क्लाउडेड लेपर्ड
चर्चा में क्यों?
भारत के मिज़ोरम में स्थित डंपा बाघ अभयारण्य (Dampa Tiger Reserve) को क्लाउडेड लेपर्ड के अध्ययन स्थल के रूप में चुना गया है।
प्रमुख बिंदु
- एक अध्ययन में पाया गया कि नौ देशों (भूटान, नेपाल, भारत, प्रायद्वीपीय मलेशिया, थाईलैंड, वियतनाम, कंबोडिया, लाओस, म्यांमार) में से केवल 9.44% क्षेत्र ही क्लाउडेड लेपर्ड (नियोफेलिस नेबुलोसा) के अध्ययन के लिये उपयुक्त है।
- जिन स्थलों का सर्वेक्षण किया गया उनमें डंपा टाइगर रिज़र्व में क्लाउडेड लेपर्ड की सबसे घनी आबादी पाई गई है।
क्लाउडेड लेपर्ड
- इसकी त्वचा पर बादल की तरह पैटर्न बने होने के कारण इसका नाम क्लाउडेड लेपर्ड रखा गया है।
- इसे IUCN की रेड लिस्ट में सुभेद्य (Vulnerable) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
- यह मेघालय का राजकीय पशु है।
- इसके संरक्षण हेतु किये जाने वाले प्रयासों को मज़बूत करने के लिये इसे गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजातियों के लिये भारत के पुनर्प्राप्ति कार्यक्रम (Recovery Program for Critically Endangered Habitats and Species) में जोड़ा गया है।
पर्यावास:
- क्लाउडेड तेंदुआ घास के मैदान, झाड़ियों, उपोष्ण कटिबंधीय और घने उष्ण कटिबंधीय जंगलों में रहना पसंद करते हैं जो कि 7,000 फीट की ऊँचाई तक हिमालय की तलहटी से चीन की मुख्य भूमि के साथ दक्षिण-पूर्व एशिया तक फैला हुआ है।
- भारत में, यह सिक्किम, उत्तरी पश्चिम बंगाल, मेघालय उपोष्ण कटिबंधीय जंगलों, त्रिपुरा, मिजोरम, मणिपुर, असम, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश में पाया जाता है।
क्लाउडेड लेपर्ड की उपस्थिति सकारात्मक रूप से संबंधित है:
- घने जंगल
- उच्च वर्षा
- दुर्गम क्षेत्र
- कम मानवीय उपस्थिति
क्लाउडेड लेपर्ड की जनसंख्या को प्रभावित करने वाले कारक:
- वनों की कटाई
- वर्षा के पैटर्न में बदलाव
- मानव-पशु संघर्ष
- विकास परियोजनाएँ
डंपा टाइगर रिज़र्व
- यह मिज़ोरम में स्थित है।
- इसे प्रोज़ेक्ट टाइगर के तहत एक बाघ आरक्षित क्षेत्र का दर्जा प्राप्त हुआ।
- हाल ही में संपन्न अखिल भारतीय बाघ अनुमान अभ्यास में बताया गया कि यहाँ बाघों की संख्या शून्य है, इस कारण से यह अभयारण्य चर्चा में रहा।
वन्यजीव आवास का एकीकृत विकास (IDWH)
यह वन्यजीवों के आवास की सुरक्षा के लिये राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिये केंद्र प्रायोजित योजना है।
योजना के तहत शामिल गतिविधियाँ हैं-
- कर्मचारी विकास और क्षमता निर्माण।
- वन्यजीव अनुसंधान और मूल्यांकन।
- अवैध शिकार विरोधी गतिविधियाँ।
- वन्यजीव पशु चिकित्सा।
- मानव-पशु संघर्ष को हल करना।
- पर्यावरण-पर्यटन को बढ़ावा देना।
- राज्य को वित्तीय सहायता प्रदान करना।
संरक्षित क्षेत्रों से दूसरे क्षेत्रों में समुदायों के स्थानांतरण के लिये राज्यों को वित्तीय सहायता भी प्रदान की जाती है।
योजना में तीन घटक शामिल हैं:
(i) संरक्षित क्षेत्रों का समर्थन
अलग-अलग राज्यों में सभी संरक्षित क्षेत्र (Protected Area) (उन क्षेत्रों को छोड़कर जो प्रोजेक्ट टाइगर के अंतर्गत आते हैं) सहायता के लिये पात्र हैं। संरक्षित क्षेत्रों में राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभयारण्य, संरक्षण रिज़र्व और सामुदायिक भंडार शामिल हैं
(ii) संरक्षित क्षेत्रों के बाहर वन्यजीवों का संरक्षण
इस घटक के तहत, संबंधित राज्यों के मुख्य वन्यजीव वार्डनों द्वारा तैयार जैव विविधता योजनाओं हेतु धनराशि प्रदान की जाती है। संरक्षित क्षेत्रों के लिये सन्निहित क्षेत्रों को प्राथमिकता दी जाती है।
(iii) गंभीर रूप से लुप्तप्राय आवासों और प्रजातियों के लिये रिकवरी कार्यक्रम
इस घटक के तहत रिकवरी के लिये 16 प्रजातियों की पहचान की गई है। ये प्रजातियाँ हैं- स्नो लेपर्ड (Snow Leopard), बस्टर्ड (Bastard), डॉल्फिन (Dolphin), हंगुल (Hangul), नीलगिरि तहर (Nilgiri Tahr,), समुद्री कछुए(Marine urtles), समुद्री गाय/डुगोंग (Dugongs), खाद्य घोंसला स्विफ्टलेट (Edible Nest Swiftlet), एशियाई जंगली भैंस (Asian wild Buffalo), निकोबार मेगापोड (Nicobar Megapode), गिद्ध (Vulture), मालाबार सिवेट (Malabar Civet), भारतीय गैंडे (Indian Rhino), एशियाई शेर (Asiatic Lion), बारहसिंगा (Swamp Deer), जैरडन कर्सर (Jerdon’s Courser) और ब्राउन एंटीलर्ड हिरण (Brown Antlered Deer) हैं। प्रत्येक राज्य में मुख्य वन्यजीव वार्डन द्वारा एक वैज्ञानिक पुनर्प्राप्ति योजना तैयार की जानी है।