शासन व्यवस्था
पशु क्रूरता निवारण (संशोधन) विधेयक-2022 का मसौदा
- 24 Nov 2022
- 8 min read
प्रिलिम्स के लिये:पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 मेन्स के लिये:पशु क्रूरता निवारण (संशोधन) विधेयक-2022 और संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सरकार ने पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 में संशोधन करने के लिये पशु क्रूरता निवारण (संशोधन) विधेयक-2022 का मसौदा पेश किया है।
- यह मसौदा मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय द्वारा तैयार किया गया है।
प्रस्तावित संशोधन:
- वहशीता (Bestiality) एक अपराध:
- मसौदे में 'वीभत्स क्रूरता' की नई श्रेणी के तहत अपराध के रूप में 'पशुओं' को शामिल किया गया है।
- "बेस्टियलिटी" का अर्थ है मनुष्य और पशु के बीच किसी भी प्रकार की यौन गतिविधि या यौन संसर्ग ।
- वीभत्स क्रूरता को "एक ऐसा कार्य जो पशुओं को अत्यधिक दर्द और पीड़ा देता है तथा आजीवन विकलांगता या मृत्यु का कारण बन सकता है", के रूप में परिभाषित किया गया है।
- मसौदे में 'वीभत्स क्रूरता' की नई श्रेणी के तहत अपराध के रूप में 'पशुओं' को शामिल किया गया है।
- वीभत्स क्रूरता के लिये दंड:
- न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा उस क्षेत्र के पशु चिकित्सकों के परामर्श से न्यूनतम 50,000 रुपए का ज़ुर्माना लगाया जा सकता है और इसे बढ़ाकर 75,000 रुपए किया जा सकता है, या ज़ुर्माना राशि न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा निर्धारित की जा सकती है, जो भी अधिक हो, या अधिकतम एक वर्ष का कारावास जिसे तीन वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।
- पशु हत्या के लिये दंड:
- ज़ुर्माने के साथ अधिकतम 5 वर्ष का कारावास।
- पशुओं के लिये स्वतंत्रता:
- मसौदे में एक नई धारा 3A को शामिल करने का भी प्रस्ताव है, जो पशुओं को 'पाँच प्रकार की स्वतंत्रताएँ' प्रदान करता है।
- किसी पशु को रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्तव्य होगा कि वह यह सुनिश्चित करे कि उसकी देखभाल में रह रहे पशु के निम्नलिखित अधिकार हों:
- प्यास, भूख और कुपोषण से मुक्ति
- पर्यावरण के कारण होने वाली असुविधा से मुक्ति
- दर्द, चोट और बीमारियों से मुक्ति
- प्रजातियों के लिये सामान्य व्यवहार व्यक्त करने की स्वतंत्रता
- भय और संकट से मुक्ति
- सामुदायिक पशु:
- सामुदायिक पशुओं के मामले में स्थानीय सरकार उनकी देखभाल के लिये ज़िम्मेदार होगी।
- मसौदा प्रस्तावों में सामुदायिक पशु को "एक समुदाय में पैदा होने वाले पशु के रूप में पेश किया गया है, जिसके लिये वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत परिभाषित जंगली पशुओं को छोड़कर किसी स्वामित्व का दावा नहीं किया गया है।
पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960
- परिचय:
- इस अधिनियम का उद्देश्य ‘पशुओं को अनावश्यक दर्द पहुँचाने या पीड़ा देने से रोकना’ है, जिसके लिये अधिनियम में पशुओं के प्रति अनावश्यक क्रूरता और पीड़ा पहुँचाने के लिये दंड का प्रावधान किया गया है।
- वर्ष 1962 में इस अधिनियम की धारा 4 के तहत भारतीय पशु कल्याण बोर्ड (AWBI) की स्थापना की गई थी।
- यह अधिनियम पशुओं और पशुओं के विभिन्न रूपों को परिभाषित करने के साथ ही वैज्ञानिक उद्देश्यों के लिये पशुओं पर प्रयोग (experiment) से संबंधित दिशा-निर्देश प्रदान करता है।
- पहले अपराध के मामले में ज़ुर्माना जो दस रुपए से कम नहीं होगा लेकिन यह पचास रुपए तक हो सकता है।
- पिछले अपराध के तीन वर्ष के भीतर किये गए दूसरे या बाद के अपराध के मामले में ज़ुर्माना पच्चीस रुपए से कम नहीं होगा, लेकिन यह एक सौ रुपए तक हो सकता है या तीन महीने तक कारावास की सज़ा या दोनों हो सकती है।
- यह वैज्ञानिक उद्देश्यों के लिये पशुओं पर प्रयोग से संबंधित दिशा-निर्देश प्रदान करता है।
- यह अधिनियम पशुओं की प्रदर्शनी और पशुओं का प्रदर्शन करने वालों के खिलाफ अपराधों से संबंधित प्रावधान करता है।
- आलोचना:
- सज़ा की तीव्रता कम होने, "क्रूरता" की अपर्याप्त परिभाषा और अपराध की गंभीरता को ध्यान में रखे बिना एक ही सज़ा लागू करने के कारण इस अधिनियम की 'प्रजातिवादी' होने के संबंध में आलोचना की गई है (सरल शब्दों में कहें तो, यह ऐसी धारणा है जिसमे मनुष्य एक बेहतर प्रजाति है जिसके पास अधिक अधिकार होने चाहिये)।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2014)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) व्याख्या:
अतः विकल्प (b) सही है। |