डेली न्यूज़ (24 Sep, 2024)



छठा क्वाड शिखर सम्मेलन 2024

प्रिलिम्स के लिये:

क्वाड, महामारी, हिंद-प्रशांत राष्ट्र, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में प्रशिक्षण के लिये समुद्री पहल (MAITRI), हिंद-प्रशांत समुद्री क्षेत्र जागरूकता भागीदारी (IPMDA), डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना, बंदरगाह, सुनामी, क्वाड-प्लस।

मेन्स के लिये:

हिंद-प्रशांत देशों की स्थिरता एवं समृद्धि के लिये क्वाड देशों की बहुआयामी पहल।

स्रोत: पीआईबी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका के डेलावेयर में छठा क्वाड शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया। यह चौथा व्यक्तिगत क्वाड लीडर्स शिखर सम्मेलन था।

  • क्वाड द्वारा साझेदारों को महामारी और बीमारी से निपटने, जलवायु परिवर्तन के खतरे का सामना करने, साइबर सुरक्षा को मज़बूत करने आदि में मदद करने के क्रम में महत्त्वाकांक्षी परियोजनाओं का नेतृत्व किया जा रहा है।

छठे क्वाड शिखर सम्मेलन की मुख्य बातें क्या हैं?

  • स्वास्थ्य:
    • क्वाड स्वास्थ्य सुरक्षा साझेदारी (QHSP): QHSP को वर्ष 2023 में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्वास्थ्य सुरक्षा समन्वय बढ़ाने के लिये क्वाड द्वारा शुरू किया गया था।
      • गर्भाशय-ग्रीवा कैंसर के उपचार के लिये क्वाड कैंसर मूनशॉट जैसी नई पहल की घोषणा की गई है।
    • महामारी संबंधी तैयारी: संयुक्त राज्य अमेरिका ने चौदह हिंद-प्रशांत देशों में संक्रामक रोग की रोकथाम और प्रतिक्रिया क्षमताओं को बढ़ाने के लिये 84.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की धनराशि देने का संकल्प लिया है।
  • समुद्री सुरक्षा: 
    • मैत्री: क्वाड ने क्षेत्रीय समुद्री सुरक्षा क्षमताओं को बढ़ाने के लिये हिंद-प्रशांत क्षेत्र में प्रशिक्षण के लिये समुद्री पहल (MAITRI) की शुरुआत की है।
    • हिंद-प्रशांत लॉजिस्टिक्स नेटवर्क: क्वाड द्वारा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में त्वरित आपदा प्रतिक्रिया के लिये एयरलिफ्ट क्षमता में सुधार करने के क्रम में एक लॉजिस्टिक्स नेटवर्क शुरू किया गया है जिसका उद्देश्य नागरिक प्रतिक्रियाओं में दक्षता लाना है।
    • तटरक्षक सहयोग: अंतर-संचालन क्षमता को बढ़ाने के लिये पहली बार वर्ष 2025 तक क्वाड-एट-सी शिप ऑब्जर्वर मिशन की योजना बनाई गई।
  • गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढाँचे का विकास:
    • डिजिटल अवसंरचना सिद्धांत: क्वाड द्वारा सुरक्षा और समावेशिता पर ध्यान केंद्रित करते हुए डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना के विकास के लिये सिद्धांत स्थापित किये गए हैं।
    • भविष्य की क्वाड पोर्ट्स पार्टनरशिप: इसका उद्देश्य अनुकूल बंदरगाह बुनियादी ढाँचे के विकास का समर्थन करना और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में क्षेत्रीय संपर्क को बढ़ाना है।
      • वर्ष 2025 में क्वाड साझेदारों का मुम्बई में पहला क्षेत्रीय बंदरगाह एवं परिवहन सम्मेलन आयोजित करने का उद्देश्य है।
    • समुद्र के अंदर केबल और डिजिटल कनेक्टिविटी: क्वाड साझेदारों ने समुद्र के अंदर केबल परियोजनाओं के लिये 140 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की प्रतिबद्धता जताई है, जिसका लक्ष्य वर्ष 2025 तक सभी प्रशांत द्वीपीय देशों के लिये प्राथमिक दूरसंचार कनेक्टिविटी उपलब्ध कराना है।
      • इसके लिये ऑस्ट्रेलिया ने जुलाई 2024 में केबल कनेक्टिविटी और रेजिलियेंस सेंटर शुरू किया।
    • क्वाड इन्फ्रास्ट्रक्चर फेलोशिप: इसका उद्देश्य बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में निवेश को अनुकूलित करने, प्रबंधित करने और आकर्षित करने के लिये पूरे क्षेत्र की क्षमता में सुधार करना तथा पेशेवर नेटवर्क को उन्नत बनाना है।
  • महत्त्वपूर्ण एवं उभरती हुई प्रौद्योगिकी: 
    • ओपन रेडियो एक्सेस नेटवर्क (RAN) और 5G: वर्ष 2023 में क्वाड ने पलाऊ में अपना पहला ओपन RAN का आरंभ किया है जिसका उद्देश्य लगभग 20 मिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश के साथ एक सुरक्षित दूरसंचार पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना है।
      • क्वाड का उद्देश्य फिलीपींस में चल रहे ओपन RAN परीक्षणों और एशिया ओपन RAN अकादमी को समर्थन देने का है।
    • एआई-एंगेज पहल (2023): अगली पीढ़ी की कृषि को सशक्त बनाने के लिये नवाचारों को आगे बढ़ाने (AI-ENGAGE) के माध्यम से क्वाड सरकारें अगली पीढ़ी की कृषि को सशक्त बनाने हेतु कृत्रिम बुद्धिमत्ता तथा रोबोटिक्स का उपयोग करने के लिये अग्रणी सहयोगी अनुसंधान को उन्नत बना रही हैं।
    • बायोएक्सप्लोर पहल: इसका उद्देश्य रोग निदान, फसल अनुकूलन और स्वच्छ ऊर्जा समाधान में नवाचार हेतु जैविक पारिस्थितिकी तंत्र का अध्ययन करने में AI का उपयोग करना है।
    • सेमीकंडक्टर: क्वाड नेताओं ने सेमीकंडक्टर आपूर्ति श्रृंखला जोखिमों के समाधान में सहयोग को सुविधाजनक बनाने के लिये सहयोग ज्ञापन को अंतिम रूप दिया है।
    • क्वांटम प्रौद्योगिकी: क्वाड इन्वेस्टर्स नेटवर्क (QUIN), एक गैर-लाभकारी पहल, द्वारा उन तरीकों पर प्रकाश डाला गया है जिनसे क्वाड देश के क्वांटम पारिस्थितिकी तंत्र सामूहिक रूप से पूंजी और विशेषज्ञता का लाभ उठाने के लिये मिलकर कार्य कर सकते हैं।
  • जलवायु एवं स्वच्छ ऊर्जा: 
    • उन्नत पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ: अमेरिका, प्रशांत द्वीपीय देशों की सहायता के लिये 3डी-मुद्रित मौसम केंद्र उपलब्ध कराएगा जबकि ऑस्ट्रेलिया और जापान क्षेत्रीय आपदा जोखिम न्यूनीकरण प्रयासों को बेहतर बना रहे हैं।
      • जापान अपनी प्रशांत जलवायु अनुकूलन पहल के तहत प्रशांत द्वीपीय देशों के साथ सहयोग भी बढ़ा रहा है।
    • क्वाड स्वच्छ ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखला विविधीकरण कार्यक्रम (2023): इसका उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षित और विविध स्वच्छ ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखलाओं के विकास का समर्थन करना है।
      • भारत ने फिजी, कोमोरोस, मेडागास्कर और सेशेल्स में नई सौर परियोजनाओं के लिये 2 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश करने की प्रतिबद्धता जताई है।
  • साइबर सुरक्षा: क्वाड ने वाणिज्यिक समुद्री दूरसंचार केबलों की सुरक्षा के लिये क्वाड एक्शन प्लान विकसित किया है ताकि भविष्य में डिजिटल कनेक्टिविटी, वैश्विक वाणिज्य और समृद्धि हेतु क्वाड के साझा दृष्टिकोण को महत्त्व दिया जा सके।
    • क्वाड अपने डिसइन्फॉर्मेशन विरोधी कार्य समूह के माध्यम से मीडिया की स्वतंत्रता का समर्थन करके और विदेशी सूचना हेरफेर एवं हस्तक्षेप का समाधान करके अनुकूल सूचना पारिस्थितिकी को बढ़ावा देने के क्रम में मिलकर कार्य कर रहा है।
  • अंतरिक्ष: क्वाड साझेदार अंतरिक्ष स्थितिजन्य जागरूकता (SSA) में विशेषज्ञता और अनुभव साझा करने की ओर उन्मुख हैं, जिससे अंतरिक्ष क्षेत्र की दीर्घकालिक स्थिरता में योगदान मिलेगा। 
  • आतंकवाद का मुकाबला: क्वाड नेताओं ने आतंकवाद के खतरों एवं आतंकवाद का मुकाबला करने के लिये बेहतर प्रथाओं और सूचना साझाकरण तथा रणनीतिक संदेश के माध्यम से आतंकवाद संबंधी कृत्यों को कम करने के क्रम में मिलकर कार्य करने के तरीकों पर चर्चा की।
    • क्वाड आतंकवाद निरोधक कार्य समूह (CTWG) वर्तमान में आतंकवादी उद्देश्यों के लिये प्रयुक्त मानव रहित हवाई प्रणाली (C-UAS), रासायनिक, जैविक, रेडियोलॉजिकल और परमाणु उपकरणों (CBRN) तथा इंटरनेट के उपयोग का मुकाबला करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
  • पीपुल-टू-पीपुल पहल: भारत ने भारत सरकार द्वारा वित्तपोषित तकनीकी संस्थान में 4 वर्षीय स्नातक इंजीनियरिंग कार्यक्रम को पूरा करने के क्रम में हिंद-प्रशांत के छात्रों को 500,000 अमेरिकी डॉलर मूल्य की पचास क्वाड छात्रवृत्ति प्रदान करने की एक नई पहल की घोषणा की है।

डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना के विकास और परिनियोजन हेतु क्वाड सिद्धांत क्या हैं?

  • परिचय: क्वाड देशों द्वारा यह घोषणा की गई है कि डिजिटल बुनियादी ढाँचे के निर्माण और उपयोग के लिये एक रूपरेखा तैयार की गई है जो समावेशी, पारदर्शी होने के साथ लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित है।
  • डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI): इसे साझा डिजिटल प्रणालियों के एक समूह के रूप में वर्णित किया गया है जो सुरक्षित, विश्वसनीय और अंतर-संचालनीय हैं।
    • इनका निर्माण और उपयोग सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्र द्वारा समान पहुँच प्रदान करने तथा बड़े पैमाने पर सार्वजनिक सेवा वितरण में सुधार लाने के लिये किया जाता है।
  • DPI के लिये क्वाड सिद्धांत: क्वाड ने DPI के विकास और कार्यान्वयन हेतु निम्नलिखित सिद्धांतों की पुष्टि की।
    • समावेशिता: अंतिम उपयोगकर्त्ताओं को सशक्त बनाने के क्रम में बाधाओं को दूर करना, अंतिम छोर तक पहुँच सुनिश्चित करना और एल्गोरिदम संबंधी पूर्वाग्रह से बचना।
    • अंतरसंचालनीयता: विधिक और तकनीकी बाधाओं पर विचार करते हुए अंतरसंचालनीयता के लिये पारदर्शी मानकों का उपयोग करना।
    • मापनीयता (स्केलेबिलिटी): अप्रत्याशित मांग वृद्धि या विस्तार को प्रबंधित करने के लिये अनुकूल तरीके से सिस्टम डिज़ाइन करना।
    • सुरक्षा और गोपनीयता: व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा और अनुकूलन के लिये गोपनीयता बढ़ाने वाली प्रौद्योगिकियों एवं सुरक्षा सुविधाओं को एकीकृत करना।
    • सार्वजनिक लाभ के लिये शासन: यह सुनिश्चित करना कि प्रणालियाँ सुरक्षित, विश्वसनीय एवं पारदर्शी हों जिससे प्रतिस्पर्द्धा, समावेशन तथा डेटा संरक्षण को बढ़ावा मिल सके।
    • स्थिरता: पर्याप्त वित्तपोषण और तकनीकी सहायता के माध्यम से निरंतर संचालन सुनिश्चित करना।
    • बौद्धिक संपदा संरक्षण: मौजूदा विधिक ढाँचे के आधार पर बौद्धिक संपदा अधिकारों की रक्षा करना।
    • सतत् विकास: सतत् विकास के लिये वर्ष 2030 एजेंडा और सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) के साथ प्रणालियों को संरेखित करना।

क्वाड क्या है?

  • परिचय: क्वाड या चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका के बीच  एक कूटनीतिक साझेदारी है।
    • यह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता और समृद्धि पर ध्यान केंद्रित करता है तथा एक "मुक्त, स्पष्ट और समृद्ध" अनुकूल वातावरण को बढ़ावा देता है।
  • क्वाड का उद्देश्य: क्वाड का उद्देश्य स्वास्थ्य सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन, बुनियादी ढाँचे, प्रौद्योगिकी, साइबर सुरक्षा, मानवीय सहायता, समुद्री सुरक्षा, गलत सूचनाओं और आतंकवाद से निपटने सहित क्षेत्रीय चुनौतियों का समाधान करना है।
  • क्वाड की उत्पत्ति: क्वाड की उत्पत्ति वर्ष 2004 की हिंद महासागर सुनामी के फलस्वरूप हुई थी, जहाँ चार देशों ने मानवीय सहायता प्रदान की थी। 
    • जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे द्वारा वर्ष 2007 में औपचारिक रूप से स्थापित यह समूह चीन की प्रतिक्रियाओं के कारण, विशेष रूप से वर्ष 2008 में ऑस्ट्रेलिया के इससे बाहर हो जाने के बाद, निष्क्रिय हो गया। 
    • चीन के प्रभाव के प्रति क्षेत्रीय दृष्टिकोण में बदलाव के मध्य इसे वर्ष 2017 में पुनर्जीवित किया गया, जिसका समापन वर्ष 2021 में इसके पहले औपचारिक शिखर सम्मेलन के साथ हुआ।
  • विस्तार की संभावना: "क्वाड-प्लस" बैठकों में दक्षिण कोरिया, न्यूज़ीलैंड और वियतनाम जैसे राष्ट्रों को शामिल किया गया है, जो भविष्य में विस्तार की संभावना का संकेत देता है।

QUAD

निष्कर्ष:

क्वाड महामारी के विरुद्ध स्वास्थ्य सुरक्षा बढ़ाने, जलवायु परिवर्तन से निपटने तथा साइबर सुरक्षा को मज़बूत करने के लिये समर्पित है। इन महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में सहयोग और नवाचार को बढ़ावा देकर, क्वाड का उद्देश्य एक मुक्त और समृद्ध हिंद-प्रशांत को सुनिश्चित करना है, जो वैश्विक स्थिरता और सतत् विकास में योगदान देता है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: हिंद-प्रशांत क्षेत्र में समकालीन चुनौतियों से निपटने में क्वाड (चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता) के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स: 

प्रश्न. नई त्रि-राष्ट्र साझेदारी AUKUS का उद्देश्य भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन की महत्त्वाकांक्षाओं का मुकाबला करना है। क्या यह क्षेत्र में मौजूदा साझेदारियों का स्थान लेने जा रहा है? वर्तमान परिदृश्य में AUKUS की शक्ति और प्रभाव पर चर्चा कीजिये। (वर्ष 2021)

प्रश्न :‘चतुर्भुज सुरक्षा संवाद’ (QUAD) वर्तमान समय में स्वयं को एक सैन्य गठबंधन से व्यापार गुट के रूप में परिवर्तित कर रहा है। चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2020)


SCs व STs के विरुद्ध अत्याचार पर रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अग्रिम जमानत, विशेष अदालतें

मेन्स के लिये:

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989, नीतियों के डिजाइन और कार्यान्वयन से उत्पन्न मुद्दे

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत एक रिपोर्ट जारी की है , जिसमें वर्ष 2022 में अनुसूचित जातियों के खिलाफ अत्याचार की स्थिति पर प्रकाश डाला गया है।

अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के विरुद्ध अत्याचार पर रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  • केस संबंधी आँकड़े: वर्ष 2022 में अनुसूचित जातियों (SCs) के खिलाफ अत्याचार के 51,656 मामले और अनुसूचित जनजातियों (STs) के खिलाफ 9,735 मामले दर्ज किये गए। उल्लेखनीय है कि अनुसूचित जातियों (SCs) के 97.7% मामले और अनुसूचित जनजातियों (STs) के 98.91% मामले सिर्फ़ 13 राज्यों में केंद्रित थे।
  • सर्वाधिक घटनाओं वाले राज्य:
    •  अनुसूचित जातियों के लिये: निम्नलिखित 6 राज्यों में कुल मामलों का लगभग 81% हिस्सा दर्ज किया गया।
      •  उत्तर प्रदेश: 12,287 मामले (23.78%)
      • राजस्थान: 8,651 मामले (16.75%)
      • मध्य प्रदेश: 7,732 मामले (14.97%)
      • अन्य राज्य: बिहार 6,799 (13.16%), ओडिशा 3,576 (6.93%), और महाराष्ट्र 2,706 (5.24%)।
    • अनुसूचित जनजातियों के लिये:
      • मध्य प्रदेश: 2,979 मामले (30.61%)
      • राजस्थान: 2,498 मामले (25.66%)
      •  ओडिशा: 773 मामले (7.94%). 
      • अन्य राज्य: 691 मामले के साथ महाराष्ट्र (7.10%) और 499 मामले के साथ आंध्र प्रदेश (5.13%)।
  •  चार्ज शीट और जाँच :
    • अनुसूचित जाति से संबंधित मामले: अनुसूचित जाति से संबंधित 60.38% मामलों में चार्ज शीट दायर की गई , जबकि झूठे दावों या सबूतों की कमी जैसे कारणों से 14.78% मामलों में ही  अंतिम रिपोर्ट दी जा सकी।
    • अनुसूचित जनजाति से संबंधित मामले: अनुसूचित जनजाति से संबंधित 63.32%  मामलों में चार्ज शीट दायर की गई, जबकि 14.71% मामलों में अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की गई।
    • वर्ष 2022 के अंत तक, अनुसूचित जातियों से जुड़े 17,166 मामले और अनुसूचित जनजातियों से जुड़े 2,702 मामले अभी भी जाँच के अधीन थे।
  • दोषसिद्धि दर (Conviction Rates):
    • अधिनियम के तहत दोषसिद्धि दर 2020 में 39.2% से घटकर 2022 में 32.4% हो गई है , जो न्यायिक परिणामों में चिंताजनक प्रवृत्ति को दर्शाता है। 
  • बुनियादी ढाँचे  की कमियाँ:
    • 14 राज्यों के 498 ज़िलों में से केवल 194 ज़िलों ने अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के विरुद्ध अत्याचारों के मुकदमों के त्वरित निपटान के लिये विशेष अदालतें स्थापित की हैं।
    • अत्याचारों से ग्रस्त विशिष्ट ज़िलों की पर्याप्त रूप से पहचान नहीं की गई है, उत्तर प्रदेश में अत्याचारों से ग्रस्त किसी भी क्षेत्र की पहचान नहीं की गई है, जबकि वहाँ सबसे अधिक मामले हैं।
  • संरक्षण प्रकोष्ठ: 
    • आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, गुजरात, तमिलनाडु आदि सहित विभिन्न राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के साथ-साथ दिल्ली, जम्मू और कश्मीर तथा पुडुचेरी जैसे केंद्र शासित प्रदेशों में एससी/एसटी संरक्षण प्रकोष्ठ स्थापित किये गए हैं।

अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ अपराध के क्या कारण हैं?

  • जातिगत पूर्वाग्रह और अस्पृश्यता: गहरी जड़ें जमाए हुए जातिगत पदानुक्रम भेदभावपूर्ण प्रथाओं को कायम रखते हैं , जहाँ एससी/एसटी समुदायों को प्राय: "निम्न" माना जाता है और उनकी जन्म-आधारित जातिगत पहचान के कारण सामाजिक बहिष्कार और हिंसा का शिकार होना पड़ता है।
  • भूमि विवाद और अलगाव: ऐतिहासिक रूप से भूमि स्वामित्व से वंचित, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदायों को भूमि तक पहुँच को लेकर निरंतर संघर्ष का सामना करना पड़ता है, जिसके कारण प्रमुख जातियों के साथ विवाद होता है।
  • आर्थिक रूप से वंचित होना: शिक्षा, रोज़गार और आर्थिक संसाधनों तक सीमित पहुँच के कारण अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समूहों की सुभेद्यता बढ़ जाती है, जिससे वे प्रभुत्वशाली समुदायों द्वारा शोषण और हिंसा के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।
  • सामाजिक और राजनीतिक शक्ति का असंतुलन: प्रभावशाली उच्च जातियाँ प्राय: असंगत राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव रखती हैं , जिससे वे कानूनी परिणामों के भय के बिना भेदभावपूर्ण प्रथाओं को बनाए रखने में सक्षम हो जाती हैं।
  • कानून का अपर्याप्त क्रियान्वयन: यद्यपि इन समुदायों की सुरक्षा के लिये एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम जैसे कानून मौजूद हैं, लेकिन कमजोर प्रवर्तन, पुलिस और नौकरशाही पूर्वाग्रह के साथ मिलकर प्राय: जाति-आधारित हिंसा के पीड़ितों के लिये न्याय में बाधा उत्पन्न करते हैं।
  • राजनीतिक अवसरवादिता: कभी-कभी राजनीतिक नेतृत्त्वकर्त्ता चुनावी लाभ के लिये जातिगत तनाव को बढ़ा देते हैं, जिससे समुदायों के बीच ध्रुवीकरण और संघर्ष में वृद्धि होती है।

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 क्या है?

  • परिचय: अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989, जिसे SC/ST अधिनियम 1989 के रूप में भी जाना जाता है, एससी और एसटी के सदस्यों को जाति-आधारित भेदभाव और हिंसा से बचाने के लिये अधिनियमित किया गया था।
  • उद्देश्य
  • ऐतिहासिक संदर्भ: यह अधिनियम अस्पृश्यता (अपराध) अधिनियम, 1955 और नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 पर आधारित है, जो जाति के आधार पर अस्पृश्यता तथा भेदभाव को समाप्त करने के लिये स्थापित किये गए थे।
  • नियम और कार्यान्वयन: 
    • यह केंद्र सरकार को अधिनियम के कार्यान्वयन के लिये नियम बनाने हेतु अधिकृत करता है, जबकि राज्य सरकारें और केंद्रशासित प्रदेश केंद्रीय सहायता से इसे लागू करते हैं।
  • प्रमुख प्रावधान: 
    • अपराध: SC/ST अधिनियम सदस्यों के खिलाफ शारीरिक हिंसा, उत्पीड़न और सामाजिक भेदभाव सहित विशिष्ट अपराधों को परिभाषित करता है। यह इन कृत्यों को "अत्याचार" के रूप में मान्यता देता है और अपराधियों के लिये भारतीय दंड संहिता 1860 (जिसे अब भारतीय न्याय संहिता, 2023 के रूप में प्रतिस्थापित किया गया है) के तहत कठोर दंड निर्धारित करता है। 
    • अग्रिम जमानत: अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम, 1989 की धारा 18 दंड प्रक्रिया संहिता 1973 (जिसे अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के रूप में प्रतिस्थापित किया गया है) की धारा 438- जो अग्रिम जमानत का प्रावधान करती है,  के कार्यान्वयन पर रोक लगाती है
    • विशेष न्यायालय: अधिनियम में त्वरित सुनवाई के लिये विशेष न्यायालयों की स्थापना और अधिनियम के कार्यान्वयन की निगरानी के लिये वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के नेतृत्व में राज्य स्तर पर अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति संरक्षण प्रकोष्ठों की स्थापना का आदेश दिया गया है।
    • जाँच: अधिनियम के तहत अपराधों की जाँच पुलिस उपाधीक्षक (DSP) के पद से नीचे के अधिकारी द्वारा नहीं की जानी चाहिये और निर्धारित समय सीमा के भीतर पूरी की जानी चाहिये।
    • राहत और मुआवज़ा: इस अधिनियम में पीड़ितों को राहत और पुनर्वास प्रदान करने का प्रावधान है, जिसमें वित्तीय मुआवज़ा, कानूनी सहायता और सहायक सेवाएँ शामिल हैं।
  • बहिष्करण:  यह अधिनियम अनुचित जाति और अनुसूचित जनजाति के बीच हुए अपराधों को कवर नहीं करता है; इनमें से कोई भी एक-दूसरे के खिलाफ अधिनियम को लागू नहीं कर सकता है।
  • हालिया संशोधन:
    • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 2015: 
      • इस संशोधन ने अपराध की परिभाषा का विस्तार किया, जिसमें हाथ से मैला ढोने के लिये मजबूर करना, सामाजिक बहिष्कार, यौन शोषण और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की महिलाओं को देवदासी बनाना जैसे कृत्य शामिल हैं। 
      • अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों से संबंधित कर्तव्यों का पालन करने में विफल रहने वाले लोक सेवकों को भी कारावास का सामना करना पड़ सकता है।
    • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 2018: 
      • इसने किसी आरोपी को गिरफ्तार करने से पहले वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से अनुमोदन की आवश्यकता को हटा दिया, जिसके परिणामस्वरूप बिना पूर्व मंज़ूरी के तत्काल गिरफ्तारी की अनुमति मिल गई।

अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 से संबंधित निर्णय

  • कनुभाई एम. परमार बनाम गुजरात राज्य, 2000: गुजरात उच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि यह अधिनियम अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के बीच एक-दूसरे के विरुद्ध किये गए अपराधों पर लागू नहीं होता है क्योंकि इसका उद्देश्य अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों को उनके समुदाय से बाहर के व्यक्तियों द्वारा किये गए अत्याचारों से बचाना है।
  • राजमल बनाम रतन सिंह, 1988: पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि SC एवं ST अधिनियम के तहत स्थापित विशेष न्यायालय, विशेष रूप से अधिनियम से संबंधित अपराधों की सुनवाई के लिये नामित हैं, जो उन्हें नियमित मजिस्ट्रेट या सत्र न्यायालयों से अलग करता है।
  • अरुमुगम सेरवाई बनाम तमिलनाडु राज्य, 2011: सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि SC/ST समुदाय के किसी सदस्य का अपमान करना भी SC और ST अधिनियम के तहत अपराध है।
  • सुभाष काशीनाथ महाजन बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य, 2018: सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अधिनियम की धारा 18 के तहत अग्रिम जमानत प्रावधानों का बहिष्कार पूर्ण प्रतिबंध नहीं है अर्थात् न्यायालय ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत दे सकता है, जहाँ अत्याचार या उल्लंघन के आरोप झूठे/निराधार प्रतीत होते हों।
  • शजन स्कारिया बनाम केरल राज्य मामला, 2024:   इसमें सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि   अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से संबंधित किसी व्यक्ति पर निर्देशित प्रत्येक अपमानजनक या डराने/धमकाने वाली टिप्पणी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत अपराध नहीं है।

आगे की राह

  • विधिक ढाँचे  को सुदृढ़ करना: समय पर सुनवाई और दोषसिद्धि सुनिश्चित करने के लिये विशेष अदालतों के लिये आधारिक संरचना में वृद्धि किये जाने की आवश्यकता है। 
    • इसके अलावा, SC/ST मामलों के संवेदनशील तथा प्रभावी निपटान हेतु कानून प्रवर्तन में प्रशिक्षित कर्मियों की संख्या बढ़ाने की भी आवश्यकता है।
  • रिपोर्टिंग तंत्र में सुधार: अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के विरुद्ध अत्याचारों पर नज़र रखने के लिये बेहतर रिपोर्टिंग और निगरानी प्रणाली स्थापित की जानी चाहिये, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि पीड़ित प्रतिशोध के भय के बिना घटनाओं की रिपोर्ट कर सकें।
  • जागरूकता और शिक्षा: अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के अधिकारों और अधिनियम के तहत उपलब्ध कानूनी सुरक्षा के बारे में समुदायों को शिक्षित करने के लिये जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिये।
  • लक्षित हस्तक्षेप: अत्याचार-प्रवण ज़िलों की पहचान कर इनकी घोषणा करने तथा इन क्षेत्रों में जाति-आधारित हिंसा के मूल कारणों को दूर करने के लिये लक्षित हस्तक्षेपों को लागू करने की आवश्यकता है।
  • निगरानी और मूल्यांकन: कार्यान्वित उपायों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करने, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के विरुद्ध अत्याचारों से निपटने में जवाबदेही तथा निरंतर सुधार सुनिश्चित करने के लिये एक सशक्त निगरानी तंत्र स्थापित किया जाना चाहिये।
  • गैर सरकारी संगठनों के साथ सहयोग: पीड़ितों को समर्थन प्रदान करने और उनके अधिकारों की वकालत करने के लिये गैर-सरकारी संगठनों तथा नागरिक समाज समूहों के साथ साझेदारी कर यह सुनिश्चित करना चाहिये कि नीति-निर्माण प्रक्रियाओं में उनकी मांगों पर विचार किया जाए।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

Q. भारत में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदायों के विरुद्ध निरंतर हो रहे अत्याचारों के लिये उत्तरदायी प्रमुख कारकों का विश्लेषण कीजिये। इन चुनौतियों से निपटने में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 कितना प्रभावी है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

मेन्स

प्रश्न. स्वतंत्रता के बाद अनुसूचित जनजातियों (एस.टी.) के प्रति भेदभाव को दूर करने के लिये, राज्य द्वारा की गई दो मुख्य विधिक पहलें क्या हैं ? (2017)


भविष्य का संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन और संयुक्त राष्ट्र संस्थाओं में सुधार

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र महासचिव , स्टॉकहोम+50 सम्मेलन , उच्च सागर संधि , सतत विकास लक्ष्य , पेरिस समझौता , जीवाश्म ईंधन , कृत्रिम बुद्धिमत्ता , द्वितीय विश्व युद्ध , अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष

मेन्स  के लिये:

संयुक्त राष्ट्र सुधार की आवश्यकता, संयुक्त राष्ट्र सुधार और भारत, अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

चर्चा में क्यों? 

संयुक्त राष्ट्र (UN) महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने हाल ही में भविष्य का संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन, 2024 को संबोधित किया और वैश्विक शांति, सुरक्षा और वित्त से संबंधित पुरानी संयुक्त राष्ट्र संस्थाओं में तत्काल सुधार का आह्वान किया । भारत के प्रधानमंत्री ने भी शिखर सम्मेलन में भाग लिया।

 भविष्य का संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन की मुख्य बातें क्या हैं?

  • संयुक्त राष्ट्र के भविष्य का संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय शासन में सुधार और उसे मजबूत बनाना है। शिखर सम्मेलन का उद्देश्य समकालीन वैश्विक चुनौतियों का समाधान करना और आने वाली पीढ़ियों के लिये एक स्थायी भविष्य सुनिश्चित करना है। 
  • यह शिखर सम्मेलन 2022 संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण स्टॉकहोम+50 सम्मेलन और उच्च सागर संधि जैसे संयुक्त राष्ट्र के हालिया प्रयासों पर आधारित है। 
    • शिखर सम्मेलन का विषय है 'बेहतर कल के लिये बहुपक्षीय समाधान'। 
    • शिखर सम्मेलन का समापन एक परिणाम दस्तावेज - भविष्य के लिये एक समझौता, तथा दो अनुलग्नकों, ग्लोबल डिजिटल कॉम्पैक्ट और भावी पीढ़ियों पर एक घोषणा को अपनाने के साथ हुआ।
  • भविष्य के लिये समझौता : इसका उद्देश्य सतत विकास लक्ष्यों (SDG) और जलवायु कार्रवाई के लिये पेरिस समझौते के लक्ष्यों में तेजी लाना है। इसमें जीवाश्म ईंधन से संक्रमण  और एक स्थायी और शांतिपूर्ण भविष्य सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता शामिल है ।
    • ग्लोबल डिजिटल कॉम्पैक्ट प्रौद्योगिकी तक समान पहुँच  को बढ़ावा देता है तथा यह सुनिश्चित करता है कि इसका लाभ सभी को मिल सके। 
    • संयुक्त राष्ट्र के भीतर एआई पर एक बहु-विषयक स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक पैनल के निर्माण पर बल दिया, जिससे प्रभाव, ज़ोखिम और अवसरों के साक्ष्य-आधारित आकलन के माध्यम से वैज्ञानिक समझ को आगे बढ़ाने के लिये संतुलित भौगोलिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो सके और वर्तमान पहलों और अनुसंधान नेटवर्क का उपयोग किया जा सके। इसके परिणामस्वरूप कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI)(एसडीजी 17) के शासन पर पहला सार्वभौमिक समझौता शुरू हुआ
    • दीर्घकालिक विचार को बढ़ावा देने के लिये "भविष्य की पीढ़ियों पर घोषणा (Declaration on Future Generations)" वर्तमान निर्णय निर्माताओं से भविष्य की पीढ़ियों के हितों को ध्यान में रखने का आह्वान करती है।
      • यह परमाणु निरस्त्रीकरण, स्वायत्त हथियारों को विनियमित करने तथा बाह्य अंतरिक्ष में हथियारों की होड़ को रोकने के लिये प्रतिबद्ध है, जो एक दशक से अधिक समय में परमाणु निरस्त्रीकरण के लिये पहला बहुपक्षीय समर्थन है।
  • शिखर सम्मेलन में भारत का रुख: भारत प्रासंगिकता सुनिश्चित करने के लिये संयुक्त राष्ट्र और सुरक्षा परिषद में सुधारों का आह्वान करता है, तथा अफ्रीकी देशों के साथ-साथ स्वयं को स्थायी सदस्यता में शामिल करने को बढ़ावा देता है।
  • भारतीय प्रधानमंत्री ने साइबर, समुद्री और अंतरिक्ष को संघर्षों में नए मोर्चों के रूप में उद्धृत करते हुए सुरक्षा बनाए रखने के लिये अंतर्राष्ट्रीय ढाँचे का आग्रह किया। उन्होंने वैश्विक डिजिटल शासन का समर्थन करते हुए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिये भारत के डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे की पेशकश की।
  • भारत ने भविष्य के लिये संयुक्त राष्ट्र के समझौते तथा एआई शासन और डिजिटल सहयोग पर पहल का समर्थन किया।

संयुक्त राष्ट्र में अब सुधार की आवश्यकता क्यों?

  • पुराना ढाँचा: संयुक्त राष्ट्र की स्थापना वर्ष 1945 में हुई थी, तब केवल 51 देश ही इसके सदस्य थे, जबकि वर्तमान में इसके सदस्य देशों की संख्या 193 है। 
  • वैश्विक अर्थव्यवस्था में वर्ष 1945 की तुलना में बारह गुनी वृद्धि हुई है , तथा अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली औपनिवेशिक काल के दौरान तैयार की गई थी।
  • वैश्विक असमानताएँ: विकासशील राष्ट्र बढ़ते ऋण और असमानताओं का सामना कर रहे हैं जो सतत् विकास में बाधा डालते हैं, जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि वर्तमान वैश्विक प्रणालियाँ वर्तमान विश्व की ज़रूरतों को पूरा नहीं कर पाती हैं।
  • तकनीकी और भू-राजनीतिक बदलाव: आधुनिक तकनीकी प्रगति और बदलती वैश्विक शक्ति गतिशीलता वर्तमान वैश्विक चुनौतियों, जैसे जलवायु कार्रवाई, सतत् विकास एवं आर्थिक असमानताओं से निपटने में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की संस्थाओं की अपर्याप्तता को उज़ागर करती है।
  • वैधता और विश्वसनीयता से संबंधित मुद्दे: सुरक्षा परिषद की वैधता और विश्वसनीयता पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा को प्रभावी ढंग से बनाए रखने के लिये, परिषद को सभी सदस्य देशों की सामान्य इच्छा को प्रतिबिंबित करना चाहिये, न कि कुछ चुनिंदा स्थायी सदस्यों के नियंत्रण में रहना चाहिये। 
  • परिषद के निर्णयों और कार्यों की वैधता बढ़ाने के लिये सुधार आवश्यक है, क्योंकि इसकी वर्तमान स्थायी सदस्यता आज की भू-राजनीतिक वास्तविकताओं का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं करती है।
  • असमान प्रतिनिधित्व: एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे क्षेत्रों का वर्तमान सुरक्षा परिषद संरचना में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व है। 
  • यह असंतुलन प्रतिनिधित्व की समानता के बारे में चिंताएँ पैदा करता है और परिषद की निर्णय लेने की प्रक्रिया की प्रभावशीलता को कमज़ोर करता है । 
  • इन असमानताओं को दूर करने के लिये गैर-स्थायी सीटों का न्यायसंगत वितरण आवश्यक है।
  • वित्तीय और प्रशासनिक सुधार: संयुक्त राष्ट्र की वित्तीय स्थिरता सर्वोपरि है, विशेष रूप से तब जब उसे शांति स्थापना और विकास पहलों की बढ़ती मांगों का सामना करना पड़ रहा है। 
  • जापान के सुधार प्रस्ताव में, वित्तीय दायित्वों को सदस्य देशों की ज़िम्मेदारियों के साथ संरेखित करने तथा निष्पक्ष एवं आनुपातिक योगदान सुनिश्चित करने पर बल दिया गया है।
  • वैश्विक सुरक्षा चुनौतियाँ: वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा वातावरण जटिल चुनौतियों का सामना कर रहा है जिनमें क्षेत्रीय संघर्ष, आतंकवाद और मानवीय संकट शामिल हैं। 
  • इन मुद्दों को प्रभावी ढंग से हल करने के लिये एक प्रभावी सुरक्षा परिषद आवश्यक है। सुधारों से निवारक कूटनीति और शांति-निर्माण रणनीतियों को लागू करने की संयुक्त राष्ट्र की क्षमता बढ़ेगी।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने क्या सुधार प्रस्तावित किये?

  • सुरक्षा परिषद में सुधार: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद अब वर्तमान भू-राजनीतिक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित नहीं करती है और सुधार के बिना इसकी विश्वसनीयता कम होने का खतरा है।
    • गुटेरेस ने अफ्रीका, एशिया-प्रशांत और लैटिन अमेरिका जैसे क्षेत्रों के कम प्रतिनिधित्व की समस्या को दूर करने के लिये परिषद की संरचना और कार्य पद्धति में बदलाव का आह्वान किया है।
  • वैश्विक वित्तीय ढाँचे  को मजबूत बनाना: अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक समूह और विश्व व्यापार संगठन सहित अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली को सतत विकास लक्ष्य हासिल करने के लिये संघर्ष कर रहे ऋणग्रस्त विकासशील देशों को बेहतर ढंग से समर्थन देना चाहिये।
    • भविष्य के संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन में वित्तीय संस्थाओं को अधिक प्रतिनिधित्वपूर्ण बनाने तथा वैश्विक आर्थिक चुनौतियों का समाधान करने में सक्षम बनाने के लिये सुधारों की शुरुआत की गई।

संयुक्त राष्ट्र सुधार वैश्विक शासन को किस प्रकार प्रभावित करेंगे?

  • उन्नत समावेशिता: इन सुधारों का उद्देश्य विकासशील देशों और अफ्रीका, लैटिन अमेरिका जैसे कम प्रतिनिधित्व वाले क्षेत्रों को अधिक सशक्त बनाकर वैश्विक शासन को अधिक समावेशी बनाना है। 
    • इससे निर्णय लेने की प्रक्रिया अधिक न्यायसंगत हो सकेगी।
  • सक्रियता में वृद्धि: इन सुधारों से अधिक सक्रिय शांति स्थापना आयोग की स्थापना होगी तथा शांति अभियानों में परिवर्तन होगा, जिससे उभरती वैश्विक चुनौतियों पर त्वरित प्रतिक्रिया संभव हो सकेगी।
  • सुदृढ़ वित्तीय संरचना: अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली में सुधार से अधिक कर्ज का सामना कर रहे विकासशील देशों को सहायता मिलेगी तथा सतत् विकास लक्ष्यों की दिशा में उनकी प्रगति में सहायता मिलेगी।
  • डिजिटल गवर्नेंस: ग्लोबल डिजिटल कॉम्पैक्ट (जो कि भविष्य के लिये समझौते का हिस्सा है) का उद्देश्य कृत्रिम बुद्धिमत्ता और डिजिटल प्रौद्योगिकियों को विनियमित करना है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे सतत् विकास और मानव अधिकारों में योगदान दे सकें। 
    • इसमें डिजिटल डिवाइड और साइबर सुरक्षा जैसे मुद्दों का समाधान शामिल है।
  • युवा सहभागिता: निर्णय लेने की प्रक्रिया में युवाओं को शामिल करने पर बल देने से यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि भावी पीढ़ियों के हितों पर विचार किया जाए।
  • संघर्ष समाधान: सुधारों में बहुपक्षीय प्रणाली को मज़बूत करने और भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा का प्रबंधन करने के लिये नए मानदंडों और जवाबदेही तंत्रों की आवश्यकता है। इससे संघर्षों को रोकने और उन्हें अधिक प्रभावी ढंग से हल करने में मदद मिल सकती है।

भारत संयुक्त राष्ट्र की आलोचना किस प्रकार करता है?

  • संकट प्रबंधन में अप्रभाविता: भारत ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र चार्टर कोविड-19 महामारी, रूस -यूक्रेन संघर्ष, आतंकवाद और जलवायु परिवर्तन जैसी महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का समाधान करने में विफल रहा है ।
    • भारतीय राजदूत ने संयुक्त राष्ट्र को आज की भू-राजनीतिक वास्तविकताओं के प्रति अधिक प्रासंगिक और उत्तरदायी बनाने के लिये इसमें तत्काल सुधारों का आह्वान किया।
  • वीटो शक्ति संबंधी चिंताएँ: भारत ने पी-5 देशों (अमेरिका, ब्रिटेन, फ्राँस, रूस और चीन) के पास मौजूद वीटो शक्ति की आलोचना की तथा उस प्रणाली की निष्पक्षता पर सवाल उठाया जो कुछ चुनिंदा लोगों को असंगत शक्ति  प्रदान करती है।
    • भारत सहित कई देशों ने सुरक्षा परिषद में अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और एशिया जैसे क्षेत्रों के प्रतिनिधित्व की कमी पर चिंता व्यक्त की है।
  • चार्टर समीक्षा: भारत ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर की व्यापक समीक्षा का आह्वान किया है , जिसमें "सोवियत समाजवादी गणराज्य संघ" जैसी पूर्ववर्ती संस्थाओं के पुराने संदर्भों तथा जापान सहित कुछ देशों को "शत्रु राष्ट्र" के रूप में नामित करने पर प्रकाश डाला गया है जबकि अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में उनकी वर्तमान भूमिकाएँ यथावत हैं। 
    • इसमें इन विफलताओं को सुधारने तथा चार्टर को आधुनिक भू-राजनीतिक वास्तविकताओं के अनुरूप अद्यतन करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
  • धीमी सुधार प्रक्रिया: भारत की चिंता संयुक्त राष्ट्र सुधार पर अंतर-सरकारी वार्ता (IGN) प्रक्रिया की धीमी गति से संबंधित है, जो 2008 में शुरू हुई थी, लेकिन अभी तक इसमें कोई खास प्रगति नहीं हुई है। भारत ने इस बात पर बल दिया है कि यह मुद्दा वैश्विक प्राथमिकता बना रहना चाहिये।

निष्कर्ष:

भविष्य पर 2024 के संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन में व्यापक सुधारों की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित किया गया है। संयुक्त राष्ट्र और उसके संस्थानों में सुधार के लिये भारत का सक्रिय रुख एक अधिक न्यायसंगत एवं समावेशी वैश्विक परिदृश्य को बढ़ावा देने की उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। इन सुधारों को लागू करना 21 वीं सदी के जटिल मुद्दों को संबोधित करने के लिये संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता और क्षमता सुनिश्चित करने के क्रम में महत्त्वपूर्ण होगा।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भविष्य पर संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन द्वारा प्रस्तावित संयुक्त राष्ट्र में सुधारों की आवश्यकता का मूल्यांकन कीजिये। ये सुधार विकासशील देशों के वैश्विक शासन को किस प्रकार बेहतर करेंगे?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. ‘‘संयुक्त राष्ट्र प्रत्यय समिति (यूनाईटेड नेशंस क्रेडेंशियल्स कमिटी)’’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2022)

  1. यह संयुक्त राष्ट्र (UN) सुरक्षा परिषद द्वारा स्थापित समिति है और इसके पर्यवेक्षण के अधीन काम करती है। 
  2.  पारंपरिक रूप से प्रतिवर्ष मार्च, जून और सितंबर में इसकी बैठक होती है। 
  3.  यह महासभा को अनुमोदन हेतु रिपोर्ट प्रस्तुत करने से पूर्व सभी UN सदस्यों के प्रत्ययों का आकलन करती है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? 

(a) केवल 3
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2 और 3
(d) केवल 1 और 2

उत्तर: (a) 

व्याख्या:

  • संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के प्रत्येक नियमित सत्र की शुरुआत में एक प्रत्यय समिति नियुक्त की जाती है। इसमें नौ सदस्य होते हैं, जिन्हें UNGA अध्यक्ष के प्रस्ताव पर महासभा द्वारा नियुक्त किया जाता है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • प्रतिनिधियों की साख और प्रत्येक सदस्य राज्य के प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों के नाम महासचिव को प्रस्तुत किये जाते हैं और या तो राज्य या सरकार के प्रमुख या विदेश मामलों के मंत्री द्वारा जारी किये जाते हैं। समिति के लिये सदस्य राज्यों के प्रतिनिधियों की साख की जाँच करना और उस पर महासभा को रिपोर्ट करना अनिवार्य है। अत: कथन 3 सही है।
  • आमतौर पर समिति की बैठक नवंबर में होती है, दिसंबर में आम सभा के समक्ष रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है। अतः कथन 2 सही नहीं है।

अतः विकल्प (a) सही उत्तर है।


मेन्स:

Q. संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक परिषद (ECOSOC) के प्रमुख कार्य क्या हैं? इसके साथ संलग्न विभिन्न प्रकार्यात्मक आयोगों को स्पष्ट कीजिये। (2017)

Q. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट पाने की दिशा में भारत के समक्ष आने वाली बाधाओं पर चर्चा कीजिये। (2015)


POCSO अधिनियम 2012 का सुदृढ़ीकरण

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR), बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन, फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालय योजना, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB)

मेन्स के लिये:

भारत में बाल यौन शोषण और उससे संबंधित चुनौतियों से निपटने हेतु उठाए गए कदम।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि नाबालिगों से संबंधित यौन सामग्री देखना या रखना, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 के तहत अवैध है।

  • चाहे ऐसी सामग्री को आगे साझा या प्रेषित किया जाए या नहीं, यह POCSO अधिनियम, 2012 के अंतर्गत दंडनीय अपराध है।
  • इसने मद्रास उच्च न्यायालय के पूर्व निर्णय को पलट दिया, जिसमें यह निर्धारित किया गया था कि बाल पोर्नोग्राफी को निजी तौर पर देखना (आगे प्रेषित करने के बिना) अपराध नहीं माना जाएगा।

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के प्रमुख बिंदु क्या हैं?

  • शब्दावली को पुनर्परिभाषित करना: सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने केंद्र सरकार से "बाल पोर्नोग्राफी" शब्द को "बाल यौन शोषण एवं दुर्व्यवहार सामग्री" (CSEAM) से बदलने का आग्रह किया है। 
  • यह परिवर्तन महत्त्वपूर्ण है क्योंकि "पोर्नोग्राफी" शब्द का तात्पर्य प्रायः वयस्कों की सहमति से किये गए आचरण से होता है तथा इससे दुर्व्यवहार और शोषण का सटीक प्रतिनिधित्व नहीं हो पाता है।
  • POCSO अधिनियम, 2012 की धारा 15 का विस्तार: सर्वोच्च न्यायालय ने POCSO अधिनियम, 2012 की धारा 15 के तहत "बाल पोर्नोग्राफ़ी के भंडारण" शब्द की स्पष्ट व्याख्या की। पहले इस प्रावधान के तहत मुख्य रूप से वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिये भंडारण को शामिल किया जाता था। धारा 15 की न्यायालयी व्याख्या में तीन प्रमुख अपराध शामिल हैं।
    • बिना रिपोर्ट किये संग्रहीत करना: जो व्यक्ति बाल पोर्नोग्राफी संग्रहीत करता है या अपने पास रखता है तो उसे हटाना, नष्ट करना या निर्दिष्ट प्राधिकारी को रिपोर्ट करना चाहिये। ऐसा न करने पर यह धारा 15(1) के तहत दंडनीय हो सकता है।
    • संचारित या वितरित करने का उद्देश्य: जो व्यक्ति बाल पोर्नोग्राफी को अपने पास रखते हैं और रिपोर्टिंग के उद्देश्य को छोड़कर किसी भी तरीके से इसे संचारित या प्रदर्शित करने का इरादा रखते हैं तो उन्हें धारा 15(2) के तहत दंड हो सकता है।
    • वाणिज्यिक संग्रहण: वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिये बाल पोर्नोग्राफी का भंडारण धारा 15(3) के अंतर्गत आता है, जिसमें सबसे कठोर दंड का प्रावधान है।
  • अपूर्ण अपराधों की अवधारणा: इस निर्णय में धारा 15 के अंतर्गत अपराधों को "अपूर्ण" अपराधों के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिसका अर्थ है कि वे आगे के अपराध की दिशा में किये गए प्रारंभिक कृत्य हैं।
  • अधिग्रहण (Possession) की पुनर्परिभाषा: न्यायालय ने बाल पोर्नोग्राफी मामलों में "अधिग्रहण" की परिभाषा का विस्तार किया है। इसमें अब "रचनात्मक अधिग्रहण" शामिल है, जो उन स्थितियों को संदर्भित करता है, जहाँ कोई व्यक्ति भौतिक रूप से सामग्री को अपने पास नहीं रख सकता है लेकिन उसके पास उसे नियंत्रित करने की क्षमता है और उस नियंत्रण का ज्ञान भी है।  
  • उदाहरण के लिये बिना डाउनलोड किये ऑनलाइन चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना भी अवैध माना जा सकता है। 
    • यदि किसी व्यक्ति को बाल पोर्नोग्राफी का लिंक प्राप्त होता है लेकिन वह रिपोर्ट किये बिना उसे बंद कर देता है और यदि वह प्राधिकारियों को सूचित नहीं करता है, तो उसे उत्तरदायी ठहराया जा सकता है, भले ही लिंक बंद करने के बाद भी वह उस पर भौतिक रूप से अधिग्रहण न रखे।
  • शैक्षिक सुधार: न्यायालय ने सरकार से स्कूलों और समाज में व्यापक यौन शिक्षा को बढ़ावा देने का आग्रह किया है ताकि यौन स्वास्थ्य के बारे में चर्चाओं को अनुचित मानने वाली गलत धारणाओं का मुकाबला किया जा सके।
    • इस शिक्षा में सहमति, स्वस्थ संबंध, लैंगिक समानता और विविधता के प्रति सम्मान जैसे विषय शामिल होने चाहिये।
  • पोक्सो अधिनियम, 2012 के बारे में जागरूकता: पोक्सो अधिनियम, 2012 की धारा 43 और 44 के तहत केंद्र और राज्य सरकारों के साथ-साथ राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) को अधिनियम के बारे में व्यापक जागरूकता को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
  • विशेषज्ञ समिति का गठन: स्वास्थ्य और यौन शिक्षा के लिये व्यापक कार्यक्रम तैयार करने तथा बच्चों में POCSO अधिनियम, 2012 के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये एक विशेषज्ञ समिति को कार्य सौंपा जाना चाहिये।
  • पीड़ितों को सहायता और जागरूकता: इस निर्णय में CSEAM के पीड़ितों के लिये मनोवैज्ञानिक परामर्श, चिकित्सीय हस्तक्षेप और शैक्षिक सहायता सहित मज़बूत सहायता प्रणालियों की आवश्यकता को रेखांकित किया गया।
    • संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी (CBT) जैसे कार्यक्रम संज्ञानात्मक विकृतियों को दूर करने में मदद कर सकते हैं जो अपराधियों के बीच इस तरह के व्यवहार को बढ़ावा देते हैं।

बच्चों के विरुद्ध अपराध की स्थिति क्या है?

  • तेजी से बढ़ता बाज़ार: अमेरिका स्थित नेशनल सेंटर फॉर मिसिंग एंड एक्सप्लॉइटेड चिल्ड्रन (NCMEC) के अनुसार विश्व में ऑनलाइन बाल यौन शोषण संबंधी सबसे अधिक तस्वीरें भारत में हैं, जिसके बाद थाईलैंड का स्थान है।
    • NCMEC का अनुमान है कि भारतीय उपयोगकर्त्ताओं ने अप्रैल और अगस्त 2024 के बीच 25,000 चित्र या वीडियो अपलोड किये हैं।
  • भौगोलिक वितरण: बाल पोर्न के अधिकतम अपलोड के मामले में दिल्ली शीर्ष पर हैं इसके बाद महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल का स्थान है।
  • प्रचलन में वृद्धि: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट 2023 के अनुसार वर्ष 2018 में चाइल्ड पोर्न बनाने या संग्रहीत करने के 781 मामले दर्ज किये गए। वर्ष 2017 में ऐसे 331 मामले थे।  
    • वर्ष 2022 में बच्चों से संबंधित अनुचित सामग्री के प्रसार के 1,171 मामले सामने आए।

पोक्सो अधिनियम क्या है?

  • परिचय: इस कानून का उद्देश्य बच्चों के यौन शोषण और यौन दुर्व्यवहार के अपराधों को हल करना है। इस अधिनियम के अनुसार 18 वर्ष से कम आयु का कोई भी व्यक्ति बालक है।
  • विशेषताएँ:
    • लैंगिक-तटस्थ प्रकृति:
      • अधिनियम मानता है कि बालक एवं बालिकाएँ दोनों यौन शोषण के शिकार हो सकते हैं और पीड़ित किसी भी लिंग का हो, उसके साथ ऐसा दुर्व्यवहार एक अपराध है।
      • यह इस सिद्धांत के अनुरूप है कि सभी बच्चों को यौन दुर्व्यवहार एवं शोषण से सुरक्षा का अधिकार प्राप्त है और कानूनों को लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिये।
    • पीड़ित की पहचान की गोपनीयता: POCSO अधिनियम, 2012 की धारा 23 के अनुसार बाल पीड़ितों की पहचान गोपनीय रखी जानी चाहिये। मीडिया रिपोर्ट में पीड़ित की पहचान उजागर करने वाली कोई भी जानकारी नहीं दी जानी चाहिये जिसमें उनका नाम, पता और परिवार की जानकारी शामिल है। 
    • बाल दुर्व्यवहार के मामलों की अनिवार्य रिपोर्टिंग: धारा 19 से 22 ऐसे व्यक्तियों को, जिन्हें ऐसे अपराधों की जानकारी है या उचित संदेह है, संबंधित प्राधिकारियों को रिपोर्ट करने के लिये बाध्य करती है।
  • पोक्सो अधिनियम, 2012 के कार्यान्वयन में कमियाँ:
    • सहायक व्यक्तियों की कमी: POCSO अधिनियम, 2012 के कार्यान्वयन में प्रमुख कमी पीड़ितों के लिये “सहायक व्यक्तियों” की अनुपस्थिति है। सर्वोच्च न्यायालय ने पाया कि POCSO के 96% मामलों में पीड़ितों को कानूनी प्रक्रिया के दौरान आवश्यक सहायता नहीं मिलती है। 
      • सहायक व्यक्ति वह व्यक्ति या संगठन हो सकता है जो बाल अधिकार या बाल संरक्षण के क्षेत्र में कार्य करता है।
    • POCSO न्यायालयों का अपर्याप्त पदनाम: सभी ज़िलों में POCSO न्यायालयों को नामित नहीं किया गया है। वर्ष 2022 तक फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट की योजना के तहत 28 राज्यों में केवल 408 POCSO न्यायालय स्थापित किये गए थे।
    • विशेष लोक अभियोजकों की कमी: POCSO मामलों को संभालने के लिये विशेष रूप से प्रशिक्षित विशेष लोक अभियोजकों की कमी है।

निष्कर्ष

शिक्षकों, स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं और कानून प्रवर्तन सहित हितधारकों के बीच समन्वित प्रयास बाल यौन शोषण में शीघ्र हस्तक्षेप हेतु महत्त्वपूर्ण हैं। उत्पीड़न को रोकने और पुनर्वास का समर्थन करने के लिये सामाजिक ज़िम्मेदारी और दृष्टिकोण में बदलाव आवश्यक है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारत में बाल यौन शोषण से निपटने में यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 की प्रभावशीलता का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न: भारत के संविधान में शोषण के विरुद्ध अधिकार द्वारा निम्नलिखित में से क्या परिकल्पित किया गया है? (2017)

  1. मानव तस्करी और बलात श्रम पर प्रतिबंध
  2. अस्पृश्यता का उन्मूलन
  3. अल्पसंख्यकों के हितों का संरक्षण
  4. कारखानों और खदानों में बच्चों के नियोजन का प्रतिषेध

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 4
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

 उत्तर: (c)


मेन्स

Q. राष्ट्रीय बाल नीति के मुख्य प्रावधानों का परीक्षण करते हुए इसके कार्यान्वयन की स्थिति पर प्रकाश डालिये। (2016)