मासिक धर्म वाले रक्त में स्टेम कोशिकाएँ
प्रिलिम्स के लिये:स्टेम कोशिकाएँ, मासिक धर्म रक्त की स्टेम कोशिकाएँ, इंसुलिन, पात्रे निषेचन (इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन) मेन्स के लिये:मासिक धर्म के रक्त पर शोध और अध्ययन का महत्त्व, महिला स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दे, जैव प्रौद्योगिकी |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में शोधकर्त्ताओं ने लगभग दो दशक पूर्व किये गए अध्ययनों पर आधारित मासिक धर्म के रक्त में स्टेम कोशिकाओं/स्टेम सेल की पुनर्योजी क्षमता का खुलासा किया है।
- इस खोज ने महिला प्रजनन प्रणाली और पुनर्योजी प्रक्रियाओं के बीच जटिल अंतः क्रिया को समझने के लिये नए रास्ते खोले हैं।
मासिक धर्म रक्त स्टेम सेल क्या हैं?
- परिचय:
- मासिक धर्म रक्त-व्युत्पन्न स्टेम कोशिकाएँ (MenSC), जिन्हें एंडोमेट्रियल स्ट्रोमल मेसेनकाइमल स्टेम कोशिकाओं के रूप में जाना जाता है, में बहुशक्तिशाली गुण होते हैं, जिसका अर्थ है कि इनमें कोमल मांसपेशी कोशिकाओं, वसा कोशिकाओं और अस्थि-कोशिकाओं सहित ऊतक के कई रूपों में विकसित होने की क्षमता होती है।
- MenSC वयस्क स्टेम कोशिकाओं का एक नैतिक रूप से स्वीकार्य स्रोत (Ethical Source) है जिसे महिलाओं से दर्द रहित तरीके से एकत्र किया जा सकता है।
- मेनस्ट्रूअल कप का उपयोग मासिक धर्म के दौरान होने वाले रक्तस्राव को एकत्रित करने के लिये किया जा सकता है, जो सर्जिकल बायोप्सी के लिये कम कष्टकर विकल्प साबित हो सकता है।
- MenSC को महिलाओं के एंडोमेट्रियम (गर्भाशय के अंदर का मार्ग) से प्राप्त मासिक धर्म रक्त से प्राप्त किया जा सकता है।
- महिला स्वास्थ्य में भूमिका:
- पुनर्योजी क्षमता (Regenerative Potential):
- MenSC बहुसंभावी विशेषताओं का प्रदर्शन करते हैं। इसका मतलब है कि ये न्यूरॉन्स, उपास्थि, वसा, अस्थि, हृदय, यकृत और त्वचा की कोशिकाओं सहित विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं के रूपों में विकसित हो सकते हैं।
- एंडोमेट्रियोसिस का उपचार:
- MenSC एंडोमेट्रियोसिस और बाँझपन जैसे स्त्रीरोग संबंधी विकारों के उपचार के लिये संभावित मार्ग प्रशस्त करते हैं।
- एंडोमेट्रियोसिस एक ऐसा रोग है जिसमें गर्भाशय की परत (एंडोमेट्रियम) के समान ऊतक गर्भाशय के बाह्य भाग में बढ़ने लगते हैं। इससे श्रोणि में गंभीर दर्द हो सकता है और गर्भधारण करना कठिन हो सकता है।
- एंडोमेट्रियोसिस किसी महिला के प्रथम मासिक धर्म से भी शुरू हो सकता है और रजोनिवृत्ति (मासिक धर्म चक्र के अंत) तक भी बना रह सकता है।
- एंडोमेट्रियोसिस के सामान्य लक्षणों में श्रोणि में दर्द, विशेष रूप से मासिक धर्म के दौरान, पीड़ादायक संसर्ग, बाँझपन, मासिक धर्म के दौरान अति रक्तस्राव और दस्त या कब्ज़ जैसे गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याएँ शामिल हैं।
- एंडोमेट्रियोसिस का कारण और रोकथाम के तरीके अज्ञात हैं। इसका कोई उपचार नहीं है, लेकिन इसके लक्षणों का उपचार दवाओं या कुछ मामलों में सर्जरी से किया जा सकता है।
- एंडोमेट्रियोसिस का कारक एक महिला की फैलोपियन ट्यूब में मासिक धर्म के रक्त का प्रति प्रवाह/उल्टा प्रवाह (Backflow) है।
- यह उल्टा प्रवाह रक्त को श्रोणि गुहा में ले जाता है, जो श्रोणि की हड्डियों के बीच एक कीप के आकार का स्थान होता है।
- इन क्षेत्रों में जमा एंडोमेट्रियल स्टेम कोशिकाएँ गर्भाशय के बाहर एंडोमेट्रियल जैसे ऊतक के विकास को प्रेरित कर सकती हैं, जिसके परिणामस्वरूप गहरा घाव तथा बाँझपन भी हो सकता है।
- पुनर्योजी क्षमता (Regenerative Potential):
- व्यापक उपचारात्मक अनुप्रयोग:
- मासिक धर्म स्टेम कोशिकाओं में स्त्री रोग संबंधी रोगों से परे संभावित चिकित्सीय अनुप्रयोग होते हैं।
- मधुमेह से पीड़ित चूहों में मासिक धर्म स्टेम कोशिकाओं को इंजेक्ट करने से इंसुलिन उत्पादक कोशिकाओं के पुनर्जनन में वृद्धि हुई और रक्त शर्करा के स्तर में सुधार हुआ।
- स्टेम कोशिकाओं या उनके स्रावों के घावों का उपचार करने से चूहों के घावों को ठीक करने में मदद मिली।
- मासिक धर्म स्टेम कोशिकाओं को प्रतिकूल दुष्प्रभावों के बिना मनुष्यों में प्रत्यारोपित किया जा सकता है।
- चुनौतियों:
- मासिक धर्म स्टेम कोशिकाओं को इकट्ठा करने की सुविधा के बावजूद, इस क्षेत्र में अनुसंधान समग्र स्टेम कोशिकाएँ अनुसंधान के एक छोटे से अंश का प्रतिनिधित्व करता है।
- वर्ष 2020 में मासिक धर्म स्टेम कोशिकाओं के अनुसंधान सभी मेसेनकाइमल कोशिकाओं के अनुसंधान का केवल 0.25% था, जबकि अस्थि मज्जा स्टेम कोशिकाएँ 47.7% का प्रतिनिधित्व करती थी।
- नैदानिक अनुप्रयोगों के लिये MenSCs का सुसंगत एवं स्केलेबल उत्पादन सुनिश्चित करना एक चुनौती बनी हुई है।
- सांस्कृतिक वर्जनाएँ एवं महिलाओं के स्वास्थ्य अनुसंधान में सीमित निवेश मासिक धर्म स्टेम कोशिकाओं के अध्ययन हेतु धन सुरक्षित करने में महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ उत्पन्न करता है।
- मासिक धर्म स्टेम कोशिकाओं के अनुसंधान को मासिक धर्म के साथ इसके संबंध से परे, पुनर्योजी चिकित्सा में एक आशाजनक वृद्धि के लिये अनुसंधान निधि में लिंग पूर्वाग्रह को संबोधित करना महत्त्वपूर्ण है।
- मासिक धर्म स्टेम कोशिकाओं को इकट्ठा करने की सुविधा के बावजूद, इस क्षेत्र में अनुसंधान समग्र स्टेम कोशिकाएँ अनुसंधान के एक छोटे से अंश का प्रतिनिधित्व करता है।
एंडोमेट्रियोसिस एवं फ्यूसोबैक्टीरियम बैक्टीरिया:
- फ्यूसोबैक्टीरियम बैक्टीरिया और एंडोमेट्रियोसिस के बीच एक महत्त्वपूर्ण संबंध है।
- स्वस्थ व्यक्तियों में केवल 7% की तुलना में 64% एंडोमेट्रियोसिस रोगियों में फ्यूसोबैक्टीरियम पाया गया। अध्ययनों से पता चलता है कि फ्यूसोबैक्टीरियम एंडोमेट्रियल घावों में वृद्धि कर देता है।
- वर्ष 2022 के एक शोध पत्र में पाया गया कि एंडोमेट्रियोसिस वाले लोगों की आँत में माइक्रोबियल की अधिकता से असंतुलन होता है, जिसे गट डिस्बिओसिस के रूप में जाना जाता है।
- यह परिवर्तित माइक्रोबायोटा एंडोमेट्रिओसिस की प्रगति में योगदान दे सकता है।
स्टेम कोशिकाएँ क्या हैं?
- परिचय:
- स्टेम कोशिकाएँ विशेष मानव कोशिकाएँ होती हैं जिनमें विभिन्न प्रकार की कोशिकाएँ, जैसे मांसपेशी कोशिकाएँ या मस्तिष्क कोशिकाएँ विकसित करने की क्षमता होती है।
- उनमें क्षतिग्रस्त ऊतकों की मरम्मत करने की क्षमता है, जिससे पक्षाघात तथा अल्ज़ाइमर रोग जैसी गंभीर बीमारियों के उपचार की आशा होती है।
- स्टेम सेल के प्रकार:
- स्टेम सेल को आमतौर पर मल्टीपोटेंट (एक वंश के अंतर्गत कई कोशिकाओं को जन्म देने में सक्षम), प्लुरिपोटेंट (एक वयस्क में सभी प्रकार की कोशिकाओं को जन्म देने में सक्षम) और टोटिपोटेंट (सभी भ्रूण और वयस्क वंशों को जन्म देने में सक्षम) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
स्टेम सेल के प्रकार |
स्रोत |
स्टेम सेल की क्षमता |
भ्रूणीय टोटिपोटेंट स्टेम सेल |
ये स्टेम कोशिकाएँ निषेचित भ्रूण के शुरुआती चरणों में पाई जाती हैं, आमतौर पर निषेचन के बाद पहले कुछ दिनों के अंतर्गत। |
शरीर में किसी भी कोशिका का निर्माण हो सकता है, यहाँ तक कि प्लेसेंटा (गर्भावस्था के दौरान गर्भाशय में एक अंग जो बढ़ते बच्चे को ऑक्सीजन और पोषक तत्त्व प्रदान करता है) भी बन सकता है। |
भ्रूण प्लुरिपोटेंट स्टेम सेल |
यह थोड़े अधिक विकसित भ्रूण (निषेचन के लगभग 4-5 दिन बाद) के आंतरिक कोशिका द्रव्यमान से प्राप्त होती हैं। |
शरीर में कई अलग-अलग प्रकार की कोशिकाएँ बन सकती हैं लेकिन प्लेसेंटा नहीं बन सकता। |
वयस्क मल्टीपोटेंट स्टेम सेल |
मानव शरीर में विभिन्न ऊतकों में पाया जाता है, जैसे: अस्थि मज्जा या त्वचा। |
मल्टीपोटेंट स्टेम कोशिकाएँ अधिक विशिष्ट होती हैं। ये केवल ऊतकों के अनुसार विशिष्ट प्रकार की कोशिकाओं में ही विकसित हो सकती हैं जिनमें वे पाई जाती हैं। उदाहरण के लिये, अस्थि मज्जा स्टेम कोशिकाएँ विभिन्न रक्त कोशिका प्रकारों में विकसित हो सकती हैं, लेकिन त्वचा कोशिकाओं में नहीं। |
चिकित्सा में स्टेम सेल:
- अस्थि मज्जा में पाई जाने वाली हेमेटोपोएटिक स्टेम सेल, वर्तमान में नई रक्त कोशिकाओं का उत्पादन करके कैंसर और एनीमिया जैसी बीमारियों के इलाज के लिये उपयोग की जाती हैं।
- संभावित भविष्य के अनुप्रयोगों में क्रोनिक हृदय रोग, टाइप 1 मधुमेह, रीढ़ की हड्डी की चोटें और अल्ज़ाइमर रोग का इलाज शामिल है।
- प्लुरिपोटेंट स्टेम सेल नई दवाओं के परीक्षण और नए ऊतकों के निर्माण के अवसर प्रदान करती हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न.1 निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) प्रश्न 2. अक्सर सुर्खियों में रहने वाली 'स्टेम कोशिकाओं' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2012)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न.1 ल्यूकेमिया, थैलेसीमिया, क्षतिग्रस्त कॉर्निया गंभीर दाह सहित सुविस्तृत चिकित्सीय दशाओं के उपचार करने के लिये भारत में स्टेम कोशिका चिकित्सा लोकप्रिय होती जा रही है। संक्षेप में वर्णन कीजिये कि स्टेम कोशिका उपचार क्या होता है और अन्य उपचारों की तुलना में उसके क्या लाभ हैं? (2017) प्रश्न.2 भारत में महिलाओं के समक्ष समय और स्थान संबंधित निरंतर चुनौतियाँ क्या-क्या हैं? (2019) |
CMS के पक्षकारों का 14वाँ सम्मेलन (COP-14)
प्रिलिम्स के लिये:वन्यजीवों की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर अभिसमय, प्रवासी प्रजातियों का संरक्षण, बॉन अभिसमय मेन्स के लिये:CMS COP-14, प्रवासी प्रजातियों पर कन्वेंशन और भारत द्वारा किये गए प्रयास |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
वन्यजीवों की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर अभिसमय (CMS 14) के लिये कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (CoP) की चौदहवीं बैठक का आयोजन समरकंद, उज़्बेकिस्तान में किया गया।
CMS COP 14 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- लिस्टिंग प्रस्तावों की स्वीकृति:
- बैठक में पक्षकारों ने 14 प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण के संबद्ध में लिस्टिंग/सूचीबद्धता प्रस्तावों को अपनाने पर सहमति जताई जिनमें यूरेशियन लिंक्स, पेरूवियन पेलिकन, पल्लास की बिल्ली, गुआनाको, लाहिले की बॉटलनोज़ डॉल्फिन, हार्बर पोरपोइज़, मैगेलैनिक प्लोवर, बियर्डेड वल्चर, ब्लैकचिन गिटारफिश, बुल रे, लुसिटानियन काउनोस रे, गिल्डेड कैटफिश और लौलाओ कैटफिश शामिल हैं।
- इन लिस्टिंग का उद्देश्य उक्त प्रजातियों की सुरक्षा और संरक्षण प्रयासों में वृद्धि करना है।
- सहयोग एवं संरक्षण प्रयास:
- प्रस्तावों में प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण संबंधी खतरों का समाधान करने, शोध करने और संरक्षण नीतियों को कार्यान्वित करने के लिये रेंज राज्यों (Range States) के बीच सहयोग बढ़ाने के महत्त्व पर ज़ोर दिया गया।
- रेंज राज्य का आशय उन देशों अथवा क्षेत्रों से है जो भौगोलिक सीमा के अंतर्गत आते हैं जहाँ एक विशेष प्रजाति स्वाभाविक रूप से पाई जाती है। ये देश अथवा क्षेत्र प्रजातियों और उनके आवास के प्रबंधन, संरक्षण तथा सुरक्षा में प्रत्यक्ष रूप से शामिल होते हैं।
- प्रस्ताव में प्रस्तुत प्रयासों का मुख्य लक्ष्य वर्तमान आबादी को संरक्षित करना, कनेक्टिविटी बढ़ाना, आवासों की रक्षा करना और उनकी संख्याओं में वृद्धि करना था।
- प्रस्तावों में प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण संबंधी खतरों का समाधान करने, शोध करने और संरक्षण नीतियों को कार्यान्वित करने के लिये रेंज राज्यों (Range States) के बीच सहयोग बढ़ाने के महत्त्व पर ज़ोर दिया गया।
- खतरों की पहचान:
- बैठक में प्रवासी प्रजातियों के मौजूदा विभिन्न खतरों पर प्रकाश डाला गया, जिनमें निवास स्थान का क्षरण, विखंडन, अवैध व्यापार, बायकैच, संदूषक और कुछ मानवीय गतिविधियाँ जैसे फेंसिंग, तेल तथा गैस हेतु पर्यावरण का ह्रास, खनन एवं जल के भीतर ध्वनि जैसी मानवीय गतिविधियाँ शामिल हैं।
- CMS परिशिष्टों में इन प्रजातियों को शामिल करने का उद्देश्य इन खतरों का समाधन करना और उनके संरक्षण को बढ़ावा देना है।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:
- रेंज राज्यों ने संरक्षण उपायों को कार्यान्वित करने और प्रवासी प्राजातियों की सूची में बदलाव का सुझाव देने के लिये सहयोग किया।
- उत्तरी मैसेडोनिया, कज़ाकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, चिली, अर्जेंटीना, पेरू, ब्राज़ील, उरुग्वे, इक्वाडोर, पनामा और अन्य जैसे देशों ने लिस्टिंग प्रस्तावों का समर्थन किया तथा प्रवासी प्रजातियों एवं उनके आवासों की रक्षा के लिये संयुक्त प्रयासों का आग्रह किया।
- संकटग्रस्त स्थिति की पहचान:
- जीवसंख्या में गिरावट और विभिन्न खतरों के कारण, कई प्रजातियों, जैसे लाहिल की बॉटलनोज़ डॉल्फिन, पेरूवियन पेलिकन तथा मैगेलैनिक प्लोवर को IUCN रेड लिस्ट में ‘सुभेद्य’, ‘संकटग्रस्त’ या 'गंभीर रूप से संकटग्रस्त' के रूप में चिह्नित किया गया था।
- CMS परिशिष्टों में इन प्रजातियों को सूचीबद्ध करने का उद्देश्य इनकी संरक्षण स्थिति में सुधार करना और आवास संरक्षण के लिये सहायता प्रदान करना है।
- क्षेत्रीय और वैश्विक संरक्षण पहल:
- प्रस्तावों को अपनाना क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर संरक्षण के मुद्दों का हल करने के प्रयासों को दर्शाता है।
- विशिष्ट जीवो-जंतुओं जैसे कि हार्बर पोरपॉइज़ की बाल्टिक जीवसंख्या और विभिन्न प्रजातियों की भूमध्य सागर की जीवसंख्या की रक्षा के लिये उपायों की सिफारिश की गई, जबकि व्यापक संरक्षण रणनीतियों पर भी विचार किया गया।
प्रवासी प्रजाति क्या है?
- वन्य जीवों की एक प्रजाति या उनके वर्गीकरण का निचला स्तर, जिसकी समग्र जीवसंख्या का भौगोलिक रूप से कोई अलग हिस्सा चक्रीय रूप से और अनुमानित रूप से एक या अधिक राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार सीमाओं को पार करता है।
- 'चक्रीय' शब्द किसी भी प्राकृतिक चक्र जैसे खगोलीय (सर्कैडियन, वार्षिक, आदि), जीवन या जलवायु और किसी भी आवृत्ति से संबंधित होता है।
- 'अनुमानित' शब्द का तात्पर्य यह है कि किसी घटना की किसी निश्चित परिस्थिति में पुनरावृत्ति की उम्मीद की जा सकती है, हालाँकि ज़रूरी नहीं कि वह समय पर नियमित रूप से घटित ही हो।
CMS क्या है?
- परिचय:
- यह संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के तहत एक अंतरसरकारी संधि है - जिसे बॉन कन्वेंशन के नाम से जाना जाता है।
- इस पर वर्ष 1979 में हस्ताक्षर किये गये थे और यह वर्ष 1983 से लागू है।
- 1 मार्च 2022 तक, CMS में 133 पार्टियाँ/राष्ट्र सम्मिलित हुए हैं।
- भारत भी वर्ष 1983 से CMS का एक सदस्य रहा है।
- उद्देश्य:
- इसका उद्देश्य संपूर्ण क्षेत्र में स्थलीय, समुद्री और पक्षी प्रवासी प्रजातियों का संरक्षण करना है।
- यह वैश्विक स्तर पर संरक्षण उपायों को संचालित करने के लिये कानूनी आधार तैयार करता है।
- CMS के तहत वैधानिक उपकरण कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौतों से लेकर कम औपचारिक MoU तक हो सकते हैं।
- CMS के अंतर्गत दो परिशिष्ट:
- परिशिष्ट I में 'संकटापन्न प्रवासी प्रजातियाँ' सूचीबद्ध हैं।
- परिशिष्ट II में 'अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता वाली प्रवासी प्रजातियों' की सूची दी गई है।
- भारत और CMS:
- इसके साथ ही भारत ने कुछ प्रजातियों के संरक्षण और प्रबंधन के लिये गैर-बाध्यकारी MOU पर हस्ताक्षर भी किये हैं। इनमें साइबेरियन क्रेन (1998), मरीन टर्टल (2007), डूगोंग (2008) और रैप्टर (2016) शामिल हैं।
- भारत, विश्व के 2.4% भूमि क्षेत्र के साथ ज्ञात वैश्विक जैवविविधता में लगभग 8% का योगदान देता है।
- भारत कई प्रवासी प्रजातियों को अस्थायी आश्रय भी प्रदान करता है जिनमें अमूर फाल्कन, बार-हेडेड गीज़, ब्लैक-नेक्ड क्रेन, समुद्री कछुए, डुगोंग, हंपबैक व्हेल आदि शामिल हैं।
प्रवासी प्रजातियों के लिये भारत द्वारा किये गए प्रयास क्या हैं?
- प्रवासी पक्षियों के संरक्षण के लिये राष्ट्रीय कार्य योजना (2018-2023): भारत ने मध्य एशियाई फ्लाईवे की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण के लिये राष्ट्रीय कार्य योजना शुरू की है।
- प्रवासी पक्षियों द्वारा सामना की जाने वाली विभिन्न समस्याओं का प्रबंधन करके इन प्रजातियों के महत्त्वपूर्ण आवासों तथा प्रवासी मार्गों पर दबाव कम करने का प्रयास।
- प्रवासी पक्षियों की संख्या में कमी को रोकना और वर्ष 2027 तक इस परिदृश्य को संतुलित करना।
- आवासों और प्रवासी मार्गों के खतरों से बचाना तथा भावी पीढ़ियों के लिये उनकी स्थिरता सुनिश्चित करना।
- प्रवासी पक्षियों और उनके आवासों के संरक्षण के लिये मध्य एशियाई फ्लाईवे के साथ-साथ विभिन्न देशों के बीच सीमा पार सहयोग का समर्थन करना।
- प्रवासी पक्षियों और उनके आवासों पर डेटाबेस में सुधार करना ताकि उनके संरक्षण आवश्यकताओं को बेहतर तरीके से समझा जा सके।
- भारत के अन्य प्रयास:
- समुद्री कछुओं का संरक्षण: वर्ष 2020 तक समुद्री कछुआ नीति और समुद्री स्ट्रैंडिंग प्रबंधन नीति की शुरुआत।
- माइक्रो प्लास्टिक और सिंगल यूज़ प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण में कमी।
- बाघ, एशियाई हाथी, हिम तेंदुआ, एशियाई शेर, एक सींग वाला गैंडा और ग्रेट इंडियन बस्टर्ड जैसी प्रजातियों के संरक्षण के लिये सीमा पार संरक्षित क्षेत्र।
- पारिस्थितिक रूप से नाज़ुक क्षेत्रों में अनुकूल विकास के लिये रैखिक अवसंरचना नीति दिशा-निर्देशों जैसे सतत् बुनियादी ढाँचे का विकास।
- प्रोजेक्ट स्नो लेपर्ड (PSL): PSL को हिम तेंदुओं और उनके आवास के संरक्षण के लिये एक समावेशी तथा भागीदारी दृष्टिकोण को बढ़ावा देने हेतु वर्ष 2009 में लॉन्च किया गया था।
- डुगोंग संरक्षण रिज़र्व: भारत ने तमिलनाडु में अपना पहला डुगोंग संरक्षण रिज़र्व स्थापित किया है।
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972:
- प्रवासी पक्षियों सहित पक्षियों की दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजातियों को अधिनियम की अनुसूची-I में शामिल किया गया है जिससे उन्हें उच्चतम स्तर की सुरक्षा प्राप्त होती है।
- पक्षियों और उनके आवासों की बेहतर सुरक्षा तथा संरक्षण के लिये इस अधिनियम के तहत प्रवासी पक्षियों सहित पक्षियों के महत्त्वपूर्ण आवासों को संरक्षित क्षेत्रों के रूप में अधिसूचित किया गया है।
- अन्य पहल:
- दक्षिणी अफ्रीका के रास्ते पूर्वोत्तर भारत में प्रवास करने वाले अमूर फाल्कन की सुरक्षा के लिये नगालैंड राज्य में स्थानीय समुदायों को शामिल करते हुए महत्त्वपूर्ण सुरक्षा उपाय किये गए हैं।
- भारत ने गिद्धों के संरक्षण के लिये कई कदम उठाए हैं जैसे डाइक्लोफेनाक के पशु चिकित्सा उपयोग पर प्रतिबंध लगाना, गिद्ध प्रजनन केंद्रों की स्थापना आदि।
- वन्यजीवों के साथ उनके अंगों तथा उत्पादों के अवैध व्यापार पर नियंत्रण के लिये वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो की स्थापना की गई है।
और पढ़ें… प्रवासी प्रजातियों पर अभिसमय
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. जैवविविधता के साथ-साथ मनुष्य के परंपरागत जीवन के संरक्षण के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण रणनीति निम्नलिखित में से किस एक की स्थापना करने में निहित है? (2014) (a) जीवमंडल निचय (रिज़र्व) उत्तर: (a) प्रश्न. प्रकृति एवं प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय संघ (IUCN) तथा वन्य प्राणिजात एवं वनस्पतिजात की संकटापन्न स्पीशीज़ के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय (CITES) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2015)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (A) केवल 1 उत्तर: (B) |
लक्षद्वीप की संभावनाएँ
प्रिलिम्स के लिये:लक्षद्वीप , अरब सागर, प्रवाल, ब्लू फ्लैग प्रामाणीकरण, अंतरिम बजट 2024-25 मेन्स के लिये:लक्षद्वीप की संभावनाएँ, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
लक्षद्वीप की अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग मार्गों से निकटता इसे लॉजिस्टिक हब बनने की क्षमता प्रदान करती है, द्वीपसमूह का निकटतम पड़ोसी मंगलुरु ऐतिहासिक व्यापारिक संबंधों को ऊपर उठाने की योजना बना रहा है।
लक्षद्वीप की पर्यटन और रसद संभावना क्या है?
- पर्यटन:
- लक्षद्वीप के प्राचीन समुद्र तट, प्रवाल भित्तियों और स्वच्छ जल एक उल्लेखनीय पर्यटन स्थल प्रस्तुत करते हैं।
- उचित बुनियादी ढाँचे के विकास और सतत् पर्यटन प्रथाओं के साथ, लक्षद्वीप एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण केंद्र बन सकता है।
- व्यापार और रसद:
- अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग मार्गों के निकट स्थित, लक्षद्वीप एक रणनीतिक लॉजिस्टिक केंद्र बनने की क्षमता रखता है। तटीय कर्नाटक, विशेष रूप से मंगलुरु (एक प्रमुख बंदरगाह) से इसकी निकटता, व्यापार साझेदारी और कार्गो हैंडलिंग के अवसर प्रदान करती है।
- बंदरगाह कनेक्टिविटी और बुनियादी ढाँचे के प्रस्तावित विकास के साथ, लक्षद्वीप सुचारु व्यापार संचालन की सुविधा प्रदान कर सकता है, जिससे स्थानीय व्यवसायों तथा व्यापक क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था दोनों को लाभ होगा।
- क्षेत्रीय विकास:
- अंतरिम बजट 2024-25 प्रस्ताव में उल्लिखित लक्षद्वीप के लिये विकास पहल से न केवल द्वीपों को लाभ होता है, बल्कि, विशेष रूप से मंगलुरु जैसे क्षेत्रों हेतु, क्षेत्रीय विकास में भी योगदान मिलता है।
- केंद्रीय वित्त मंत्री ने बजट पेश करते हुए कहा कि घरेलू पर्यटन के प्रति उत्साह को देखते हुए लक्षद्वीप सहित भारतीय द्वीपों पर बंदरगाह कनेक्टिविटी, पर्यटन बुनियादी ढाँचे एवं सुविधाओं के लिये परियोजनाएँ शुरू की जाएंगी।
- क्रूज़ मार्गों की स्थापना के साथ बढ़ी हुई कनेक्टिविटी, लक्षद्वीप और उसके पड़ोसी क्षेत्रों दोनों में पर्यटन के साथ-साथ आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा दे सकती है।
- अंतरिम बजट 2024-25 प्रस्ताव में उल्लिखित लक्षद्वीप के लिये विकास पहल से न केवल द्वीपों को लाभ होता है, बल्कि, विशेष रूप से मंगलुरु जैसे क्षेत्रों हेतु, क्षेत्रीय विकास में भी योगदान मिलता है।
- पारिस्थितिकीय महत्त्व:
- लक्षद्वीप को प्रतिबंधित क्षेत्र घोषित करना के साथ इसके पारिस्थितिक महत्त्व को रेखांकित करता है। द्वीपों पर बड़े बुनियादी ढाँचे के निर्माण के बजाय समुद्र में क्रूज़ जहाज़ों को खड़ा करने का सुझाव सतत् प्रथाओं के प्रति प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करता है।
लक्षद्वीप के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- परिचय:
- भारत का सबसे छोटा केंद्रशासित प्रदेश लक्षद्वीप है जिसमें 32 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाले 36 द्वीप हैं।
- केवल एक ज़िले वाले इस केंद्रशासित प्रदेश में दस बसे हुए द्वीप, तीन चट्टानें, पाँच जलमग्न तट एवं बारह एटोल हैं।
- सभी द्वीप केरल के तटीय शहर कोच्चि से 220 से 440 किलोमीटर दूर अरब सागर में स्थित हैं।
- यह प्रशासक के माध्यम से सीधे केंद्र के नियंत्रण किया जाता है।
- द्वीपों के तीन मुख्य समूह हैं:
- जैविक कृषि क्षेत्र: भारत की सहभागिता गारंटी प्रणाली (Participatory Guarantee System- PGS) के तहत पूरे लक्षद्वीप द्वीप समूह को जैविक कृषि क्षेत्र घोषित किया गया है।
- ब्लू फ्लैग प्रमाणन: लक्षद्वीप के दो नए समुद्र तटों- मिनिकॉय थुंडी तट और कदमत तट को ब्लू फ्लैग प्रमाणन प्रदान किया गया है।
लक्षद्वीप में विकास से संबंधित चिंताएँ क्या हैं?
- पर्यावरणीय प्रभाव:
- प्रवाल भित्तियों और समुद्री जीवन सहित द्वीपों का सुभेद्य पारिस्थितिकी तंत्र, निर्माण-कार्य, प्रदूषण तथा बढ़ती मानव गतिविधि से होने वाले नुकसान के प्रति संवेदनशील है।
- इन जोखिमों को कम करने के लिये सतत् विकास प्रथाएँ और सख्त पर्यावरणीय नियम आवश्यक हैं।
- सामाजिक-सांस्कृतिक प्रभाव:
- लक्षद्वीप में स्थानीय समुदायों की पारंपरिक जीवन शैली और सांस्कृतिक विरासत तेज़ी से विकास तथा बढ़ते पर्यटन के कारण खतरे में पड़ सकती है।
- बुनियादी ढाँचे का विकास:
- परिवहन, आवास और स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं सहित पर्याप्त बुनियादी ढाँचे की कमी, लक्षद्वीप में पर्यटन तथा व्यापार के लिये एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है।
- द्वीपों की प्राकृतिक सुंदरता और अद्वितीय छवि को संरक्षित करते हुए आधुनिक बुनियादी ढाँचे का विकास करने के लिये सावधानीपूर्वक योजना तथा निवेश की आवश्यकता होती है।
- सुरक्षा चिंताएँ:
- लक्षद्वीप की अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग मार्गों से निकटता और इसे प्रतिबंधित क्षेत्र के रूप में नामित किया जाना सुरक्षा चिंताओं को बढ़ाता है। पर्यटन और व्यापार को बढ़ावा देने के साथ सुरक्षा आवश्यकताओं को संतुलित करने के लिये सरकारी एजेंसियों तथा हितधारकों के बीच समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है।
- सामुदायिक संलग्नता:
- विकास परियोजनाओं की योजना करने और उनके कार्यान्वयन के सफलता तथा स्थिरता के लिये स्थानीय समुदायों की भागीदारी अत्यंत आवश्यक है।
- सामाजिक एकजुटता को बढ़ावा देने और विकास पहलों के लिये समर्थन प्राप्त करने हेतु विकास परियोजनाओं के लाभ का निवासियों के बीच समान रूप से वितरण तथा उनकी चिंताओं का समाधान सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है।
निष्कर्ष
- इन चिंताओं और चुनौतियों के समाधान के लिये सरकारी संस्थाओं, निजी क्षेत्र के हितधारकों, नागरिक समाज संगठनों तथा स्थानीय समुदायों के संयुक्त प्रयास की आवश्यकता है।
- विकास के लिये समग्र और समावेशी दृष्टिकोण के माध्यम से लक्षद्वीप की इन चुनौतियों का समाधान किया जा सकता है तथा पर्यटकों के लिये इसे एक सतत् एवं संपन्न द्वीप गंतव्य के रूप में इसकी क्षमता में वृद्धि की जा सकती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित द्वीपों के युग्मों में से कौन-सा एक 'दश अंश जलमार्ग' द्वारा आपस में पृथक किया जाता है? (2014) (a) अंडमान एवं निकोबार उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. 'द स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स' नीति से आप क्या समझते हैं? यह भारत को कैसे प्रभावित करती है? इसका मुकाबला करने के लिये भारत द्वारा उठाए गए कदमों का संक्षेप में वर्णन कीजिये। (2013) प्रश्न. पिछले दो वर्षों में मालदीव में राजनीतिक विकास पर चर्चा कीजिये। क्या वे भारत के लिये चिंता का कोई कारण हो सकते हैं? (2013) |
i-ऑन्कोलॉजी AI प्रोजेक्ट
प्रिलिम्स के लिये:कृत्रिम बुद्धिमत्ता, प्रगत संगणन विकास केंद्र, सुपर कंप्यूटर, जीनोमिक डेटा, जीनोमिक अनुक्रमण, नेशनल कैंसर ग्रिड, राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस मेन्स के लिये:चिकित्सा विज्ञान, वैज्ञानिक नवाचारों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का अनुप्रयोग |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
चिकित्सा नवाचार में अग्रणी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS), दिल्ली के शोधकर्त्ताओं ने “i-ऑन्कोलॉजी AI प्रोजेक्ट” नामक एक कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI)-संचालित मॉडल विकसित किया है जिसमें एक सुपर कंप्यूटर एकीकृत किया गया है। यह मॉडल ऑन्कोलॉजिस्टों को कैंसर के उपचार के संबंध में निर्णय लेने में सहायता करेगा।
i-ऑन्कोलॉजी AI प्रोजेक्ट की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- परिचय:
- i-ऑन्कोलॉजी AI प्रोजेक्ट AIIMS, दिल्ली और सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस्ड कंप्यूटिंग (C-DAC), पुणे तथा इलेक्ट्रॉनिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के संयुक्त प्रयसों द्वारा विकसित किया गया है। यह भागीदारी कैंसर के निदान दक्षता लाने हेतु चिकित्सा अनुसंधान और कंप्यूटेशनल विज्ञान को एक साथ लाती है।
- इसका उद्देश्य AI का उपयोग कर कैंसर के उपचार की सटीकता और प्रभावकारिता बढ़ाना है और साथ ही आनुवंशिक प्रोफाइल, नैदानिक इतिहास और उपचार परिणामों को शामिल करने वाले व्यापक डेटासेट का विश्लेषण कर आनुवंशिकी तथा कैंसर चिकित्सा की जटिल परस्पर क्रिया को उजागर करना है।
- कार्य पद्धति:
- सी-डैक के साथ विकसित यह प्लेटफॉर्म रक्त परीक्षण, लैब रिपोर्ट, स्कैन एवं रोगी के रिकॉर्ड सहित कैंसर से संबंधित विभिन्न डेटा को संग्रहीत करने के साथ-साथ विश्लेषण भी करता है।
- उन्नत एल्गोरिदम का उपयोग करते हुए, AI-सक्षम प्लेटफॉर्म डॉक्टरों को व्यापक जीनोमिक डेटा विश्लेषण के आधार पर उपचार निर्णय लेने में सहायता करता है, जिससे रोगियों के लिये उपचार योजना तैयार करने में सहायता प्राप्त होती है।
- हज़ारों कैंसर रोगियों के नैदानिक डेटा एवं जीनोमिक संरचना का अध्ययन करके चिकित्सीय परिणामों में सुधार करते हुए उपचार की सिफारिशें कर सकता है।
- यह उपकरण विशेष रूप से तब सहायक होता है जब सीमित संसाधन उपलब्ध होते हैं क्योंकि यह चिकित्सकों को अधिक केंद्रित उपचार निर्णय लेने के साथ स्वास्थ्य सेवा वितरण में सुधार करने में मदद करता है।
- प्लेटफॉर्म नैदानिक निर्णय लेने के लिये एक उपयोगी उपकरण है, लेकिन यह चिकित्सकों का स्थान नहीं ले सकता है। यह स्कैन तथा रिपोर्ट में असामान्यताओं की स्वचालित रूप से पहचान करके काम करता है।
- ब्रेस्ट तथा डिम्बग्रंथि कैंसर पर ध्यान देना:
- भारत में महिलाओं में ब्रेस्ट तथा डिम्बग्रंथि कैंसर की व्यापकता को देखते हुए, i-ऑन्कोलॉजी, AI का प्रारंभिक अनुप्रयोग इन कैंसर का शीघ्र पता लगाने पर केंद्रित है।
- प्रभाव:
- i-ऑन्कोलॉजी,AI प्लेटफॉर्म ब्रेस्ट एवं डिम्बग्रंथि के कैंसर का शीघ्र पता लगाने के साथ उपचार के माध्यम से कैंसर रोगियों के परिणामों तथा जीवन की गुणवत्ता में सुधार कर सकता है।
- यह स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों की दक्षता के साथ उत्पादकता को बढ़ाकर एवं संसाधन उपयोग को अनुकूलित करके कैंसर देखभाल के बोझ तथा लागत को भी कम करता है। इसके अतिरिक्त यह आगे के विश्लेषण एवं विकास के लिये मूल्यवान अंतर्दृष्टि और डेटा प्रदान करके कैंसर अनुसंधान के साथ नवाचार में भी योगदान देता है।
जीनोमिक डेटा
- जीनोमिक डेटा के संदर्भ किसी जीव के जीनोम की संरचना एवं उसकी कार्यप्रणाली के बारे में जानकारी से होता है।
- यह चिकित्सा अनुसंधानकर्त्ताओं एवं डॉक्टरों के लिये एक शक्तिशाली उपकरण है। इससे उन्हें यह समझने में मदद मिलती है कि DNA में भिन्नताएँ हमारे स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करती हैं।
- जीनोमिक अनुक्रमण के माध्यम से, वे एक रोगी की आनुवंशिक संरचना को समझते हैं और जीन में परिवर्तन का पता लगाते हैं। ये परिवर्तन यह समझने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं कि कैंसर जैसी बीमारियाँ किस प्रकार विकसित होती हैं।
वैश्विक कैंसर परिदृश्य
- कैंसर रोगों का एक जटिल समूह है जो शरीर में असामान्य कोशिकाओं की अनियंत्रित वृद्धि और प्रसार के रूप में पहचाना जाता है।
- ये कोशिकाएँ, जिन्हें कैंसर कोशिकाएँ कहा जाता है, स्वस्थ ऊतकों और अंगों पर आक्रमण कर उन्हें नष्ट कर सकती हैं।
- एक स्वस्थ शरीर में, कोशिकाएँ विनियमित रूप से बढ़ती हैं, विभाजित होती हैं व नष्ट हो जाती हैं, लेकिन कैंसर के मामले में, आनुवंशिक उत्परिवर्तन इस सामान्य कोशिका चक्र को बाधित करते हैं, जिससे अनियंत्रित वृद्धि होती है और ट्यूमर का निर्माण हो सकता है।
- ग्लोबल कैंसर ऑब्ज़र्वेटरी (GLOBOCAN) के वर्ष 2020 के अनुमान के अनुसार विश्व भर में 19.3 मिलियन कैंसर के मामले सामने आए हैं, जिसमें भारत, चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद तीसरे स्थान पर है।
- लैंसेट के एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2040 तक भारत में कैंसर के मामलों में 57.5% की वृद्धि होगी, जो 2.08 मिलियन तक पहुँच जाएगी। अकेले वर्ष 2022 में, कैंसर से, मुख्य रूप से देर से पता चलने के कारण भारत में 8 लाख से अधिक मौतें हुईं, जिसके परिणामस्वरूप जीवित रहने की दर केवल 20% थी।
कैंसर के उपचार से संबंधित सरकारी पहल क्या हैं?
- कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग और स्ट्रोक की रोकथाम तथा नियंत्रण हेतु राष्ट्रीय कार्यक्रम
- राष्ट्रीय कैंसर ग्रिड
- राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस
- HPV वैक्सीन
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न 1. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2010)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) प्रश्न. विकास की वर्तमान स्थिति में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence) निम्नलिखित में से किस कार्य को प्रभावी रूप से कर सकती है? (2020)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2, 3 और 5 उत्तर: (b) प्रश्न.1 अनुप्रयुक्त जैव-प्रौद्योगिकी में शोध तथा विकास-संबंधी उपलब्धियाँ क्या हैं? ये उपलब्धियाँ समाज के निर्धन वर्गों के उत्थान में किस प्रकार सहायक होंगी? (2021) प्रश्न. 2 नैनोटेक्नोलॉजी से आप क्या समझते हैं और यह स्वास्थ्य क्षेत्र में कैसे मदद कर रही है? (2020) |
जैवविविधता विरासत स्थल के रूप में गुप्तेश्वर वन
प्रिलिम्स के लिये:जैवविविधता विरासत स्थल (Biodiversity Heritage Site- BHS), जैवविविधता अधिनियम, 2002 मेन्स के लिये:जैवविविधता-विरासत स्थल (BHS), पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
ओडिशा के कोरापुट ज़िले में गुप्तेश्वर शिव मंदिर के निकट प्राचीन गुप्तेश्वर वन को राज्य का चौथा जैवविविधता विरासत स्थल (BHS) घोषित किया गया है।
गुप्तेश्वर वन से संबंधित प्रमुख तथ्य क्या हैं?
- क्षेत्र एवं महत्त्व:
- यह वन 350 हेक्टेयर के सीमांकित क्षेत्र को कवर करता है और जिसका स्थानीय समुदाय द्वारा पारंपरिक रूप से पूजनीय अपने पवित्र उपवनों के साथ अत्यधिक सांस्कृतिक महत्त्व है।
- वनस्पति एवं जैवविविधता:
- इस वन में वनस्पतियों और जीवों की उल्लेखनीय विविधता मौजूद है। यह वन स्तनधारियों की 28 प्रजातियों सहित कम-से-कम 608 जैव प्रजातियों का निवास स्थान है।
- महत्त्वपूर्ण प्रजातियाँ:
- वन में प्रलेखित उल्लेखनीय जीव-जंतु प्रजातियों में मगरमच्छ, कांगेर घाटी रॉक गेको, सेक्रेड ग्रोव बुश फ्रॉग और विभिन्न पक्षी जैसे काला बाजा, जेर्डन बाजा, मालाबेर ट्रोगोन, आम पहाड़ी मैना, सफेद पेट वाले कठफोड़वा और बैंडेड बे कोयल शामिल हैं।
- वन के भीतर चूना पत्थर की गुफाएँ चमगादड़ों की आठ प्रजातियों का आवास हैं, जिनमें से दो लगभग खतरे की श्रेणी में हैं।
- हिप्पोसाइडेरोस गैलेरिटस और राइनोलोफस रौक्सी IUCN की संकटापन्न (Near Threatened) की श्रेणी में हैं।
- पुष्प-विविधता:
- यह वन समृद्ध पुष्प विविधता का भी दावा करता है। इसमें भारतीय तुरही वृक्ष और भारतीय स्नैकरूट जैसे संकटग्रस्त औषधीय पौधे शामिल हैं।
जैवविविधता विरासत स्थल क्या है?
- परिचय:
- जैव विविधता विरासत (BHS) स्थल ऐसे पारिस्थितिक तंत्र होते हैं जिसमें अनूठे, सुभेद्य पारिस्थितिक तंत्र स्थलीय, तटीय एवं अंतर्देशीय जल तथा समृद्ध जैवविविधता वाले वन्य प्रजातियों के साथ-साथ घरेलू प्रजातियों, दुर्लभ एवं संकटग्रस्त, कीस्टोन प्रजाति पाई जाती हैं।
- कानूनी प्रावधान:
- जैवविविधता अधिनियम, 2002 की धारा 37(1) के प्रावधान के अनुसार, राज्य सरकार स्थानीय निकायों के परामर्श से समय-समय पर इस अधिनियम के अंतर्गत जैवविविधता के महत्त्व के क्षेत्रों को सरकारी राजपत्र में अधिसूचित कर सकती है।
- प्रतिबंध:
- जैवविविधता विरासत स्थल (BHS) के निर्माण से स्थानीय समुदायों की प्रचलित प्रथाओं और उपयोगों पर उनके द्वारा स्वेच्छा से तय की गई प्रथाओं के अतिरिक्त कोई प्रतिबंध अधिरोपित नहीं किया जा सकता है। इसका उद्देश्य संरक्षण उपायों के माध्यम से स्थानीय समुदायों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है।
- भारत का प्रथम BHS:
- बेंगलुरु, कर्नाटक में स्थित नल्लूर इमली ग्रोव भारत का पहला जैवविविधता विरासत स्थल था, जिसे वर्ष 2007 में जैवविविधता विरासत स्थल घोषित किया गया था।
- राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण के अनुसार फरवरी 2024 तक भारत में कुल 45 जैवविविधता विरासत स्थल मौजूद हैं।
- BHS में अंतिम पाँच परिवर्धन:
- हल्दी चार द्वीप पश्चिम बंगाल (मई 2023)
- बीरमपुर-बगुरान जलपाई पश्चिम बंगाल (मई 2023)
- तुंगकयोंग धो सिक्किम (जून 2023)
- गंधमर्दन हिल ओडिशा (मार्च 2023)
- गुप्तेश्वर वन ओडिशा (फरवरी 2024)
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. दो महत्त्वपूर्ण नदियाँ- जिनमें से एक का स्रोत झारखंड है ( जो ओडिशा में दूसरे नाम से जानी जाती है) तथा दूसरी जिसका स्रोत ओडिशा में है- समुद्र में प्रवाह करने से पूर्व एक ऐसे स्थान पर संगम करती हैं जो बंगाल की खाड़ी से कुछ ही दूर है। यह वन्य जीवन तथा जैवविविधता का प्रमुख स्थल और सुरक्षित क्षेत्र है। निम्नलिखित में वह स्थल कौन-सा है? (a) भितरकनिका उत्तर: (a) प्रश्न. भारत की जैवविविधता के संदर्भ में सीलोन फ्रॉगमाउथ, कॉपरस्मिथ बार्बेट, ग्रे-चिन्ड मिनिवेट और ह्वाइट-थ्रोटेड रेडस्टार्ट क्या है? (2020) (a) पक्षी उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. भारत में जैवविविधता किस प्रकार भिन्न है? जैवविविधता अधिनियम, 2002 वनस्पतियों और जीवों के संरक्षण में किस प्रकार सहायक है? (2018) |