अंतर्राष्ट्रीय संबंध
वैश्विक DPI शिखर सम्मेलन
प्रिलिम्स के लिये:डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर, संयुक्त राष्ट्र, इंडिया स्टैक, G20 डिजिटल अर्थव्यवस्था कार्य समूह, डिजिटल आइडेंटिटी, यूपीआई मेन्स के लिये:वैश्विक DPI शिखर सम्मेलन |
चर्चा में क्यों?
G20 डिजिटल इकॉनमी वर्किंग ग्रुप (DEWG) की तीसरी बैठक पुणे, महाराष्ट्र में ग्लोबल डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (Digital Public Infrastructure- DPI) शिखर सम्मेलन और प्रदर्शनी के उद्घाटन के साथ शुरू हुई।
- सत्र में DPI के सामान्य सिद्धांतों और डिज़ाइन पहलुओं पर विचार किया गया, जिसमें पारदर्शी मानक, साझेदारी, अंतर-क्षमता और सामर्थ्य शामिल हैं।
- भारत ने वन फ्यूचर अलायंस नामक देशों का एक गठबंधन बनाने का भी प्रस्ताव रखा, जो समान विचारधारा वाले देशों को लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग करने की अनुमति देगा।
नोट: DEWG, जिसे मूल रूप से DETF कहा जाता था, वर्ष 2017 में जर्मन G20 प्रेसीडेंसी के हिस्से के रूप में एक सुरक्षित, परस्पर और समावेशी डिजिटल अर्थव्यवस्था के कार्यान्वयन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बनाया गया था।
- वैश्विक डिजिटल अर्थव्यवस्था के 11 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है और वर्ष 2025 तक इसके 23 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है, DEWG डिजिटल स्पेस में वैश्विक नीति संवाद को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
शिखर सम्मेलन की मुख्य विशेषताएँ:
- DPI एडवांसमेंट के लिये चरण निर्धारित करना:
- सफल DPI कार्यान्वयन और डिजिटल परिवर्तन के लिये एक परीक्षण मामले के रूप में भारत की भूमिका को रेखांकित किया गया।
- भारत ने इंडिया स्टैक के माध्यम से बड़े पैमाने पर कार्यान्वित अपने सफल डिजिटल समाधानों को साझा करने के लिये आर्मेनिया, सिएरा लियोन और सूरीनाम के साथ समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किये।
- लोगों को सशक्त बनाने हेतु डिजिटल पहचान:
- यह सत्र राष्ट्रीय प्राथमिकताओं और सामाजिक सामंजस्य की नींव के रूप में डिजिटल पहचान की भूमिका पर केंद्रित था।
- इस सत्र में कार्यान्वयन के विभिन्न मॉडलों जैसे केंद्रीकृत, संघीकृत और विकेंद्रीकृत पर चर्चा की गई।
- उल्लेखनीय उदाहरणों के रूप में भारत के आधार (Aadhaar) और फिलीपींस फिलसिस (PhilSys) को रेखांकित किया गया था।
- डिजिटल भुगतान और वित्तीय समावेशन:
- इस सत्र में तेज़ और समावेशी डिजिटल भुगतान की सुविधा के लिये DPI की भूमिका का उल्लेख किया गया।
- इस चर्चा में निपटान के प्रकार, जोखिम प्रबंधन, उपयोगकर्त्ता ऑनबोर्डिंग लागत और DPI के माध्यम से वित्तीय विभाजन को शामिल करना था।
- न्यायिक प्रणालियों और विनियमों के लिये डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI):
- इस सत्र में न्यायिक प्रणालियों में DPI के कार्यान्वयन पर चर्चा की गई।
- इस सत्र में कवर किये गए विषयों में ई-कोर्ट प्रणाली, ई-फाइलिंग, पेपरलेस कोर्ट, लाइव स्ट्रीमिंग और DPI संचालित न्यायपालिका प्रणाली में विश्वास जगाने के लिये उपयुक्त संस्थानों एवं विनियमों की आवश्यकता शामिल है।
- PKI म्यूचुअल रिकॉग्निशन फ्रेमवर्क का प्रारूप:
- पब्लिक की इन्फ्रास्ट्रक्चर (PKI) म्यूचुअल रिकॉग्निशन फ्रेमवर्क के प्रारूप को भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा देश की सीमाओं से परे भारत के डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) के कार्यान्वयन तथा इसे अपनाने के विषय पर नेतृत्त्व करने के उद्देश्य से जारी किया गया है।
वन फ्यूचर गठबंधन:
- यह लोगों के जीवन को बेहतर बनाने और प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने के लिये समान विचारधारा वाले देशों का गठबंधन है। इसका उद्देश्य सामाजिक, आर्थिक एवं सतत् विकास के संचालन में एक समान विचारधारा वाले देशों को सहयोग करने तथा प्रौद्योगिकी का उपयोग करने में सक्षम बनाना है।
- यह गठबंधन पहले से उपलब्ध ओपन-सोर्स कस्टमाइज़ेबल स्टैक पर निर्माण करना चाहता है तथा देशों को उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं के लिये समाधानों के नवीनीकरण और अनुकूलित करने के लिये प्रोत्साहित करता है।
- यह गठबंधन साइबर सुरक्षा और डिजिटल स्किलिंग सहित अन्य क्षेत्रों में सहयोग को प्रोत्साहित करते हुए डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर (DPI) को लागू करने तथा बढ़ावा देने का प्रयास करता है। यह प्रौद्योगिकी की गतिशील प्रकृति, विशेष रूप से कृत्रिम बुद्धिमत्ता और बहुभाषावाद की शक्ति को स्वीकार करता है।
डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर:
- डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPI) से तात्पर्य डिजिटल पहचान, भुगतान अवसंरचना और डेटा विनिमय समाधान जैसे प्लेटफाॅर्म से है जो देशों को अपने लोगों को आवश्यक सेवाएँ प्रदान करने, नागरिकों को सशक्त बनाने तथा डिजिटल समावेशन को सक्षम कर जीवन में सुधार करने में मदद करता है।
- DPIs लोगों, धन और सूचना के प्रवाह में मध्यस्थता करता है। पहले एक डिजिटल ID प्रणाली के माध्यम से लोगों का प्रवाह। दूसरा रियल-टाइम त्वरित भुगतान प्रणाली के माध्यम से धन का प्रवाह और तीसरा DPI के लाभों को प्राप्त करने एवं डेटा को नियंत्रित करने की वास्तविक क्षमता के साथ नागरिकों को सशक्त बनाने के लिये सहमति आधारित डेटा साझाकरण प्रणाली के माध्यम से व्यक्तिगत जानकारी का प्रवाह।
- ये तीन सेट एक प्रभावी DPI पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने के आधार हैं।
- प्रत्येक DPI स्तर एक स्पष्ट आवश्यकता को पूरा करती है और विभिन्न क्षेत्रों में लिये बहुत उपयोगी है।
- इंडिया स्टैक के माध्यम से सभी तीन मूलभूत DPI- डिजिटल पहचान (आधार), रीयल-टाइम फास्ट पेमेंट (UPI) और डेटा एम्पावरमेंट प्रोटेक्शन आर्किटेक्चर (DEPA) पर निर्मित अकाउंट एग्रीगेटर विकसित करने वाला भारत पहला देश बन गया।
- DEPA एक डिजिटल ढाँचा का निर्माण करता है जो उपयोगकर्त्ताओं को तृतीय-पक्ष इकाई के माध्यम से अपने डेटा को शर्तों पर साझा करने की अनुमति देता है, जिन्हें कंसेंट मैनेजर के रूप में जाना जाता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) प्रश्न. भारत में ‘पब्लिक की इन्फ्रास्ट्रक्चर’ पदबंध किसके प्रसंग में प्रयुक्त किया जाता है? (2020) (a) डिजिटल सुरक्षा आधारभूत संरचना उत्तर: A व्याख्या:
अतः विकल्प (a) सही है। |
स्रोत: पी.आई.बी.
भूगोल
चिटे लुई नदी
मिज़ोरम में चिटे लुई नदी पहाड़ी पूर्वोत्तर राज्य के लोगों के लिये महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक और भावनात्मक महत्त्व रखती है।
- हालाँकि अनियोजित शहरीकरण, अतिक्रमण तथा इसके किनारे पर स्थित व्यवसायों के कारण नदी प्रदूषण और क्षरण का सामना कर रही है।
चिटे लुई नदी के संबंध में प्रमुख पहलू:
- परिचय:
- चिटे लुई नदी लगभग 1,000 मीटर की ऊँचाई पर एक जलोढ़ घाटी में स्थित है। यह नदी उत्तर आइज़ोल में बावंगकॉन रेंज से निकलती है और तुइरियल नदी में मिलने से पहले लगभग 20 किमी. तक बहती है।
- चिटे लुई नदी के समक्ष मुख्य जोखिम और चुनौतियाँ:
- शहरीकरण: आइज़ोल शहर के तीव्र विकास के कारण तट और यहाँ तक कि चिटे लुई नदी के तल पर भी अनियोजित निर्माण गतिविधियाँ देखी गई हैं।
- कई घरों, दुकानों, गैराज, भोजनालयों और अन्य प्रतिष्ठानों की स्थापना नदी क्षेत्र में की गई हैं जिससे इस नदी की चौड़ाई एवं गहराई काफी कम हो गई है।
- वनों की कटाई और भूमि उपयोग में परिवर्तन के कारण, नदी पर भी मृदा के कटाव तथा प्राकृतिक वनस्पतियों के नुकसान का प्रभाव पड़ता है।
- प्रदूषण: शहरी आबादी द्वारा उत्पन्न विभिन्न प्रकार के अपशिष्ट के लिये नदी एक डंपिंग स्थल बन गई है।
- प्रदूषण का नदी और उसके उपयोगकर्त्ताओं, जलीय जीवन, जैवविविधता तथा स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पड़ता है।
- शहरीकरण: आइज़ोल शहर के तीव्र विकास के कारण तट और यहाँ तक कि चिटे लुई नदी के तल पर भी अनियोजित निर्माण गतिविधियाँ देखी गई हैं।
- चिटे लुई की सुरक्षा संबंधी पहल:
- ज़ोरम रिसर्च फाउंडेशन: यह एक गैर-लाभकारी संगठन है जो मिज़ोरम में पारंपरिक जल प्रबंधन के लिये काम करता है।
- इस संस्थान ने वर्ष 2007 में सर्वेक्षण, जागरूकता अभियान, सफाई अभियान और हिमायत कार्यक्रम चलाकर चिटे लुई नदी को बचाने की पहल शुरू की।
- इसने प्रयासों का समन्वय करने हेतु स्थानीय नेताओं, कार्यकर्त्ताओं, विशेषज्ञों एवं स्वयंसेवकों से बनी सेव चिटे लुई समन्वय समिति का भी गठन किया।
- चिटे लुई (जल प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 2018: यह मिज़ोरम सरकार द्वारा वर्ष 2018 में पारित एक कानून है जो जानवरों के शवों, जैव-चिकित्सा अपशिष्ट या किसी भी अपशिष्ट को नदी में फेंकने पर रोक लगाता है।
- यह अधिनियम राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को नदी की गुणवत्ता और मात्रा को प्रभावित करने वाली गतिविधियों की निगरानी एवं नियमन करने का अधिकार भी प्रदान करता है।
- नदी बहाली परियोजना: यह मिज़ोरम सरकार द्वारा अतिक्रमण हटाने, प्राकृतिक वनस्पति को बहाल करने, चेक बाँधों का निर्माण करने, जल निकासी और सीवरेज सिस्टम में सुधार करने एवं नदी के किनारे मनोरंजक सुविधाओं का निर्माण करने हेतु चिटे लुई नदी को पुनर्जीवित करने के लिये शुरू की गई एक परियोजना है।
- ज़ोरम रिसर्च फाउंडेशन: यह एक गैर-लाभकारी संगठन है जो मिज़ोरम में पारंपरिक जल प्रबंधन के लिये काम करता है।
नोट:
- मिज़ोरम की सबसे बड़ी नदी छिमतुईपुई (138.46 किमी लंबी) है। इसका उत्पत्ति स्थल म्याँमार, बर्मा है। नदी भागों में विभाजित है और इसकी चार सहायक नदियाँ हैं।
- मिज़ोरम की कुछ महत्त्वपूर्ण और रचनात्मक नदियाँ- त्लांग, तुइरियल और तुइवल हैं जो उत्तरी क्षेत्र से होकर गुज़रती हैं तथा अंततः असम में बराक नदी में मिल जाती हैं।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
कृषि
जलवायु प्रतिरोधी कृषि
प्रिलिम्स के लिये:सूखा, कृषि उत्पादकता, वाटरशेड विकास, भूजल, हीटवेव, पिंक बॉलवॉर्म, बिपरजॉय चक्रवात मेन्स के लिये:भारतीय कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रमुख प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में शोधकर्त्ताओं ने महाराष्ट्र के सूखा-प्रवण जालना ज़िले पर कुछ शोध किये हैं, इससे कृषि प्रणालियों के जलवायु प्रतिरोध को बढ़ाने में विभिन्न हस्तक्षेपों की प्रभावशीलता का पता चला है।
शोध के प्रमुख बिंदु:
- जल संसाधन विकास पर अंतर्राष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित शोध में महाराष्ट्र के दो अर्द्ध-शुष्क गाँवों- बाबई और देउलगाँव टाड में 15 वर्ष की अवधि में विभिन्न कृषि विकास हस्तक्षेपों के प्रभाव की पड़ताल शामिल है।
- इन गाँवों को दो कृषि प्रणालियों के रूप में चुना गया था:
- जहाँ बाबई में हस्तक्षेप का उद्देश्य कृषि उत्पादकता और सिंचाई के बुनियादी ढाँचे में सुधार करना था।
- वहीं देउलगाँव टाड में हस्तक्षेपों द्वारा कृषि उत्पादकता में सुधार लाने के साथ ही अनुकूलन क्षमताओं के निर्माण को लक्षित करना था।
- निष्कर्ष:
- वाटरशेड विकास में हस्तक्षेप के कारण फसल बुआई के पैटर्न में बदलाव और कृषि में वृद्धि देखने को मिली है।
- हालाँकि समय के साथ इन तरीकों से भू-जल तालिका और मृदा स्वास्थ्य में गिरावट आई।
- अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में पारंपरिक कृषि विकास रणनीतियों को बहुत मामूली सफलता मिली है।
- जल प्रबंधन, मृदा स्वास्थ्य, आजीविका विविधीकरण और खाद्य तथा पोषण सुरक्षा के साथ उत्पादकता बढ़ाने वाले संयुक्त हस्तक्षेपों से जलवायु प्रतिरोध क्षमता संकेतकों में सुधार हुआ।
- प्रतिरोध क्षमता में वृद्धि के लिये निगरानी, मूल्यांकन, लर्निंग और अनुकूल निर्णय लेना प्रमुख घटक थे।
- बाबई के पास बेहतर जल संसाधन थे, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 2007 में देउलगाँव टाड की तुलना में वह अधिक प्रतिरोधी था। पूरे वर्ष पर्याप्त जल और बेहतर गुणवत्ता वाली मृदा तक पहुँच बाबई के बेहतर प्रतिरोध क्षमता के लिये उत्तरदायी थी।
- हालाँकि शोध के अनुसार पिछले कुछ वर्षों में बाबई की समग्र प्रतिरोधकता में कोई खास बदलाव नहीं आया है।
- अनुकूली क्षमताओं और प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन पर केंद्रित उपायों के कारण वर्ष 2007 में देउलगाँव टाड, जिसकी प्रतिरोधक क्षमता कम थी, में सभी प्रतिरोधकता मापदंडों में सुधार हुआ था।
भारतीय कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रमुख प्रभाव:
- वर्षा प्रतिरूप में बदलाव: जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा प्रतिरूप में बदलाव आया है, जिसमें वर्षा के समय, तीव्रता एवं वितरण में बदलाव शामिल है।
- इसके परिणामस्वरूप सूखा, बाढ़ और अनियमित वर्षा हो सकती है, जिससे कृषि उत्पादकता प्रभावित हो सकती है।
- उदाहरण के लिये वर्ष 2019 में भारत में मानसूनी वर्षा में देरी और कमी का अनुभव हुआ, जिससे कई क्षेत्रों में फसल की पैदावार कम हुई।
- बढ़ा हुआ तापमान: बढ़ते तापमान का फसल की वृद्धि और विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
- विभिन्न मौसम के दौरान उच्च तापमान फसल की को पैदावार और फसलों के पोषण मूल्य को कम कर सकता है। हीट स्ट्रेस पशुधन के स्वास्थ्य एवं उत्पादकता को भी प्रभावित कर सकता है।
- हाल के वर्षों में भारत में हीट वेब ने फसल की पैदावार विशेषकर गेहूँ और चावल जैसी गर्मी के प्रति संवेदनशील फसलों को प्रभावित किया है।
- बदलते कीट और रोग प्रतिरूप: जलवायु परिवर्तन कीट और रोगों के वितरण एवं बहुतायत को प्रभावित करता है, जिससे कृषि कीट प्रबंधन को चुनौती का सामना करना पड़ता है।
- तापमान और वर्षा प्रतिरूप में परिवर्तन कुछ कीटों और बीमारियों के प्रसार में सहायक हो सकते हैं, जो फसल के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
- उदाहरण के लिये पिंक बॉलवर्म जैसे कीटों की बढ़ती घटनाओं ने भारत में कपास के उत्पादन को प्रभावित किया है एवं अनियमित वर्षा के कारण सोमालिया क्षेत्र से लोकस्ट स्वार्म को प्रभावित किया है।
- जल संकट: जलवायु परिवर्तन जल की उपलब्धता विशेष रूप से सिंचाई हेतु वर्षा या हिमपात पर निर्भर क्षेत्रों को प्रभावित करता है।
- वर्षा प्रतिरूप में परिवर्तन और ग्लेशियरों के पिघलने से जल की कमी हो सकती है, यह विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण फसल विकास चरणों के दौरान फसल उत्पादकता को कम कर सकता है। इसके परिणामस्वरूप कृषि उत्पादकता कम हो सकती है और जल संसाधनों के लिये प्रतिस्पर्द्धा बढ़ सकती है।
- फसल प्रतिरूप में परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन कुछ क्षेत्रों में विभिन्न फसलों की उपयुक्तता को प्रभावित कर सकता है। जैसे-जैसे तापमान एवं वर्षा प्रतिरूप बदलते हैं, उत्पादकता सुनिश्चित करने हेतु किसानों को अपने फसल प्रतिरूप को अपनाने की आवश्यकता हो सकती है।
- कुछ फसलें कम व्यवहार्य हो सकती हैं, जबकि अन्य अधिक उपयुक्त हो सकती हैं। हालाँकि अखिल भारतीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन से नारियल उत्पादन बढ़ने का अनुमान है।
- चरम मौसम की घटनाओं में वृद्धि: जलवायु परिवर्तन को चक्रवात, तूफान और ओलावृष्टि जैसी चरम मौसमी घटनाओं में वृद्धि से जोड़ा गया है। इन घटनाओं से फसलों, पशुधन तथा बुनियादी ढाँचे को काफी नुकसान हो सकता है, जिससे किसानों को उपज की हानि और आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
- उदाहरण के लिये हालिया चक्रवात बिपोरजॉय।
आगे की राह
- ज्ञान गहन कृषि के लिये इनपुट गहन: भारत कृषि पद्धतियों की विविधता हेतु जाना जाता है। भविष्य के लिये उपयुक्त समाधान खोजने के लिये राष्ट्रीय स्तर की बातचीत में विविध दृष्टिकोणों को शामिल करना महत्त्वपूर्ण है।
- साथ ही उन्नत दुनिया सटीक प्रथाओं और इनपुट के आवेदन के लिये सेंसर एवं अन्य वैज्ञानिक उपकरणों का उपयोग करके सटीक कृषि की ओर बढ़ रही है।
- भारत में हाई-टेक खेती की दिशा में एक स्मार्ट और सटीक कदम औसत लागत को कम करेगा, किसानों की आय बढ़ाएगा और कई अन्य चुनौतियों का समाधान करेगा।
- इंटरक्रॉपिंग और एग्रोफोरेस्ट्री: एक ही खेत में विभिन्न फसलों को एक साथ उगाने या फसलों के साथ पेड़ों को एकीकृत करने से जैवविविधता में वृद्धि हो सकती है, मिट्टी का क्षरण कम हो सकता है और जलवायु लचीलापन बढ़ सकता है। उदाहरण के लिये अनाज के साथ फलियाँ उगाने से न केवल अतिरिक्त आय प्राप्त होती है बल्कि नाइट्रोजन स्थिरीकरण के माध्यम से मिट्टी की उर्वरता में भी सुधार होता है।
- इसके अलावा गैर-पारंपरिक फसलों की खेती को प्रोत्साहित करना, जो कि जलवायु चरम सीमाओं के प्रति अधिक लचीला है, एक फसल पर निर्भरता और जोखिमों को कम कर सकता है।
- उदाहरण के लिये सूखा-सहिष्णु बाजरा को बढ़ावा देने से किसानों को बदलती जलवायु परिस्थितियों से निपटने में मदद मिल सकती है।
- जलवायु-स्मार्ट जल प्रबंधन: विशेष रूप से जल-तनाव वाले क्षेत्रों में कृषि में जलवायु लचीलेपन के लिये कुशल जल प्रबंधन महत्त्वपूर्ण है। जल संसाधनों का संरक्षण करते हुए जलवायु-स्मार्ट जल प्रबंधन प्रथाओं को लागू करने से कृषि उत्पादकता में वृद्धि हो सकती है।
- बारिश के पानी को बर्बाद होने से बचाने और स्टोर करने के लिये तालाबों, चेक डैम और खेत में तालाबों का निर्माण भूजल को रिचार्ज करने तथा शुष्क समय के दौरान सिंचाई प्रदान करने में मदद कर सकता है।
- किसान सूखे के दौरान या पूरक सिंचाई के लिये इस संग्रहीत पानी का उपयोग कर सकते हैं, जिससे अनियमित वर्षा पैटर्न पर निर्भरता कम हो जाती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. स्थायी कृषि (पर्माकल्चर), पारंपरिक रासायनिक कृषि से किस तरह भिन्न है?(2021)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (b) प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी 'मिश्रित खेती' की प्रमुख विशेषता है? (2012) (a) नकदी और खाद्य दोनों सस्यों की साथ-साथ खेती उत्तर: (c) प्रश्न. सूक्ष्म सिंचाई के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2011)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. फसल विविधता के समक्ष मौजूदा चुनौतियाँ क्या हैं? उभरती प्रौद्योगिकियाँ फसल विविधता के लिये किस प्रकार अवसर प्रदान करती हैं? (2021) प्रश्न. जल इंजीनियरिंग और कृषि विज्ञान के क्षेत्रों में क्रमशः सर एम. विश्वेश्वरैया और डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन के योगदानों से भारत को किस प्रकार लाभ पहुँचा था? (2019) |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
भारतीय अर्थव्यवस्था
विलफुल डिफॉल्टर हेतु समाधान समझौता: RBI
प्रिलिम्स के लिये:ऋण वसूली न्यायाधिकरण (DRTs), NPA, नेशनल एसेट रिकंस्ट्रक्शन लिमिटेड (NARC), भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), भारत ऋण समाधान कंपनी लिमिटेड, SARFAESI अधिनियम, दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC), बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 मेन्स के लिये:NPA की चुनौतियाँ, NPA संकल्प के प्रावधान |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) ने प्रस्ताव/सर्कुलर पेश किया है, जिसमें विलफुल डिफॉल्टर/इरादतन चूककर्त्ताओं और धोखाधड़ी में शामिल कंपनियों को समाधान समझौता या तकनीकी राइट-ऑफ का विकल्प चुनने की अनुमति दी गई है।
- यह सर्कुलर ऐसे मामलों से निपटने में बैंकों और वित्त कंपनियों हेतु दिशा-निर्देश प्रदान करता है।
प्रमुख बिंदु
- सर्कुलर :
- समाधान समझौता और तकनीकी राइट-ऑफ:
- देनदारों के खिलाफ चल रही आपराधिक कार्यवाही के बावजूद बैंक और वित्त कंपनियाँ विलफुल डिफॉल्टर्स या धोखाधड़ी के रूप में वर्गीकृत खातों हेतु समाधान समझौता या तकनीकी राइट-ऑफ कर सकती हैं।
- RBI का सर्कुलर यह सुनिश्चित करते हुए इन निपटान को सक्षम बनाता है कि आपराधिक कार्यवाही अप्रभावित रहे।
- नए ऋणों हेतु कूलिंग पीरियड:
- बैंकों को उन उधारकर्त्ताओं को नए ऋण देने से पहले 12 महीने की न्यूनतम कूलिंग पीरियड लागू करने की आवश्यकता होती है, जिन्होंने समाधान समझौता किया है।
- कूलिंग पीरियड कृषि ऋण के अलावा अन्य जोखिमों पर भी लागू होता है, विनियमित संस्थाओं के पास उनके बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीतियों के आधार पर दीर्घकालिक कूलिंग पीरियड निर्धारित करने का अधिकार होता है।
- समाधान समझौता और तकनीकी राइट-ऑफ:
- चुनौतियाँ:
- सार्वजनिक धन की संभावित हानि:
- बैंकों ने पूर्व में समाधान समझौता को मंज़ूरी दे दी है, जिसके परिणामस्वरूप बकाया भुगतानों पर भारी कटौती के कारण काफी नुकसान हुआ है।
- हालाँकि समाधान समझौता की अनुमति देने से बड़े धोखेबाजों और बकाएदारों को बढ़ावा मिल सकता है।
- समाधान समझौते की अनुमति देने से NPA कृत्रिम रूप से कम हो जाएगा, भले ही वित्तीय नीतियाँ अस्थिर हों।
- कुल सकल NPA में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का बड़ा हिस्सा है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का NPA कुल NPA का लगभग 72% हैं, बाकी निजी क्षेत्र के बैंकों, विदेशी बैंकों और छोटे वित्तीय संस्थानों का NPA है।
- PSB को सरकार द्वारा पुनर्पूंजीकृत किया जाता है जिससे जनता के पैसे का नुकसान होता है।
- ऋण वसूली न्यायाधिकरण (DRT) के मुद्दे:
- ऐसे उदाहरण सामने आए हैं जहाँ बैंकों ने ऋण वसूली न्यायाधिकरण (Debt Recovery Tribunals- DRT) को सूचित किये बिना समाधान समझौता किया।
- एर्नाकुलम में DRT ने एक ऐसी स्थिति देखी जिसमें एक समझौता किया गया था, लेकिन बैंक सहमति डिक्री को सुरक्षित करने में विफल रहा और काफी समय तक DRT से निपटान को गुप्त रखा गया।
- यह एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी और IBC दोनों के महत्त्व को कम कर रहा है।
- सार्वजनिक धन की संभावित हानि:
- समाधान समझौते के लाभ:
- लागत कम करना:
- समाधान समझौता बकाए की शीघ्र वसूली की सुविधा प्रदान करता है और कानूनी खर्चों और अन्य संबंधित लागतों को कम करके बैंकों की लागत को बचाता है।
- अंतर्निहित उद्देश्य कम समय-सीमा के भीतर अधिकतम संभव सीमा तक देय राशि की वसूली करना है।
- तकनीकी राइट-ऑफ और NPA में कमी:
- बैंकों ने पिछले एक दशक में गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) को कम करने के लिये राइट-ऑफ का उपयोग किया है, जिसके परिणामस्वरूप NPA का स्तर कम दर्ज किया गया है।
- राइट-ऑफ का उपयोग लेखांकन और कर उद्देश्यों के लिये किया गया था लेकिन चिंताएँ मौजूद हैं कि इस अभ्यास ने बैंकों और कॉरपोरेट्स को अपनी ऋण बुक को "एवरग्रीन" बनाए रखने की अनुमति दी है।
- बैंकों ने पिछले एक दशक में गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) को कम करने के लिये राइट-ऑफ का उपयोग किया है, जिसके परिणामस्वरूप NPA का स्तर कम दर्ज किया गया है।
- समाधान समझौते का उद्देश्य अनपेक्षित बाज़ार जोखिमों के परिणामस्वरूप गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) का सामना करने वाली आर्थिक रूप से बोझिल कंपनियों को महत्त्वपूर्ण मानवीय सहायता प्रदान करना है।
- लागत कम करना:
गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ:
- परिचय:
- NPA उन ऋणों या अग्रिमों के वर्गीकरण को संदर्भित करता है जो डिफॉल्ट रूप से हैं या मूलधन या ब्याज के निर्धारित भुगतान पर बकाया हैं।
- ज़्यादातर मामलों में ऋण को गैर-निष्पादित के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, जब 90 दिनों की न्यूनतम अवधि के लिये ऋण भुगतान नहीं किया जाता है।
- कृषि की यदि द्वि-फसली मौसमों के लिये मूलधन और ब्याज का भुगतान नहीं किया जाता है, तो ऋण को NPA के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
- सकल NPA:
- सकल NPA उन सभी ऋणों का योग है जो व्यक्तियों द्वारा चूक किये गए हैं
- कुल NPA:
- कुल NPA वह राशि है जो प्रावधान राशि को सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों से घटाए जाने के बाद प्राप्त होती है।
- NPA उन ऋणों या अग्रिमों के वर्गीकरण को संदर्भित करता है जो डिफॉल्ट रूप से हैं या मूलधन या ब्याज के निर्धारित भुगतान पर बकाया हैं।
- NPA से संबंधित कानून और प्रावधान:
- बैड बैंक:
- भारत में बैड बैंक को नेशनल एसेट रिकंस्ट्रक्शन लिमिटेड (NARC) कहा जाता है।
- यह NARC एक एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी के तौर पर काम करेगी।
- यह बैंकों से खराब ऋण खरीदेगा, जिससे उन्हें NPA से राहत मिलेगी। इसके बाद NARC संकटग्रस्त ऋण खरीदारों को दबावग्रस्त ऋण बेचने का प्रयास करेगा।
- सरकार ने पहले ही इन तनावग्रस्त संपत्तियों को बाज़ार में बेचने के लिये इंडिया डेट रेज़ोल्यूशन कंपनी लिमिटेड (IDRCL) की स्थापना की है। तदनुसार, IDRCL उन्हें बाज़ार में बेचने का प्रयास करेगी।
- वित्तीय संपत्तियों का प्रतिभूतिकरण और पुनर्निर्माण एवं सुरक्षा हित का प्रवर्तन (SARFAESI) अधिनियम, 2002:
- सरफेसी अधिनियम बैंकों और वित्तीय संस्थानों को अदालत के हस्तक्षेप के बिना बकाया राशि की वसूली के लिये संपार्श्विक संपत्ति पर कब्ज़ा करने और उन्हें बेचने की अनुमति देता है।
- यह सुरक्षा हितों के प्रवर्तन के लिये प्रावधान प्रदान करता है तथा बैंकों को डिफॉल्ट उधारकर्त्ताओं को डिमांड नोटिस जारी करने की अनुमति देता है।
- दिवाला और दिवालियापन संहिता (IBC), 2016:
- IBC भारत में दिवालियापन और दिवालियापन समाधान प्रक्रिया के लिये एक व्यापक ढाँचा प्रदान करता है।
- इसका उद्देश्य तनावग्रस्त संपत्तियों (स्ट्रेस एसेट) के समयबद्ध समाधान को सुगम बनाना और लेनदारों के अनुकूल वातावरण को बढ़ावा देना है।
- IBC के तहत एक देनदार या लेनदार एक डिफॉल्ट उधारकर्त्ता के विरुद्ध दिवाला कार्यवाही शुरू कर सकता है।
- प्रक्रिया की देख-रेख के लिये यह राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (NCLT) और भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड (IBBI) की स्थापना करता है।
- बैंकों और वित्तीय संस्थान (RDDBFI) अधिनियम, 1993 के कारण ऋण की वसूली:
- RDDBFI अधिनियम बैंकों और वित्तीय संस्थानों के ऋणों की वसूली के लिये शीघ्र अधिनिर्णय तथा वसूली हेतु ऋण वसूली न्यायाधिकरण (DRT) की स्थापना करता है।
- DRT के पास एक निर्दिष्ट सीमा से अधिक बकाया ऋणों की वसूली से संबंधित मामलों को सुनने और निर्णय लेने की शक्ति है।
- भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872:
- भारतीय अनुबंध अधिनियम उधारदाताओं और उधारकर्त्ताओं के बीच संविदात्मक संबंध को नियंत्रित करता है।
- यह ऋण समझौतों, नियमों एवं शर्तों, डिफॉल्ट तथा भुगतान न करने की स्थिति में उधारदाताओं के लिये उपलब्ध उपायों हेतु कानूनी ढाँचा स्थापित करता है।
- बैड बैंक:
आगे की राह
- वसूली की कार्यवाही और सहमति डिक्री:
- समाधान समझौते पर बातचीत करते समय बैंकों को न्यायिक मंचों के तहत चल रही वसूली कार्यवाही पर विचार करना चाहिये।
- निपटान से संबंधित न्यायिक अधिकारियों से सहमति डिक्री प्राप्त करने के अधीन होना चाहिये।
- NPA वसूली का महत्त्व:
- जमाकर्त्ताओं और हितधारकों के हितों की रक्षा के लिये NPA की वसूली महत्त्वपूर्ण है।
- समझौता निपटान को न्यूनतम व्यय के साथ तथा कम समय सीमा के अंदर देय राशि की अधिकतम वसूली को प्राथमिकता देनी चाहिये।
- जनहित पर विचार:
- समाधान समझौते के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र की संस्था होने के नाते बैंकों को उधारकर्त्ताओं के हितों पर कर-भुगतान करने वाली जनता के हितों पर भी विचार करना चाहिये।
विलफुल डिफॉल्टर:
- जब उधारकर्त्ता (व्यक्ति या कंपनी) भुगतान दायित्वों को पूरा करने की क्षमता के बावजूद भुगतान करने के अपने दायित्व से चूक जाता है या जान-बूझकर ऋण न चुकाने का इरादा रखता है।
- जब पूंजी का उपयोग उस विशिष्ट उद्देश्य के लिये नहीं किया जाता है जिसके लिये वित्त प्राप्त किया गया था लेकिन ऋण लेने वाले द्वारा ऋण समझौते में परिभाषित उद्देश्य के अतिरिक्त किसी अन्य उद्देश्य के लिये प्राप्त पूंजी का उपयोग किया जाता है।
- जब इस प्रकार के संदेह की स्थिति हो, जिसमें उधार लेने वाले ने धन की हेरा-फेरी की हो और उसका उपयोग उस उद्देश्य के लिये नहीं किया गया है जिसके लिये उधार लिया गया था। इसके अतिरिक्त उसके पास ऐसी कोई संपत्ति उपलब्ध नहीं हो जो उसके द्वारा फंड के इस तरह के उपयोग को उचित ठहराती हो।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के संचालन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) व्याख्या:
अतः कथन 2 सही है। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
कृषि में भारत-अमेरिका सहयोग
प्रिलिम्स के लिये:हरित क्रांति, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR), 'नोरिन -10', नॉर्मन बोरलॉग, अंतर्राष्ट्रीय मक्का और गेहूँ सुधार केंद्र या CIMMYT, अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, शीत युद्ध, गुटनिरपेक्षता, यूपी कृषि विश्वविद्यालय अधिनियम मेन्स के लिये:कृषि विकास में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और वैश्विक खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना |
चर्चा में क्यों?
स्वतंत्र भारत की कृषि प्रगति में संयुक्त राज्य अमेरिका की ऐतिहासिक भागीदारी को देखते हुए भारत के प्रधानमंत्री की अमेरिका की आसन्न यात्रा काफी महत्त्व रखती है।
- जैसे पूंजीगत उपकरणों और प्रौद्योगिकी की आपूर्ति के माध्यम से स्वतंत्र भारत के शुरुआती औद्योगीकरण में सोवियत संघ की भूमिका, संयुक्त राज्य अमेरिका (रॉकफेलर और फोर्ड फाउंडेशन जैसी संस्थाओं) ने कृषि विश्वविद्यालयों और हरित क्रांति की स्थापना के माध्यम से भारत के कृषि विकास में भूमिका निभाई।
भारत के कृषि विकास में अमेरिका की भूमिका:
- विश्वविद्यालयों का विकास:
- गोविंद बल्लभ पंत ने अमेरिकी भूमि-अनुदान मॉडल के आधार पर उत्तराखंड के पंतनगर में पहला कृषि विश्वविद्यालय स्थापित किया।
- यह विश्वविद्यालय शिक्षण, अनुसंधान और विस्तार सेवाओं को एकीकृत करता है, जिसका उद्देश्य किसानों को सीखने, समस्या-समाधान अनुसंधान तथा ज्ञान प्रसार के लिये एक आदर्श वातावरण प्रदान करना है।
- विश्वविद्यालय, जिसे जी.बी. पंत कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है, का उद्घाटन 17 नवंबर, 1960 को प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा किया गया था।
- भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) द्वारा प्रकाशित हन्ना (Hannah's) के ब्लूप्रिंट ने भारत में आठ कृषि विश्वविद्यालयों की स्थापना की।
- अंतर्राष्ट्रीय विकास के लिये अमेरिकी एजेंसी ने इन विश्वविद्यालयों को संकाय प्रशिक्षण, उपकरण और पुस्तकों की सहायता दी। प्रत्येक विश्वविद्यालय में अनुसंधान फार्म, क्षेत्रीय स्टेशन, उप-स्टेशन और बीज उत्पादन सुविधाएँ हैं।
- हरित क्रांति के बीज:
- हरित क्रांति (अमेरिका के नॉर्मन बोरलॉग द्वारा शुरू की गई) में अर्द्ध-बौनी किस्मों को मज़बूत तनों के साथ आनुवंशिक रूप संसोधित किया गया ताकि पौधे झुकें या गिरें नहीं। यह उच्च उर्वरक अनुप्रयोग को "सहन" कर सकते हैं। जितना अधिक निवेश (पोषक तत्त्व और जल) किया जाता उतना ही अधिक उत्पादन (अनाज) होता था।
- 'नॉरिन-10', एक छोटी (पारंपरिक लंबी किस्मों की 4.5-5 फीट ऊँचाई के मुकाबले केवल 2-2.5 फीट तक बढ़ी) गेहूँ की किस्म जो 25% अधिक अनाज की पैदावार देती है। नॉर्मन बोरलॉग ने मेक्सिको में उगाई जाने वाली स्प्रिंग व्हीट के साथ इनका संकरण किया।
- पारंपरिक गेहूँ और चावल की किस्में लंबी एवं पतली थीं। वे उर्वरकों एवं जल के उपयोग से लंबाई में बढ़े, जबकि "लॉजिंग" (झुकना या यहाँ तक कि गिरना) के कारण बालियाँ अच्छी तरह से अनाज से भरी थी।
- नई दिल्ली में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान- IARI के वैज्ञानिक एम.एस. स्वामीनाथन ने मार्च 1963 में ही भारत आए बोरलॉग से मुलाकात की।
- बोरलॉग ने उन्हें मैक्सिकन गेहूँ की चार किस्मों के बीज दिये जिन्हें सबसे पहले IARI के परीक्षण क्षेत्रों और पंतनगर तथा लुधियाना के नए कृषि विश्वविद्यालयों में बोया गया था।
- वर्ष 1966-67 तक किसान बड़े पैमाने पर इनका उपयोग कर रहे थे और भारत अब एक आयातक नहीं, बल्कि गेहूँ के मामले में आत्मनिर्भर हो गया।
- विडंबना यह है कि इसके पहले के गेहूँ आयात का एक बड़ा हिस्सा अमेरिका से सार्वजनिक कानून 480 खाद्य सहायता योजना के माध्यम से आता था।
अमेरिका द्वारा भारत की मदद के कारण:
- मेक्सिको स्थित बोरलॉग का अंतर्राष्ट्रीय मक्का और गेहूँ सुधार केंद्र अथवा CIMMYT मुख्य रूप से रॉकफेलर फाउंडेशन द्वारा वित्तपोषित था। रॉकफेलर फाउंडेशन ने फोर्ड फाउंडेशन के साथ फिलीपींस में अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान का भी समर्थन किया।
- भले ही भारत ने सत्तर और अस्सी के दशक की शुरुआत में ICAR और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों की प्रणाली में निवेश के कारण एक मज़बूत स्वदेशी फसल उत्पादन कार्यक्रम बनाया था परंतु उपर्युक्त दोनों संस्थानों ने अनाज की पैदावार में उत्तरोत्तर वृद्धि करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
- न्यूनतम समर्थन मूल्य और "उत्पादों की बिक्री के लिये नज़दीक में ही एक बाज़ार" का विचार पहली बार फोर्ड फाउंडेशन की टीम की वर्ष 1959 की रिपोर्ट में पेश किया गया।
- शीत युद्ध की भू-राजनीति और उस समय की अत्यधिक शक्ति प्रतिद्वंद्विता के बजाय स्थिति को बेहतर करने हेतु प्रतिस्पर्द्धा हुई, जिसमें "विश्व को भूख से लड़ने" एवं ज्ञान तथा पौधों की आनुवंशिक सामग्री के साझाकरण में मदद करना शामिल है, जिसे "वैश्विक सार्वजनिक वस्तुओं" के रूप में देखा जा रहा है।
- भारत ने इस लोकप्रिय धारणा के विपरीत कम-से-कम साठ के दशक तक किसी भी गुट के साथ गठबंधन नहीं किया था। इसी संदर्भ में इसने "गुट-निरपेक्षता" की रणनीति अपनाई, जिसने वर्तमान में "बहुपक्षीयता" का रूप धारण कर लिया है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. नॉर्मन अर्नेस्ट बोरलॉग जिन्हें भारत में हरित क्रांति का जनक माना जाता है, किस देश से हैं? (2008) (a) संयुक्त राज्य अमेरिका उत्तर: (a) प्रश्न. उपजाऊ मृदा और जल की अच्छी उपलब्धता के बावजूद भारत में हरित क्रांति ने पूर्वी क्षेत्र को वस्तुतः बाह्य-पथ क्यों कर दिया? (मुख्य परीक्षा, 2012) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
जैव विविधता और पर्यावरण
ग्रेट इंडियन बस्टर्ड और एशियाई शेर
प्रिलिम्स के लिये:ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, एशियाई शेर, चक्रवात ताउते, बबेसिओसिस, गिर नेशनल पार्क, कुनो नेशनल पार्क, IUCN, WWI मेन्स के लिये:वन्यजीव प्रजातियों पर प्राकृतिक आपदा के प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
चक्रवात बिपोरजॉय जैसे-जैसे गुजरात के कच्छ में जखाऊ बंदरगाह की ओर बढ़ रहा है नालिया क्षेत्र में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (GIB) और गिर के जंगल में एशियाई शेरों के बारे में चिंता उत्पन्न होने लगी है।
प्रमुख चिंताएँ:
- एशियाई शेर:
- गिर का जंगल लगभग 700 एशियाई शेरों का निवास स्थान है जो केवल इसी क्षेत्र में पाए जाते हैं और संरक्षण के लिये एक महत्त्वपूर्ण प्रजाति हैं।
- संरक्षणवादियों ने पूरी शेर आबादी के एक क्षेत्र में केंद्रित होने की भेद्यता के बारे में चिंता जताई है। वर्ष 2018 में बबेसिओसिस जैसी प्राकृतिक आपदाओं का प्रकोप और वर्ष 2019 में चक्रवात ताउते जैसी महामारी शेरों के अस्तित्व के लिये गंभीर जोखिम उत्पन्न करती है।
- वर्ष 2013 में सर्वोच्च न्यायालय ने एशियाई शेरों को गुजरात के गिर जंगल से मध्य प्रदेश के कुनो नेशनल पार्क में स्थानांतरित करने का निर्देश जारी किया।
- शेरों के स्थानांतरण को रोकने के लिये गुजरात सरकार की याचिका को न्यायालय ने खारिज कर दिया था उनके इस दावे के बावजूद कि ये जानवर राज्य के लिये गर्व का विषय है।
- वर्ष 2013 में सर्वोच्च न्यायालय ने एशियाई शेरों को गुजरात के गिर जंगल से मध्य प्रदेश के कुनो नेशनल पार्क में स्थानांतरित करने का निर्देश जारी किया।
- ग्रेट इंडियन बस्टर्ड:
- गुजरात के नलिया के घास के मैदानों में केवल चार मादा शेष हैं। पक्षियों के रूप में उनके पास बेहतर गतिशीलता होती है तथा खतरे को भाँपने और चक्रवात के रास्ते से दूर उड़ने में सक्षम हो सकते हैं।
- हालाँकि भारी वर्षा के कारण आई बाढ़ से उनके आवास पर पड़ने वाला प्रभाव चिंता का विषय बना हुआ है।
- चक्रवात के दौरान वन्यजीवों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के प्रयास किये जा रहे हैं। अधिकारियों ने अपनी छुट्टियों को रद्द कर बचाव दलों के साथ तैनात रहने का फैसला लिया है। घायल जानवरों को चिकित्सा सहायता प्रदान करने के लिये कई अस्पताल भी हैं।
एशियाई शेरों से संबंधित प्रमुख बिंदु:
- परिचय:
- एशियाई शेर (जिसे फारसी शेर अथवा भारतीय शेर के रूप में भी जाना जाता है) पैंथेरा लियो लियो उप-प्रजाति से संबंधित है जो भारत तक ही सीमित है।
- इन क्षेत्रों में विलुप्त होने से पहले इसके पिछले आवासों के अंतर्गत पश्चिम एशिया और मध्य पूर्व क्षेत्र आते थे।
- एशियाई शेर अफ्रीकी शेरों की तुलना में थोड़े छोटे होते हैं।
- वितरण:
- एक समय था जब एशियाई शेर पूर्व में पश्चिम बंगाल राज्य और मध्य भारत में मध्य प्रदेश के रीवा में पाए जाते थे।
- वर्तमान में गिर राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य एशियाई शेर का एकमात्र निवास स्थान है।
- संरक्षण स्थिति:
- IUCN रेड लिस्ट: लुप्तप्राय
- CITES: परिशिष्ट- I
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972: अनुसूची- I
गिर राष्ट्रीय उद्यान:
- गिर राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य गुजरात के जूनागढ़ ज़िले में स्थित है।
- इसे वर्ष 1965 में एक अभयारण्य और वर्ष 1975 में एक राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था।
- भारत के अर्द्ध-शुष्क पश्चिमी भाग में गिर वन शुष्क पर्णपाती वन हैं।
- गिर को अक्सर ‘मल्धारिस’ (Maldharis) के साथ जोड़ा जाता है जो शेरों के साथ सहजीवी संबंध होने से युगों तक जीवित रहे हैं।
ग्रेट इंडियन बस्टर्ड क्षेत्र:
- परिचय:
- द ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (Ardeotis nigriceps), राजस्थान का राजकीय पक्षी है, इसे भारत का सबसे गंभीर रूप से लुप्तप्राय पक्षी माना जाता है।
- इसे प्रमुखतः घास के मैदान की प्रजाति माना जाता है, जो चरागाह पारिस्थितिकी का प्रतिनिधित्व करता है।
- इसकी अधिकतम आबादी राजस्थान और गुजरात तक ही सीमित है। महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में यह प्रजाति कम संख्या में पाई जाती है।
- खतरे:
- विद्युत लाइनों से टकराव/इलेक्ट्रोक्यूशन, शिकार (अभी भी पाकिस्तान में प्रचलित), आवास का नुकसान और व्यापक कृषि विस्तार आदि के परिणामस्वरूप यह पक्षी खतरे में है।
- सुरक्षा की स्थिति:
- अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ की रेड लिस्ट: गंभीर रूप से संकटग्रस्त
- वन्यजीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES): परिशिष्ट-1
- प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर अभिसमय (CMS): परिशिष्ट-I
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: अनुसूची- 1
GIB की सुरक्षा के लिये किये गए उपाय:
- प्रजाति पुनर्प्राप्ति कार्यक्रम:
- इसे पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forests and Climate Change- MoEFCC) के वन्यजीव आवास का एकीकृत विकास (IDWH) के तहत प्रजाति पुनर्प्राप्ति कार्यक्रम के अंतर्गत रखा गया है।
- नेशनल बस्टर्ड रिकवरी प्लान:
- वर्तमान में इसे संरक्षण एजेंसियों (Conservation Agencies) द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
- संरक्षण प्रजनन सुविधा:
- जून 2019 में MoEFCC, राजस्थान सरकार और भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) द्वारा जैसलमेर में डेज़र्ट नेशनल पार्क में एक संरक्षण प्रजनन सुविधा स्थापित की गई है।
- प्रोजेक्ट ग्रेट इंडियन बस्टर्ड:
- राजस्थान सरकार ने इस प्रजाति के प्रजनन बाड़ों के निर्माण और उनके आवासों पर मानव दबाव को कम करने के लिये एवं बुनियादी ढाँचे के विकास के उद्देश्य से ‘प्रोजेक्ट ग्रेट इंडियन बस्टर्ड ’लॉन्च किया है।
- पर्यावरण अनुकूल उपाय:
- ग्रेट इंडियन बस्टर्ड सहित वन्यजीवों पर पावर ट्रांसमिशन लाइन्स (Power Transmission Lines) और अन्य पावर ट्रांसमिशन इन्फ्रास्ट्रक्चरर्स (Power Transmission Infrastructures) के प्रभावों को कम करने के लिये पर्यावरण के अनुकूल उपायों का सुझाव देने हेतु टास्क फोर्स का गठन।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर : (a) प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा समूह प्राणी समूह संकटापन्न जातियों के संवर्ग के अंतर्गत आता है? (2012) (a) महान भारतीय सारंग, कस्तूरी मृग, लाल पांडा और एशियाई वन्य गधा। उत्तर: (a) |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
जैव विविधता और पर्यावरण
हीटवेव की स्थिति
प्रिलिम्स के लिये:हीटवेव के लिये मानदंड, अल नीनो, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग, जलवायु परिवर्तन के लिये राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) मेन्स के लिये:हीटवेव के कारण, प्रभाव, हीटवेव के न्यूनीकरण हेतु रणनीतियाँ, अर्बन हीट आइलैंड, आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये सेंदाई फ्रेमवर्क |
चर्चा में क्यों?
ओडिशा वर्तमान में अप्रैल 2023 से तीव्र हीटवेव का सामना कर रहा है, राज्य भर के अधिकांश निगरानी केंद्रों में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक देखा गया है।
- मानसून आने में देरी को इस हीटवेव में योगदान देने वाला कारक माना जा सकता है। वर्ष 2023 में 8 जून को केरल तट पर मानसून का आगमन हुआ, जो कि 1 जून की सामान्य शुरुआत की तुलना में देरी को इंगित करता है।
हीटवेव:
- परिचय:
- हीटवेव, चरम गर्म मौसम की लंबी अवधि होती है जो मानव स्वास्थ्य, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है।
- भारत एक उष्णकटिबंधीय देश होने के कारण विशेष रूप से हीटवेव के प्रति अधिक संवेदनशील है, जो हाल के वर्षों में लगातार और अधिक तीव्र हो गई है।
- भारत में हीटवेव घोषित करने के लिये भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के मानदंड:
- यदि किसी स्थान का अधिकतम तापमान मैदानी इलाकों में कम-से-कम 40 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक एवं पहाड़ी क्षेत्रों में कम-से-कम 30 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक तक पहुँच जाता है तो इसे हीटवेव की स्थिति माना जाता है।
- इसके अतिरिक्त सामान्य तापमान से 7 डिग्री सेल्सियस अथवा उससे अधिक की वृद्धि को गंभीर हीटवेव की स्थिति माना जाता है।
- यदि किसी स्टेशन का सामान्य अधिकतम तापमान 40°C से अधिक है, तो सामान्य तापमान से 4°C से 5°C की वृद्धि को लू की स्थिति माना जाता है। इसके अलावा 6 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक की वृद्धि को गंभीर हीटवेव की स्थिति माना जाता है।
- इसके अतिरिक्त यदि सामान्य अधिकतम तापमान के बावजूद वास्तविक अधिकतम तापमान 45 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक रहता है, तो हीटवेव घोषित किया जाता है।
- यदि किसी स्थान का अधिकतम तापमान मैदानी इलाकों में कम-से-कम 40 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक एवं पहाड़ी क्षेत्रों में कम-से-कम 30 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक तक पहुँच जाता है तो इसे हीटवेव की स्थिति माना जाता है।
हीटवेव के कारण:
- ग्लोबल वार्मिंग:
- यह भारत में हीटवेव के प्राथमिक कारणों में से एक है जो मानव गतिविधियों जैसे कि जीवाश्म ईंधन जलाने, वनों की कटाई और औद्योगिक गतिविधियों के कारण पृथ्वी के औसत तापमान में दीर्घकालिक वृद्धि को संदर्भित करता है।
- ग्लोबल वार्मिंग के परिणामस्वरूप उच्च तापमान और मौसम के पैटर्न में बदलाव हो सकता है, जिससे हीटवेव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- शहरीकरण:
- तेज़ी से शहरीकरण और शहरों में कंक्रीट संरचनाओं की वृद्धि "नगरीय ऊष्मा द्वीप प्रभाव (Urban Heat Island Effect)" के रूप में जानी जाने वाली घटनाओं को जन्म दे सकता है।
- उच्च जनसंख्या घनत्त्व वाले शहरी क्षेत्र, इमारतें और कंक्रीट की सतह अधिक गर्मी को अवशोषित करती है तथा ऊष्मा को बनाए रखती है जिस कारण हीटवेव के दौरान तापमान उच्च होता है।
- पूर्व-मानसून मौसम की विरल वर्षा:
- कई क्षेत्रों में कम नमी भारत के बड़े हिस्से को शुष्क कर रही है।
- पूर्व-मानसून वर्षा की बौछारों का अचानक न होना भारत में इस असामान्य प्रवृत्ति ने हीटवेव में योगदान दिया है।
- अल नीनो प्रभाव:
- अल नीनो घटना के दौरान प्रशांत महासागर का गर्म होना वैश्विक मौसम प्रतिरूप को प्रभावित कर सकता है जिससे विश्व भर में तापमान, वर्षा और वायु के पैटर्न में बदलाव हो सकता है।
- दक्षिण अमेरिका से आने वाली व्यापारिक हवाएँ दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान सामान्य रूप से पश्चिम की ओर अर्थात् एशिया की ओर बहती हैं एवं प्रशांत महासागर के गर्म होने से ये हवाएँ कमज़ोर हो जाती हैं।
- इस प्रकार नमी एवं ऊष्मा की मात्रा सीमित हो जाती है और इसके परिणामस्वरूप भारतीय उपमहाद्वीप में वर्षा में कमी एवं उसके असमान वितरण की स्थिति बनती है।
इसके प्रभाव:
- स्वास्थ्य प्रभाव:
- गर्मी में तेज़ी से वृद्धि तापमान को नियंत्रित करने की शरीर की क्षमता से समझौता कर सकती है और इसके परिणामस्वरूप गर्मी में ऐंठन, थकावट, हीटस्ट्रोक तथा हाइपरथर्मिया सहित कई बीमारियाँ हो सकती हैं।
- गर्मी से होने वाली मौतें और अस्पताल में भर्ती होने की घटनाएँ बहुत तेज़ी से हो सकती हैं या उनका प्रभाव धीमा पड़ सकता है।
- जल संसाधन पर प्रभाव:
- हीटवेव भारत में पानी की कमी के मुद्दों को बढ़ा सकती है, जल निकायों को सुखा सकती है, कृषि और घरेलू उपयोग के लिये पानी की उपलब्धता कम कर सकती है, तथा जल संसाधनों हेतु प्रतिस्पर्द्धा बढ़ा सकती है।
- इससे जल को लेकर टकराव उत्पन्न हो सकता है, सिंचाई के तरीके प्रभावित हो सकते हैं और पानी पर निर्भर उद्योगों पर असर पड़ सकता है।
- हीटवेव भारत में पानी की कमी के मुद्दों को बढ़ा सकती है, जल निकायों को सुखा सकती है, कृषि और घरेलू उपयोग के लिये पानी की उपलब्धता कम कर सकती है, तथा जल संसाधनों हेतु प्रतिस्पर्द्धा बढ़ा सकती है।
- ऊर्जा पर प्रभाव:
- हीटवेव कूलिंग उद्देश्यों के लिये बिजली की मांग को बढ़ा सकती है, जिससे पावर ग्रिड पर दबाव पड़ सकता है और संभावित ब्लैकआउट की स्थिति हो सकती है।
- यह आर्थिक गतिविधियों को बाधित कर सकता है, उत्पादकता और उन कमज़ोर आबादी को प्रभावित कर सकता है, जिनके पास हीटवेव के दौरान बिजली तक पहुँच नहीं हो।
आगे की राह
- हीटवेव्स एक्शन प्लान:
- चूँकि हीटवेव के कारण होने वाली मौतों को रोका जा सकता है, इसलिये सरकार को मानव जीवन, पशुधन और वन्यजीवों की सुरक्षा के लिये दीर्घकालिक कार्ययोजना तैयार करने को प्राथमिकता देनी चाहिये।
- समय की आवश्यकता है कि ‘आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये सेंडाई फ्रेमवर्क 2015-30’ (Sendai Framework for Disaster Risk Reduction 2015-30) का प्रभावी कार्यान्वयन किया जाए जिसमें राज्य प्रमुख भूमिका निभाएँ और अन्य हितधारकों के साथ ज़िम्मेदारी साझा करें।
- जलवायु कार्य योजनाओं को लागू करना:
- समावेशी विकास और पारिस्थितिक स्थिरता के लिये जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) को सच्ची भावना से लागू किया जाना चाहिये।
- प्रकृति-आधारित समाधानों को ध्यान में रखा जाना चाहिये, न केवल जलवायु परिवर्तन से प्रेरित हीटवेव से निपटने के लिये बल्कि इसे एक ऐसे तरीके से करना चाहिये जो नैतिक हो और अंतर-पीढ़ीगत न्याय को बढ़ावा दे।
- सतत् शीतलन:
- आवासीय और वाणिज्यिक भवनों के लिये शहरी ताप को संबोधित करने हेतु निष्क्रिय शीतलन तकनीक एक महत्त्वपूर्ण विकल्प हो सकती है, स्वाभाविक रूप से हवादार इमारतों को बनाने के लिये व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली रणनीति।
- जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) ने अपने AR6 के तीसरे भाग में कहा कि प्राचीन भारतीय भवन डिज़ाइन को ग्लोबल वार्मिंग के संदर्भ में आधुनिक सुविधाओं के अनुकूल बनाया जा सकता है जिन्होंने इस तकनीक का इस्तेमाल किया है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. वर्तमान में और निकट भविष्य में भारत की ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में संभावित सीमाएँ क्या हैं? (2010)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. संसार के शहरी निवास-स्थानों में ताप द्वीपों के बनने के कारण बताइए। (2013) |