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डेली न्यूज़

  • 26 Feb, 2024
  • 67 min read
शासन व्यवस्था

भारत में वित्तीय अंतरण

प्रिलिम्स के लिये:

कर अंतरण, सहायता अनुदान, GST कार्यान्वयन, भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक, 16वाँ वित्त आयोग

मेन्स के लिये:

भारत में राजकोषीय संघवाद की वर्तमान स्थिति

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

भारत के कई राज्यों ने दावा किया कि कर अंतरण (Tax Devolution) की वर्तमान योजना के अनुसार उन्हें अपना उचित हिस्सा प्राप्त नहीं हो रहा है। उनके अनुसार, प्राप्त राशि की तुलना में वे राष्ट्रीय कर पूल में अधिक योगदान करते हैं।

भारत में कर अंतरण की वर्तमान स्थिति क्या है? 

  • परिचय: वित्तीय अंतरण/न्यागमन (Financial devolution) का तात्पर्य केंद्र सरकार से राज्यों को वित्तीय संसाधनों और निर्णय लेने की शक्तियों के अंतरण से है।
  • सांविधानिक ढाँचा: संविधान का अनुच्छेद 270 केंद्र सरकार और राज्यों के बीच निवल कर आय के वितरण की रूपरेखा निर्दिष्ट करता है।
    • प्रत्येक पाँच वर्ष में गठित वित्त आयोग (FC), केंद्र सरकार के विभाज्य करों के पूल {उपकर (Cess ) और अधिभार (Surcharge) के अतिरिक्त} से धन के ऊर्ध्वाधर/विषमस्तरीय (Vertical) वितरण की अनुशंसाएँ करता है।
    • इसके अतिरिक्त यह विभिन्न राज्यों के बीच इन निधियों के समस्तर आवंटन के लिये एक सूत्र प्रदान करता है।
    • करों के आवंटन के अतिरिक्त, राज्यों को वित्त आयोग की अनुशंसा के अनुसार सहायता अनुदान भी प्रदान किया जाता है।
      • डॉ. अरविंद पनगढ़िया की अध्यक्षता में 16वें वित्त आयोग को वर्ष 2026-31 की अवधि के लिये संबद्ध विषय हेतु अनुशंसाएँ करने का कार्य सौंपा गया है।
  • राज्यों के बीच अंतरण के लिये मानदंड: वर्तमान में 15वें वित्त आयोग की अनुशंसा के अनुसार विभाज्य पूल (ऊर्ध्वाधर/विषमस्तरीय अंतरण) में राज्यों की हिस्सेदारी 41% है।

  • राज्यों का योगदान एवं कर-अंतरण:

  • कर अंतरण के संबंध में चिंताएँ: 
    • उपकर और अधिभार का अपवर्जन: कर राजस्व के विभाज्य पूल से उपकर और अधिभार के अपवर्जन को लेकर चिंताएँ जताई गई हैं, जिससे राज्यों के कर राजस्व में हिस्सेदारी में कमी आ रही है।
      • केंद्र सरकार द्वारा एकत्र किया गया उपकर और अधिभार सत्र 2024-25 के लिये उसकी सकल कर प्राप्तियों का लगभग 23% होने का अनुमान है, जो विभाज्य पूल का हिस्सा नहीं है तथा इसलिये राज्यों के साथ साझा नहीं किया जाता है।
    • GST कार्यान्वयन के लिये अपर्याप्त मुआवज़ा: कुछ राज्यों का मानना है कि GST कार्यान्वयन के दौरान राजस्व हानि के लिये मुआवज़ा अपर्याप्त है, वे राजस्व की कमी को दूर करने के लिये एक निष्पक्ष तंत्र का आग्रह कर रहे हैं।
    • निधि उपयोग में लचीलेपन का अभाव: कुछ राज्य स्थानीय प्राथमिकताओं की आपूर्ति के लिये अंतरित निधियों के उपयोग में अधिक लचीलेपन का समर्थन करते हैं।

नोट: 

  • आय असमानता: किसी राज्य की आय और प्रति व्यक्ति उच्चतम आय वाले राज्य के बीच असमानता को संदर्भित करता है।
    • राज्यों के बीच समानता सुनिश्चित करने के लिये प्रति व्यक्ति निम्न आय वाले राज्यों को अधिक हिस्सा मिलता है।
  • जनसंख्या: वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर जनसंख्या गणना का प्रतिनिधित्व करता है। पहले, 14वें वित्त आयोग तक वर्ष 1971 की जनगणना की जनसंख्या पर विचार किया जाता था, लेकिन 15वें वित्त आयोग में यह प्रथा बंद कर दी गई।
  • वन और पारिस्थितिकी: सभी राज्यों में कुल घने वन क्षेत्र की तुलना में प्रत्येक राज्य में घने वन क्षेत्र के समानुपात पर विचार किया जाता है।
  • जनसांख्यिकीय प्रदर्शन: जनसंख्या नियंत्रण में राज्यों के प्रयासों को मान्यता देने के लिये इसे पेश किया गया, जिसमें कम प्रजनन अनुपात वाले राज्यों को उच्च अंक प्राप्त हुए।
  • कर प्रयास: जो राज्य अपनी कर संग्रहण प्रक्रिया में उच्च दक्षता प्रदर्शित करते हैं उन्हें कर प्रयास से पुरस्कृत किया जाता है।

आगे की राह

  • राजकोषीय संघवाद ढाँचे की समीक्षा: अंतरण प्रक्रिया में अंतराल और अक्षमताओं की पहचान करने के लिये राजकोषीय संघवाद ढाँचे की व्यापक समीक्षा करने की आवश्यकता है।
    • इसमें मौजूदा तंत्र की प्रभावशीलता का आकलन करने और सुधारों का प्रस्ताव करने के लिये एक समिति या आयोग की स्थापना शामिल हो सकती है।
  • प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहन: सुशासन, पारदर्शिता और विकास परिणामों जैसे क्षेत्रों में प्रदर्शन संकेतकों के लिये अतिरिक्त अंतरण को जोड़ने से ज़िम्मेदार संसाधन प्रबंधन को प्रोत्साहन मिल सकता है।
  • संस्थानों को सुदृढ़ बनाना: भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (CAG) जैसे सशक्त संस्थान लौटाए गए धन के प्रबंधन में प्रभावी निरीक्षण और जवाबदेही सुनिश्चित कर सकते हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2023)

  1. जनसांख्यिकीय निष्पादन 
  2. वन और पारिस्थितिकी
  3. शासन सुधार
  4. स्थिर सरकार
  5. कर एवं राजकोषीय प्रयास

समस्तर कर-अवक्रमण के लिये पंद्रहवें वित्त आयोग ने उपर्युक्त में से कितने को जनसंख्या क्षेत्रफल और आय के अंतर के अलावा निकष के रूप में प्रयुक्त किया?

(a) केवल दो
(b) केवल तीन
(c) केवल चार
(d) सभी पाँच

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. 13वें वित्त आयोग की अनुशंसाओं की विवेचना कीजिये जो स्थानीय शासन की वित्त-व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिये पिछले आयोगों से भिन्न हैं। (2013)


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत की परमाणु ऊर्जा में निजी निवेश

प्रिलिम्स के लिये:

परमाणु ऊर्जा, भारत के ऊर्जा लक्ष्य, परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE), राष्ट्रीय थर्मल पावर कॉर्पोरेशन (NTPC), परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (AERB)

मेन्स के लिये:

भारत की परमाणु ऊर्जा से संबंधित विकास, भारत की परमाणु ऊर्जा क्षमता बढ़ाने के तरीके।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

भारत निजी कंपनियों को लगभग 26 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश करने हेतु आमंत्रित करके अपने परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में क्रांति लाने के लिये तैयार है, जो इसकी ऊर्जा नीति में एक महत्त्वपूर्ण विस्थापन का प्रतीक है।

  • इस कदम का उद्देश्य गैर-कार्बन उत्सर्जक स्रोतों से विद्युत् ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देना और नवीकरणीय ऊर्जा अपनाने के भारत के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों के साथ संरेखित करना है।

निजी निवेश पहल भारत के ऊर्जा लक्ष्यों के साथ किस प्रकार संरेखित है?

  • भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक अपनी गैर-जीवाश्म ईंधन-आधारित विद्युत उत्पादन क्षमता को मौजूदा 42% से बढ़ाकर 50% करना है।
  • परमाणु ऊर्जा उत्पादन में निजी निवेश का समावेश इस लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देगा, जिससे देश में अक्षय ऊर्जा स्रोतों की ओर संक्रमण को बढ़ावा मिलेगा।
    • सरकार परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में लगभग 440 बिलियन रुपए (5.3 बिलियन डॉलर) के निवेश के लिये रिलायंस इंडस्ट्रीज़, टाटा पाॅवर, अदानी पाॅवर और वेदांता लिमिटेड जैसी प्रमुख कंपनियों के साथ समझौता वार्ता कर रही है।
  • सरकार का लक्ष्य इस निवेश के माध्यम से वर्ष 2040 तक 11,000 MW (मेगावाट) नवीकरणीय परमाणु ऊर्जा उत्पादन क्षमता जोड़ना है।
  • इस पहल से भारत के ऊर्जा मिश्रण में विविधता आने, जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम होने और दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा में वृद्धि की उम्मीद है।

भारत के ऊर्जा लक्ष्य

  • शुद्ध शून्य उत्सर्जन: भारत का लक्ष्य वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन लक्ष्य प्राप्त करना है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा: भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक अपनी 50% विद्युत ऊर्जा, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त करना है।
  • गैर-जीवाश्म ईंधन ऊर्जा: भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 500 गीगावॉट की गैर-जीवाश्म ईंधन ऊर्जा क्षमता प्राप्त करना है।
  • हरित हाइड्रोजन: भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 5 मिलियन टन हरित हाइड्रोजन का उत्पादन करना है।
  • CO2 उत्सर्जन: भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक CO2 उत्सर्जन को 1 बिलियन टन तक कम करना है।

निवेश योजना किस प्रकार क्रियान्वित होगी?

  • निजी कंपनियाँ परमाणु संयंत्रों में निवेश करने, भूमि एवं जल का अधिग्रहण करने और निर्माण गतिविधियों के लिये ज़िम्मेदार होंगी।
  • हालाँकि कानूनी प्रावधानों के अनुसार, परमाणु स्टेशनों के निर्माण, संचालन और प्रबंधन के साथ-साथ ईंधन प्रबंधन का अधिकार राज्य संचालित न्यूक्लियर पाॅवर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL) के पास होगा।
  • निजी कंपनियों को विद्युत ऊर्जा के विक्रय से राजस्व उत्पन्न करने की उम्मीद है, जबकि NPCIL शुल्क के लिये परियोजनाओं का संचालन करेगा।

नोट:

  • भारत की समेकित प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नीति परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में विदेशी निवेश पर रोक लगाती है।
    • इसके विपरीत, परमाणु ऊर्जा संयंत्रों और अन्य संबंधित सुविधाओं के लिये परमाणु उपकरण तथा पार्ट-पुर्जों के निर्माण के लिये उद्योग में FDI पर कोई प्रतिबंध नहीं है।
  • 'परमाणु ऊर्जा' का विषय भारत के परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 द्वारा शासित है और भारत सरकार परमाणु सुविधाओं के विकास, संचालन एवं प्रतिबंध/सेवामुक्ति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
  • हाल ही में नीति आयोग (नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया) पैनल ने भारत सरकार से भारत के परमाणु क्षेत्र में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) की अनुमति देने की अनुशंसा की।

भारत के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?

  • मौजूदा ऊर्जा परिदृश्य:
    • वर्तमान में भारत की कुल संस्थापित ऊर्जा क्षमता 428 गीगावॉट है जिसमें वर्ष 2030 तक 810 गीगावॉट के साथ दोगुना वृद्धि होने की उम्मीद है।
      • भारत के ऊर्जा मिश्रण में परमाणु ऊर्जा का योगदान लगभग 3% है।
  • वर्तमान परमाणु ऊर्जा परिदृश्य:
    • भारत 22 परमाणु ऊर्जा रिएक्टर का संचालन करता है जिनकी कुल क्षमता 6.8 गीगावॉट है जिसका देश के ऊर्जा मिश्रण में लगभग 3% का योगदान है।
    • अतिरिक्त 11 परमाणु ऊर्जा संयंत्र निर्माणाधीन हैं, जिनका लक्ष्य कुल क्षमता में 8,700 मेगावाट की वृद्धि करना है।
    • सरकार ने वर्ष 2031 तक महत्त्वपूर्ण क्षमता विस्तार के लक्ष्य के साथ दस स्वदेशी दाबयुक्त भारी जल रिएक्टर (PHWR) को भी मंज़ूरी दी जिनकी क्षमता 700 मेगावाट है।

  • प्रमुख संगठन और विनियामक ढाँचा:
    • प्रमुख संगठन:
      • परमाणु ऊर्जा विभाग, भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम (NPCIL) और राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम लिमिटेड प्रमुख संगठन हैं जो भारत में परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
        • ये तीनों केंद्र सरकार के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन हैं।
        • सभी परमाणु ऊर्जा संयंत्रों (इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केंद्र (IGCAR), DEA के स्वामित्व वाले PFBR वेरिएंट के आतिरिक्त) का सवामित्व NPCIL के पास और साथ ही यह इन सभी का संचालक भी है। यह भारत में सभी परमाणु व्यवसाय के लिये प्राथमिक संपर्क के रूप में भूमिका निभाता है।
        • NTPC कोयले से विद्युत का उत्पादन करने वाला प्रमुख उत्पादक है और इसकी क्षमता 70GW है तथा यह पुराने कोयला संयंत्रों को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने हेतु परमाणु रिएक्टरों को अपनाने का आह्वान करता है।
    • नियामक निरीक्षण:
      • परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड साइट चयन, निर्माण, संचालन और डीकमीशनिंग सहित परमाणु सुरक्षा तथा नियामक प्रक्रियाओं की देखरेख करता है।
        • AERB का उत्तरदायित्व विभिन्न क्षेत्रों में परमाणु अनुप्रयोगों की देखरेख करने तक विस्तारित है।
  • परमाणु दायित्व और बीमा:
    • भारत ने वर्ष 2016 में परमाणु क्षति के लिये पूरक क्षतिपूर्ति (CSC) पर अभिसमय की पुष्टि की जिससे विश्व में घटित होने वाली परमाणु दुर्घटनाओं के लिये क्षतिपूर्ति व्यवस्था की स्थापना हुई।
    • परमाणुवीय नुकसान के लिये सिविल दायित्‍व अधिनियम (Civil Liability for Nuclear Damage Act- CLND), 2010 संचालकों के लिये देनदारियाँ निर्धारित करता है और संभावित नुकसान की क्षतिपूर्ति के लिये बीमा की अनिवार्यता करता है।
    • भारतीय सामान्य बीमा निगम और अन्य बीमाकर्त्ताओं द्वारा समर्थित भारतीय परमाणु बीमा पूल (INIP), आपूर्तिकर्त्ताओं को देयता दावों से बचाने के लिये 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर का कवरेज प्रदान करता है।
  • चुनौतियाँ:
    • सुरक्षा एवं संरक्षा मानक:
      • भारत के परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की विशेषकर प्राकृतिक अथवा मानव जनित आपदाओं की स्थिति में सुरक्षा की कमी और संरक्षा मानकों के संबंध में आलोचना की जाती है।
      • उन पर रेडियोधर्मी संदूषण, जलवायु परिवर्तन और क्षरण का भी आरोप लगाया जाता है जिससे श्रमिकों का स्वास्थ्य तथा पर्यावरण प्रभावित होता है।
        • उदाहरणार्थ तमिलनाडु में स्थित कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र और कर्नाटक में स्थित कैगा परमाणु ऊर्जा संयंत्र को इन मुद्दों का सामना करना पड़ा।
    • परमाणु अपशिष्ट प्रबंधन:
      • भारत ने अपने परमाणु अपशिष्ट के प्रबंधन और निपटान के लिये कोई व्यापक तथा दीर्घकालिक योजना विकसित नहीं की है। इसके रेडियोधर्मी पदार्थों के लिये पर्याप्त भंडारण और परिवहन सुविधाओं का भी अभाव है।
    • भूमि अधिग्रहण:
      • परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के लिये भूमि सुरक्षित करने में महत्त्वपूर्ण बाधाएँ आती हैं, जिससे कुडनकुलम (तमिलनाडु) और कोव्वाडा (आंध्र प्रदेश) जैसी परियोजनाओं में देरी होती है।
    • सार्वजनिक धन की कमी:
      • जीवाश्म ईंधन और नवीकरणीय ऊर्जा के विपरीत, परमाणु ऊर्जा को पर्याप्त सब्सिडी नहीं मिली है, जिससे यह ऊर्जा बाज़ार में कम प्रतिस्पर्धी हो गई है।
  • विस्तार के अवसर:
    • भारत का लक्ष्य अपने ऊर्जा मिश्रण में परमाणु ऊर्जा की हिस्सेदारी 3% से बढ़ाकर 9-10% करना है।
    • परमाणु क्षेत्र विदेशी और निजी कंपनियों के लिये, विशेष रूप से बिजली संयंत्रों के गैर-परमाणु भागों एवं निर्माण तथा सेवा क्षेत्र में, अवसर प्रदान करता है।
    • स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) प्रौद्योगिकी साझाकरण और साझेदारी की क्षमता के साथ, लागत-बचत तथा निर्माण समय को कम करने का एक आशाजनक अवसर प्रस्तुत करते हैं।
    • परमाणु ऊर्जा ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन और परिवहन क्षेत्र के डीकार्बोनाइजेशन का समर्थन कर सकती है, जिससे इलेक्ट्रिक वाहनों तथा हाइड्रोजन ईंधन कोशिकाओं के लिये एक स्वच्छ ऊर्जा स्रोत प्रदान किया जा सकता है।
    • पुराने कोयला संयंत्रों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के साथ, परमाणु ऊर्जा भारत की बढ़ती ऊर्जा माँगों को पूरा करने और इसके स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में, क्यों कुछ परमाणु रिऐक्टर "आई.ए.ई.ए. सुरक्षा उपायों" के अधीन रखे जाते हैं जबकि अन्य इस सुरक्षा के अधीन नहीं रखे जाते? (2020)

(a) कुछ यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य थोरियम का
(b) कुछ आयातित यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य घरेलू आपूर्ति का
(c) कुछ विदेशी उद्यमों द्वारा संचालित होते हैं और अन्य घरेलू उद्यमों द्वारा
(d) कुछ सरकारी स्वामित्व वाले होते हैं और अन्य निजी स्वामित्व वाले

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • परमाणु सुविधाओं को अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के सुरक्षा उपायों के तहत रखा जाता है यदि यूरेनियम का स्रोत, जो परमाणु रिएक्टर के लिये विखंडनीय सामग्री है, भारतीय क्षेत्र के बाहर से है या यदि नए रिएक्टर संयंत्र विदेशी सहयोग से स्थापित किये गए हैं।
  • यह सुनिश्चित करने हेतु है कि आयातित यूरेनियम को सैन्य उपयोग के लिये नहीं भेजा गया है और यह सुनिश्चित किया गया है कि आयातित यूरेनियम का उपयोग नागरिक उद्देश्यों के लिये परमाणु ऊर्जा उत्पन्न करने हेतु किया जाता है।
  • वर्तमान में 22 परिचालन रिएक्टर हैं, जिनमें से 14 अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के सुरक्षा उपायों के तहत हैं क्योंकि इनमें आयातित ईंधन का उपयोग किया जाता है।
  • सुरक्षा उपाय समझौते के तहत, अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के पास यह सुनिश्चित करने का अधिकार और दायित्व है कि विशेष उद्देश्य के लिये राज्य के क्षेत्र, अधिकार क्षेत्र अथवा नियंत्रण में सभी परमाणु सामग्री पर सुरक्षा उपाय लागू किये जाते हैं।

अतः विकल्प (b) सही उत्तर है।


मेन्स:

प्रश्न. प्रश्न. ऊर्जा की बढ़ती हुई ज़रूरतों के परिप्रेक्ष में क्या भारत को अपने नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम का विस्तार करना जारी रखना चाहिये? नाभिकीय ऊर्जा से संबंधित तथ्यों और भयों की विवेचना कीजिये। (2018)


सामाजिक न्याय

भारत में वरिष्ठ देखभाल सुधार: नीति आयोग

प्रिलिम्स के लिये:

भारत में वरिष्ठ देखभाल सुधार: नीति आयोग, नीति आयोग, वरिष्ठ नागरिक, आयुष्मान भारत

मेन्स के लिये:

भारत में वरिष्ठ देखभाल सुधार: नीति आयोग, भारत के वृद्ध कार्यबल पर चिंताएँ।

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों?

नीति आयोग ने "भारत में नागरिकों की देखभाल में सुधार करना: वरिष्ठ नागरिक देखभाल प्रतिमान की पुनर्कल्पना" शीर्षक से एक स्थिति पत्र जारी किया, जिसमें वरिष्ठ देखभाल पर अधिक ध्यान केंद्रित करने के लिये क्या करने की आवश्यकता है, इस पर कार्रवाई करने का आह्वान किया गया है।

रिपोर्ट की प्रमुख बिंदु क्या हैं?

  • जनसंख्या की आयुर्वृद्धि: 
    • भारत में घटती प्रजनन दर (2.0 से कम) और बढ़ती जीवन प्रत्याशा (70 वर्ष से अधिक) के साथ  वरिष्ठ नागरिकों की संख्या तथा अनुपात में तेज़ी से वृद्धि देखी जा रही है।
    • भारत में वर्तमान में वरिष्ठ नागरिकों की जनसँख्या 10% से कुछ अधिक है, जो लगभग 104 मिलियन है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) के अनुसार, वर्ष 2050 तक यह जनसांख्यिकीय कुल जनसंख्या का 19.5% तक पहुँचने का अनुमान है।
  • प्रमुख निष्कर्ष:
    • जनसांख्यिकी और रुझान: 2011 की जनगणना में वरिष्ठ नागरिक जनसँख्या (60 वर्ष और उससे अधिक आयु) भारत की कुल आबादी का 8.6% थी, जिसमें लगभग 103 मिलियन वरिष्ठ नागरिक थे।
    • स्वास्थ्य स्थिति और चुनौतियाँ: उच्च से निम्न मृत्यु दर की ओर संक्रमण ने बीमारी का एक बड़ा बोझ वृद्ध आबादी पर स्थानांतरित कर दिया है।
      • वर्ष 2011 और वर्ष 2050 के बीच 75 वर्ष तथा उससे अधिक आयु के लोगों की संख्या में आश्चर्यजनक रूप से 340% की वृद्धि होने की उम्मीद है।
    • ग्रामीण शहरी विभाजन: 71% वरिष्ठ नागरिक ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं।
    • जीवन की संतुष्टि: लगभग 32% वरिष्ठ नागरिकों ने कम जीवन की संतुष्टि की सूचना दी है।
  • व्यापक नीति का अभाव:
    • एक महत्त्वपूर्ण चुनौती के रूप में वरिष्ठ देखभाल और सहायता के लिये एक व्यापक, एकीकृत नीति का अभाव है।
    • एक संरचित नीति ढाँचे की कमी के कारण जराचिकित्सा बीमारी प्रबंधन (Geriatric Illness Management) के लिये बुनियादी ढाँचे, क्षमताओं, साक्ष्य-आधारित ज्ञान भंडार और निगरानी तंत्र तथा आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणालियों हेतु सक्षम ढाँचे में अंतर उत्पन्न होता है।
      • भारत में वृद्ध/वरिष्ठ वयस्कों, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिये स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच एक चुनौती हो सकती है।
      • राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफाइल के अनुसार, वर्ष 2017 में ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति 100,000 जनसंख्या पर केवल 43 चिकित्सक थे, जबकि शहरी क्षेत्रों में प्रति 100,000 जनसंख्या पर 118 चिकित्सक थे।
  • चुनौतियाँ और निहितार्थ:
    • जनसंख्या की उम्र बढ़ने की घटना समाज के सभी पहलुओं को प्रभावित करती है और इसके कई स्वास्थ्य, सामाजिक तथा आर्थिक निहितार्थ हैं, जिनमें श्रम एवं वित्तीय बाज़ारों में बदलाव भी शामिल हैं।
      • लॉन्गिट्यूडिनल एजिंग स्टडी ऑफ इंडिया, 2021 की रिपोर्ट में यह बताया गया है कि बुज़ुर्ग आबादी का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा पुरानी बीमारियों, कार्यात्मक सीमाओं, अवसादग्रस्त लक्षणों और कम जीवन की संतुष्टि से पीड़ित है।
        • 75% बुज़ुर्गों को एक या अधिक पुरानी बीमारियाँ हैं।
      • यह बीमारी के बोझ, निर्भरता अनुपात में वृद्धि, विकसित हो रही पारिवारिक संरचनाओं और परिवर्तित उपभोग पैटर्न को बदल देता है।
        • 60 वर्ष से अधिक आयु के हर चौथे भारतीय ने बताया कि उसका स्वास्थ्य खराब है।
      • इसके अलावा इस जनसंख्या वर्ग के लिये चिकित्सा व्यय दोगुने से भी अधिक है क्योंकि वृद्ध लोगों द्वारा अधिक स्वास्थ्य सेवाओं का उपभोग करने की संभावना होती है।
        • भारत में लगभग 20% बुज़ुर्गों को मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ हैं।

रिपोर्ट की प्रमुख सिफारिशें क्या हैं?

  • रिपोर्ट में सशक्तीकरण, सेवा वितरण और उनके समावेशन के संदर्भ में आवश्यक विशिष्ट हस्तक्षेपों को चार प्रमुख क्षेत्रों: स्वास्थ्य, सामाजिक, आर्थिक/वित्तीय और डिजिटल के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है।
    • स्वास्थ्य: वरिष्ठ नागरिकों के साथ-साथ उनकी देखभाल करने वालों के बीच स्वास्थ्य साक्षरता को बढ़ावा देने, मौजूदा स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के भीतर वृद्धावस्था स्वास्थ्य देखभाल को मज़बूत करने और वरिष्ठ नागरिकों के लिये विशेष प्रावधान करके स्वास्थ्य सशक्तीकरण तथा समावेशन प्राप्त किया जा सकता है।
      • इसमें आयुष्मान भारत - आयुष्मान आरोग्य मंदिर (स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र) के माध्यम से व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाएँ होंगी, बुज़ुर्गों की ज़रूरतों पर ध्यान देने के साथ स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करना, टेली-परामर्श सेवाओं का विस्तार करना, बुज़ुर्गों हेतु कुशल कार्यबल को बढ़ाना और मौजूदा कार्यबल की क्षमता निर्माण करना शामिल होगा।
    • सामाजिक: सामाजिक समावेशन एवं सशक्तीकरण सुनिश्चित करने हेतु वरिष्ठ नागरिकों द्वारा अनुभव की जाने वाली ज़रूरतों और चुनौतियों पर बड़े समुदाय को संवेदनशील बनाने के लिये जागरूकता बढ़ाने तथा सहकर्मी सहायता समूहों की स्थापना जैसी विशिष्ट कार्रवाइयों की आवश्यकता है।
      • वरिष्ठ नागरिकों का सशक्तीकरण कानूनी सुरक्षा उपायों और कल्याणकारी योजनाओं के बारे में जागरूकता बढ़ाने एवं मौजूदा भरण-पोषण तथा कल्याण अधिनियम को मज़बूत करने जैसे कानूनी सुधार सुनिश्चित करने से भी संभव होगा।
    • आर्थिक और वित्तीय: वरिष्ठ नागरिकों को फिर से कुशल बनाने, सार्वजनिक धन और बुनियादी ढाँचे के कवरेज को बढ़ाने तथा समर्थ क्षेत्र के लिये अनिवार्य बचत योजनाओं की आवश्यकता है।
      • वरिष्ठ नागरिकों के लिये बाज़ार चल निधि बढ़ाने हेतु रिवर्स मॉर्टगेज (रूपांतरण बंधक) तंत्र व अभिग्रहण में आसानी बढ़ाने और वरिष्ठ नागरिकों को वित्तीय बोझ से बचाने के लिये वरिष्ठ देखभाल उत्पादों पर वस्तु एवं सेवा कर सुधार
      • निजी क्षेत्र को लक्षित और व्यापक वृद्धावस्था स्वास्थ्य बीमा उत्पादों को डिज़ाइन करने के लिये प्रोत्साहित करना।
    • डिजिटल: वरिष्ठ नागरिकों के लिये डिजिटल उपकरणों तक पहुँच में सुधार करने, उन्हें किफायती बनाने, डिजिटल साक्षरता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करने और आधुनिक प्रौद्योगिकी की क्षमता का उपयोग करने की आवश्यकता है।
    • रजत अर्थव्यवस्था: वर्तमान में केवल एक तिहाई से कुछ अधिक (34%) वरिष्ठ नागरिक ही कार्यरत हैं।
      • "रजत अर्थव्यवस्था" अर्थात् वरिष्ठ नागरिकों द्वारा मांग की गई वस्तुओं और सेवाओं द्वारा संचालित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये सरकार की ओर से उचित हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
      • इसके अलावा, कार्य के अवसर जो वरिष्ठ नागरिकों को विभिन्न क्षेत्रों में अपने अनुभव और विशेषज्ञता का उपयोग करने के लिये एक मंच प्रदान कर सकते हैं।

वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल और उम्र बढ़ने से संबंधित पहल क्या हैं?

  • वैश्विक स्तर पर की गई पहल:
    • वियना अंतर्राष्ट्रीय कार्य योजना: यह पहली अंतर्राष्ट्रीय पहल है जिसने उम्र बढ़ने को लेकर विचार-विमर्श की शुरुआत की है।
      • इस योजना को वर्ष 1982 में वर्ल्ड असेंबली ऑन एजिंग द्वारा अपनाया गया था और संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा इसका समर्थन किया गया था।
      • यह बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिये सरकारों एवं नागरिक समाज की क्षमता बढ़ाने का प्रयास करती है, वरिष्ठ नागरिकों की उम्र बढ़ने पर नीतियों और कार्यक्रमों को विकसित करने के लिये एक रूपरेखा के रूप में कार्य करती है।
    • वृद्ध नागरिकों के लिये संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांत: उम्र बढ़ने पर वियना अंतर्राष्ट्रीय योजना के बाद वर्ष 1991 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वृद्ध नागरिकों के लिये संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांतों को अपनाया गया।
    • मैड्रिड इंटरनेशनल प्लान ऑफ एक्शन ऑन एजिंग (MIPAA): वर्ष 2002 में, एजिंग पर सेकंड वर्ल्ड असेंबली ऑन एजिंग ने राजनीतिक घोषणा और मैड्रिड इंटरनेशनल प्लान ऑफ एक्शन ऑन एजिंग (MIPAA) को अपनाया।
      • MIPAA का लक्ष्य "सभी उम्र के नागरिकों के लिये एक समाज का निर्माण करना" है जो विश्व में नागरिकों के उम्र बढ़ने के दृष्टिकोण में एक आदर्श बदलाव का संकेत देती है।
      • इसके अलावा, यह योजना उम्र बढ़ने के मुद्दे को समझने और इनका प्रबंध करने के लिये एक व्यापक रूपरेखा प्रदान करती है।
    • 'स्‍वस्‍थ वृद्धावस्‍था दशक' का सत्र 2021-2030: वर्ष 2020 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सरकारों, नागरिक समाजों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, पेशेवरों, शिक्षाविदों, मीडिया और निजी क्षेत्रों से वृद्ध लोगों, उनके परिवारों तथा जिस समुदाय में वे रहते हैं, उनके जीवन को बेहतर बनाने की दिशा में मिलकर काम करने का आग्रह करते हुए सत्र 2021-2030 को स्वस्थ वृद्धावस्था का दशक' घोषित किया। 
  • भारत सरकार द्वारा की गई पहल:
    • प्रधानमंत्री वय वंदना योजना
      • यह योजना 10 वर्षों के लिये प्रति वर्ष 8% का सुनिश्चित रिटर्न प्रदान करती है।
        • यह योजना भारतीय जीवन बीमा निगम को सरकारी गारंटी के आधार पर सदस्यता राशि से जुड़ी सुनिश्चित पेंशन/रिटर्न के प्रावधान के माध्यम से वरिष्ठ नागरिकों के लिये वृद्धावस्था आय सुरक्षा सक्षम बनाती है।
    • वरिष्ठ नागरिक हेतु एकीकृत कार्यक्रम:
      • इस नीति का मुख्य लक्ष्य वरिष्ठ नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है।
      • इसके तहत उन्हें भोजन, आश्रय, चिकित्सा देखभाल और यहाँ तक कि मनोरंजन के अवसर जैसी विभिन्न बुनियादी सुविधाएँ प्रदान किया जाता है।
    • राष्ट्रीय वयोश्री योजना:
      • यह वरिष्ठ नागरिक कल्याण कोष से वित्त पोषित एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है। इस फंड को वर्ष 2016 में अधिसूचित किया गया था।
      • छोटे बचत खातों, कर्मचारी भविष्य निधि (EPF) और सार्वजनिक भविष्य निधि (PPF) से सभी अघोषित राशि इस फंड में स्थानांतरित कर दी जाती है।
      • इसका उद्देश्य गरीबी रेखा से नीचे (BPL) श्रेणी के वरिष्ठ नागरिकों को सहायता और सहायक जीवन उपकरण प्रदान करना है जो बढ़ती आयु से संबंधित दिव्यांगता जैसे अल्प दृष्टि, श्रवण अक्षमता, दाँत कमज़ोर होना तथा गमन/संचलन संबंधी दिव्यांगता से पीड़ित हैं।
    • संपन्न परियोजना:
      • इसका शुभारंभ वर्ष 2018 में किया गया था। यह दूरसंचार विभाग के पेंशनभोगियों के लिये एक निर्बाध ऑनलाइन पेंशन प्रसंस्करण और भुगतान प्रणाली है।
      • यह पेंशनभोगियों के बैंक खातों में पेंशन का प्रत्यक्ष अंतरण प्रदान करता है।
    • वरिष्ठ नागरिकों के लिये SACRED पोर्टल:
      • यह पोर्टल सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा विकसित किया गया था।
      • 60 वर्ष से अधिक आयु के नागरिक पोर्टल पर पंजीकरण कर सकते हैं और नौकरी तथा कार्य के अवसर प्राप्त कर सकते हैं।
    • एल्डर लाइन: वरिष्ठ नागरिकों के लिये टोल-फ्री नंबर:
      • यह दुर्व्यवहार के मामलों में तत्काल सहायता के साथ-साथ, विशेष रूप से पेंशन, चिकित्सा और विधिक मुद्दों पर जानकारी, मार्गदर्शन तथा भावनात्मक समर्थन प्रदान करता है।
      • यह संपूर्ण देश में सभी वरिष्ठ नागरिकों अथवा उनके शुभचिंतकों को एक मंच प्रदान करने के लिये तैयार किया गया है ताकि वे अपनी चिंताओं को साझा कर सकें और उन समस्याओं के बारे में जानकारी एवं मार्गदर्शन प्राप्त कर सकें जिनका वे प्रतिदिन सामना करते हैं।
    • SAGE (सीनियरकेयर एजिंग ग्रोथ इंजन) पहल:
      • यह पोर्टल भरोसेमंद स्टार्ट-अप के माध्यम से वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल में इस्तेमाल होने वाले उत्पादों और सेवाओं को प्रदान करने वाला "वन-स्टॉप एक्सेस" है। 
      • यह ऐसे व्यक्तियों की मदद करने के उद्देश्य से शुरू किया गया है जो वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल के लिये सेवाएँ मुहैया कराने संबंधी क्षेत्र में रुचि रखने वाले उद्यमियों को सहयोग प्रदान करते हो।
  • वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण के लिये सांविधानिक उपबंध:
    • अनुच्छेद 41: इसके अनुसार राज्य अपनी आर्थिक सामनर्य और विकास की सीमाओं के भीतर, काम पाने के, शिक्षा पाने के तथा बेकारी, बुढ़ापा, बीमारी एवं निःशक्तता तथा अन्य अनर्ह अभाव की दशाओं में लोक सहायता पाने के अधिकार को प्राप्त कराने का प्रभावी उपबंध करेगा।
    • अनुच्छेद 46: यह अनुच्छेद अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य कमज़ोर वर्गों के शैक्षणिक तथा आर्थिक हितों की बढ़ावा देने का प्रावधान करता है। अन्य कमज़ोर वर्गों में वरिष्ठ नागरिक, दिव्यांग आदि शामिल हैं।
    • भारतीय संविधान की 7वीं अनुसूची: राज्य सूची की मद संख्या 9 और समवर्ती सूची की मद 20, 23 तथा 24 वृद्धावस्था पेंशन, सामाजिक सुरक्षा एवं सामाजिक बीमा व आर्थिक तथा सामाजिक योजना से संबंधित है।
    • समवर्ती सूची में प्रविष्टि 24: यह "श्रम के कल्याण से संबंधित है, जिसमें कार्य की शर्तें, भविष्य निधि, श्रमिकों के मुआवज़े के लिये दायित्व, दिव्यांगता और वृद्धावस्था पेंशन तथा मातृत्व लाभ शामिल हैं।

नीति आयोग क्या है?

  • नीति आयोग भारत सरकार का सार्वजनिक नीति के संबंध में शीर्ष विचारक मंडल है।
  • इसने 'सहकारी संघवाद' की भावना को प्रतिध्वनित करते हुये अधिकतम शासन, न्यूनतम सरकार के दृष्टिकोण की परिकल्पना के लिये 'बॉटम-अप' दृष्टिकोण पर ज़ोर देते हुए 1 जनवरी 2015 को योजना आयोग को प्रतिस्थापित किया।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना (IGNOAPS) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2008)

  1. ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों के 60 वर्ष अथवा उससे अधिक आयु के सभी नागरिक इस योजना के पात्र हैं।
  2. इस योजना के तहत केंद्रीय सहायता प्रति लाभार्थी 300 प्रति माह की दर से है। योजना के तहत राज्यों से समतुल्य राशि देने का आग्रह किया गया है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. सुभेद्य वर्गों के लिये क्रियान्वित की जाने वाली कल्याण योजनाओं का निष्पादन उनके बारे में जागरूकता न होने और नीति प्रक्रम की सभी अवस्थाओं पर उनके सक्रिय तौर पर सम्मिलित न होने के कारण इतना प्रभावी नहीं होता है। चर्चा कीजिये। (2019)


भारतीय अर्थव्यवस्था

प्रयोगशाला में निर्मित हीरे

प्रिलिम्स के लिये:

प्रयोगशाला में निर्मित हीरे, प्राकृतिक हीरे, उच्च दाब उच्च तापमान (HPHT) विधि, रासायनिक वाष्प निक्षेपण (CVD) विधि

मेन्स के लिये:

प्रयोगशाला में निर्मित हीरे, भारत में हीरा उद्योग, प्रयोगशाला में निर्मित हीरों के उत्पादन के तरीके।

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

प्रयोगशाला में निर्मित हीरे, जिन्हें सिंथेटिक हीरे के रूप में भी जाना जाता है, पारंपरिक हीरा बाज़ार के लिये एक बाध्यकारी शक्ति के रूप में उभरे हैं।

  • ये रत्न उन्नत तकनीकों का प्रयोग करके प्रयोगशालाओं में बनाए जाते हैं, जिनमें गहन पृथ्वी में हीरे बनाने वाली प्राकृतिक प्रक्रियाओं की नकल किया जाता है।

प्रयोगशाला में निर्मित हीरे क्या हैं?

  • परिचय:
    • प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले हीरों के विपरीत, LGD का निर्माण प्रयोगशालाओं में किया जाता है। हालाँकि दोनों की रासायनिक संरचना और अन्य भौतिक व प्रकाशिक/ऑप्टिकल गुण समान होते हैं।
    • प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले हीरे को बनने में लाखों वर्ष लगते हैं; इनका निर्माण तब होता है जब पृथ्वी के भीतर दबे कार्बन भंडार अत्यधिक उष्मा/ताप और दाब के संपर्क में आते हैं।
  • उत्पादन:
    • इनका निर्माण अधिकतर दो प्रक्रियाओं के माध्यम से किया जाता है: उच्च दाब उच्च तापमान विधि और रासायनिक वाष्प निक्षेपण विधि
    • हीरे को कृत्रिम रूप से विकसित करने की HPHT और CVD दोनों प्रक्रियाएँ एक ‘सीड/बीज’ अर्थात् किसी हीरे के टुकड़े से शुरू होती हैं।
      • HPHT विधि में, सीड को शुद्ध ग्रेफाइट कार्बन के साथ, लगभग 1,500 डिग्री सेल्सियस तापमान और अत्यधिक उच्च दाब में प्रसंस्कृत किया जाता है।
      • CVD विधि में, सीड को कार्बन युक्त गैस से भरे एक सीलबंद कक्ष के अंदर लगभग 800 डिग्री सेल्सियस तक गर्म किया जाता है। गैस का सीड के साथ संघटन हो जाता है, जिससे धीरे-धीरे हीरा का निर्माण होता है।
  • अनुप्रयोग:
    • इनका प्रयोग मशीनों और औजारों में औद्योगिक उद्देश्यों के लिये किया जाता है क्योंकि इनकी कठोरता व अतिरिक्त मज़बूती इन्हें कटर के रूप में प्रयोग के लिये आदर्श बनाती है।
    • शुद्ध सिंथेटिक हीरे का प्रयोग इलेक्ट्रॉनिक्स में उच्च-शक्ति वाले लेज़र डायोड, लेज़र सरणियों और उच्च-शक्ति ट्रांजिस्टर के लिये हीट स्प्रेडर के रूप में किया जाता है।
    • इनका प्रयोग विलासितापूर्ण सौंदर्य प्रयोजनों के लिये भी किया जाता है।
  • महत्त्व:
    • प्रयोगशाला में निर्मित किये गए हीरे का पर्यावरणीय फुटप्रिंट प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले हीरे की तुलना में बहुत कम होता है।
    • पर्यावरण के प्रति जागरूक LGD निर्माता डायमंड फाउंड्री की एक रिपोर्ट के अनुसार, भू-गर्भ से एक प्राकृतिक हीरा निष्कर्षण/खनन में पृथ्वी के ऊपर अर्थात् प्रयोगशाला में हीरा निर्माण की तुलना में दस गुना अधिक ऊर्जा लगती है।
    • विवृत खनन (Open-pit mining), प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले हीरों के खनन की सबसे सामान्य विधि है जिसमें इन कीमती पत्थरों के निष्कर्षण हेतु मृदा और चट्टान में खनन शामिल है।

भारत में प्रयोगशाला में निर्मित हीरों का परिदृश्य क्या है?

  • सूरत: हीरे की कटिंग और पॉलिशिंग का केंद्र
    • वैश्विक हीरा व्यापार में सूरत एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विश्व के लगभग 90% हीरों की कटिंग और पॉलिशिंग सूरत में की जाती है।
  • भारत से प्रयोगशाला में निर्मित हीरे के निर्यात में वृद्धि
    • वर्ष 2019 और वर्ष 2022 के दौरान भारत के प्रयोगशाला में निर्मित हीरे के निर्यात मूल्य में तीन गुना वृद्धि हुई।
    • अप्रैल और अक्तूबर 2023 के बीच निर्यात मात्रा में 25% की वृद्धि हुई जो एक वर्ष पूर्व के समान अवधि में 15% थी।
    • प्रयोगशाला में निर्मित हीरों की उचित कीमत और नैतिक अपील के कारण विश्व स्तर पर इसकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही है।
      • प्रयोगशाला में निर्मित हीरों "रक्त-मुक्त हीरे" (Blood-Free Diamonds) कहा जाता है क्योंकि वे हिंसा और मानवाधिकारों के दुरुपयोग से मुक्त होते हैं।
  • बाज़ार हिस्सेदारी और उद्योग प्रभाव:
    • वैश्विक बाज़ार में प्रयोगशाला में निर्मित हीरों की हिस्सेदारी वर्ष 2018 में 3.5% थी जो वर्ष 2023 में बढ़कर 18.5% हो गई।
      • उद्योग विश्लेषकों के अनुसार वर्ष 2024-25 में इसकी हिस्सेदारी 20% से अधिक होने की संभावना है।
    • इस वृद्धि से भूराजनीतिक चुनौतियों तथा प्राकृतिक हीरों की घटती मांग से जूझ रहे उद्योग को और प्रभावित किया है।

नोट: प्रमुख हीरा उत्पादक देशों में रूस, बोत्सवाना, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य शामिल हैं।

  • रूस विश्व में कच्चे हीरों का सबसे बड़ा उत्पादक है जिसने वर्ष 2022 में लगभग 42 मिलियन कैरेट का खनन किया।

प्राकृतिक हीरे से संबंधित नैतिक चिंताएँ क्या हैं?

  • ब्लड डायमंड (कनफ्लिक्ट डायमंड):
    • कुछ प्राकृतिक हीरों का खनन संघर्ष क्षेत्रों में किया जाता है। ऐसे हीरों को ब्लड डायमंड अथवा कॉन्फ्लिक्ट डायमंड कहा जाता है।
    • इन हीरों के विक्रय से होने वाले लाभ का उपयोग अनैतिक कार्यों में किया जाता है। इनका उपयोग सशस्त्र संघर्षों को वित्तपोषित करने के लिये किया जाता है। इन हीरों का खनन मानवाधिकार हनन से भी संबंधित है। इससे प्रभावित क्षेत्रों में निवासियों को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
  • शोषण और श्रम की स्थिति:
    • कुछ मामलों में प्राकृतिक हीरे की खदानों में श्रमिकों को खराब कामकाजी परिस्थितियों, निम्न वेतन और रोज़गार की सुरक्षा के अभाव का सामना करना पड़ता है।
    • यह शोषण एक सामाजिक मुद्दा है जो चर्चा का विषय बन चुका है।
    • कुछ क्षेत्रों में जहाँ हीरों का खनन किया जाता है बाल श्रम एक चिंता का विषय है।
  • पर्यावरणीय प्रभाव:
    • प्राकृतिक हीरा खनन अपने पर्यावरणीय परिणामों के लिये कुख्यात (Notorious) है।
    • बड़े पैमाने पर खुली खदानों के परिणामस्वरूप वनोन्मूलन, मृदा अपरदन हो सकता है।
    • इन अभ्यासों के परिणामस्वरूप स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र में हानिकारक रसायन भी निकलते हैं। इससे न केवल पर्यावरण बल्कि आस-पास के समुदायों की आजीविका भी प्रभावित होती है।
      • मानव निर्मित हीरे अधिक पर्यावरण के अनुकूल माने जाते हैं क्योंकि वे विनाशकारी खनन प्रथाओं की आवश्यकता को काफी कम कर देते हैं।
  • मनी लॉन्ड्रिंग और भ्रष्टाचार:
    • हीरे के व्यापार को मनी लॉन्ड्रिंग और भ्रष्टाचार से जोड़ा गया है, जो हीरा उत्पादक देशों में सामाजिक तथा आर्थिक विकास को कमज़ोर करता है। इन मुद्दों से निपटने के लिये अधिक पारदर्शिता, जवाबदेही और भ्रष्टाचार विरोधी उपायों की आवश्यकता है।

किम्बर्ली प्रोसेस सर्टिफिकेशन स्कीम (KPCS) क्या है?

  • परिचय:
    • किम्बर्ली प्रोसेस सर्टिफिकेशन स्कीम (KPCS) वर्ष 2003 में स्थापित एक महत्त्वपूर्ण वैश्विक पहल है, जिसका उद्देश्य मुख्यधारा के कच्चे हीरे के बाज़ार में विवादित हीरों के व्यापार को घुसपैठ करने से रोकना है।
    • KPCS यह सुनिश्चित करता है कि वैध आपूर्ति शृंखला में कच्चे हीरे किम्बर्ली प्रोसेस (KP) के अनुरूप हैं।
    • इसे KP भागीदार देशों द्वारा व्यक्तिगत रूप से लागू किया जाता है।
    • KPCS के माध्यम से, राज्य कच्चे हीरों के शिपमेंट पर सुरक्षा उपाय लागू करते हैं और उन्हें "संघर्ष-मुक्त" के रूप में प्रामाणित करते हैं।
    • KPCS की स्थापना फाउलर रिपोर्ट की सिफारिशों के बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा संकल्प 55/56 द्वारा की गई थी।
  • KPCS के बारे में मुख्य तथ्य:
    • KP में दुनिया भर के 85 देशों का प्रतिनिधित्व करने वाले 59 प्रतिभागी भाग ले रहे हैं।
    • KP पर्यवेक्षकों में हीरा उद्योग का प्रतिनिधित्व करने वाली वर्ल्ड डायमंड काउंसिल भी शामिल है।
    • वर्ष 2003 से भारत KPCS प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग ले रहा है और KP के लगभग सभी कार्य समूहों (कारीगर और जलोढ़ उत्पादन (WGAAP) पर कार्य समूह को छोड़कर) का सदस्य है।
      • वाणिज्य विभाग नोडल विभाग है, और
      • रत्न एवं आभूषण निर्यात संवर्द्धन परिषद (Gem & Jewellery Export Promotion Council- GJEPC) को भारत में KPCS आयात और निर्यात प्राधिकरण के रूप में नामित किया गया है।
        • GJEPC, किम्बर्ली प्रोसेस सर्टिफिकेट जारी करने के लिये ज़िम्मेदार है और देश में प्राप्त KP सर्टिफिकेशन का संरक्षक भी है।

प्रयोगशाला में निर्मित हीरे को बढ़ावा देने के लिये सरकारी पहल क्या हैं?

  • पाँच वर्षीय अनुसंधान अनुदान: 
    • केंद्रीय बजट 2023-24 में, सरकार ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (IIT) में से एक के लिये पाँच वर्षीय अनुसंधान अनुदान की घोषणा की। अनुदान का उद्देश्य एलजीडी मशीनरी, बीज और व्यंजनों के स्वदेशी उत्पादन को प्रोत्साहित करना है।
    • यह परियोजना IIT मद्रास को सौंपी गई है और साथ ही वहाँ एक इंडिया सेंटर फॉर लैब-ग्रोन डायमंड (InCent-LGD) स्थापित करने का प्रस्ताव है।
      • इसका लक्ष्य उद्योगों तथा उद्यमियों को तकनीकी सहायता प्रदान करना, रासायनिक वाष्प जमाव (CVD) और उच्च दबाव एवं उच्च तापमान (HPHT) प्रणालियों दोनों के स्वदेशी विनिर्माण को बढ़ावा देना व LGD व्यवसाय का विस्तार करना है।
  • सीमा शुल्क में कटौती: 
    • सरकार ने उत्पादन लागत कम करने एवं प्रयोगशाला में निर्मित हीरों के विकास को प्रोत्साहित करने के लिये प्रयोगशाला में निर्मित हीरे पर सीमा शुल्क कम कर दिया है। इस कटौती का उद्देश्य आयात निर्भरता को कम करने साथ-साथ घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना है।
      • रफ LGDs के लिये हीरों पर शुल्क 5% से घटाकर शून्य कर दिया गया है।
  • सिंथेटिक हीरे के लिये नया टैरिफ:
    • सरकार ने नई टैरिफ लाइनें बनाने का प्रस्ताव देकर एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया है। ये लाइनें सिंथेटिक हीरे समेत विभिन्न उत्पादों की बेहतर पहचान में सहायता करेंगी।
    • इस कदम का प्राथमिक उद्देश्य व्यापार को सुविधाजनक बनाना एवं रियायती आयात शुल्क की पात्रता के संबंध में स्पष्टता प्रदान करना है। विशिष्ट टैरिफ लाइनें बनाकर, सरकार का लक्ष्य प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने साथ-साथ व्यापार से संबंधित मामलों में पारदर्शिता बढ़ाना भी है।

निष्कर्ष

  • प्रयोगशाला में निर्मित हीरे केवल एक चलन नहीं हैं; वे हीरा उद्योग में एक बुनियादी बदलाव का प्रतिनिधित्व भी करते हैं।
  • जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी आगे बढ़ती है एवं उपभोक्ता जागरूकता बढ़ती है, ये चमचमाते रत्न हमारे, हीरों को देखने एवं खरीदने के तरीके को फिर से परिभाषित करते रहते हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से किस विदेशी यात्री ने भारत के हीरों और हीरे की खदानों के बारे में विस्तार से चर्चा की? (2018) 

(a) फ़्रैंकोइस बर्नियर
(b) जीन बैपटिस्ट टेवर्नियर
(c) जीन डी थेवेनॉट
(d) अब्बे बार्थेलेमी कैरे

उत्तर: (b)


मेन्स: 

प्रश्न. विश्व में खनिज तेल के असमान वितरण के बहुआयामी प्रभावों की विवेचना कीजिये।(2021)


भारतीय इतिहास

रानी चेन्नम्मा

प्रिलिम्स के लिये:

रानी चेन्नम्मा, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी, नानू रानी चेन्नम्मा, डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स

मेन्स के लिये:

रानी चेन्नम्मा, स्वतंत्रता संग्राम और इसके विभिन्न चरण एवं देश के विभिन्न हिस्सों से महत्त्वपूर्ण योगदानकर्त्ता अथवा योगदान।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

 ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी कंपनी के विरुद्ध रानी चेन्नम्मा के विद्रोह के 200 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में, भारत में कई सामाजिक समूहों द्वारा 21 फरवरी को एक राष्ट्रीय अभियान, नानू रानी चेन्नम्मा (मैं भी रानी चेन्नम्मा हूँ) का आयोजन किया गया।

  • यह अभियान चेन्नम्मा की स्मृति को याद करके यह दिखाने का प्रयास कर रहा है कि महिलाएँ सम्मान और न्याय की रक्षा में अग्रणी हो सकती हैं। रानी चेन्नम्मा की वीरता देश की महिलाओं के लिये प्रेरणा है।
  • अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिये उनकी कठोर और त्वरित सोच को उनके राज्य की रक्षा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता तथा समर्पण के प्रमाण के रूप में देखा जा सकता है।

रानी चेन्नम्मा कौन थी?

  • परिचय:
    • चेन्नम्मा का जन्म 23 अक्टूबर 1778 को कर्नाटक के वर्तमान बेलगावी ज़िले के एक छोटे से गाँव कागती में हुआ था।
    • 15 वर्ष  की उम्र में उन्होंने कित्तूर के राजा मल्लसर्जा से शादी की, जिन्होंने वर्ष 1816 तक प्रांत पर शासन किया।
    • वर्ष 1816 में मल्लसर्जा की मृत्यु के बाद, उनका सबसे बड़ा पुत्र शिवलिंगरुद्र सरजा सिंहासन पर बैठा। लेकिन ज़्यादा समय नहीं बीता जब शिवलिंगरुद्र का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा।
    • जीवित रखने के लिये कित्तूर को एक अनुमानित उत्तराधिकारी की आवश्यकता थी। फिर भी, चेन्नम्मा ने भी अपना बेटा खो दिया था और साथ ही शिवलिंगरुद्र के पास कोई स्वाभाविक उत्तराधिकारी भी नहीं था।
    • वर्ष 1824 में अपनी मृत्यु से पहले, शिवलिंगरुद्र ने उत्तराधिकारी के रूप में एक बच्चे, शिवलिंगप्पा को गोद लिया था। हालाँकि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने 'व्यपगत के सिद्धांत' के तहत शिवलिंगप्पा को राज्य के उत्तराधिकारी के रूप में मान्यता देने से इनकार कर दिया। 
      • उक्त सिद्धांत के तहत, नैसर्गिक उत्तराधिकारी न होने की दशा में संबद्ध रियासत का पतन हो जाएगा और कंपनी द्वारा उस पर कब्ज़ा कर लिया जाएगा।
    • धारवाड़ के ब्रिटिश अधिकारी जॉन थैकेरी ने अक्तूबर 1824 में कित्तूर पर हमला किया।
  • अंग्रेज़ों के विरुद्ध युद्ध:
    • कर्नाटक की पूर्व रियासत पर आक्रमण करने के उद्देश्य से वर्ष 1824 में, 20,000 ब्रिटिश सैनिकों का एक बेड़ा कित्तूर किले की तलहटी में तैनात हुआ।
    • परंतु रानी चेन्नम्मा ने उनक सामना किया और अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिये एक ब्रिटिश अधिकारी को मार डाला।
    • मार्शल आर्ट और सैन्य रणनीति में प्रशिक्षित, वह एक दुर्जेय नेता थीं।
    • उन्होंने ब्रिटिश सेना का सामना करने के लिये गुरिल्ला युद्ध रणनीति अपनाकर युद्ध में अपनी सेना का नेतृत्व किया।
      • यह संघर्ष कई दिनों तक जारी रहा किंतु अंततः अपने बेहतर हथियारों के परिणामस्वरूप अंग्रेज़ विजयी हुए।
  • विरासत:
    • बैलहोंगल किले (बेलगावी, कर्नाटक) में रानी चेन्नम्मा को कैद कर लिया गया किंतु उनकी हौसला अटूट रहा।
    • उनके विद्रोह ने अनगिनत लोगों को ब्रिटिश शासन के विरुद्ध युद्ध करने के लिये प्रेरित किया। वह साहस और अवज्ञा का प्रतीक बन गईं।
    • वर्ष 2007 में भारत सरकार ने उनके नाम पर एक डाक टिकट जारी कर उन्हें सम्मानित किया।
    • रानी चेन्नम्मा को एक रक्षक और संरक्षक के रूप में प्रदर्शित करते हुए कई कन्नड़ लावणी अथवा लोक गीत गाए जाते हैं।
      • लावणी एक जीवंत और अभिव्यंजक लोक कला है जिसकी जड़ें महाराष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत में निहित हैं, लेकिन इसे कर्नाटक के कुछ हिस्सों में भी जगह मिली है।  "लावणी" शब्द मराठी शब्द "लावण्या" से लिया गया है, जिसका अर्थ है सुंदरता।
      • लावणी पारंपरिक गीत और नृत्य का एक संयोजन है, जो एक ताल वाद्य यंत्र ढोलकी की लयबद्ध ताल पर प्रस्तुत किया जाता है।

व्यपगत का सिद्धांत क्या है?

  • यह एक विलय नीति थी जिसका पालन लॉर्ड डलहौज़ी ने व्यापक रूप से किया था जब वह वर्ष 1848 से 1856 तक भारत का गवर्नर-जनरल था।
  • इसके अनुसार, कोई भी रियासत जो ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष नियंत्रण में थी, जहाँ शासक के पास कोई कानूनी पुरुष उत्तराधिकारी नहीं था, उसे कंपनी द्वारा कब्ज़ा कर लिया जाएगा।
    • इसके अनुसार, भारतीय शासक के किसी भी दत्तक पुत्र को राज्य का उत्तराधिकारी घोषित नहीं किया जा सकता था।
  • व्यपगत के सिद्धांत को लागू करके, डलहौज़ी ने निम्नलिखित राज्यों पर कब्ज़ा कर लिया:
    • सतारा (1848 ई.), जैतपुर, और संबलपुर (1849 ई.), बघाट (1850 ई.), उदयपुर (1852 ई.), झाँसी (1853 ई.) तथा नागपुर (1854 ई.)।

निष्कर्ष

  • कित्तूर रानी चेन्नम्मा का विद्रोह भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्त्वपूर्ण अध्याय बना हुआ है। उनका दृढ़ नेतृत्व और धैर्य एक प्रेरणा है कि अत्यंत कठिन परिस्थितियों में भी वीरता की जीत हो सकती है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. महारानी विक्टोरिया की उद्घोषणा (1858) का उद्देश्य क्या था? (2014)

  1. भारतीय राज्यों को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाने के किसी भी विचार का परित्याग करना
  2. भारतीय प्रशासन को ब्रिटिश क्राउन के अंतर्गत रखना 
  3. भारत के साथ ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापार का नियमन करना

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)

व्याख्या:

  • ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स जैसी नीतियों के कारण 1857 के विद्रोह का उद्देश्य रियासतों पर कब्ज़ा करना था, अवध, झाँसी और नागपुर जैसी कई प्रभावशाली रियासतों तथा कुँवर सिंह जैसे प्रभावशाली ज़मींदारों ने ब्रिटिश नीतियों को अपनी स्वतंत्रता में घुसपैठ के रूप में देखा। रियासतों के डर को दूर करने और विद्रोही सिपाहियों के समर्थन समूह (अर्थात् असंतुष्ट रियासतों के शासकों) समाप्त करने हेतु वर्ष 1858 की उद्घोषणा ने रियासतों के संबंध में ब्रिटिश स्थिति को स्पष्ट किया। अतः कथन 1 सही है।
  • वर्ष 1858 की उद्घोषणा ने ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन को समाप्त कर दिया और भारतीय प्रशासन को ब्रिटिश क्राउन के अधीन कर दिया। अत: कथन 2 सही है।

मेन्स:

प्रश्न. आयु, लिंग तथा धर्म के बंधनों से मुक्त होकर, भारतीय महिलाएँ भारत के स्वाधीनता संग्राम में अग्रणी बनी रही। विवेचना कीजिये। (2013)


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