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सफेद मक्खी

  • 27 Sep 2022
  • 6 min read

हाल ही में पंजाब और राजस्थान जैसे विभिन्न राज्यों में कपास पर सफेद मक्खी के हमलों की संख्या में तेज़ी आई है।

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सफेद मक्खी:

  • विषय:
    • सफेद मक्खी कपास के लिये एक गंभीर कीट है जो पत्ती के निचले हिस्से को नुकसान पहुँचाकर और कपास लीफ कर्ल वायरस जैसी बीमारियों को फैलाकर उपज कम कर देता है।
    • वे पत्तियों के रस पर निर्भर होते हैं और पत्तियों पर तरल पदार्थ छोड़ते हैं जिस पर एक काला कवक उगता है, यह प्रकाश संश्लेषण, पौधे की भोजन बनाने की प्रक्रिया को प्रभावित करता है जिससे पौधे की ताकत कम हो जाती है।
  • सफेद मक्खियों का प्रसार:
    • सर्वप्रथम दर्ज की गई सर्पिल आकार की आक्रामक सफेद मक्खी (Aleurodicus dispersus) अब पूरे भारत में पाई जाती है।
    • इसी तरह, वर्ष 2016 में तमिलनाडु के पोलाची में दर्ज की गई झुर्रीदार सर्पिल सफेद मक्खी (Aleurodicus rugioperculatus) अब अंडमान निकोबार और लक्षद्वीप के द्वीपों सहित पूरे देश में फैल गई है।
    • उपरोक्त दोनों प्रजातियों की उपस्थिति क्रमशः 320 और 40 से अधिक पादप प्रजातियों पर दर्ज की गई है।
    • सफेद मक्खी की अधिकांश प्रजातियाँ कैरिबियाई द्वीपों या मध्य अमेरिका की स्थानिक हैं।
  • प्रसार का कारण:
    • सभी आक्रामक सफेद मक्खियों के लिये मेज़बान पौधों की संख्या में वृद्धि का कारण इनकी बहुभक्षी प्रकृति (विभिन्न प्रकार के खाद्य से भोजन प्राप्त करने की क्षमता) और विपुल प्रजनन (बड़ी संख्या में संतान पैदा करना) है।
    • पौधों के बढ़ते आयात और बढ़ते वैश्वीकरण एवं लोगों के आवागमन ने भी विभिन्न किस्मों के प्रसार तथा बाद में आक्रामक प्रजातियों के रूप में उनके विकास में सहायता की है।
  • इससे जुड़ी चिंताएँ:
    • फसलों को नुकसान:
      • सफेद मक्खियाँ उपज को कम करने के साथ फसलों को भी नुकसान पहुँचाती हैं। भारत में लगभग 1.35 लाख हेक्टेयर नारियल और पाम ऑयल क्षेत्र झुर्रीदार सर्पिल सफेद मक्खी (Rugose Spiralling Whitefly) से प्रभावित हैं।
      • अन्य आक्रामक सफेद मक्खियों को अपने होस्ट आधार को बड़ाने के क्रम में मूल्यवान पादप प्रजातियों, विशेष रूप से नारियल, केला, आम, सपोटा (चीकू), अमरूद, काजू पाम ऑयल और सजावटी पौधों जैसे- बॉटल पाम, फाल्स बर्ड ऑफ पैराडाइज़, बटरफ्लाई पाम तथा महत्त्वपूर्ण औषधीय पौधों पर भी देखा गया है।
    • कीटनाशकों की अप्रभाविता:
      • उपलब्ध सिंथेटिक कीटनाशकों का उपयोग करके सफेद मक्खियों को नियंत्रित करना मुश्किल हो गया है।
  • सफेद मक्खियों को नियंत्रित करना:
    • वे वर्तमान में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले कीट परभक्षी, परजीवी (कीटों के प्राकृतिक दुश्मन, ग्रीनहाउस और फसल वाले खेतों में कीटों का जैविक नियंत्रण प्रदान करते हैं) एवं एंटोमोपैथोजेनिक कवक (कवक जो कीड़ों को मार सकते हैं) द्वारा नियंत्रित किये जा रहे हैं।

फसलों पर आक्रमण करने वाले अन्य कीट:

  • फॉल आर्मीवर्म (FAW) हमला:
    • यह एक खतरनाक सीमा-पारीय कीट है और प्राकृतिक वितरण क्षमता तथा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार द्वारा प्रस्तुत अवसरों के कारण इसमें तेज़ी से फैलने की उच्च क्षमता है।
    • वर्ष 2020 में कृषि निदेशालय ने असम के उत्तर-पूर्वी धेमाजी ज़िले में खड़ी फसलों पर आर्मीवर्म कीटों के हमले की सूचना दी तथा खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) ने आर्मीवर्म द्वारा उत्पन्न अंतर्राष्ट्रीय खतरे की प्रतिक्रिया के रूप में FAW नियंत्रण के लिये एक वैश्विक कार्रवाई शुरू की है।
  • टिड्डियों का हमला:
    • टिड्डी (प्रवासी कीट) एक बड़ी, मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय तृण-भोजी परिग (Grasshopper) है जिसकी उड़ान क्षमता बहुत मज़बूत होती है। ये व्यवहार परिवर्तन में साधारण तृण-भोजी कीटों से अलग होते हैं तथा झुंड बनाते हैं जो लंबी दूरी तक प्रवास कर सकते हैं।
    • वयस्क टिड्डियाँ एक दिन में अपने वज़न के बराबर (यानी प्रतिदिन लगभग दो ग्राम ताज़ा शाक/वनस्पति) भोजन कर सकती है। टिड्डियों का एक बहुत छोटा सा झुंड भी एक दिन में उतना भोजन करता है जितना कि लगभग 35,000 लोग, जो फसलों और खाद्य सुरक्षा के लिये विनाशकारी है।
  • पिंक बॉलवर्म (PBW):
    • यह (Pectinophora gossypiella) एक कीट है जिसे कपास की खेती को नुकसान पहुँचाने के लिये जाना जाता है।
    • पिंक बॉलवर्म एशिया के लिये स्थानिक है लेकिन यह विश्व के अधिकांश कपास उत्पादक क्षेत्रों में एक आक्रामक प्रजाति बन गई है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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