डेली न्यूज़ (22 Jan, 2024)



भारत की साइबर सुरक्षा के लिये चुनौतियाँ

प्रिलिम्स के लिये:

हैकिंग, फिशिंग, साइबर सुरक्षा, कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया टीम, भारत (CERT-IN), सूचना प्रौद्योगिकी (IT) संशोधन अधिनियम 2008, स्विफ्ट प्रणाली

मेन्स के लिये:

भारत की साइबर सुरक्षा से संबंधित चुनौतियाँ।

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय  (Ministry of Corporate Affairs- MoCA) ने एक साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ द्वारा मुद्दा उठाए जाने के 10 महीने बाद, देश के शीर्ष उद्योगपतियों, मशहूर हस्तियों और खेल आइकनों सहित वीवीआईपी की व्यक्तिगत जानकारी को उजागर करने वाली एक महत्त्वपूर्ण भेद्यता को ठीक कर दिया है।

  • साइबर सुरक्षा दोष की शुरुआत में एक साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ द्वारा पहचान की गई थी, जिसने कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम इंडिया (CERT-IN) को इस मुद्दे की सूचना दी थी।
  • अलर्ट के बावजूद, भेद्यता कई महीनों तक सक्रिय रही, जिससे संभावित डेटा चोरी या दुरुपयोग के बारे में चिंताएँ बढ़ गईं।

CERT-In क्या है?

  • परिचय:
    • CERT-In एक नोडल एजेंसी है जिसका कार्य हैकिंग और फिशिंग जैसे साइबर सुरक्षा खतरों से निपटना है। यह इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Electronics and Information Technology - MoEIT) के तहत संचालित होता है।
    • CERT-In जनवरी 2004 से परिचालन में है।
  • CERT-In के कार्य:
    • सूचना प्रौद्योगिकी संशोधन अधिनियम, 2008 के अनुसार, CERT-In को साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में निम्नलिखित कार्य करने के लिये राष्ट्रीय एजेंसी के रूप में नामित किया गया है:
      • साइबर घटनाओं पर सूचना का संग्रहण, विश्लेषण और प्रसार।
      • साइबर सुरक्षा घटनाओं का पूर्वानुमान और अलर्ट।
      • साइबर सुरक्षा घटनाओं से निपटने हेतु आपातकालीन उपाय।
      • साइबर घटना प्रतिक्रिया गतिविधियों का समन्वय।
      • सूचना सुरक्षा प्रथाओं, प्रक्रियाओं, रोकथाम, प्रतिक्रिया और साइबर घटनाओं की रिपोर्टिंग से संबंधित दिशा-निर्देश, सलाह, भेद्यता नोट तथा श्वेतपत्र जारी करना।
      • साइबर सुरक्षा से संबंधित ऐसे अन्य कार्य जो निर्धारित किये जा सकते हैं।
  • भारत के लिये महत्त्व:
    • CERT-In भारत के लिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह देश की महत्त्वपूर्ण सूचना अवसंरचना और डिजिटल संपत्तियों को साइबर हमलों से बचाने में सहायता करता है।
    • यह देश के विभिन्न क्षेत्रों, जैसे सरकार, रक्षा, बैंकिंग, दूरसंचार आदि की साइबर लचीलापन और तत्परता को बढ़ाने में भी सहायता करता है।
    • यह एक सुरक्षित साइबर वातावरण को बढ़ावा देकर देश की राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक विकास में भी योगदान देता है।

क्रिटिकल इंफॉर्मेशन इंफ्रास्ट्रक्चर क्या है?

  • परिचय:
    • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 महत्त्वपूर्ण सूचना अवसंरचना को एक कंप्यूटर संसाधन के रूप में परिभाषित करता है, जिसकी अक्षमता या विनाश का राष्ट्रीय सुरक्षा, अर्थव्यवस्था, सार्वजनिक स्वास्थ्य या सुरक्षा पर दुर्बल प्रभाव पड़ेगा। 
    • सरकार, 2000 के आईटी अधिनियम के तहत, उस डिजिटल संपत्ति की रक्षा के लिये किसी भी डेटा, डेटाबेस, आईटी नेटवर्क या संचार बुनियादी ढांँचे को CII के रूप में घोषित करने की शक्ति रखती है। 
    • कोई भी व्यक्ति जो कानून का उल्लंघन कर किसी संरक्षित प्रणाली तक पहुँच सुनिश्चित करता है अथवा उस तक पहुँच सुनिश्चित करने का प्रयास करता है, उसे 10 वर्ष तक की जेल की सज़ा हो सकती है।
  • भारत में CII का संरक्षण:
    • केंद्रक अभिकरण के रूप में NCIIPC :
      • जनवरी 2014 में गठित नेशनल क्रिटिकल इंफॉर्मेशन इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोटेक्शन सेंटर (NCIIPC) देश की महत्त्वपूर्ण सूचना बुनियादी ढाँचे की सुरक्षा के लिये सभी उपाय करने वाली केंद्रक अभिकरण है।
    • NCIIPC का अधिदेश:
      • यह CII को अनधिकृत पहुँच, संशोधन, उपयोग, प्रकटीकरण, व्यवधान, अक्षमता अथवा व्याकुलता से बचाने के लिये अनिवार्य है।
      • यह नीति मार्गदर्शन, विशेषज्ञता साझा करने और प्रारंभिक चेतावनी या अलर्ट के लिये स्थितिजन्य जागरूकता हेतु CII को राष्ट्रीय स्तर के खतरों की निगरानी तथा पूर्वानुमान करेगा। 
      • महत्त्वपूर्ण सूचना अवसंरचना के लिये किसी भी खतरे की स्थिति में NCIIPC सूचना मांग सकता है और महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों या महत्त्वपूर्ण सूचना अवसंरचना पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालने वाले या सेवा देने वाले व्यक्तियों को निर्देश दे सकता है। 

भारत की साइबर सुरक्षा के समक्ष कौ- सी चुनौतियाँ हैं?

  • महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे की भेद्यता:
    • पावर ग्रिड, परिवहन प्रणाली तथा संचार नेटवर्क साइबर हमलों के प्रति संवेदनशील हैं जो आवश्यक सेवाओं एवं राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न करते हैं।
    • उदाहरणार्थ अक्तूबर 2019 में कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र पर साइबर हमले का प्रयास किया गया था जो महत्त्वपूर्ण सूचना बुनियादी ढाँचे के लिये संभावित जोखिमों को उजागर करता है।
  • वित्तीय क्षेत्र को खतरा:
    • वित्तीय क्षेत्र को साइबर हमलों के उच्च जोखिम का सामना करना पड़ता है, साइबर अपराधी को बैंकों, वित्तीय संस्थानों एवं ऑनलाइन भुगतान प्रणालियों को निशाना बना रहे हैं।
    • मार्च 2020 में सिटी यूनियन बैंक के स्विफ्ट सिस्टम (SWIFT System) पर हुए मैलवेयर हमलों के परिणामस्वरूप वित्तीय क्षति, पहचान की चोरी व वित्तीय प्रणाली में लोगों का विश्वास कम हो  सकता है।
  • डेटा उल्लंघन तथा गोपनीयता संबंधी चिंताएँ:
    • भारत द्वारा डिजिटल अर्थव्यवस्था में परिवर्तित होने के साथ वैयक्तिक तथा सरकारी डेटा के ऑनलाइन भंडारण में वृद्धि से डेटा उल्लंघन का खतरा बढ़ जाता है।
    • मई 2021 में कॉमन एडमिशन टेस्ट (CAT) डेटा लीक जैसे संवेदनशील डेटा उल्लंघनों का सुरक्षा और गोपनीयता पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है।
  • साइबर जासूसी:
    • भारत को साइबर जासूसी/गुप्तचरी संबंधी गतिविधियों का सामना करना पड़ता है जिसका उद्देश्य गोपनीय जानकारी चुराना एवं रणनीतिक लाभ हासिल करना है।
    • उदाहरणार्थ वर्ष 2020 में घटित ऑपरेशन साइडकॉपी, जहाँ एक पाकिस्तानी थ्रेट एक्टर ने मैलवेयर और फिशिंग ईमेल के माध्यम से भारतीय सैन्य एवं राजनयिक कर्मियों को लक्षित किया था।
  • एडवांस्ड परसिस्टेंट थ्रेट्स-APTs:
    • APTs का आशय जटिल एवं दीर्घकालिक साइबर हमलों से है जो एक चुनौती पेश करते हैं   क्योंकि उनका पता लगाना एवं उनका मुकाबला करना मुश्किल होता है। 
    • फरवरी 2021 में चीन से संबंधित APT समूह द्वारा भारत के विद्युत क्षेत्र को निशाना बनाना जो संभावित रूप से भारत में पावर आउटेज का कारण बन सकते थे, इस खतरे की गंभीरता को रेखांकित करता है।
  • आपूर्ति शृंखला की कमज़ोरियाँ:
    • सरकार एवं व्यवसायों द्वारा उपयोग किये जाने वाले सॉफ्टवेयर अथवा हार्डवेयर घटकों में कमज़ोरियाँ आपूर्ति शृंखला में कमज़ोरियों को जन्म देती हैं।
    • दिसंबर 2020 में सोलरविंड्स पर वैश्विक साइबर हमले ने राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC) एवं इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) सहित भारतीय संगठनों को प्रभावित किया।

आगे की राह

  • साइबर अपराधों को नियंत्रित करने वाला भारत का प्राथमिक कानून 2000 का सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम है, जिसे नई चुनौतियों एवं खतरों से निपटने के लिये कई बार संशोधित किया गया है।
  • साइबर अपराधियों की कम सज़ा दर के साथ ही कई साइबर अपराधों के लिये सटीक परिभाषाओं, प्रक्रियाओं एवं प्रतिबंधों की अनुपस्थिति आईटी अधिनियम में अंतराल तथा सीमाओं के केवल दो उदाहरण हैं।
  • भारत को व्यापक एवं अद्यतन कानून बनाने की आवश्यकता है जो साइबर सुरक्षा के सभी पहलुओं, जैसे साइबर आतंकवाद, साइबर युद्ध, साइबर जासूसी और साइबर धोखाधड़ी को कवर करे।
  • भारत की साइबर सुरक्षा में सुधार के लिये कई पहल और नीतियाँ हैं, जैसे राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति, साइबर सेल और साइबर अपराध जाँच इकाइयाँ, साइबर अपराध रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म तथा क्षमता निर्माण एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. भारत में निम्नलिखित में से किसके लिये साइबर सुरक्षा घटनाओं पर रिपोर्ट करना कानूनी रूप से अनिवार्य है? (2017)

  1. सेवा प्रदाताओं
  2. डेटा केंद्र
  3. कॉर्पोरेट निकाय

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)

  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (आईटी अधिनियम) की धारा 70 बी के अनुसार, केंद्र सरकार को अधिसूचना द्वारा घटना प्रतिक्रिया के लिये राष्ट्रीय एजेंसी के रूप में कार्य करने हेतु भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया टीम (CERT-in) नामक एक एजेंसी नियुक्त करनी चाहिये।
  • केंद्र सरकार ने आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 70बी के तहत वर्ष 2014 में सीईआरटी-इन के नियमों की स्थापना और अधिसूचित किया। 
  • नियम 12(1)(ए) के अनुसार, सेवा प्रदाताओं, मध्यस्थों, डेटा केंद्रों और कॉर्पोरेट निकायों के लिये रिपोर्ट करना अनिवार्य है। घटना घटित होने के उचित समय के भीतर CERT-in द्वारा साइबर सुरक्षा। अतः 1, 2 और 3 सही हैं। अतः विकल्प (d) सही उत्तर है।


ईरान, पाकिस्तान और बलूच उग्रवाद

प्रिलिम्स के लिये:

उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO), बांग्लादेश की मुक्ति, तालिबान, ईरान, पाकिस्तान और बलूच उग्रवाद, सुन्नी उग्रवादी समूह, जैश अल-अदल, आतंकवाद

मेन्स के लिये:

ईरान, पाकिस्तान और बलूच उग्रवाद, भारत से जुड़े या भारत के हितों को प्रभावित करने वाले समझौते, द्विपक्षीय, क्षेत्रीय तथा वैश्विक समूह

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में ईरान-रोधी बलूच आतंकवादी समूह जैश अल-अदल (Jaish al-Adl- JAA) के दो कथित ठिकानों पर ईरानी मिसाइलों तथा ड्रोनों द्वारा हमला किये जाने से ईरान एवं पाकिस्तान के संबंध प्रभावित हुए हैं।

  • पाकिस्तान ने अपनी संप्रभुता के "घोर उल्लंघन" पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की तथा ईरान में संदिग्ध आतंकवादी पनाहगाहों पर सीमा पार मिसाइल हमले किये।
  • भारतीय कुलभूषण जाधव के अपहरण के बाद भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने JAA की जाँच शुरू कर दी। कथित तौर पर समूह द्वारा जाधव को पाकिस्तान की इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) को बेच दिया गया था।

जैश अल-अदल कौन है?

  • जैश अल-अदल अथवा न्याय की सेना, एक सुन्नी आतंकवादी समूह है जो वर्ष 2012 में अस्तित्व में आया। यह मुख्य रूप से ईरान-पाकिस्तान सीमा के दोनों तरफ रहने वाले जातीय बलूच समुदाय के सदस्यों से बना है।
  • इस समूह को जुंदुल्लाह संगठन की एक शाखा माना जाता है, जिसके कई सदस्यों को ईरान द्वारा गिरफ्तार किये जाने के बाद इसका प्रभाव कम हो गया था।
  • जैश अल-अदल के मुख्य उद्देश्यों में ईरान के पूर्वी सिस्तान प्रांत तथा पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिमी बलूचिस्तान प्रांत के लिये स्वतंत्रता की मांग करना शामिल है। बलूच लोगों के अधिकारों का समर्थन करने वाले ये लक्ष्य, समूह को ईरानी तथा पाकिस्तानी दोनों सरकारों के लिये एक साझा लक्ष्य बनाते हैं।
  • जातीय बलूच समुदाय को ईरान तथा पाकिस्तान दोनों में भेदभाव का सामना करना पड़ता है, उनके संबंधित प्रांतों में संसाधनों एवं धन के उचित वितरण के अभाव से संबंधित चिंताएँ हैं। बलूच अलगाववादी एवं राष्ट्रवादी अधिक न्यायसंगत हिस्सेदारी की मांग करते हैं व अमूमन अपनी शिकायतों को व्यक्त करने के लिये विद्रोह का सहारा लेते हैं।
  • बलूचिस्तान में, विशेषकर सीमावर्ती क्षेत्रों में जैश अल-अदल की उपस्थिति, ईरान तथा पाकिस्तान के बीच तनाव का एक स्रोत रही है।
    • दोनों देशों में आतंकवादी गतिविधियों के समर्थन में एक-दूसरे की संलिप्तता को लेकर संदेह और आरोप-प्रत्यारोप का इतिहास रहा है।

पाकिस्तान और ईरान के बीच संबंध कैसे रहे हैं?

  • 1979 पूर्व गठबंधन:
    • ईरान में 1979 की इस्लामी क्रांति से पहले, दोनों देश संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ मज़बूती से जुड़े हुए थे तथा वर्ष 1955 में बगदाद पैक्ट/संधि में शामिल हुए जिसे बाद में केंद्रीय संधि संगठन (Central Treaty Organization- CENTO) के रूप में जाना गया, जो उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (North Atlantic Treaty Organization- NATO) पर आधारित एक सैन्य गठबंधन था।
    • ईरान ने वर्ष 1965 तथा वर्ष 1971 में भारत के विरुद्ध युद्ध के दौरान पाकिस्तान को सामग्री व हथियार सहायता प्रदान की
    • ईरान के शाह ने बांग्लादेश की मुक्ति के बाद पाकिस्तान के "विघटन" पर चिंता व्यक्त की।
  • वर्ष 1979 के बाद की स्थिति: 
    • ईरान में इस्लामी क्रांति के कारण अयातुल्ला खुमैनी के नेतृत्व में अति-रूढ़िवादी शिया शासन का उदय हुआ। यह सैन्य तानाशाह जनरल ज़िया-उल-हक के तहत पाकिस्तान के स्वयं के इस्लामीकरण के साथ समवर्ती था।
    • दोनों देशों ने खुद को सांप्रदायिक विभाजन के विपरीत छोर पर पाया।
  • भू-राजनीतिक मतभेद: 
    • लगभग रातोंरात, ईरान, संयुक्त राज्य अमेरिका के सहयोगी से घोषित प्रतिद्वंद्वी में बदल गया, जबकि अमेरिकियों ने पाकिस्तान के साथ अपने संबंध कड़े कर दिये।
    • वर्ष 1979 से पाकिस्तान के प्रति ईरान के अविश्वास का एक प्रमुख कारण रहा है, जो 09/11 के बाद और अधिक बढ़ गया क्योंकि इस्लामाबाद ने अमेरिका को "आतंकवाद के खिलाफ युद्ध" में समर्थन दिया।
    • ईरान की वर्ष 1979 के बाद की विदेश नीति, जो क्रांति के विस्तार पर केंद्रित थी, ने अरब दुनिया में उसके पड़ोसियों को हतोत्साहित कर दिया।
      • इनमें से प्रत्येक तेल-समृद्ध राज्य को परिवारों के एक छोटे समूह द्वारा प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया गया था, जो कि क्रांति-पूर्व ईरान में शाह के शासन के विपरीत नहीं थी। इन अरब साम्राज्यों के साथ पाकिस्तान के निरंतर रणनीतिक संबंधों ने ईरान के साथ उसके संबंधों में कठिनाइयाँ उत्पन्न कर दीं।
  • अफगानिस्तान संघर्ष: 
    • सोवियत सेना की वापसी के बाद ईरान और पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में स्वयं को विपरीत दिशा में पाया।
    • ईरान ने तालिबान के खिलाफ उत्तरी गठबंधन का समर्थन किया, यह समूह शुरु में पाकिस्तान द्वारा समर्थित था।
    • वर्ष 1998 में मज़ार-ए-शरीफ में तालिबान द्वारा फारसी भाषी शिया हजारा और ईरानी राजनयिकों की हत्या के बाद तनाव बढ़ गया।
  • सुलह के प्रयास: 
    • ऐतिहासिक तनावों के बावजूद, दोनों देशों ने संबंधों में सुधार के प्रयास किये। प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो ने वर्ष 1995 में ईरान के खिलाफ अमेरिकी प्रतिबंधों को कड़ा करने और साथ ही उनकी सरकार के दौरान पाकिस्तान ने ईरान से गैस आयात करने पर खेद व्यक्त किया।
    • हालाँकि वर्ष 1999 में जनरल परवेज़ मुशर्रफ के सत्ता संभालने के बाद संबंधों में खटास आ गई थी।

ईरान और पाकिस्तान के बीच बलूचिस्तान की गतिशीलता क्या है?

  • भौगोलिक एवं जनसांख्यिकीय संदर्भ:
    • ईरान-पाकिस्तान सीमा जिसे गोल्डस्मिथ लाइन के नाम से जाना जाता है, अफगानिस्तान से उत्तरी अरब सागर तक लगभग 909 किलोमीटर तक फैली हुई है।
    • सीमा के दोनों ओर लगभग 9 मिलियन जातीय बलूच लोग रहते हैं, जो पाकिस्तानी प्रांत बलूचिस्तान, ईरानी प्रांत सिस्तान और बलूचिस्तान तथा अफगानिस्तान के पड़ोसी क्षेत्रों में रहते हैं।
  • साझा बलूच पहचान:
    • बलूच लोग एक सामूहिक सांस्कृतिक, जातीय, भाषाई एवं धार्मिक पहचान साझा करते हैं जो इस क्षेत्र पर लगाई गई आधुनिक सीमाओं से परे है।
    • विभिन्न देशों में रहने के बावजूद बलूच ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक संबंधों पर आधारित मज़बूत संबंध बनाए रखते हैं।
  • हाशियाकरण एवं शिकायतें:
    • ईरान और पाकिस्तान दोनों में बलूचों ने हाशिए पर जाने का अनुभव किया है तथा साथ ही प्रत्येक देश में प्रमुख शासनों से राजनीतिक एवं आर्थिक रूप से भी दूर महसूस कर रहे हैं।
      • पाकिस्तान में, बलूच को पंजाबी-प्रभुत्व वाली राजनीतिक संरचना के भीतर एक जातीय अल्पसंख्यक के रूप में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
      • ईरान में वे न केवल एक जातीय अल्पसंख्यक हैं, बल्कि एक धार्मिक अल्पसंख्यक भी हैं, जिनमें से अधिकांश शिया प्रधान देश में सुन्नी हैं।
  • आर्थिक विषमताएँ:
    • बलूच मातृभूमि प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है, लेकिन आर्थिक विषमताएँ बनी हुई हैं। ईरान में बलूच आबादी का एक बड़ा हिस्सा गरीबी रेखा के नीचे रहता है।
    • पाकिस्तान में, चीन की बेल्ट एंड रोड पहल जैसी परियोजनाओं में बड़े पैमाने पर निवेश के बावजूद, उनके जीवन में सुधार सीमित हैं।
  • राष्ट्रवादी आंदोलन:
    • बलूच राष्ट्रवाद की ऐतिहासिक जड़ें 20वीं सदी की शुरुआत से ही व्याप्त हैं जब इस क्षेत्र में नई अंतर्राष्ट्रीय सीमाएँ खींची गई थीं।
    • ईरान और पाकिस्तान दोनों में बलूच लोगों को हाशिए पर धकेलने से "ग्रेटर बलूचिस्तान" राष्ट्र-राज्य की मांग करने वाले अलगाववादी आंदोलनों को बढ़ावा मिला है।
  • उग्रवाद तथा सीमा-पारगतिविधि:
    • बलूच विद्रोही ईरान-पाकिस्तान सीमा के दोनों ओर सैन्य और कभी-कभी नागरिक ठिकानों पर हमले करते हैं।
    • बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) तथा बलूच लिबरेशन फ्रंट (BLF) जैसे समूहों से संबद्ध विद्रोही, संबंधित राज्यों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष में शामिल रहे हैं।

पाकिस्तान और ईरान के बीच बढ़ते तनाव के क्या निहितार्थ हैं?

  • क्षेत्रीय अस्थिरता:
    • पाकिस्तान और ईरान के बीच बढ़ता तनाव क्षेत्रीय अस्थिरता में योगदान दे सकता है, खासकर मध्य पूर्व तथा दक्षिण एशिया के जटिल भू-राजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए।
    • पाकिस्तान तथा ईरान के बीच संबंधों में और तनाव आ सकता है, जिसका असर राजनयिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक संबंधों पर पड़ सकता है।
  • प्रॉक्सी डायनेमिक्स:
    • पाकिस्तान और ईरान दोनों पर क्षेत्रीय संघर्षों में प्रतिनिधि रूप में वोट करने का समर्थन करने का आरोप लगाया गया है। तनाव छद्म गतिशीलता को बढ़ा सकता है, प्रत्येक देश दूसरे के आंतरिक मामलों में प्रभाव डालने की कोशिश कर रहा है या चल रहे क्षेत्रीय संघर्षों में कुछ गुटों का समर्थन कर रहा है।
  • बलूचिस्तान पर प्रभाव:
    • बलूचिस्तान में अशांति बढ़ सकती है। बलूच राष्ट्रवादी आंदोलनों को गति मिल सकती है और स्थानीय आबादी पर इसका असर पड़ सकता है।
    • यह स्थिति भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, सऊदी अरब या इज़राइल जैसे अन्य क्षेत्रीय अभिकर्त्ताओं को आकर्षित कर सकती है, जिससे भू-राजनीतिक परिदृश्य और जटिल हो सकता है तथा संभावित रूप से व्यापक क्षेत्रीय संघर्ष हो सकता है।
  • सुरक्षा संबंधी चिंताएँ:
    • बढ़ते तनाव से पड़ोसी देशों, विशेषकर अफगानिस्तान के लिये सुरक्षा चिंताएँ बढ़ सकती हैं। यह क्षेत्र पहले से ही सुरक्षा चुनौतियों से जूझ रहा है तथा बढ़ा हुआ तनाव स्थिति को और खराब कर सकता है।
  • भारत के लिये निहितार्थ:
    • चाबहार बंदरगाह जैसी परियोजनाओं में भारत की भागीदारी को देखते हुए, तनाव का असर ईरान के साथ भारत के संबंधों पर पड़ सकता है। भारत, ईरान और संयुक्त राज्य अमेरिका दोनों के साथ अपने संबंधों को संतुलित करते हुए स्वयं को एक कमज़ोर राजनयिक स्थिति में पा सकता है।

पाकिस्तान और ईरान के बीच टकराव पर भारत का रुख क्या है?

  • आतंकवाद के प्रति शून्य सहिष्णुता:
    • भारत ने "आतंकवाद के प्रति शून्य सहिष्णुता की अपनी अडिग स्थिति" पर बल दिया। यह बयान आतंकवाद के खिलाफ भारत के सतत् रुख को रेखांकित करता है, जो पाकिस्तान से उत्पन्न होने वाले सीमा पार आतंकवाद के संबंध में उसकी लंबे समय से चली आ रही चिंताओं के अनुरूप है।
  • आत्मरक्षा में कार्यों को समझना:
    • भारत ने "देशों द्वारा अपनी आत्मरक्षा में की जाने वाली कार्रवाइयों" को स्वीकार किया और समझ व्यक्त की। यह क्षेत्र में जटिल सुरक्षा गतिशीलता की पहचान और देशों द्वारा उनकी सुरक्षा चिंताओं को दूर करने के लिये की जाने वाली कार्रवाइयों के प्रति सतर्क दृष्टिकोण का सुझाव देता है।

निष्कर्ष

  • पाकिस्तान और ईरान के बीच बढ़ते तनाव के निहितार्थ बहुआयामी हैं तथा द्विपक्षीय संबंधों से परे हैं।
  • यह स्थिति मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय स्थिरता, सुरक्षा गतिशीलता तथा व्यापक भू-राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित करने की क्षमता रखती है।
  • जोखिमों को कम करने, स्थिति को और अधिक बिगड़ने से रोकने के लिये राजनयिक प्रयास तथा तनाव कम करने के उपाय महत्त्वपूर्ण होंगे।
  • भारतीयों को संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर आतंकवाद का मुद्दा उठाना चाहिये और JAA जैसे आतंकवादी समूहों के समर्थन या व्यापार में पाकिस्तान की भागीदारी का सबूत पेश करना चाहिये, जिन्होंने कुलशभूषण जाधव का अपहरण किया तथा पाकिस्तान सरकार के साथ व्यापार किया।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत द्वारा चाबहार बंदरगाह विकसित करने का क्या महत्त्व है?(2017)

(a) अफ्रीकी देशों से भारत के व्यापार में अपार वृद्धि होगी।
(b) तेल-उत्पादक अरब देशों से भारत के संबंध सुदृढ़ होंगे।
(c) अफगानिस्तान और मध्य एशिया में पहुँच के लिये भारत को पाकिस्तान पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा।
(d) पाकिस्तान, इराक और भारत के बीच गैस पाइपलाइन का संस्थापन सुकर बनाएगा तथा उसकी सुरक्षा करेगा।

उत्तर: C 


मेन्स:

प्रश्न. इस समय जारी अमेरिकी-ईरान नाभकीय समझौता विवाद भारत के राष्ट्रीय हितों को किस प्रकार प्रभावित करेगा? भारत को इस स्थिति के प्रति क्या रवैया अपनाना चाहिये? (2018)

प्रश्न. भारत की ऊर्जा सुरक्षा का प्रश्न भारत की आर्थिक प्रगति का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भाग है। पश्चिमी एशियाई देशों के साथ भारत की ऊर्जा नीति सहयोग का विश्लेषण कीजिये। (2017)


फ्लाइट में यात्रियों का अभद्र व्यवहार

प्रिलिम्स के लिये:

नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA), FIR (प्रथम सूचना रिपोर्ट), विमान अधिनियम, 1934, अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO)

मेंस के लिये:

फ्लाइट में यात्रियों का अभद्र व्यवहार

स्रोत:इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय एयरलाइन इंडिगो ने एक यात्री को नो-फ्लाई लिस्ट में जोड़ने की प्रक्रिया शुरु की है। दिल्ली में घने कोहरे के बीच उड़ान में काफी देरी होने के बाद व्यक्ति ने अभद्र व्यवहार के कारण पायलट पर हमला कर दिया।

  • एयरलाइन ने यात्री को "अभद्र" घोषित कर दिया और आगे की कार्रवाई उड्डयन निगरानी संस्था :नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA), द्वारा जारी "अभद्र यात्रियों से निपटने" पर नागरिक उड्डयन आवश्यकताओं (CAR) द्वारा निर्देशित की जाएगी।

अभद्र व्यवहार क्या है?

  • परिचय:
    • अभद्र व्यवहार में शराब या नशीली दवाओं का सेवन करना, जिसके परिणामस्वरूप विघटनकारी व्यवहार होता है, धूम्रपान करना, पायलट के निर्देशों का पालन न करना, धमकी या अपमानजनक भाषा का उपयोग करना, शारीरिक रूप से धमकी देना अथवा अपमानजनक व्यवहार करना, चालक दल के कर्त्तव्यों में जानबूझकर हस्तक्षेप करना और साथ ही विमान सुरक्षा को खतरे में डालना शामिल है, लेकिन यह इन्हीं तक सीमित नहीं है।
  • विघटनकारी/अभद्र व्यवहार के स्तर:
    • स्तर 1: मौखिक उत्पीड़न, शारीरिक हाव-भाव, अनियंत्रित नशा।
    • स्तर 2: शारीरिक रूप से अपमानजनक व्यवहार, जिसमें धक्का देना, लात मारना, मारना, अनुचित स्पर्श या यौन उत्पीड़न शामिल हैं।
    • स्तर 3: जीवन-घातक व्यवहार, जैसे– विमान प्रणालियों को हानि पहुँचाना, शारीरिक हिंसा अथवा उड़ान चालक दल के डिब्बे में सेंध लगाने का प्रयास करना।

अभद्र व्यवहार पर एयरलाइंस कैसे प्रतिक्रिया देती हैं?

  • अभद्र व्यवहार पर प्रतिक्रिया:
    • दिशा-निर्देशों के अनुसार एयरलाइन को यात्रियों को सूचित करना चाहिये कि अभद्र व्यवहार के कारण गिरफ्तारी हो सकती है।
    • ऐसे मामलों में जहाँ केबिन क्रू उड़ान के दौरान किसी अभद्र यात्री को नियंत्रित नहीं कर सकता है, पायलट को स्थिति का आकलन करना चाहिये और यदि आवश्यक हो, तो निकटतम उपलब्ध हवाई अड्डे पर उतरना चाहिये।
    • उतरने पर संबंधित सुरक्षा एजेंसी के पास एक FIR (प्रथम सूचना रिपोर्ट), दर्ज की जानी चाहिये, साथ ही अभद्र यात्री को उन्हें सौंप दिया जाना चाहिये।
  • घटना के बाद की प्रक्रिया:
    • एयरलाइन को अनियंत्रित व्यवहार की शिकायत एक आंतरिक समिति को भेजनी चाहिये, जिसमें एक सेवानिवृत्त ज़िला और सत्र न्यायाधीश, एक अलग एयरलाइन का एक प्रतिनिधि तथा एक यात्री संघ का प्रतिनिधि शामिल हो।
    • आंतरिक समिति को 30 दिनों के भीतर मामले पर निर्णय लेना होगा, घटना को तीन परिभाषित स्तरों में से एक में वर्गीकृत करना होगा, साथ ही अभद्र यात्री पर प्रतिबंध की अवधि निर्धारित करनी होगी।
  • अनियंत्रित व्यवहार के लिये दंड:
    • एयरलाइन 30 दिनों तक का तत्काल प्रतिबंध लगा सकती है।
    • एयरलाइंस द्वारा साझा किये गए डेटा के आधार पर DGCA द्वारा एक नो-फ्लाई सूची बनाई जाती है।
    • अन्य वाहक भी अलग-अलग अवधि के लिये अपराध के स्तर के आधार पर यात्रियों पर प्रतिबंध लगा सकते हैं।

भारत के नागरिक  उड्डयन बाज़ार का आकार क्या है?

  • यात्री यातायात वृद्धि: 
    • संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बाद भारत वैश्विक स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा उड्डयन बाज़ार है।
    • भारत का घरेलू हवाई यात्री यातायात वर्ष 2023 में रिकॉर्ड स्तर (15.2 करोड़ यात्री) पर पहुँच गया, जो महामारी-पूर्व स्तर (वर्ष 2019 में 14.4 करोड़ यात्री) को पार कर गया।
  • विकास की संभावना: 
    • भारत के नागरिक उड्डयन बाज़ार में महत्त्वपूर्ण विकास क्षमता है, बड़ी आबादी को देखते हुए जिसका अभी भी दोहन नहीं हुआ है। जैसे-जैसे अधिक लोग मध्यम वर्ग में शामिल हो रहे हैं तथा हवाई यात्रा अधिक सुलभ हो रही है, उड़ानों की मांग और बढ़ने की उम्मीद है।
  • सरकारी पहल: 
    • भारत सरकार ने उड्डयन क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये उड़ान (उड़े देश का आम नागरिक) योजना जैसे कदम भी उठाए हैं, जिसका उद्देश्य व्यापक आबादी के लिये हवाई यात्रा को किफायती और सुलभ बनाकर क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ाना है।
  • पूर्वानुमानित वृद्धि: 
    • नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (Directorate General of Civil Aviation - DGCA) के अनुसार, वर्ष 2024 के लिये दृष्टिकोण निरंतर वृद्धि का सुझाव देता है, वर्ष 2023 की तुलना में घरेलू हवाई यातायात में 5% से 15% तक की वृद्धि का अनुमान है।

अनियंत्रित व्यवहार को नियंत्रित करने वाले नियम क्या हैं?

  • विमान नियम, 1937:
    • विमान नियम, 1937 का गठन विमान अधिनियम, 1934 के अनुसरण में किया गया था। उपद्रवी यात्रियों को भारतीय दंड संहिता, 1860 के साथ संयुक्त रूप से पढ़े जाने वाले इस अधिनियम के तहत शासित किया गया था।
    • यह कानून आदर्श व्यवहार बताता है जिसकी यात्रियों से अपेक्षा की जाती है।
  • नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA):
    • नागरिक उड्डयन महानिदेशालय प्रमुख नियामक संस्था है जो मुख्य रूप से भारत में नागरिक उड्डयन को नियंत्रित करती है। यह सुरक्षा मुद्दों से निपटने, हवाई परिवहन सेवाओं के विनियमन, नागरिक हवाई नियमों और विनियमों को लागू करने तथा ऐसे अन्य कार्यों के लिये ज़िम्मेदार है।
  • मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल, 2014:
    • वर्ष 2014 का मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल वर्ष 1963 के टोक्यो कन्वेंशन का एक संशोधन है। यह विशेष रूप से विमान में अनियंत्रित व्यवहार के मुद्दे को उजागर करता है
    • यह प्रोटोकॉल विमान में होने वाले अपराधों और अन्य कृत्यों से निपटने के लिये कानूनी अवसंरचना को बढ़ाता है।
    • यह संबद्ध राज्य के क्षेत्राधिकार का प्रावधान करता है जिसमें विमान पंजीकृत है एवं उस राज्य को अपराधियों के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई करने का अधिकार देता है।
    • टोक्यो अभिसमय:
      • टोक्यो अभिसमय (वायुयानों पर किये गए अपराधों तथा कुछ अन्य कार्यों से संबंधित कन्वेंशन को प्रभावी करने के लिये अधिनियम) को वर्ष 1963 में अपनाया गया था।  
      • यह एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जिसके तहत नागर विमानन में होने वाले विधि-विरुद्ध कृत्यों का समाधान किया जाता है।
      • यह अभिसमय वायुयान कमांडर तथा अन्य संबंधित अधिकारियों को वायुयान में, विशेषकर उड़ान के दौरान किये गए अपराधों से निपटने के लिये कुछ शक्तियाँ प्रदान करता है।

अनियंत्रित व्यवहार पर नियंत्रण रखने हेतु क्या कदम आवश्यक हैं?

  • मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल, 2014 तथा टोक्यो अभिसमय:
    • वर्ष 2014 के मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल जैसे अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों के अनुसमर्थन को प्राथमिकता देना जिसके माध्यम से वर्ष 1963 के टोक्यो अभिसमय में संशोधन किया गया था।
    • अनुसमर्थन की सहायता से वायुयान में अपराधों एवं अनियंत्रित व्यवहार से निपटने हेतु एक स्पष्ट कानूनी ढाँचा स्थापित होता है जिससे विधिक प्रतिक्रियाओं में एकरूपता सुनिश्चित होती है।
  • CAT III-सक्षम रनवे का संचालन:
    • अल्प दृश्यता की स्थिति को संभालने की क्षमता बढ़ाने के लिये हवाई अड्डों पर (श्रेणी-III) CAT III-सक्षम रनवे के संचालन में तेज़ी लाना।
    • CAT III संचालन का समर्थन करने के लिये प्रासंगिक बुनियादी ढाँचा तथा उपकरण की मौजूदगी हैं सुनिश्चित करना।
  • DGCA द्वारा SOP निर्गमन:
    • नागर विमानन महानिदेशालय (Directorate General of Civil Aviation- DGCA) को प्रतिकूल मौसम की स्थिति के दौरान यात्रियों के बेहतर संचार तथा सुविधा के लिये एक व्यापक मानक संचालन प्रक्रिया (Standard Operating Procedure- SOP) जारी करने का निर्देश देना
    • SOP को उड़ान रद्द होने तथा देरी की स्थिति में यात्रियों की परेशानी को कम करने, एयरलाइंस, हवाई अड्डों एवं ग्राउंड हैंडलिंग एजेंसियों के लिये स्पष्ट दिशा-निर्देश प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करना की आवश्यकता है।
  • बेहतर संचार प्रोटोकॉल:
    • उड़ान की स्थिति तथा देरी के बारे में समय पर एवं सटीक जानकारी प्रदान करने के लिये एयरलाइंस, हवाई अड्डों व यात्रियों के बीच मज़बूत संचार प्रोटोकॉल स्थापित करना।
    • यात्रियों को सूचित रखने के लिये मोबाइल ऐप, SMS तथा सोशल मीडिया सहित आधुनिक संचार चैनलों का उपयोग करना।
  • अनियंत्रित यात्रियों को संभालने हेतु चालक दल को प्रशिक्षण:
    • अनियंत्रित यात्रियों को प्रभावी ढंग से संभालने एवं संभावित संघर्षों को कम करने के लिये एयरलाइन कर्मचारियों के लिये विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना।
    • अनियंत्रित व्यवहार की रिपोर्टिंग तथा प्रबंधन के लिये कानूनी ढाँचे और प्रक्रियाओं के बारे में क्रू जागरूकता बढ़ाना।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रश्न. सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल के अधीन संयुक्त उपक्रमों के माध्यम से भारत में विमान पत्तनों के विकास का परीक्षण कीजिये। इस संबंध में प्राधिकरणों के समक्ष कौन-सी चुनौतियाँ हैं? (2017)

प्रश्न. अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन कानून सभी देशों को उनके क्षेत्र के ऊपर हवाई क्षेत्र पर पूर्ण और अनन्य संप्रभुता प्रदान करते हैं। 'हवाई क्षेत्र' से आप क्या समझते हैं? इस हवाई क्षेत्र के ऊपर अंतरिक्ष पर इन कानूनों के क्या प्रभाव हैं? इससे उत्पन्न चुनौतियों पर चर्चा कीजिये और खतरे को नियंत्रित करने के उपाय सुझाइये। (2014)


राज्यों की स्टार्टअप रैंकिंग 2022

प्रिलिम्स के लिये:

Startup Ranking 2022, National Startup Award,2023, Startupस्टार्टअप रैंकिंग 2022, राष्ट्रीय स्टार्टअप पुरस्कार, 2023, स्टार्टअप

मेन्स के लिये:

नवाचार की संस्कृति, व्यापार सुगमता और इससे संबंधित मुद्दों को बढ़ावा देने में स्टार्टअप की भूमिका।

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय (Ministry of Commerce and Industry- MoCI) ने स्टार्टअप इकोसिस्टम के समर्थन पर राज्यों की रैंकिंग के चौथे संस्करण के नतीजे जारी किये हैं।

  • इस संस्करण के रैंकिंग अभ्यास में 33 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की अब तक की सबसे अधिक भागीदारी देखी गई।
  • भारत में उद्यमिता को प्रोत्साहित करने वाले अभ्यास को शामिल करने वाली 'राष्ट्रीय रिपोर्ट', साथ ही 'सर्वोत्तम प्रथाओं का एक संग्रह' और सभी भाग लेने वाले प्रत्येक राज्य के लिये 'राज्यों की रिपोर्ट' भी लॉन्च की गई जिसमें कुल 31 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों ने राज्य स्टार्टअप नीतियाँ तैयार की हैं।

राज्यों की स्टार्टअप रैंकिंग क्या है?

  • परिचय:
    • भारत सरकार की स्टार्टअप इंडिया पहल में नवाचार को बढ़ावा देने और नवोदित उद्यमियों को अवसर प्रदान करने के लिये देश में एक मज़बूत स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करने की परिकल्पना की गई है।
    • वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय (Ministry of Commerce and Industry- MoCI) के तहत उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT) 2018 से राज्यों के स्टार्टअप रैंकिंग अभ्यास का आयोजन कर रहा है।
      • यह अभ्यास देश में स्टार्टअप के लिये कारोबारी माहौल को आसान बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • उद्देश्य:
    • स्टार्टअप इकोसिस्टम को बढ़ावा देने के लिये राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा की गई प्रगति को सामने लाने में मदद करना।
    • प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ावा देना और राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को सक्रिय रूप से काम करने के लिये प्रेरित करना।
    • राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को अच्छे अभ्यासों की पहचान करना, सीखने और दोहराने के लिये सुविधा प्रदान करना।
  • वर्गीकरण: राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को 5 श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है:
    • बेस्ट परफॉर्मर
    • टॉप परफॉर्मर
    • लीडर
    • अस्पाइरिंग लीडर
    • इमर्जिंग स्टार्ट-अप इकोसिस्टम
      • नोट: ‘बिगिनर लिस्ट’ पूर्ववर्ती रैंकिंग्स का हिस्सा थी लेकिन वर्ष 2019 से इसे बंद कर दिया गया है। 

स्टेट्स स्टार्टअप रैंकिंग 2022 के निष्कर्ष क्या हैं?

राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया था:

  • श्रेणी A (जनसंख्या 1 करोड़ से अधिक) और श्रेणी B (जनसंख्या 1 करोड़ से कम)

श्रेणी A

राज्य और केंद्रशासित प्रदेश 

श्रेणी B

राज्य और केंद्रशासित प्रदेश 

बेस्ट परफॉर्मर

गुजरात, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु

बेस्ट परफॉर्मर

हिमाचल प्रदेश

टॉप परफॉर्मर

महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, तेलंगाना

टॉप परफॉर्मर

अरुणाचल प्रदेश, मेघालय



लीडर

आंध्र प्रदेश, असम, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड

लीडर

गोवा, मणिपुर, त्रिपुरा

अस्पाइरिंग लीडर

बिहार, हरियाणा

अस्पाइरिंग लीडर

अंडमान व निकोबार द्वीप समूह, नगालैंड

इमर्जिंग स्टार्ट-अप इकोसिस्टम

छत्तीसगढ, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर

इमर्जिंग स्टार्ट-अप इकोसिस्टम

चंडीगढ़, दादरा एवं नगर हवेली, दमन एवं दीव, लद्दाख, मिज़ोरम, पुद्दुचेरी, सिक्किम

  • 7 व्यापक सुधार क्षेत्र:
    • प्रतिभागियों का मूल्यांकन 7 व्यापक सुधार क्षेत्रों के आधार पर किया गया, जिसमें 25 कार्य-बिंदु शामिल थे:
      • संस्थागत समर्थन (Institutional Support)
      • नवाचार एवं उद्यमिता को प्रोत्साहन (Fostering Innovation and Entrepreneurship)
      • बाज़ार तक पहुँच (Access to Market)
      • इन्क्यूबेशन और मेंटरशिप समर्थन (Incubation and Mentorship Support)
      • वित्तपोषण सहायता (Funding Support)
      • समर्थकों का क्षमता निर्माण (Capacity Building of Enablers)
      • सतत् भविष्य हेतु रोडमैप (Roadmap to a Sustainable Future)
    • कुल अंकों का 15% हिस्सा 9 भाषाओं (टेलीफोनिक और वेब-आधारित) में एकत्र 10,000 से अधिक सर्वेक्षण प्रतिक्रियाओं के आधार पर प्रदान किया गया।

  • भारतीय  स्टार्ट-अप इकोसिस्टम की स्थिति:
    • पिछले 7 वर्षों में मान्यता प्राप्त स्टार्टअप्स की संख्या 120% (CAGR) की दर से बढ़ी है और अक्तूबर 2023 तक एक लाख से अधिक स्टार्टअप्स मौजूद थे।
    • पिछले सात वर्षों में देश भर के लगभग 670+ ज़िलों में उपस्थिति के साथ स्टार्टअप का कवरेज छह गुना बढ़ गया है
    • लगभग 50% मान्यता प्राप्त स्टार्टअप टियर 2 और टियर 3 शहरों में स्थित हैं।

स्टार्टअप को प्रोत्साहित करने हेतु कौन-सी पहलें की गई हैं?

  • फंड ऑफ फंड्स (FoF) योजना:
    • जून 2016 में 10,000 करोड़ रुपए के कोष के साथ स्थापित स्टार्टअप योजना के लिये FoF का उद्देश्य कार्यान्वयन की प्रगति के आधार पर 14वें और 15वें वित्त आयोग चक्रों में योगदान को बढ़ाकर घरेलू पूंजी तक पहुँच की सुविधा प्रदान करके भारतीय स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र को प्रोत्साहित करना है।
  • स्टार्टअप इंडिया सीड फंड योजना (SISF): 
    • SISF, 945 करोड़ रुपए के कोष की सहायता के साथ वर्ष 2021-22 से चार वर्ष की अवधि के लिये अनुमोदित किया गया था जिसके तहत अवधारणा के प्रमाण, प्रोटोटाइप विकास, उत्पाद परीक्षण, बाज़ार में प्रवेश एवं व्यावसायीकरण के लिये स्टार्टअप को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
  • स्टार्टअप इंडिया इन्वेस्टर कनेक्ट:
    • स्टार्टअप इंडिया इन्वेस्टर कनेक्ट स्टार्टअप्स को निवेशकों से जोड़ने के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता-आधारित मैचमेकिंग की सुविधा प्रदान करता है, जिससे उद्यमियों के लिये एक ही एप्लीकेशन के माध्यम से कई निवेशकों तक अपने विचारों को पहुँचाने की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित किया जाता है।
  • स्टार्टअप इंडिया की बहुपक्षीय गतिविधियाँ: स्टार्टअप20:
    • वर्ष 2023 में G20 में भारत की अध्यक्षता के दौरान स्थापित स्टार्टअप20 (Startup20), स्टार्टअप के लिये एक समर्पित वैश्विक मंच है, जो बड़े उद्यमों के लिये B20 को प्रतिबिंबित करता है। भारत का स्टार्टअप20, जो अब वैश्विक स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा पारिस्थितिकी तंत्र है, एक स्टार्टअप हब के रूप में अपनी स्थिति को प्रदर्शित करता है।
    • एक संवाद मंच के रूप में यह G20 इंडिया शेरपा तथा स्टार्टअप20 सचिवालय द्वारा समर्थित व्यापक आर्थिक मुद्दों पर G20 नेताओं को शामिल करता है।
  • स्टार्टअप इंडिया पहल के तहत अन्य हस्तक्षेप:
    • स्टार्टअप इंडिया इनोवेशन वीक:
      • DPIIT, राष्ट्रीय स्टार्टअप दिवस (National Startup Day) यानी 16 जनवरी के समीप स्टार्टअप इंडिया इनोवेशन सप्ताह का आयोजन करता है, जिसका प्राथमिक लक्ष्य देश के प्रमुख स्टार्टअप्स, उद्यमियों, निवेशकों, इनक्यूबेटरों, वित्तीय संस्थाओं, बैंकों, नीति निर्माताओं एवं अन्य राष्ट्रीय/अंतर्राष्ट्रीय हितधारकों को उद्यमिता और नवाचार को बढ़ावा देने हेतु एकजुट करना है।
    • राष्ट्रीय स्टार्टअप पुरस्कार (NSA) के अंतर्गत सहायता प्रदान करना: 
      • यह स्टार्टअप इंडिया द्वारा उन स्टार्टअप एवं पारिस्थितिकी तंत्र समर्थकों को पहचानने के साथ पुरस्कृत करने के लिये शुरू की गई एक पहल है जो रोज़गार अथवा धन सृजन की उच्च क्षमता के साथ मापने योग्य सामाजिक प्रभाव का प्रदर्शन करते हुए नवीन उत्पादों तथा स्केलेबल उद्यमों का निर्माण कर रहे हैं।
    • MAARG पोर्टल:
      • स्टार्टअप इंडिया द्वारा MAARG पोर्टल विभिन्न क्षेत्रों, कार्यों, चरणों, भूगोल एवं पृष्ठभूमि में स्टार्टअप के लिये मेंटरशिप की सुविधा प्रदान करने वाला वन-स्टॉप मेंटरशिप प्लेटफॉर्म है।
  • स्टार्टअप्स के लिये अन्य संबंधित पहलें:

राष्ट्रीय स्टार्टअप पुरस्कार 2023 क्या है?

स्टार्टअप इंडिया के प्रमुख कार्यक्रमों में से एक राष्ट्रीय स्टार्टअप पुरस्कार 2023, उल्लेखनीय क्षमता प्रदर्शित करने वाले असाधारण स्टार्टअप एवं समर्थकों को सम्मानित और पुरस्कृत करता है।

  • "आत्मनिर्भर भारत" मिशन की दिशा में भारत की विनिर्माण क्षमताओं में सुधार लाने पर ध्यान देने के साथ सरकार द्वारा पहचाने गए चैंपियन क्षेत्रों पर भी विचार किया गया है।
  • प्रमुख तथ्य:
    • राष्ट्रीय स्टार्टअप पुरस्कारों के चौथे संस्करण में 2,000 से अधिक आवेदन प्राप्त हुए हैं, जो पूरे बोर्ड में स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र हितधारकों के बीच पहल की बढ़ती स्वीकार्यता का प्रमाण है।
    • NSA 2023 ने अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय रूप से कार्य किया है, साथ ही समावेशिता के लिये एक उल्लेखनीय प्रतिबद्धता भी प्रदर्शित की है।
    • NSA 2023 के लिये बड़ी संख्या में स्टार्टअप उद्यमों में नेतृत्व वाले पदों हेतु महिलाओं ने आवेदन किया है।
    • इसके अतिरिक्त कई अनुप्रयोगों ने स्वयं को स्थिरता चैंपियन के रूप में भी नामांकित किया है, जो जलवायु परिवर्तन, स्थिरता, अपशिष्ट प्रबंधन, नवीकरणीय ऊर्जा या संबद्ध क्षेत्रों पर केंद्रित हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. उद्यम पूंजी का क्या अर्थ है? (2014)

(a) उद्योगों को प्रदान की जाने वाली एक अल्पकालिक पूंजी
(b) नए उद्यमियों को प्रदान की गई एक दीर्घकालिक स्टार्ट-अप पूंजी
(c) हानि की स्थिति में उद्योगों को प्रदान की जाने वाली धनराशि
(d) उद्योगों के प्रतिस्थापन और नवीनीकरण के लिये प्रदान की गई धनराशि

उत्तर: (b)


मेन्स

प्रश्न . "मेक इन इंडिया' कार्यक्रम की सफलता 'स्किल इंडिया' कार्यक्रम और आमूल-चूल श्रम सुधारों की सफलता पर निर्भर करती है।" तर्कसंगत तर्कों के साथ चर्चा कीजिये।(2015)


विजयराघवन पैनल की सिफारिशें

प्रिलिम्स के लिये:

रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन, संसदीय स्थायी समिति, सीएजी रिपोर्ट, अनुसंधान एवं विकास, ड्रोन विकास, हल्के लड़ाकू विमान तेजस में भारत का निवेश।

मेन्स के लिये:

DRDO से संबंधित प्रमुख मुद्दे, विजयराघवन समिति की प्रमुख सिफारिशें।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

सरकार द्वारा स्थापित 9 सदस्यीय विजयराघवन पैनल ने हाल ही में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के कामकाज के बारे में चिंताओं को संबोधित करते हुए एक व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत की है।

विजयराघवन समिति की प्रमुख सिफारिशें क्या हैं?

  • पृष्ठभूमि: 
    • रक्षा संबंधी रिपोर्ट पर हाल ही में संसदीय स्थायी समिति (PSC) ने DRDO की 55 मिशन मोड परियोजनाओं में से 23 में अत्यधिक देरी का सामना करने पर चिंता व्यक्त की।
    • सीएजी रिपोर्ट, (दिसंबर 2022) ने संकेत दिया कि जाँच की गई परियोजनाओं में से 67% (178 में से 119) प्रस्तावित समय-सीमा का पालन करने में विफल रहीं।
      • मुख्य रूप से डिज़ाइन परिवर्तन, उपयोगकर्त्ता परीक्षण में देरी एवं आपूर्ति आदेश जैसी समस्याओं के कारण कई एक्सटेंशन का हवाला दिया गया था।
  • विजयराघवन समिति की प्रमुख सिफारिशें:
    • अनुसंधान एवं विकास (R&D) पर फिर से ध्यान केंद्रित करना: सुझाव दिया गया कि DRDO को रक्षा के लिये अनुसंधान और विकास पर ध्यान केंद्रित करने के अपने मूल लक्ष्य पर वापस लौटना चाहिये।
      • उत्पादीकरण, उत्पादन चक्र एवं उत्पाद प्रबंधन में स्वयं को शामिल न करने की सलाह दी गई, ये कार्य निजी क्षेत्र के लिये अधिक उपयुक्त माने गए।
    • फोकस और विशेषज्ञता क्षेत्र: इस बात पर ज़ोर दिया गया कि DRDO को विविध प्रौद्योगिकियों में संलग्न होने के अतिरिक्त विशेषज्ञता के विशिष्ट क्षेत्रों की पहचान करनी चाहिये।
      • ड्रोन विकास में DRDO की भागीदारी की आवश्यकता पर सवाल उठाया गया, घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विशेषज्ञता को मान्यता देने की आवश्यकता का प्रस्ताव दिया गया।
    • रक्षा प्रौद्योगिकी परिषद (Defence Technology Council- DTC) की भूमिका: विशिष्ट रक्षा प्रौद्योगिकियों के लिये उपयुक्त अभिकर्त्ताओं की पहचान करने में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में रक्षा प्रौद्योगिकी परिषद की महत्त्वपूर्ण भूमिका की वकालत की गई।
      •  DTC को रक्षा प्रौद्योगिकी विकास की दिशा को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिये।
    • समर्पित विभाग का निर्माण (Creation of a Dedicated Department): रक्षा मंत्रालय के तहत रक्षा विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार विभाग की स्थापना का प्रस्ताव।
      • सिफारिश की गई कि प्रस्तावित विभाग को रक्षा प्रौद्योगिकी परिषद के सचिवालय के रूप में कार्य करना चाहिये।

नोट: DRDO भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय की अनुसंधान एवं विकास शाखा है, जिसका लक्ष्य अत्याधुनिक रक्षा प्रौद्योगिकियों के साथ भारत को सशक्त बनाना और महत्त्वपूर्ण रक्षा प्रौद्योगिकियों में आत्मनिर्भरता हासिल करना है। इसकी स्थापना वर्ष 1958 में भारतीय सेना और तकनीकी विकास एवं उत्पादन निदेशालय के मौजूदा प्रतिष्ठानों को मिलाकर की गई थी।

DRDO से संबंधित प्रमुख मुद्दे क्या हैं?

  • परियोजना की समय-सीमा और लागत में वृद्धि: DRDO परियोजनाएँ अनुमानित समय-सीमा और बजट से काफी अधिक अंतर के लिये प्रसिद्ध हैं।
    • इससे महत्त्वपूर्ण रक्षा क्षमताओं में देरी होती है और दक्षता और संसाधन आवंटन के बारे में चिंताएँ बढ़ जाती हैं।
    • इसके उदाहरणों में हल्का लड़ाकू विमान तेजस शामिल है, जिसे विकसित करने में 30 साल से अधिक का समय लगा।
  • सशस्त्र बलों के साथ तालमेल का अभाव: DRDO की आंतरिक निर्णय लेने की प्रक्रियाएँ नवाचार और अनुकूलन में बाधा डालती हैं।
    • इसके अतिरिक्त आवश्यकताओं को परिभाषित करने और फीडबैक को शामिल करने के मामले में सशस्त्र बलों के साथ सहज सहयोग की कमी के कारण प्रौद्योगिकियाँ पूरी तरह से परिचालन आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पाती हैं
  • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण तथा निजी क्षेत्र एकीकरण: बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिये DRDO द्वारा निजी उद्योगों तक विकसित प्रौद्योगिकियों का कुशल हस्तांतरण अभी भी एक चुनौतीपूर्ण कार्य बना हुआ है।
    • इससे स्वदेशी रक्षा प्रौद्योगिकी के शीघ्र नियोजन तथा व्यावसायीकरण में बाधा आती है जिससे विदेशी आयात पर निर्भरता बढ़ जाती है।
  • पारदर्शिता तथा जन की धारणा: DRDO की गतिविधियों तथा उपलब्धियों के बारे में सीमित सार्वजनिक जागरूकता एवं पारदर्शिता नकारात्मक धारणा व आलोचना को जन्म देती है।

आगे की राह

  • सुदृढ़ परियोजना प्रबंधन: DRDO को स्पष्ट लक्ष्य, संसाधन आवंटन एवं जवाबदेही उपायों सहित सख्त परियोजना प्रबंधन पद्धतियों को लागू करना चाहिये।
  • सशस्त्र बलों के साथ बेहतर सहयोग: विकास के चरणों में सशस्त्र बलों के कर्मियों को शामिल करते हुए संचार और फीडबैक के आदान-प्रदान के लिये समर्पित चैनल स्थापित करना।
  • सुव्यवस्थित प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: निजी कंपनियों को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिये स्पष्ट प्रोटोकॉल के साथ प्रोत्साहन देकर सार्वजनिक-निजी-भागीदारी को बढ़ावा देना।
  • प्रयोग व मुक्त नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा देना: DRDO को विविध विशेषज्ञता का लाभ उठाने तथा अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिये विश्वविद्यालयों, स्टार्टअप एवं अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों के साथ सहयोग करना चाहिये।
  • सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाना: DRDO को मीडिया के साथ सक्रिय रूप से जुड़ना चाहिये, सार्वजनिक आउटरीच कार्यक्रम आयोजित करने चाहिये तथा राष्ट्रीय सुरक्षा में DRDO के योगदान के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये सफलता की कहानियाँ साझा करनी चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में देखा जाने वाला "टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस (THAAD)" क्या है? (2018)

(a) एक इज़रायली रडार प्रणाली
(b) भारत का स्वदेशी मिसाइल रोधी कार्यक्रम
(c) एक अमेरिकी मिसाइल रोधी प्रणाली
(d) जापान और दक्षिण कोरिया के मध्य एक रक्षा सहयोग

उत्तर: (c)