सामाजिक न्याय
भारत में अंग दान
- 12 Dec 2019
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इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में अंग दान तथा भारत में उससे संबंधित विभिन्न समस्याओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
30 नवंबर को राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (NOTTO) द्वारा आयोजित 10वें भारतीय अंग दान दिवस के अवसर पर कार्यक्रम को संबोधित करते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री ने कहा कि “देश में व्यापक स्तर पर अंग दान हेतु जागरूकता फैलाने और इस संदर्भ में एक जनांदोलन चलाने की आवश्यकता है, ताकि लोग स्वेच्छा से अंग दान का संकल्प ले सकें।” विदित है कि अंग दान दिवस का प्राथमिक उद्देश्य देश में अंग दान और प्रत्यारोपण को बढ़ावा देना है ताकि अंग विफलता से पीड़ित लोगों को एक नया जीवन दिया जा सके।
अंग दान और प्रत्यारोपण का अर्थ
- अंग प्रत्यारोपण को 20वीं शताब्दी की सबसे महत्त्वपूर्ण खोजों में से एक माना जाता है।
- अंग प्रत्यारोपण का अभिप्राय सर्जरी के माध्यम से एक व्यक्ति के स्वस्थ अंग को निकालने और उसे किसी ऐसे व्यक्ति में प्रत्यारोपित करने से है जिसका अंग किन्हीं कारणों से विफल हो गया है।
- अंग मानव शरीर का वह हिस्सा होता है जो किसी एक विशेष प्रकार का कार्य करता है, जैसे- फेफड़े, हृदय, यकृत और गुर्दे आदि।
- अंग दान के लिये आयु सीमा अलग-अलग है, जो कि इस बात पर निर्भर करती है कि जिस व्यक्ति द्वारा अंग दान किया जा रहा है वह जीवित है या मृत।
- कॉर्निया, हृदय वाल्व, हड्डी और त्वचा जैसे ऊतकों को प्राकृतिक मृत्यु के पश्चात् दान किया जा सकता है, परंतु हृदय, यकृत, गुर्दे, फेफड़े और अग्न्याशय जैसे अन्य महत्त्वपूर्ण अंगों को केवल ब्रेन डेथ (Brain Death) के मामले में ही दान किया जा सकता है।
भारत में अंग दान और प्रत्यारोपण
- ‘ग्लोबल ऑब्ज़र्वेटरी ऑन डोनेशन एंड ट्रांसप्लांट’ के अनुसार, अमेरिका के बाद दुनिया में सबसे अधिक अंग प्रत्यारोपण भारत में किये जाते हैं। हालाँकि इसके बावजूद भारत में अंग दान की दर 0.65 प्रति मिलियन बनी हुई है, जो कि इस लिहाज़ से चिंता का विषय है।
- भारत में अंग दान के विषय को कभी भी प्राथमिक मुद्दे के रूप में नहीं देखा गया और शायद यही कारण है कि अंग विफलता के कारण प्रत्येक वर्ष देश में तकरीबन 5 लाख लोगों की मौत हो जाती है।
- एक अनुमान के मुताबिक, देश में 1 मिलियन से अधिक लोग अंग विफलता के अंतिम चरण से गुज़र रहे हैं, परंतु वर्तमान में देश के सभी प्रत्यारोपण केंद्रों में तकरीबन 3,500 अंग प्रत्यारोपण ही हो पाते हैं।
भारत में अंग प्रत्यारोपण संबंधी मुद्दे
- आधारिक संरचना का अभाव:
- भारत के सभी अस्पतालों में अंग प्रत्यारोपण संबंधी उपकरणों की व्यवस्था नहीं है। वर्ष 2017 के आँकड़ों के अनुसार, देश में लगभग 301 अस्पताल ऐसे हैं जहाँ अंग प्रत्यारोपण संबंधी उपकरण मौजूद हैं और इनमें से केवल 250 अस्पताल ही राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (NOTTO) के साथ पंजीकृत हैं।
- उपरोक्त आँकड़े दर्शाते है कि देश में अंग प्रत्यारोपण हेतु लगभग 43 लाख लोगों के लिये ऐसा मात्र 1 ही अस्पताल मौजूद है जहाँ अंग प्रत्यारोपण संबंधी सभी आवश्यक उपकरण मौजूद हैं।
- मांग और पूर्ति के बीच अंतर:
- आँकड़ों के अनुसार, प्रतिदिन औसतन 150 लोगों का नाम अंग प्रत्यारोपण का इंतज़ार कर रहे लोगों की सूची में जुड़ जाता है। जहाँ एक ओर वर्ष 2017 में तकरीबन 2 लाख लोग किडनी प्रत्यारोपण का इंतज़ार कर रहे थे, परंतु इनमें से केवल 5 प्रतिशत लोगों का ही किडनी प्रत्यारोपण हो पाया था।
- यह स्थिति तब है जब एक व्यक्ति अंग दान के माध्यम से कुल 8 लोगों की जान बचा सकता है।
- हालाँकि विगत कुछ वर्षों में अंग दानकर्त्ताओं की संख्या में काफी वृद्धि दर्ज की गई है, परंतु फिर भी यह वृद्धि लगातार बढ़ती अंगदान की मांग को पूरा करने में समर्थ नहीं है।
- सामाजिक-सांस्कृतिक मान्यताएँ:
- भारतीय समाज में ऐसे कई मिथक हैं जो आम लोगों को अंग दान करने से रोकते हैं। हालाँकि अंगदान से जुड़े लगभग सभी मिथक असत्य हैं, परंतु फिर भी ये भारतीय समाज की जड़ों में इस प्रकार मौजूद हैं कि इनसे पार पाना काफी चुनौतीपूर्ण हो गया है।
- प्रत्यारोपण की उच्च लागत:
- भारत में अंग दान करने वालों में अधिकतर मध्यम निम्न वर्ग या निम्न वर्ग के लोग ही होते हैं, परंतु अंग प्राप्त करने वाले लोगों में इस वर्ग का प्रतिनिधित्व काफी कम होता है, जिसका एक सबसे बड़ा कारण प्रत्यारोपण की उच्च लागत को माना जाता है। उल्लेखनीय है कि भारत में अंग प्रत्यारोपण की लागत लगभग 5 से 25 लाख रुपए के आस-पास है, जो कि मध्यम निम्न वर्ग या निम्न वर्ग के लिये काफी बड़ी लागत है।
- जागरूकता की कमी:
- भारत के आम नागरिकों में अंग दान को लेकर उचित शिक्षा और जागरूकता का अभाव है। कई बार यह देखा जाता है कि दूरदराज़ के क्षेत्रों में रहने वाले अंग विफलता से पीड़ित लोगों को अंग दान और अंग प्रत्यारोपण जैसी प्रणाली के बारे में पता ही नहीं होता है जिसके कारण उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
इस संबंध में सरकार द्वारा किये गए प्रयास
मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम (THOA), 1994
- इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य चिकित्सीय प्रयोजनों के लिये मानव अंगों के निष्कासन, भंडारण और प्रत्यारोपण को विनियमित करना है। साथ ही यह मानव अंगों के वाणिज्यिक प्रयोग को भी प्रतिबंधित करता है।
- इस अधिनियम में किसी गैर-संबंधी के अंग प्रत्यारोपण को गैर-कानूनी घोषित किया गया था।
- हालाँकि इस अधिनियम के बावजूद भी न तो अंगों का व्यापार रुका और न ही अंगों की कमी पूरी करने के लिये मृतक दानकर्त्ताओं की संख्या में इज़ाफा हुआ है।
मानव अंग प्रत्यारोपण (संशोधन) अधिनियम, 2011
- इस अधिनियम में मानव अंग दान के लिये प्रक्रिया को आसान बनाने के प्रावधान किये गए थे। साथ ही अधिनियम के दायरे को और अधिक व्यापक कर उसमें ऊतकों (Tissues) को भी शामिल कर लिया गया था।
- गौरतलब है कि 1994 के अधिनियम में सिर्फ अंगों को ही शामिल किया गया था।
- इन प्रावधानों में रिट्रिवल सेंटर और मृतक दानकर्त्ताओं से अंगों के रिट्रिवल के लिये उनका पंजीकरण, स्वैप डोनेशन और अस्पताल के पंजीकृत मेडिकल प्रेक्टिशनर द्वारा अनिवार्य जाँच करना शामिल है।
- इस अधिनियम में राष्ट्रीय स्तर पर दानकर्त्ताओं और प्राप्तकर्त्ताओं के पंजीकरण का भी प्रावधान है।
मानव अंग और ऊतक प्रत्यारोपण नियम (THOT), 2014
- THOT नियम के अनुसार, जो डॉक्टर अंग प्रत्यारोपण करने वाले ऑपरेशन दल का सदस्य होगा वह प्राधिकार समिति का सदस्य नहीं होगा।
- यदि अंग दान हासिल करने वाला विदेशी नागरिक हो और दानदाता भारतीय, तो बगैर निकट रिश्तेदारी के प्रत्यारोपण की अनुमति नहीं मिलेगी और इस संबंध में निर्णय प्राधिकार समिति द्वारा लिया जाएगा।
- जब प्रस्तावित अंग दानकर्त्ता और अंग प्राप्तकर्त्ता करीब संबंधी न हों तो प्राधिकार समिति यह मूल्यांकन करेगी कि अंग दानकर्त्ता और अंग प्राप्तकर्त्ता के बीच किसी भी तरह का व्यवसायिक लेन-देन न हो।
- सभी अधिकृत प्रत्यारोपण केंद्रों के पास अपनी वेबसाइट होनी आवश्यक है।
आगे की राह
- सरकार को यह सुनिश्चित करने का प्रयास करना चाहिये कि अंग प्रत्यारोपण की सुविधाएँ समाज के कमज़ोर वर्ग तक भी पहुँच सकें। इसके लिये सार्वजनिक अस्पतालों की अंग प्रत्यारोपण क्षमता में वृद्धि की जा सकती है।
- जानकारों का मानना है कि क्रॉस-सब्सिडी के माध्यम से समाज के कमज़ोर वर्ग तक इस प्रकार की सुविधाओं की पहुँच सुनिश्चित की जा सकती है। क्रॉस सब्सिडी के अंतर्गत किसी एक समूह से अपेक्षाकृत अधिक कीमत ली जाती है ताकि किसी अन्य समूह को लाभ पहुँचाया जा सके।
- आवश्यक है कि सरकार अंग विफलता की रोकथाम का भी प्रयास करे, ताकि कम-से-कम लोगों को अंग दान की आवश्यकता पड़े।
- मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम (THOA), 1994 को संशोधित किये जाने की आवश्यकता है ताकि दान किये हुए अंगों के वितरण में केंद्र सरकार के हस्तक्षेप के मुद्दे को संबोधित किया जा सके। साथ ही अंग वितरण में पारदर्शिता को भी बढ़ाए जाने की आवश्यकता है।
- अंग दान के बारे में गलत धारणाओं और मिथकों को दूर करना देश में अंग दान करने वालों की कमी को दूर करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, यदि भारत में सड़क दुर्घटनाओं के कारण मरने वालों में से 5 प्रतिशत व्यक्ति भी अंग दान करें तो जीवित व्यक्तियों को अंग दान करने की कोई आवश्यकता नहीं होगी।
प्रश्न: भारत में अंग प्रत्यारोपण से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा कीजिये।