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भारतीय राजनीति

भारत में लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण

  • 12 Oct 2022
  • 15 min read

प्रिलिम्स के लिये:

पंचायती राज संस्थान, 73वाँ और 74वाँ संवैधानिक संशोधन

मेन्स के लिये:

भारत में लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण

चर्चा में क्यों?

भारत में लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण को सुविधाजनक बनाने के लिये 73वें और 74वें संवैधानिक संशोधन अधिनियमों को पारित किये हुए लगभग 30 वर्ष हो गए हैं, लेकिन इस दिशा में वास्तविक प्रगति बहुत कम हुई है।

लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण:

  • विषय:
    • लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण राज्य के संसाधनों और कार्यों पर अधिकार को केंद्र से निचले स्तरों पर निर्वाचित अधिकारियों को स्थानांतरित करने की प्रक्रिया है ताकि शासन में अधिक प्रत्यक्ष नागरिक भागीदारी को प्रोत्साहित किया जा सके।
    • भारतीय संविधान द्वारा परिकल्पित हस्तांतरण केवल प्रत्योजन नहीं है।
    • इसका तात्पर्य यह है कि निर्धारित शासनिक कार्यों को कानून द्वारा औपचारिक रूप से स्थानीय सरकारों को सौंपा जाता है, वित्तीय अनुदान और कर संबंधी उचित अंतरण द्वारा उनकी सहायता की जाती है तथा कर्मचारियों की सुविधा प्रदान की जाती है ताकि उनके पास अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरा करने के लिये आवश्यक साधन हों।
  • संबंधित संवैधानिक प्रावधान:
    • स्थानीय सरकार, जिसमे पंचायत भी शामिल हैं, संविधान के अनुसार राज्य का विषय है, परिणामस्वरूप पंचायतों को शक्ति और अधिकार का हस्तांतरण राज्यों के विवेक पर छोड़ दिया गया है।
    • संविधान कहता है कि पंचायतों और नगरपालिकाओं को हर पाँच साल में चुना जाएगा तथा राज्यों को कानून के माध्यम से कार्यों एवं ज़िम्मेदारियों को हस्तांतरित करने का आदेश दिया जाएगा।
    • भारत में संवैधानिक रूप से पंचायती राज संस्थानों (PRIs) की स्थापना करके 73 वें और 74वें संशोधनों ने पंचायतों एवं नगरपालिकाओं को निर्वाचित स्थानीय सरकारों के रूप में स्थापित करना अनिवार्य कर दिया।
      • इन संशोधनों के द्वारा संविधान में दो नए भाग जोड़े गए, अर्थात् भाग IX शीर्षक "पंचायत" (73 वें संशोधन द्वारा) और भाग IXA शीर्षक "नगर पालिका" (74 वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया)।
    • 11वीं अनुसूची में पंचायतों की शक्तियाँ, अधिकार और ज़िम्मेदारियाँ शामिल हैं।

    • 12वीं अनुसूची में नगर पालिकाओं की शक्तियाँ, अधिकार और ज़िम्मेदारियाँ शामिल हैं।

    • अनुच्छेद 40: ग्राम पंचायत का गठन

स्थानीय निकायों की प्रमुख उपलब्धियाँ:

  • महिला प्रतिनिधित्त्व में बढ़ोतरी:
    • 73वें संशोधन अधिनियम के लागू होने के बाद से निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों का अनुपात लगातार बढ़ रहा है।
    • वर्तमान में भारत में 1 मिलियन निर्वाचित प्रतिनिधियों के साथ 260,512 पंचायतें हैं, जिनमें 1.3 मिलियन महिलाएँ हैं।
    • जबकि संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व केवल 7-8% है। निर्वाचित स्थानीय प्रतिनिधियों में से 49% (ओडिशा जैसे राज्यों में यह 50% को पार कर गया है) महिलाएँ हैं।
  • विभिन्न राज्यों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा का निर्माण:
    • 73वें और 74वें संशोधनों के पारित होने से हस्तांतरण (3 एफ: कोष, कार्य और पदाधिकारी) के संबंध में विभिन्न राज्यों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा पैदा हुई है।
    • उदाहरण:
      • केरल ने अपने 29 कार्य पंचायतों को हस्तांतरित कर दिये हैं।
      • केरल से प्रेरित राजस्थान ने स्वास्थ्य, शिक्षा, महिला और कृषि जैसे कई प्रमुख विभाग पंचायती राज संस्थानों (PRI) को हस्तांतरित किये हैं।
      • इसी तरह बिहार ने "पंचायत सरकार" के विचार को प्रस्तुत किया है और ओडिशा जैसे राज्यों ने महिलाओं के लिये 50% सीटें बढ़ाई हैं।

भारत में स्थानीय निकायों की समस्या:

  • अपर्याप्त निधि: स्थानीय सरकारों को दिया जाने वाला धन उनकी बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये अपर्याप्त होता है।
    • कई प्रकार की शर्तें धन के उपयोग को बाधित करती हैं, जिसमें आवंटित बजट खर्च करने में अनम्यता भी शामिल है।
    • स्थानीय सरकारों की अपने स्वयं के करऔर उपयोगकर्त्ता शुल्कों को बढ़ाने के लिये निवेश क्षमता बहुत कम है।
  • अवसंरचनात्मक चुनौतियाँ:
    • कुछ ग्राम पंचायतों (GPs) के पास अपना भवन नहीं है और वे स्कूलों, आँगनवाड़ी केंद्रों तथा अन्य स्थानों के साथ जगह साझा करते हैं।
      • कुछ के पास अपना भवन है लेकिन शौचालय, पेयजल और बिजली कनेक्शन जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।
    • ग्राम पंचायतों में इंटरनेट कनेक्शन होने के बावजूद कई मामलों में वे काम नहीं कर रहे हैं। किसी भी डेटा प्रविष्टि उद्देश्यों के लिये पंचायत अधिकारियों को ब्लॉक विकास कार्यालयों का दौरा करना पड़ता है जिससे काम में देरी होती है।
  • कर्मचारियों की कमी:
    • स्थानीय सरकारों के पास बुनियादी कार्य करने के लिये भी कर्मचारी नहीं हैं।
    • इसके अलावा अधिकांश कर्मचारियों को उच्च स्तर के विभागों द्वारा काम पर रखा जाता है, जिनको स्थानीय सरकारों में प्रतिनियुक्ति पर रखा जाता है, इसलिये वे ज़िम्मेदारी महसूस नहीं करते हैं और एकीकृत विभागीय प्रणाली के हिस्से के रूप में कार्य करते हैं।
  • असामयिक और विलंबित चुनाव:
    • राज्य अक्सर चुनावों को स्थगित कर देते हैं और स्थानीय सरकारों के लिये पंचवर्षीय चुनावों के संवैधानिक जनादेश का उल्लंघन करते हैं।
  • स्थानीय सरकार की निम्न भूमिका:
    • स्थानीय सरकारें स्थानीय विकास के लिये नीति बनाने वाले निकाय के बजाय केवल कार्यान्वयन मशीनरी के रूप में कार्य कर रही हैं। प्रौद्योगिकी-सक्षम योजनाओं ने उनकी भूमिका को और कम कर दिया है।
  • भ्रष्टाचार:
    • आपराधिक तत्त्व और ठेकेदार स्थानीय सरकार के चुनावों की ओर आकर्षित होते हैं, जो अपने पास उपलब्ध अत्यधिक धन के कारण जनता को लुभाते हैं। इस प्रकार भ्रष्टाचार की शृंखला का निर्माण होता है, जिसमें सभी स्तरों पर निर्वाचित प्रतिनिधियों एवं अधिकारियों के बीच भागीदारी शामिल होती है।
    • हालाँकि यह साबित करने के लिये कोई सबूत नहीं है कि विकेंद्रीकरण के कारण भ्रष्टाचार बढ़ा है।

आगे की राह

  • ग्राम सभाओं का पुनरुद्धार:
    • शहरी क्षेत्रों में ग्राम सभाओं और वार्ड समितियों को वास्तविक रूप में लोगों की भागीदारी के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये पुनर्जीवित करना होगा।
  • संगठनात्मक संरचना को सुदृढ़ बनाना:
    • पर्याप्त जनशक्ति के साथ स्थानीय सरकार के संगठनात्मक ढाँचे को मज़बूत करना होगा।
    • पंचायतों के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने के लिये सहायक और तकनीकी कर्मचारियों की भर्ती तथा नियुक्ति के लिये गंभीर प्रयास किये जाने चाहिये।
  • कराधान हेतु व्यापक तंत्र:
    • स्थानीय स्तर पर कराधान के लिये एक व्यापक तंत्र तैयार किया जाना चाहिये। स्थानीय कराधान के बिना ग्राम पंचायतों को जवाबदेह नहीं ठहराया जा सकता है।
  • वित्तपोषण:
    • पंचायती राज मंत्रालय को यह सुनिश्चित करने के लिये वित्त आयोग के अनुदानों और व्यय की निगरानी करनी चाहिये ताकि अनुदानों की प्राप्ति में देरी न हो।
      • यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि अनुदानों का उचित और प्रभावी तरीके से उपयोग किया जाए।
    • पंचायतों को भी नियमित रूप से स्थानीय लेखापरीक्षा के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये ताकि वित्त आयोग के अनुदान के मामले में देरी न हो।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष प्रश्न  

प्रश्न. संविधान (73वाँ संशोधन) अधिनियम, 1992, जिसका उद्देश्य देश में पंचायती राज संस्थाओं को बढ़ावा देना है, निम्नलिखित में से किसका प्रावधान करता है? (2011)

  1. ज़िला योजना समितियों का गठन।
  2. राज्य चुनाव आयोग सभी पंचायत चुनाव कराएंगे।
  3. राज्य वित्त आयोगों की स्थापना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)

व्याख्या:

  • नगरपालिकाओं से संबंधित 74वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के अनुच्छेद 243ZD में प्रावधान है कि प्रत्येक राज्य ज़िला स्तर पर ज़िला योजना समिति का गठन करेगा, जो समग्र रूप से ज़िले के लिये विकास योजना प्रस्तावित करके पंचायतों और नगरपालिकाओं द्वारा तैयार विकास योजनाओं के समेकन हेतु ज़िम्मेदार होगी। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के अनुच्छेद 243K में कहा गया है कि पंचायतों के सभी चुनावों के लिये निर्वाचक नामावली तैयार करने और उसके संचालन का अधीक्षण, निर्देशन एवं नियंत्रण राज्य चुनाव आयोग में निहित होगा। अत: कथन 2 सही है।
  • 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 का अनुच्छेद 243I कहता है कि प्रत्येक पाँचवें वर्ष की समाप्ति पर राज्यपाल पंचायतों की वित्तीय स्थिति की समीक्षा के लिये एक राज्य वित्त आयोग का गठन करेगा। यह राज्य और पंचायतों के मध्य करों, शुल्क, टोल तथा शुल्क की शुद्ध आय के वितरण एवं संभावित आवंटन/ विनियोग व राज्य की संचित निधि से पंचायतों को सहायता अनुदान के संबंध में राज्यपाल से सिफारिश करेगा। अत: कथन 3 सही है। अतः विकल्प (c) सही है।

प्रश्न. पंचायती राज व्यवस्था का मूल उद्देश्य निम्नलिखित में से किसे सुनिश्चित करना है? (2015)

  1. विकास में जन भागीदारी
  2. राजनीतिक जवाबदेही
  3. लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण
  4. वित्त का संग्रहण

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2 और 4
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: c

व्याख्या:

  • पंचायती राज व्यवस्था का मौलिक उद्देश्य विकास और लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण में लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करना है। अतः कथन 1 और 3 सही हैं।
  • पंचायती राज संस्थाओं की स्थापना स्वतः ही राजनीतिक उत्तरदायित्व की ओर नहीं ले जाती है। अत: कथन 2 सही नहीं है।
  • वित्त का संग्रहण पंचायती राज का मूल उद्देश्य नहीं है, हालाँकि यह वित्त और संसाधनों को ज़मीनी स्तर पर हस्तांतरित करता है। अत: कथन 4 सही नहीं है। अतः विकल्प (c) सही है।

प्रश्न: स्थानीय स्वशासन को एक अभ्यास के रूप में सर्वोत्तम रूप से समझाया जा सकता है। (2017)

(a) संघवाद
(b) लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण
(c) प्रशासनिक प्रतिनिधिमंडल
(d) प्रत्यक्ष लोकतंत्र

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • लोकतंत्र का अर्थ है सत्ता का विकेंद्रीकरण और लोगों को अधिक से अधिक शक्ति प्रदान करना। स्थानीय स्वशासन को विकेंद्रीकरण एवं सहभागी लोकतंत्र के साधन के रूप में देखा जाता है।
  • सामुदायिक विकास कार्यक्रम (1952) और राष्ट्रीय विस्तार सेवा (1953) के कामकाज की जाँच करने तथा उन्हें बेहतर कामकाज हेतु उपाय सुझाने के लिये भारत सरकार ने जनवरी 1957 में बलवंत राय मेहता की अध्यक्षता में एक समिति गठित की।
  • समिति ने नवंबर 1957 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की और 'लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण' की योजना की स्थापना की सिफारिश की, जिसे अंततः पंचायती राज या स्थानीय स्वशासन की इकाई के रूप में जाना जाने लगा। अतः विकल्प (b) सही है।

मेन्स:

प्रश्न. स्थानीय सरकार के एक भाग के रूप में भारत में पंचायत प्रणाली के महत्त्व का आकलन कीजिये। विकास परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिये पंचायतें सरकारी अनुदानों के अलावा किन स्रोतों की तलाश कर सकती हैं? (2018)

स्रोत: द हिंदू

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