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डेली न्यूज़

  • 14 Jan, 2025
  • 33 min read
भारतीय इतिहास

ईरान की राजधानी का मकरान में स्थानांतरण और सिकंदर की विरासत

प्रिलिम्स के लिये:

मकरान तट के क्षेत्र, सिकंदर महान, बलूचिस्तान प्रांत, ओमान की खाड़ी, अरब सागर, ग्वादर बंदरगाह, चाबहार बंदरगाह, होर्मुज़ जलडमरूमध्य, फारस की खाड़ी, झेलम और चिनाब नदियाँ, खैबर दर्रा, सिंधु नदी, मौर्य साम्राज्य, चंद्रगुप्त मौर्य, गांधार कला दर्शन। 

मेन्स के लिये:

भारत पर सिकंदर के आक्रमण का प्रभाव, मकरान तट का महत्त्व।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

ईरान आर्थिक और पारिस्थितिकीय चिंताओं के कारण अपनी राजधानी तेहरान से दक्षिणी मकरान तट के क्षेत्र में स्थानांतरित करने की योजना बना रहा है।

  • प्राचीन काल में मकरान उस क्षेत्र के रूप में उल्लेखनीय था, जहाँ सिकंदर महान ने भारत पर आक्रमण (327-325 ईसा पूर्व) के बाद मैसेडोनिया की ओर पीछे हटते समय अपने एक तिहाई सैनिकों को खो दिया था।

ईरान की अपनी राजधानी स्थानांतरित करने की योजना के संबंध में प्रमुख तथ्य क्या हैं?

  • ऐतिहासिक संदर्भ: तेहरान 200 से अधिक वर्षों से ईरान की राजधानी रहा है, जिसकी स्थापना ईरान के कज़ार वंश (1794 से 1925) के पहले शासक आगा मोहम्मद खान के शासनकाल के दौरान हुई थी
  • नियोजित स्थानांतरण: ईरान अपनी राजधानी को तेहरान से सिस्तान और बलूचिस्तान प्रांत के मकरान में स्थानांतरित करने का आशय रखता है, क्योंकि तेहरान में जनसंख्या अधिक होने से प्रदूषण, जल की कमी और ऊर्जा की कमी भी है। 
    • राजधानी को स्थानांतरित करने का विचार सर्वप्रथम वर्ष 2000 के दशक के प्रारंभ में महमूद अहमदीनेजाद के राष्ट्रपतित्व काल के दौरान प्रस्तावित किया गया था।
  • मकरान का सामरिक महत्त्व: ओमान की खाड़ी के निकट मकरान का सामरिक स्थान समुद्री अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने और राष्ट्रीय आर्थिक संभावनाओं को बढ़ाने के अवसर प्रस्तुत करता है।
    • चाबहार जैसे बंदरगाहों की उपस्थिति के कारण मकरान तट ईरान के पेट्रोलियम भंडार और तटीय व्यापार का एक प्रमुख स्रोत है।
    • 1,000 किलोमीटर से अधिक लंबी तटरेखा और वर्ष 2003 से विकसित चाबहार मुक्त व्यापार क्षेत्र के साथ, ईरान का लक्ष्य मकरान को मध्य एशिया के हिंद महासागर से जोड़ने वाले एक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कॉरिडोर में बदलना है।

मकरान

  • मकरान बलूचिस्तान पठार का हिस्सा है, जो पाकिस्तान और ईरान के  बीच साझा है।
  • यह एक अर्द्ध-रेगिस्तानी तटीय पेटी है, जो अरब सागर और ओमान की खाड़ी से घिरी हुई है। 
  • मकरान तट पर पाकिस्तानी बंदरगाह ग्वादर और ईरानी बंदरगाह चाबहार स्थित हैं, जो होर्मुज़ जलडमरूमध्य और फारस की खाड़ी के प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करते हैं
    • होर्मुज़ जलडमरूमध्य एक 'चोक प्वाइंट' है, जहाँ से विश्व की अधिकांश तेल आपूर्ति गुजरती है और इस प्रकार यह रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण है।

Makran_Coast

सिकंदर के भारतीय आक्रमण के संबंध में प्रमुख तथ्य क्या हैं?

  • परिचय: सिकंदर महान मैसेडोनिया (336 ईसा पूर्व से 323 ईसा पूर्व) का राजा था, इसने बाल्कन से लेकर आधुनिक पाकिस्तान तक विस्तृत विशाल साम्राज्य पर विजय प्राप्त की थी।
    • यह युद्ध में अपराजित रहे और इन्हें इतिहास के सबसे महान सैन्य कमांडरों में से एक माना जाता है।
  • भारत का राजनीतिक परिदृश्य: उत्तर-पश्चिमी भारत राजतंत्रों और जनजातीय गणराज्यों में विभाजित था, जबकि पूर्वी भारत मगध में धनानंद के शासन के काल में एकजुट था, जिसने सिकंदर की विजय में सहायता की। 
    • तक्षशिला के अम्भी और उत्तर-पश्चिम क्षेत्र के पोरस जैसे शासक सिकंदर के खिलाफ एकजुट होने में असफल रहे।
    • तक्षशिला के अम्भी ने सिकंदर के सामने आत्मसमर्पण कर दिया तथा उसकी सेना को मज़बूत करने के लिये सेना और संसाधन प्रदान किये।
  • खैबर दर्रे से प्रवेश: सिकंदर काबुल पर विजय प्राप्त करने के पश्चात् सिंधु नदी तक पहुँचा, उसके बाद खैबर दर्रे से भारत में प्रवेश किया। 
  • प्रमुख घटनाएँ: 
    • हाइडस्पीज़ का युद्ध: झेलम नदी के पास सिकंदर को पोरस से कड़ा विरोध झेलना पड़ा। उसे हराने के बाद, सिकंदर ने उसकी बहादुरी की प्रशंसा की, उसका राज्य वापस कर दिया और उसे अपना मित्र बना लिया
    • हाइफैसिस (ब्यास) नदी पर विराम: सिकंदर की सेना, जो थक चुकी थी और नंद के नेतृत्व वाली एक बड़ी भारतीय सेना से भयभीत हो गई थी, ने गंगा के मैदान में आगे बढ़ने से इनकार कर दिया और उसे पीछे हटने के लिये राजी कर लिया।
  • मजबूरन पीछे हटना: यूनानी इतिहासकार एरियन ने अपने लेख "द एनाबासिस ऑफ अलेक्जेंडर" में गेड्रोसिया (मकरान रेगिस्तान) के रेगिस्तान से होकर गुजरने वाले मार्च को अत्यधिक पीड़ादायक बताया।
    • सिकंदर अपनी सेना के एक भाग को दुर्गम गेड्रोसियन (मकरान) रेगिस्तान से होते हुए फारस की ओर वापस ले गया, जिसका उद्देश्य महान साइरस से आगे निकलना था, जो इसे पार करने में असफल रहा था।
      • साइरस महान (590-529 ईसा पूर्व), जिसे साइरस द्वितीय के नाम से भी जाना जाता है, एक फारसी राजा था जिसने सभी ईरानी जनजातियों को एकजुट किया था।
    • सिकंदर की सेना का एक बड़ा भाग निर्जलीकरण, थकावट एवं भुखमरी से मर गया, सैनिकों ने भोजन के लिये अपने घोड़ों तथा खच्चरों को मार डाला।
    • अनुमानतः 1,20,000 पैदल सैनिकों एवं 15,000 घुड़सवारों के साथ सिकंदर भारत आया, जिसमें से केवल एक-चौथाई ही वापसी यात्रा में जीवित बचे।

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सिकंदर के आक्रमण के क्या प्रभाव थे?

  • प्रत्यक्ष संपर्क: सिकंदर का आक्रमण प्राचीन यूरोप एवं भारत (दक्षिण एशिया) के बीच पहला बड़ा संपर्क था, जिससे भारत एवं ग्रीस के बीच सांस्कृतिक, भौगोलिक तथा व्यापारिक आदान-प्रदान की नींव रखी गई।
    • इससे चार प्रमुख स्थलीय तथा समुद्री मार्ग (तीन स्थलीय एवं एक समुद्री) खुले, जिससे यूनानी व्यापारियों तथा कारीगरों को इस क्षेत्र में व्यापार करने तथा बसने का अवसर मिलने से वाणिज्यिक संबंध मज़बूत हुए।
  • भारत में यूनानी बस्तियाँ : इस आक्रमण के परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में प्रमुख यूनानी शहरों की स्थापना हुई, जैसे काबुल क्षेत्र में अलेक्जेंड्रिया और झेलम नदी पर बुकेफला।
  • भौगोलिक अन्वेषण: नियार्कस के नेतृत्व में सिकंदर के बेड़े ने सिंधु नदी के मुहाने से लेकर मध्य पूर्व में फरात नदी तक के तट का अन्वेषण किया और ऐतिहासिक अभिलेख उपलब्ध कराए, जिससे बाद की घटनाओं के लिये भारतीय कालक्रम निर्धारित करने में मदद मिली। 
  • सामाजिक और आर्थिक अंतर्दृष्टि: सिकंदर के इतिहासकारों ने सती प्रथा, गरीब माता-पिता द्वारा बाज़ार में लड़कियों की बिक्री जैसी प्रथाओं के साथ उत्तर-पश्चिम भारत में बैलों की अच्छी नस्ल से संबंधित विवरण प्रदान किया।
    • उल्लेखनीय बात यह है कि 2,00,000 बैलों को ग्रीस में उपयोग के लिये मैसेडोनिया भेजा गया था।
  • मौर्य विस्तार: उत्तर-पश्चिम भारत में छोटे राज्यों को सिकंदर द्वारा हराने से इस क्षेत्र में मौर्य साम्राज्य के विस्तार का मार्ग प्रशस्त हुआ।
    • सिकंदर की रणनीति से प्रेरित होकर चंद्रगुप्त मौर्य ने नंद वंश को उखाड़ फेंकने के लिये प्राप्त ज्ञान का उपयोग किया एवं मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।
  • ग्रीक प्रभाव: कला, वास्तुकला और दर्शन सहित ग्रीक संस्कृति ने भारतीय समाज को प्रभावित किया, जिसे बाद में गांधार कला शैली में शामिल किया गया।
    • गांधार कला भारतीय, ग्रीक और रोमन कलात्मक परंपराओं का एक अद्वितीय संश्लेषण है।

निष्कर्ष

ईरान की अपनी राजधानी को मकरान में स्थानांतरित करने की योजना, अपनी रणनीतिक स्थिति का लाभ उठाते हुए पारिस्थितिकी एवं आर्थिक चुनौतियों से निपटने के उसके प्रयासों पर प्रकाश डालती है। भारत पर सिकंदर के आक्रमण से इस क्षेत्र को नया रूप मिलने के साथ सांस्कृतिक, व्यापारिक और राजनीतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा मिला, जिससे सदियों तक ग्रीक और भारतीय दोनों ही सभ्यताओं पर प्रभाव पड़ा।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: दक्षिण एशिया के राजनीतिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक परिदृश्य को आकार देने में सिकंदर महान के भारत पर आक्रमण के महत्त्व का विश्लेषण कीजिये।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. भारतीय शिलावस्तु के इतिहास के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2013)

  1. बादामी की गुफाएँ भारत की प्राचीनतम अवशिष्ट शैलकृत गुफाएँ हैं।
  2. बराबर की शैलकृत गुफाएँ सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा मूलतः आजीविकों के लिये बनवाई गई थीं।
  3. एलोरा में गुफाएँ विभिन्न धर्मों के लिये बनाई गई थीं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स

प्रश्न. गांधार कला में मध्य एशियाई एवं यूनानी-बैक्ट्रियाई तत्त्वों को उज़ागर कीजिये। (2019)

प्रश्न. तक्षशिला विश्वविद्यालय विश्व के प्राचीन विश्वविद्यालयों में से एक था, जिसके साथ विभिन्न शिक्षण विषयों (डिसिप्लिंस) के अनेक विख्यात विद्वानी व्यक्तित्व संबंधित थे। उसके रणनीतिक अवस्थिति के कारण उसकी कीर्ति फैली, लेकिन नालंदा के विपरीत उसे आधुनिक अभिप्राय में विश्वविद्यालय नहीं समझा जाता। चर्चा कीजिये। (2014)


भूगोल

भूस्खलन और निवारक उपाय

प्रिलिम्स के लिये:

भूस्खलन, मृदा की नमी, पश्चिमी घाट, संवहनीय वर्षा, भूकंप, ज्वालामुखीयता, उत्तर पूर्व हिमालय, उत्तर पश्चिम हिमालय, पूर्वी घाट, वनोन्मूलन, NDMA, NRSC, ISRO, पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र (ESA), पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी प्राधिकरण (WGEA), पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986, जलविद्युत परियोजनाएँ, LiDAR, आपदा प्रबंधन रणनीतियाँ, भेद्यता मानचित्र

मेन्स के लिये:

भूस्खलन: कारण और प्रभाव, शमन के संभावित उपाय एवं उठाए गए प्रमुख कदम।   

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

जुलाई 2024 के वायनाड भूस्खलन पर नेचर नेचुरल हैज़र्ड्स में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन के माध्यम से संवेदनशील क्षेत्रों में बेहतर आपदा प्रबंधन रणनीतियों की आवश्यकता पर बल दिया गया है।  

  • जुलाई 2024 में केरल के वायनाड ज़िले में अत्यधिक वर्षा और संवेदनशील पारिस्थितिकी स्थितियों के कारण विनाशकारी भूस्खलन आपदा आई।

अध्ययन से संबंधित मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • इस अध्ययन का उद्देश्य तीव्र मलबा प्रवाह के व्यवहार को समझना तथा केरल के वायनाड जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में आपदा प्रबंधन रणनीतियों में सुधार करना था।
  • शोध पद्धति: इस अध्ययन में भूस्खलन के दौरान मलबे के प्रवाह पथ, गति, दाब और सामग्री संचयन पर निगरानी रखने के लिये उन्नत रन-आउट मॉडलिंग तथा रैपिड मास मूवमेंट सिमुलेशन (RAMMS) का उपयोग किया गया।
    • रनआउट विश्लेषण का उपयोग मलबे के प्रवाह, चट्टान के खिसकने से होने वाले हिमस्खलन तथा भराव एवं खनन अपशिष्ट की विफलताओं सहित तीव्र भूस्खलन के विरुद्ध जोखिम का आकलन करने तथा संबंधित उपाय तैयार करने के लिये किया जाता है।
    • RAMMS के तहत प्राकृतिक जोखिम प्रक्रियाओं का मूल्यांकन किया जाता है और उपयोगकर्त्ता-अनुकूल ग्राफिकल इंटरफेस के माध्यम से सुरक्षात्मक उपायों का आकलन किया जाता है।
  • मुख्य निष्कर्ष: 
    • मलबे का संचय: ढलान के निचले क्षेत्र में काफी अधिक मलबे का संचय देखा गया, जिससे निचले क्षेत्र में भविष्य में खतरा पैदा हो सकता है।
    • भेद्यता मानचित्रण: विस्तृत भेद्यता मानचित्र (जिसमें रन-आउट पथ भी शामिल हैं) उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान करने तथा विनाश एवं जीवन की हानि को न्यूनतम करने के लिये निम्न क्षेत्रों में अनावश्यक विकास को रोकने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
    • ऐतिहासिक संदर्भ: वायनाड में वर्ष 2024 के मलबा प्रवाह का मार्ग पिछली घटनाओं की तरह था, जिसमें वर्ष 1984 में हुआ घातक भूस्खलन तथा वर्ष 2019 में हुआ एक छोटा भूस्खलन शामिल है।
  • प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियाँ: इस अध्ययन में वर्षा और मृदा नमी निगरानी स्टेशनों के लिये प्रारंभिक चेतावनी सीमा निर्धारित करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है, जिससे जीवन बचाने के लिये निकासी एवं सुरक्षा उपायों के लिये समय पर चेतावनी दी जा सके।

वायनाड भूस्खलन

  • वायनाड का भू-भाग कठोर चट्टानों के ऊपर मृदा की परत से बना है। भारी वर्षा से मृदा नम हो जाने से चट्टानों के साथ उसका बंधन कमज़ोर हो जाता है और भूस्खलन की घटना होती है।
  • हाल ही में अरब सागर में तापमान वृद्धि से पश्चिमी घाट में गहरे बादल छाने के साथ अत्यधिक वर्षा हुई है, जिससे भूस्खलन का खतरा बढ़ गया। 
  • जलवायु परिवर्तन से वर्षा-क्षेत्र का भी स्थानांतरण हुआ है, जिसके कारण वायनाड जैसे दक्षिणी क्षेत्रों में अधिक संवहनीय वर्षा हो रही है।
    • संवहनीय वर्षा तब होती है जब गर्म वायु जलवाष्प के साथ ऊपर उठती है और अधिक ऊँचाई पर संघनित होती है।

भूस्खलन क्या है?

  • भूस्खलन: भूस्खलन का आशय ढलान पर चट्टान, मृदा और मलबे का नीचे की ओर खिसकना है, जिसका कारण भारी वर्षा, भूकंप, ज्वालामुखी गतिविधि, मानवीय गतिविधियाँ और भूजल परिवर्तन है। 

प्रकार: 

  • स्लाइड्स: खुरदुरी सतह पर मलबा संचलन, जिसमें रोटेशनल और ट्रांसलेशनल स्लाइड्स शामिल हैं।
  • प्रवाह: जल में मिश्रित मृदा या चट्टान का तरल पदार्थ की तरह बहना, जैसे मलबा प्रवाह, कीचड़ और प्रवाह।
  • फैलाव: मलबा का पार्श्व विस्तार।
  • टॉपल (Topples): ऊर्ध्वाधर या लगभग ऊर्ध्वाधर ढलान से मलबा का फॉरवर्ड रोटेशन या मुक्त रूप से गिरना।
  • फाॅल्स: मलबा का किसी खड़ी ढलान या चट्टान से अलग होना या मुक्त रूप से गिरना

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कारण: 

  • गुरुत्वाकर्षण बल: जब गुरुत्वाकर्षण बल चट्टानों, रेत, गाद और मृदा जैसी सामग्रियों पर काबू पा लेता है, तो ढाल ढह जाती है, जिससे ये सामग्रियाँ नीचे की ओर खिसकने लगती हैं।
  • प्राकृतिक कारक: 
    • वर्षा: भारी या निरंतर वर्षा से मृदा आर्द्रता बढ़ जाती है, संसंजन कमज़ोर हो जाता है, तथा ढालों पर भार बढ़ जाता है, जिससे उनके विघटित होने की संभावना बढ़ जाती है।
    • भूकंप: भूकंप ज़मीन में कंपन करने और भू-पदार्थों को कमज़ोर करके ढालों को अस्थिर कर देते हैं, विशेष रूप से हिमालय जैसे विवर्तनिक रूप से सक्रिय क्षेत्रों में।
    • जल विज्ञान संबंधी कारक: छिद्रयुक्त पदार्थों से जल का स्राव दबाव को बढ़ाता है और ढाल को कमज़ोर करता है।
  • मानवजनित कारक: वनोन्मूलन से वनस्पति एवं वृक्षों की जड़ें नष्ट हो जाती हैं, जो सुदृढ़ीकरण और जल निकासी प्रदान करती हैं, जिससे ढाल अस्थिर हो जाते हैं।
    • खनन, सड़क निर्माण और शहरी विकास प्राकृतिक जल निकासी एवं भार वितरण को बाधित करते हैं, जिससे भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।
  • भूवैज्ञानिक कारक: सामग्री संरचना, अवसंरचना और अपक्षय जैसे भूवैज्ञानिक कारक ढाल की स्थिरता को प्रभावित करते हैं। 
    • पश्चिमी घाट की तीक्ष्ण, दोहरी परत वाली भूमि के कारण जब वर्षा का जल मृदा को भिगो देता है, तो भूस्खलन की आशंका बढ़ जाती है, जिससे भार बढ़ जाता है और स्थिरता कम हो जाती है।

हिमालयी क्षेत्र में भूस्खलन पश्चिमी घाट में भूस्खलन से किस प्रकार भिन्न है?

कारण

हिमालय

पश्चिमी घाट

ढाल और भूभाग

उच्च ऊँचाई, अस्थिर ढालों के साथ तीक्ष्ण, उत्खात स्थल।

कम तीव्र एवं अधिक मंद ढाल, जिससे भूस्खलन का खतरा कम हो जाता है।

विवर्तनिक गतिविधि

भारतीय और यूरेशियन प्लेटों के टकराव के कारण अत्यधिक विवर्तनिकी रूप से सक्रिय क्षेत्र, जिससे भूकंप आते हैं।

कम विवर्तनिक गतिविधि, न्यूनतम भूकंप-प्रेरित भूस्खलन।

वर्षा और हिम का पिघलना

भारी मानसूनी वर्षा और ग्लेशियरों से तीव्रता से हिम के पिघलने के कारण मृदा संतृप्ति और अस्थिरता बढ़ रही है।

मानसून के दौरान भारी वर्षा हुई, लेकिन हिम नहीं पिघली, जिससे भूस्खलन की घटनाएँ कम हुईं।

मृदा एवं चट्टान अवसंरचना

असंगठित मलबा (स्क्री, हिमोढ़) और विस्थापन की संभावना वाली कमज़ोर चट्टानी संरचनाएँ।

अधिक स्थिर मृदा और चट्टानी प्रकार, भूस्खलन की घटनाओं में कमी।

वनोन्मूलन

कृषि, लकड़ी और ईंधन के लिये वनोन्मूलन की उच्च दर, मृदा की एकजुटता को कमज़ोर कर रही है।

हिमालय की तुलना में वनोन्मूलन कम है, हालाँकि यह अभी भी चिंता का विषय है।

भूस्खलन के प्रभाव क्या हैं?

  • मानव जीवन और सुरक्षा: तेज़ी से होने वाले भूस्खलन विशेष रूप से घातक होते हैं, और धीमी गति से होने वाले भूस्खलन, हालाँकि कम घातक होते हैं, फिर भी समय के साथ संपत्ति को काफी नुकसान पहुँचा सकते हैं।
  • बुनियादी ढाँचे को नुकसान: सड़कें, रेल लाइनें, पाइपलाइनें और संचार लाइनें अवरुद्ध हो सकती हैं या गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो सकती हैं, जिससे आवश्यक सेवाएँ बाधित हो सकती हैं।
  • भूस्खलन से घर जमींदोज़ हो सकते हैं, जिससे जान-माल की हानि हो सकती है।
    • भूस्खलन से जलधाराएँ अवरुद्ध हो सकती हैं, जिससे मलबे का बाँध बन सकता है। यदि बाँध टूट जाता है, तो इससे नीचे की ओर बाढ़ आ सकती है, जिससे नुकसान और बढ़ सकता है।
  • आर्थिक नुकसान: क्षतिग्रस्त बुनियादी ढाँचे की मरम्मत और मानवीय सहायता प्रदान करना महंगा हो सकता है। भूस्खलन स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को भी बाधित करता है, मूलतः कृषि और पर्यटन पर निर्भर क्षेत्रों में।
  • पर्यावरणीय प्रभाव: भूस्खलन से पारिस्थितिकी तंत्र बाधित होता है, जिससे मृदा स्थिरता और वनस्पति प्रभावित होती है, जिससे अपरदन और मृदा अपरदन बढ़ सकता है।

भारत में भूस्खलन के जोखिम को कम करने के लिये सरकार की क्या पहल हैं?

  • राष्ट्रीय भूस्खलन जोखिम प्रबंधन रणनीति (वर्ष 2019): यह एक व्यापक दृष्टिकोण है, जिसमें संकट का मानचित्रण, निगरानी, प्रारंभिक चेतावनी, जागरूकता, क्षमता निर्माण, नीतियाँ और स्थिरीकरण शामिल हैं।
  • भूस्खलन जोखिम शमन योजना (LRMS): इसका उद्देश्य संवेदनशील राज्यों में भूस्खलन शमन के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करना है, जिसमें रोकथाम, शमन और गंभीर भूस्खलन पर अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
  • बाढ़ जोखिम न्यूनीकरण योजना (FRMS): इस योजना में बहुउद्देशीय बाढ़ आश्रयों और बाढ़ पूर्व चेतावनी प्रणालियों के लिये पायलट परियोजनाएं शामिल हैं, जिनमें डिजिटल मानचित्रों के साथ ग्रामीणों को निकासी के लिये सचेत करना शामिल है।
  • भूस्खलन और हिमस्खलन पर राष्ट्रीय दिशानिर्देश: NDMA के दिशानिर्देशों में खतरे का आकलन, जोखिम प्रबंधन, संरचनात्मक और गैर-संरचनात्मक उपाय, संस्थागत तंत्र, वित्तीय व्यवस्था और सामुदायिक भागीदारी शामिल हैं।
  • भारत का भूस्खलन एटलस: इसरो के अधीन NRSC द्वारा निर्मित, यह संवेदनशील क्षेत्रों में भूस्खलन की घटनाओं को रिकॉर्ड करता है, क्षति का आकलन करता है और भारत में भूस्खलन पर बहुमूल्य जानकारी प्रदान करता है।

भूस्खलन संभावित पश्चिमी घाटों के संरक्षण के लिये समितियाँ

  • पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी विशेषज्ञ पैनल, 2011 (अध्यक्ष: माधव गाडगिल): संपूर्ण पश्चिमी घाट को पारिस्थितिकी दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र (ESA) घोषित किया जाना चाहिये तथा श्रेणीबद्ध क्षेत्रों में विकास पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिये।
    • पश्चिमी घाट को ESA 1, 2 और 3 में वर्गीकृत करना, जिसमें ESA-1 को उच्च प्राथमिकता दी गई है, जहाँ लगभग सभी विकासात्मक गतिविधियाँ प्रतिबंधित हैं।
    • पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के अंतर्गत पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत एक वैधानिक प्राधिकरण के रूप में पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी प्राधिकरण (WGEA) का गठन किया जाएगा।
    • इस रिपोर्ट की यह कहकर आलोचना की गई कि यह पर्यावरण के प्रति अधिक अनुकूल है तथा ज़मीनी हकीकत से मेल नहीं खाती।
  • कस्तूरीरंगन समिति, 2013: पश्चिमी घाट के कुल क्षेत्रफल के बजाय, कुल क्षेत्रफल का केवल 37% ही ESA के अंतर्गत लाया जाना चाहिये।
    • ESA में खनन, उत्खनन और रेत खनन पर पूर्ण प्रतिबंध, किसी भी ताप विद्युत परियोजना की गैर अनुमति तथा जल विद्युत परियोजनाओं को विस्तृत अध्ययन के बाद ही अनुमति दी जाएगी।

भूस्खलन संबंधी खतरों को रोकने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?

  • इंजीनियरिंग समाधान:
    • ढाल स्थिरीकरण: मृदा और चट्टान के संचलन को रोकने के लिये रिटेनिंग दीवारों, रॉक बोल्ट (Rock Bolts), मिट्टी की कीलों आदि का उपयोग किया जाता है।
      • प्राकृतिक तत्वों का उपयोग करके ढालों को स्थिर करने के लिये पौधों को इंजीनियरिंग विधियों, जैसे ब्रश लेयरिंग और लाइव क्रिब दीवारों के साथ संयोजित करना।
    • ग्रेडिंग और टेरेसिंग: ढाल और प्रवणता को संशोधित करने से अस्थिरता कम हो सकती है, जबकि टेरेसिंग से तीक्ष्ण क्षेत्रों पर समतल सतह निर्माण की जा सकती है।
    • जल निकासी प्रणालियाँ: जल प्रवाह को नियंत्रित करने होल्स के दबाव को कम करने और मृदा के सामर्थ्य को बनाए रखने के लिये जलधारा, पाइप या पुलिया स्थापित करती हैं।
    • मृदा सुदृढ़ीकरण: ढालों को सुदृढ़ करने, स्थिरता बढ़ाने और भूस्खलन को रोकने के लिये भू-तकनीकी सामग्रियों जैसे जियोटेक्सटाइल्स और जियोग्रिड का उपयोग किया जाता है।
  • प्राकृतिक समाधान:
    • वनस्पति नियंत्रण: वृक्ष, झाड़ियाँ और घास लगाने से मृदा बंध जाती है, अतिरिक्त जल सोख लिया जाता है, अपरदन कम होता है, तथा वर्षा के जल को रोककर भूस्खलन का जोखिम कम होता है।
      • जैविक या अकार्बनिक मल्च मृदा आर्द्रता को बरकरार रखता है, अपरदन को रोकता है, और वर्षा के प्रभाव को कम करके ढालों को स्थिर करता है।
    • जल प्रबंधन: कंटूरिंग और वर्षा उद्यान जैसी तकनीकें जल अपवाह को धीमा करती हैं, अंतःस्यंदन को बढ़ावा देती हैं, तथा ढाल की अस्थिरता को कम करती हैं। 
  • प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियाँ: ढाल की स्थिरता को मापने और पूर्व चेतावनी देने के लिये इनक्लिनोमीटर जैसे उपकरण स्थापित करना।
    • वर्षा की तीव्रता और संचयी वर्षा की निगरानी से भूस्खलन के कारणों की पहचान करने में सहायता मिलती है।
    • LiDAR और उपग्रह इमेजरी जैसी प्रौद्योगिकियाँ भू-संचलन और सतह में होने वाले परिवर्तनों का पता लगाती हैं, जो संभावित भूस्खलन का संकेत देती हैं। 
  • सर्वोत्तम भूमि उपयोग पद्धतियाँ: ढालों में परिवर्तन से बचना, अभेद्य सतहों को सीमित करना, उचित जल निकासी प्रणालियों को डिज़ाईन करना, तथा अपरदन नियंत्रण उपायों को लागू करना ढालों को स्थिर करने और अपवाह को कम करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।

निष्कर्ष

  • वायनाड जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में भूस्खलन के जोखिम को कम करने के लिये बेहतर आपदा प्रबंधन रणनीतियों की तत्काल आवश्यकता है। भूस्खलन संबंधी खतरों को कम करने और जलवायु परिवर्तन से प्रेरित वर्षा की चरम स्थितियों के विरुद्ध लचीलापन बढ़ाने के लिये इंजीनियरिंग समाधान, प्राकृतिक विधियाँ, प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली और प्रभावी भूमि उपयोग संबंधी प्रथाएँ आवश्यक हैं।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारत में भूस्खलन के कारणों और प्रभावों पर चर्चा कीजिये। आपदा प्रबंधन रणनीतियों को कैसे बेहतर बनाया जा सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

मेन्स:

Q. हिमालयी क्षेत्र तथा पश्चिमी घाटों में भूस्खलन के विभिन्न कारणों का अंतर स्पष्ट कीजिये। (2021) 

Q. “हिमालय भूस्खलनों के प्रति अत्यधिक प्रवण है।” कारणों की विवेचना कीजिये तथा अल्पीकरण के उपयुक्त उपाय सुझाइये। (2016)


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