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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

भारत की पहली वाणिज्यिक SSA वेधशाला

  • 24 Aug 2022
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

अंतरिक्ष मलबा, प्रोजेक्ट नेत्रा, क्लियरस्पेस -1, अंतरिक्ष स्थितिपरक जागरूकता (SSA)

मेन्स के लिये:

अंतरिक्ष स्थितिपरक जागरूकता (SSA), अंतरिक्ष मलबा, अंतरिक्ष शक्ति के रूप में भारत

चर्चा में क्यों?

भारत की पहली वाणिज्यिक अंतरिक्ष स्थितिपरक जागरूकता (SSA) वेधशाला उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में स्थापित की जाएगी।

  • वेधशाला की स्थापना बेंगलुरु स्थित अंतरिक्ष क्षेत्र के दिगंतारा द्वारा की जाएगी।

वेधशाला

  • क्षेत्र में अपनी तरह की पहली वेधशाला होगी, जिसे स्टार्ट-अप की SSA क्षमताओं को बढ़ाने के लिये स्थापित किया गया है।
  • इसे वैश्विक अंतरिक्ष यातायात प्रबंधन कार्यों की सेवा के लिये रणनीतिक रूप से तैनात किया जाएगा।
  • यह अंतरिक्ष में किसी भी गतिविधि पर नज़र रखने में सहायता करेगी, जिसमें अंतरिक्ष मलबे और क्षेत्र पर मंडराने वाले सैन्य उपग्रह शामिल हैं।
    • वर्तमान में अंतरिक्ष मलबों की निगरानी में अमेरिका प्रमुख अभिकर्त्ता है।
  • वेधशाला अंतरिक्ष के दायरे के ज्ञान को आगे बढ़ाने के लिये आवश्यक डेटा स्रोत के रूप में सेवा करके राष्ट्र की प्रगति में सहायक होगी
  • यह निम्न पृथ्वी कक्षा (LEO) से लेकर भू-तुल्यकालिक कक्षा (GEO) तक की कक्षाओं में उपग्रहों और मलबों की निगरानी के लिये अपने मिशन में अपने अंतरिक्ष-आधारित सेंसर को पूरक करने में सक्षम होगी।

अंतरिक्ष मलबे

  • अंतरिक्ष मलबे में प्रयोग किये गए रॉकेट, निष्क्रिय उपग्रह, अंतरिक्ष निकायों के टुकड़े और एंटी-सैटेलाइट सिस्टम (ASAT) से उत्पन्न मलबा शामिल होता है।
  • लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) में 27,000 किमी. प्रति घंटे की औसत गति से टकराती हुई ये वस्तुएँ गंभीर खतरा पैदा करती हैं, क्योंकि इस टक्कर में सेंटीमीटर आकार के टुकड़े भी उपग्रहों के लिये घातक साबित हो सकते हैं।
  • अंतरिक्ष मलबा परिचालन उपग्रहों के लिये भी संभावित खतरा है और उनसे टकराने से उपग्रह निष्क्रिय हो सकते हैं।
  • यदि कक्षा में बहुत अधिक अंतरिक्ष मलबा मौजूद है, तो इसके परिणामस्वरूप ‘डोमिनो इफेक्ट’ उत्पन्न हो सकता है, जहाँ अधिक-से-अधिक वस्तुएँ टकराएंँगी और इस प्रक्रिया में नए अंतरिक्ष मलबे का निर्माण होगा।

SSA के संबंध में भारत में वर्तमान परिदृश्य:

  • अंतरिक्ष स्थितिपरक जागरूकता (SSA):
    • SSA का अर्थ पृथ्वी की कक्षा में मौजूद पिंडों की निगरानी करना और अनुमान लगाना कि वे किसी भी नियत समय पर कहाँ होंगे।
    • इसमें प्राकृतिक (उल्का) और मानव निर्मित (उपग्रह) एवं अंतरिक्ष मौसम पर नज़र रखने वाली सभी ऑब्जेक्ट्स की गति की निगरानी करना शामिल है।
    • SSA को आम तौर पर तीन मुख्य क्षेत्रों को कवर करने के रूप में जाना जाता है:
      • मानव निर्मित ऑब्जेक्ट्स की अंतरिक्ष निगरानी और ट्रैकिंग (SST)।
      • अंतरिक्ष मौसम (SWE) निगरानी और पूर्वानुमान।
      • नियर-अर्थ ऑब्जेक्ट्स (NEO) मॉनिटरिंग (केवल प्राकृतिक अंतरिक्ष ऑब्जेक्ट)।
  • भारत की SSA क्षमता:
    • भारत में श्रीहरिकोटा रेंज (आंध्र प्रदेश) में एक मल्टी ऑब्जेक्ट ट्रैकिंग रडार का उपयोग करता है, लेकिन इसकी एक सीमा है।
    • इसके अलावा SSA भारत के लिये उत्तर अमेरिकी एयरोस्पेस डिफेंस कमांड (NORAD) और अन्य सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध डेटा पर निर्भर है।
      • हालाँकि ये प्लेटफ़ॉर्म सटीक या व्यापक जानकारी प्रदान नहीं करते हैं।
  • नोडल एजेंसी:
    • SSA के प्रति इसरो के प्रयासों इसके मुख्यालय, बंगलुरु में SSA नियंत्रण केंद्र द्वारा समन्वित किया गया और इसको अंतरिक्ष स्थिति जागरूकता और प्रबंधन निदेशालय द्वारा प्रबंधित किया जाता है।
  • संबंधित पहल:
    • प्रोजेक्ट नेत्र: भारतीय उपग्रहों को अंतरिक्ष मलबों और अन्य खतरों से बचाने के लिये 'प्रोजेक्ट नेत्र' अंतरिक्ष में एक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली होगी।
      • यह प्रोजेक्ट लागू होने के बाद भारत को अन्य अंतरिक्ष शक्तियों की तरह SSA में अपनी क्षमता का योगदान करेगा।
      • इस परियोजना के तहत 1,500 किमी. की दूरी के साथ अंतरिक्ष मलबे की निगरानी करने वाला रडार और एक ऑप्टिकल टेलीस्कोप शामिल किया जाएगा।
    • क्लियरस्पेस-1: वैश्विक स्तर पर वर्ष 2025 में लॉन्च होने वाली यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी का ऑर्बिट से मलबे को खत्म करने वाला पहला अंतरिक्ष मिशन होगा।

आगामी SSA वेधशाला का महत्त्व:

  • उपग्रहों से मलबा टकराने की दर में कमी:
    • वेधशाला को 10 सेमी. (आकार में) जितनी छोटी ऑब्जेक्ट्स को ट्रैक करने की क्षमता के साथ डिज़ाइन किया गया है, यह उपग्रहों और अन्य अंतरिक्ष यान के बीच टकराव की संभावना को कम करने में सक्षम होगी, जिससे उनके स्थान की गति और प्रक्षेपवक्र की अधिक सटीक भविष्यवाणी की जा सकेगी।
  • पहले से मौजूद RSOs को ट्रैक करना और उनकी पहचान करना:
    • यह पहले से मौजूद रेजिडेंट स्पेस ऑब्जेक्ट्स (RSO) को ट्रैक करने और पहचानने की प्रभावशीलता में सुधार करेगा।
  • स्वदेशी क्षमताओं को बढ़ावा:
    • स्वदेशी अनुकूल क्षमताओं के निर्माण और वैश्विक स्तर पर प्रतिसर्द्धा करने के लिये महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढाँचे के विकास को बढ़ावा देना आवश्यक है।
    • इसके परिणामस्वरूप एक हाइब्रिड डेटा पूल का विकास होगा जो अंतरिक्ष उद्योग के वाणिज्यिक और रक्षा दोनों क्षेत्रों को सेवा प्रदान करेगा।
  • अनुपूरक वैश्विक नेटवर्क का विकास :
    • ऑस्ट्रेलिया और दक्षिणी अफ्रीका के बीच समर्पित SSA सेंसर की कमी के कारण डेटा अंतराल देखा गया है
    • यह वेधशाला भारतीय उपमहाद्वीप के ऊपर अंतरिक्ष गतिविधियों की निगरानी में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगी तथा भारतीय संपत्तियों की सुरक्षा के लिये आवश्यक रियल-टाइम डेटा को रिले करेगी।
      • डेटा अंतराल वाले इस हिस्से में ऑब्जेक्ट्स की निरंतर ट्रैकिंग करने के लिये SSA सेंसर के वैश्विक नेटवर्क को इस वेधशाला द्वारा पूरा किया जाएगा।

UPSC सिविल सेवा विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):

प्रिलिम्स:

प्रश्न: भारत द्वारा प्रमोचित खगोलीय वेधशाला, ‘ऐस्ट्रोसैटके संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से

  1. USA और रूस के अलावा केवल भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसने अंतरक्षि में उसी प्रकार की वेधशाला प्रमोचित की है।
  2. ऐस्ट्रोसैट 2000 किलोग्राम का एक उपग्रह है, जो पृथ्वी की सतह से उपर 1650 किलोमीटर पर एक कक्षा में स्थापित है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

A. केवल 1
B. केवल 2
C. 1 और 2 दोनों
D. न तो 1 और न ही 2

उत्तर:D

व्याख्या:

  • एस्ट्रोसैट पहला समर्पित भारतीय खगोल विज्ञान मिशन है जिसका उद्देश्य एक्स-रे, ऑप्टिकल और यूवी स्पेक्ट्रल बैंड में आकाशीय स्रोतों का एक साथ अध्ययन करना है।
  • भारत अमेरिका, रूस, जापान और यूरोप के बाद अंतरिक्ष वेधशाला अभिजात वर्ग की सूची में शामिल होने वाला 5वाँ देश है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • लगभग 1513 किलोग्राम के उत्थापन द्रव्यमान के साथ एस्ट्रोसैट को पीएसएलवी-सी30 द्वारा भूमध्य रेखा से 6 डिग्री के कोण पर झुकी हुई 650 किमी. की कक्षा में प्रक्षेपित किया गया था। अतः कथन 2 सही नहीं है।

मेन्स:

प्रश्न. भारत का अपना अंतरिक्ष स्टेशन बनाने की क्या योजना है और इससे भविष्य में हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम को क्या लाभ होगा? (2019)

प्रश्न. भारत ने चंद्रयान व मंगल कक्षीय मिशनों सहित मानव-रहित अंतरिक्ष मिशनों में असाधारण सफलता प्राप्त की हैं, लेकिन मानव-सहित अंतरिक्ष मिशनों में प्रवेश का साहस नहीं किया है। मानव-सहित अंतरिक्ष मिशन लाँच करने में प्रौद्योगिकीय व सुप्रचालनिक सहित मुख्य रुकावटें क्या हैं? समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (2017)

प्रश्न. अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौधौगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों की चर्चा कीजिये। इस प्रौधौगिकी का प्रयोग भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में किस प्रकार सहायक हुआ है? (2016)

स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया

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