जैव विविधता और पर्यावरण
भविष्य की महामारियाँ और उनकी रोकथाम
- 05 Nov 2020
- 5 min read
प्रिलिम्स के लियेस्पेनिश इन्फ्लूएंज़ा, ह्यूमन इम्यूनो डिफिशिएंसी वायरस मेन्स के लियेमहामारियों का कारण और उन्हें रोकने के उपाय |
चर्चा में क्यों?
जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिये अंतर-सरकारी विज्ञान-नीति मंच (IPBES) द्वारा भविष्य की महामारियों के संबंध में एक रिपोर्ट जारी की गई है।
प्रमुख बिंदु
- इस रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि यदि किसी प्रकार का कोई महत्त्वपूर्ण उपाय नहीं किया जाता है, तो भविष्य में होने वाली महामारियाँ और भी खतरनाक हो सकती हैं और इनसे संक्रमित लोगों की संख्या भी काफी अधिक हो सकती है।
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पिछली एक सदी में महामारी की स्थिति
- उपलब्ध आँकड़ों की मानें तो कोरोना वायरस महामारी, वर्ष 1918 की स्पेनिश इन्फ्लूएंज़ा महामारी के बाद पिछली एक सदी में आने वाली छठवीं महामारी है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मार्च 2020 में COVID-19 को महामारी घोषित किया था।
- पिछली एक सदी में आई कुछ प्रमुख महामारियों के कारण-
- तीन महामारियाँ इन्फ्लूएंज़ा वायरस के कारण
- एक महामारी ह्यूमन इम्यूनो डिफिशिएंसी वायरस (HIV) के कारण
- एक महामारी सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (SARS) और
- एक महामारी कोरोना वायरस (COVID-19) के कारण
- रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान महामारी की उत्पत्ति का प्रमुख स्रोत जानवर है, जबकि अन्य महामारियों की तरह यह भी पूर्णतः मानवीय गतिविधियों से प्रसारित हो रही है।
- उपलब्ध आँकड़ों की मानें तो कोरोना वायरस महामारी, वर्ष 1918 की स्पेनिश इन्फ्लूएंज़ा महामारी के बाद पिछली एक सदी में आने वाली छठवीं महामारी है।
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कारण
- रिपोर्ट के अनुसार, अब तक की लगभग सभी महामारियाँ ज़ूनोसिस (Zoonoses) रोग के कारण हुई हैं, यानी ये सभी महामारियाँ ऐसी हैं जो जानवरों में मौजूद रोगाणुओं से उत्पन्न हुई और मनुष्यों में फैल रही हैं।
- 70 प्रतिशत से अधिक बीमारियाँ जैसे कि इबोला, ज़िका और निपा आदि जानवरों में पाए जाने वाले रोगाणुओं के कारण होती हैं और वन्यजीवों, पशुधन तथा लोगों के संपर्क में आने से फैलती हैं।
- आँकड़ों की मानें तो वर्ष 2019 में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कानूनी तरीके से होने वाले वन्यजीव व्यापार का अनुमानित मूल्य लगभग 107 बिलियन डॉलर था, जिसका अर्थ है कि वर्ष 2005 से अब तक इसमें कुल 500 प्रतिशत और 1980 के दशक से अब तक इसमें कुल 2000 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
- वहीं दूसरी ओर शेष 30 प्रतिशत बीमारियों के लिये भूमि-उपयोग परिवर्तन, कृषि विस्तार और शहरीकरण जैसे कारकों को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।
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भविष्य की संभावना
- रिपोर्ट के मुताबिक, वर्तमान में स्तनधारियों और पक्षियों में मौजूद तकरीबन 1.7 मिलियन वायरस ऐसे हैं, जिन्हें अब तक खोजा नहीं जा सका है। इसमें से लगभग 827,000 वायरस ऐसे हैं, जिनमें मनुष्यों को संक्रमित करने की क्षमता हो सकती है।
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उपाय
- महामारी के जोखिम को कम करने के लिये जैव विविधता के नुकसान को बढ़ावा देने वाली मानवीय गतिविधियों को कम करने, संरक्षित क्षेत्रों (Protected Areas) का अधिक-से-अधिक संरक्षण करने और ऐसे उपाय अपनाने की आवश्यकता है, जिनके माध्यम से उच्च जैव विविधता वाले क्षेत्रों के अरक्षणीय दोहन को कम किया जा सके।
- ये उपाय वन्यजीव-पशुधन और मनुष्यों के बीच संपर्क को कम करने में मदद करेंगे, जिससे नई बीमारियों के प्रसार को रोकने में मदद मिलेगी।
- इसके अलावा विभिन्न देशों की सरकारों द्वारा कुछ नीतिगत उपाय भी किये जा सकते हैं, जिसमें महामारी की रोकथाम के लिये एक उच्च स्तरीय अंतर-सरकारी परिषद का गठन करना; पर्यावरण, जानवरों और मनुष्यों के संबंध में पारस्परिक रूप से सहमत लक्ष्य स्थापित करना और स्वास्थ्य तथा व्यापार के क्षेत्र में अंतर-सरकारी साझेदारी स्थापित कर अंतर्राष्ट्रीय वन्यजीव व्यापार को नियंत्रित करना है ताकि ज़ूनोसिस रोग के जोखिम को कम किया जा सके।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस