भारतीय विरासत और संस्कृति
भगवान शिव की नटराज कलात्मकता
- 12 Sep 2023
- 9 min read
प्रिलिम्स के लिये:नटराज, लुप्त मोम विधि मेन्स के लिये:भारतीय कला विरासत |
स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नई दिल्ली के भारत मंडपम में G-20 देशों के शिखर सम्मेलन में 27 फुट की नटराज की शानदार मूर्ति प्रदर्शित की गई, जो भगवान शिव के नृत्य रूप में विश्व की सबसे ऊँची मूर्ति है।
भारत मंडपम में प्रदर्शित नटराज प्रतिमा की मुख्य विशेषताएँ:
- तमिलनाडु के कारीगरों द्वारा अष्टधातु (आठ धातु मिश्र धातुओं) से तैयार की गई नटराज की इस उल्लेखनीय मूर्ति का वज़न 18 टन है।
- इस मूर्ति को तमिलनाडु के प्रसिद्ध मूर्तिकार स्वामी मलाई के राधाकृष्णन स्टापति ने बनाया है।
- इस नटराज प्रतिमा के डिज़ाइन निर्माण में तीन प्रतिष्ठित नटराज मूर्तियों से प्रेरणा ली गई है: चिदंबरम में थिल्लई नटराज मंदिर, कोनेरीराजपुरम में उमा महेश्वर मंदिर और तंजावुर में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल, बृहदेश्वर (बड़ा) मंदिर। यह भगवान शिव के नृत्य रूप के इतिहास और धार्मिक प्रतीकवाद में गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
- भारत मंडपम में नटराज की मूर्ति लुप्त मोम विधि का उपयोग करके बनाई गई है।
भगवान शिव के नृत्य स्वरूप का इतिहास और धार्मिक प्रतीक:
- शिव की प्राचीन उत्पत्ति:
- हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक शिव की मान्यता प्राचीन यानी वैदिक काल से जुड़ी हैं।
- वैदिक ग्रंथों में शिव के अग्रदूत रुद्र हैं, जो प्राकृतिक तत्त्वों, विशेष रूप से तूफान, गड़गड़ाहट और प्रकृति की देवीय शक्तियों से जुड़े देवता हैं।
- रुद्र प्रारंभ में एक उग्र देवता थे, जो प्रकृति के विनाशकारी पहलुओं का प्रतीक थे।
- नटराज स्वरूप का प्रादुर्भाव:
- नर्तक के रूप में शिव, जिन्हें नटराज के नाम से जाना जाता है, की अवधारणा ने 5वीं शताब्दी ईस्वी के आसपास आकार लेना शुरू किया।
- शिव के नृत्य के शुरुआती चित्रणों ने नटराज रूप से जुड़े बहुआयामी प्रतीकवाद की नींव रखी।
- चोल साम्राज्य में शिव:
- चोल राजवंश (9वीं-11वीं शताब्दी) के शासनकाल के दौरान शिव के नटराज रूप का महत्त्वपूर्ण विकास हुआ।
- कला और संस्कृति के संरक्षण के लिये प्रसिद्ध, चोलों ने नटराज के सांस्कृतिक महत्त्व को आयाम देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- चोल कट्टर शैव थे, जो भगवान शिव की पूजा पर बल देते थे।
- उन्होंने अपने पूरे क्षेत्र में भव्य शिव मंदिरों का निर्माण कराया, जिसमें तंजावुर का बृहदेश्वर मंदिर एक प्रमुख उदाहरण है। उनकी मूर्तियों में शैव आकृतियों पर विशेष ध्यान दिया गया है।
- नटराज प्रतिमा का विकास:
- चोलों के शासनकाल में नटराज का प्रतीकवाद और अधिक जटिल हो गया।
- भगवान शिव पुराणों में एक असाधारण देवता हैं, जो विनाशकारी और तपस्वी दोनों गुणों के प्रतीक हैं।
- 'नृत्य के भगवान' नटराज को उनके 108 विविध नृत्यों के लिये पूजा जाता है। नृत्य करते हुए शिव जीवन के द्वंद्वों को मूर्त रूप देते हुए सृजन और विनाश दोनों से जुड़े हुए हैं।
- इस नृत्य को एक लौकिक नृत्य माना जाता है, जिसमें शिव लौकिक नर्तक के रूप में और संसार एक मंच के रूप में था।
- नटराज के प्रतिष्ठित तत्त्व:
- प्रतिष्ठित अभ्यावेदन में नटराज को एक ज्वलंत ऑरियोल या प्रभामंडल के भीतर चित्रित किया गया है, जो संसार के चक्र का प्रतीक है।
- उनकी लंबी, बिखरी हुई जटाएँ उनके नृत्य की ऊर्जा और गतिशीलता को दर्शाती हैं।
- नटराज को आमतौर पर चार भुजाओं के साथ दिखाया जाता है, प्रत्येक हाथ में प्रतीकात्मक वस्तुएँ होती हैं जिनका गहन अर्थ है।
- नटराज के गुणों में प्रतीकवाद:
- नटराज के ऊपरी दाहिने हाथ में एक डमरू है, जो सभी प्राणियों को अपनी लयबद्ध गति में खींचता है और ऊपरी बाईं भुजा में वह अग्नि को धारण करते हैं, जो ब्रह्मांड तक को नष्ट करने की उनकी शक्ति का प्रतीक है।
- नटराज के एक पैर के नीचे कुचली हुई बौनी जैसी आकृति है, जो भ्रम और सांसारिक विकर्षणों का प्रतिनिधित्व करती है।
- अलंकरण में शिव के एक कान में नर कुंडल है, जबकि दूसरे में नारी कुंडल है।
- यह नर और मादा के संगम का प्रतिनिधित्व करता है और इसे प्रायः अर्धनारीश्वर कहा जाता है।
- शिव की भुजा के चारों ओर एक साँप मुड़ा हुआ है। साँप कुंडलिनी शक्ति का प्रतीक है, जो मानव रीढ़ में सुप्त अवस्था में रहती है। यदि कुंडलिनी शक्ति जाग्रत हो जाए तो व्यक्ति सच्ची चेतना प्राप्त कर सकता है।
- नटराज रक्षक और आश्वस्तकर्ता के रूप में:
- नटराज से जुड़े दुर्जेय प्रतीकवाद के बावजूद वह एक रक्षक के रूप में भी हैं।
- उनके अगले दाहिने हाथ से बनाई गई 'अभयमुद्रा' (भय-निवारण संकेत) भक्तों को आश्वस्त करती है, भय और संदेह से सुरक्षा प्रदान करती है।
- नटराज के उठे हुए पैर और उनके अगले बाएँ हाथ का संकेत उनके पैरों की ओर इशारा करते हुए भक्तों को उनकी शरण में आने के लिये प्रेरित करते हैं।
- नटराज की मुस्कान:
- नटराज की प्रतिमा की विशिष्ट विशेषताओं में से एक उनकी हमेशा से मौजूद व्यापक मुस्कान है।
- फ्राँसीसी इतिहासकार रेनी ग्राउसेट ने नटराज की मुस्कान को "मृत्यु और जीवन, खुशी तथा दर्द दोनों" का प्रतिनिधित्व करने वाले के रूप में खूबसूरती से वर्णित किया है।
लुप्त मोम विधि:
- नई दिल्ली के भारत मंडपम में रखी गई नटराज की मूर्ति जिन मूर्तिकारों ने बनाई, उनका वंश चोलों से 34 पीढ़ी पहले का है।
- इस्तेमाल की जाने वाली क्राफ्टिंग प्रक्रिया पारंपरिक 'लुप्त मोम' कास्टिंग विधि है, जो चोल युग की है।
- लुप्त मोम विधि कम-से-कम 6,000 वर्ष पुरानी है, मेहरगढ़, बलूचिस्तान (पाकिस्तान) में एक नवपाषाण स्थल पर इस विधि का उपयोग करके तैयार किया गया तांबे का ताबीज लगभग 4,000 ईसा पूर्व का है।
- विशेष रूप से मोहनजोदड़ो की डांसिंग गर्ल को भी इसी तकनीक का उपयोग करके तैयार किया गया था।
- लुप्त मोम विधि कम-से-कम 6,000 वर्ष पुरानी है, मेहरगढ़, बलूचिस्तान (पाकिस्तान) में एक नवपाषाण स्थल पर इस विधि का उपयोग करके तैयार किया गया तांबे का ताबीज लगभग 4,000 ईसा पूर्व का है।
- इस विधि में एक विस्तृत वैक्स मॉडल बनाना, उसे जलोढ़ मिट्टी से लेप करना, वैक्स को जलाने के लिये गर्म करना और साँचे को पिघली हुई धातु से भरना शामिल है।
- चोलों ने विस्तृत धातु की मूर्तियाँ बनाने के लिये लुप्त मोम विधि में उत्कृष्टता हासिल की।
- इस तकनीक का उपयोग सहस्राब्दियों से जटिल मूर्तियाँ बनाने के लिये किया जाता रहा है।