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जैव विविधता और पर्यावरण

नेट ज़ीरो उत्सर्जन ऊर्जा प्रणाली में परिवर्तन

  • 27 Mar 2021
  • 12 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में द एनर्जी एंड रिसोर्सेज़ इंस्टीट्यूट (TERI) और शेल (Shell) ने भारत: ट्रांसफॉर्मिंग टू ए नेट ज़ीरो एमिशन एनर्जी सिस्टम नामक एक रिपोर्ट जारी की है

यह भारत की घरेलू ऊर्जा प्रणाली को सतत आर्थिक विकास के उद्देश्यों को प्राप्त करते हुए  2050 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन की ओर ले जाने का मार्ग प्रशस्त करती है 

प्रमुख बिंदु :

  • संभावित चुनौतियाँ: भारत को नवाचार-संचालन के संदर्भ में एक उपयुक्त नीति की आवश्यकता है जो बड़े पैमाने पर स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों को तैनात करने में सहायक हो
  • नवीनीकरण को बढ़ावा: भारत को अपने विद्युत मिश्रण या इस क्षेत्र में नेट ज़ीरो लक्ष्य प्राप्त करने के लिये नवीकरणीय ऊर्जा या अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी 90% (2019-2020 में यह लगभग 11% है) तक बढ़ानी होगी। 
  • कोयला आधारित बिजली संयंत्र: भारत को अपने कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को चरणबद्ध तरीके से हटाते हुए इन्हें 2050 तक पूरी तरह से हटाना होगा।
  • प्रौद्योगिकी पहुँच: भारत की ऊर्जा प्रणालियों का आकार कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज (CCS) की उपलब्धता या अनुपस्थिति पर निर्भर करेगा। यदि CCS प्रौद्योगिकी व्यावसायिक रूप से अलाभकारी हो: 
    • भारत के पेट्रोलियम उत्पादों में वर्तमान में जैव ईंधन की नगण्य हिस्सेदारी की तुलना में   98% योगदान होना चाहिये।
    • भारत के औद्योगिक और परिवहन क्षेत्र में उपयोग की जाने वाली दो-तिहाई से अधिक ऊर्जा के विद्युतीकरण के साथ-साथ अब तक परिवहन क्षेत्र के उपयोग में विद्युत की नगण्य हिस्सेदारी की तुलना में औद्योगिक क्षेत्र के विद्युत उपयोग में 20%  की कमी की जानी चाहिये।

TERI द्वारा सुझाव:

  • ऊर्जा दक्षता पर बल :
    • नेट ज़ीरो लक्ष्य के उद्देश्य को पूर्ण करने के लिये ऊर्जा कुशल संरचनाओं जैसे- इमारतों, प्रकाश व्यवस्था, उपकरणों और औद्योगिक प्रक्रियाओं  की आवश्यकता होगी।
  • जैव ईंधन का उपयोग:
    • कृषि कार्य में उपयोग किये जाने वाले हल्के वाणिज्यिक वाहनों, ट्रैक्टरों से उत्सर्जन को कम करने में मदद मिलेगी।
    • विमानन क्षेत्र में जैव ईंधन का अधिक उपयोग हाइड्रोजन प्रौद्योगिकी के मानक पैमाने तक उत्सर्जन को कम करने का एकमात्र व्यावहारिक समाधान है।
  • कार्बन पृथक्करण/सीक्वेस्ट्रेशन:
    • 2050 तक भारत के उत्सर्जन की स्थिति 1.3 बिलियन टन होगी। इस उत्सर्जन के अवशोषण के लिये प्राकृतिक और मानव निर्मित कार्बन सिंक पर निर्भर रहना होगा।
    • जबकि पेड़ 0.9 बिलियन टन उत्सर्जन को ग्रहण करने या अवशोषण में अपनी भूमिका निभाते है, देश के बाकी हिस्सों को फिर से व्यवस्थित करने के लिये कार्बन कैप्चर प्रौद्योगिकियों की आवश्यकता होगी।
  • कार्बन मूल्य निर्धारण: 
    • भारत में कोयला और पेट्रोलियम ईंधन पर कर लगाए जाने की प्रक्रिया विद्यमान है, जिसके संचालन परिवर्तन के लिये उत्सर्जन पर कर लगाने हेतु विचार करना चाहिये।
  • निम्न-कार्बन ऊर्जा की तैनाती:
    • निम्न कार्बन ऊर्जा के चार मुख्य प्रकार हैं: पवन, सौर, हाइड्रो या परमाणु ऊर्जा। इनमें प्रथम तीन नवीकरणीय ऊर्जा संसाधन हैं, जिसका अर्थ है कि ये पर्यावरण के अनुकूल हैं, इनका उपयोग विद्युत उत्पादन के लिये प्राकृतिक संसाधनों (जैसे हवा या सूर्य) के रूप में किया जाता है।
    • निम्न कार्बन ऊर्जा को  परिनियोजित करने से घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों जलवायु चुनौतियों का सामना करने में मदद मिलेगी, साथ ही भारत के नागरिकों की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा।

Area-of-Action

नेट ज़ीरो उत्सर्जन:

परिचय:

  • 'नेट ज़ीरो उत्सर्जन' से तात्पर्य है कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (GHGs) उत्पादन और वायुमंडल के बाह्य क्षेत्र के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के बीच एक समग्र संतुलन प्राप्त करना।
  • सर्वप्रथम मानवजनित उत्सर्जन (जैसे जीवाश्म-ईंधन वाले वाहनों और कारखानों से) को यथासंभव शून्य के करीब लाया जाना चाहिये। दूसरा, किसी भी शेष GHGs को कार्बन को अवशोषित कर (जैसे- जंगलों की पुनर्स्थापना द्वारा) संतुलित किया जाना चाहिये। 

समय-सीमा:

  • यदि कोई एक CO2 या सभी प्रमुख GHGs (मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड और एचएफसी सहित) को शामिल किया जाता है, तो नेट ज़ीरो उत्सर्जन स्थिति प्राप्त करने की समय-सीमा काफी अलग होगी।
    • गैर-CO2 उत्सर्जन के लिये नेट ज़ीरो के लिये निर्धारित तिथि के बाद भी कुछ उत्सर्जनों (जैसे-कृषि स्रोतों से मीथेन) को  चरणबद्ध करना मुश्किल होगा।
    • वैश्विक तापन को 1.5 डिग्री सेल्यियस तक सीमित करने के दृष्टिकोण से 2050 तक कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) नेट ज़ीरो के औसत तक पहुँचने की संभावना है। वर्ष 2063 और 2068 के मध्य कुल GHG उत्सर्जन नेट ज़ीरो तक पहुँच जाएगा।

Global net-zero

वैश्विक परिदृश्य:

  • जून 2020 तक बीस देशों और क्षेत्रों ने नेट ज़ीरो लक्ष्यों को अपनाया है। इस सूची में केवल वे देश शामिल हैं, जिन्होंने कानून या किसी अन्य नीति दस्तावेज़ में नेट ज़ीरो लक्ष्य को अपनाया है
  • भूटान पहले से ही कार्बन नकारात्मक देश है अर्थात् यह CO2  के  उत्सर्जन की तुलना में अधिक अवशोषण करता है।

भारतीय परिदृश्य

  • उत्सर्जन: भारत का प्रति व्यक्ति CO2 उत्सर्जन, जो कि वर्ष 2015 में 1.8 टन के स्तर पर था, संयुक्त राज्य अमेरिका के नौवें हिस्से के बराबर और वैश्विक औसत (4.8 टन प्रति व्यक्ति) के लगभग एक-तिहाई है।
    • हालाँकि समग्र तौर पर भारत अब चीन तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद CO2 का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है।
  • प्रतिबद्धता को लेकर विवाद: भारत पर वर्ष 2050 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन का लक्ष्य प्राप्त करने का वैश्विक दबाव है।
    • एक ओर कुछ विशेषज्ञों का तर्क है कि भारत को वर्ष 2050 तक जलवायु समर्थित कानून के माध्यम से अपने ‘नेट ज़ीरो’ उत्सर्जन को कम करने का संकल्प करना चाहिये। यह भारत को प्रतिस्पर्द्धी बनाएगा, निवेश आकर्षित करने तथा रोज़गार सृजित करने में मदद करेगा। उदाहरण के लिये इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने हेतु बनाई गई एक महत्त्वाकांक्षी नीति, ऑटोमोबाइल विनिर्माण उद्योग तथा बिजली एवं निर्माण क्षेत्रों में रोज़गार सृजन में मददगार साबित हो सकती है।
    • वहीं, दूसरी ओर कुछ विशेषज्ञ ‘समान परंतु विभेदित उत्तरदायित्त्वों’ के पक्ष में तर्क देते हैं, जो सभी अमीर और विकसित देशों को किसी भी ऐसी प्रतिज्ञा के विरुद्ध नेतृत्त्व करने और वकालत करने के लिये उत्तरदायी बनाता है,  यह भारत जैसे विकासशील देशों के विकास हेतु आवश्यक ऊर्जा आवश्यकताओं के उपयोग को सीमित करता है।
  • सबसे अधिक उत्सर्जक क्षेत्र:
    • ऊर्जा> उद्योग> वानिकी> परिवहन> कृषि> भवन

ऊर्जा और संसाधन संस्थान (TERI):

  • ऊर्जा और संसाधन संस्थान (TERI) नई दिल्ली स्थित एक गैर-लाभकारी अनुसंधान संस्थान है, जो ऊर्जा, पर्यावरण और सतत् विकास के क्षेत्र में अनुसंधान कार्य करता है।
  • वर्ष 1974 में स्थापित इस संस्थान को पूर्व में टाटा ऊर्जा अनुसंधान संस्थान के नाम से जाना जाता था तथा वर्ष 2003 में इसका नाम परिवर्तित कर ऊर्जा और संसाधन संस्थान कर दिया गया।
  • ग्रीन बिल्डिंग्स के लिये डिज़ाइन तैयार करना तथा हरित इमारतों के मूल्यांकन करने में मदद करना।
  • इसका उद्देश्य महत्वपूर्ण मुद्दों के वैश्विक समाधान के लिये स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर की रणनीति तैयार करना है।
  • इसका मुख्य फोकस स्वच्छ ऊर्जा, जल प्रबंधन, प्रदूषण प्रबंधन, स्थायी कृषि और जलवायु लचीलेपन को बढ़ावा देना है।

आगे की राह:

  • सरकार के बजट में ऊर्जा, सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा के साथ जलवायु शमन नीतियों के लिये एक महत्त्वपूर्ण प्रावधान होना चाहिये। विशेष रूप से विकास लक्ष्यों में स्वच्छ ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित करने की समय-सीमा शामिल होनी चाहिये।
  • जलवायु हेतु वित्त जुटाने के लिये एक अभियान शुरू करने की भी आवश्यकता है और ऊर्जा दक्षता, जैव ईंधन के उपयोग, कार्बन अनुक्रम, कार्बन मूल्य निर्धारण पर ध्यान दिया जाना चाहिये।
  • मज़बूत पर्यावरण नीतियाँ समृद्धि प्रदान करने वाली होती हैं। कल्पनाशील नीतियों, मज़बूत संस्थानों और अंतर्राष्ट्रीय वित्त के साथ भारत अपनी स्वतंत्रता के 100वें वर्ष में प्रदूषणकारी जीवाश्म ईंधन से स्वतंत्रता की घोषणा करने में सक्षम होगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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