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मिशन शक्ति: अंतरिक्ष में भारत का ‘शक्ति’ प्रदर्शन

  • 29 Mar 2019
  • 16 min read

संदर्भ

27 मार्च को भारत ने मिशन शक्ति को सफलतापूर्वक अंजाम देते हुए एंटी-सैटेलाइट मिसाइल (A-SAT) से तीन मिनट में एक लाइव भारतीय सैटेलाइट को सफलतापूर्वक नष्ट कर दिया। अंतरिक्ष में 300 किमी. दूर पृथ्वी की निचली कक्षा (Low Earth Orbit-LEO) में घूम रहा यह लाइव सैटेलाइट एक पूर्व निर्धारित लक्ष्य था।  अब तक रूस, अमेरिका और चीन के पास ही यह क्षमता थी और इसे हासिल करने वाला भारत दुनिया का चौथा देश बन गया है। ‘मिशन शक्ति’ का मूल उद्देश्य भारत की सुरक्षा, आर्थिक विकास और भारत की तकनीकी प्रगति को दर्शाना है।

अप्रयोज्य उपग्रह को बनाया निशाना?

गौरतलब है कि भारत ने 2012 में सिम्युलेटेड टेस्ट किये थे और अपनी इस क्षमता का प्रदर्शन किया था, लेकिन उस समय सरकार ने इसके परीक्षण की अनुमति यह कहते हुए नहीं दी थी कि नष्ट हुए सैटेलाइट का मलबा अन्य देशों के सैटेलाइट को क्षति पहुँचा सकता है। अब DRDO की उसी मिसाइल के ज़रिये ‘मिशन शक्ति’ को अमलीजामा पहनाया गया। इस परीक्षण के लिये एक छोटे अप्रोज्य उपग्रह को चुना गया, जो पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया गया था।

क्या है एंटी-सैटेलाइट मिसाइल (A-SAT) 

एंटी-सैटेलाइट मिसाइल का निशाना किसी भी देश के सामरिक सैन्य उद्देश्यों के उपग्रहों को निष्क्रिय करने या नष्ट करने पर होता है। वैसे आज तक किसी भी युद्ध में इस तरह के मिसाइल का उपयोग नहीं किया गया है। लेकिन कई देश अंतरिक्ष में अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन और अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम को निर्बाध गति से जारी रखने के लिये इस तरह के मिसाइल सिस्टम का होना ज़रूरी मानते हैं।

  • भारत में इस मिसाइल का विकास DRDO ने किया है। A-SAT मिसाइल सिस्‍टम अग्नि मिसाइल और एडवांस्‍ड एयर डिफेंस सिस्‍टम का मिश्रण है। यह इंटरसेप्टर मिसाइल दो सॉलिड रॉकेट बूस्टरों सहित तीन चरणों वाली मिसाइल है।
  • अमेरिका ने 1950 में WS-199A नाम से रणनीतिक रूप से अहम मिसाइल परियोजनाओं की एक श्रृंखला शुरू की थी। 2008 में अमेरिकी डिस्ट्रॉयर जहाज़ ने RIM-161 मिसाइल का प्रयोग कर अंतरिक्ष में USA 153 नाम के एक जासूसी उपग्रह को मार गिराया था।
  • रूस ने मार्च 1961 में इस्ट्रेबिटेल स्पूतनिक के रूप में अपने फाइटर सैटेलाइट कार्यक्रम की शुरुआत की थी। रूस ने फरवरी 1970 में इंटरसेप्टर मिसाइल का दुनिया का पहला सफल परीक्षण किया था। बाद में रूस ने इस कार्यक्रम को बंद कर दिया था, लेकिन अमेरिका द्वारा फिर से परीक्षण शुरू किये जाने के बाद रूस ने 1976 में इसे फिर शुरू कर दिया। 
  • चीन ने जनवरी 2007 में A-SAT मिसाइल की सहायता से अपने खराब पड़े मौसम उपग्रह को नष्ट किया था।

लो अर्थ ऑर्बिट क्या है?

पृथ्वी की सतह के 160 किमी. से 2000 किमी. की परिधि को लो अर्थ ऑर्बिट (Low Earth Orbit) कहते हैं। इस कक्षा में मौसम, निगरानी करने वाले उपग्रह और जासूसी उपग्रहों को स्थापित किया जाता है। पृथ्वी की सतह से सबसे नजदीक होने की वजह से इस ऑर्बिट में किसी उपग्रह को स्थापित करने के लिये कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इस कक्षा की खास बात यह भी है कि इसमें ज्यादा शक्ति वाली संचार प्रणाली को स्थापित किया जा सकता है। ये उपग्रह जिस गति से अपनी कक्षा में घूमते हैं उनका व्यवहार भू-स्थिर (जिओ-स्टेशनरी) की तरह ही होता है।  लो अर्थ ऑर्बिट के बाद मीडियम अर्थ (इंटरमीडिएट सर्कुलर) ऑर्बिट और उसके बाद पृथ्वी की सतह से 35,786 किलोमीटर पर हाई अर्थ (जिओसिंक्रोनस) ऑर्बिट है।

अंतरिक्ष कारोबार में अग्रणी है भारत

अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में भारत ने निरंतर प्रगति की है और कई मामलों में साबित कर दिखाया है कि दुनिया के किसी भी विकसित देश से वह पीछे नहीं है। अब कई देश भारत के प्रक्षेपण यान से अपने उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने लगे हैं, इनमें ऐसे देश भी शामिल हैं जिनके पास उपग्रह प्रक्षेपण की उन्नत तकनीक है। इस तरह उपग्रह प्रक्षेपण कारोबार में भारत तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। इसी प्रगति की एक उल्लेखनीय उपलब्धि मिशन शक्ति है।

आसान नहीं है अंतरिक्ष में किसी उपग्रह को नष्ट करना

पृथ्वी की सतह से किसी भी उपग्रह को निशाना बना कर नष्ट करना असान नहीं होता, क्योंकि वे 300 किमी. से अधिक की दूरी पर स्थित होते हैं। फिर वे इतनी तेज़ी से पृथ्वी की कक्षा में भ्रमण कर रहे होते हैं कि उन पर निशाना साधने में थोड़ी-सी भी असावधानी या आकलन में गड़बड़ी से न सिर्फ वार खाली जा सकता है, बल्कि वह किसी अन्य उपग्रह के लिये भी खतरनाक साबित हो सकता है। एक समय में कई देशों के अनेक उपग्रह कुछ अंतर पर पृथ्वी की कक्षा में चक्कर लगा रहे होते हैं। जैसे, भारत के 48 उपग्रह इस समय अंतरिश में स्थापित हैं। इसी तरह अन्य देशों के उपग्रह भी हैं।

चूँकि दुनिया आज अधिकांशतः सूचना तकनीक पर निर्भर हो गई है, ऐसे में उपग्रहों की ज़रूरत भी बढ़ती गई है। इस तरह अंतरिक्ष में उपग्रह भी देशों की अपनी संपत्ति होते हैं। हालाँकि अभी तक ऐसा कोई अवसर नहीं आया है, जब किसी देश ने किसी अन्य देश के उपग्रह को निशाना बनाया हो, लेकिन अंतरिक्ष में बढ़ती होड़ को देखते हुए इस आशंका से इनकार भी नहीं किया जा सकता। इस लिहाज़ से देखें तो ‘मिशन शक्ति’ यह स्पष्ट करने के लिये पर्याप्त है कि भारत अपने उपग्रहों की रक्षा करने में सक्षम है।

क्या है स्पेस वॉर?

भारत द्वारा अंतरिक्ष में पृथ्वी की निचली कक्षा (Low Earth Orbit-LEO) में संचरण कर रहे उपग्रह को एंटी-सैटेलाइट मिसाइल (A-SAT) से नष्ट करने के बाद अंतरिक्ष युद्ध यानी स्पेस वॉर का मुद्दा फिर चर्चा में आ गया है। यह अंतरिक्ष में अपना दबदबा कायम रखने की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि सैटेलाइट्स के ज़रिये दुनियाभर की हलचलों पर नज़र जाती है...अपनी सेनाओं के लिये खुफिया जानकारियाँ जुटाई जाती हैं...सैटेलाइट्स की मदद से ही विमान GPRS की सहायता से अपने निश्चित ठिकाने तक पहुँचते हैं और युद्धक विमान अपना टारगेट निश्चित करते हैं। लेकिन अब इन्हीं सैटेलाइट्स पर खतरा मंडरा रहा है और ये उपग्रह भी धरती पर मौजूद मिसाइलों की रेंज में आ चुके हैं।

किसी देश के सैटेलाइट को नष्ट कर उसके संचार तंत्र को बर्बाद किया जा सकता है। बेशक आज तक ऐसा हुआ नहीं है कि किसी देश ने अन्य देश का उपग्रह अंतरिक्ष में नष्ट किया हो। लेकिन चीन ने जनवरी 2007 में जब अपने स्वयं के उपग्रहों में से एक को मिसाइल से नष्ट किया तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यह चर्चा का विषय बना। इस कार्रवाई ने अंतरिक्ष में खतरनाक मलबे के सैकड़ों टुकड़े छोड़ दिये और अंतरिक्ष में हथियारों की होड़ की संभावना को लेकर एक चेतावनी सी जारी कर दी। ऐसे में सैटेलाइट्स के ज़रिये सभी देशों के लिये अंतरिक्ष में मौजूदगी बेहद महत्त्वपूर्ण हो जाती है। एक समय था जब भारत ने संयुक्त राष्ट्र में अंतरिक्ष में हथियारों की होड़ का मुद्दा उठाते हुए अंतरिक्ष को कुरुक्षेत्र का मैदान नहीं बनाने को कहा था।

अमेरिका की स्पेस फोर्स

पिछले वर्ष अमेरिकी राष्ट्रपति ने वर्ष 2020 तक सशस्त्र बलों की छठी शाखा के रूप में अमेरिकी अंतरिक्ष बल का निर्माण करने की घोषणा की थी जिसने पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित किया। अमेरिका द्वारा अंतरिक्ष बल स्थापित करने का उद्देश्य अंतरिक्ष में अमेरिकी क्षमता तथा प्रभुत्व को स्थापित करने के साथ ही चीन तथा रूस की अंतरिक्ष ताकतों को कमतर साबित करना है।

  • यह फोर्स पेंटागन में एक नया संगठनात्मक ढाँचा होगा, जिसका सैन्य अंतरिक्ष अभियानों पर समग्र नियंत्रण होगा।
  • अमेरिकी कानून के तहत 'यूनाइटेड स्टेट्स स्पेस कमांड' को कार्यात्मक एकीकृत युद्धक कमांड के तौर पर स्थापित किया जाएगा।
  • यह नई कमान सैन्य इकाई 'स्पेस फोर्स' बनाने के लक्ष्य से अलग है और US Army की 11वीं कमांड होगी।
  • स्पेस फोर्स अमेरिकी सेना का एक नया विभाग होगा, जिसे अलग लेकिन समान (Separate but Equal) दर्जा दिया जाएगा।

वर्तमान में अंतरिक्ष शक्ति तथा वायुसेना साइबर वारफेयर की निगरानी अमेरिका के एयर फोर्स स्पेस कमांड द्वारा की जाती है। इसमें लगभग 38 हज़ार कर्मचारी हैं, जो 185 सैन्य उपग्रह प्रणालियों का संचालन करते हैं। स्पेस फोर्स के गठन के बाद यह विभाग भी अंतरिक्ष बल के दायरे में आ जाएगा।

गौरतलब है कि अमेरिका में सेना की अंतिम गठित इकाई वायुसेना है, जिसका गठन द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद 1947 में तब किया गया था, जब कॉन्ग्रेस ने राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (National Security Act) पारित किया, ताकि देश के सैन्य विभागों को पुनर्गठित किया जा सके और वायु संचालन को एक अलग विभाग के रूप में शामिल किया जा सके।

  • यह अमेरिकी सेना, नौसेना, नौसैनिक टुकड़ी, तटरक्षक और वायुसेना के बाद छठी सेना होगी। योजना के अनुसार, अंतरिक्ष बल में तीन इकाइयाँ शामिल होंगी। युद्ध संबंधी ऑपरेशंस की निगरानी के लिये स्पेस कमांड का नेतृत्व सबसे वरिष्ठ जनरल (Four-star General) द्वारा किया जाएगा।
  • इसी के साथ बनाई जा रही स्पेस डिवेलपमेंट एजेंसी नई प्रौद्योगिकियों की पहचान और विकास का कार्य करेगी।

बाहरी अंतरिक्ष संधि-1967

अंतरिक्ष में हथियारों की तैनाती को लेकर बाहरी अंतरिक्ष संधि 1967 में हुई थी, जिसमें भारत शुरू से ही शामिल रहा है। यह संधि अंतरिक्ष में ऐसे हथियार तैनात करने पर पाबंदी लगाती है, जो जनसंहारक हों। नए दौर में युद्ध केवल आमने-सामने की लड़ाई मात्र नहीं रह गए हैं। इसमें एक जरूरी तत्त्व यह भी शामिल हो गया है कि शत्रु की संचार व्यवस्था को किस तरह ध्वस्त किया जा सकता है। उपग्रहों को नष्ट करने की यह प्रणाली अमेरिका और सोवियत संघ ने पिछली सदी में ही विकसित कर ली थी। अब भारत ने उपग्रह ध्वस्त करने की जो प्रणाली विकसित की है, वह किसी भी अंतर्राष्ट्रीय संधि का उल्लंघन नहीं करती।

पाकिस्तान, चीन और अमेरिका की प्रतिक्रिया

  • ‘मिशन शक्ति’ की सफलता के बाद पाकिस्तान ने कहा कि वह बाहरी अंतरिक्ष में हथियारों की होड़ रोकने का समर्थक रहा है। अंतरिक्ष सभी की साझा विरासत है और हर एक देश की ज़िम्मेदारी है कि ऐसे कदमों से बचे जिससे वहाँ सैन्यीकरण को बढ़ावा मिले।
  • बेहद सधी हुई प्रतिक्रिया देते हुए चीन ने कहा कि वह आशा करता है कि सभी देश बाहरी अंतरिक्ष में शांति बनाए रखेंगे।
  • अमेरिकी की ओर से कहा गया कि वह अंतरिक्ष और विज्ञान के क्षेत्र में भारत के साथ सहयोग के लिये तैयार है। अंतरिक्ष में सुरक्षा को लेकर दोनों देश सहयोग करेंगे, लेकिन अंतरिक्ष का मलबा हमारे लिये चिंता का विषय है और हम इस मसले पर भारत सरकार से बात करेंगे।

एक बात और...इस तरह की तकनीक का अपना गणित होता है। यह तकनीकी श्रेष्ठता हासिल करने का भी मामला है, जिसके लिये हमारे वैज्ञानिक बधाई के पात्र हैं। इसके अलावा, हमारी यह उपलब्धि भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में, ईंधन के विकास में और गाइडेड मिसाइल को विकसित करने में भी मददगार साबित होगी। गाइडेड मिसाइल का मतलब एक ऐसी मिसाइल तैयार करना है, जो अपने निशाने का पीछा करके उसे नष्ट करे। ‘मिशन शक्ति’ की सफलता के बाद अब ऐसा करने में भारत को अपेक्षित क्षमता हासिल हो चुकी है।

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