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सामाजिक न्याय

भारत में बुढ़ापा: बुजुर्गों की स्थिति

  • 19 Sep 2022
  • 16 min read

यह एडिटोरियल 15/09/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “The future of old times in India” लेख पर आधारित है। इसमें भारत की वृद्ध आबादी की स्थिति और संबंधित मुद्दों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ:

राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग (National Commission on Population) के अनुसार, भारत की जनसंख्या में वृद्ध जनों की हिस्सेदारी वर्ष 2011 में लगभग 9% थी जो वर्ष 2036 तक 18% तक पहुँच सकती है। यदि भारत निकट भविष्य में वृद्ध जनों के लिये जीवन की अच्छी गुणवत्ता सुनिश्चित करना चाहता है तो इसके लिये योजना निर्माण और उसका क्रियान्वन अभी से ही शुरू कर देना चाहिये।

भारत में जीवन प्रत्याशा (Life expectancy) स्वतंत्रता के समय से अभी तक बढ़कर दोगुनी से अधिक हो गई है (1940 के दशक के अंत में लगभग 32 वर्ष से बढ़कर वर्तमान में 70 वर्ष)। दुनिया के कई देशों ने इससे बेहतर प्रदर्शन किया है, लेकिन फिर भी यह भारत की ऐतिहासिक उपलब्धि है।

इसी अवधि में देश की प्रजनन दर (Fertility Rate) प्रति महिला लगभग छह बच्चों से घटकर केवल दो रह गई है, जिससे महिलाओं को बार-बार प्रसव से गुज़रने और बच्चे की देखभाल करने की बेड़ियों से कुछ मुक्ति मिली है। ये सब बातें सकारात्मक हैं, लेकिन इसके साथ ही एक नई चुनौती भी उभरी है जो है जनसंख्या की वृद्धावस्था।

वृद्ध होती आबादी से संबद्ध समस्याएँ

  • सामाजिक:
    • औद्योगीकरण, शहरीकरण, तकनीकी और प्रौद्योगिकीय परिवर्तन, शिक्षा और वैश्वीकरण के प्रभाव में भारतीय समाज तीव्र रूपांतरण के दौर से गुज़र रहा है।
    • इसके साथ ही, पारंपरिक मूल्य और संस्थाएँ क्षरण एवं अनुकूलन की एक प्रक्रिया से गुज़र रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप अंतर-पीढ़ी संबंध (intergenerational ties) कमज़ोर हुए हैं जो पारंपरिक परिवार की पहचान होते थे।
    • औद्योगीकरण ने साधारण पारिवारिक उत्पादन इकाइयों को बड़े पैमाने पर उत्पादन और कारखाने से प्रतिस्थापित कर दिया है।
    • अन्य समस्याएँ:
      • बच्चों द्वारा अपने वृद्ध माता-पिता की अनदेखी।
      • सेवानिवृत्ति के कारण निराशा।
      • वृद्ध जनों में शक्तिहीनता, अकेलापन, बेकारी और अलगाव की भावना।
      • पीढ़ीगत अंतराल।
  • वित्तीय:
    • वृद्धों की सेवानिवृत्ति और बुनियादी आवश्यकताओं के लिये संतान पर निर्भरता।
    • रोग/उपचार पर जेबी खर्च में अचानक वृद्धि होना।
    • ग्रामीण क्षेत्रों से युवा कामकाजी आयु के व्यक्तियों के प्रवासन का वृद्धों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है जहाँ वे अकेले या अपने वृद्ध जीवनसाथी के साथ आमतौर पर अभाव एवं संकट में रहने को विवश होते हैं।
    • अपर्याप्त आवास सुविधा।
      • ‘हेल्पएज इंडिया’ एनजीओ द्वारा किये गए एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण से उजागर हुआ कि कम से कम 47% वृद्ध जन आय के लिये अपने परिवारों पर आर्थिक रूप से निर्भर हैं और 34% पेंशन एवं सरकारी नकद हस्तांतरण पर निर्भर हैं, जबकि सर्वेक्षण में शामिल 40% लोगों ने ‘जब तक संभव हो’ तब तक कार्य करते रहने की इच्छा प्रकट की।
  • स्वास्थ्य:
    • उनमें अंधापन, चलने-फिरने में अक्षमता और बहरापन जैसी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ आम रूप से पाई जाती हैं।
    • उनमें सेनिलिटी (senility) और न्यूरोसिस (neurosis) से उत्पन्न होने वाले मानसिक विकार देखे जाते हैं।
      • सेनिलिटी वृद्धावस्था के कारण मानसिक क्षमता के कम होने की स्थिति है, जबकि न्यूरोसिस कार्यात्मक मानसिक विकारों का एक वर्ग है जिसमें क्रोनिक डिस्ट्रेस शामिल है, लेकिन भ्रम या मतिभ्रम नहीं होता।
    • ग्रामीण क्षेत्रों के अस्पतालों में वृद्धावस्था देखभाल सुविधाओं का अभाव।
      • हाल के एक सर्वेक्षण के अनुसार 30% से 50% बुजुर्गों में ऐसे लक्षण मौजूद थे जो उन्हें अवसाद का शिकार बनाते हैं। अकेले रहने को विवश वृद्ध लोगों में एक बड़ी संख्या महिलाओं की है, विशेष रूप से विधवा महिलाएँ।
      • अवसाद का गरीबी, खराब स्वास्थ्य और अकेलेपन से गहरा संबंध देखा गया है।

भारत की सामाजिक सहायता योजना 

  • परिचय:
  • योजना से संबद्ध मुद्दे:
    • बहिर्वेशन की संभावना:
      • NSAP के लिये पात्रता ‘गरीबी रेखा से नीचे’ (BPL) के परिवारों तक ही सीमित है, जबकि BPL सूचियाँ बेहद पुरानी एवं अविश्वनीय हैं। उनमें से कुछ सूचियाँ तो 20 वर्ष तक पुरानी हैं।
      • जहाँ तक वृद्धावस्था पेंशन की बात है, किसी भी मामले में लक्ष्यीकरण एक अच्छा विचार नहीं है क्योंकि BPL सूचियों में बहिर्वेशन की बड़ी त्रुटियाँ मौजूद हैं।
      • इसके अलावा, लक्ष्यीकरण व्यक्तिगत संकेतकों के बजाय परिवार पर आधारित होता है।
      • हालाँकि, एक विधवा महिला या कोई वृद्ध व्यक्ति अपेक्षाकृत संपन्न घरों में भी वृहत अभाव का शिकार हो सकते हैं।
    • जटिल औपचारिकताएँ:
      • लक्ष्यीकरण BPL प्रमाणपत्र और अन्य दस्तावेज जमा करने जैसी जटिल औपचारिकताओं को संलग्न करने की प्रवृत्ति रखता है। निश्चित रूप से NSAP पेंशन के साथ तो यही अनुभव रहा है।
      • ये औपचारिकताएँ विशेष रूप से कम आय या कम शिक्षा वाले वृद्ध व्यक्तियों के लिये वंचनाकारी हो सकती हैं, जबकि उन्हें ही पेंशन की सबसे बड़ी आवश्यकता होती है।
      • इसके अलावा, जब छूट गए संभावित पात्र व्यक्तियों की सूची स्थानीय प्रशासन को प्रस्तुत की गई तो बहुत कम लोगों को पेंशन के लिये अनुमोदित किया गया, जो पुष्टि करता है कि वृद्ध जनों को वर्तमान योजना में कई प्रत्यास्थी बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है।
    • गतिहीन योगदान:
      • NSAP के तहत वृद्धावस्था पेंशन में केंद्रीय योगदान वर्ष 2006 से ही 200 रुपए प्रति माह (विधवाओं के लिये 300 रुपए प्रति माह) की मामूली राशि पर गतिहीन बना रहा है।
      • दूसरी ओर, कई राज्यों ने अपने स्वयं के धन और योजनाओं के माध्यम से NSAP मानदंडों से परे सामाजिक सुरक्षा पेंशन की कवरेज और/या राशि में वृद्धि की है।
      • कुछ राज्यों ने तो विधवाओं और वृद्ध व्यक्तियों के लिये लगभग सार्वभौमिक (लगभग 75%-80%) कवरेज भी हासिल कर लिया है।

अन्य संबंधित योजनाएँ:

  • प्रधानमंत्री वय वंदना योजना (PMVVY):
    • यह भारत सरकार द्वारा विशेष रूप से 60 वर्ष और उससे अधिक आयु के वरिष्ठ नागरिकों के लिये घोषित एक पेंशन योजना है।
    • इस योजना को अब वर्ष 2020 से आगे तीन वर्ष की अवधि के लिये (वर्ष 2023 तक) बढ़ा दिया गया है।
  • वृद्ध व्यक्तियों के लिये एकीकृत कार्यक्रम (Integrated Program for Older Persons- IPOP):
  • इस नीति का मुख्य लक्ष्य वरिष्ठ नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाना है।
  • भोजन, आश्रय, चिकित्सा देखभाल जैसी बुनियादी आवश्यकताएँ और यहाँ तक कि मनोरंजन के अवसर प्रदान कर इस उद्देश्य की पूर्ति की जाती है।
  • राष्ट्रीय वयोश्री योजना:
    • यह वरिष्ठ नागरिक कल्याण कोष (Senior Citizens’ Welfare Fund) से वित्तपोषित केंद्रीय क्षेत्र की योजना है। इस कोष को वर्ष 2016 में अधिसूचित किया गया था।
      • लघु बचत खातों, PPF और EPF से सभी दावारहित राशियों को इस कोष में स्थानांतरित कर दिया जाता है।
    • यह BPL की श्रेणी के उन वरिष्ठ नागरिकों को सहायता और सहायक उपकरण प्रदान करने का लक्ष्य रखता है जो क्षीण दृष्टि, श्रवण दोष, दाँतों की क्षति और चलने-फिरने में व्यवधान जैसी आयु संबंधी अक्षमताओंसे पीड़ित हैं।
  • संपन्न परियोजना (SAMPANN Project):
    • संपन्न/SAMPANN (सिस्टम फॉर अकाउंटिंग एंड मैनेजमेंट ऑफ पेंशन) परियोजना को वर्ष 2018 में लॉन्च किया गया था। यह दूरसंचार विभाग के पेंशनभोगियों के लिये एक सहज ऑनलाइन पेंशन प्रसंस्करण और भुगतान प्रणाली है।
    • यह पेंशनभोगियों के बैंक खातों में पेंशन का सीधा क्रेडिट प्रदान करता है।
  • बुजुर्गों के लिये ‘SACRED’ पोर्टल:
    • ‘सीनियर एबल सिटीज़न फॉर रि-एम्प्लॉयमेंट इन डिग्निटी’- SACRED पोर्टल को सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा विकसित किया गया है।
    • 60 वर्ष से अधिक आयु के नागरिक इस पोर्टल पर पंजीकरण करा सकते हैं और रोज़गार एवं कार्य अवसर की मांग कर सकते हैं।
  • एडल्ट लाइन- वृद्ध जनों के लिये टोल-फ्री नंबर:
    • यह उत्पीड़न के मामलों में तत्काल सहायता करने के अलावा विशेष रूप से पेंशन, चिकित्सा और कानूनी मुद्दों परवृद्ध व्यक्तियों को सूचना, मार्गदर्शन, भावनात्मक समर्थन प्रदान करता है।
    • यह सभी वरिष्ठ नागरिकों या उनके शुभचिंतकों को देश भर में एक मंच प्रदान करने के लिये तैयार किया गया है ताकि वे अपनी चिंताओं को समवेत एवं साझा कर सकें और उन समस्याओं के बारे में जानकारी एवं मार्गदर्शन प्राप्त कर सकें जिनका उन्हें दिन-प्रतिदिन सामना करना पड़ता है।
  • सीनियर केयर एजिंग ग्रोथ इंजन (SAGE) इनिशिएटिव:
    • सेज पोर्टल (SAGE Portal) विश्वसनीय स्टार्ट-अप्स के माध्यम से वृद्ध व्यक्तियों हेतु देखभाल उत्पादों और सेवाओं का ‘वन-स्टॉप एक्सेस’ है।
    • यह ऐसे व्यक्तियों की मदद करने के उद्देश्य से शुरू किया गया है जो वृद्ध जनों की देखभाल के लिये सेवाएँ प्रदान करने के क्षेत्र में उद्यमिता करने में में रुचि रखते हैं।

आगे की राह

  • निराश्रिता और अभाव से सुरक्षा:
    • वृद्ध व्यक्तियों के लिये एक सम्मानजनक जीवन की दिशा में पहला कदम यह होगा कि उन्हें निराश्रिता (destitution) और इससे संबंधित अभावों से बचाया जाए।
    • पेंशन के रूप में नकद राशि प्रदान करना कई स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने और अकेलेपन से बचने में मदद कर सकता है।
    • यही कारण है कि वृद्धावस्था पेंशन दुनिया भर में सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों का एक महत्त्वपूर्ण अंग है।
  • अग्रणी राज्यों का अनुकरण करना:
    • भारत के दक्षिणी राज्यों और ओडिशा एवं राजस्थान जैसे अपेक्षाकृत गरीब राज्यों ने लगभग सार्वभौमिक (near-universal) सामाजिक सुरक्षा पेंशन की स्थिति हासिल कर ली है। उनके ये प्रयास अनुकरणीय हैं।
    • यदि केंद्र सरकार NSAP में सुधार करे तो सभी राज्यों के लिये ऐसा करना अत्यंत सरल हो जाएगा।
  • पेंशन योजनाओं में सुधार पर ध्यान केंद्रित करना:
    • सामाजिक सुरक्षा पेंशन में सुधार लाना एक अन्य महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है।
    • वृद्ध जनों को स्वास्थ्य देखभाल, विकलांगता सहायता, दैनिक कार्यों में सहायता, मनोरंजन के अवसर और एक अच्छे सामाजिक जीवन जैसी अन्य सहायता एवं सुविधाओं की भी आवश्यकता होती है।
  • पारदर्शी ‘बहिर्वेशन मानदंड’:
    • एक बेहतर दृष्टिकोण यह होगा कि एक सरल एवं पारदर्शी ‘बहिर्वेशन मानदंड’ के तहत सभी विधवाओं और वृद्ध या विकलांग व्यक्तियों को पात्र के रूप में देखा जाए।
    • पात्रता को स्वघोषणा-आधारित भी बनाया जा सकता है जहाँ स्थानीय प्रशासन या ग्राम पंचायत पर यह उत्तरदायित्व रहे कि वह इसका समयबद्ध सत्यापन करे।
    • यद्यपि इस बात की संभावना होगी कि संपन्न परिवार भी इसका गलत लाभ उठा रहे होंगे, लेकिन बड़े पैमाने पर बहिर्वेशन त्रुटियों को बनाए रखने से बेहतर होगा कि कुछ समावेशन त्रुटियों को समायोजित कर लिया जाए।

अभ्यास प्रश्न: भारत की आबादी में वृद्धों की हिस्सेदारी तेज़ी से बढ़ रही है और वर्ष 2036 तक यह 18% तक पहुँच सकती है। निकट भविष्य में वृद्ध जनों को जीवन की अच्छी गुणवत्ता प्रदान करने के लिये क्या किया जा सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

मेन्स:

प्र. नीति प्रक्रिया के सभी चरणों में उनकी जागरूकता और सक्रिय भागीदारी के अभाव के कारण कमज़ोर वर्गों के लिये लागू की गई कल्याणकारी योजनाओं का प्रदर्शन इतना प्रभावी नहीं है - चर्चा कीजिये। (2019)

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