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डेली न्यूज़

  • 19 Jul, 2024
  • 50 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

बुनियादी अवसंरचनाओं का ढहना

स्रोत: लाइव मिंट

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कई भौतिक बुनियादी अवसंरचना (Physical Infrastructures), जैसे बिहार में पुल तथा दिल्ली और गुजरात के राजकोट में हवाई अड्डे की छतरी संरचनाएँ ढह गईं।

भौतिक अवसंरचना के पतन के कारण क्या हैं?

  • प्राकृतिक कारण:
    • भारी वर्षा: लंबे समय तक और तीव्र वर्षा से मिट्टी संतृप्त हो सकती है तथा पुल जैसी संरचनाओं का भार बढ़ सकता है, जिससे पुल टूटने की संभावना हो सकती है।
      • बिहार के मामले में, नेपाल से आने वाले महत्त्वपूर्ण जल प्रवाह ने भी इस कारक में योगदान दिया है।
    • आपदाएँ: भूकंप जैसी आपदाएँ बुनियादी ढाँचे को कमज़ोर कर सकती हैं।
  • प्रशासनिक कारण:
    • भ्रष्टाचार: प्रशासन और निविदा आवंटन में भ्रष्टाचार परियोजनाओं के कार्यान्वयन तथा निगरानी से संबंधित प्रशासनिक विफलताओं का कारण बनता है।
    • प्रबंधन का मुद्दा: उचित रखरखाव, निगरानी और भीड़ के प्रबंधन के अभाव में बुनियादी अवसंरचना में विफलता होती है।
      • उदाहरण के लिये: मोरबी ब्रिज के ढहने का एक कारण नियमित रखरखाव और भीड़ प्रबंधन में विफलता थी।
  • प्रक्रियात्मक कारण: 
    • डिज़ाइन प्रोटोकॉल का पालन न करना: स्थापित इंजीनियरिंग डिज़ाइनों और सुरक्षा प्रोटोकॉल से विचलन संरचनात्मक कमज़ोरियों को जन्म दे सकता है।
    • खराब गुणवत्ता को नियंत्रण करना: निर्माण के दौरान निरीक्षणों की कमी और अपर्याप्त गुणवत्ता नियंत्रण उपायों के परिणामस्वरूप अनदेखी की गई खामियाँ उत्पन्न हो सकती हैं, जिससे सुरक्षा से समझौता हो सकता है।
      • घटिया सामग्री के उपयोग से संरचनात्मक अखंडता काफी कमज़ोर हो सकती है, जिससे पर्यावरणीय तनावों को सहन करने की क्षमता कम हो सकती है।

ग्रामीण अवसंरचना निर्माण के लिये कौन-सी योजनाएँ हैं?

  • विधानसभा सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (MLALAD):
    • यह केंद्र सरकार की योजना- MLALAD का राज्य संस्करण है।
    • इस योजना का उद्देश्य स्थानीय आवश्यकता आधारित बुनियादी ढाँचे का निर्माण करना, सार्वजनिक उपयोगिता की परिसंपत्तियों का निर्माण करना तथा विकास में क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करना है।
    • MLALAD कार्यक्रम प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र के लिए सीधे राज्य सरकार से धन उपलब्ध कराता है।
    • यद्यपि विधायकों और सांसदों को सीधे तौर पर धनराशि नहीं मिलती, लेकिन वे योजना के लिये परियोजनाओं की सिफारिश कर सकते हैं।
    • उनके द्वारा वित्तपोषित परियोजनाएँ आमतौर पर “टिकाऊ बुनियादी ढाँचे के कार्य” तक ही सीमित होती हैं, जिसमें सड़कों की मरम्मत से लेकर सामुदायिक केंद्रों का निर्माण शामिल होता है।
    • इस धनराशि का उपयोग कुछ राज्यों में प्राकृतिक आपदा राहत के लिये भी किया गया है, जैसा कि कोविड-19 के मामले में हुआ।
  • प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना:
    • इसे वर्ष 2000 में असंबद्ध बस्तियों तक बारहमासी सड़क के माध्यम से संपर्कता प्रदान करने के लिये शुरू किया गया था।
    • पात्रता: ग्रामीण आबादी की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को ऊपर उठाने के लिये कोर नेटवर्क में निर्दिष्ट जनसंख्या आकार (2001 की जनगणना के अनुसार मैदानी क्षेत्रों में 500+ और पूर्वोत्तर राज्यों, हिमालयी राज्यों, रेगिस्तान तथा जनजातीय क्षेत्रों में 250+) की असंबद्ध बस्तियों को शामिल करना।
    • नवीनतम वित्तपोषण पैटर्न: पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों में इस योजना के अंतर्गत स्वीकृत परियोजनाओं के संबंध में केंद्र सरकार परियोजना लागत का 90% वहन करती है, जबकि अन्य राज्यों के लिये केंद्र सरकार लागत का 60% वहन करती है।

भौतिक अवसंरचना निर्माण हेतु अन्य प्रमुख पहल:

आगे की राह

  • प्रशासनिक सुधार: इससे पारदर्शी प्रणाली के साथ परियोजनाओं की बेहतर निगरानी और कार्यान्वयन सुनिश्चित होगा।
  • आधुनिक इंजीनियरिंग पद्धतियों को अपनाना: उन्नत डिज़ाइन तकनीकों और सामग्रियों का उपयोग करें जो स्थायित्व को बढ़ाते हैं।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP): अधिक निवेश लाने के लिये वित्तपोषण और विशेषज्ञता हेतु सरकार तथा निजी क्षेत्र के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करना।
  • सख्त नियामक मानक: सामग्री और निर्माण प्रथाओं के लिये कठोर मानकों को लागू करना।
  • नियमित निरीक्षण: सुरक्षा और गुणवत्ता मानदंडों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये लगातार मूल्यांकन करना।
  • लचीलापन योजना: जलवायु परिवर्तन के प्रभावों और प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने के लिये बुनियादी ढाँचे का डिज़ाइन तैयार करना।
  • क्षमता निर्माण: कौशल बढ़ाने के लिये इंजीनियरों, वास्तुकारों और निर्माण श्रमिकों हेतु प्रशिक्षण कार्यक्रमों में निवेश करना।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत में सतत् आर्थिक विकास प्राप्त करने में आधारिक अवसंरचना के विकास की भूमिका का आकलन कीजिये। इस क्षेत्र के समक्ष कौन-सी प्रमुख चुनौतियाँ हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स: 

प्रश्न. “तीव्रतर एवं समावेशी आर्थिक संवृद्धि के लिये आधारिक-अवसंरचना में निवेश आवश्यक है”। भारतीय अनुभव के परिप्रेक्ष्य में विवेचना कीजिये। (2021)


शासन व्यवस्था

DPDP अधिनियम 2023 और माता-पिता की सहमति का मुद्दा

प्रिलिम्स के लिये:

डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, राष्ट्रीय डेटा शासन नीति, डेटा फिड्युसरी, भारतीय डेटा संरक्षण बोर्ड, गोपनीयता का अधिकार

मेन्स के लिये:

डेटा गोपनीयता, डेटा संरक्षण अधिनियम 2023, चुनौतियाँ और आगे की राह

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जबकि उद्योग ने डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम (DPDPA) 2023 का इसके सीधे अनुपालन ढाँचे के लिये बड़े पैमाने पर स्वागत किया है, बच्चों के डेटा को संसाधित करने से पहले सत्यापन योग्य माता-पिता की सहमति की आवश्यकता वाले प्रावधान ने उद्योग तथा सरकार के बीच विभाजन को जन्म दिया है।

डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम (DPDPA) 2023 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • डेटा सुरक्षा का अधिकार: यह व्यक्तियों को अपने व्यक्तिगत डेटा को जानने और नियंत्रित करने का अधिकार देता है। इसमें उनके डेटा तक पहुँचने, उसे सुधारने तथा मिटाने के अधिकार शामिल हैं, जिससे नागरिकों को अपनी व्यक्तिगत जानकारी पर अधिक नियंत्रण मिलता है।
  • डेटा प्रोसेसिंग और सहमति: अधिनियम में यह अनिवार्य किया गया है कि व्यक्तिगत डेटा को केवल व्यक्ति की स्पष्ट सहमति से ही प्रोसेस किया जा सकता है। संगठनों को स्पष्ट और विशिष्ट सहमति प्रपत्र प्रदान करने चाहिये तथा यह सुनिश्चित करना चाहिये कि डेटा संग्रह से पहले सहमति प्राप्त की जाए।
  • डेटा स्थानीयकरण: कुछ प्रकार के संवेदनशील व्यक्तिगत डेटा को भारत के भीतर संग्रहीत और संसाधित किया जाना आवश्यक है। इस प्रावधान का उद्देश्य डेटा सुरक्षा को बढ़ाना तथा डेटा सुरक्षा कानूनों के आसान प्रवर्तन को सुगम बनाना है।
  • विनियामक प्राधिकरण: अधिनियम अनुपालन की निगरानी और शिकायतों को निपटाने के लिये भारतीय डेटा संरक्षण बोर्ड (Data Protection Board of India- DPBI) की स्थापना करता है। बोर्ड विवादों का निपटारा करने तथा उल्लंघनों हेतु दंड लगाने के लिये ज़िम्मेदार है।
  • डेटा उल्लंघन अधिसूचना: संगठनों को व्यक्तियों और डेटा सुरक्षा बोर्ड को किसी भी डेटा उल्लंघन के बारे में सूचित करना आवश्यक है जो व्यक्तिगत जानकारी से समझौता कर सकता है। इस प्रावधान का उद्देश्य डेटा लीक की स्थिति में पारदर्शिता तथा त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित करना है।
  • ज़ुर्माना और दंड: इसमें गैर-अनुपालन के लिये कठोर दंड की रूपरेखा दी गई है, जिसमें उल्लंघन हेतु भारी ज़ुर्माना भी शामिल है। इसका उद्देश्य संगठनों को डेटा सुरक्षा मानकों का पालन करने के लिये प्रोत्साहित करना है।

माता-पिता की सहमति प्राप्त करने में क्या समस्याएँ हैं?

  • परिचय:
    • DPDP, 2023 की धारा 9 के तहत डेटा फिडुशियरीज़ को बच्चों के डेटा को संसाधित करने से पहले माता-पिता या अभिभावकों से सत्यापन योग्य सहमति प्राप्त करनी होगी।
      • यह अधिनियम नाबालिगों के लिये हानिकारक डेटा प्रसंस्करण और विज्ञापन लक्ष्यीकरण पर भी प्रतिबंध लगाता है।
    • हालाँकि कुछ संस्थाओं को स्वास्थ्य देखभाल और शैक्षणिक संस्थानों सहित सत्यापन योग्य माता-पिता की सहमति तथा आयु सीमा आवश्यकताओं को प्राप्त करने से छूट दी जा सकती है।
    • इसके अलावा, कुछ संस्थाओं को प्रतिबंधित आधार पर मानदंडों से छूट दी जा सकती है, जो उस विशिष्ट उद्देश्य पर निर्भर करता है जिसके लिये उन्हें बच्चे के डेटा को संसाधित करने की आवश्यकता है।
  • मुद्दे:
    • जबकि अधिनियम में माता-पिता की सहमति सहित बाल डेटा संरक्षण के लिये उपाय प्रस्तुत किये गए हैं, लेकिन आयु सत्यापन और बच्चों को होने वाले नुकसान को परिभाषित करने के संबंध में चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
    • ऐसी स्थितियों से निपटने के लिये जहाँ माता-पिता सहमति रद्द कर देते हैं या बच्चे सहमति की आयु तक पहुँच जाते हैं, सावधानीपूर्वक प्रबंधन की आवश्यकता होती है।
    • बायोमेट्रिक डेटा का भंडारण और विभिन्न उपकरणों में अनुकूलता सुनिश्चित करने जैसे मुद्दे कार्यान्वयन में कठिनाइयाँ पैदा कर सकते हैं।
    • यह अधिनियम स्वयं उन तरीकों का सुझाव नहीं देता है जिससे प्लेटफॉर्म उम्र-गेटिंग कर सकते हैं जिससे उद्योग के लिये एक प्रमुख बाधा उत्पन्न हो सकती है।
    • एक और चुनौती यह है कि बच्चे और उसके माता-पिता के बीच संबंध विश्वसनीय तरीके से कैसे स्थापित किया जाए।
      • सत्यापन योग्य अभिभावकीय सहमति प्रावधान के साथ आगे कैसे बढ़ना है, इस पर निर्णायक निर्णय पर पहुँचने में असमर्थता डेटा संरक्षण नियमों को जारी करने में देरी के पीछे सबसे बड़ा कारण है, जिसके बिना अधिनियम को क्रियान्वित नहीं किया जा सकता है। (DPDP अधिनियम अधिनियम के तौर-तरीकों को लागू करने के लिये कम-से-कम 25 ऐसे प्रावधानों पर निर्भर करता है)
  • संभावित समाधान और उनकी सीमाएँ:
    • शुरुआत में MeitY ने माता-पिता के डिजिलॉकर एप का उपयोग करने पर विचार किया, जो आधार विवरण पर निर्भर करता है। हालाँकि स्केलेबिलिटी और गोपनीयता संबंधी चिंताओं के कारण इसे खारिज कर दिया गया।
    • उद्योग के लिये एक अन्य विकल्प सरकार द्वारा अधिकृत एक इलेक्ट्रॉनिक टोकन प्रणाली बनाना था। हालाँकि इस दृष्टिकोण में भी व्यावहारिक सीमाएँ थी।
    • हाल ही में इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) तथा उद्योग प्रतिनिधियों के बीच हुई बैठक में उद्योग प्रतिनिधियों ने जोखिम के आधार पर एक श्रेणीबद्ध दृष्टिकोण का सुझाव दिया, जिसमें UK के आयु उपयुक्त डिज़ाइन कोड (Age Appropriate Design Code- AADC) को एक मॉडल के रूप में उद्धृत किया गया।

नोट: 

माता-पिता की सहमति के संबंध में वैश्विक प्रथाएँ:

  • वैश्विक स्तर पर निजता संबंधी कानूनों में माता-पिता की सत्यापनीय सहमति प्राप्त करने के लिये कोई प्रौद्योगिकी निर्धारित नहीं की है और डेटा संग्रहकर्त्ताओं को ऐसी प्रासंगिक प्रौद्योगिकी का उपयोग करने की ज़िम्मेदारी दी है जिसके माध्यम से ऐसी सहमति प्राप्त की जा सकती है।
    • उदाहरण के लिये, US चिल्ड्रन्स ऑनलाइन प्राइवेसी प्रोटेक्शन एक्ट (COPPA) माता-पिता की सहमति प्राप्त करने की सटीक विधि निर्दिष्ट नहीं करता है लेकिन इसके अंतर्गत बच्चे के माता-पिता की पहचान की पुष्टि करने के लिये उपलब्ध प्रौद्योगिकी को देखते हुए "उचित रूप से डिज़ाइन" की गई विधि का उपयोग करने की आवश्यकता होती है।
  • यूरोपीय संघ के सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन (GDPR) के अनुसार डेटा संग्रहकर्त्ताओं को उपलब्ध प्रौद्योगिकी का उपयोग कर यह सत्यापित करने के लिये उचित प्रयास करने की आवश्यकता होती है कि 13 वर्ष से कम आयु के बच्चे की ओर से प्रदान की गई सहमति वास्तव में उस बच्चे के माता-पिता की ज़िम्मेदारी के धारक द्वारा प्रदान की गई है।

माता-पिता की सहमति प्राप्त करने के मुद्दे का समाधान करने हेतु संभावित सुझाव क्या हैं?

  • सेल्फ-डिक्लेरेशन: कंपनियाँ माता-पिता को अकाउंट सेटअप करते समय बच्चे के साथ उनके नाते की घोषणा करने की अनुमति दे सकती हैं। हालाँकि यह समाधान सत्यनिष्ठा पर आधारित है और इसमें सुव्यवस्थित सत्यापन का अभाव होता है।
  • टू-फैक्टर ऑथेंटिकेशन (2FA): माता-पिता के अकाउंट के लिये 2FA लागू करने से सुरक्षा बढ़ सकती है। सहमति की पुष्टि करने के लिये माता-पिता को SMS या ईमेल के माध्यम से एक कूट प्राप्त होता है।
  • बायोमेट्रिक सत्यापन: माता-पिता की सहमति के लिये बायोमेट्रिक्स (जैसे- फिंगरप्रिंट या फेशियल रिकॉग्निशन) का लाभ उठाना सुरक्षित और निजता के अनुकूल हो सकता है।
  • प्रॉक्सी कंसेंट: माता-पिता बच्चे के साथ अपने नाते को सत्यापित करने के लिये किसी तीसरे विश्वसनीय पक्ष (जैसे- स्कूल या बाल रोग विशेषज्ञ) को अधिकृत कर सकते हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम (DPDPA), 2023 के प्रभावी कार्यान्वयन में चुनौतियों और उनके संभावित समाधानों की विवेचना कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत के संविधान के किस अनुच्छेद के तहत 'निजता का अधिकार' संरक्षित है? (2021)

(a) अनुच्छेद 15
(b) अनुच्छेद 19
(c) अनुच्छेद 21
(d) अनुच्छेद 29

उत्तर: (c)


प्रश्न. निजता के अधिकार को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्भूत भाग के रूप में संरक्षित किया जाता है। भारत के संविधान में निम्नलिखित में से किससे उपर्युक्त कथन सही एवं समुचित ढंग से अर्थित होता है? (2018)

(a) अनुच्छेद 14 और संविधान के 42वें संशोधन के अधीन उपबंध।
(b) अनुच्छेद 17 और भाग IV में दिये राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व।
(c) अनुच्छेद 21 और भाग III में गारंटी की गई स्वतंत्रताएँ।
(d) अनुच्छेद 24 और संविधान के 44वें संशोधन के अधीन उपबंध।

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. निजता के अधिकार पर उच्चतम न्यायालय के नवीनतम निर्णय के आलोक में मौलिक अधिकारों के विस्तार का परीक्षण कीजिये। (2017)


सामाजिक न्याय

महिलाओं का राजनीतिक प्रतिनिधित्व

प्रिलिम्स के लिये:

आम चुनाव, भारत का निर्वाचन आयोग, परिसीमन आयोग, राजनीतिक दल, आरक्षण

मेन्स के लिये:

संसद में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व के मुद्दे और कारण, महिलाओं से संबंधित मुद्दे, समावेशी विकास, मानव संसाधन, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, महिला आरक्षण अधिनियम, 2023

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

यूनाइटेड किंगडम में हाल ही में संपन्न आम चुनावों में हाउस ऑफ कॉमन्स में महिलाओं का प्रतिनिधित्व रिकॉर्ड 40% देखा गया, जो महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी बढ़ाने के संदर्भ में अन्य देशों द्वारा की गई महत्त्वपूर्ण प्रगति को उजागर करता है।

  • इसके विपरीत, भारत की संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व वैश्विक औसत 25% से काफी नीचे है।

भारतीय संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की स्थिति क्या है? 

  • संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व: लोकसभा में महिला सदस्यों का प्रतिशत वर्ष 2004 तक 5-10% से बढ़कर वर्तमान 18वीं लोकसभा में 13.6% हो गया है, जबकि राज्यसभा में यह 13% है
    • इसके अलावा, पिछले 15 वर्षों में चुनाव लड़ने वाली महिलाओं की संख्या में भी क्रमिक वृद्धि हुई है।
      • वर्ष 1957 में, केवल 45 महिला उम्मीदवारों ने लोकसभा चुनाव में भाग लिया था; वर्ष 2024 में यह संख्या 799 थी (कुल उम्मीदवारों का 9.5%)।
    • पश्चिम बंगाल में सर्वाधिक महिला सांसद (11 प्रतिनिधि) निर्वाचित हुई हैं। 18वीं लोकसभा में तृणमूल कॉन्ग्रेस के लोकसभा सांसदों में महिलाओं का अनुपात सबसे अधिक 38% है।
      • यह वैश्विक औसत लगभग 25% से बहुत कम है

  • राज्य विधायिकाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व: राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व का राष्ट्रीय औसत मात्र 9% है तथा किसी भी राज्य में 20% से अधिक महिला विधायक नहीं हैं। 
    • यहाँ तक ​​कि सर्वाधिक प्रतिनिधित्व वाले राज्य छत्तीसगढ़ में भी केवल 18% महिला विधायक हैं।
  • वैश्विक परिदृश्य: संसद के निचले सदन में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के मामले में भारत 185 देशों में से 143वें स्थान पर है।
    • स्वीडन में 46%, दक्षिण अफ्रीका में 45%, ब्रिटेन में 40% और अमेरिका में 29% महिला सांसद हैं।
    • लैंगिक प्रतिनिधित्व के मामले में भारत, वियतनाम, फिलीपींस, पाकिस्तान और चीन जैसे देशों से पीछे हैं।

राजनीति में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व के क्या कारण हैं?

  • सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाएँ: पितृसत्तात्मक मानदंड और लैंगिक रूढ़िवादिता राजनीति में महिलाओं की भागीदारी को सीमित करती है। घरेलू ज़िम्मेदारियाँ और परिवार के समर्थन की कमी, साथ ही शिक्षा तथा आर्थिक सशक्तीकरण में असमानताएँ, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसी बाधाओं में योगदान करती हैं।
  • राजनीतिक दल की गतिशीलता: पुरुष-प्रधान दल अक्सर महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारने में हिचकिचाते हैं, जिससे उन्हें "सुरक्षित" या "अजेय" सीटों पर उतार दिया जाता है। आंतरिक कोटा या सकारात्मक कार्रवाई नीतियों की कमी महिलाओं की उम्मीदवारी में और बाधा डालती है।
  • चुनाव प्रणाली की चुनौतियाँ: फर्स्ट पास्ट द पोस्ट सिस्टम में मज़बूत वित्तीय और संगठनात्मक समर्थन वाले स्थापित पुरुष उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी जाती है। उच्च चुनाव लागत और राजनीति में अपराधीकरण तथा धनबल का प्रचलन महिलाओं को और अधिक नुकसान पहुँचाता है।
  • संस्थागत और कानूनी बाधाएँ: स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिये एक-तिहाई आरक्षण प्रदान करने वाले 73वें और 74वें संविधान संशोधनों के विलंबित कार्यान्वयन ने महिलाओं के राजनीति में प्रवेश की संभावनाओं को सीमित कर दिया है।
    • महिला आरक्षण विधेयक, जिसमें संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिये 33% आरक्षण का प्रस्ताव था, को पारित करने में बार-बार विफलता एक अन्य प्रमुख संस्थागत बाधा है।
  • राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव: प्रमुख दलों द्वारा महिलाओं के राजनीतिक सशक्तीकरण को अपर्याप्त प्राथमिकता देना तथा महिला आंदोलनों और नागरिक समाज की ओर से निरंतर दबाव का अभाव यथास्थिति को कायम रखता है।

भारतीय संसद में महिला आरक्षण के पक्ष में तर्क क्या हैं?

  • महिलाओं का राजनीतिक प्रतिनिधित्व बढ़ाना: वर्तमान में संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व वैश्विक औसत लगभग 25% से काफी कम है। 33% आरक्षण इस अंतर को पाटने में मदद करेगा और भारतीय संसद में महिलाओं का अधिक न्यायसंगत प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करेगा।
  • लैंगिक समानता और समावेशी शासन को बढ़ावा देना: भारत में महिलाओं को राजनीतिक भागीदारी के लिये सामाजिक-सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जिनमें पितृसत्तात्मक मानदंड, संसाधनों की कमी तथा लिंग आधारित हिंसा शामिल हैं।
    • इसके अलावा, वे भारत की आबादी का लगभग 50% हिस्सा बनाते हैं, लेकिन राजनीतिक निर्णय लेने में उनका प्रतिनिधित्व कम है। उनका प्रतिनिधित्व बढ़ाने से लैंगिक रूप से संवेदनशील नीतियाँ बनेंगी और महिलाओं के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियों का बेहतर ढंग से समाधान होगा।
  • लोकतांत्रिक भागीदारी को मजबूत करना: महिलाओं के लिये एक तिहाई सीटें आरक्षित करने से राजनीति में उनकी सक्रिय भागीदारी को बल मिलेगा, समावेशी लोकतंत्र मज़बूत होगा और महिलाओं तथा बच्चों पर केंद्रित नीतियों की शुरुआत होगी, जिससे मानव विकास में मदद मिलेगी।
    • उदाहरण के लिये, कई गाँवों में महिला प्रतिनिधियों ने बाल विवाह उन्मूलन, मातृ स्वास्थ्य में सुधार और स्वच्छ पेयजल तक पहुँच सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

भारतीय राजनीति में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व को दूर करने हेतु क्या उपाय किये गए हैं?

  • संवैधानिक संशोधन:
    • 73वें और 74वें संविधान संशोधन (1992/1993) द्वारा पंचायतों और नगर पालिकाओं में महिलाओं के लिये एक-तिहाई सीटें आरक्षित की गईं, जिससे स्थानीय शासन में उनकी भागीदारी बढ़ गई।
    • 106वें संविधान संशोधन (2023) में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिये एक तिहाई सीटें आरक्षित करने का प्रस्ताव है, हालाँकि इसका कार्यान्वयन अगले परिसीमन पर निर्भर है।
      • यह आरक्षण 106वें संशोधन अधिनियम के लागू होने के बाद पहली जनगणना के बाद लागू किया जाएगा, जिसमें परिसीमन प्रक्रिया भी शामिल होगी।
  • महिला आरक्षण विधेयक:
    • वर्ष 1996 में पहली बार पेश किये गए इस विधेयक में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिये 33% आरक्षण का प्रस्ताव था। कई प्रयासों के बावजूद, प्रमुख दलों के बीच राजनीतिक सहमति की कमी के कारण यह विधेयक पारित नहीं हो सका।
  • राजनीतिक दलों द्वारा महिला उम्मीदवार: भारत में कई राजनीतिक दलों ने चुनावों में अपने उम्मीदवारों में महिलाओं को प्रतिनिधित्व दिया है।
    • नाम तमिलर काची (Naam Tamilar Katchi) 50% महिला उम्मीदवारों के साथ सबसे आगे है, इसके बाद लोक जनशक्ति पार्टी और राष्ट्रवादी कॉन्ग्रेस पार्टी 40-40% के साथ दूसरे स्थान पर है।
    • झारखंड मुक्ति मोर्चा, बीजू जनता दल और राष्ट्रीय जनता दल में क्रमशः 33%, 33% तथा 29% महिला प्रतिनिधित्व था।
    • इस बीच समाजवादी पार्टी में 20% और अखिल भारतीय तृणमूल कॉन्ग्रेस में 25% महिला उम्मीदवार थीं।
  • सशक्तीकरण योजनाएँ और कार्यक्रम:
    • महिला शक्ति केंद्र, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ और STEP जैसी पहलों का उद्देश्य महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार लाना है, लेकिन उनकी राजनीतिक भागीदारी बढ़ाने पर इनका प्रत्यक्ष प्रभाव सीमित ही रहा है।
  • नागरिक समाज और महिला आंदोलन:
    • महिला अधिकार समूहों, कार्यकर्त्ताओं और संगठनों द्वारा अधिक राजनीतिक प्रतिनिधित्व के लिये निरंतर वकालत की जा रही है।

WOMEN_Reservation_Act_2023

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत में राजनीति में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में बाधा डालने वाली प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं और उन्हें दूर करने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न.1 भारत में महिलाओं के समक्ष समय और स्थान संबंधित निरंतर चुनौतियाँ क्या-क्या हैं? (2019)

प्रश्न.2 विविधता, समता और समावेशिता सुनिश्चित करने के लिये उच्चतर न्यायपालिका में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाने की वांछनीयता पर चर्चा कीजिये। (2021)


आंतरिक सुरक्षा

भारत को आंतरिक सुरक्षा योजना की आवश्यकता

प्रिलिम्स के लिये:

अनुच्छेद 355, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो,राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड, केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल, अनुच्छेद 370,भारतीय तटरक्षक बल, राष्ट्रीय जाँच एजेंसी

मेन्स के लिये:

आंतरिक सुरक्षा ढाँचा, भारत के समक्ष प्रमुख सुरक्षा चुनौतियाँ।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

जैसे-जैसे भारत अपनी अंतरराष्ट्रीय स्थिति और अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत कर रहा है, वैसे-वैसे एक व्यापक आंतरिक सुरक्षा योजना की आवश्यकता तेजी से स्पष्ट होती जा रही है। हाल के घटनाक्रम राष्ट्रीय एकता और स्थिरता को बनाए रखने के लिये आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों से निपटने की आवश्यकता को उजागर करते हैं।

भारत के लिये आंतरिक सुरक्षा योजना की आवश्यकता और आगे की राह क्या है?

  • राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत (NSD): देश में आंतरिक और बाहरी चुनौतियों से निपटने के लिये एक NSD होना चाहिये। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड ने इन प्रारूपों पर कार्य किया है, लेकिन उन्हें कभी स्वीकृति नहीं मिली।
    • आंतरिक सुरक्षा के लिये एक सुसंगत दृष्टिकोण, मूलतः सरकार में बदलाव के दौरान, रखना महत्त्वपूर्ण है।
    • यह नीतिगत निर्णयों और रणनीतिक कार्रवाइयों का मार्गदर्शन करेगा, तदर्थ प्रतिक्रियाओं को कम करेगा तथा सुरक्षा संबंधी मुद्दों से निपटने हेतु सामंजस्य में सुधार करेगा। 
  • मंत्रालय की आंतरिक सुरक्षा: गृह मंत्रालय गलत तरीके से कार्य करता है, जिससे आंतरिक सुरक्षा मामलों में विलंब होता है और उस पर कम ही ध्यान दिया जाता है। आंतरिक सुरक्षा को स्वतंत्र रूप से संचालित करने के लिये एक युवा, कनिष्ठ मंत्री को नियुक्त करने की आवश्यकता है।
    • भारत के संविधान में अनुच्छेद 355 के अनुसार, संघ प्रत्येक राज्य को बाहरी आक्रमण और आंतरिक अशांति से बचाने तथा यह सुनिश्चित करने के लिये ज़िम्मेदार है कि प्रत्येक राज्य की सरकार संविधान के अनुसार कार्य करे।
  • जम्मू-कश्मीर में हालिया मुद्दे: गृह मंत्री का दावा है कि अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के पश्चात् से आतंकवादी घटनाओं में 66% की कमी आई है, लेकिन जम्मू में हुए हालिया हमलों से पता चलता है कि परिस्थितियाँ अभी सामान्य से दूर है।
    • सरकार को सुरक्षा ग्रिड को पुनर्गठित करने, जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल करने और पाकिस्तानी डीप स्टेट के उद्देश्यों को संबोधित करने के लिये विधानसभा चुनाव कराने की आवश्यकता है।
  • पूर्वोत्तर क्षेत्र को स्थिर करना: प्रधानमंत्री ने पूर्वोत्तर को "हमारे दिल का टुकड़ा" कहकर संबोधित किया है, हालाँकि इस क्षेत्र में चुनौतियों का सामना करना जारी है।
    • नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड- इसाक-मुइवा (NSCN-IM) की अलग ध्वज और संविधान की मांग के कारण विद्रोही नागाओं के साथ वर्ष 2015 का फ्रेमवर्क समझौता पूरी तरह से साकार नहीं हो पाया है।
    • सरकार को युद्धविराम समझौते का सख्ती से क्रियान्वयन सुनिश्चित करने और जबरन वसूली तथा जबरन भर्ती जैसी विद्रोही गतिविधियों को रोकने की आवश्यकता है।
    • गृह मंत्रालय द्वारा बहुल-जातीय शांति समिति के गठन के बावजूद मणिपुर अभी भी जातीय संघर्षों और कतिपय हिंसा से जूझ रहा है।
      • अब समय आ गया है कि प्रधानमंत्री व्यक्तिगत रूप से इन मुद्दों पर ध्यान दें।
    • इसके अतिरिक्त अवैध प्रवास, मादक पदार्थों की तस्करी और हथियारों की तस्करी जैसी समस्याओं से निपटने के लिये व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता होगी।
  • नक्सल समस्या: गृह राज्य मंत्री ने राज्यसभा में बताया कि "राष्ट्रीय नीति और कार्य योजना" के कारण वामपंथी उग्रवाद (LWE  हिंसा तथा उसके भौगोलिक प्रभाव में उल्लेखनीय कमी आई है।
    • वर्ष 2010 से हिंसा और मौतों में 73% की कमी आई है, LWE से संबंधित हिंसा की रिपोर्ट करने वाले पुलिस स्टेशनों की संख्या में भी कमी आई है।
    • नक्सलियों के पीछे हटने के बाद सरकार के लिये यह समय है कि वह उन्हें एकतरफा युद्धविराम की पेशकश करे, उन्हें बातचीत के लिये राजी करे, उनकी शिकायतों का समाधान करे और उन्हें सामाजिक मुख्यधारा में एकीकृत करने का प्रयास करे।
    • नक्सलवाद से निपटने की रणनीतियों में सुरक्षा उपाय, विकास परियोजनाएँ और कल्याणकारी पहल शामिल हैं, जिसके परिणामस्वरूप संबंधित घटनाओं में कमी आई है।
  • आसूचना और अन्वेषण अभिकरण: आसूचना ब्यूरो (IB) और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) के पुनर्गठन की आवश्यकता है। आसूचना ब्यूरो की स्थापना वर्ष 1887 में एक प्रशासनिक आदेश के माध्यम से की गई थी। राजनीतिक लाभ हेतु आसूचना के दुरुपयोग की रोकथाम करने के लिये इसे एक सांविधिक दर्जा दिये जाने का उचित समय है। 
    • CBI की स्थापना वर्ष 1963 में एक प्रस्ताव के माध्यम से की गई थी और दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 के अंतर्गत इसे जाँच करने की शक्ति प्रदान की गई है। 
      • यह एक असंगत व्यवस्था है और संसदीय समिति की 24वीं रिपोर्ट में विधिक अधिदेश, बुनियादी ढाँचे तथा संसाधनों के संदर्भ में CBI को सुदृढ़ करने की अनुशंसा की गई थी।
  • राज्य पुलिस बलों में सुधार: औपनिवेशिक युग के पुलिस मॉडल की सभी समस्याओं का समाधान किया जाना चाहिये और साथ समुदाय की ज़रूरतों के अनुरूप इसमें सुधार करने की आवश्यकता है।
    • लोगों के विश्वास और प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिये राज्य पुलिस की छवि को "शासक की पुलिस" से "जनमानस की पुलिस" में परिवर्तित की जानी चाहिये।
    • संबद्ध विषय में विश्व में किये गए सुधारों से सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाने से पुलिसिंग मानकों का आधुनिकीकरण और सुधार हो सकता है।
  • केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल: दस लाख से अधिक कर्मियों वाले केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CAPF) को अनियोजित विस्तार, अव्यवस्थित तैनाती, अपर्याप्त प्रशिक्षण, अनुशासन मानकों का घटता स्तर, शीर्ष अधिकारी चयन हेतु अस्पष्ट मानदंड और कैडर एवं अखिल भारतीय सेवा अधिकारियों के बीच संघर्ष जैसी आंतरिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
    • सरकार को इन समस्याओं के दीर्घकालिक समाधान के लिये एक उच्चस्तरीय आयोग की नियुक्ति करनी चाहिये।
  • प्रौद्योगिकी: उन्नत प्रौद्योगिकी के उपयोग से देश में पुलिस बल को मदद मिल सकती है। वर्तमान और भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिये नवीनतम प्रौद्योगिकी की सिफारिश करने के लिये एक उच्चस्तरीय प्रौद्योगिकी मिशन की स्थापना करना महत्त्वपूर्ण है।
    • आंतरिक संसक्ति को सुव्यवस्थित कर और सुरक्षा मुद्दों को संबोधित कर, देश अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना शक्ति प्रदर्शन कर सकता है।

आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिये राज्य ने क्या उपाय किये हैं?

  • आतंकवाद निरोधक प्रयास: 2008 के मुंबई हमलों के बाद, आतंकवाद-रोधी अभियानों पर विशेष ध्यान दिया गया है, जिसमें अनुच्छेद 370 को समाप्त करना और जम्मू-कश्मीर में रणनीतिक अभियान शामिल हैं।
  • पूर्वोत्तर उग्रवाद प्रबंधन: विकास और कूटनीति के संयोजन के माध्यम से सरकार ने पूर्वोत्तर में उग्रवाद को नियंत्रित करने के लिये काम किया है।
  • वामपंथी उग्रवाद से निपटना: उन्नत रणनीति और समन्वय से नक्सलवाद और संबंधित गतिविधियों से निपटने में सुधार हुआ है।
    • CAPF को उग्रवाद से अधिक प्रभावी ढंग से निपटने के लिये सुसज्जित किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं।
  • सीमा प्रबंधन: सीमावर्ती क्षेत्रों में बाड़ लगाने और विकास सहित सीमा सुरक्षा को बेहतर बनाने में महत्त्वपूर्ण संसाधनों का निवेश किया गया है।
    • न केवल सीमाओं को सुरक्षित करने के प्रयास किये जा रहे हैं, बल्कि सीमावर्ती क्षेत्रों में विकास और संपर्क को बेहतर बनाने के लिये भी प्रयास किये जा रहे हैं। विशेष रूप से चीन और पाकिस्तान के साथ मादक पदार्थों और हथियारों की तस्करी की आशंका वाली सीमाओं के प्रबंधन पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
  • संस्थागत ढाँचे का समर्थन: आंतरिक सुरक्षा से जुड़े संस्थानों, जैसे पुलिस बल और CAPF को बेहतर संसाधन, तकनीक और प्रशिक्षण दिया गया है। साइबर अपराध, महिलाओं के खिलाफ अत्याचारों को रोकने और नए युग के अपराधों से निपटने सहित उभरते खतरों पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है।
    • गृह मंत्रालय, 2023-24 के लिये लगभग 200,000 करोड़ रुपए के बजट के साथ, आंतरिक सुरक्षा के लिये नोडल एजेंसी के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो लगभग दस लाख CAPF कर्मियों की देखरेख करता है और राज्य पुलिस बलों के माध्यम से राष्ट्रीय सुरक्षा प्रयासों का समर्थन करता है।

आंतरिक सुरक्षा में शामिल प्रमुख अधिनियम और संस्थाएँ क्या हैं?

  • वैधानिक ढाँचा: प्रमुख अधिनियमों में दंड प्रक्रिया संहिता अधिनियम (1973), गैर-कानूनी गतिविधियाँ रोकथाम अधिनियम (UAPA) (1967), राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (1980), धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) (2002) और सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के उद्देश्य से बनाए गए विभिन्न अन्य कानून शामिल हैं।
  • संस्थाएँ एवं एजेंसियाँ: 
    • गृह मंत्रालय: आंतरिक सुरक्षा के लिये जिम्मेदार केंद्रीय एजेंसी जिसके पास पर्याप्त बजट और अनेक विभाग हैं।
    • राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA): राष्ट्रीय जाँच एजेंसी अधिनियम 2008 के तहत स्थापित। यह भारत में आतंकवाद और संबंधित अपराधों की जाँच करने वाली प्राथमिक संघीय एजेंसी है।
      • यह राज्य-पार संबंधों वाले आतंकवाद, अवैध तस्करी और अन्य गंभीर अपराधों से जुड़े मामलों को संभालता है।
      • राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (संशोधन) अधिनियम 2019 ने मानव तस्करी, नकली मुद्रा, प्रतिबंधित हथियार, विस्फोटक पदार्थ और साइबर आतंकवाद को शामिल करने के लिये इसके अधिकार क्षेत्र का विस्तार किया।
    • आसूचना ब्यूरो: इसकी स्थापना 19वीं शताब्दी में अंग्रेजों द्वारा की गई थी, खुफिया ब्यूरो (Director of Intelligence Bureau - DIB) का निदेशक आमतौर पर देश का सबसे वरिष्ठ पुलिस अधिकारी होता है और गृह मंत्री, प्रधानमंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार तक उसकी सीधी पहुँच होती है।
    • बहु-एजेंसी केंद्र (MAC): गृह मंत्रालय (MHA) द्वारा इसे सुरक्षा संबंधी जानकारी एकत्र करने और साझा करने के लिये 24x7 संचालित करने हेतु सशक्त बनाया गया है।
    • राष्ट्रीय खुफिया ग्रिड: NATGRID एक आईटी प्लेटफॉर्म है जिसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये आतंकवाद का मुकाबला करने में सुरक्षा और कानून प्रवर्तन एजेंसियों की सहायता के लिए बनाया गया है।
      • यह आतंकवादी गतिविधियों पर नजर रखने और राष्ट्रीय सुरक्षा हितों की पूर्ति के लिये रेलवे, पुलिस, चोरी के वाहन, आव्रजन, एयरलाइंस, पासपोर्ट, वाहन स्वामित्व, ड्राइविंग लाइसेंस, पैन डेटा आदि जैसे विभिन्न डेटाबेस को जोड़ता है।
    • आतंकवाद के वित्तपोषण का प्रतिरोध (CFT) सेल: गृह मंत्रालय का CFT प्रकोष्ठ आतंकवाद के वित्तपोषण और जाली भारतीय मुद्रा नोटों से निपटने संबंधी नीतिगत मामलों को संभालता है।
      • राज्यों ने आतंकवादी घटनाओं से निपटने के लिये विशेष बल, आतंकवाद निरोधक दस्ते (Anti-Terrorism Squad - ATS) का गठन किया है तथा राज्यों की सहायता के लिये विभिन्न स्थानों पर केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CAPF) और राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (National Security Guards - NSG) को भी तैनात किया गया है।

निष्कर्ष:

आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये, भारत को एकीकृत राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत अपनाना चाहिये, अपने सुरक्षा संस्थानों को सुव्यवस्थित करना चाहिये और उन्नत प्रौद्योगिकियों को एकीकृत करना चाहिये। क्षेत्रीय स्थिरता को मजबूत करना और कानून प्रवर्तन को आधुनिक बनाना उभरते खतरों के लिये एक व्यापक तथा अनुकूल प्रतिक्रिया सुनिश्चित करेगा। एक सुरक्षित और लचीले राष्ट्र के लिये बेहतर समन्वय तथा रणनीतिक योजना आवश्यक है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत के आंतरिक सुरक्षा ढाँचे की वर्तमान स्थिति का आकलन कीजिये। आंतरिक सुरक्षा के प्रभावी प्रबंधन के लिये किन प्रमुख चुनौतियों का समाधान किया जाना चाहिये?

और पढ़ें: NSA कार्यालय एवं देश के सुरक्षा ढाँचे का पुनर्गठन

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. भारत के समक्ष आने वाली आंतरिक सुरक्षा चुनौतियाँ क्या हैं? ऐसे खतरों का मुकाबला करने के लिये नियुक्त केंद्रीय खुफिया और जाँच एजेंसियों की भूमिका बताइये। (2023)

प्रश्न. भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिये बाह्य राज्य और गैर-राज्य कारकों द्वारा प्रस्तुत बहुआयामी चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये। इन संकटों का मुकाबला करने के लिये आवश्यक उपायों की भी चर्चा कीजिये। (2021)

प्रश्न. भारत के पूर्वी भाग में वामपंथी उग्रवाद के निर्धारक क्या हैं? प्रभावित क्षेत्रों में खतरों के प्रतिकारार्थ भारत सरकार, नागरिक प्रशासन और सुरक्षा बलों को किस सामरिकी को अपनाना चाहिये? (2020)


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