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डेली न्यूज़

  • 23 Aug, 2023
  • 66 min read
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

जीन संपादित सरसों

प्रिलिम्स के लिये: 

जीन संपादन, भारत में सरसों, CRISPR/Cas9, ग्लूकोसाइनोलेट्स, जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति, DNA, आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) पौधे

मेन्स के लिये:

सरसों की ब्रीडिंग में जीन संपादन का महत्त्व, जीनोम संपादन और आनुवंशिक संशोधन में अंतर

चर्चा में क्यों?

भारतीय वैज्ञानिकों ने पहली बार कम तीखी गंध वाली सरसों (Low-Pungent Mustard) विकसित की है जो कीटरोधी होने के साथ रोग प्रतिरोधी भी है। यह गैर-GM और ट्रांसजीन-मुक्त होने के साथ-साथ CRISPR/Cas9 जीन एडिटिंग पर आधारित है।

सरसों की ब्रीडिंग में जीन संपादन का महत्त्व:

  • पृष्ठभूमि:
    • भारत में उगाए जाने वाले पारंपरिक सरसों के बीज (ब्रैसिका जंकिया) में ग्लूकोसाइनोलेट्स नामक यौगिकों के लगभग 120-130 भाग प्रति मिलियन (ppm) होते हैं, जो सल्फर और नाइट्रोजन युक्त यौगिकों का एक समूह है तथा उसके तेल और भोजन की विशिष्ट तीक्ष्णता में योगदान देता है।
      • ये यौगिक प्राकृतिक रक्षक के रूप में काम करते हैं, पौधे को कीटों और बीमारियों से बचाते हैं।
      • इसकी तुलना में कैनोला के बीजों में बहुत कम, लगभग 30 ppm ग्लूकोसाइनोलेट्स होते हैं। इसका निम्न स्तर कैनोला तेल और भोजन को एक विशिष्ट सुखद स्वाद देता है।
    • तिलहन से खाना पकाने के लिये तेल प्राप्त होता है और इसमें बना बचा हुआ भोजन एक प्रोटीन युक्त घटक के रूप में पशु आहार में उपयोग किया जाता है। ग्लूकोसाइनोलेट्स से भरपूर रेपसीड मील (एक उच्च गुणवत्ता वाला पशु चारा) पशुओं को खिलाया जाता है लेकिन इसे घास और पानी के साथ मिलाने की आवश्यकता होती है।
      • उच्च ग्लूकोसाइनोलेट्स को पशुओं में गण्डमाला (गर्दन की सूजन) और आंतरिक अंग असामान्यताओं का कारण भी माना जाता है।
    • वैज्ञानिक कैनोला बीजों के समान सरसों के बीज विकसित करने के लक्ष्य पर काम कर रहे हैं जिनमें ग्लूकोसाइनोलेट्स कम हो
      • हालाँकि सरसों के बीज में ग्लूकोसाइनोलेट्स को कम करने से पौधे की कीटों और बीमारियों से लड़ने की क्षमता कमज़ोर हो सकती है, जो एक चुनौती पेश करती है।
    • सरसों की ब्रीडिंग में जीन/जीनोम संपादन की भूमिका:
  • वैज्ञानिक ग्लूकोसाइनोलेट ट्रांसपोर्टर (GTR) जीन के रूप में ज्ञात विशिष्ट जीन को संशोधित करने की दिशा में प्रयास कर रहे हैं।
    • ये जीन सरसों के बीज में प्रमुख यौगिक ग्लूकोसाइनोलेट्स के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं
  • इस संशोधन के लिये वैज्ञानिकों ने CRISPR/Cas9 नामक एक जीन-संपादन तकनीक का उपयोग किया, जो जीन अनुक्रमों को सटीकता से परिवर्तित करने में मदद करता है।
  • 'वरुण' नामक सरसों की एक विशेष किस्म में शोधकर्ताओं ने 12 GTR जीनों में से 10 पर विशेष अध्ययन किया है।
    • इन आनुवंशिक संशोधनों के माध्यम से उन्होंने इन जीनों द्वारा उत्पादित प्रोटीन को निष्क्रिय किया, जिसके परिणामस्वरूप बीजों के भीतर ग्लूकोसाइनोलेट स्तर में काफी कमी देखने को मिली।
  • कीट प्रतिरोध और पौधों की सुरक्षा पर जीन संपादन के प्रभाव:
  • संशोधित सरसों के पौधों के बीजों में ग्लूकोसाइनोलेट स्तर कैनोला-गुणवत्ता वाले बीजों के लिये निर्धारित 30 ppm सीमा से कम पाया गया।
  • जबकि बीजों के आसपास की पत्तियों और फलियों में ग्लूकोसाइनोलेट्स का स्तर अधिक पाया गया।
  • इस वृद्धि को इन यौगिकों के संचरण में उत्पन्न व्यवधान का प्रमुख कारक माना गया। पत्तियों और फलियों में ग्लूकोसाइनोलेट्स का बढ़ा हुआ यह स्तर पौधों की कीटों की प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • इन आनुवंशिक संशोधनों के परिणामस्वरूप संपादित सरसों में कवक व कीट दोनों के प्रति रक्षा तंत्र मज़बूत होता पाया गया।

जीनोम संपादन और आनुवंशिक संशोधन के बीच अंतर:

  • GTR जीन-संपादित सरसों जीनोम संपादन का परिणाम है, यह उसे आनुवंशिक रूप से संशोधित पौधों से अलग बनाती है।
    • आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों में इनका मिलान विदेशी जीन के साथ किया जाता है, जैसे कि कपास में बैसिलस थुरिंजिएन्सिस बैक्टीरिया या फिर आनुवंशिक रूप से संशोधित हाइब्रिड सरसों (DMH -11) में बार-बार्नसे-बारस्टार (अन्य मृदा के जीवाणुओं से अलग किया गया)। जबकि जीन संपादन नई आनुवंशि क सामग्री जोड़े बिना ही उन जीनों में मौजूद तत्त्वों को संशोधित करने पर केंद्रित है।
    • हाल ही में विकसित सरसों ट्रांसजीन से पूरी तरह मुक्त है और इसमें कोई विदेशी जीन नहीं है।
  • यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि CRISPR/Cas9 एंजाइम, जो जीन संपादन के लिये कारगर होते हैं, की जीनोम-संपादित पौधों में मौजूदगी नहीं होती है।
  • यह उन्हें ट्रांसजेनिक GM फसलों से अलग करता है, जहाँ प्रविष्ट जीन बने रह सकते हैं।
  • विनियामक परिदृश्य और भविष्य की संभावनाएँ:
    • भारत में आनुवंशिक संशोधन का विनियमन सख्त है और इसके लिये पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (Genetic Engineering Appraisal Committee- GEAC) से अनुमोदन की आवश्यकता होती है।
      • हालाँकि MoEFCC के एक आधिकारिक ज्ञापन में उन जीनोम-संपादित (GE) पौधों को छूट मिली है, जिनमें विदेशी DNA को शामिल नहीं किया गया है और उन्हें खुले क्षेत्र के परीक्षणों के लिये GEAC अनुमोदन की आवश्यकता नहीं है।
      • नव विकसित जीनोम-संपादित सरसों संस्थागत जैव-सुरक्षा समिति (Institutional Bio-safety Committee- IBSC) से मंज़ूरी प्राप्त करने के बाद खुले क्षेत्र में परीक्षण के लिये इस्तेमाल की जा सकती है।
    • इन प्रगतियों के पर्याप्त संभावित लाभ हैं, विशेषतः इसलिये क्योंकि भारत वर्तमान में बड़ी मात्रा में खाद्य तेलों का आयात करता है, जिस पर सालाना काफी लागत आती है।
      • ये नवाचार फसल की पैदावार, कीटों के प्रतिरोध और उत्पाद की गुणवत्ता को बढ़ाकर घरेलू तिलहन उत्पादन को बढ़ाने में सक्षम हैं।
      • यह प्रगति अंततः आयातित वनस्पति तेलों पर देश की निर्भरता को कम करने में योगदान दे सकती है।

भारत में सरसों की खेती की स्थिति:

  • सरसों भारत में व्यापक रूप से उगाई जाने वाली तिलहन फसल है, जो 9 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में प्रतिवर्ष उगाई जाती है। इसे रबी मौसम में भी उगाया जाता है।
    • यह देखते हुए कि इसमें औसत तेल निकालने योग्य सामग्री (38%) अधिक होती है और यह एक अच्छी "तिलहन" फसल है, सरसों मनुष्यों और अन्य पशुओं के लिये प्रोटीन तथा वसा का भी एक अच्छा स्रोत है।
  • सरसों राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों के किसानों के लिये एक महत्त्वपूर्ण नकदी फसल है।

CRISPR-Cas9 प्रौद्योगिकी:

  • CRISPR-Cas9 एक अभूतपूर्व तकनीक है जो आनुवंशिकीविदों तथा चिकित्सा शोधकर्ताओं को जीनोम के विशिष्ट भागों को संशोधित करने का अधिकार देती है।
    • यह DNA अनुक्रम के भीतर खंडों को सटीक रूप से हटाने, जोड़ने या संशोधित करने के माध्यम से प्राप्त की जाती है।
  • CRISPR-Cas9 प्रणाली में दो महत्त्वपूर्ण घटक शामिल हैं जो DNA में परिवर्तन या उत्परिवर्तन लाते हैं। ये घटक हैं:
    • Cas9 नामक एक एंजाइम, जो सटीक 'आण्विक कैंची' (Molecular Scissors) के एक युग्म की तरह कार्य करता है।
      • Cas9, जीनोम में एक विशिष्ट स्थान पर DNA के दो रज्जुक (Strands) को काट सकता है ताकि DNA के खंडों को जोड़ा या हटाया जा सके।
    • RNA के एक खंड को गाइड RNA (gRNA) कहा जाता है। इसमें एक छोटा, पूर्व-डिज़ाइन किया गया RNA अनुक्रम शामिल है।
      • यह RNA अनुक्रम एक लंबी RNA संरचना के भीतर अंतर्निहित होता है। RNA का लंबा हिस्सा स्वयं को DNA से जोड़ता है, जबकि इसके भीतर का विशिष्ट अनुक्रम Cas9 के लिये "गाइड" (Guide) के रूप में कार्य करता है।
      • यह गाइड मैकेनिज़्म Cas9 एंजाइम को जीनोम में सटीक स्थान पर निर्देशित करता है जहाँ उसे कट करना चाहिये।
      • यह सुनिश्चित करता है कि Cas9 एंजाइम की काटने की क्रिया जीनोम में इच्छित बिंदु पर सटीक रूप से होती है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. प्राय: समाचारों में आने वाला Cas9 प्रोटीन क्या है? (2019)

(a) लक्ष्य-साधित जीन संपादन (टारगेटेड जीन एडिटिंग) में प्रयुक्त आण्विक कैंची।
(b) रोगियों में रोगजनकों की ठीक-ठीक पहचान के लिये प्रयुक्त जैव संवेदक।
(c) एक जीन जो पादपों को पीड़क-प्रतिरोधी बनाता है।
(d) आनुवंशिकत: रूपांतरित फसलों में संश्लेषित होने वाला एक शाकनाशी पदार्थ।

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. अनुप्रयुक्त जैव-प्रौद्योगिकी में शोध तथा विकास-संबंधी उपलब्धियाँ क्या हैं? ये उपलब्धियाँ समाज के निर्धन वर्गों के उत्थान में किस प्रकार सहायक होंगी? (2021)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

पीएम-डिवाइन और पूर्वोत्तर विशेष अवसंरचना विकास योजनाएँ

प्रिलिम्स के लिये:

पीएम-डिवाइन, पीएम गति शक्ति

मेन्स के लिये:

भारत के लिये पूर्वोत्तर का महत्त्व, पूर्वोत्तर भारत से संबंधित चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पूर्वोत्तर भारत के विकास को बढ़ावा देने के लिये डिज़ाइन की गई पूर्वोत्तर क्षेत्र हेतु प्रधानमंत्री विकास पहल (Prime Minister's Development Initiative for North Eastern Region- PM-DevINE) में क्षेत्र की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं के अनुरूप महत्त्वपूर्ण संशोधन किये गए हैं।

  • ये नए दिशा-निर्देश 12 अक्तूबर, 2022 से प्रभावी सभी पीएम-डिवाइन परियोजनाओं को नियंत्रित करते हैं।
  • इसके अतिरिक्त पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय (Ministry of Development of the North Eastern Region- MDoNER) 15वें वित्त आयोग की शेष अवधि (2022-2026) के दौरान कैबिनेट द्वारा अनुमोदित पूर्वोत्तर विशेष अवसंरचना विकास योजना (North East Special Infrastructure Development Scheme- NESIDS) को लागू करने के लिये नए योजना दिशा-निर्देश जारी करता है।

पीएम-डिवाइन योजना के संशोधित दिशा-निर्देश:

  • परियोजना निरीक्षण और शासन:
    • MDoNER, NEC या केंद्रीय मंत्रालयों/एजेंसियों के माध्यम से कार्यान्वयन के साथ राज्य सरकारों, उत्तर-पूर्वी परिषद (North Eastern Council- NEC) और संबंधित केंद्रीय मंत्रालयों के परामर्श से परियोजना चयन, अनुमोदन एवं निगरानी का निरीक्षण करेगा।
    • ये दिशा-निर्देश प्रक्रिया की रूपरेखा तैयार करते हैं, जिसमें परियोजना की पहचान, चयन, DPR तैयार करना, मंज़ूरी, फंड जारी करना, निगरानी तथा परियोजना पूर्ण करना शामिल है।
  • अधिकार प्राप्त अंतर-मंत्रालयी समिति (Empowered Inter-Ministerial Committee- EIMC):
    • पीएम-डिवाइन के अंतर्गत विभिन्न कार्यों की देख-रेख के लिये अधिकार प्राप्त अंतर-मंत्रालयी समिति का गठन।
    • इसकी अध्यक्षता पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय के सचिव द्वारा की जाएगी।
  • राज्य स्तरीय अधिकार प्राप्त समिति (State Level Empowered Committee- SLEC):
    • परियोजना की समीक्षा एवं अनुमोदन हेतु राज्य स्तरीय अधिकार प्राप्त समिति का गठन।
    • मुख्य सचिव, संबंधित सचिव और NEC के प्रतिनिधि इसके सदस्यों के अंतर्गत आते हैं।
  • परियोजना चयन के संबंध में:
    • पूर्वोत्तर राज्यों को राज्य रसद नीति को अधिसूचित करना और भूमि राजस्व चार्ट सहित गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान डेटा अनुभागों को अद्यतन करना चाहिये। इसके साथ-साथ सचिवों के अधिकार प्राप्त समूह, नेटवर्क योजना समूह और तकनीकी सहायता इकाई जैसे गति शक्ति कार्यान्वयन तंत्र की स्थापना करनी चाहिये।
      • इन मानदंडों को पूरा नहीं करने वाले राज्यों को वर्ष 2023-24 से नई पीएम-डिवाइन परियोजना की मंजूरी नहीं दी जाएगी

पीएम-डिवाइन:

  • पीएम-डिवाइन की शुरुआत:
    • पीएम-डिवाइन योजना एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है, इसे केंद्रीय बजट 2022-23 के एक हिस्से के रूप में पेश किया गया था।
    • 12 अक्तूबर, 2022 को कैबिनेट ने पीएम-डिवाइन योजना को मंज़ूरी दी थी। यह  पूर्णतः अर्थात् 100% केंद्र द्वारा वित्तपोषित है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि संसाधन सीधे-सीधे विकास पहलों के लिये आवंटित किये जाएँ।
    • इसका क्रियान्वयन पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय द्वारा किया जाता है।
  • पीएम-डिवाइन के उद्देश्य:
    • अवसंरचना विकास: पीएम गति-शक्ति की भावना के अनुरूप, पीएम-डिवाइन का लक्ष्य संपूर्ण NER में निर्बाध कनेक्टिविटी और पहुँच सुनिश्चित करते हुए एक समेकित तरीके से अवसंरचना परियोजनाओं को वित्तपोषित करना है।
    • सामाजिक विकास परियोजनाओं का समर्थन: NER की विशिष्ट ज़रूरतों और चुनौतियों की पहचान करते हुए यह योजना उन सामाजिक विकास परियोजनाओं का समर्थन करने का प्रयास करती है जो महत्त्वपूर्ण मुद्दों का समाधान कर क्षेत्र के निवासियों के जीवन की समग्र गुणवत्ता में सुधार करती हैं।
    • युवाओं और महिलाओं का सशक्तीकरण: पीएम-डिवाइन विशेष रूप से NER के युवाओं और महिलाओं को लक्षित करके आजीविका के अवसर उत्पन्न करने  में मदद करती है, जिससे वे क्षेत्र के विकास और प्रगति में सक्रिय रूप से भाग लेने में सक्षम होंगे।
  • पीएम-डिवाइन के तहत अयोग्य परियोजनाएँ:
    • दीर्घकालिक व्यक्तिगत लाभ या "प्रत्यक्ष लाभ अंतरण" प्रदान करने वाली परियोजनाएँ।
    • सरकारी कार्यालयों/एजेंसियों के प्रशासनिक भवनों या संस्थागत आवश्यकताओं के लिये परियोजनाएँ।
    • अन्य MDoNER योजनाओं द्वारा सम्मिलित किये गए क्षेत्र और DoNER मंत्रालय द्वारा नकारात्मक सूची में निर्दिष्ट क्षेत्र।

पूर्वोत्तर विशेष अवसंरचना विकास योजना (NESIDS):

  • NESIDS 100% केंद्रीय वित्तपोषण वाली एक केंद्रीय क्षेत्र योजना है, जिसका वर्ष 2022-23 से 2025-26 के लिये नवीनीकृत अनुमोदित परिव्यय 8139.50 करोड़ रुपए है। 
  • इस योजना में दो घटक शामिल हैं- NESIDS- सड़क और NESIDS- सड़क से अन्य बुनियादी ढाँचा (OTR)।
  • पहले से मौजूद नॉर्थ-ईस्ट रोड सेक्टर डेवलपमेंट स्कीम (NERSDS) के NESIDS-सड़क में विलय के बाद नए दिशा-निर्देश तैयार किये गए।
  • NESIDS का लक्ष्य पूर्वोत्तर राज्यों के चिह्नित क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे का विकास, विशेष रूप से समन्वय को बढ़ावा देना है।

पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास से संबंधित अन्य पहल:

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रश्न. उत्तर-पूर्वी भारत में उपप्लवियों की सीमा के आर-पार आवाजाही, सीमा की पुलिसिंग के सामने अनेक सुरक्षा चुनौतियों में से केवल एक है। भारत-म्यांँमार सीमा के आर-पार वर्तमान में आरंभ होने वाली विभिन्न चुनौतियों का परीक्षण कीजिये। साथ ही चुनौतियों का प्रतिरोध करने के कदमों पर चर्चा कीजिये। (2019)

स्रोत: पी.आई.बी.


भारतीय अर्थव्यवस्था

उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना

प्रिलिम्स के लिये:

इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण के लिये PLI योजना, आत्मनिर्भरता, स्वचालित घटक, WTO नियम

मेन्स के लिये:

PLI योजना- महत्त्व और मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत की इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण योजना, प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) की प्रभावशीलता को लेकर विवाद खड़ा हो गया, इस संबंध में कहा गया है कि यह विनिर्माण और आर्थिक विकास में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के बजाय इम्पोर्ट बेस्ड असेंबली जॉब्स (इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को तैयार करने में आयात पर निर्भरता वाले रोज़गार) उत्पन्न करती है।

उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन योजना (PLI): 

  • परिचय:
    • PLI योजना की कल्पना घरेलू विनिर्माण क्षमता को बढ़ाने के साथ-साथ उच्च आयात प्रतिस्थापन और रोज़गार सृजन के लिये की गई थी।
    • मार्च 2020 में शुरू की गई इस योजना ने आरंभ में तीन उद्योगों को लक्षित किया:
      • मोबाइल और संबद्ध घटक विनिर्माण
      • विद्युत घटक विनिर्माण 
      • चिकित्सा उपकरण
    • बाद में इसे 14 क्षेत्रों तक बढ़ा दिया गया।
    • PLI योजना में घरेलू और विदेशी कंपनियों को भारत में विनिर्माण के लिये पाँच वर्षों तक उनके राजस्व के प्रतिशत के आधार पर वित्तीय लाभ प्राप्त होता है।
  • लक्षित क्षेत्र:
    • ये 14 क्षेत्र हैं;  मोबाइल विनिर्माण, चिकित्सा उपकरणों का विनिर्माण, ऑटोमोबाइल और इसके घटक, फार्मास्यूटिकल्स, दवाएँ, विशेष इस्पात, दूरसंचार एवं नेटवर्किंग उत्पाद, इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद, घरेलू उपकरण (ACs व  LEDs), खाद्य उत्पाद, कपड़ा उत्पाद, सौर पीवी मॉड्यूल, उन्नत रसायन सेल (ACC) बैटरी तथा ड्रोन एवं इसके घटक
  • योजना के तहत प्रोत्साहन:
    • दी जाने वाली प्रोत्साहन राशि की गणना वृद्धिशील बिक्री के आधार पर की जाती है।
      • उन्नत रसायन विज्ञान सेल बैटरी, कपड़ा उत्पाद और ड्रोन उद्योग जैसे कुछ क्षेत्रों में दिये  जाने वाले प्रोत्साहन की गणना पाँच वर्षों की अवधि में की गई बिक्री, प्रदर्शन एवं स्थानीय मूल्यवर्द्धन के आधार पर की जाएगी।
    • अनुसंधान एवं विकास निवेश (R&D investment) पर ज़ोर देने से उद्योग को वैश्विक रुझानों के साथ बने रहने और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धी बने रहने में भी मदद मिलेगी।
  • स्मार्टफोन निर्माण में प्रगति:
    • वित्त वर्ष 2017-18 में मोबाइल फोन का आयात 3.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जबकि निर्यात मात्र 334 मिलियन अमेरिकी डॉलर था, जिसके परिणामस्वरूप 3.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार घाटा हुआ।
    • वित्त वर्ष 2022-23 तक आयात घटकर 1.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर का, जबकि निर्यात बढ़कर लगभग 11 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जिससे 9.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर का सकारात्मक निवल निर्यात हो पाया।

PLI योजना से संबंधित मुद्दे:

  • असेंबली बनाम मूल्यवर्द्धन:
    • मोबाइल और संबद्ध घटक/पुर्जों की विनिर्माण योजना में सब्सिडी का भुगतान केवल भारत में फोन के विनिर्माण के लिये किया जाता है; यह इस पर निर्भर नहीं करता कि भारत में विनिर्माण से कितना वर्द्धित मूल्य उत्पन्न होता है, ऐसे में सब्सिडी का मूल्य काफी कम हो जाता है।
    • इसलिये भारत अभी भी मोबाइल फोन के अधिकांश पुर्जों का आयात करता है।
      • मोबाइल फोन के पुर्जों का आयात, जिसमें डिस्प्ले स्क्रीन, कैमरा, बैटरी, मुद्रित सर्किट बोर्ड शामिल हैं, में वित्त वर्ष 2021 और 2023 के बीच वृद्धि हुई है।
      • व्यावहारिक रूप से देखें तो ये वही दो वर्ष हैं जब मोबाइल फोन निर्यात में सबसे ज़्यादा उछाल देखा गया।

  • WTO के नियम और सीमित मूल्यवर्द्धन:
    • WTO के नियम भारत को PLI सब्सिडी को घरेलू मूल्यवर्द्धन से जोड़ने से रोकते हैं।
    • हालाँकि भारत इलेक्ट्रॉनिक चिप्स विनिर्माण की आकांक्षा रखता है, किंतु धरातल पर देखें तो चिप्स जटिल घटक/कंपोनेंट हैं।
    • ये प्रतिबंध संभवतः घरेलू मूल्यवर्द्धन में उल्लेखनीय कमी का कारण हैं।
  • प्रोत्साहन राशि का अस्पष्ट वितरण:
    • योजना की देख-रेख और विभिन्न क्षेत्रों के लिये धन वितरण को प्रबंधित करने के लिये एक अधिकार प्राप्त समिति के गठन के बावजूद प्रोत्साहन देने की प्रक्रिया में स्पष्टता का अभाव है।
    • एक अच्छी तरह से परिभाषित ऐसा कोई मानदंड या मानकीकृत पैरामीटर नहीं हैं जिसका उपयोग मंत्रालय तथा विभाग इन प्रोत्साहनों के आवंटन को निर्धारित करने के लिये कर सकें, जिस कारण योजना की निष्पक्षता व प्रभावशीलता संबंधी चिंताएँ बढ़ जाती हैं।
  • केंद्रीकृत डेटाबेस की कमी:
    • केंद्रीकृत डेटाबेस (जो उत्पादन अथवा निर्यात में वृद्धि, सृजित नई नौकरियों की संख्या आदि जैसे आँकड़े दर्ज करता है) की कमी के कारण प्रशासनिक समीक्षा करना मुश्किल होता है।
    • सूचना की अस्पष्टता (Information Ambiguity) पारदर्शिता को प्रभावित करती है तथा अपराध की भावना उत्पन्न कर सकती है, साथ ही दोषों में और अधिक वृद्धि कर नीति संरचना को कमज़ोर कर सकती है।

आगे की राह

  • सरकार को रोज़गार सृजन, प्रति नौकरी लागत तथा सीमित सफलता के कारणों पर विचार करते हुए PLI की प्रभावशीलता का आकलन करना चाहिये।
  • इस योजना को नए क्षेत्रों तक विस्तारित करने के लिये इसकी सीमाओं को समझने तथा अंतर्निहित मुद्दों को संबोधित करने की आवश्यकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2023)

कथन-I वस्तुओं के वैश्विक निर्यात में भारत का निर्यात 3.2% है। 

कथन-II भारत में कार्यरत अनेक स्थानीय कंपनियों एवं भारत में कार्यरत कुछ विदेशी कंपनियों ने भारत की ‘उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव)’ योजना का लाभ उठाया है। 

   उपर्युक्त कथनों के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा एक सही है? 

(a) कथन-I और कथन-II दोनों सही हैं तथा कथन-II, कथन-I की सही व्याख्या है। 

(b) कथन-I और कथन-II दोनों सही हैं तथा कथन-II, कथन-I की सही व्याख्या नहीं है। 

(c) कथन-I सही है किंतु कथन-II गलत है। 

(d) कथन-I गलत है किंतु कथन-II सही है। 

उत्तर: (d)

व्याख्या:

  • हाल ही में विश्व व्यापार संगठन की वैश्विक व्यापार आउटलुक एवं स्टैटिक्स रिपोर्ट के अनुसार, भारत वस्तुओं के वैश्विक निर्यात में 1.8 % हिस्सेदारी रखता है। अतः कथन 1 गलत है।
  • वर्ष 2024 के लिये अनुमानित 3.2% के लक्ष्य तक पहुँचने से पूर्व वर्ष 2023 में विश्व वाणिज्यिक वस्तु व्यापार की मात्रा में 1.7% वृद्धि का अनुमान है।
  • उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (प्रोडक्शन लिंक्ड इनिशिएटिव) योजना कंपनियों को भारत में निर्मित उत्पादों के वृद्धिशील विक्रय पर प्रोत्साहन प्रदान करती है। इसका उद्देश्य विदेशी कंपनियों को भारत में इकाइयाँ स्थापित करने के लिये आकर्षित करना है, जबकि स्थानीय कंपनियों को अपनी विनिर्माण इकाइयों का विस्तार करने एवं अधिक रोजगार सृजन तथा आयात पर देश की निर्भरता को कम करने के लिये प्रोत्साहित करना है। अतः कथन 2 सही है।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

यूनाइटेड किंगडम की उत्तरी सागर में ड्रिलिंग

प्रिलिम्स के लिये:

यूनाइटेड किंगडम की उत्तरी सागर ड्रिलिंग  उत्तरी सागर, 1958 जिनेवा कन्वेंशन, ब्रिटेन की संसद का 1964 का महाद्वीपीय शेल्फ अधिनियम, नेट-शून्य उत्सर्जन

मेन्स के लिये:

यूनाइटेड किंगडम  की उत्तरी सागर ड्रिलिंग और इसकी पर्यावरणीय चिंताएँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में UK के प्रधानमंत्री ने ब्रिटेन की ऊर्जा स्वतंत्रता को बढ़ाने के उद्देश्य से उत्तरी सागर में ब्रिटिश तट पर अतिरिक्त जीवाश्म ईंधन ड्रिलिंग की योजना का समर्थन किया है, यह जलवायु लक्ष्यों के प्रति UK की प्रतिबद्धता के विपरीत है।

  • ड्रिलिंग के लिये उद्योगों को विनियमित करने के लिये ज़िम्मेदार उत्तरी सागर संक्रमण प्राधिकरण (NTSA) 33वें अपतटीय तेल और गैस लाइसेंसिंग दौर की देखरेख कर रहा है।

उत्तरी सागर ड्रिलिंग का उद्भव: 

  • उत्तरी सागर के बारे में:
    • उत्तरी सागर उत्तर पश्चिमी यूरोप में स्थित है। इसकी सीमा कई देशों से लगती है, जिनमें पूर्व और उत्तर में नॉर्वे, स्वीडन, डेनमार्क, जर्मनी, नीदरलैंड एवं बेल्जियम तथा यूनाइटेड किंगडम शामिल हैं।
    • यह डोवर जलसंधि और इंग्लिश चैनल द्वारा अटलांटिक से जुड़ा हुआ है, साथ ही ऑर्कनी तथा शेटलैंड द्वीपों व शेटलैंड द्वीपों एवं नॉर्वे के मध्य सीधा महासागर में मिलता है।
  • प्रष्ठभूमि
    • महाद्वीपीय जलमग्न सीमा पर 1958 का जिनेवा कन्वेंशन पहला अंतर्राष्ट्रीय कानून था जिसने समुद्र तट से सटे महाद्वीपीय सीमा पर देशों के अधिकारों को स्थापित किया और उत्तरी सागर में अन्वेषण का मार्ग प्रशस्त किया।
    • UK की संसद के महाद्वीपीय जलमग्न सीमा अधिनियम,1964 ने अपने तटों के समीप समुद्र तल के नीचे तेल और गैस संसाधनों पर देश के अधिकार क्षेत्र को मज़बूत किया।
    • ब्रिटिश पेट्रोलियम (BP) ने 1964 में UK के उत्तरी सागर में पहला अन्वेषण लाइसेंस हासिल किया, जिससे अगले वर्ष प्राकृतिक गैस की खोज हुई। 
    • हालाँकि ड्रिलिंग कार्यों को असफलताओं का सामना करना पड़ा, विशेष रूप से 1965 में बीपी-संचालित सी जेम ड्रिलिंग रिग का ढहना।
    • इसके बाद 1970 में स्कॉटलैंड के एबरडीन के पूर्व में फोर्टीज़ फील्ड में वाणिज्यिक तेल की खोज की गई और उत्तरी सागर में अगले दशकों में विभिन्न कंपनियों के अन्वेषण प्रयासों में वृद्धि देखी गई।
  • यूनाइटेड किंगडम की वर्तमान आवश्यकता:
    • यूनाइटेड किंगडम ने इस बात पर ज़ोर दिया कि वर्ष 2050 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन (Net-Zero Emissions) हासिल करने के बाद भी यूनाइटेड किंगडम की ऊर्जा आवश्यकताओं का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा, लगभग एक-चौथाई अब भी तेल और गैस पर निर्भर रहेगा।
    • यूनाइटेड किंगडम के राष्ट्रपति ने तर्क दिया कि अन्य देशों के संभावित अविश्वसनीय स्रोतों पर निर्भर रहने के बजाय घरेलू आपूर्ति का उपयोग करके इन आवश्यकताओं को पूरा करना बेहतर है।
      • वर्ष 2050 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने की यूनाइटेड किंगडम की प्रतिबद्धता के बावजूद जलवायु लक्ष्यों के पालन को लेकर चिंताएँ जताई जा रही हैं।
      • जलवायु परिवर्तन समिति (Climate Change Committee- CCC) ने अपनी मार्च 2023 की प्रगति रिपोर्ट में बताया कि ब्रिटेन ने दूसरे राष्ट्रीय अनुकूलन कार्यक्रम (National Adaptation Programme) के तहत जलवायु परिवर्तन के लिये पर्याप्त तैयारी नहीं की है।

अपतटीय ड्रिलिंग (Offshore Drilling) से जुड़ी पर्यावरण संबंधी चिंताएँ:

  • तेल का रिसाव: 
    • अपतटीय ड्रिलिंग कार्यों से तेल रिसाव (Oil Spills) का खतरा रहता है, जिसका समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र तथा वन्य जीवन पर विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है। रिसाव हुए तेल से पक्षियों, समुद्री स्तनधारियों तथा मछलियों का दम घुट सकता है, उनमें इन्सुलेशन की कमी हो सकती है और भोजन खोजने की उनकी क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
  • समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र में गड़बड़ी: 
    • ड्रिलिंग प्लेटफाॅर्मों, पाइपलाइनों और अन्य बुनियादी ढाँचे की भौतिक उपस्थिति समुद्री आवासों को प्रभावित कर सकती है।
    • ड्रिलिंग कार्यों से होने वाला शोर और कंपन, समुद्री जीवों के नेविगेशन तथा प्रजनन पैटर्न को प्रभावित करके समुद्री जीवन को नुकसान पहुँचा सकता है।
  • जैवविविधता पर प्रभाव: 
    • ड्रिलिंग संरचनाओं का निर्माण जल के नीचे के आवासों, जैसे- प्रवाल भित्तियों और तलीय समुद्री घास को नुकसान पहुँचा सकता है, ये समुद्री प्रजातियों के लिये प्रमुख प्रजनन स्थल के रूप में काम करते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन: 
    • अपतटीय ड्रिलिंग से प्राप्त जीवाश्म ईंधन को निकालने और जलाने से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वृद्धि होती है, यह अंततः वैश्विक जलवायु परिवर्तन के प्रभावों में वृद्धि करता है।
    • अपतटीय ड्रिलिंग से महासागर भी गर्म होते हैं, जिससे समुद्र के स्तर में वृद्धि होती है और समुद्री धाराओं में व्यवधान उत्पन्न होता है।
  • संसाधनों का क्षरण: 
    • गहन अपतटीय ड्रिलिंग से तेल और गैस भंडार खत्म हो सकते हैं, जिससे पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों में इन संसाधनों के नए क्षेत्रों का पता लगाने का दबाव बढ़ जाएगा।
  • अम्लीकरण: 
    • महासागर जीवाश्म ईंधन को जलाने से निकलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड द्वारा अवशोषित कर लेते हैं, जिससे समुद्र का अम्लीकरण हो जाता है। यह अम्लीकरण समुद्री जीवन विशेष रूप से कैल्शियम कार्बोनेट शैल अथवा कंकाल वाले जीवों, जैसे- प्रवाल भित्तियाँ और शैलफिश को नुकसान पहुँचाता है।

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

बदलती युवा चिंताएँ और आकांक्षाएँ

प्रिलिम्स के लिये:

भारत में युवा 2022 रिपोर्ट, Y20 शिखर सम्मेलन, बेरोज़गारी, कृषि उत्पादकता, जनसांख्यिकीय लाभांश

मेन्स के लिये:

भारत में युवा जनसंख्या से संबंधित अवसर और चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों? 

भारत के 18 राज्यों में लोकनीति-CSDS का एक हालिया सर्वेक्षण युवा चिंताओं और आकांक्षाओं के लगातार परिवर्तित होते परिदृश्य में युवा आबादी की बदलती प्राथमिकताओं पर प्रकाश डालता है।

  • यह सर्वेक्षण प्रमुख मुद्दों के रूप में बेरोज़गारी और मूल्य वृद्धि की बढ़ती चुनौतियों, आर्थिक वर्गों और लिंग के साथ इन चिंताओं का अंतर्संबंध तथा नौकरी की आकांक्षाओं की उभरती प्राथमिकताओं पर ध्यान आकर्षित करता है।

इस सर्वेक्षण की प्रमुख बातें:

  • बेरोज़गारी, मूल्य वृद्धि और लैंगिक असमानता:
    • प्राथमिक चिंता के रूप में मूल्य वृद्धि की पहचान करने वाले उत्तरदाताओं की हिस्सेदारी में 7% अंक की वृद्धि हुई।
    • 40% उच्च शिक्षित उत्तरदाताओं (स्नातक तथा उसके ऊपर) ने बेरोज़गारी को सबसे गंभीर चिंता के रूप में इंगित किया है।
    • 27% गैर-साक्षर व्यक्तिय, जो किसी भी प्रकार के काम की तलाश में थे, उन्होंने बेरोज़गारी को लेकर चिंता व्यक्त की।
      • गरीबी और महँगाई युवा महिलाओं के लिये प्रमुख मुद्दों के रूप में उभरे, चाहे उनकी आर्थिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो।
  • व्यावसायिक विविधता: युवा रोज़गार पर अंतर्दृष्टि:
    • लगभग आधे (49%) उत्तरदाता किसी-न-किसी काम में लगे हुए थे।
      • 40% का पास पूर्णकालिक रोज़गार था , जबकि 9% अंशकालिक रोज़गार  में संग्लग्न थे।
    • नियोजित युवाओं में से 23% स्व-रोज़गार वाले थे, जो एक महत्त्वपूर्ण उद्यमशीलता प्रवृत्ति को प्रदर्शित करता है।
    • कार्यबल का 16% डॉक्टर और इंजीनियर जैसे पेशे में थे।
    • कृषि और कुशल श्रम में क्रमशः 15% और 27% लोग शामिल थे।
  • नौकरी की आकांक्षाएँ और प्राथमिकताएँ:
    • 16% युवाओं ने स्वास्थ्य क्षेत्र में नौकरियों को प्राथमिकता दी।
    • शिक्षा क्षेत्र दूसरा सबसे पसंदीदा क्षेत्र था, जिसे 14% युवाओं ने चुना।
    • अपना स्वयं का व्यवसाय शुरू करने के साथ-साथ विज्ञान और प्रौद्योगिकी से संबंधित नौकरियों में से प्रत्येक को 10% समर्थन प्राप्त हुआ।
    • सरकारी नौकरियों का आकर्षण बरकरार रहा, जब सरकारी नौकरी, निजी नौकरी या अपना स्वयं का व्यवसाय शुरू करने के बीच विकल्प दिया गया तो 60% युवाओं ने सरकारी नौकरी को प्राथमिकता दी।
    • स्व-रोज़गार के लिये प्राथमिकता वर्ष 2007 के 16% से बढ़कर वर्ष 2023 में 27% हो गई है, जो युवाओं के बीच उद्यमशीलता की बढ़ती प्रवृत्ति को दर्शाता है।

भारत में युवा जनसंख्या से संबंधित अवसर और चुनौतियाँ:

  • युवा जनसंख्या की स्थिति: भारत की 50% से अधिक जनसंख्या 25 वर्ष से कम आयु की है और 65% से अधिक जनसंख्या 35 वर्ष से कम आयु की है।
    • युवा जनसांख्यिकीय के मामले में दुनिया में भारत पाँचवें स्थान पर है और यह जनसंख्या लाभ देश के 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

नोट: युवा आयु समूह की कोई सार्वभौमिक रूप से सहमत अंतर्राष्ट्रीय परिभाषा नहीं है। भारत की राष्ट्रीय युवा नीति, 2014 के अनुसार 15 से 29 वर्ष की आयु के व्यक्तियों को युवा माना जाता है। संयुक्त राष्ट्र की कई संस्थाओं, उपकरणों और क्षेत्रीय संगठनों में युवाओं को अलग-अलग ढंग से परिभाषित किया गया है:

  • अवसर:
    • मानव पूंजी निवेश: भारत की युवा आबादी एक संभावित जनसांख्यिकीय लाभांश है, जिसका अर्थ है कि अगर इसका सही तरीके से उपयोग किया जाए, तो यह आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकती है।
      • एक युवा आबादी शिक्षा और कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर प्रदान करती है, जिससे उच्च कुशल कार्यबल तैयार होता है जो विभिन्न उद्योगों की मांग को पूरा कर सकता है।
    • नवाचार और उद्यमिता: युवा अधिकतर नवाचार, नई प्रौद्योगिकियों और उद्यमिता के लिये तैयार रहते हैं।
      • वे आर्थिक विविधीकरण को बढ़ावा देकर नए उद्योगों और स्टार्ट-अप के विकास को बढ़ावा दे सकते हैं।
      • इसके अलावा भारत की आबादी का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा कृषि कार्य में लगा हुआ है, प्रौद्योगिकी और टिकाऊ तरीकों के माध्यम से खेती की आधुनिक प्रणाली को अपनाकर तथा अनुकूलित कर युवाओं की भागीदारी सेकृषि उत्पादकता में वृद्धि हो सकती है।
    • डिजिटल कनेक्टिविटी: भारत के युवा तकनीक-प्रेमी हैं और डिजिटल प्रौद्योगिकियों को अपनाने एवं बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, जिससे डिजिटल अर्थव्यवस्था के विकास में मदद मिलेगी।
    • सामाजिक परिवर्तन और सक्रियता: युवा अक्सर सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन में सबसे आगे होते हैं। 
      • वे सकारात्मक सामाजिक आंदोलन चला सकते हैं, बदलाव की वकालत कर सकते हैं और महत्त्वपूर्ण मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ा सकते हैं।
  • चुनौतियाँ:
    • अल्प-रोज़गार और कौशल में असंतुलन: जिस प्रकार बेरोज़गारी पर अक्सर चर्चा की जाती है, वैसे ही अल्प-रोज़गार और कौशल में असंतुलन भी समान रूप से गंभीर मुद्दे हैं। कई युवा भारतीयों को ऐसी नौकरियाँ मिल जाती हैं जो उनके कौशल स्तर से नीचे की होती हैं या उनकी शिक्षा के अनुरूप नहीं होती हैं।
      • इससे न केवल असंतोष उत्पन्न होता है बल्कि उत्पादकता और आर्थिक विकास भी बाधित होता है।
    • मानसिक स्वास्थ्य और पूर्वाग्रह: युवाओं में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ बढ़ रही हैं, फिर भी मदद मांगने से जुड़ा एक पूर्वाग्रह है।
      • यह पूर्वाग्रह भारतीय समाज में गहराई तक व्याप्त है और युवाओं के उचित देखभाल में बाधा बन सकता है।
    • युवाओं के बीच डिजिटल विभाजन: भारत में एक बड़ी और बढ़ती युवा आबादी है, इसके बावजूद भी डिजिटल प्रौद्योगिकी तक पहुँच अभी भी असमान है।
      • यह डिजिटल विभाजन शिक्षा, रोज़गार के अवसरों और सूचना तक पहुँच में असमानताएँ उत्पन्न  करता है।
    • लैंगिक असमानता और पारंपरिक मानदंड: प्रगति के बावजूद लैंगिक असमानता एक महत्त्वपूर्ण/सार्थक चिंता का विषय बना हुआ है।
      • पारंपरिक मानदंड और पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण का प्रभाव युवा महिलाओं की शिक्षा और रोज़गार पर पड़ता है। 
    • राजनीतिक उदासीनता और युवा प्रतिनिधित्व: जनसंख्या का एक पर्याप्त हिस्सा शामिल होने के बावजूद भारत में युवा अक्सर राजनीतिक प्रक्रिया से अपने को कटा हुआ महसूस करते हैं।
      • इससे उनकी चिंताओं और आकांक्षाओं का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं होता है।

आगे की राह

  • एकीकृत कौशल पारिस्थितिकी तंत्र: भारत को एक व्यापक कौशल पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने की आवश्यकता है जो औपचारिक शिक्षा को अनुभवजन्य शिक्षा, प्रशिक्षुता तथा ऑनलाइन प्लेटफाॅर्मों के साथ समन्वित करती हो।
  • यह कदम सैद्धांतिक ज्ञान और व्यावहारिक कौशल के बीच के अंतर को कम कर सकता है, जिससे रोज़गार में वृद्धि हो सकती है।
  • गेमिफाइड सिविक एंगेजमेंट प्लेटफॉर्म: युवाओं को नागरिक गतिविधियों और राजनीतिक प्रक्रियाओं से जोड़े रखने के लिये गेमिफाइड मोबाइल एप्लीकेशन विकसित किया जा सकता है।
  • नागरिक भागीदारी को एक इंटरैक्टिव अनुभव में बदलकर ये प्लेटफॉर्म अधिक सूचित मतदान को प्रोत्साहित करने में मदद कर सकते हैं, राजनीतिक जागरूकता में वृद्धि कर सकते हैं तथा शासन स्वामित्व की भावना को बढ़ावा दे सकते हैं।
  • पारंपरिक शिल्प में उद्यमिता: पारंपरिक शिल्प को आधुनिक डिज़ाइन और विपणन तकनीकों के साथ एकीकृत करके युवा कारीगरों के बीच उद्यमिता को बढ़ावा दिया जा सकता है।
  • इसमें हस्तशिल्प उत्पादों को ऑनलाइन बेचने के लिये मंच प्रदान करना, ग्रामीण क्षेत्रों में युवाओं के लिये आय के साधन की व्यवस्था करते हुए सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने का प्रयास शामिल हो सकता है।
  • युवा कूटनीति और सांस्कृतिक आदान-प्रदान: वैश्विक समझ, कूटनीति और सीमा पार मित्रता को बढ़ावा देने के लिये भारत तथा अन्य देशों के युवाओं के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान की सुविधा प्रदान करना भी युवाओं के हित में हो सकता है।
  • Y20 शिखर सम्मेलन इसमें अहम भूमिका निभा सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. प्रच्छन्न बेरोजगारी का सामान्यतः अर्थ होता है कि (2013)

(a) लोग बड़ी संख्या में लोग बेरोज़गार होते हैं
(b) वैकल्पिक रोज़गार उपलब्ध नहीं है
(c) श्रम की सीमान्त उत्पादकता शून्य है
(d) श्रमिकों की उत्पादकता नीची है

उत्तर: (c)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

पूर्वोत्तर भारत में पर्यावरणीय चुनौतियाँ

प्रिलिम्स के लिये:

जनहित याचिका, मेघालय जल निकाय (सुरक्षा और संरक्षण) दिशा-निर्देश, 2023, गारो-खासी-जयंतिया पहाड़ियाँ, संविधान की छठी अनुसूची, पूर्वोत्तर औद्योगिक विकास योजना 

मेन्स के लिये:

पूर्वोत्तर भारत में विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मेघालय उच्च न्यायालय ने उमियम झील की सफाई बनाम मेघालय राज्य मामला, 2023 में कहा कि "किसी अन्य रोज़गार अवसर के अभाव में राज्य की प्राकृतिक सुंदरता को क्षति पहुँचाया जाना सर्वथा अनुचित है"।

  • उच्च न्यायालय का यह फैसला इस क्षेत्र की प्राकृतिक सुंदरता की सुरक्षा करते हुए पर्यटन, बुनियादी अवसंरचना के विकास और निर्माण को बढ़ावा देने की चुनौती पर प्रकाश डालता है।

पृष्ठभूमि:

  • उमियम झील की सफाई पर एक जनहित याचिका मेघालय उच्च न्यायालय में काफी लंबे समय से लंबित थी।
  • उमियम झील मामला मुख्यतः झील और जलाशय के आसपास अनियमित निर्माण और पर्यटन के प्रतिकूल प्रभाव पर केंद्रित था।
  • फैसला सुनाते हुए न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि इस क्षेत्र की प्राकृतिक सुंदरता को नष्ट करने की कीमत पर आर्थिक विकास कदापि नहीं होना चाहिये।
  • अधिक व्यापक नियमों की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए जल निकायों के आसपास अनियंत्रित निर्माण के मुद्दे का प्रभावी रूप से हल न करने के लिये उच्च न्यायालय ने मेघालय जल निकाय (सुरक्षा और संरक्षण) दिशा-निर्देश, 2023 की आलोचना की।

पूर्वोत्तर क्षेत्र की विकासात्मक चुनौतियाँ और जैवविविधता में संबंध:

  • जैवविविधता हॉटस्पॉट:
    • तेल, प्राकृतिक गैस, खनिज और मीठे जल जैसे प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों के कारण पूर्वोत्तर भारत एक हरित पट्टी क्षेत्र है।
    • गारो-खासी-जयंतिया पहाड़ियाँ और ब्रह्मपुत्र घाटी सबसे महत्त्वपूर्ण जैवविविधता हॉटस्पॉट में से हैं।
    • पूर्वोत्तर भारत इंडो-बर्मा हॉटस्पॉट का एक हिस्सा है।
  • चिंताएँ:
    • हालाँकि पूर्वोत्तर क्षेत्र औद्योगिक रूप से पर्याप्त विकसित नहीं है, परंतु वनों की कटाई, बाढ़ और मौजूदा उद्योग इस क्षेत्र में पर्यावरण के लिये गंभीर समस्याएँ पैदा कर रहे हैं।
    • विकास मंत्रालय द्वारा किये गए पूर्वोत्तर ग्रामीण आजीविका परियोजना का एक पर्यावरणीय मूल्यांकन बताता है कि "पूर्वोत्तर भारत एक पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील तथा जैविक रूप से समृद्ध क्षेत्र और सीमा पार नदी बेसिन में स्थित है, जो जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है।
    • वन-कटाई, खनन, उत्खनन, स्थानांतरण खेती के कारण क्षेत्रों की वनस्पति और जीव दोनों खतरे में हैं।
  • कानूनी ढाँचा और चुनौतियाँ:
    • संविधान की छठी अनुसूची ज़िला परिषदों को स्वायत्तता प्रदान करती है, जो भूमि उपयोग पर राज्य के अधिकार को सीमित करता है।
      • इस स्वायत्तता के परिणामस्वरूप कभी-कभी अपर्याप्त नियमन की स्थिति उत्पन्न होती है, जैसा कि उमियम झील के मामले में देखा गया है।
    • संविधान के अनुच्छेद 32 और 226 के तहत जनहित याचिकाओं और न्यायिक सक्रियता ने पर्यावरण सुरक्षा को लागू करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
    • राष्ट्रीय हरित अधिकरण द्वारा पर्यावरणीय उल्लंघनों के लिये राज्यों पर ज़ुर्माना लगाना पर्यावरण की सुरक्षा में कानूनी तंत्र की भूमिका को रेखांकित करता है।

पूर्वोत्तर में सतत् विकास को बढ़ावा देने हेतु किये गए प्रयास:

  • पूर्वोत्तर औद्योगिक विकास योजना:
    • पूर्वोत्तर औद्योगिक विकास योजना (North East Industrial Development Scheme- NEIDS), 2017 के भीतर 'नेगेटिव लिस्ट (Negative List)' एक सराहनीय कदम है, जो यह सुनिश्चित करती है कि पर्यावरण मानकों का पालन करने वाली संस्थाओं को प्रोत्साहन मिले।
    • यदि कोई इकाई पर्यावरण मानकों का अनुपालन नहीं कर रही है या उसके पास आवश्यक पर्यावरणीय मंज़ूरी नही है या संबंधित प्रदूषण बोर्डों की सहमति नहीं है, तो वह NEIDS के तहत किसी भी प्रोत्साहन के लिये पात्र नहीं होगी और उसे 'नेगेटिव लिस्ट' में डाल दिया जाएगा।
  • एक्ट फास्ट फॉर नॉर्थ-ईस्ट:
    • 'एक्ट फास्ट फॉर नॉर्थ-ईस्ट' नीति में न केवल "व्यापार और वाणिज्य" बल्कि इस क्षेत्र में "पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी" का संरक्षण भी शामिल होना चाहिये।
  • समान एवं व्यापक पर्यावरण विधान:
    • सभी शासन स्तरों पर पर्यावरणीय मुद्दों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिये, समान तथा व्यापक पर्यावरण विधान महत्त्वपूर्ण है।
    • इस तरह का कानून नियमों में अंतराल को कम कर देगा तथा यह सुनिश्चित करेगा कि आर्थिक विकास पर्यावरणीय स्थिरता के साथ संरेखित हो।

उमियम झील के बारे में मुख्य तथ्य: 

  • उमियम झील मेघालय की सबसे बड़ी कृत्रिम झीलों में से एक है जो शिलाॅन्ग से लगभग 15 किमी. दूर स्थित है।
  • यह झील एक जलाशय है जिसे उमियम नदी (बारापानी नदी भी कहा जाता है) पर एक बाँध निर्माण परियोजना के हिस्से के रूप में बनाया गया था।
  • बाँध का निर्माण क्षेत्र के लिये जलविद्युत ऊर्जा उत्पन्न करने हेतु किया गया था।

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

शैक्षणिक संस्थानों में रैगिंग से निपटान

प्रिलिम्स के लिये:

भारत में रैगिंग के कानूनी परिणाम, राघवन समिति, सर्वोच्च न्यायालय 

मेन्स के लिये:

रैगिंग के खतरे को रोकने के लिये UGC के दिशा-निर्देश, भारत में उच्च शिक्षा प्रणाली से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

भारतीय शैक्षणिक संस्थानों में लगातार परेशान करने वाली रैगिंग की समस्या के मुद्दे ने जादवपुर विश्वविद्यालय में हाल ही में हुई एक घटना के कारण एक बार फिर राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित किया है।

  • भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने विभिन्न मामलों और दिशा-निर्देशों के माध्यम से इस मुद्दे के समाधान के लिये महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं।

भारत में रैगिंग विरोधी उपायों की वर्तमान स्थिति:

  • रैगिंग को परिभाषित करना: सर्वोच्च न्यायालय का परिप्रेक्ष्य:
    • वर्ष 2001 (विश्व जागृति मिशन) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने रैगिंग की एक व्यापक परिभाषा प्रदान की।
    • इसमें रैगिंग को किसी भी अव्यवस्थित आचरण के रूप में वर्णित किया गया है जिसमें साथी छात्रों को चिढ़ाना, उनके साथ अशिष्ट व्यवहार करना, अनुशासनहीन गतिविधियों में शामिल होना, जिससे झुंझलाहट या मनोवैज्ञानिक नुकसान होता है या जूनियर छात्रों के बीच डर पैदा होता है।
      • न्यायालय ने यह भी कहा कि रैगिंग के पीछे के उद्देश्यों में अक्सर परपीड़क आनंद प्राप्त करना, नए छात्रों की तुलना में वरिष्ठों द्वारा शक्ति, अधिकार या श्रेष्ठता का प्रदर्शन करना शामिल होता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी मुख्य दिशा-निर्देश: 
    • सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों में रैगिंग को रोकने तथा उसे संबोधित करने के लिये शैक्षणिक संस्थानों के भीतर प्रॉक्टोरल समितियाँ (Proctoral Committees) स्थापित करने के महत्त्व पर ज़ोर दिया गया है।
    • इसके अलावा इसमें रैगिंग की घटनाओं की रिपोर्ट पुलिस से करने की संभावना पर प्रकाश डाला गया है यदि वे असहनीय हो जाती हैं या संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आ जाती हैं।
  • राघवन समिति और UGC दिशा-निर्देश:
    • 2009 में सर्वोच्च न्यायालय ने रैगिंग मुद्दे पर पुनः विचार किया और इसे व्यापक रूप से संबोधित करने के लिये पूर्व CBI निदेशक आर के राघवन के नेतृत्व में एक समिति नियुक्त की थी।
    • समिति की सिफारिशों को बाद में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (University Grants Commission- UGC) द्वारा अपनाया गया/अंगीकृत किया गया।
      • रैगिंग का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने के लिए UGC ने विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किये जिनका पालन करना विश्वविद्यालयों के लिये आवश्यक था।
    • UGC के दिशा-निर्देश जिसका शीर्षक है, "उच्च शैक्षणिक संस्थानों में रैगिंग के खतरे को रोकने पर विनियमन", रैगिंग के कई रूपों पर प्रकाश डालता है, जिसमें चिढ़ाना, शारीरिक या मनोवैज्ञानिक नुकसान पहुँचाना, हीन भावना उत्पन्न करना और पैसे की ज़बरन वसूली में शामिल होना है।
    • दिशा-निर्देशों में विश्वविद्यालयों को रैगिंग रोकने के लिये सार्वजनिक रूप से अपनी प्रतिबद्धता घोषित करने का आदेश दिया गया है और छात्रों को शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिये कहा गया है कि वे ऐसी गतिविधियों में शामिल नहीं होंगे।
    • UGC ने रैगिंग के खिलाफ सक्रिय कदम उठाने की ज़िम्मेदारी शैक्षणिक संस्थानों पर भी डाली है।
      • विश्वविद्यालयों को पाठ्यक्रम-प्रभारी, छात्र सलाहकार, वार्डन और वरिष्ठ छात्रों वाली समितियाँ स्थापित करने का निर्देश दिया गया था।
      • इन समितियों को स्वस्थ और सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करने के लिये नए तथा पुराने छात्रों के मध्य बातचीत की निगरानी एवं विनियमन करने का काम सौंपा गया था।

नोट: यूजीसी ने भी 2016 में लिंग पहचान और यौन अभिविन्यास को रैगिंग के आधार के रूप में मान्यता दी थी।

  • भारत में रैगिंग के कानूनी नतीजे:
    • हालाँकि रैगिंग को एक विशिष्ट अपराध के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है, लेकिन भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code- IPC) के विभिन्न प्रावधानों के तहत इसमें दंडित किया जा सकता है।
    • उदाहरण के लिये IPC की धारा 339 के तहत परिभाषित रोंगफुल रिस्ट्रेंट (जो भी व्यक्ति किसी व्यक्ति को गलत तरीके से रोकता है) के अपराधी को एक महीने तक की कैद या पाँच सौ रुपए तक का जुर्माना या दोनों सज़ा हो सकती है।
    • IPC की धारा 340 के तहत रोंगफुल कन्फाइनमेंट (जो भी कोई किसी व्यक्ति को गलत तरीके से प्रतिबंधित करेगा) के अपराधी को एक वर्ष तक की कैद या एक हज़ार रुपए तक का जुर्माना या दोनों सज़ा हो सकती है।
  • संबंधित राज्य स्तरीय विधान: 
    • कई भारतीय राज्यों ने रैगिंग से निपटने हेतु विशेष कानून पेश किया है।
      • उदाहरण के लिये केरल रैगिंग निषेध अधिनियम, 1998; आंध्र प्रदेश रैगिंग निषेध अधिनियम, 1997; असम रैगिंग निषेध अधिनियम 1998 और महाराष्ट्र रैगिंग निषेध अधिनियम, 1999।

आगे की राह

  • रैगिंग विरोधी ठोस उपाय करना: रैगिंग विरोधी उपायों की प्रभावशीलता का आकलन करने के लिये बाहरी विशेषज्ञों, छात्रों और संकाय सदस्यों को शामिल करते हुए सहयोगात्मक ऑडिट आयोजित करने की आवश्यकता है।
  • ये ऑडिट कमियों, सुधार के क्षेत्रों और सफल प्रथाओं के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकते हैं
  • इससे प्राप्त निष्कर्षों का उपयोग शासन की रणनीतियों में सुधार करने और अनुकूलित करने के लिये किया जा सकता है, जिससे रैगिंग को रोकने के लिये एक सक्रिय दृष्टिकोण सुनिश्चित किया जा सकेगा।
  • डिजिटल रिपोर्टिंग: कोई छात्र गोपनीय तरीके से रैगिंग की जानकारी साझा कर सके, इसके लिये एक समर्पित रिपोर्टिंग पोर्टल अथवा मोबाइल एप विकसित किया जा सकता है।
  • त्वरित हस्तक्षेप सुनिश्चित करते हुए उपयुक्त प्राधिकारियों को बिना किसी विलंब के इसकी सूचना साझा करने की सुविधा इस प्रणाली में शामिल की जा सकती है।
  • सामुदायिक सहभागिता कार्यक्रम: छात्रों को स्वयंसेवी कार्य, सामुदायिक सेवा और सामाजिक आउटरीच में शामिल करते हुए नियमित रूप से सामुदायिक कार्यक्रम का आयोजन किया जा सकता है। ज़िम्मेदारी और एकता की भावना पैदा करने से इस समस्या के प्रभावी समाधान में मदद मिल सकती है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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