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राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण बिल (संशोधन), 2019

  • 16 Jul 2019
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में लोक सभा में राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण बिल (संशोधन), 2019 [National Investigation Agency (Amendment) Bill, 2019] पारित किया गया।

प्रमुख बिंदु

  • यह विधेयक राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (National Investigation Agency-NIA) अधिनियम, 2008 में संशोधन करता है।
  • यह विधेयक राष्ट्रीय स्तर की एजेंसी (NIA) को अनुसूची के तहत सूचीबद्ध अपराधों की जाँच करने एवं उन पर मुकदमा चलाने की शक्ति प्रदान करता है। इसके अलावा यह संशोधन विधेयक अनुसूचित अपराधों की सुनवाई हेतु विशेष न्यायालयों की स्थापना की भी अनुमति देता है।
  • NIA की स्थापना वर्ष 2009 में मुंबई आतंकवादी हमले के बाद की गई थी जिसमें 166 लोगों की मृत्यु हो गई थी।

राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण बिल (संशोधन), 2019 के अंतर्गत किये गए प्रावधान

1. सूचीबद्ध अपराध (Scheduled offences)

  • इस अधिनियम के अंतर्गत अपराधों की एक सूची बनाई गई है जिन पर NIA जाँच कर सकती है और मुकदमा चला सकती है। इस सूची में परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 (Atomic Energy Act) और गैर-कानूनी गतिविधियाँ रोकथाम अधिनियम, 1967 (Unlawful Activities Prevention Act) जैसे अधिनियमों के तहत सूचीबद्ध अपराध शामिल हैं।
  • यह अधिनियम NIA को निम्नलिखित अपराधों की जाँच करने की अनुमति देता है:

(i) मानव तस्करी,

(ii) जाली मुद्रा या बैंक नोटों से संबंधित अपराध,

(iii) प्रतिबंधित हथियारों का निर्माण या बिक्री,

(iv) साइबर आतंकवाद ,

(v) विस्फोटक पदार्थ अधिनियम, 1908 (Explosive Substances Act) के तहत अपराध।

2. NIA का क्षेत्राधिकार (Jurisdiction of the NIA)

  • NIA के अधिकारियों के पास पूरे भारतवर्ष में उपरोक्त अपराधों की जाँच करने के संबंध में अन्य पुलिस अधिकारियों के समान ही शक्तियाँ प्राप्त हैं।
  • NIA के पास भारत के बाहर घटित ऐसे अनुसूचित अपराधों, जो अंतर्राष्ट्रीय संधियों और अन्य देशों के घरेलू कानूनों के अधीन है, की जाँच करने की शक्ति होगी।
  • केंद्र सरकार, NIA को भारत में घटित सूचीबद्ध अपराध के मामलों की जाँच के सीधे निर्देश दे सकती है।
  • सूचीबद्ध अपराधों के मामले नई दिल्ली की विशेष अदालत के अधिकार क्षेत्र में आ जाएंगे।

3. विशेष न्यायालय (Special Courts)

  • यह अधिनियम सूचीबद्ध अपराधों की सुनवाई हेतु केंद्र सरकार को विशेष न्यायालयों का गठन करने की अनुमति देता है।
  • साथ ही इस विधेयक में यह भी कहा गया है कि केंद्र सरकार सूचीबद्ध अपराधों के संबंध में मुकदमा चलाने के लिये सत्र न्यायालय को विशेष न्यायालयों के रूप में नामित कर सकती है।
  • यदि केंद्र सरकार किसी सत्र न्यायालय को विशेष न्यायालय के रूप में नामित करना चाहती है तो पहले उसे उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श लेना आवश्यक है, जिसके तहत सत्र न्यायालय कार्यरत होता है।
  • यदि किसी क्षेत्र के लिये एक से अधिक विशेष न्यायालय नामित किये जाते हैं, तो वरिष्ठतम न्यायाधीश इन न्यायालयों के मध्य मामलों का वितरण करेगा।
  • इसके अलावा राज्य सरकारें भी सूचीबद्ध अपराधों की सुनवाई हेतु विशेष न्यायालयों के रूप में सत्र न्यायालयों को भी नामित कर सकती हैं।

स्रोत: PRS

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