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MPLADS फंड पर CIC का क्षेत्राधिकार

  • 10 Jun 2024
  • 20 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, केंद्रीय सूचना आयोग (Central Information Commission- CIC), राज्य सूचना आयोग (State Information Commission- SIC), MPLADS योजना

मेन्स के लिये:

केंद्रीय एवं राज्य सूचना आयोग का अधिकार क्षेत्र एवं शक्तियाँ, केंद्रीय सूचना आयोग में सुधार, अप्रभावी सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 का देश में सुशासन तथा पारदर्शिता एवं जवाबदेही पर प्रभाव।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने फैसला दिया है कि केंद्रीय सूचना आयोग (Central Information Commission- CIC) को सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (Members of Parliament Local Area Development Scheme- MPLADS) के तहत धन के उपयोग पर टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है।

न्यायालय के फैसले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • मुख्य घटनाएँ:
    • वर्ष 2018 में केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) के एक आदेश में कुछ सांसदों द्वारा कार्यकाल के अंतिम वर्ष तक अपने MPLAD निधि को रणनीतिक रूप से बचाने के बारे में चिंता जताई गई थी। CIC को संदेह था कि चुनावों के दौरान अनुचित लाभ उठाने के लिये इस रणनीति का इस्तेमाल किया गया था।
    • इसने सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) को सुझाव दिया था कि धन के इस “दुरुपयोग” को रोका जाए और पाँच साल की अवधि में प्रत्येक वर्ष के लिये धन को समान रूप से वितरित करने के लिये दिशा-निर्देशों को लागू किया जाए।
    • इसके बाद सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) ने सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम के तहत आवेदन को लेकर CIC के फैसले को दिल्ली उच्च न्यायालय में कानूनी चुनौती दी।
  • न्यायालय का निर्णय:
    • दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि MPLADS के तहत सांसदों द्वारा निधि के उपयोग पर टिप्पणी करने का केंद्रीय सूचना आयोग को कोई अधिकार नहीं है।
    • RTI अधिनियम का दायरा सार्वजनिक प्राधिकरणों के नियंत्रण में सूचना तक पहुँच प्रदान करने तक सीमित है।
      • न्यायालय ने कहा कि RTI अधिनियम की धारा 18 के अनुसार, CIC केवल RTI अधिनियम के तहत मांगी गई सूचना से संबंधित उन मुद्दों या किसी अन्य मुद्दे से निपट सकता है, जिसमें आवेदक द्वारा मांगी गई सूचना का दुरुपयोग होता हो।
    • हालाँकि न्यायालय ने CIC के आदेश के उस हिस्से को बरकरार रखा है, जिसमें उसने सार्वजनिक प्राधिकरण को RTI अधिनियम के तहत सांसद-वार, निर्वाचन क्षेत्र-वार और कार्य-वार निधियों का विवरण प्रकाशित करने का निर्देश दिया था।

MPLAD योजना क्या है?

  • परिचय:
    • यह वर्ष 1993 में घोषित केंद्रीय क्षेत्र की एक योजना है।
  • उद्देश्य:
    • यह संसद सदस्यों (MP) को मुख्य रूप से उनके निर्वाचन क्षेत्रों में पेयजल, प्राथमिक शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य, स्वच्छता और सड़क आदि जैसे क्षेत्रों में सतत् सामुदायिक परिसंपत्तियों के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करते हुए विकासात्मक प्रकृति के कार्यों की सिफारिश करने में सक्षम बनाता है।
  • कार्यान्वयन:
    • MPLAD के अंतर्गत प्रक्रिया की शुरुआत सांसदों द्वारा नोडल ज़िला प्राधिकरण को कार्यों की सिफारिश करने से होती है।
    • संबंधित नोडल जिला प्राधिकरण, संसद सदस्यों द्वारा अनुशंसित कार्यों को क्रियान्वित करने तथा योजना के अंतर्गत निष्पादित किये गए व्यक्तिगत कार्यों और व्यय की गई राशि का ब्यौरा रखने के लिये ज़िम्मेदार है।
  • कार्यकरण:
    • प्रत्येक वर्ष सांसदों को 2.5 करोड़ रुपए की दो किस्तों में 5 करोड़ रुपए मिलते हैं। MPLADS के तहत मिलने वाली धनराशि कभी भी समाप्त नहीं होती।
    • लोकसभा सांसदों को अपने लोकसभा क्षेत्र में ज़िला प्रशासन को परियोजनाओं की सिफारिश करनी होती है, जबकि राज्यसभा सांसदों को इसे उस राज्य में खर्च करना होता है जिसने उन्हें सदन के लिये चुना है।
    • राज्यसभा और लोकसभा दोनों के मनोनीत सदस्य देश में कहीं भी कार्यों की सिफारिश कर सकते हैं।
  • चिंताएँ:
    • संघवाद का उल्लंघन: MPLADS स्थानीय स्वशासी संस्थाओं के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण करता है, जिससे संविधान के भाग IX और IX-A में निर्धारित सिद्धांतों का उल्लंघन होता है।
    • कार्यान्वयन में खामियाँ: MPLAD योजना सांसदों को संरक्षण के स्रोत के रूप में निधियों का उपयोग करने की अनुमति देती है, जिसका वे अपने विवेकानुसार उपयोग कर सकते हैं।
      • नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General- CAG) ने वित्तीय कुप्रबंधन और व्यय में कृत्रिम वृद्धि के उदाहरणों को उजागर किया है।
      • इस योजना की आलोचना इस आधार पर भी की जाती है कि इससे सांसदों और निजी कंपनियों के बीच गठजोड़ को बढ़ावा मिलता है, जिससे निजी परियोजनाओं हेतु धन का दुरुपयोग होता है, अयोग्य एजेंसियों को धन आवंटित होता है तथा धन का निजी ट्रस्टों में हस्तांतरण होता है।
    • कोई वैधानिक समर्थन नहीं: MPLAD योजना किसी भी वैधानिक कानून द्वारा शासित नहीं है, जिससे यह सरकार द्वारा मनमाने ढंग से किये जाने वाले परिवर्तनों के प्रति संवेदनशील है।
    • आलोचना: राष्ट्रीय संविधान कार्यकरण समीक्षा आयोग (2002) और द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (2007) दोनों ने इसकी समाप्ति की सिफारिश की थी।
      • उनका तर्क इस योजना की केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्ति विभाजन के साथ असंगतता पर केंद्रित है।

आगे की राह

  • पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाना: परियोजना प्रस्तावों, स्वीकृतियों और निधि उपयोग के लिये एक मज़बूत ऑनलाइन ट्रैकिंग प्रणाली लागू की जानी चाहिये। नियमित ऑडिट एवं सार्वजनिक रिपोर्ट तैयार की जानी चाहिये।
  • नागरिक भागीदारी को सशक्त बनाना: सहभागी बजट तंत्र को बढ़ावा देकर, सामुदायिक मंचों को शामिल करना, जहाँ नागरिक निर्वाचन क्षेत्र के भीतर विकास आवश्यकताओं की पहचान कर उन्हें प्राथमिकता दे सकते हैं।
  • साक्ष्य-आधारित निर्णय को बढ़ावा देना: सांसदों को आवश्यकता का आकलन तथा अपने निर्वाचन क्षेत्रों के लिये सर्वाधिक प्रभावी परियोजनाओं की पहचान के लिये डेटा के उपयोग हेतु प्रोत्साहित करना।
  • अभिसरण को बढ़ाना: MPLADS निधियों को अन्य केंद्रीय और राज्य सरकार की योजनाओं के साथ अभिसरण करने की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित किया जाना चाहिये, जिससे बड़ी, अधिक टिकाऊ परियोजनाएँ बनाने में सहायता मिल सकती है।
    • परियोजना का कुशल क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिये स्थानीय कार्यान्वयन एजेंसियों की क्षमता को मज़बूत किया जाना चाहिये।
  • फंड की कमी को संबोधित करना: फंड की कमी को दूर करने के लिये वैकल्पिक तरीकों पर विचार किया जाना चाहिये। फंड को अगले साल के लिये आगे बढ़ाया जा सकता है या अधिक ज़रूरत वाले निर्वाचन क्षेत्रों में वितरण हेतु राष्ट्रीय पूल (National Pool) में भेजा जा सकता है।

केंद्रीय सूचना आयोग (Central Information Commission- CIC) क्या है?

  • इसकी स्थापना वर्ष 2005 में सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत की गई थी।
  • यह एक गैर-संवैधानिक निकाय है जो केंद्रीय सरकारी एजेंसियों द्वारा संगृहीत सूचना तक पहुँच सुनिश्चित करता है।
  • इसमें एक CIC और अधिकतम 10 सूचना आयुक्त (Information Commissioners- IC) शामिल होते हैं, जो केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित कार्यकाल (अधिकतम आयु सीमा 65 वर्ष) तक कार्य करते हैं और पुनर्नियुक्ति के लिये अपात्र होते हैं।
  •  CIC के प्रमुख कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं:
    •  RTI अधिनियम के अंतर्गत प्रस्तुत सूचना अनुरोधों से संबंधित शिकायतें प्राप्त करना और उनकी जाँच करना।
    • उचित आधारों (स्वतः संज्ञान शक्ति) पर प्रासंगिक मामलों की जाँच शुरू करना।
    • जाँच के दौरान व्यक्तियों को सम्मन और दस्तावेज़ों का अनुरोध करने के लिये सिविल न्यायालय के समान शक्तियों का प्रयोग करना।
  • भारत के प्रत्येक राज्य में एक राज्य सूचना आयोग (State Information Commission- SIC) है जिसकी संरचना लगभग समान है।

सूचना का अधिकार (Right to Information- RTI) अधिनियम, 2005

  • RTI अधिनियम, 2005 के तहत सार्वजनिक प्राधिकरणों को अपनी संरचना और कार्यप्रणाली के विभिन्न पहलुओं पर स्वतः संज्ञान द्वारा प्रकटीकरण करने की आवश्यकता होती है। इसमें शामिल हैं:
    • उनके संगठन, कार्यों और संरचना का प्रकटीकरण।
    • इसके अधिकारियों और कर्मचारियों की शक्तियाँ और कर्त्तव्य।
    • वित्तीय जानकारी।
  • ऐसे प्रकटीकरणों का उद्देश्य जनता को ऐसी सूचना तक पहुँच प्रदान कर अधिनियम के माध्यम से न्यूनतम सहायता की आवश्यकता को पूरा करना।
  • यदि ऐसी जानकारी उपलब्ध नहीं कराई जाती है, तो नागरिकों को प्राधिकारियों के समक्ष ऐसी मांग करने का अधिकार है।
  • इस अधिनियम को लागू करने के पीछे उद्देश्य सार्वजनिक प्राधिकरणों के कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देना है।

'सार्वजनिक प्राधिकरण' शब्द का अर्थ:

  • 'सार्वजनिक प्राधिकरण' में संविधान के तहत या किसी कानून या सरकारी अधिसूचना के तहत स्थापित स्वशासन निकाय, जैसे केंद्रीय मंत्रालय, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम और नियामक शामिल हैं।
  • इसमें सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए धन से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वित्तपोषित स्वामित्व वाली, नियंत्रित या पर्याप्त रूप से वित्तपोषित कोई भी संस्था और गैर-सरकारी संगठन भी शामिल हो सकता है (यह बात सर्वोच्च न्यायालय ने डी.ए.वी. कॉलेज ट्रस्ट एंड मैनेजमेंट सोसाइटी बनाम डायरेक्टर ऑफ पब्लिक इंस्ट्रक्शंस केस, 2019 में अपने फैसले में कही थी)।

CIC की स्वायत्तता से संबंधित क्या चिंताएँ हैं?

  • नियुक्ति प्रक्रिया:
    • CIC और सूचना आयुक्तों (Information Commissioner's- IC) की नियुक्ति राजनेताओं की एक समिति द्वारा की जाती है, जिससे चयन पर राजनीतिक प्रभाव पड़ने की संभावना रहती है और  CIC की निष्पक्षता से समझौता हो सकता है।
  • कार्यकाल और निष्कासन:
    • RTI अधिनियम में मूल रूप से सूचना आयुक्तों के लिये 5 वर्ष के निश्चित कार्यकाल की गारंटी दी गई थी। हालाँकि RTI (संशोधन) अधिनियम, 2019 में इसे हटा दिया, जिससे केंद्र सरकार को उनके कार्यकाल पर नियंत्रण मिल गया।
      • इससे यह चिंता उत्पन्न हो गई है कि सरकार इन अधिकारियों को प्रभावित कर उनकी स्वतंत्रता प्रभावित कर सकती है।
  • मुख्य चुनाव आयुक्त को वेतन और भत्ते:
    • RTI अधिनियम (2005) ने CIC और IC के वेतन को मुख्य चुनाव आयुक्त तथा चुनाव आयुक्तों के वेतन से जोड़ दिया।
      • हालाँकि वर्ष 2019 के संशोधन ने इस लिंक को हटा दिया, जिससे केंद्र सरकार को उनके वेतन और लाभ तय करने का अधिकार मिल गया। यह बदलाव संभावित सरकारी प्रभाव के बारे में चिंताएँ पैदा करता है।
  • वित्तपोषण एवं संसाधन:
    • CIC अपने बजटीय आवंटन और प्रशासनिक सहायता के लिये केंद्र सरकार पर निर्भर रहता है, जो CIC की स्वायत्तता एवं प्रभावशीलता को सीमित कर सकती है।
  • प्रवर्तन शक्तियाँ:
    • CIC के पास सूचना के प्रकटीकरण का आदेश देने तथा अनुपालन न करने वाले अधिकारियों पर दंड लगाने की शक्ति है, लेकिन मज़बूत प्रवर्तन तंत्र का अभाव इन शक्तियों की प्रभावशीलता में बाधा डालता है, जिससे अनुपालन सुनिश्चित करना कठिन हो जाता है।

केंद्रीय सूचना आयोग की मज़बूती हेतु क्या सुधार प्रस्तावित हैं?

  • स्वतंत्र चयन समिति की स्थापना:
    • चयन समिति में न्यायपालिका, नागरिक समाज और अन्य स्वतंत्र निकायों के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाना चाहिये, जिससे राजनीतिक प्रभाव को कम करने में मदद मिलेगी तथा यह सुनिश्चित होगा कि सक्षम और निष्पक्ष व्यक्ति CIC का नेतृत्व करे।
  • निश्चित एवं गैर-नवीकरणीय अवधि:
    • नवीनीकरण की संभावना के बिना एक निश्चित अवधि (जैसे 5 वर्ष) प्रस्तावित की जानी चाहिये। साथ ही समय से पहले हटाए जाने के खिलाफ मज़बूत सुरक्षा उपाय होने चाहिये, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि CIC अधिकारी स्वतंत्र रूप से काम कर सकें।
  • वित्तीय एवं प्रशासनिक स्वायत्तता:
    • CIC को अलग से बजट आवंटित करके तथा उसका समय पर वितरण सुनिश्चित कर वित्तीय स्वायत्तता प्रदान की जानी चाहिये।
    • उन्हें स्टाफ की भर्ती और बुनियादी ढाँचे सहित प्रशासनिक मामलों के प्रबंधन में भी सशक्त बनाया जाना चाहिये।
  • उन्नत प्रवर्तन शक्तियाँ:
    • उन्हें गैर-अनुपालन के लिये व्यक्तियों या संगठनों को अवमानना ​​हेतु दोषी ठहराने की शक्तियाँ प्रदान की जा सकती हैं, CIC के आदेशों का पालन करने में विफल रहने वाले सार्वजनिक प्राधिकारियों पर ज़ुर्माना लगाने की शक्ति और इसके निर्णय को प्रभावी ढंग से लागू करने हेतु एक निष्पादन तंत्र प्रदान किया जा सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न

वर्तमान समय में सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना की प्रासंगिकता पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न. संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (MPLADS) के अंतर्गत निधियों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-से सही हैं? (2020)

  1. MPLADS निधियाँ टिकाऊ परिसंपतियों जैसे- स्वास्थ्य, शिक्षा आदि की भौतिक आधारभूत संरचनाओं के निर्माण में ही प्रयुक्त हो सकती हैं। 
  2. प्रत्येक सांसद की निधि का एक निश्चित अंश अनुसूचित जाति/जनजाति जनसंख्या के लाभार्थ प्रयुक्त होना आवश्यक है। 
  3. MPLADS निधियाँ वार्षिक आधार पर स्वीकृत की जाती हैं और अप्रयुक्त निधि को अगले वर्ष के लिये अग्रेषित नहीं किया जा सकता।
  4. कार्यान्वित हो रहे सभी कार्यों में से कम-से-कम 10% कार्यों का ज़िला प्राधिकारी द्वारा प्रतिवर्ष निरीक्षण करना अनिवार्य है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3 और 4
(c) केवल 1, 2 और 3
(d) केवल 1, 2 और 4


मेन्स:

प्रश्न. सूचना का अधिकार अधिनियम केवल नागरिकों के सशक्तीकरण के बारे में नहीं है, अपितु यह आवश्यक रूप से जवाबदेही की संकल्पना को पुनः परिभाषित करता है।” विवेचना कीजिये। (2018)

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