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ज़ूनोटिक बीमारियों पर सयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट

  • 08 Jul 2020
  • 9 min read

प्रीलिम्स के लिये:

 ज़ूनोटिक रोग, COVID-19, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम

मेन्स के लिये: 

ज़ूनोटिक रोगों के कारण एवं इन्हें रोकने हेतु उपाय 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम’ (United Nations Environment Programme- UNEP) तथा ‘अंतर्राष्ट्रीय पशुधन अनुसंधान संस्थान’ (International Livestock Research Institute- ILRI) द्वारा COVID-19 महामारी के संदर्भ में  ‘प्रिवेंटिंग द नेक्स्ट पेंडेमिक: ज़ूनोटिक डिजीज़ एंड हाउ टू ब्रेक द चेन ऑफ ट्रांसमिशन’ (Preventing the Next Pandemic: Zoonotic diseases and how to break the chain of transmission) नामक रिपोर्ट प्रकाशित की गई है। 

प्रमुख बिंदु:

  • इस रिपोर्ट में  मनुष्यों में होने वाली ज़ूनोटिक बीमारियों ( Zoonotic Diseases) की प्रकृति एवं प्रभाव पर चर्चा की गई है।
  • इस रिपोर्ट का प्रकाशन 6 जुलाई को ‘विश्व ज़ूनोसिस दिवस’ (World Zoonoses Day) के अवसर पर किया गया है।
    • 6 जुलाई, 1885 को  फ्रांसीसी जीवविज्ञानी लुई पाश्चर द्वारा सफलतापूर्वक जूनोटिक बीमारी रेबीज़ के खिलाफ पहला टीका विकसित किया था।
  • प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार,  मनुष्यों में 60% ज्ञात  ज़ूनॉटिक रोग हैं तथा  70% ज़ूनोटिक रोग ऐसे है जो अभी ज्ञात नहीं हैं।
  • विश्व में हर वर्ष निम्न- मध्यम आय वाले देशों में 10 लाख लोग ज़ूनोटिक रोगों के कारण मर जाते हैं।
  • पिछले दो दशकों में,  ज़ूनोटिक रोगों के कारण COVID-19 महामारी की लागत को शामिल न करते हुए)  $ 100 बिलियन से अधिक का आर्थिक नुकसान हुआ है जिसके अगले कुछ वर्षों में $ 9 ट्रिलियन तक पहुँचने की उम्मीद है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, अगर पशुजनित बीमारियों की रोकथाम के प्रयास नहीं किये गए तो  COVID-19 जैसी अन्य महामारियों का आगे भी सामना करना पड़ सकता है। 

अंतर्राष्ट्रीय पशुधन अनुसंधान संस्थान (ILRI):

  • ILRI एक अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान संस्थान है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1994 में की गई। 
  • यह नैरोबी, केन्या में स्थित है।
  • यह विश्व में खाद्य सुरक्षा और गरीबी उन्मूलन में पशुधन की भूमिका के संदर्भ में विश्व स्तर पर भागीदारों के साथ मिलकर कार्य करता है।

ज़ूनोसिस/ज़ूनोटिक रोग:

  • ऐसे रोग जो पशुओं के माध्यम से मनुष्यों में फैलते है उन्हें  ज़ूनोसिस या ज़ूनोटिक रोग कहा जाता है।
  • ज़ूनोटिक संक्रमण प्रकृति या मनुष्यों में जानवरों के अलावा  बैक्टीरिया,वायरस  या परजीवी के माध्यम से फैलता है।
  • एचआईवी-एड्स, इबोला, मलेरिया, रेबीज़ तथा वर्तमान कोरोनावायरस रोग (COVID-19) ज़ूनोटिक संक्रमण के कारण फैलने वाले रोग हैं।

ज़ूनोटिक संक्रमण के कारक:

  • रिपोर्ट में  ज़ूनॉटिक रोगों में वृद्धि के लिये सात कारकों को चिन्हित किया गया है जो इस प्रकार हैं-
    • पशु प्रोटीन की बढ़ती मांग
    • गहन और अस्थिर खेती में वृद्धि
    • वन्यजीवों का बढ़ता उपयोग और शोषण
    • प्राकृतिक संसाधनों का निरंतर उपयोग
    • यात्रा और परिवहन
    • खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं में बदलाव
    • जलवायु परिवर्तन संकट।

ज़ूनोटिक संक्रमण को रोकने के उपाय:

  •  रिपोर्ट के अनुसार ‘एक स्वास्थ्य पहल’ (One Health Initiative) एक अनुकूलतम विधि है जिसके माध्यम से  महामारी से निपटने के लिये  मानव स्वास्थ्य, पशु एवं पर्यावरण पर एक साथ ध्यान दिया जाता है।
  • इस रिपोर्ट में 10 ऐसे तरीकों के बारे में बताया गया है जो भविष्य में ज़ूनोटिक संक्रमण को रोकने में सहायक हो सकते हैं जो इस प्रकार हैं-
    • ‘एक स्वास्थ्य पहल’ पर बहुविषयक/अंतर्विषयक (Interdisciplinary) तरीकों से निवेश पर ज़ोर देना।
    • ज़ूनोटिक संक्रमण/पशुजनित बीमारियों पर वैज्ञानिक खोज को बढावा देना।
    • पशुजनित बीमारियों के प्रति जागरूकता बढ़ाने पर बल।
    • बीमारियों के संदर्भ में जवाबी कार्रवाई के लागत-मुनाफा विश्लेषण को बेहतर बनाना और समाज पर बीमारियों के फैलाव का  विश्लेषण करना।
    • पशुजनित बीमारियों की निगरानी और नियामक तरीकों को मज़बूत बनाना।
    • भूमि प्रबंधन की टिकाऊशीलता को प्रोत्साहन देना तथा खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने के लिये वैकल्पिक उपायों को विकसित करना ताकि आवास स्थलों एवं जैवविविधिता का संरक्षण किया जा सके। 
    • जैव सुरक्षा एवं नियंत्रण को बेहतर बनाना, पशुपालन में बीमारियों के होने के कारणों को पहचानना तथा उचित नियंत्रण उपायों को बढ़ावा देना।
    • कृषि और वन्यजीव के सह अस्तित्व को बढ़ावा देने के लिये  भूदृश्य (Landscape) की टिकाऊशीलता को सहारा देना।
    • सभी देशों में स्वास्थ्य क्षेत्र में हिस्सेदारों की क्षमताओं को मज़बूत बनाना।
    • अन्य क्षेत्रों में भूमि-उपयोग एवं सतत् विकास योजना, कार्यान्वयन तथा निगरानी के लिये एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण (One Health approach) का संचालन करना।

अफ़्रीकी देशों की भूमिका:

  • रिपोर्ट के अनुसार, हाल ही में अफ्रीकी महाद्वीप के अधिकांश देश इबोला तथा  अन्य पशु-जनित महामारियों से जूझ रहे हैं।  
  • अफ्रीकी महाद्वीप में बड़े पैमाने पर दुनिया के वर्षावनों  के साथ-साथ दुनिया में सबसे तेज़ गति से बढ़ रही जनसंख्या भी विद्यमान है जिसके चलते  पशुओं, वन्यजीवन एवं मनुष्यों में संपर्क के कारण संक्रमण के मामले बढ़े हैं।
  • इन सबके बावज़ूद अफ्रीकी देश इबोला और अन्य उभरती बीमारियों से निपटने के रास्ते भी सुझा रहे हैं।
  • रिपोर्ट के अनुसार, बीमारियों पर नियंत्रण के लिये अफ्रीकी देश नियम आधारित तरीकों  के बजाय जोखिम आधारित तरीके अपना रहे हैं जो उन क्षेत्रों में अधिक कारगर है जहाँ संसाधनों की कमी है। 
  • इस समस्या के समाधन के तौर पर अफ़्रीकी देशों द्वारा ‘एक स्वास्थ्य पहल’ (One Health Initiative) को अपनाया जा रहा है जिनमें  मानव स्वास्थ्य , पशु व पर्यावरण तीनों पर ध्यान दिया जाता है। 

निष्कर्ष:

अगर वन्यजीवों के दोहन तथा पारिस्थितिकी तंत्र में समन्वय नहीं किया गया तो आने वाले वर्षों में पशुओं से मनुष्यों को होने वाली बीमारियाँ इसी प्रकार लगातार सामने आती रहेंगी। वैश्विक महामारियाँ मानव जीवन एवं एवं अर्थव्यवस्था दोनों को नष्ट कर रही हैं जैसा कि हमने पिछले कुछ महीनों से COVID-19 महामारी के के संदर्भ में देख रहे हैं। इनका सबसे ज़्यादा असर निर्धन एवं  निर्बल समुदायों पर होता हैं अतः  हमें भविष्य में महामारियों को रोकने के लिये अपने प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा के लिये विचार करने की और अधिक आवश्यकता है। 

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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