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SC/ST एक्‍ट पर सर्वोच्च न्यायालय का एक अहम फैसला

  • 21 Mar 2018
  • 8 min read

चर्चा में क्यों
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने एससी/एसटी एक्ट के बड़े पैमाने पर गलत इस्तेमाल की बात को स्वीकार करते हुए एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। अनुसूचित जाति/जनजाति अधिनियम, 1989 के तहत किसी भी तरह के अपराध के मामले में न्यायालय द्वारा नए दिशा-निर्देश जारी किये गए हैं।

  • इन नए दिशा-निर्देशों में न्यायालय द्वारा स्पष्ट किया गया है, जैसा कि अधिनियम में वर्णित है उस प्रारूप के अनुसार अब न तो तत्काल गिरफ्तारी की जाएगी और न ही तत्काल एफआईआर ही दर्ज की जाएगी।
  • अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति अधिनियम के दुरुपयोग के संबंध में शिकायत मिलने पर तत्काल एफआईआर दर्ज करने से पहले डीएसपी द्वारा मामले की जाँच की जाएगी।
  • किसी सरकारी अफसर की गिरफ्तारी से पहले उसके उच्चाधिकारी से अनुमति लेनी ज़रूरी होगी। ऐसे मामलों में सामान्य आदमी के संबंध में एसएसपी की मंज़ूरी लेना आवश्यक बना दिया गया है। इसके साथ ही अभियुक्त की भी तत्काल गिरफ्तारी नहीं की जाएगी तथा गिरफ्तारी से पहले उसकी जमानत के मार्ग को प्रशस्त किया गया है।
  • गौरतलब है कि पिछले तीन दशकों में अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति अधिनियम, 1989 [Scheduled Castes and Scheduled Tribes (Prevention of Atrocities) Act] के तहत कई फर्ज़ी मामले सामने आए हैं। सुप्रीम न्यायालय ने पुणे के राजकीय फार्मेसी कॉलेज, कारद में कार्यरत अफसर डॉ. सुभाष काशीनाथ महाजन की याचिका के संबंध में यह निर्णय सुनाया है।

न्यायालय द्वारा जारी किये गए नए दिशा-निर्देश
I. ऐसे मामलों में किसी भी निर्दोष को कानूनी प्रताड़ना से बचाने के लिये कोई भी शिकायत मिलने पर तत्काल एफआईआर दर्ज नहीं की जाएगी। सबसे पहले शिकायत की जाँच डीएसपी स्तर के पुलिस अफसर द्वारा की जाएगी।

II. न्यायालय द्वारा स्पष्ट किया गया है कि यह जाँच पूर्ण रूप से समयबद्ध होनी चाहिये। जाँच किसी भी सूरत में 7 दिन से अधिक समय तक न चले। इन नियमों का पालन न करने की स्थिती में पुलिस पर अनुशासनात्मक एवं न्यायालय की अवमानना करने के संदर्भ में कार्यवाई की जाएगी।

III. अभियुक्त की तत्काल गिरफ्तारी नहीं की जाएगी। सरकारी कर्मचारियों को नियुक्त करने वाली अथॉरिटी की लिखित मंज़ूरी के बाद ही गिरफ्तारी हो सकती है और अन्य लोगों को ज़िले के एसएसपी की लिखित मंज़ूरी के बाद ही गिरफ्तारी किया जा सकेगा।

IV. इतना ही नहीं, गिरफ्तारी के बाद अभियुक्त की पेशी के समय मजिस्ट्रेट द्वारा उक्त कारणों पर विचार करने के बाद यह तय किया जाएगा कि क्या अभियुक्त को और अधिक समय के लिये हिरासत रखा जाना चाहिये अथवा नहीं।

V. इस मामले में सरकारी कर्मचारी अग्रिम जमानत के लिये भी आवेदन कर सकते हैं। आप को बता दें कि अधिनियम की धारा 18 के तहत अभियुक्त को अग्रिम ज़मानत दिये जाने पर भी रोक है।

उत्पीड़न के ज़्यादातर मामले झूठे हैं

  • नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के संबंध में विचार करने पर ज्ञात होता है कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम में दर्ज ज़्यादातर मामले झूठे पाए गए।
  • न्यायालय द्वारा अपने फैसले में ऐसे कुछ मामलों को शामिल किया गया है जिसके अनुसार 2016 की पुलिस जाँच में अनुसूचित जाति को प्रताड़ित किये जाने के 5347 झूठे मामले सामने आए, जबकि अनुसूचित जनजाति के कुल 912 मामले झूठे पाए गए।
  • वर्ष 2015 में एससी-एसटी कानून के तहत न्यायालय द्वारा कुल 15638 मुकदमों का निपटारा किया गया। इसमें से 11024 मामलों में या तो अभियुक्तों को बरी कर दिया गया या फिर वे आरोप मुक्त साबित हुए। जबकि 495 मुकदमों को वापस ले लिया गया।
  • केवल 4119 मामलों में ही अभियुक्तों को सज़ा सुनाई गई। ये सभी आँकड़े 2016-17 की सामाजिक न्याय विभाग की वार्षिक रिपोर्ट में प्रस्तुत किये गए हैं।

अनुसूचित जाति/ जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम क्या है?

अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 2015 को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के खिलाफ अत्याचारों की रोकथाम के लिये लाया गया। यह अधिनियम मुख्य अधिनियम अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम,1989 का संशोधित प्रारूप है।

मुख्य विशेषताएँ

  • अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के विरुद्ध किये जाने वाले अपराधों में निम्नलिखित शामिल हैं: 

♦ सिर और मूँछ के बालों का मुंडन कराना।
♦ समुदाय के लोगों को जूते की माला पहनाना।
♦ सिंचाई सुविधाओं तक जाने से रोकना या वन अधिकारों से वंचित रखना।
♦ मानव और पशु नरकंकाल को निपटाने तथा लाने-ले जाने के लिये बाध्य करना। 
♦ कब्र खोदने के लिये बाध्य करना।
♦ सिर पर मैला ढोने की प्रथा का उपयोग और अनुमति देना।
♦ अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं को देवदासी के रूप में समर्पित करना।
♦ जातिसूचक शब्द कहना।
♦ जादू-टोना अत्याचार को बढ़ावा देना।
♦ सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार करना।
♦ चुनाव लड़ने में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के उम्मीदवारों को नामांकन दाखिल करने से रोकना।
♦ अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं को वस्त्रहरण कर आहत करना।
♦ अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के किसी सदस्य को घर-गाँव और आवास छोड़ने के लिये बाध्य करना।
♦ अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की पूजनीय वस्तुओं को विरूपित करना।
♦ अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्य के विरुद्ध यौन दुर्व्यवहार करना।
♦ यौन दुर्व्यवहार भाव से उन्हें छूना और अभद्र भाषा का उपयोग करना।

  • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय के लोगों के साथ दूसरे समुदाय के व्यक्ति से किसी बात को लेकर मामूली कहासुनी पर भी एससीएसटी एक्ट लग जाता था। एक्ट के नियमों के तहत बिना जाँच किये आरोपी की तत्काल गिरफ्तारी हो जाती थी। आरोपी को अपनी सफाई और बचाव के लिये लंबी कानूनी प्रक्रिया से गुज़रना पड़ता था।
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