महामारी रोग अधिनियम: समग्र विश्लेषण
प्रीलिम्स के लियेमहामारी रोग अधिनियम, 1897 मेन्स के लियेमहामारी रोग अधिनियम का महत्त्व और उसकी सीमाएँ |
चर्चा में क्यों?
बीते महीने केंद्र सरकार ने महामारी रोग अधिनियम, 1897 (Epidemic Disease Act, 1897) में संशोधन करते हुए स्वास्थ्यकर्मियों के साथ हिंसा के कृत्य को संज्ञेय एवं गैर-ज़मानती अपराध घोषित किया था, जिससे लगभग 123 वर्ष पुराना यह अधिनियम एक बार पुनः चर्चा में आ गया है।
प्रमुख बिंदु
- ध्यातव्य है कि केंद्र सरकार ने इसी वर्ष मार्च माह में COVID-19 के प्रकोप से लड़ने के लिये महामारी रोग अधिनियम, 1897 लागू किया था।
- औपनिवेशिक-युग का यह अधिनियम राज्य सरकारों को विशेष उपाय करने और महामारी के दौरान विशेष नियम निर्धारित करने का अधिकार देता है।
- इसके अतिरिक्त यह अधिनियम राज्य सरकार द्वारा निर्धारित नियमों की अवज्ञा करने पर दिये जाने वाले दंड को परिभाषित करता है, साथ ही यह ‘सद्भावना में’ किये गए किसी भी कार्य के लिये सुरक्षा प्रदान करता है।
क्यों आवश्यक था अधिनियम?
- उल्लेखनीय है कि भारतीय गवर्नर जनरल की परिषद (Council of the Governor General of India) के सदस्य जे. वुडबर्न (J Woodburn) ने सर्वप्रथम 28 जनवरी, 1897 को ‘ब्लैक डेथ’ के नाम से प्रसिद्ध ब्यूबोनिक प्लेग (Bubonic Plague) के प्रकोप के दौरान महामारी रोग विधेयक को प्रस्तुत किया था।
- विश्लेषकों के अनुसार, जनसंख्या के निरंतर प्रवाह के कारण प्लेग महामारी तेज़ी से फैल रही थी और अनुमान के अनुसार, महामारी फैलने के दौरान प्रति सप्ताह लगभग 1900 लोगों की मौत हो रही थी।
- उस समय जे. वुडबर्न ने कहा था कि ‘ब्यूबोनिक प्लेग जो कि बॉम्बे में काफी अधिक फैल चुका है और धीरे-धीरे देश के अन्य हिस्सों में फैल रहा है, इसलिये आवश्यक है कि सरकार जल्द-से-जल्द इस बीमारी से लड़ने के लिये कुछ महत्त्वपूर्ण कदम उठाए, ताकि यह बीमारी देश के अन्य हिस्सों में न पहुँचे।
- विधेयक में कहा गया था कि नगरपालिका निकायों, छावनियों और अन्य स्थानीय सरकारों के पास इस प्रकार की स्थितियों से निपटने के लिये शक्तियाँ तो थीं, किंतु वे सभी शक्तियाँ ‘अपर्याप्त’ थीं।
- उल्लेखनीय है कि भारत की उस समय की स्थिति से विश्व के कई अन्य देश भी चिंतित थे, रूस का अनुमान था कि इस बीमारी के कारण आगामी समय में संपूर्ण उपमहाद्वीप संक्रमित हो सकता है।
- इस विधेयक में भारतीय प्रांतों और स्थानीय सरकारों को विशेष शक्तियाँ प्रदान की गईं, जिसमें ट्रेनों और समुद्री मार्गों के यात्रियों की जाँच करना भी शामिल था।
- विधेयक में कहा गया था कि इसमें कहा गया है कि मौजूदा कानून नगर निगम अधिकारियों के लिये ‘भीड़भाड़ वाले घरों, उपेक्षित शौचालयों तथा झोपड़ियों और अस्वच्छ गौशालाओं तथा अस्तबलों’ से संबंधित विभिन्न मामलों से निपटने के लिये पर्याप्त नहीं हैं।
कैसे पारित हुआ यह विधेयक?
- इस विधेयक को जेम्स वेस्टलैंड (James Westland) की अध्यक्षता वाली एक प्रवर समिति को भेजा गया, जिसने अगले ही सप्ताह 4 फरवरी, 1897 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की और इसी दिन संक्षिप्त चर्चा के पश्चात् विधेयक पारित कर दिया गया।
- यह विधेयक ब्यूबोनिक प्लेग (Bubonic Plague) के बढ़ते संक्रमण की चिंताओं के संदर्भ में पारित किया गया था, चूँकि बॉम्बे से काफी अधिक मात्रा में संक्रमित लोग देश के अन्य क्षेत्रों में जा रहे थे, जिससे प्लेग काफी तेज़ी से फैल रहा था।
- ध्यातव्य है कि तत्कालीन ब्रिटिश सरकार मुख्य रूप से भारत की तत्कालीन राजधानी कलकत्ता के लिये काफी चिंतित थी।
- विधेयक पर चर्चा करने वाले सदस्यों में रहीमतुला मुहम्मद सयानी (Rahimtula Muhammad Sayani) और दरभंगा के महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह (Lakshmishwar Singh) ने कहा था कि इस विधेयक को काफी ‘हड़बड़ी’ में पारित किया जा रहा है।
- हालाँकि दरभंगा के महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह ने तत्कालीन स्थिति को ‘मानव जाति के समक्ष मौजूद सर्वाधिक भयानक संकटों में से एक के रूप में वर्णित किया था।’
अधिनियम के प्रमुख प्रावधान
- महामारी रोग अधिनियम में कुल चार खंड हैं, जिन्हें आवश्यकतानुसार, समय-समय पर संशोधित किया जाता है। अधिनियम के महत्त्वपूर्ण प्रावधान निम्नानुसार हैं:
- महामारी रोग अधिनियम, 1897 की धारा (2) के अनुसार, जब यह निश्चित हो जाए कि पूरे राज्य या उसके किसी भाग में किसी खतरनाक महामारी का प्रकोप हो गया है, या होने की आशंका है तब राज्य सरकार यदि यह समझती है कि मौजूदा विधि के साधारण उपबंध इसके लिये पर्याप्त नहीं हैं, तो वह ऐसे उपाय कर सकेगी जिन्हें वह उस रोग के प्रकोप या प्रसार की रोकथाम के लिये आवश्यक समझे।
- राज्य सरकार बड़े पैमाने पर जनता की सुरक्षा के लिये निम्नलिखित उपाय कर सकती हैं
- यात्रा करने वाले व्यक्ति का निरीक्षण करना।
- उन व्यक्तियों का, जिनके बार में जाँच अधिकारी को यह शंका है कि वे किसी रोग से संक्रमित है, किसी अस्पताल अथवा अस्थायी आवास में अलगाव करना।
- इस अधिनियम की धारा 2A केंद्र सरकार को भारत छोड़ने वाले तथा भारत पहुँचाने वाले जहाज़ों का निरीक्षण करने का अधिकार देता है और आवश्यकता पड़ने पर केंद्र सरकार को ऐसे जहाज़ों को बंद करने का अधिकार होता है।
- अधिनियम की धारा 3 में अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर दिये जाने वाले दंड के प्रावधान हैं। धारा 3 के अनुसार, अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 188 के समान सज़ा होगी।
- IPC की धारा 188 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति सरकार के नियमों/अधिसूचना का उल्लंघन करता है तो उसे कम-से-कम 1 महीने और अधिकतम 6 महीने कैद और 1000 रुपए का जुर्माना हो सकता है।
- अधिनियम की धारा-4 सरकार, उसके कर्मचारियों और उसके अधिकारियों को ‘सद्भाव में’ किये गए किसी भी कार्य के लिये सुरक्षा प्रदान करता है।
अधिनियम की सीमाएँ
- ध्यातव्य है कि यह अधिनियम तकरीबन 123 वर्ष से अधिक पुराना है और इसे तत्कालीन सरकार द्वारा भारत के एक विशेष हिस्से बॉम्बे प्रेसीडेंसी के लिये अधिनियमित किया गया था, इसलिये कई आलोचकों का मत है कि यह मौजूदा भारतीय परिदृश्य के लिये पर्याप्त नहीं है।
- विदित हो कि ब्रिटिश काल के दौरान कई अवसरों पर यह भी देखा गया कि ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा स्वतंत्रता सेनानियों को गिरफ्तार करने और सार्वजनिक सभाओं को रोकने के लिये इस अधिनियम का दुरुपयोग किया गया।
- महामारी रोग अधिनियम का उद्देश्य किसी बीमारी के प्रसार को रोकने के लिये अधिक है जो पहले से ही फैल रही है, जबकि यह बीमारी को रोकने या मिटाने पर ध्यान केंद्रित नहीं करता है।
- इस अधिनियम में महामारी या बीमारी शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है। साथ ही इस अधिनियम में सरकार के लिये महामारी के समय लागू किये जाने वाले विभिन्न उपायों को लेकर कोई विशेष निर्देश नहीं दिये गए हैं।
- सरकार की ओर से टीके और दवाओं का वितरण किस प्रकार किया जाए, इस विषय पर भी यह अधिनियम कुछ विशेष प्रावधान नहीं करता है।
COVID-19 और महामारी रोग अधिनियम
- महाराष्ट्र, पंजाब, गुजरात, असम और दिल्ली समेत देश के कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने महामारी रोग अधिनियम के प्रावधानों के तहत अधिसूचना जारी की है।
- इस अधिनियम के तहत कुछ प्रतिबंध लगाने के बावजूद भी कई राज्य मुख्य रूप से महामारी के प्रसार को कम करने जैसी समस्याओं का सामना कर रहे हैं, क्योंकि इस अधिनियम में कोई विशेष प्रावधान नहीं हैं जो राज्य सरकारों को संकट के दौरान एक निर्दिष्ट तरीके से कार्य करने के लिये मार्गदर्शन कर सकें।
- यह अधिनियम एक शताब्दी से भी अधिक पुराना है, जब विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization-WHO) और संयुक्त राष्ट्र (United Nations-UN) जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की स्थापना भी नहीं हुई थी। इस प्रकार यह अधिनियम इन संगठनों द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुरूप कार्य करने में असमर्थ है।
- आवश्यक है कि मौजूदा COVID-19 संक्रमण के दौरान विधायिका को देश के समक्ष मौजूद चुनौतियों और कठिनाइयों पर विचार करना चाहिये और उनके अनुसार एक नया तथा प्रभावी कानून का निर्माण करना चाहिये।