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डेली न्यूज़

  • 18 Oct, 2021
  • 47 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक रिपोर्ट 2021 : अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी

प्रिलिम्स के लिये:

वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक, अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी 

मेन्स के लिये: 

भारत में ऊर्जा उपयोग की समग्र स्थिति और इस संबंध में सरकार द्वारा किये गए प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ( International Energy Agency-IEA) ने वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक (WEO) रिपोर्ट 2021 जारी की।

  • वार्षिक रूप से प्रकाशित WEO रिपोर्ट ऊर्जा की मांग और आपूर्ति के अनुमानों पर महत्त्वपूर्ण विश्लेषण और अंतर्दृष्टि प्रदान करती है।
  • वर्ष 2021 की रिपोर्ट ने कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (COP26) शिखर सम्मेलन (ग्लासगो, यूके में) में  जलवायु कार्रवाई के लिये सरकारों पर अधिक दबाव का संकेत दिया।
  • इससे पूर्व अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) द्वारा शुद्ध शून्य उत्सर्जन (Net Zero Emissions - NZE) हेतु  'नेट ज़ीरो बाय 2050'  (Net Zero by 2050) नाम से रोडमैप जारी किया गया है।

प्रमुख बिंदु

  • अक्षय ऊर्जा के योगदान को बढ़ावा:
    • अक्षय ऊर्जा स्रोतों जैसे कि सौर, पवन, जलविद्युत और बायोएनर्जी को कोरोनावायरस महामारी के उपरांत ऊर्जा निवेश को पुनः एक बड़ा हिस्सा बनाने की आवश्यकता है।
      • विश्व भविष्य की ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिये पर्याप्त निवेश नहीं कर रहा है, और अनिश्चितताएँ भविष्य में एक अस्थिर अवधि के लिये मंच तैयार कर रही हैं।
    • अक्षय ऊर्जा की मांग लगातार बढ़ रही है। हालाँकि वर्ष 2050 तक वैश्विक उत्सर्जन को शुद्ध शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु यह स्वच्छ ऊर्जा प्रगति अभी भी बहुत धीमी है, IEA का मानना ​​है कि इससे वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने में मदद मिलेगी।
    • प्रारंभ में IEA ने जीवाश्म ईंधन में निरंतर निवेश का समर्थन किया। हालाँकि यह धीरे-धीरे "जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिये निर्णय निर्माताओं से आग्रह करने वाले अधिक विशिष्ट मुद्दों" की ओर बढ़ गया है।
  • उत्सर्जन में कमी के उपाय:
    • अतिरिक्त निवेश करना उतना मुश्किल नहीं है जितना लगता है। आवश्यक उत्सर्जन में कमी का 40% से अधिक उन उपायों से संभव है जो स्वयं के लिये भुगतान करते हैं, जैसे:
      • दक्षता में सुधार, गैस रिसाव को सीमित करना या उन जगहों पर पवन या सौर क्षमता स्थापित करना जहाँ वे अब सबसे अधिक प्रतिस्पर्द्धी बिजली उत्पादन प्रौद्योगिकियाँ हैं।
  • विभिन्न परिदृश्य: IEA ने दो संभावित परिदृश्यों का विश्लेषण किया:
    • घोषित नीतियों का परिदृश्य (चरण):
      • यह उन उपायों और नीतियों को कवर करता है जिन्हें सरकारें पहले ही लागू कर चुकी हैं। उपायों के बावजूद दुनिया भर में वार्षिक उत्सर्जन का आँकड़ा उतना ही होगा जितना विकासशील देश अपने बुनियादी ढाँचे का निर्माण करते हैं।
      • इस परिदृश्य में वर्ष 2100 में तापमान पूर्व औद्योगिक स्तरों से 2.6 डिग्री सेल्सियस अधिक होगा।
    • शुद्ध शून्य उत्सर्जन के लिये प्रतिबद्धता:
      • यह शुद्ध-शून्य उत्सर्जन स्थिति प्राप्त करने के लिये सरकारों की प्रतिबद्धता का आकलन करते हुए संभावित रूप से अगले दशक हेतु उनके स्वच्छ ऊर्जा निवेश को दोगुना करता है।
      • यदि देश समय पर इन प्रतिबद्धताओं को लागू करने का प्रबंधन करते हैं, तो वर्ष 2100 तक वैश्विक औसत तापमान वृद्धि लगभग 2.1 डिग्री सेल्सियस होगी, लेकिन यह सुधारात्मक प्रयास पेरिस समझौते के तहत सुनिश्चित किये गए 1.5 सेल्सियस से काफी अधिक है।

Energy-Agency

  • प्रमुख सुझाव:
    • स्वच्छ विद्युतीकरण:
      • इसके लिये घोषित प्रतिबद्धता परिदृश्यों के सापेक्ष सौर पीवी और पवन परिनियोजन को दोगुना करने की आवश्यकता है।
    • कम उत्सर्जन दर:
      • जहाँ स्वीकार्य हो वहाँ परमाणु ऊर्जा के उपयोग सहित अन्य कम-उत्सर्जन उपायों को अपनाना; बिजली के बुनियादी ढाँचे और जलविद्युत सहित सभी प्रकार की प्रणालियों में लचीलापन बढ़ाना; कोयले का चरणबद्ध उपयोग; परिवहन और हीटिंग के लिये बिजली के उपयोग को बढ़ाने हेतु एक अभियान का संचालन किया जा रहा है। 
    • ऊर्जा दक्षता:
      • उपकरण दक्षता और व्यवहार परिवर्तन के माध्यम से ऊर्जा सेवा की मांग को कम करने के उपायों के साथ-साथ ऊर्जा दक्षता पर निरंतर ध्यान केंद्रित करना।
    • मीथेन उत्सर्जन में कमी:
      • जीवाश्म ईंधन के उपयोग से मीथेन उत्सर्जन में कटौती करके और स्वच्छ ऊर्जा नवाचार को एक बड़े योगदानकर्त्ता के रूप में बनाने हेतु एक अभियान का संचालन किया जा रहा है।
    • स्वच्छ ऊर्जा का दशक:
      • वर्ष 2020 को बड़े पैमाने पर स्वच्छ ऊर्जा परिनियोजन का दशक बनाने के लिये COP26 के उपायों को लागू कर विशिष्ट परिणाम प्राप्त हो सकते हैं

भारत संबंधी विशिष्ट परिणाम

  • जनसंख्या और सकल घरेलू उत्पाद (GDP) 2020-2050:
    • भारत इस दशक में चीन की आबादी को पार कर सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा और वर्ष 2050 तक भारत की आबादी 1.6 बिलियन से अधिक हो जाएगी, जबकि चीन की आबादी में कमी आने का अनुमान है।
    • अगले तीन दशकों में भारत की जीडीपी औसतन चीन की तुलना में तेज़ी से बढ़ेगी [भारत का 5.3% बनाम चीन का 3.6%]।
  • कोयला उत्पादन:
    • भारत में वित्तीय रूप से तनावग्रस्त कोयला परिसंपत्तियों (NPA) के 50 गीगावाट से अधिक उत्सर्जन ने बैंकिंग प्रणाली में तनाव उत्पन्न कर दिया है।
    • भारत में कोयले की मांग वर्ष 2030 तक लगभग 30% बढ़ने का अनुमान है।
    • देशों की  प्रतिबद्धता के अनुसार, अनुमान है कि चीन के बाद अबाधित कोयले का अगला सबसे बड़ा उपयोगकर्त्ता भारत होगा, जो वर्ष 2030 तक बिजली उत्पादन के लिये वैश्विक उपयोग के लगभग 15% हेतु ज़िम्मेदार होगा।
  • वायु प्रदूषण:
    • स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण में तेज़ी लाने में विफलता की स्थिति तब उत्पन्न होगी जब वैश्विक स्तर पर वायु प्रदूषण के संपर्क में आने वाले लोगों का आवागमन जारी रहेगा।
    • हाल ही में भारत में समय से पूर्व होने वाली 1.67 मिलियन मौतों का प्रमुख कारण वायु प्रदूषण को माना गया है यानी वायु प्रदूषण से हर मिनट में तीन से अधिक मौतें होती हैं।
  • भारत के प्रयासों की सराहना:
    • स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं हेतु पूंजी जुटाने में विकासशील अर्थव्यवस्थाओं ने उल्लेखनीय कार्य किया है और इसमें वर्ष 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा के माध्यम से 450 GW ऊर्जा प्राप्त करने हेतु सौर फोटोवोल्टिक (pv) के तीव्र विस्तार के लिये वित्तपोषण में भारत की सफलता एक प्रमुख उदाहरण है।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपने एक हालिया सर्वेक्षण में बताया है कि भारत में खाना पकाने के ‘स्वच्छ माध्यमों’ तक पहुँच में सुधार हुआ है।
  • सिफारिशें
    • इस रिपोर्ट में भारत में ‘एयर कंडीशनर’ के लिये 24 डिग्री सेल्सियस के डिफाॅल्ट सेट पॉइंट तापमान को अनिवार्य करने एवं दक्षता में सुधार के उद्देश्य से सख्त न्यूनतम प्रदर्शन मानकों को अनिवार्य करने का आह्वान किया गया है, क्योंकि समय के साथ कूलिंग एवं बिजली की मांग बढ़ रही है।

आगे की राह

  • दुनिया भर के विभिन्न देशों को आगामी 30 वर्षों के भीतर ऊर्जा क्षेत्र को लागत प्रभावी तरीके से बदलने का एक कठिन कार्य करना है, साथ ही इस अवधि में विश्व अर्थव्यवस्था आकार में दोगुने से अधिक हो जाएगी और वैश्विक जनसंख्या में 2 अरब लोगों की वृद्धि होगी।
  • वर्ष 2050 तक दुनिया को शुद्ध शून्य उत्सर्जन तक पहुँचने की आवश्यकता प्रमुख अंतरिम कदमों में निहित है, जिन्हें वर्ष 2030 तक उठाए जाने की आवश्यकता है, जिसमें हाइड्रोजन और नवीकरणीय ऊर्जा से सस्ती एवं हरित ऊर्जा को सभी के लिये सुलभ बनाना शामिल है ।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

हाइपरसोनिक प्रौद्योगिकी

प्रिलिम्स के लिये:

हाइपरसोनिक प्रौद्योगिकी, बैलिस्टिक मिसाइल, क्रूज़ मिसाइल, मिशन शक्ति, वायु श्वास प्रणोदन प्रणाली

मेन्स के लिये:

हाइपरसोनिक प्रौद्योगिकी विकसित करने में भारत की प्रगति

चर्चा में क्यों?

नवीनतम रिपोर्टों के मुताबिक, चीन ने हाल ही में एक ‘परमाणु-सक्षम हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल’ का परीक्षण किया, जिसने अपने लक्ष्य की ओर जाने से पूर्व पृथ्वी का चक्कर लगाया।

  • अमेरिका, रूस और चीन सहित कई देश हाइपरसोनिक मिसाइल विकसित कर रहे हैं, जो ध्वनि से पाँच गुना तेज़ गति से यात्रा करती हैं।
  • हालाँकि बैलिस्टिक मिसाइलों की तुलना में इनकी गति धीमी होती है, किंतु इन्हें अवरोधित करना और ट्रैक करना अपेक्षाकृत कठिन होता है

प्रमुख बिंदु

  • भारत के लिये निहितार्थ:
    • अमेरिका-चीन की बढ़ती प्रतिद्वंद्विता और पूर्वी लद्दाख में एक वर्ष से चल रहे गतिरोध की पृष्ठभूमि में हाइपरसोनिक प्रौद्योगिकी का विकास निश्चित रूप से भारत के लिये चिंताजनक विषय है।
    • इन गतियों पर चलने वाली हथियार प्रणाली का अर्थ होगा कि भारत को भी इन्हीं गतियों पर रक्षा प्रणालियों का विकास करना होगा।
  • हाइपरसोनिक गति और प्रौद्योगिकी:
    • परिचय:
      • हाइपरसोनिक गति ‘मैक या ध्वनि की गति’ से 5 गुना ज़्यादा या इससे भी अधिक होती है।
      • मैक नंबर: यह हवा में ध्वनि की गति की तुलना में एक विमान की गति का वर्णन करता है, जिसमें मैक 1 ध्वनि की गति यानी 343 मीटर प्रति सेकंड के बराबर होता है।
    • प्रकार:
      • हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइलें: ये वे मिसाइलें हैं, जो अपनी उड़ान के दौरान रॉकेट या जेट प्रणोदक का उपयोग करती हैं और इन्हें मौजूदा क्रूज़ मिसाइलों का तीव्र संस्करण माना जाता है।
      • हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल (HGV): ये मिसाइलें लक्ष्य की ओर लॉन्च होने से पूर्व एक पारंपरिक रॉकेट के माध्यम से पहले वायुमंडल में जाती हैं।
    • प्रयुक्त प्रौद्योगिकी: अधिकांश हाइपरसोनिक वाहन मुख्य रूप से स्क्रैमजेट तकनीक का उपयोग करते हैं, जो एक प्रकार का वायु श्वास प्रणोदन प्रणाली है।
      • यह अत्यंत जटिल तकनीक है, जिसमें उच्च तापमान सहन करने की भी क्षमता होती है, जिसके कारण हाइपरसोनिक सिस्टम बेहद महँगा होता है। 

बैलिस्टिक मिसाइल बनाम क्रूज़ मिसाइल

बैलिस्टिक मिसाइल

क्रूज़ मिसाइल

इसमें प्रक्षेप्य गति और प्रक्षेपवक्र में यात्रा गुरुत्वाकर्षण, वायु प्रतिरोध और कोरिओलिस बल पर निर्भर करती है।

यह तुलनात्मक रूप से गति के लिये सीधे प्रक्षेपवक्र का अनुसरण करता है।

पृथ्वी के वायुमंडल से बाहर जाता है और पुनः उसमें प्रवेश करता है।

इसका उड़ान पथ पृथ्वी के वायुमंडल के भीतर ही होता है।

लंबी दूरी की मिसाइलें (300 किमी. से 12,000 किमी. तक)

कम दूरी की मिसाइलें (1000 किमी. तक की रेंज)

उदाहरण: पृथ्वी-I, पृथ्वी-II, अग्नि-I, अग्नि-II और धनुष मिसाइलें।

उदाहरण: ब्रह्मोस मिसाइल

गति के आधार पर मिसाइलों का वर्गीकरण

गति सीमा

मैक नंबर

वेग (m/s)

सबसोनिक

< 0.8

< 274

ट्रांसोनिक

0.8–1.2

274–412

सुपरसोनिक 

1.2–5

412–1715

हाइपरसोनिक

5–10

1715–3430

हाई-हाइपरसोनिक

10–25

3430–8507

  • भारत में हाइपरसोनिक प्रौद्योगिकी का विकास:
    • भारत भी हाइपरसोनिक तकनीक पर काम कर रहा है।
      • जहाँ तक अंतरिक्ष परिसंपत्तियों का संबंध है, तो भारत पहले ही मिशन शक्ति के तहत ‘ASAT’ के परीक्षण के माध्यम से अपनी क्षमताओं को साबित कर चुका है।
    • हाइपरसोनिक तकनीक का विकास और परीक्षण DRDO एवं ISRO दोनों ने किया है।
    • हाल ही में DRDO ने ‘हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल’ (HSTDV) का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है, जिसमें ध्वनि की गति से 6 गुना गति से यात्रा करने की क्षमता है।
    • इसके अलावा हैदराबाद में DRDO की एक ‘हाइपरसोनिक विंड टनल’ (HWT) परीक्षण सुविधा का भी उद्घाटन किया गया है। यह एक दबाव वैक्यूम-चालित संलग्न मुक्त जेट सुविधा है जो मैक 5 से 12 तक की गति प्राप्त कर सकती है।

वायु श्वास प्रणोदन प्रणाली:  

  • परिचय: यह प्रणाली वायुमंडलीय ऑक्सीजन का उपयोग करती है, जो पृथ्वी की सतह से लगभग 50 किमी. की ऊँचाई तक उपलब्ध है, इसमें ऑन-बोर्ड संग्रहीत ईंधन का उपयोग किया जाता है जिससे सिस्टम बहुत हल्का, अधिक कुशल और लागत प्रभावी हो जाता है। 
  • वायु श्वास प्रणोदन प्रणाली ( Air Breathing Propulsion System ) के उदाहरणों में रैमजेट, स्क्रैमजेट, डुअल मोड रैमजेट (DMRJ) शामिल हैं।
  • रैमजेट (Ramjet):
    • रैमजेट इंजन, एयर ब्रीदिंग इंजन का ही एक रूप है जो वाहन की अग्र गति (Forward Motion) का उपयोग कर आने वाली हवा को बिना घूर्णन संपीडक (Rotating Compressor) के दहन (combustion) के लिये संपीड़ित करता है।
    • ईंधन को दहन कक्ष में अंतक्षेपण किया जाता है जहाँ वह गर्म संपीड़ित हवा के साथ मिलकर प्रज्वलित होता है।
    • रैमजेट ज़ीरो एयरस्पीड पर थ्रस्ट उत्पन्न नहीं कर सकते; वे एक स्थिर विमान को स्थानांतरित नहीं कर सकते। 
    • एक रैमजेट-संचालित वाहन को भी रॉकेट की भाँति टेक-ऑफ करने की आवश्यकता होती है इसलिये रैमजेट इंजन इस वाहन को त्वरित गति प्रदान करने में मदद करता है। 
    • रैमजेट सुपरसोनिक गति पर सबसे कुशलता से काम करते हैं और जब वाहन हाइपरसोनिक गति पर पहुँच जाता है तो रैमजेट इंजन की दक्षता कम होने लगती है। 
  • स्क्रैमजेट (Scramjet):
    • स्क्रैमजेट इंजन, रैमजेट इंजन की तुलना में अत्यधिक कुशल है क्योंकि यह हाइपरसोनिक गति से कुशलतापूर्वक संचालित होता है और सुपरसोनिक गति से ईधन के दहन की अनुमति देता है। इसलिये इसे सुपरसोनिक दहन रैमजेट (Supersonic Combustion Ramjet) या स्क्रैमजेट कहते है।
    • स्क्रैमजेट तीन बुनियादी घटकों से बना है:
      • एक अभिसरण इनलेट जहाँ आने वाली हवा संपीड़ित होती है।
      • एक दहन क्षेत्र जहाँ ऊष्मा उत्पन्न करने के लिये वायुमंडलीय ऑक्सीजन के साथ गैसीय ईंधन को जलाया जाता है।
      • एक डायवर्जिंग नोज़ल जहाँ थ्रस्ट उत्पन्न करने के लिये गर्म हवा को तेज़ किया जाता है। डायवर्जेंट नोज़ल का उपयोग करके शेष गैसों को हाइपरसोनिक गति में त्वरित किया जाता है।
    • जिस गति से वाहन वायुमंडल से होकर गुज़रता है, उसके कारण हवा इनलेट के भीतर संकुचित हो जाती है। जैसे- स्क्रैमजेट में किसी हिलने-डुलने वाले उपकरण की आवश्यकता नहीं होती है, जो इंजन में वज़न और विफलता बिंदुओं की संख्या को कम करता है।
  • डुअल मोड रैमजेट (DMRJ):
    • तीसरी अवधारणा रैमजेट और स्क्रैमजेट का मिश्रण है, जिसे डुअल मोड रैमजेट (DMRJ) कहा जाता है।
    • ऐसे इंजन की ज़रूरत है जो सुपरसोनिक और हाइपरसोनिक दोनों गति से काम कर सके।
    • डुअल मोड रैमजेट (DMRJ) एक जेट इंजन है, जिसमें  रैमजेट मैक 4-8 की गति के बाद स्क्रैमजेट में परिवर्तित हो जाता है, जिसका अर्थ है कि यह इंजन सबसोनिक और सुपरसोनिक मोड दोनों में कुशलतापूर्वक काम कर सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

सात नए रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम (DPSUs)

प्रिलिम्स के लिये:

आत्मनिर्भर भारत, सार्वजनिक क्षेत्र के रक्षा उपक्रम, आयुध निर्माणी बोर्ड

मेन्स के लिये:

रक्षा क्षेत्र में भारत की आत्मनिर्भरता

चर्चा में क्यों?

प्रधानमंत्री ने आयुध निर्माणी बोर्ड (OFB) के पुनर्गठन के माध्यम से बनाए गए सात रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों (PSU) को राष्ट्र को समर्पित किया।

  • 'आत्मनिर्भर भारत' (Self-Reliant India) के तहत भारत का लक्ष्य देश को आत्मनिर्भरता की स्थिति प्रदान कर एक बड़ी सैन्य शक्ति बनाना है।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय
    • विघटन और समामेलन:
      • केंद्र सरकार ने चार दशक पुराने आयुध निर्माणी बोर्ड (OFB) को भंग करने का आदेश दिया और सात नई राज्य-स्वामित्व वाली कंपनियों के तहत 41 फैक्ट्रियों को मिलाकर रक्षा हार्डवेयर से लेकर भारी हथियारों और वाहनों तक का निर्माण किया।
        • इन नई कंपनियों का मुख्यालय पाँच शहरों में है।
      • OFB आयुध कारखानों और संबंधित संस्थानों के लिये एक अंब्रेला निकाय था और रक्षा मंत्रालय (MoD) का एक अधीनस्थ कार्यालय था। यह 41 कारखानों, 9 प्रशिक्षण संस्थानों, 3 क्षेत्रीय विपणन केंद्रों और सुरक्षा के 5 क्षेत्रीय नियंत्रकों का समूह था।
        • इसका मुख्यालय कोलकाता में था।
      • उत्पादन इकाइयों से संबंधित पूर्ववर्ती OFB (ग्रुप A, B और C) के सभी कर्मचारियों को केंद्र सरकार के कर्मचारियों के रूप में उनकी सेवा शर्तों में कोई बदलाव किये बिना दो साल की अवधि हेतु डीम्ड प्रतिनियुक्ति पर कॉर्पोरेट संस्थाओं में स्थानांतरित किया जाएगा।
    • सात नई कंपनियाँ:
      • म्यूनिशन्स इंडिया लिमिटेड, आर्म्ड व्हीकल्स निगम लिमिटेड, एडवांस्ड वेपन्स एंड इक्विपमेंट इंडिया लिमिटेड, ट्रूप कम्फर्ट्स लिमिटेड, यंत्र इंडिया लिमिटेड, इंडिया ऑप्टेल लिमिटेड और ग्लाइडर्स इंडिया लिमिटेड।
    • महत्त्व:
      • सशस्त्र बलों द्वारा OFB उत्पादों की उच्च लागत, असंगत गुणवत्ता और आपूर्ति में देरी से संबंधित चिंताएँ व्यक्त की गई हैं।
      • नई संरचना OFB की मौजूदा प्रणाली में इन विभिन्न कमियों को दूर करने में मदद करेगी और इन कंपनियों को प्रतिस्पर्द्धी बनने तथा निर्यात सहित बाज़ार में नए अवसरों का पता लगाने के लिये प्रोत्साहित करेगी।
  • रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता:
    • OFB का निगमीकरण।
    • संशोधित FDI सीमा: स्वचालित मार्ग के तहत रक्षा निर्माण में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की सीमा को 49% से बढ़ाकर 74% कर दिया गया है।
    • रक्षा औद्योगिक गलियारा: सरकार ने उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में दो-दो रक्षा औद्योगिक गलियारे स्थापित करने का प्रस्ताव किया है।
    • परियोजना प्रबंधन इकाई (PMU): सरकार से समयबद्ध तरीके से रक्षा खरीद शुरू करने और परियोजना प्रबंधन इकाई (अनुबंध प्रबंधन उद्देश्यों के लिये) की स्थापना करके तीव्रता से  निर्णय लेने की उम्मीद है।
    • रक्षा आयात विधेयक में कमी: सरकार आयात के लिये प्रतिबंधित हथियारों/प्लेटफॉर्मों की एक सूची अधिसूचित करेगी और इस प्रकार ऐसी वस्तुओं को केवल घरेलू बाज़ार से ही खरीदा जा सकता है।
      • घरेलू पूंजी प्राप्तियों के लिये अलग बजट का प्रावधान किया जाएगा।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

सऊदी-ईरान संबंधों का सामान्यीकरण

प्रिलिम्स के लिये:

अरब स्प्रिंग

मेन्स के लिये:

सऊदी-ईरान संबंध

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ईरान और सऊदी अरब के प्रतिनिधियों के बीच बगदाद में चार और न्यूयॉर्क में एक बैठक हुई। ये बैठकें वर्ष 2016 से स्थिर द्विपक्षीय संबंधों के उभरने की निरंतरता का संकेत देती हैं।

  • नए तरीकों से स्थापित द्विपक्षीय संबंध, सऊदी अरब और ईरान के बीच संबंधों के सामान्यीकरण के चलते भारत के लिये भी क्षेत्रीय स्थिरता और कूटनीतिक सहजता का मार्ग प्रशस्त होगा।

Iran

प्रमुख बिंदु

  • पृष्ठभूमि (सऊदी अरब-ईरान संघर्ष):
    • धार्मिक समूह: इन दोनों के बीच दशकों पुराना झगड़ा धार्मिक मतभेदों के कारण और गहरा गया है।
      • इनमें से प्रत्येक इस्लाम की दो मुख्य शाखाओं में से एक का पालन करता है। ईरान में बड़े पैमाने पर शिया मुस्लिम है, जबकि सऊदी अरब स्वयं को प्रमुख सुन्नी मुस्लिम शक्ति के रूप में देखता है।
      • ऐतिहासिक रूप से सऊदी अरब राजशाही और इस्लाम धर्म का जन्मस्थान है जो स्वयं को विश्व में इस्लामिक-स्टेट का नेतृत्वकर्त्ता समझता था। 
      • हालाँकि इसे 1979 में ईरान में इस्लामी क्रांति द्वारा चुनौती दी गई थी, जिसने इस क्षेत्र में एक नए प्रकार के राज्य का निर्माण किया- एक तरह का क्रांतिकारी धर्मतंत्र जिसका इस मॉडल को अपनी सीमाओं से परे निर्यात करने का एक स्पष्ट लक्ष्य था।
    • क्षेत्रीय शीत युद्ध: सऊदी अरब और ईरान दो शक्तिशाली पड़ोसी हैं जो क्षेत्रीय प्रभुत्व के लिये संघर्षरत हैं।
      • इस विद्रोह ने अरब क्षेत्र के अतिरिक्त दुनिया भर में (2011 में अरब स्प्रिंग के बाद) राजनीतिक अस्थिरता पैदा कर दी।
      • ईरान और सऊदी अरब ने अपने प्रभाव का विस्तार करने के लिये इस उथल-पुथल का फायदा उठाया, विशेष रूप से सीरिया, बहरीन और यमन में आपसी संदेह को और बढ़ावा दिया।
      • इसके अलावा सऊदी अरब और ईरान के बीच संघर्ष को बढ़ाने में अमेरिका और इज़राइल जैसी बाहरी शक्तियों की प्रमुख भूमिका है।
    • छद्म युद्ध (Proxy War): प्रत्यक्ष रूप से ईरान और सऊदी अरब इस युद्ध को नहीं लड़ रहे हैं, लेकिन वे इस क्षेत्र के आसपास कई छद्म युद्धों (ऐसा संघर्ष जहाँ वे प्रतिद्वंद्वी पक्षों और रक्षक योद्धाओं का समर्थन करते हैं) में शामिल रहे हैं।
      • जैसे- यमन में हूती विद्रोही। ये समूह अधिक क्षमता प्राप्त कर सकते हैं जो इस क्षेत्र में और अधिक अस्थिरता पैदा कर सकते हैं। सऊदी अरब ने ईरान पर उनका समर्थन करने का आरोप लगाया है।
    • 2016 फ्लैश प्वाइंट: सऊदी अरब द्वारा शिया मुस्लिम धर्मगुरु शेख निम्र अल-निम्र  (Nimr al-Nimr) को फाँसी दिये जाने के बाद कई ईरानी प्रदर्शनकारियों ने ईरान में सऊदी राजनयिक मिशनों पर हमला किया।
  • संबंधों के सामान्यीकरण का कारण:
    • सऊदी अरब की विज़न 2030 रणनीति: यह देश की अर्थव्यवस्था, रक्षा, पर्यटन और नवीकरणीय ऊर्जा में लक्षित सुधारों को संदर्भित करता है।
      • कोविड-19 के संदर्भ में सऊदी अरब ने यह महसूस किया है कि महत्त्वपूर्ण निवेश को केवल ईरान के साथ डी-एस्केलेशन के माध्यम से आकर्षित किया जा सकता है।
    • क्षेत्रीय मोर्चे पर समझौता: सऊदी अरब, अरब लीग (एक क्षेत्रीय संगठन) ने सीरिया के सत्ता  धारी के रूप में बशर असद (Bashar Assad) को नियुक्त करने की प्रक्रिया में भी शामिल है, जिसका ईरान ने स्वागत किया है।
    • क्षेत्र से अमेरिका की वापसी: नए अमेरिकी राष्ट्रपति (जो बाइडेन) प्रशासन का आगमन एवं अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी तथा अब भारत-प्रशांत क्षेत्र पर अधिक ध्यान केंद्रित करना, ईरान पर सऊदी-अरब के नरम रुख का एक और कारण हो सकता है।
  • संबंधों के सामान्यीकरण का संभावित प्रभाव:
    • इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष का समाधान: ईरान और सऊदी अरब के बीच संबंधों में सुधार होने से इज़राइल और फिलिस्तीनी मुद्दे से निपटने में सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
    • तेल बाज़ार का स्थिरीकरण: ईरान और सऊदी अरब साझा हित में अपनी अर्थव्यवस्थाओं को बाज़ार के महत्त्व को देखते हुए तेल की स्थिर कीमतों के लिये साझा करते हैं।
      • संबंधों के सामान्यीकरण से सभी तेल उत्पादक देशों हेतु स्थिर राजस्व के साथ-साथ सऊदी अरब एवं ईरान दोनों के आर्थिक योजनाकारों के लिये अधिक पूर्वानुमान सुनिश्चित होगा।

आगे की राह

  • भारत की भूमिका: ऐतिहासिक रूप से दोनों देशों के साथ भारत के अच्छे राजनयिक संबंध हैं। दोनों देशों के बीच संबंधों के स्थिर होने से भारत पर मिश्रित प्रभाव पड़ सकता है।
    • नकारात्मक पक्ष के रूप में तेल की ऊँची कीमतें भारत में व्यापार संतुलन को प्रभावित करेंगी।
    • इसके सकारात्मक पक्ष के रूप में  यह पूरे क्षेत्र में निवेश, कनेक्टिविटी परियोजनाओं को आसान बना सकता है।
  • ईरान से पारस्परिकता: ईरान को यमन में संघर्ष विराम का सार्वजनिक रूप से समर्थन करके अपने राजनयिक प्रयासों की छाप छोड़ने की आवश्यकता है।
  • अमेरिकी प्रतिबंधों में ढील: यदि ईरान-सऊदी अरब संबंधों को सामान्य बनाना है, तो ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों को लेकर स्पष्टता सबसे महत्त्वपूर्ण है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

वन हेल्थ कंसोर्टियम

प्रिलिम्स के लिये:

ज़ूनोटिक रोग, वन हेल्थ माॅडल, सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज

मेन्स के लिये:

वन हेल्थ कंसोर्टियम, वन हेल्थ मॉडल का महत्त्व एवं आवश्यकता 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने देश का पहला वन हेल्थ कंसोर्टियम (One Health Consortium) लॉन्च किया है।

  • जैव प्रौद्योगिकी विभाग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत भारत सरकार का एक विभाग है।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • 27 संगठनों से मिलकर बना यह कंसोर्टियम भारत द्वारा कोविड के उपरांत शुरू किये गए सबसे बड़े स्वास्थ्य कार्यक्रमों में से एक है।
    • इसमें भारत में ज़ूनोटिक (Zoonotic) और ट्रांसबाउंड्री (Transboundary) रोगजनकों के महत्त्वपूर्ण जीवाणु, वायरल और परजीवी संक्रमण की निगरानी करने की परिकल्पना की गई है।
    • यह मौज़ूदा नैदानिक परीक्षणों के उपयोग और उभरती हुई बीमारियों के प्रसार की निगरानी और समझ के लिये अतिरिक्त पद्धतियों के विकास पर भी ध्यान देता है।
  • महत्त्व:
    • यह भविष्य की महामारियों से होने वाले नुकसान को कम करने के लिये मानव, जानवरों और वन्यजीवों के स्वास्थ्य को समझने हेतु एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान करेगा।
  • संबंधित सरकारी कदम:
    • 'वन हेल्थ' पर राष्ट्रीय विशेषज्ञ समूह:
      • भारत द्वारा मई 2019 में एक बहु-क्षेत्रीय, ट्रांसडिसिप्लिनरी सहयोगी समूह के रूप में 'वन हेल्थ' पर एक राष्ट्रीय विशेषज्ञ समूह की स्थापना की गई थी। 
        • हाल ही में अप्रैल 2021 में समूह द्वारा पहचान की गई जलवायु संवेदनशील बीमारियों और 'वन हेल्थ' पर विषय विशिष्ट स्वास्थ्य कार्य योजनाओं को शामिल करते हुए अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की गई।
    •  2017 में 'माले घोषणा-पत्र' (Male Declaration):
      • ग्रीन एंड क्लाइमेट रेजिलिएंट हेल्थकेयर फैसिलिटीज़ के संदर्भ में भारत वर्ष 2017 में माले घोषणा-पत्र का हस्ताक्षरकर्त्ता बन गया और किसी भी जलवायु घटना का सामना करने में सक्षम होने के लिये जलवायु-लचीला स्वास्थ्य सुविधाओं को बढ़ावा देने हेतु सहमत हुआ।
    • सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज ( UHC):
      • जैसा कि संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्यों के SDG 3 में कहा गया है कि इसका लक्ष्य सभी के लिये समान गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवा हेतु सबसे महत्त्वपूर्ण प्रतिबद्धताओं में से एक है।
        • भारत SDG के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की दिशा में तब एक कदम और आगे बढ़ा, जब वर्ष 2018 में देश ने UHC हासिल करने हेतु एक राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना, आयुष्मान भारत की शुरुआत की।

'वन हेल्थ' संबंधी अवधारणा:

  • परिचय:
    • वन हेल्थ एक ऐसा दृष्टिकोण है जो यह मानता है कि मानव स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य और हमारे चारों ओर के पर्यावरण के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ है।
    • वन हेल्थ का सिद्धांत संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization-FAO), विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (World Organisation for Animal Health- OIE) के त्रिपक्षीय-प्लस गठबंधन के बीच हुए समझौते के अंतर्गत एक पहल/ब्लूप्रिंट है।
    • इसका उद्देश्य मानव स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य, पौधों, मिट्टी, पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र जैसे विभिन्न विषयों के अनुसंधान और ज्ञान को कई स्तरों पर साझा करने के लिये प्रोत्साहित करना है, जो सभी प्रजातियों के स्वास्थ्य में सुधार, रक्षा और बचाव के लिये ज़रूरी है।

One-Health

  • बढ़ता महत्त्व: यह हाल के वर्षों में और अधिक महत्त्वपूर्ण हो गया है क्योंकि कई कारकों ने लोगों, जानवरों, पौधों और हमारे पर्यावरण के बीच पारस्परिक प्रभाव को बदल दिया है।
    • मानव विस्तार: मानव आबादी बढ़ रही है और नए भौगोलिक क्षेत्रों का विस्तार कर रही है जिसके कारण जानवरों तथा उनके वातावरण के साथ निकट संपर्क की वजह से जानवरों द्वारा मनुष्यों में बीमारियों के फैलने का खतरा बढ़ रहा है।
      • मनुष्यों को प्रभावित करने वाले संक्रामक रोगों में से 65% से अधिक ज़ूनोटिक रोगों की उत्पत्ति के मुख्य स्रोत जानवर हैं।
    • पर्यावरण संबंधी व्यवधान: पर्यावरणीय परिस्थितियों और आवासों में व्यवधान रोगों को जानवरों को पारित करने के नए अवसर प्रदान कर सकते हैं।
    • अंतर्राष्ट्रीय यात्रा और व्यापार: अंतर्राष्ट्रीय यात्रा और व्यापार के कारण लोगों, जानवरों और पशु उत्पादों की आवाजाही बढ़ गई है, जिसके कारण बीमारियाँ तेज़ी से सीमाओं एवं दुनिया भर में फैल सकती हैं।
    • वन्यजीवों में वायरस: वैज्ञानिकों के अनुसार, वन्यजीवों में लगभग 1.7 मिलियन से अधिक वायरस पाए जाते हैं, जिनमें से अधिकतर के ज़ूनोटिक होने की संभावना है।
      • इसका तात्पर्य है कि समय रहते अगर इन वायरस का पता नहीं चलता है तो भारत को आने वाले समय में कई महामारियों का सामना करना पड़ सकता है।

आगे की राह

  • कोविड-19 महामारी ने संक्रामक रोगों के दौरान 'वन हेल्थ' सिद्धांतों की प्रासंगिकता को विशेष रूप से पूरे विश्व में ज़ूनोटिक रोगों को रोकने और नियंत्रित करने के प्रयास के रूप में प्रदर्शित किया है।
  • भारत को पूरे देश में इस तरह के एक मॉडल को विकसित करने और दुनिया भर में सार्थक अनुसंधान सहयोग स्थापित करने की आवश्यकता है
  • अनौपचारिक बाज़ार और बूचड़खानों के संचालन (जैसे- निरीक्षण, रोग प्रसार आकलन) हेतु सर्वोत्तम अभ्यास दिशा-निर्देश विकसित करने तथा ग्राम स्तर तक प्रत्येक स्तर पर 'वन हेल्थ' अवधारणा के सञ्चालन के लिये तंत्र बनाने की आवश्यकता है।
  • जागरूकता फैलाना और 'वन हेल्थ' लक्ष्यों को पूरा करने के लिये निवेश बढ़ाना समय की मांग है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

IEA ने भारत को पूर्णकालिक सदस्य बनने के लिये आमंत्रित किया

प्रिलिम्स के लिये: 

अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी, रणनीतिक साझेदारी समझौता, सामरिक तेल भंडार

मेन्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी : सदस्यता एवं पात्रता मानदंड 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) ने दुनिया के तीसरे सबसे बड़े ऊर्जा उपभोक्ता भारत को अपना पूर्णकालिक सदस्य बनने के लिये आमंत्रित किया है।

प्रमुख बिंदु

  • पृष्ठभूमि:
    • भारत मार्च 2017 में IEA का एक सहयोगी सदस्य बना, लेकिन इससे पूर्व भी IEA के साथ जुड़ा हुआ था।
    • वर्ष 2021 में भारत ने वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा, स्थिरता एवं ऊर्जा सहयोग को मज़बूत करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (International Energy Agency- IEA) के साथ एक ‘रणनीतिक साझेदारी समझौता’ किया है।
    • भारत-IEA रणनीतिक साझेदारी के अपेक्षित परिणाम के रूप में IEA ने भारत को पूर्ण सदस्य बनकर IEA के साथ अपने सहयोग को मज़बूत करने हेतु आमंत्रित किया है।
  • भारत को सदस्यता देने का कारण:
    • वैश्विक ऊर्जा प्रवृत्तियों में भारत तेज़ी से प्रभावशाली होता जा रहा है। भारत की ऊर्जा नीतियों पर इसकी गहन रिपोर्ट, जिसे जनवरी 2020 में जारी किया गया था, में कहा गया है कि आने वाले दशकों में देश की ऊर्जा की मांग तेज़ी से बढ़ने वाली है जिसमें विशेष रूप से बिजली का उपयोग तीव्र गति से बढ़ने की अपेक्षा की गई है।
    • ईंधन आयात पर देश की निर्भरता,भारतीय अर्थव्यवस्था हेतु एक प्रमुख प्राथमिकता ऊर्जा सुरक्षा में सुधार करती है।
  • IEA की सदस्यता:
    • IEA में 30 सदस्य देश शामिल हैं।
    • इसमें आठ एसोसिएशन देश भी शामिल हैं। चार देश पूर्ण सदस्यता में शामिल होने की मांग कर रहे हैं- चिली, कोलंबिया, इज़रायल और लिथुआनिया।
    • IEA के लिये एक उम्मीदवार देश को आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) का सदस्य देश होना चाहिये।
  • पात्रता मानदंड: IEA उम्मीदवार देश में निम्नलिखित का होना आवश्यक है:
    • कच्चे तेल और/या उत्पाद भंडार (सामरिक तेल भंडार) पिछले वर्ष के शुद्ध आयात के 90 दिनों के बराबर हो, जिस तक सरकार की तत्काल पहुँच हो (भले ही उस पर सरकार का प्रत्यक्ष  स्वामित्व न हो) और इसका उपयोग वैश्विक तेल की आपूर्ति में व्यवधानों को दूर करने के लिये किया जा सकता है। 
      • भारत का वर्तमान सामरिक तेल भंडार देश की आवश्यकता के 9.5 दिनों की आपूर्ति के बराबर है।
    • “राष्ट्रीय तेल खपत को 10% तक कम करने के लिये एक मांग आधारित कार्यक्रम”
      • राष्ट्रीय आधार पर ‘समन्वित आपातकालीन प्रतिक्रिया उपाय’ (Coordinated Emergency Response Measures-CERM) के संचालन के लिये विधानों और संगठनों का निर्माण करना।
      • IEA की सामूहिक कार्रवाई में अपने हिस्से का योगदान करने की क्षमता सुनिश्चित करने के लिये किये गए उपाय। 
        • एक महत्त्वपूर्ण वैश्विक तेल आपूर्ति व्यवधान के मामले में IEA द्वारा सामूहिक कार्रवाई शुरू की जाएगी।

अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी

  • परिचय
    • अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी वर्ष 1974 में पेरिस (फ्राँस) में स्थापित एक स्वायत्त अंतर-सरकारी संगठन है।
    • IEA मुख्य रूप से ऊर्जा नीतियों पर ध्यान केंद्रित करती है, जिसमें आर्थिक विकास, ऊर्जा सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण आदि शामिल हैं। इन नीतियों को ‘अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी’ के ‘3E’ के रूप में भी जाना जाता है।
    • IEA का इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी क्लीन कोल सेंटर, कोयले को सतत् विकास लक्ष्यों के अनुकूल ऊर्जा का स्वच्छ स्रोत बनाने पर स्वतंत्र जानकारी और विश्लेषण प्रदान करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कार्य कर रहा है।
  • आवश्यकता
    • अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी की स्थापना इसके सदस्यों को तेल आपूर्ति में बड़े व्यवधानों में मदद के लिये वर्ष 1973-1974 के तेल संकट के बाद हुई थी।
  • जनादेश
    • समय के साथ IEA के जनादेश को प्रमुख वैश्विक ऊर्जा रुझानों पर नज़र रखने और उनका विश्लेषण करने, ध्वनि ऊर्जा नीति को बढ़ावा देने तथा बहुराष्ट्रीय ऊर्जा प्रौद्योगिकी सहयोग को प्रोत्साहित करने के लिये विस्तारित किया गया है।
  • लक्ष्य
    • इसका लक्ष्य सदस्य देशों के लिये विश्वसनीय, सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा सुनिश्चित करना है।
  • कार्यक्षेत्र के प्रमुख बिंदु:
    • ऊर्जा सुरक्षा: सभी ऊर्जा क्षेत्रों में विविधता, दक्षता और लचीलेपन को बढ़ावा देना।
    • आर्थिक विकास: IEA सदस्य देशों को ऊर्जा की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित करना और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने तथा ऊर्जा की कमी को खत्म करने के लिये मुक्त बाज़ारों को बढ़ावा देना।
    • पर्यावरण जागरूकता: जलवायु परिवर्तन से निपटने के विकल्पों के बारे में अंतर्राष्ट्रीय ज्ञान को बढ़ाना।
    • वैश्विक जुड़ाव: साझा ऊर्जा और पर्यावरण संबंधी चिंताओं के समाधान खोजने के लिये गैर-सदस्य देशों, विशेष रूप से प्रमुख उत्पादकों और उपभोक्ताओं के साथ मिलकर काम करना।
  • प्रमुख रिपोर्ट:

स्रोत: द हिंदू


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