डेली न्यूज़ (26 Nov, 2024)



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भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक

प्रिलिम्स के लिये:

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, सर्वोच्च न्यायालय, चुनाव आयोग, संघ लोक सेवा आयोग, भारत के राष्ट्रपति, भारत की संचित निधि,  अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी,

मेंस के लिये:

भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक का महत्त्व, वित्तीय अखंडता और जवाबदेही। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

के. संजय मूर्ति को भारत का नया नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) नियुक्त किया गया है, वे गिरिश चंद्र मुर्मू की जगह लेंगे। 

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के बारे में मुख्य बिंदु क्या हैं?

  • भारत के CAG के बारे में: संविधान के अनुच्छेद 148 के अनुसार, भारत का CAG भारतीय लेखा परीक्षा और लेखा विभाग (IA-AD) का प्रमुख होता है। वह सार्वजनिक निधि की सुरक्षा और केंद्र एवं राज्य दोनों स्तरों पर वित्तीय प्रणाली की देखरेख के लिये ज़िम्मेदार होता है। 
    • CAG वित्तीय प्रशासन में संविधान और संसदीय कानूनों को कायम रखता है और इसे सर्वोच्च न्यायालय, निर्वाचन आयोग और संघ लोक सेवा आयोग के साथ भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली के प्रमुख स्तंभों में से एक माना जाता है।
    • भारत का CAG नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कर्तव्य, शक्तियां और सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1971 द्वारा शासित होता है, जिसमें वर्ष 1976, 1984 और 1987 में महत्त्वपूर्ण संशोधन किये गए।
  • नियुक्ति और कार्यकाल: भारत के CAG की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा अपने हस्ताक्षर और मुहर सहित एक अधिकार पत्र (Warrant) द्वारा की जाती है। CAG छह वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो, पद पर कार्य करता है।
    • CAG संविधान की रक्षा करने तथा बिना किसी भय या पक्षपात के निष्पक्षतापूर्वक अपने कर्त्तव्यों का पालन करने की शपथ ग्रहण करता है।
    • राष्ट्रपति द्वारा CAG को पद से केवल उसी रीति से और उन्ही आधारों पर हटाया जाएगा जिस रीति से और जिन आधारों पर सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है।, तथा इसके लिये सिद्ध दुर्व्यवहार या अक्षमता हेतु संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत प्रस्ताव की आवश्यकता होती है।
    • CAG किसी भी समय राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र देकर अपने पद से इस्तीफा दे सकते हैं। 
  • स्वतंत्रता: CAG को केवल संवैधानिक प्रक्रिया के तहत राष्ट्रपति द्वारा (न की राष्ट्रपति के विवेक अधिकार पर) हटाया जा सकता है
    • पद छोड़ने के बाद CAG भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन किसी भी अन्य पद के लिये पात्र नही हैं।
    • CAG का वेतन संसद निर्धारित करती है, जो सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के वेतन के बराबर होते है।
    • राष्ट्रपति, CAG के परामर्श से CAG के कर्मचारियों के लिये सेवा शर्तें और प्रशासनिक शक्तियाँ निर्धारित करता हैं।
    • CAG के प्रशासनिक व्यय, जिनमें वेतन, भत्ते और पेंशन शामिल हैं, भारत की संचित निधि पर भारित होते हैं, जो संसदीय मतदान के अधीन नहीं होते हैं।
    • कोई भी मंत्री संसद में CAG का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता या उसके कार्यों की ज़िम्मेदारी नहीं ले सकता।
  • कर्त्तव्य एवं शक्तियाँ: CAG भारत की संचित निधि और राज्य निधि से व्यय से संबंधित खातों का लेखा-परीक्षण करता है।
    • यह सरकारी निगमों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और सरकार द्वारा वित्तपोषित निकायों के खातों का भी लेखा-परीक्षण करता है।
    • CAG करों और शुल्कों की शुद्ध आय पर प्रमाणपत्र प्रदान करता है, तथा ऋण, अग्रिम और सस्पेंस खातों से संबंधित लेनदेन का ऑडिट करता है।
    • CAG ऑडिट रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपता है, जो उन्हें संसद के समक्ष रखता है। इन रिपोर्टों की जाँच लोक लेखा समिति द्वारा की जाती है।
  • भूमिका: CAG संसद के एजेंट के रूप में कार्य करता है जो यह सुनिश्चित करता है कि सार्वजनिक वित्त का उपयोग कानूनी और कुशलतापूर्वक किया जाए। 
    • यह समीक्षा करता है कि वितरित धनराशि कानूनी के अनुसार था और उसका सही ढंग से उपयोग किया गया था तथा व्यय शासकीय प्राधिकरण के अनुरूप है या नहीं।
      • CAG करदाताओं के धन की सुरक्षा करने तथा यह सुनिश्चित करने के लिये ज़िम्मेदार है कि उसका व्यय कानून के अनुसार तथा लक्षित उद्देश्यों के लिये किया जाए।
      • कानूनी और नियामक लेखापरीक्षाओं के अतिरिक्त, CAG औचित्य संबंधी लेखापरीक्षा भी कर सकता है, अर्थात् वह सरकारी व्यय की बुद्धिमत्ता, विश्वसनीयता और मितव्ययिता का आकलन कर सकता है, साथ ही अपव्यय और फिजूलखर्चा पर टिप्पणी कर सकता है।
        • अनिवार्य कानूनी और विनियामक ऑडिट के विपरीत, स्वामित्व संबंधी ऑडिट वैकल्पिक हैं।
    • भारत में CAG का धन जारी करने पर नियंत्रण नहीं है तथा वह केवल महालेखा परीक्षक की भूमिका निभाता है, जबकि ब्रिटेन में CAG नियंत्रक के रूप में भी कार्य करता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय लेखा परीक्षा: 

भारत के CAG के संबंध में संवैधानिक प्रावधान

प्रावधान

विवरण

अनुच्छेद 148

यह विधेयक भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की नियुक्ति, शपथ और सेवा की शर्तों से संबंधित है।

अनुच्छेद 149

भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के कर्त्तव्यों एवं शक्तियों को निर्दिष्ट करता है।

अनुच्छेद 150

इसमें कहा गया है कि संघ और राज्यों के खातों को CAG की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित प्रारूप में रखा जाना चाहिये।

अनुच्छेद 151

संघीय लेखाओं पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट राष्ट्रपति को प्रस्तुत की जाएगी तथा संसद के समक्ष रखी जाएगी; राज्य की रिपोर्ट राज्यपाल को प्रस्तुत की जाएगी तथा राज्य विधानमंडल के समक्ष रखी जाएगी।

अनुच्छेद 279

इसमें प्रावधान है कि CAG "शुद्ध आगम" की गणना को प्रमाणित करता है और उसका प्रमाणपत्र अंतिम होता है।

तीसरी अनुसूची

धारा IV में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों और CAG द्वारा पद ग्रहण करने पर ली जाने वाली शपथ या प्रतिज्ञान का प्रावधान है।

छठी अनुसूची

यह निर्दिष्ट करता है कि जिला या क्षेत्रीय परिषदों के खातों को CAG द्वारा निर्धारित प्रारूप में रखा जाना चाहिये और तदनुसार उनका ऑडिट किया जाना चाहिये। परिषद के समक्ष प्रस्तुत करने के लिये रिपोर्ट राज्यपाल को प्रस्तुत की जानी चाहिये।

CAG लोकतंत्र को कैसे मज़बूत करता है?

  • जवाबदेही सुनिश्चित करना: भारत के लोकतांत्रिक ढाँचे के प्रमुख सिद्धांत जवाबदेही, नागरिक सहभागिता और विकेंद्रीकरण हैं। जैसे-जैसे शासन अधिक जटिल होता जाता है, इन सिद्धांतों को मज़बूत तंत्रों के माध्यम से बनाए रखा जाना चाहिये।
    • भारत का CAG सार्वजनिक धन के उपयोग में सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करता है, करदाताओं के धन के दुरुपयोग को रोकता है और नागरिकों के सर्वोत्तम हितों में शासन को बढ़ावा देता है, जो लोकतंत्र में आवश्यक है।
  • स्थानीय शासन को सुदृढ़ बनाना:  CAG क्षमता निर्माण और मार्गदर्शन के माध्यम से पंचायती राज संस्थाओं (PRI) और शहरी स्थानीय निकायों को सहायता प्रदान करता है।
    • वार्षिक तकनीकी निरीक्षण रिपोर्ट (ATIR) के माध्यम से, यह सेवा वितरण में स्थानीय सरकार के प्रदर्शन का आकलन करता है। कुशल लेखाकारों की कमी को दूर करने के लिये, CAG, भारतीय चार्टर्ड अकाउंटेंट्स संस्थान (ICAI) के सहयोग से ऑनलाइन पाठ्यक्रम प्रदान करता है।
  • शक्तियों के पृथक्करण की सुरक्षा: लेखापरीक्षा यह सुनिश्चित करती है कि कार्यपालिका की वित्तीय गतिविधियां विधायी मंशा के अनुरूप हों, तथा शक्ति संतुलन बना रहे।
  • नागरिक-केंद्रित दृष्टिकोण: नागरिकों को लेखापरीक्षा प्रक्रियाओं के केंद्र में रखकर, CAG यह सुनिश्चित करता है कि सरकारी कार्यक्रमों का कार्यान्वयन लोगों की आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करे।
    • नागरिक फीडबैक से CAG को उच्च ज़ोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान करने में मदद मिलती है, जहाँ कुप्रबंधन हो सकता है, जिससे लेखापरीक्षा का फोकस और प्रभावशीलता में सुधार होता है।

CAG ने कौन से बड़े घोटाले उज़ागर किये हैं?

  • भ्रष्टाचार और वित्तीय अनियमितताओं के कई हाई-प्रोफाइल मामलों को उज़ागर करने में CAG की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।
    • 2G स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाला: CAG ने 1.76 लाख करोड़ रुपए के नुकसान को उज़ागर किया।
      • भारत के CAG की एक रिपोर्ट से पता चला है कि भारत सरकार ने स्वतंत्र और निष्पक्ष नीलामी को दरकिनार करते हुए, 2G स्पेक्ट्रम लाइसेंसों को काफी कम कीमत पर आवंटित किया।
    • कोयला खदान आवंटन घोटाला: CAG ने 1.85 लाख करोड़ रुपए के गलत लाभ का अनुमान लगाया।
      • कोयला घोटाला, जिसे कोलगेट के नाम से जाना जाता है, वर्ष 2004 से वर्ष 2009 तक कोयला ब्लॉकों के अनियमित और संभावित रूप से अवैध आवंटन से संबंधित है, जिसमें सरकार के पास ऐसा करने का अधिकार होने के बावजूद प्रतिस्पर्द्धी बोली को दरकिनार कर दिया गया।
    • चारा घोटाला: CAG ने 940 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी से निकासी का खुलासा किया।
      • चारा घोटाला, वर्ष 1985 से वर्ष 1995 के बीच बिहार के पशुपालन विभाग में हुई वित्तीय अनियमितताओं से जुड़ा था।

भारत में CAG की कार्यप्रणाली के संबंध में क्या आलोचनाएँ हैं?

  • संसद में प्रस्तुत रिपोर्टों की संख्या में कमी: संसद में CAG द्वारा प्रस्तुत लेखापरीक्षा रिपोर्टों की संख्या में उल्लेखनीय कमी आई है, जो वर्ष 2015 में 53 से घटकर वर्ष 2023 में मात्र 18 रह गई है, जिससे सरकारी व्यय में निगरानी और पारदर्शिता में कमी की चिंता उत्पन्न होती है, जिससे वित्तीय अनियमितताओं की पहचान में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
    • इसके अतिरिक्त, CAG कई फर्मों और सरकारी निकायों का प्रत्यक्ष रूप से ऑडिट करता है, लेकिन प्रत्येक वर्ष केवल कुछ का ही मूल्यांकन करता है, जिससे कई ऑडिट लंबित रह जाते हैं।
  • कार्योत्तर लेखापरीक्षा: CAG का लेखापरीक्षा कार्य काफी हद तक कार्योत्तर होता है, जिसका अर्थ है कि लेखापरीक्षा सरकारी व्यय किये जाने के बाद होती है, न कि निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल होने के बाद। 
    • इससे वित्तीय कुप्रबंधन या अनियमितताओं को घटित होने से पहले रोकने की CAG की क्षमता सीमित होती है। 
    • CAG द्वारा वित्तीय लेन-देन का परीक्षण तो किया जाता है लेकिन सक्रिय वित्तीय निगरानी में इसका योगदान सीमित होता है।
  • CAG के कार्य का सीमित महत्त्व: लेखा परीक्षक प्रशासन पर नहीं बल्कि लेखापरीक्षा पर ध्यान केंद्रित करते हैं जिससे उनका कार्य आवश्यक तो होता है लेकिन परिप्रेक्ष्य और उपयोगिता में सीमित होता है। इसके अतिरिक्त बजट जारी करने से पहले पूर्व-लेखापरीक्षा में CAG की कोई भूमिका नहीं होती है।
  • अपर्याप्त आर्थिक विशेषज्ञता: आलोचकों का तर्क है कि CAG के पास पर्याप्त आर्थिक विशेषज्ञता का अभाव (विशेषकर प्राकृतिक संसाधनों जैसे जटिल क्षेत्रों का लेखा-परीक्षण करते समय) रहता है।
    • भारतीय लेखा परीक्षा और लेखा विभाग (IA&AD) में कर्मचारियों की संख्या में उल्लेखनीय कमी (जो वर्ष 2013-14 के 48,253 से घटकर वर्ष 2021-22 में 41,675 हो गई है) आई है। यह कमी CAG की ऑडिट करने की क्षमता को प्रभावित कर सकती है, जिससे परीक्षण प्रणाली सीमित होने के साथ इसकी पारदर्शिता और जवाबदेहिता में बाधा आ सकती है।
  • रिपोर्टिंग में देरी: CAG को दस्तावेज प्रस्तुत करने और संसद में रिपोर्ट प्रस्तुत करने में अक्सर देरी होती है, जिससे समय पर जवाबदेही तय करने में बाधा उत्पन्न होती है।

CAG में कौन से सुधार आवश्यक हैं?

  • CAG अधिनियम में संशोधन: आधुनिक शासन आवश्यकताओं को प्रतिबिंबित करने के साथ जवाबदेहिता में सुधार हेतु वर्ष 1971 के CAG अधिनियम में संशोधन किया जाना चाहिये।
  • चयन प्रक्रिया: CAG की नियुक्ति के लिये राष्ट्रपति, भारत के मुख्य न्यायाधीश, प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता को शामिल करते हुए एक कॉलेजियम का गठन होना चाहिये।
    • यह दृष्टिकोण अधिक निष्पक्ष एवं वैध चयन प्रक्रिया सुनिश्चित करने के साथ निष्पक्षता एवं पारदर्शिता को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।
  • नई चुनौतियों हेतु अनुकूलन: CAG को जलवायु परिवर्तन एवं महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों जैसे नए क्षेत्रों की लेखापरीक्षा के क्रम में अनुकूलन करने की आवश्यकता है। इन उभरते क्षेत्रों में व्यापक निगरानी तथा जवाबदेहिता सुनिश्चित करने के लिये यह अनुकूलन महत्त्वपूर्ण है।
  • क्षमता निर्माण: लेखापरीक्षा की गुणवत्ता में सुधार (विशेष रूप से प्राकृतिक संसाधनों, प्रौद्योगिकी और जटिल आर्थिक क्षेत्रों जैसे विशिष्ट क्षेत्रों में) हेतु CAG कर्मचारियों को प्रशिक्षण प्रदान करने के साथ इनकी क्षमता में वृद्धि करना चाहिये।
  • फीडबैक तंत्र: विभिन्न संस्थाओं की चिंताओं के साथ सुझावों पर ध्यान रखने हेतु मज़बूत फीडबैक तंत्र स्थापित करना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि लेखापरीक्षा रचनात्मक एवं सुधारात्मक हो।

निष्कर्ष

CAG वित्तीय औचित्य का प्रहरी एवं लोकतांत्रिक जवाबदेहिता का संरक्षक है। हालाँकि इसने शासन को मज़बूत करने एवं भ्रष्टाचार को सामने लाने में काफी प्रगति की है लेकिन तीव्रता से विकसित हो रहे आर्थिक तथा राजनीतिक परिदृश्य में इसकी प्रासंगिकता सुनिश्चित करने हेतु और भी सुधारों की गुंजाइश है। अपने अधिदेश को मज़बूत कर और अपने कार्यों को आधुनिक बनाकर, CAG भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: सार्वजनिक वित्तीय जवाबदेही की सुरक्षा में भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की भूमिका का परीक्षण कीजिये। संवैधानिक प्रावधान CAG को किस प्रकार सशक्त बनाते हैं?

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्र. लोक निधि के फलोत्पादक और आशायित प्रयोग को सुरक्षित करने के साथ-साथ भारत में नियंत्रक-महालेखा परीक्षक (CAG) के कार्यालय का महत्त्व क्या है? (2012)

1- CAG संसद की ओर से राजकोष पर नियंत्रण रखता है जब भारत का राष्ट्रपति राष्ट्रीय आपात/वित्तीय आपात घोषित करता है।
2- मंत्रालयों द्वारा कार्यान्वित परियोजनाओं या कार्यक्रमों पर CAG द्वारा जारी किये गए प्रतिवेदनों पर लेखा समिति विचार-विमर्श करती है।
3- CAG के प्रतिवेदनों से मिली जानकारियों के आधार पर जाँचकर्त्ता एजेंसियाँ उन लोगों के विरूद्ध आरोप दाखिल कर सकती है जिन्होनें लोक निधि प्रबंधन में कानून का उल्लंघन किया हो।
4- CAG को ऐसी मिश्रित न्यायिक शक्तियाँ प्राप्त हैं कि सरकारी कंपनियों के लेखा-परीक्षा और लेखा जाँच करते समय वह कानून का उल्लंघन करने वालों पर अभियोग लगा सके।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1, 3 ओर 4
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3 
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: c


मेन्स:

प्रश्न. “नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका है।” समझाएँ कि यह उसकी नियुक्ति की पद्धति और शर्तों के साथ-साथ उसके द्वारा प्रयोग की जाने वाली शक्तियों की सीमा में कैसे परिलक्षित होती है? (2018)

प्रश्न. संघ एवं राज्यों की लेखाओं के संबध में नियंत्रक और महालेखापरीक्षक की शक्तिओं का प्रयोग भारतीय संविधान के अनुच्छेद 149 से व्युत्पन्न है। चर्चा कीजिये कि क्या सरकार की नीति कार्यान्वयन की लेखापरीक्षा करना अपने स्वयं (नियंत्रक और महालेखापरीक्षक) की अधिकारिता का अतिक्रमण करना होगा या नहीं।

(2016)

राजराज प्रथम और चोल प्रशासन

प्रिलिम्स के लिये:

राजराज चोल प्रथम, तिरुवलंगडु शिलालेख, कंडालुर सलाई की लड़ाई, सेनुर शिलालेख, राजराज मंडलम, मुमुदी चोल, चोल, पांड्य, चेर, चालुक्य, नागपट्टिनम, स्थानीय स्वशासन, बृहदेश्वर मंदिर, द्रविड़ मंदिर वास्तुकला, यूनेस्को, गंगाईकोंडा चोलपुरम, ऐरावतेश्वर मंदिर, दक्षिण मेरु, भित्ति चित्र, भरतनाट्यम, नटराज प्रतिमा, आनंद तांडव। 

मेन्स के लिये:

भारतीय इतिहास में चोल वंश का योगदान, चोल वंश की कला एवं वास्तुकला।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में तमिलनाडु के तंजावुर में साधा विझा (मध्य अक्टूबर से मध्य नवंबर) के दौरान चोल सम्राट राजराज चोल प्रथम की जयंती मनाई गई।

  • उनका जन्म 947 ई. में अरुलमोझी वर्मन के रूप में हुआ था तथा उन्होंने "राजराज" की उपाधि धारण की थी, जिसका अर्थ है "राजाओं का राजा"।

राजराज चोल प्रथम के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • परिचय: राजराज चोल प्रथम, परांतक चोल द्वितीय और वनवन महादेवी की तीसरी संतान थे।
    • थिरुवलंगडु अभिलेख के अनुसार उत्तम चोल ने अरुणमोझी (राजराज प्रथम) की असाधारण क्षमता को पहचानते हुए उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था।
    • उन्होंने वर्ष 985 से 1014 ई. तक शासन किया तथा वे सैन्य कौशल एवं गहन प्रशासनिक दूरदर्शिता के लिये विख्यात थे। 
  • उल्लेखनीय सैन्य विजय: 
    • कंडालूर सलाई का युद्ध (988 ई.): यह केरल के कंडालूर में चेरों (मध्य और उत्तरी केरल) के खिलाफ एक नौसैनिक युद्ध था।
      • यह राजराज प्रथम की पहली सैन्य उपलब्धि थी तथा इसके परिणामस्वरूप चेर नौसेना बलों एवं बंदरगाहों की क्षति हुई।
    • केरल और पांड्यों की विजय: सेनूर अभिलेख (तमिलनाडु) के अनुसार, राजराज चोल प्रथम ने पांड्यों की राजधानी मदुरै को नष्ट कर दिया और कोल्लम पर विजय प्राप्त की।
      • विजय के बाद उन्होंने "पांड्या कुलाशनी" (पांड्यों के लिये वज्र) की उपाधि धारण की तथा उस क्षेत्र का नाम बदलकर "राजराज मंडलम" रख दिया। 
      • उन्होंने चोलों, पांड्यों और चेरों पर अपने प्रभुत्व को दर्शाने के लिये "मुम्मुडी चोल" (तीन मुकुट पहनने वाला चोल) की उपाधि भी धारण की।
    • श्रीलंका पर विजय (993 ई.): राजराज चोल प्रथम ने 993 ई. में श्रीलंका पर आक्रमण किया तथा श्रीलंका के उत्तरी आधे भाग पर कब्जा कर लिया एवं जननाथमंगलम को प्रांतीय राजधानी के रूप में स्थापित किया।
      • यह विजय अभियान उनके पुत्र राजेंद्र चोल प्रथम के शासनकाल में 1017 ई. में पूरा हुआ।
    • चालुक्यों के साथ संघर्ष: उन्होंने कर्नाटक में चालुक्यों को पराजित किया तथा गंगावडी और नोलम्बपडी जैसे क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया। 
      • उन्होंने विवाहों (जैसे कि कुंदवई का वेंगी के विमलादित्य के साथ विवाह) के माध्यम से गठबंधन को बढ़ावा दिया।
  • चोल नौसेना: राजराज चोल प्रथम ने नौसेना को मज़बूत किया, जिससे बंगाल की खाड़ी को "चोल झील" की उपाधि मिली।
    • उस दौरान नागपट्टिनम (तमिलनाडु) मुख्य बंदरगाह था, जिससे श्रीलंका एवं मालदीव के सफल अभियानों में सहायता मिली।
  • प्रशासन: वंशानुगत स्वामियों के स्थान पर आश्रित अधिकारियों की नियुक्ति के साथ प्रांतों पर प्रत्यक्ष नियंत्रण स्थापित किया गया।
    • उन्होंने स्थानीय स्वशासन की प्रणाली को मज़बूत किया तथा लेखापरीक्षा और नियंत्रण की एक प्रणाली स्थापित की जिसके माध्यम से सार्वजनिक निकायों पर नजर रखी गई। 
  • कला और संस्कृति: राजराज चोल प्रथम एक समर्पित शैव थे, लेकिन उन्होंने भगवान विष्णु को कई मंदिर भी समर्पित किये। 
    • 1010 ई. में, राजराज चोल प्रथम ने तंजावुर में भव्य बृहदेश्वर मंदिर (राजराजेश्वरम मंदिर) का निर्माण कराया। यह भगवान शिव को समर्पित है और द्रविड़ मंदिर वास्तुकला का एक आदर्श उदाहरण है।
      • यह मंदिर यूनेस्को की विश्व धरोहर का हिस्सा है और इसे "महान जीवित चोल मंदिरों" में से एक माना जाता है, अन्य दो मंदिर गंगईकोंडा चोलपुरम और ऐरावतेश्वर मंदिर हैं।
    • चोल मूर्तिकला का एक महत्त्वपूर्ण नमूना तांडव नृत्य मुद्रा में नटराज की मूर्ति थी।
  • सिक्का-निर्माण: राजराज चोल प्रथम ने पुराने बाघ-प्रतीक वाले सिक्कों के स्थान पर नए सिक्के जारी किये, जिनमें एक ओर खड़े राजा और दूसरी ओर बैठी हुई देवी की छवि थी।
    • उनके सिक्कों की नकल श्रीलंका के राजाओं ने भी की थी।

नोट: चोल साम्राज्य की स्थापना विजयालय ने की थी जिसके कारण शक्तिशाली चोलों का उदय हुआ।

पल्लवों को पराजित किया। 

  • चोलों का शासन काल (9वीं -13 वीं शताब्दी) 13 वीं शताब्दी तक लगभग पाँच शताब्दियों तक चला।

चोल प्रशासन के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • केंद्रीकृत शासन: चोल प्रशासनिक ढाँचे के शीर्ष पर राजा होता था, जिसकी शक्तियों को मंत्रिपरिषद द्वारा संतुलित किया जाता था।
    • राजा के अधीन केंद्रीय सरकार में एक संरचित परिषद होती थी जिसमें उच्च अधिकारी (पेरुन्तारम) और निम्न अधिकारी (सिरुन्तरम) होते थे।
  • प्रांतीय प्रशासन: चोल साम्राज्य नौ प्रांतों में विभाजित था, जिन्हें मंडलम भी कहा जाता था।
    • मंडलमों को आगे कोट्टम या वलनाड में विभाजित किया गया, जिन्हें आगे नाडु (ज़िलों) और फिर उर (गाँवों) में विभाजित किया गया। 
  • राजस्व प्रणाली: भू-राजस्व आय का प्राथमिक स्रोत था, जिसमें सामान्य दर भूमि की उपज का 1/6 भाग कर के रूप में एकत्र किया जाता था, चाहे वह नकद, वस्तु या दोनों के रूप में हो।
    • चोल प्रशासन ने सीमा शुल्क, टोल, खानों, बंदरगाहों, वनों और नमक के क्षेत्रों पर भी कर लगाया। व्यावसायिक और गृह कर भी वसूल किये जाते थे।
  • स्थानीय प्रशासन: चोल प्रशासन की सबसे विशिष्ट विशेषता इसकी स्थानीय शासन प्रणाली थी, जिसने नाडू और गाँवों जैसी स्थानीय इकाइयों को पर्याप्त स्वायत्तता प्रदान की थी। 
    • नाडु एक महत्त्वपूर्ण प्रशासनिक इकाई थी, जिसकी अपनी विधानसभा थी और इसका नेतृत्व नट्टार करता था, जबकि नट्टारों की परिषद को नट्टावई कहा जाता था।
      • गाँव के स्तर पर, ग्राम सभा सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे को बनाए रखने और बाज़ारों को विनियमित करने के लिये ज़िम्मेदार थी।
    • ग्राम सभाओं को स्थानीय शासन के विभिन्न पहलुओं के लिये जिम्मेदार  विभिन्न वारियम (समितियों) द्वारा सहायता प्रदान की जाती थी।
  • चोल राजवंश के अंतर्गत व्यापार:
    • स्थानीय व्यापार: चोल साम्राज्य में आंतरिक व्यापार में महत्त्वपूर्ण विकास हुआ, जिसे व्यापारिक निगमों और संगठित संघों द्वारा सुगम बनाया गया। 
      • ये संघ, जिन्हें प्रायः "नानादेशी" कहा जाता था, व्यापारियों के शक्तिशाली और स्वायत्त निकाय थे।
      • कांचीपुरम और मामल्लपुरम जैसे बड़े व्यापार केंद्रों में, "नगरम" नामक स्थानीय व्यापारी संगठन व्यापार और बाज़ार गतिविधियों के समन्वय में मदद करते थे।  
    • समुद्री व्यापार: चोल राजवंश ने पश्चिम एशिया, चीन और दक्षिण पूर्व एशिया के साथ व्यापार संबंध स्थापित किये। 
      • वे मसालों, कीमती पत्थरों, वस्त्रों और अन्य वस्तुओं के लाभदायक व्यापार में लगे हुए थे जिनकी पूरे एशिया में मांग थी।

बृहदेश्वर मंदिर के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • परिचय: राजराज प्रथम द्वारा निर्मित इस मंदिर का उद्घाटन उनके 19वें वर्ष (1003-1004 ई.) में तथा उनके 25 वें वर्ष (1009-1010 ई.) में किया गया था।
  • वास्तुकला महत्त्व: यह द्रविड़ मंदिर डिज़ाइन के शुद्ध रूप का उदाहरण है।
  • वास्तुकला: 
    • डिज़ाइन: इसमें एक विशाल स्तंभयुक्त प्राकार (बाड़ा) है, जिसके साथ आठ संरक्षक देवताओं (अष्टदिक्पालों ) को समर्पित उप-मंदिर हैं।
    • गोपुरम: राजराजन्तिरुवासल के नाम से जाना जाने वाला यह मंदिर परिसर के भव्य प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है।
    • प्रदक्षिणा पथ: गर्भगृह के चारों ओर एक पथ है, जिससे भक्त पवित्र शिवलिंग के चारों ओर प्रदक्षिणा (परिक्रमा) कर सकते हैं।
  • कलात्मक तत्त्व: 
    • भित्ति चित्र: मंदिर की दीवारें विशाल और उत्कृष्ट भित्ति चित्रों से सुसज्जित हैं, जिनमें भरतनाट्यम के 108 करण (नृत्य मुद्राएँ) में से 81 शामिल हैं।
      • तमिलनाडु के बृहदीश्वर मंदिर में राजराज प्रथम और उनके गुरु करुवुरुवर का चित्रण करने वाला एक भित्ति चित्र मिला।
    • शिलालेख: इसमें राजराज चोल प्रथम की सैन्य उपलब्धियों, मंदिर अनुदानों और प्रशासनिक आदेशों का विवरण देने वाले शिलालेख हैं।

नटराज प्रतिमा के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • नटराज प्रतिमा भगवान शिव को ब्रह्मांडीय नर्तक के रूप में दर्शाती है, जो ब्रह्मांड के निर्माण, संरक्षण और विनाश का प्रतीक है।
  • ऐतिहासिक उत्पत्ति: नटराज की सबसे प्रारंभिक मूर्तियाँ 5वीं शताब्दी ई. की हैं।
    • यह प्रतिष्ठित और विश्व प्रसिद्ध रूप चोल राजवंश के शासनकाल (9 वीं -13 वीं शताब्दी ई.) के दौरान विकसित हुआ, जो उनकी कलात्मक और सांस्कृतिक उन्नति को दर्शाता है।
  • ब्रह्मांडीय नृत्य: आनंद तांडव (आनंद का नृत्य) के रूप में जाना जाता है, यह ब्रह्मांड की शाश्वत लय, सृजन और विनाश के चक्र और समय के सतत प्रवाह का प्रतिनिधित्व करता है।
  • प्रमुख प्रतीकात्मक विशेषताएँ: 
    • ज्वलंत आभामंडल (आभामंडल): यह ब्रह्मांड और समय, विनाश और नवीकरण के चक्र का प्रतिनिधित्व करता है।
    • डमरू (ऊपरी दाहिना हाथ): डमरू सृष्टि की प्रथम ध्वनि और ब्रह्मांड की लय का प्रतीक है।
    • अग्नि (ऊपरी बायाँ हाथ):अग्नि विनाश का प्रतीक है, जो ब्रह्मांड के अंतहीन चक्र का प्रतीक है।
    • अभयमुद्रा (निचला दाहिना हाथ): आश्वासन और सुरक्षा का एक संकेत, भय को दूर करना।
    • बाएँ हाथ की मुद्रा: इसमें निचला बायाँ हाथ उठे हुए पैर की तरफ इशारा करता है और मोक्ष के मार्ग को दर्शाता है।
    • वामन आकृति: शिव के दाहिने पैर के नीचे छोटी वामन आकृति अज्ञानता एवं अहंकारी व्यक्ति के अहंकार का प्रतीक है।
    • उठा हुआ बायाँ पैर: अनुग्रह और मोक्ष के मार्ग का प्रतिनिधित्व करता है।

  • चोलों का योगदान: चोल कांस्य अपनी उत्कृष्टता, जटिल विवरण और आध्यात्मिक प्रतीकवाद के लिये प्रसिद्ध हैं।
    • इसे कांस्य धातु से बनाया गया है, जो चोल युग के धातुकर्मियों और कलाकारों की विशेषज्ञता को दर्शाता है।
  • मान्यता: नटराज की मूर्ति की प्रतिकृति सर्न (यूरोपीय परमाणु अनुसंधान संगठन) के बाहर स्थापित है, जो भौतिकी में कणों के ब्रह्मांडीय नृत्य का प्रतीक है।

चोल शासन की समुद्री गतिविधि:

  • नौसैनिक शक्ति: चोलों ने एक शक्तिशाली नौसेना का निर्माण किया जो व्यापारिक हितों को बढ़ावा देने के लिये दूर-दूर तक के तटों तक फैली हुई थी।
  • बंदरगाह: प्रमुख बंदरगाहों में मामल्लपुरम (महाबलीपुरम), कावेरीपट्टिनम, नागपट्टिनम, कांचीपुरम, कुलाचल और थूटुकोडी शामिल हैं।
  • दक्षिण-पूर्व एशिया पर आक्रमण: राजा राजेंद्र प्रथम के शैलेन्द्र साम्राज्य (दक्षिण-पूर्व एशिया) पर आक्रमण से मलय प्रायद्वीप, जावा और सुमात्रा चोल नियंत्रण में आ गए।
    • चोलों ने दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ अपने व्यापार को बाधित करने के चीनी प्रयासों को विफल कर दिया।
  • जहाज निर्माण: जहाज़ निर्माण पर एक ग्रंथ, कप्पल सत्तिरम, उनकी उन्नत समुद्री प्रौद्योगिकी पर प्रकाश डालता है।

निष्कर्ष:

राजराज चोल प्रथम के शासनकाल ने सैन्य, सांस्कृतिक और समुद्री उन्नति में एक महत्त्वपूर्ण युग की शुरुआत की। उनके प्रशासनिक, वास्तुशिल्प और नौसैनिक योगदान, साथ ही चोल समुद्री साम्राज्य की वृद्धि, दक्षिण एशिया और उससे आगे, विशेष रूप से व्यापार और सांस्कृतिक संपर्कों को बढ़ावा देने में साम्राज्य के महत्त्वपूर्ण प्रभाव को दर्शाया है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: चोल प्रशासन और उसके स्थानीय प्रशासन के पहलुओं पर चर्चा करें।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. मुरैना के पास स्थित चौसठ योगिनी मंदिर के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)

  1. यह कच्छपघात राजवंश के शासनकाल के दौरान बनाया गया एक गोलाकार मंदिर है। 
  2. यह भारत में निर्मित एकमात्र गोलाकार मंदिर है। 
  3. यह क्षेत्र में वैष्णव पंथ को बढ़ावा देने के लिये था। 
  4. इसके डिज़ाइन ने एक लोकप्रिय धारणा को जन्म दिया है कि भारतीय संसद भवन के पीछे इसकी प्रेरणा थी।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 4
(d) केवल 2, 3 और 4

उत्तर: C


 प्रश्न. भारत ने दक्षिणपूर्वी एशिया के साथ अपने आंरभिक सांस्कृतिक संपर्क तथा व्यापारिक संबंध बंगाल की खाड़ी के पार बना रखे थे। निम्नलिखित में से कौन-सी बंगाल की खाड़ी के इस उत्कृष्ट आरंभिक समुद्री इतिहास की सबसे विश्वसनीय व्याख्या/व्याख्याएं हो सकती है/हैं?

(a) प्राचीन काल तथा मध्य काल में भारत के पास दूसरों की तुलना में अति उत्तम सोत-निर्माण तकनीकी उपलब्ध थी
(b) इस उद्देश्य के लिये दक्षिण भारतीय शासकों ने व्यापारियों, ब्राह्मण पुजारियों और बौद्ध भिक्षुओं को सदा संरक्षण दिया
(c) बंगाल की खाड़ी में चलनेवाली मानसूनी हवाओं ने समुद्री यात्राओं को सुगम बना दिया था
(d) इस संबंध में (a) तथा (b) दोनों विश्वसनीय व्याख्याएँ हैं

उत्तर: (d)


मेन्स

प्रश्न : आरंभिक भारतीय शिलालेखों में अंकित तांडव नृत्य की विवेचना कीजिये। (250 शब्द)

प्रश्न:  मंदिर वास्तुकला के विकास में चोल वास्तुकला का उच्च स्थान है। विवेचना कीजिये। (2013)

प्रश्न: शैलकृत स्थापत्य प्रारंभिक भारतीय कला एवं इतिहास के ज्ञान के अति महत्त्वपूर्ण स्रोतों में से एक का प्रतिनिधित्व करता है। विवेचना कीजिए। (2020)


26/11 की घटना के 16 वर्ष

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय नौसेना, तटरक्षक बल, प्रादेशिक जल, गैरकानूनी गतिविधियाँ रोकथाम अधिनियम, 1967 (UAPA), इंटेलिजेंस ब्यूरो, राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) अधिनियम, 2008, राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG), वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF)

मेन्स के लिये:

आतंकवाद विरोधी उपायों को मज़बूत करना।

स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया

चर्चा में क्यों? 

26 नवंबर, 2008 को पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूह लश्कर-ए-तैयबा ने मुंबई में ताज महल पैलेस होटल, नरीमन हाउस, ओबेरॉय ट्राइडेंट और छत्रपति शिवाजी रेलवे स्टेशन पर हमले किये।

  • इन हमलों से भारत के सुरक्षा ढाँचे में महत्त्वपूर्ण कमजोरियाँ उजागर हुईं, जिससे आतंकवाद-रोधी उपायों में तत्काल सुधार की आवश्यकता है।

26/11 हमलों से भारतीय सुरक्षा की क्या कमजोरियाँ उजागर हुईं?

  • इंटेलिजेंस विफलताएँ: विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों के बीच रियल टाइम इंटेलिजेंस जानकारी साझा करने में विफलता के कारण आतंकवादियों को हमले से पहले बेहतर रणनीति बनाने का अवसर मिला
  • समुद्री सुरक्षा:  
    • तटीय सीमाएँ असुरक्षित: हमलावरों ने एक पाकिस्तानी ध्वज लगे मालवाहक जहाज़ पर सवार होकर एक भारतीय मछली पकड़ने वाले जहाज़ को हाइजैक कर लिया, फिर संदेह उत्पन्न किये बिना भारतीय तटों पर उतरने के लिये इन्फ्लेटेबल बोट/नावों का उपयोग किया।
    • समन्वय का अभाव: भारतीय नौसेना, तटरक्षक बल, समुद्री पुलिस के बीच स्पष्ट कमान और नियंत्रण संरचनाओं की कमी के कारण तटीय क्षेत्रों की सुरक्षा में अक्षमता आई, जिससे वे शोषण के प्रति संवेदनशील हो गए।
  • डिजिटल कमजोरियाँ: डिजिटल प्रचार और ऑनलाइन कट्टरपंथ का मुकाबला करने में भारत की असमर्थता के कारण स्थानीय स्तर पर सैन्य सहायता के माध्यम से समर्थन प्राप्त हुआ
  • विशेष प्रशिक्षण का अभाव\: भारत के सुरक्षा बलों को नए प्रकार के शहरी आतंकवादी हमले से निपटने के लिये पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित नहीं किया गया था, जैसा कि 26/11 की घटनाओं में एक साथ कई स्थलों को निशाना बनाया गया था। 
  • धीमी प्रतिक्रिया: सुरक्षा बलों की ओर से विलंबित प्रतिक्रिया, त्वरित तैनाती और सामरिक समन्वय की कमी के कारण आतंकवादियों को कई घंटों तक टिके रहने का मौका मिल गया। 
  • अपर्याप्त साइबर सुरक्षा उपाय: 26/11 के हमलावरों ने पाकिस्तान में अपने प्रमुखों के साथ लगातार संपर्क में रहने के लिये सैटेलाइट फोन सहित उन्नत संचार उपकरणों का इस्तेमाल किया।

26/11 हमलों के बाद सुरक्षा को मज़बूत करने के लिये क्या कदम उठाए गए?

  • समुद्री सुरक्षा में सुधार: भारतीय तटरक्षक बल को प्रादेशिक जल पर कमान सौंपी गई तथा तट के साथ नए समुद्री पुलिस स्टेशनों के साथ संपर्क स्थापित करने का दायित्व सौंपा गया, जबकि समुद्री सुरक्षा की अंतिम ज़िम्मेदारी भारतीय नौसेना को दी गई।
  • भारतीय नौसेना ने तटीय गश्त और त्वरित प्रतिक्रिया क्षमताओं को बढ़ाने के लिये सागर प्रहरी बल की स्थापना की।
    • समन्वय में सुधार के लिये तटरक्षक, राज्य और केंद्र सरकार की एजेंसियों के सहयोग से सभी राज्यों में नियमित तटीय सुरक्षा अभ्यास आयोजित किये जाते हैं।
    • 20 मीटर से अधिक लंबे सभी जहाज़ों में पहचान और अन्य महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रेषित करने के लिये स्वचालित पहचान प्रणाली (AIS) स्थापित की गई।
  • खुफिया समन्वय: केंद्रीय एजेंसियों, सशस्त्र बलों और राज्य पुलिस के बीच  खुफिया जानकारी साझा करने के समन्वय को बेहतर बनाने के लिये खुफिया ब्यूरो के बहु-एजेंसी केंद्र (MAC) को मज़बूत किया गया।
    • MAC के चार्टर का विस्तार करके इसमें नए क्षेत्रों को शामिल किया गया, जैसे कट्टरपंथ और आतंकवादी नेटवर्क का अधिक प्रभावी ढंग से विश्लेषण करना और उनसे निपटना।
  • संस्थागत उपाय:
    • राष्ट्रीय आतंकवाद निरोधी केंद्र (NCTC) की स्थापना राज्यों में आतंकवाद विरोधी संगठनों सहित अन्य हितधारकों के साथ आतंकवाद विरोधी कार्रवाई के लिये योजनाएँ तैयार करने एवं समन्वय स्थापित करने के लिये की गई थी।
    • अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क एवं सिस्टम (CCTNS) की शुरुआत जाँच, डेटा विश्लेषण, अनुसंधान और नीति निर्माण के उद्देश्य से सभी पुलिस स्टेशनों को एक सामान्य एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर के तहत जोड़ने के लिये की गई थी।
  • नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड (NATGRID) एक एकीकृत आईटी प्लेटफॉर्म है जो देश में अपराध एवं आतंकवादी खतरों से निपटने के लिये क्रेडिट एवं डेबिट कार्ड, कर, दूरसंचार, आव्रजन, एयरलाइंस और रेलवे टिकट, पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस जैसे विभिन्न डेटाबेस से एकत्रित आँकड़ों तक पहुँचने में मदद करता है।
  • कानूनी सुधार: आतंकवादी गतिविधियों के खिलाफ अधिक सक्रिय कदम उठाने के लिये आतंकवाद की परिभाषा को व्यापक बनाने हेतु गैरकानूनी गतिविधियाँ रोकथाम अधिनियम, 1967 (UPA) में संशोधन किया गया
    • राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA) अधिनियम, 2008 को एक संघीय अन्वेषण एजेंसी बनाने के लिये पारित किया गया था, जिसे राज्यों में आतंकवाद के मामलों को संभालने का अधिकार दिया गया था।
  • पुलिस बलों का आधुनिकीकरण: गृह मंत्रालय ने पुलिस थानों को उन्नत करने, उन्हें आधुनिक तकनीक से लैस करने, आतंकवाद जैसी आधुनिक चुनौतियों के लिये अधिकारियों को प्रशिक्षित करने और बेहतर हथियार उपलब्ध कराने के लिये राज्य सरकारों को अधिक धनराशि आवंटित की।
    • सभी पुलिस बलों में  कुशल कमांडो टीमों के गठन पर ज़ोर दिया गया।
    • राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG) ने त्वरित तैनाती के लिये देश भर में चेन्नई, हैदराबाद, कोलकाता और मुंबई में चार क्षेत्रीय केंद्र स्थापित किये।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: 26/11 के हमलों का सबसे बड़ा प्रभाव पश्चिमी देशों, विशेषकर अमेरिका, की सुरक्षा के मामलों में भारत के साथ सहयोग करने की इच्छा थी।
    • अमेरिका ने हमलों के दौरान वास्तविक समय पर सूचना उपलब्ध कराई तथा FBI के माध्यम से अभियोजन योग्य साक्ष्य जुटाने में मदद की, जिससे पाकिस्तान को विश्व स्तर पर अलग-थलग करने में मदद मिली।
    • वर्ष 2018 में, वैश्विक दबाव के कारण पाकिस्तान को FATF की ग्रे सूची में डाल दिया गया, जिससे लश्कर-ए-तैयबा (LeT) और जैश-ए-मुहम्मद (JeM) जैसे आतंकवादी समूहों के खिलाफ कार्यवाही करने पर मज़बूर होना पड़ा।
  • जागरूकता अभियान: इन अभियानों का उद्देश्य स्थानीय लोगों को समुद्री खतरों से उत्पन्न जोखिमों के बारे में संवेदनशील बनाना और उन्हें संदिग्ध गतिविधियों की सूचना देने के लिये प्रोत्साहित करना है।

भारतीय तटीय सुरक्षा में लगातार कमियाँ क्या हैं?

  • निगरानी की चुनौती: भारत की 7517 किमी लंबी तटरेखा, जिसमें मुख्य भूमि (5423 किमी) और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (2094 किमी) शामिल हैं। 
    • विशाल तटरेखा, जिसमें हज़ारों मछली पकड़ने वाली नावें और जलपोत हैं, संभावित खतरों की निगरानी और गश्त करना चुनौतीपूर्ण बना देती है।
  • व्यापक कवरेज का अभाव: 20 मीटर से अधिक लंबाई वाली नौकाओं के लिये स्वचालित पहचान प्रणाली (AIS) स्थापित करने का प्रावधान समुद्री निगरानी के दायरे को सीमित करता है, खासकर तब जब कई छोटी नौकाओं (20 मीटर से कम) का इस्तेमाल तस्करी या घुसपैठ जैसी अवैध गतिविधियों के लिये किया जा सकता है।
  • विविध खतरा परिदृश्य: खतरों की विविध प्रकृति (आतंकवादी हमले, तस्करी और अवैध प्रवासन) सुरक्षा चुनौतियों की जटिलता को उज़ागर करती है।
    • प्रवासी, विशेषकर बांग्लादेश और श्रीलंका से आने वाले, अनजाने में या जानबूझकर सुरक्षा जोखिम पैदा कर सकते हैं।
  • स्थानीय समुदायों पर अत्यधिक निर्भरता: मछुआरे तटीय सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, लेकिन खुफिया जानकारी के लिये केवल उन पर निर्भर रहना जोखिम भरा है, क्योंकि भय, जागरूकता की कमी या अविश्वास के कारण संभावित असहयोग की आशंका है।
  • निम्न बुनियादी ढाँचा: राज्य पुलिस बल अभी भी अपर्याप्त रूप से सुसज्जित और कम प्रशिक्षित हैं तथा निरंतर राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण समग्र समन्वय में बाधा उत्पन्न हो रही है।

आगे की राह

  • निवारण और आक्रामक रणनीतियाँ: सर्जिकल स्ट्राइक और हवाई हमलों सहित सीमा पार आतंकवाद के प्रति भारत की हालिया प्रतिक्रियाओं को भारत की दीर्घकालिक आतंकवाद-रोधी नीति के भाग के रूप में संस्थागत रूप दिया जाना चाहिये। जिसका उद्देश्य निर्णायक रूप से प्रतिक्रिया करने के देश के संकल्प को प्रदर्शित करके आतंकवाद को रोकना हो।
  • बहु-एजेंसी प्रशिक्षण एवं अभ्यास: बहु-एजेंसी अभ्यास के NSG मॉडल (जहाँ विभिन्न सुरक्षा बल एक साथ प्रशिक्षण लेते हैं) को देश भर में बढ़ावा देना चाहिये। 
    • इन अभ्यासों में स्थानीय कानून प्रवर्तन, अर्द्धसैनिक बल एवं खुफिया एजेंसियों को शामिल किया जाना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हमलों के दौरान सभी पक्ष समन्वित कार्रवाई के लिये अच्छी तरह से तैयार रहें।
  • विशेष बलों के साथ समन्वय: स्थानीय पुलिस को किसी हमले की स्थिति में सुचारू समन्वय सुनिश्चित करने हेतु NSG जैसी राष्ट्रीय आतंकवाद-रोधी इकाइयों के साथ घनिष्ठ कार्य संबंध बनाए रखना चाहिये।
  • निर्णयकर्त्ताओं को सशक्त बनाना: विभिन्न स्तरों पर निर्णयकर्त्ताओं (स्थानीय पुलिस से लेकर राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियों तक) को आपात स्थितियों के दौरान शीघ्रता एवं निर्णायक रूप से कार्य करने हेतु सशक्त बनाया जाना चाहिये।
  • शहरी आपदा प्रबंधन योजनाएँ: शहरों में ऐसी आपदा प्रबंधन योजनाएँ होनी चाहिये जिनसे न केवल प्राकृतिक आपदाओं पर बल्कि आतंकवादी हमलों जैसे मानव निर्मित खतरों पर भी ध्यान केंद्रित किया जा सके।
  • साइबर सुरक्षा विशेषज्ञता को बढ़ावा देना: साइबर सुरक्षा में बहु-विषयक प्रशिक्षण को एकीकृत किया जाना चाहिये।
  • 'जागरूक समूहों' का गठन: युवाओं एवं नागरिकों से गठित समुदाय-आधारित 'जागरूक समूहों' द्वारा संदिग्ध गतिविधियों की सूचना देकर तथा वास्तविक समय की खुफिया जानकारी प्रदान करके लोगों एवं सुरक्षा एजेंसियों के बीच के अंतराल को कम किया जा सकता है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: 26/11 के हमलों के बाद आतंकवाद-रोधी क्षमताओं को बढ़ाने के क्रम में भारत की सुरक्षा प्रणाली में क्या सुधार किये गए हैं? 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

मेन्स: 

प्रश्न. आतंकवाद की महाविपत्ति राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये एक गम्भीर चुनौती है। इस बढ़ते हुए संकट का नियंत्रण करने के लिये आप क्या-क्या हल सुझाते हैं? आतंकी निधीयन के प्रमुख स्रोत क्या हैं? (2017)

प्रश्न. डिजिटल मीडिया के माध्यम से धार्मिक मतारोपण का परिणाम भारतीय युवकों का आई.एस.आई.एस. में शामिल हो जाना रहा है। आई.एस.आई.एस. क्या है और उसका ध्येय (लक्ष्य) क्या है? आई.एस.आई.एस. हमारे देश की आंतरिक सुरक्षा के लिये किस प्रकार खतरनाक हो सकता है? (2015)

प्रश्न. कुछ रक्षा विश्लेषक इलेक्ट्रॉनिकी संचार माध्यम द्वारा युद्ध को अलकायदा और आतंकवाद से भी बड़ा खतरा मानते हैं। आप 'इलेक्ट्रॉनिकी संचार माध्यम युद्ध' (Cyber Warfare) से क्या समझते हैं? भारत ऐसे जिन खतरों के प्रति संवेदनशील है उनकी रूपरेखा खींचिये और देश की उनसे निपटने की तैयारी को भी स्पष्ट कीजिये। (2013)