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भारतीय अर्थव्यवस्था

बैड बैंक के लिये आरबीआई की मंज़ूरी लंबित

  • 28 Jan 2022
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय रिज़र्व बैंक, बैड बैंक, नेशनल एसेट्स रिकंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड, इंडिया डेट रेज़ोल्यूशन कंपनी लिमिटेड, एसेट्स रिकंस्ट्रक्शन कंपनी, इंडियन बैंक्स एसोसिएशन, नॉन-परफॉर्मिंग लोन।

मेन्स के लिये:

मौद्रिक नीति, बैंकिंग क्षेत्र और एनबीएफसी, बैड बैंक, नेशनल एसेट्स रिकंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड, इंडिया डेट रेज़ोल्यूशन कंपनी लिमिटेड, एसेट्स रिकंस्ट्रक्शन कंपनी, नॉन-परफॉर्मिंग लोन और संबंधित मुद्दे।

चर्चा में क्यों?

'बैड बैंक' स्थापित करने के प्रस्ताव के कार्यान्वयन हेतु भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की मंज़ूरी अभी भी लंबित है।

  • सितंबर 2021 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने  तनावग्रस्त ऋण संपत्ति प्राप्त करने के लिये राष्ट्रीय परिसंपत्ति पुनर्निमाण कंपनी (National Asset Reconstruction Company Limited-NARCL)) द्वारा जारी रसीदों को वापस करने हेतु 30,600 करोड़ रुपए की गारंटी को मंज़ूरी दी है।

प्रमुख बिंदु

  • NARCL & IDRCL:
    • NARCL  की स्थापना और एक परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी (ARC) के रूप में कारोबार करने के लिये आरबीआई द्वारा लाइसेंस जारी किया गया है।
      • NARCL विभिन्न चरणों में विभिन्न वाणिज्यिक बैंकों से लगभग 2 लाख करोड़ रुपए की दबावग्रस्त संपत्ति का अधिग्रहण करेगी।
      • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (PSB) NARCL में 51% के साथ स्वामित्त्व बनाए रखेंगे।
    • इसके साथ ही इंडिया डेट रेज़ोल्यूशन कंपनी लिमिटेड (IDRCL) नामक एक एसेट्स मैनेजमेंट कंपनी के रूप में कार्य करने के लिये एक अलग कंपनी की स्थापना की गई है, जो परिसंपत्तियों का प्रबंधन एवं समाधान प्रदान करेगी और मूल्य से संबंधित परिचालन पहलुओं में भी मदद करेगी तथा इसका उद्देश्य सर्वोत्तम संभव वसूली एवं समाधान प्रक्रिया को विकसित करना होगा।
    • IDRCL में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (PSB) और सार्वजनिक वित्तीय संस्थान (FI) की अधिकतम 49% की हिस्सेदारी होगी। शेष 51% की हिस्सेदारी निजी क्षेत्र के ऋणदाताओं के पास होगी।
    • NARCL प्रमुख रूप से 51% स्वामित्त्व वाले सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के स्वामित्त्व में है, लेकिन IDRCL के मामले में 51% शेयर निजी क्षेत्र के हाथों में हैं।
  • दोहरी संरचना का कार्य:
    • NARCL पहले बैंकों से बैड लोन खरीदेगा।
    • यह सहमत मूल्य (agreed price) का 15% नकद और शेष 85% "सुरक्षा रसीद" के रूप में भुगतान करेगा।
    • जब संपत्तियांँ बेची जाएंगी तो IDRCL की मदद से वाणिज्यिक बैंकों को बाकी का भुगतान किया जाएगा।
    • यदि बैड बैंक बैड लोन को बेचने में असमर्थ है, या उसे घाटे में बेचना है, तो सरकारी गारंटी लागू होगी।
      • वाणिज्यिक बैंक को क्या मिलना चाहिये था और बैड बैंक क्या जुटाने में सक्षम था, इसके मध्य का अंतर सरकार द्वारा प्रदान किये गए 30,600 करोड़ रुपए से पूरा  किया जाएगा।
    • यह गारंटी पांँच वर्ष की अवधि के लिये बढ़ाई गई है।
  • भारतीय बैंकों की मांग:
    • आमतौर पर एक एकल इकाई को मालिक के रूप में जवाबदेह ठहराया जाता है तथा  संपत्ति की वसूली के लिये भौगोलिक क्षेत्रों का पालन किया जाता है।
    • संभवतः इस मुद्दे को हल करने के लिये एक 'प्रिंसिपल एंड एजेंट मैकेनिज्म' (Principal and Agent mechanism) या इसी प्रकार की व्यवस्था विकसित हो सकती है।
    • ऐसा माना जाता है कि भारतीय बैंक संघ द्वारा एक दोहरी संरचना की मांग की गई थी  जिसमें AMC को निजी तौर पर आयोजित एक इकाई के रूप में, नियामक संस्थाओं के दायरे से बाहर रखा जाए।
  • आरबीआई द्वारा छूट:
    • RBI दोहरी संरचना की अनुमति देने के लिये इच्छुक नहीं है जिसमें एक इकाई गैर-निष्पादित ऋण (Non-Performing Loans) प्राप्त करती है और दूसरी समाधान है। RBI द्वारा इस बात के संकेत दिये गए हैं कि अधिग्रहण और समाधान दोनों को एक ही कानूनी इकाई के तहत रखा जाना चाहिये। 
    • उत्पन्न समस्याओं में दो अलग-अलग संस्थाओं - NARCL और IDRCL की प्रस्तावित स्थापना के साथ स्वामित्व संरचना और परिचालन तंत्र से उत्पन्न होने वाले मुद्दे शामिल हैं।

बैड बैंक

  • बैड बैंक के बारे में: 
    • तकनीकी रूप से बैड बैंक एक परिसंपत्ति पुनर्गठन कंपनी (Asset Reconstruction Company-ARC) या परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनी (Asset Management Company- AMC) है जो वाणिज्यिक बैंकों के बैड ऋणों को अपने नियंत्रण में लेकर उनका प्रबंधन और निर्धारित समय पर धन की वसूली करती है।
    • बैड बैंक ऋण देने और जमा स्वीकार करने की प्रकिया का भाग नहीं होता है, लेकिन वाणिज्यिक बैंकों की बैलेंस शीट ठीक करने में मदद करता है।
    • बैड लोन का अधिग्रहण आमतौर पर ऋण के बुक वैल्यू से कम होता है और बैड बैंक बाद में जितना संभव हो उतना वसूल करने की कोशिश करता है।
  • बैड बैंक के प्रभाव: 
    • वाणिज्यिक बैंकों का दृष्टिकोण: वाणिज्यिक बैंक उच्च NPA स्तर के कारण परेशान हैं, बैड बैंक की स्थापना से इससे निपटने में मदद मिलेगी।
      • ऐसा इसलिये है क्योंकि बैंक अपनी सभी ऐसी संपत्तियों से छुटकारा पा लेगा, जो एक त्वरित कदम में उसके मुनाफे को कम कर रहे थे।
      • जब वसूली का पैसा वापस भुगतान के रूप में दिया जाएगा, तो यह बैंक की स्थिति में सुधार करेगा। इस बीच यह फिर से उधार देना शुरू कर सकता है।
    • सरकार और करदाता परिप्रेक्ष्य: चाहे डूबे हुए ऋणों से ग्रसित PSB का पुनर्पूंजीकरण हो या सुरक्षा रसीदों की गारंटी देना हो, पैसा करदाताओं की जेब से आ रहा है।
      • जबकि पुनर्पूंजीकरण और इस तरह की गारंटी को प्रायः "सुधार" के रूप में नामित किया जाता है, वे एक अच्छे रूप में बैंड अनुदान/सहायता (Band Aids) हैं।
      • PSBs में ऋण देने की प्रक्रिया में सुधार करना ही एकमात्र स्थायी समाधान है।
      • अगर बैड बैंक बाज़ार में ऐसे बैड एसेट्स को बेचने में असमर्थ रहते हैं तो वाणिज्यिक बैंकों को राहत देने की योजना ध्वस्त हो जाएगी। इसका भार वास्तव में करदाता पर पड़ेगा।

आगे की राह

  • जब तक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का प्रबंधन राजनेताओं और नौकरशाहों के प्रति समर्पित रहेगा, व्यावसायिकता में कमी बनी रहेगी और उधार देने में विवेकपूर्ण मानदंडों का उल्लंघन होता रहेगा।
  • इसलिये एक बैड बैंक एक अच्छा विचार है, लेकिन मुख्य चुनौती बैंकिंग प्रणाली में अंतर्निहित संरचनात्मक समस्याओं से निपटने और उसके अनुसार सुधारों की घोषणा करने में है।

स्रोत: द हिंदू   

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