सामाजिक न्याय
चिंता विकार
- 22 Jun 2023
- 9 min read
प्रिलिम्स के लिये:चिंता या एंग्जायटी, चिंता विकार, मानसिक स्वास्थ्य मेन्स के लिये:भारत में मानसिक स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य संबंधी कलंक/स्टिग्मा निवारण |
चर्चा में क्यों?
हाल के वर्षों में इस बात की समझ बढ़ रही है कि चिंता/एंग्जायटी विकार लोगों के दैनिक जीवन और समग्र कल्याण को प्रभावित करते हैं। ये व्यापक मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ आबादी के एक बड़े हिस्से में स्थायी तनाव एवं क्षीणता का कारण बन सकती हैं।
- चिंता एक सामान्य भावना है जो स्थायी और विघटनकारी होने पर समस्याग्रस्त हो सकती है। ऐसे मामले चिंता विकार के लक्षण हो सकते हैं जिस पर ध्यान देने एवं उचित उपचार की आवश्यकता होती है।
चिंता/एंग्जायटी विकार:
- परिचय:
- चिंता विकार मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों का एक समूह है जिसमें जीवन के विभिन्न पहलुओं के बारे में अत्यधिक और अतार्किक भय एवं चिंता शामिल होती है।
- चिंता संबंधी विकार उम्र, लिंग, संस्कृति या पृष्ठभूमि की परवाह किये बिना किसी को भी प्रभावित कर सकते हैं।
- चिंता विकारों का ऐतिहासिक संदर्भ:
- 19वीं सदी के अंत तक चिंता विकारों को ऐतिहासिक रूप से मनः विकारों के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया था। सिग्मंड फ्रायड ने चिंता लक्षणों को अवसाद से अलग करने हेतु "एंग्जायटी न्यूरोसिस" की अवधारणा प्रस्तुत की।
- फ्रायड की मूल “एंग्जायटी न्यूरोसिस" की अवधारणा में फोबिया और पैनिक अटैक वाले लोग शामिल थे।
- एंग्जायटी न्यूरोसिस को एंग्जायटी न्यूरोसिस (मुख्य रूप से चिंता के मनोवैज्ञानिक लक्षणों वाले लोग) एवं एंग्जायटी हिस्टीरिया (फोबिया और चिंता के शारीरिक लक्षणों वाले लोग) में वर्गीकृत किया गया है।
- प्रचलन:
- भारत के राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में न्यूरोसिस और तनाव संबंधी विकार 3.5% आबादी को प्रभावित करते हैं।
- ये विकार आमतौर पर महिलाओं में अधिक देखे जाते हैं तथा प्राथमिक देखभाल में अक्सर इन्हें अनदेखा कर दिया जाता है या गलत निदान किया जाता है। चिंता विकारों की शुरुआत के लिये बचपन, किशोरावस्था और प्रारंभिक वयस्कता को उच्च जोखिम वाली अवधि माना जाता है।
- भारत के राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में न्यूरोसिस और तनाव संबंधी विकार 3.5% आबादी को प्रभावित करते हैं।
- सामान्य चिंता विकारों की नैदानिक विशेषताएँ:
- सामान्यीकृत चिंता विकार (GAD):
- छह महीने से अधिक समय तक चलने वाली अत्यधिक चिंता विशिष्ट परिस्थितियों तक ही सीमित नहीं है। यह सामान्यतः शारीरिक परेशानी एवं लक्षणों के साथ देखी जाती है।
- घबराहट की समस्या:
- आवर्ती, अप्रत्याशित घबराहट की समस्या विशेष रूप से तीव्र शारीरिक लक्षण और विनाशकारी परिणामों का भय।
- सामाजिक चिंता विकार:
- दूसरों द्वारा नकारात्मक मूल्यांकन का अत्यधिक भय जिसके परिणामस्वरूप सामाजिक स्थितियों और गंभीर संकट से बचा जा सकता है।
- पृथक्करण चिंता विकार:
- संभावित हानि के बारे में अत्यधिक चिंता के साथ-साथ किसी विशेष वस्तु से अलग होने का भय और परेशानी।
- विशिष्ट फोबिया:
- विशिष्ट वस्तुओं, पशुओं या स्थितियों का अतार्किक भय।
- सामान्यीकृत चिंता विकार (GAD):
- चिंता विकारों का कारण:
- आनुवंशिकी:
- जिन परिवारों के लोगों में चिंता के लक्षण पहले देखे गए हैं उनमें चिंता विकारों की अधिक संभावना देखी जा सकती है जो आनुवंशिक प्रवृत्ति दर्शाता है।
- मस्तिष्क संरचना:
- न्यूरोट्रांसमीटर में असंतुलन, जो स्वभाव और भावनाओं को विनियमित करने के लिये ज़िम्मेदार है चिंता विकारों में भूमिका निभा सकता है।
- व्यक्तिगत विशेषता:
- कुछ व्यक्तित्व लक्षण, जैसे- शर्मीला होना, आदर्शवादी या तनावग्रस्त होना, व्यक्तियों को चिंता विकार विकसित होने के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकता है।
- जीवन की घटनाएँ:
- दुर्व्यवहार, हिंसा, हानि या बीमारी जैसे दर्दनाक या तनावपूर्ण अनुभव, चिंता विकारों को ट्रिगर या बढ़ा सकते हैं। इसके विपरीत यहाँ तक कि शादी, बच्चे का जन्म या नया काम शुरू करने जैसी सकारात्मक जीवन की घटनाएँ भी कुछ व्यक्तियों में चिंता पैदा कर सकती हैं।
- चिकित्सा दशाएँ:
- मधुमेह, हृदय रोग, थायरॉइड की समस्याएँ या हार्मोनल असंतुलन सहित अंतर्निहित शारीरिक स्वास्थ्य समस्याएँ, चिंता के लक्षणों की शुरुआत या अभिव्यक्ति में योगदान कर सकती हैं।
- आनुवंशिकी:
- चिंता विकारों का इलाज:
- उपचार का निर्णय लक्षणों की गंभीरता, दृढ़ता और प्रभाव के साथ-साथ रोगी की प्राथमिकताओं पर आधारित होता है।
- साक्ष्य-आधारित हस्तक्षेपों में चयनात्मक सेरोटोनिन रीपटेक इनहिबिटर (SSRI) और संज्ञानात्मक-व्यवहार थेरेपी (CBT) शामिल हैं।
- अवसाद के लिये अलग से विचार और विशिष्ट उपचार की आवश्यकता होती है।
- उपचार आम तौर पर लक्षण कम होने के बाद 9-12 महीनों तक जारी रहता है, जिसे धीरे-धीरे सिफारिश के अनुसार समाप्त कर दिया जाता है।
मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देने हेतु भारत सरकार की पहल:
- राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NMHP): बड़ी संख्या में मानसिक विकारों और मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की कमी को देखते हुए सरकार द्वारा वर्ष 1982 में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NMHP) को अपनाया गया था।
- प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल स्तर पर सामुदायिक मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करने के लिये ज़िला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (DMHP), 1996 भी शुरू किया गया था।
- मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम: मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 के हिस्से के रूप में प्रत्येक प्रभावित व्यक्ति को सरकारी संस्थानों में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल और उपचार तक पहुँच प्राप्त है।
- इससे IPC की धारा 309 का महत्त्व काफी कम हो गया है और आत्महत्या का प्रयास केवल अपवाद के रूप में दंडनीय है।
- किरण हेल्पलाइन:
- वर्ष 2020 में, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रदान करने के लिये 24/7 टोल-फ्री हेल्पलाइन 'किरण' की शुरुआत की।
- मनोदर्पण पहल:
- इसका उद्देश्य कोविड-19 महामारी के दौरान छात्रों, शिक्षकों और परिवार के सदस्यों को मनो-सामाजिक सहायता प्रदान करना है।
- मानस मोबाइल एप:
- भारत सरकार ने वर्ष 2021 में सभी आयु समूहों में मानसिक कल्याण को बढ़ावा देने के लिये MANAS (मानसिक स्वास्थ्य और सामान्य स्थिति संवर्द्धन प्रणाली) लॉन्च किया।
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