्थानीय सरकारों के साथ उनके दायित्त्वों और अनुबंधों पर विचार किये बिना हटाने से समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।

वैगनर समूह:

वैगनर समूह को PMC वैगनर के नाम से भी जाना जाता है, यह एक रूसी अर्द्धसैनिक संगठन है, जिसकी स्थापना वर्ष 2014 में हुई थी।

  • वैगनर के पास अपने लगभग 50,000 भाड़े के सैनिक थे जिनमें से कई पूर्व कैदी थे और यूक्रेन में लड़ रहे थे।
  • समूह ने वर्षों से मध्य पूर्व, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के युद्ध क्षेत्रों में कार्य किया है।

स्रोत: द हिंदू