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‘वन हेल्थ’ संबंधी अवधारणा

  • 20 Feb 2020
  • 5 min read

प्रीलिम्स के लिये

ज़ूनोटिक रोग, वन हेल्थ माॅडल

मेन्स के लिये

ज़ूनोटिक रोगों के उपचार में इसकी भूमिका

चर्चा में क्यों?

हाल ही में स्वास्थ्य संबंधी एक सम्मेलन में परिचर्चा के दौरान स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने ‘वन हेल्थ’ संबंधी अवधारणा की आवश्यकता पर बल दिया और इस संबंध में एक उभयनिष्ठ स्वास्थ्य माॅडल बनाने की सिफारिश की है।

प्रमुख बिंदु

  • स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि वन हेल्थ संबंधी कार्यक्रम ज़ूनोटिक रोग (Zoonotic Disease) की घटनाओं को कम कर सकता है।
  • विभिन्न शोधों से ये तथ्य प्रकाश में आए हैं कि मानव को प्रभावित करने वाली अधिकांश संक्रामक बीमारियाँ ज़ूनोटिक प्रवृत्ति की होती हैं।
  • वन हेल्थ की अवधारणा को प्रभावी रूप से COVID-19 जैसे उभरते ज़ूनोटिक रोगों की घटनाओं को कम करने के लिये लागू किया जा सकता है।
  • वन हेल्थ संबंधी अवधारणा स्थानीय, राष्ट्रीय तथा वैश्विक स्तर पर कार्य कर रहे विभिन्न विषयों को सामूहिक रूप से संबोधित कर सकता है।
  • शोध के अनुसार, मनुष्यों को प्रभावित करने वाले संक्रामक रोगों में से 65% से अधिक रोगों की उत्पत्ति के मुख्य स्रोत जानवर हैं।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, यदि रोग के कारणों की वैज्ञानिक जाँच के दौरान अन्य विषयों पर शोध कर रहे वैज्ञानिकों को भी शामिल किया जाए तो जाँच के परिणामों की स्पष्ट पुष्टि हो सकती है।
  • वन हेल्थ माॅडल (One Health Model) के सफल क्रियान्वयन के लिये एक टास्क फोर्स की आवश्यकता पर भी बल दिया गया।

वन हेल्थ माॅडल

  • यह एक ऐसा समन्वित माॅडल है जिसमें पर्यावरण स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य तथा मानव स्वास्थ्य का सामूहिक रूप से संरक्षण किया जाता है।
  • यह मॉडल महामारी विज्ञान पर अनुसंधान, उसके निदान और नियंत्रण के लिये वैश्विक स्तर पर स्वीकृत मॉडल है।
  • वन हेल्थ मॉडल, रोग नियंत्रण में अंतःविषयक दृष्टिकोण की सुविधा प्रदान करता है ताकि उभरते हुए या मौजूदा ज़ूनोटिक रोगों को नियंत्रित किया जा सके।
  • इस मॉडल में सटीक परिणामों के लिये स्वास्थ्य विश्लेषण और डेटा प्रबंधन उपकरण का उपयोग किया जाता है।
  • वन हेल्थ मॉडल इन सभी मुद्दों को रणनीतिक रूप से संबोधित करेगा और विस्तृत अपडेट प्राप्त करने की सुविधा प्रदान करेगा।

ज़ूनोटिक रोग

  • पशुओं से मनुष्य में फैलने वाली बीमारियों को ज़ूनोटिक रोग कहा जाता है। विशेषज्ञ इसे ज़ूनोटिक (जीव-जंतुओं से मनुष्यों में फैलने वाला) संक्रमण का नाम देते हैं।
  • विश्व भर में इस प्रकार की लगभग 150 बीमारियाँ हैं। इनमें रेबीज़, ब्रूसेलोसिस, क्यूटेनियस लिसमैनियसिस, प्लेग, टी.बी., टिक पैरालाइसिस, गोलकृमि, साल्मोनिलोसिस जैसी बीमारियाँ शामिल हैं।
  • प्रतिवर्ष 6 जुलाई को इन रोगों के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने के लिये विश्व ज़ूनोटिक दिवस मनाया जाता है।

टास्क फोर्स की आवश्यकता

  • चिकित्सा, पशु चिकित्सा, पैरामेडिकल क्षेत्र और जैव विज्ञान के शोधकर्त्ताओं ने एक-दूसरे को दोष देने की बजाय मुद्दों को सुलझाने के लिये एक टास्क फोर्स के गठन की सिफारिश की है।
  • स्वास्थ्य, पशु चिकित्सा, कृषि और जीवन विज्ञान अनुसंधान संस्थान और विश्वविद्यालय इसके गठन में प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं।

आगे की राह

  • हमें जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण में गिरावट को देखते हुए आने वाले दिनों में इस तरह के संक्रमणों का सामना करने के लिये तैयार रहना चाहिये।
  • सभी विकासशील देशों को एक स्थायी रोग नियंत्रण प्रणाली विकसित करने के लिये ‘वन हेल्थ रिसर्च’ को बढ़ावा देने की प्रक्रिया को अपनाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू

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