आपदा प्रबंधन
आपदा प्रबंधन (संशोधन) विधेयक 2024
- 05 Sep 2024
- 18 min read
प्रिलिम्स के लिये:आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, राष्ट्रीय संकट प्रबंधन समिति, राष्ट्रीय आपदा मोचन कोष, हीटवेव, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग मेन्स के लिये:आपदा प्रबंधन (संशोधन) विधेयक, 2024, आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 से संबंधित चुनौतियाँ |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने मौजूदा आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 में संशोधन करने के लिये लोकसभा में आपदा प्रबंधन (संशोधन) विधेयक, 2024 पेश किया।
- हालाँकि प्रस्तावित संशोधनों से आपदा प्रबंधन कार्यों के बढ़ते केंद्रीकरण और प्रभावी आपदा प्रतिक्रिया के निहितार्थों के विषय में आलोचना की गई है।
आपदा प्रबंधन (संशोधन) विधेयक, 2024 के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?
- आपदा प्रबंधन योजनाओं की तैयारी: वर्ष 2005 के अधिनियम के तहत राष्ट्रीय कार्यकारी समिति (NEC) व राज्य कार्यकारी समितियाँ (SEC) आपदा प्रबंधन योजनाओं की तैयारी में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों (SDMA) की सहायता के लिये ज़िम्मेदार थीं।
- विधेयक में प्रस्ताव किया गया है कि NEC व SEC को दरकिनार करते हुए NDMA और SDMA अपनी स्वयं की राष्ट्रीय तथा राज्य आपदा प्रबंधन योजनाएँ बनाएँ।
- NDMA की ज़िम्मेदारियों का विस्तार करके इसमें आपदा जोखिमों का आवधिक आकलन भी शामिल किया जाएगा।
- राष्ट्रीय और राज्य आपदा डेटाबेस: विधेयक राष्ट्रीय और राज्य दोनों स्तरों पर एक व्यापक आपदा डेटाबेस के निर्माण का आदेश देता है।
- यह डेटाबेस आपदा आकलन, निधि आवंटन, व्यय, आपदा पूर्व तैयारी और जोखिम रजिस्टर जैसे पहलुओं को शामिल करेगा।
- NDMA में नियुक्तियाँ: वर्तमान में केंद्र सरकार NDMA में अधिकारियों और कर्मचारियों की नियुक्ति करती है।
- विधेयक NDMA को अपनी नियुक्तीकरण आवश्यकताओं को स्वयं निर्धारित करने तथा केंद्र सरकार की मंजूरी से विशेषज्ञों की नियुक्ति करने की अनुमति देता है।
- शहरी आपदा प्रबंधन प्राधिकरण: विधेयक राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और केंद्रशासित प्रदेश चंडीगढ़ को छोड़कर राज्य की राजधानियों तथा बड़े शहरों के लिये शहरी आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (UDMA) का प्रस्ताव करता है।
- इन प्राधिकरणों का नेतृत्व नगर निगम आयुक्तों व ज़िला कलेक्टरों द्वारा किया जाएगा, जो शहरी आपदा प्रबंधन योजना और कार्यान्वयन पर ध्यान केंद्रित करेंगे।
- राज्य आपदा मोचन बल: वर्ष 2005 का अधिनियम विशेष आपदा प्रतिक्रिया के लिये राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (NDRF) का प्रावधान करता है।
- विधेयक राज्य सरकारों को स्थानीय प्रतिक्रिया क्षमताओं को बढ़ाने के लिये परिभाषित कार्यों और सेवा शर्तों के साथ राज्य आपदा मोचन बल (SDRF) बनाने का अधिकार देता है।
- मौजूदा समितियों को वैधानिक दर्जा: विधेयक राष्ट्रीय संकट प्रबंधन समिति (NCMC) और उच्च स्तरीय समिति ((HLC) को वैधानिक दर्जा प्रदान करता है, जो क्रमशः प्रमुख आपदाओं व वित्तीय सहायता को संभालेंगे।
- NCMC का नेतृत्व कैबिनेट सचिव करेंगे तथा HLC का नेतृत्व आपदा प्रबंधन की देखरेख करने वाले मंत्री करेंगे।
- दंड और निर्देश: प्रस्तावित विधेयक का उद्देश्य एक नई धारा 60A जोड़ना है, जो केंद्र और राज्य सरकारों को किसी भी व्यक्ति को आपदा के प्रभावों को कम करने के लिये कोई कार्रवाई करने या न करने का आदेश देने तथा उस पर 10,000 रुपये तक का जुर्माना लगाने की शक्ति प्रदान करेगा।
आपदा प्रबंधन (संशोधन) विधेयक, 2024 के संदर्भ में चिंताएँ क्या हैं?
- शक्ति का केंद्रीकरण: विधेयक पूर्ववर्ती व केंद्रीकृत आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 को और अधिक केंद्रीकृत करता है, विभिन्न स्तरों पर अधिक प्राधिकरण एवं समितियाँ बनाता है, जिससे कार्रवाई की शृंखला जटिल हो सकती है तथा अधिनियम के उद्देश्य के विपरीत आपदा से निपटने में विलंब हो सकता है।
- विधेयक विशिष्ट दिशा-निर्देशों को हटाकर राष्ट्रीय आपदा मोचन कोष (NDRF) को कमज़ोर करता है, जिससे आपदा प्रतिक्रिया में केंद्रीकरण को लेकर चिंताएँ बढ़ सकती हैं।
- केंद्रीकरण के कारण पहले भी विलंब हुआ है, जैसा कि तमिलनाडु और कर्नाटक को धन के देरी से हुए वितरण के मामले में देखा जा सकता है।
- विधेयक विशिष्ट दिशा-निर्देशों को हटाकर राष्ट्रीय आपदा मोचन कोष (NDRF) को कमज़ोर करता है, जिससे आपदा प्रतिक्रिया में केंद्रीकरण को लेकर चिंताएँ बढ़ सकती हैं।
- अपर्याप्त स्थानीय संसाधन: यह विधेयक UDMA की स्थापना और प्रबंधन के लिये स्थानीय स्तर पर संसाधनों एवं वित्त पोषण की संभावित कमी की आपूर्ति नहीं करता है।
- यह अंतर आपदा प्रबंधन में इन नई संस्थाओं की प्रभावशीलता को कमज़ोर कर सकता है।
- आपदा राहत को कानूनी अधिकार के रूप में सुनिश्चित करना: विधेयक राहत प्रदान करने के लिये राज्य के नैतिक दायित्व के बावजूद आपदा राहत को न्यायोचित (यदि उनका उल्लंघन किया जाता है तो न्यायालय में लागू किया जा सकता है) अधिकार बनाने की आवश्यकता को पूरा नहीं करता है ।
- समान आपदाओं के लिये राज्यों के बीच तथा राज्यों के भीतर भी राहत उपायों में काफी भिन्नता होती है।
- जलवायु परिवर्तन को एकीकृत करना: विधेयक में आपदा जोखिम प्रबंधन में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को पूरी तरह से एकीकृत करने के प्रावधानों का अभाव है। सेंदाई फ्रेमवर्क और पेरिस समझौता- 2015 जैसे अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के बावजूद विधेयक जलवायु-प्रेरित जोखिमों को हल करने में विफल हो सकता है।
- एकीकरण के मुद्दे: राष्ट्रीय कार्यकारी समिति और राज्य कार्यकारी समितियों से NDMA तथा SDMA को जिम्मेदारियों का अंतरण, विशेष रूप से मौजूदा अवसंरचना के साथ नई भूमिकाओं को संरेखित करने में एकीकरण के मुद्दों का सामना कर सकता है।
- प्रस्तावित विधेयक में सरकारी एजेंसियों, गैर-सरकारी संगठनों (NGO), निजी क्षेत्रों और आम जनता सहित विभिन्न हितधारकों के बीच प्रभावी सहयोग के लिये कोई स्पष्ट तंत्र नहीं है।
- हाल की आपदाएँ जटिल और उभरते जोखिमों से निपटने के लिये बेहतर प्रशासन एवं समन्वय की आवश्यकता को उजागर करती हैं।
- 'आपदा' की सीमित परिभाषा: भारत में हीटवेव की बढ़ती आवृत्ति और प्रभाव के बावजूद सरकार वर्तमान में हीटवेव को आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत अधिसूचित आपदा के रूप में वर्गीकृत नहीं करती है।
- अधिनियम में ‘आपदा’ की परिभाषा सीमित और स्थिर बनी हुई है, जो हीटवेव जैसी जलवायु-प्रेरित आपदाओं का पर्याप्त रूप से प्रबंधन करने में विफल रही है, जो क्षेत्रीय परिवर्तनशीलता तथा क्रमिकता प्रदर्शित करती है।
- संघीय गतिशीलता पर प्रभाव: यह विधेयक निर्णय लेने और वित्तीय प्रबंधन को केंद्रीकृत करके केंद्र एवं राज्य सरकारों के बीच तनाव को बढ़ा सकता है।
- राज्य निधियों और निर्णय लेने के लिये केंद्र सरकार पर अत्यधिक निर्भर हो सकते हैं, जिससे आपदा प्रबंधन और प्रतिक्रिया में उनकी स्वायत्तता सीमित हो सकती है।
आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की कमियाँ क्या हैं?
- संस्थागत कमियाँ: NDMA के उपाध्यक्ष का पद लगभग एक दशक से रिक्त है। इस अनुपस्थिति ने NDMA को आवश्यक नेतृत्व और राजनीतिक प्रभाव से वंचित कर दिया है।
- NDMA के पास स्वतंत्र प्रशासनिक और वित्तीय शक्तियों का अभाव है, जिसके कारण सभी निर्णय गृह मंत्रालय के माध्यम से लिये जाने चाहिये, जिससे अक्षमता तथा देरी होती है।
- नौकरशाही की अक्षमताएँ: अधिनियम अत्यधिक नौकरशाही से ग्रस्त है, शीर्ष-से-नीचे का दृष्टिकोण अपनाया जाता है, जहाँ निर्णय लेने का काम केंद्रीकृत होता है और स्थानीय अधिकारियों को दरकिनार कर दिया जाता है।
- इससे आपदाओं के दौरान देरी से प्रतिक्रियाएँ होती हैं, जैसा कि वर्ष 2018 में केरल बाढ़ और वर्ष 2013 में केदारनाथ बाढ़ जैसी घटनाओं में देखा गया।
- अस्पष्टता: अधिनियम में "आपदा" और "विपत्ति" जैसे प्रमुख शब्दों की अस्पष्ट परिभाषाएँ हैं। उदाहरण के लिये, इसने शुरू में आपदाओं को प्राकृतिक या मानव निर्मित कारणों से होने वाली किसी भी "आपदा, दुर्घटना, विपत्ति या गंभीर घटना" के रूप में परिभाषित किया, लेकिन इसने आपदाओं के प्रकारों के बीच स्पष्ट रूप से अंतर नहीं किया या उनके क्षेत्र को निर्दिष्ट नहीं किया, जिससे भ्रम की स्थिति पैदा हुई।
- वित्तपोषण: आवंटित धन अक्सर बड़े पैमाने पर आपदाओं के दौरान ज़रूरतों को पूरा करने के लिये अपर्याप्त होता है, जिससे प्रतिक्रिया और पुनर्प्राप्ति में देरी होती है।
आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005
- वर्ष 2004 में आई विनाशकारी सुनामी के बाद आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 लागू किया गया था। इस तरह के कानून का विचार वर्ष 1998 में ओडिशा में आए सुपर साइक्लोन के बाद से ही चल रहा था।
- इस अधिनियम के तहत राष्ट्रीय स्तर पर NDMA, राज्य स्तर पर SDMA, राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (NIDM) (आपदा से संबंधित अनुसंधान, प्रशिक्षण, जागरूकता एवं क्षमता निर्माण के लिये एक संस्थान) का निर्माण किया गया।
- इस अधिनियम के बाद 2009 में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन नीति और वर्ष 2016 में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना बनाई गई।
- इस संस्थागत ढाँचे ने भारत को प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में मदद की है। पिछले कुछ वर्षों में इसने हजारों व्यक्तियों की जान बचाई है और राहत, बचाव एवं पुनर्वास सेवाएँ प्रदान की हैं।
- जलवायु परिवर्तन से और भी बदतर प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती घटनाओं ने NDMA जैसी एजेंसियों को पहले से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण बना दिया है, जिसके लिये अधिक ज़िम्मेदारियाँ एवं संसाधन आवंटित करने की आवश्यकता है।
आगे की राह
- विकास योजनाओं में आपदा जोखिम न्यूनीकरण को एकीकृत करना: सुनिश्चित करें कि राष्ट्रीय और राज्य विकास नीतियों में आपदा जोखिम न्यूनीकरण को शामिल किया जाए, विशेष रूप से बुनियादी ढाँचे, शहरी नियोजन एवं कृषि में।
- पूर्व चेतावनी प्रणालियों को प्रभावी करना: आपदा प्रबंधन नीति में पूर्व चेतावनी प्रणालियों के उन्नयन को शामिल करके उनके अभिकल्पना(design) को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
- भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO), भारतीय मौसम विभाग और राष्ट्रीय सुदूर संवेदन एजेंसी (National Remote Sensing Agency- NRSA) की उन्नत प्रौद्योगिकी का लाभ उठाकर सटीकता बढ़ाई जा सकती है और इन प्रणालियों को सामुदायिक स्तर पर अधिक सुलभ बनाया जा सकता है, जिससे समय पर और प्रभावी आपदा प्रतिक्रिया सुनिश्चित हो सकेगी।
- त्वरित प्रतिक्रिया तंत्र विकसित करना: एक राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया ढाँचा स्थापित करना, जो स्पष्ट कमान संरचना और संसाधन आवंटन के साथ आपात स्थितियों के दौरान त्वरित और समन्वित कार्रवाई सुनिश्चित करता है।
- जापान जैसे देशों की तरह 72 घंटे की महत्त्वपूर्ण प्रतिक्रिया योजना को लागू करना, ताकि समय पर बचाव कार्य और कुशल समन्वय सुनिश्चित हो सके।
- NDMA के अधिकार को बढ़ाना: रिक्त पदों को भरकर और एजेंसी को आवश्यक शक्तियाँ प्रदान करके NDMA के अधिकार को बढ़ाना।
- इससे केंद्रीय और राज्य एजेंसियों के बीच बेहतर समन्वय सुनिश्चित होगा, जिससे आपदा प्रबंधन ढाँचा अधिक समेकित और प्रभावी हो सकेगा।
- आपदा प्रबंधन का विकेंद्रीकरण: जवाबदेही और प्रभावशीलता को बढ़ाना महत्वपूर्ण है। राज्य तथा स्थानीय अधिकारियों को अधिक स्वायत्तता एवं संसाधनों के साथ सशक्त बनाने से त्वरित व अधिक संदर्भ-विशिष्ट प्रतिक्रियाएँ सुनिश्चित हो सकती हैं।
- `आपदा प्रबंधन में अनुसंधान एवं विकास हेतु समर्थन: आपदा जोखिम प्रबंधन में अनुसंधान के लिये संसाधन आवंटित करना, जिसमें कृत्रिम बुद्धिमत्ता, रिमोट सेंसिंग और बिग डेटा एनालिटिक्स जैसी नवीन प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित करना शामिल है।
- मनोवैज्ञानिक पुनर्वास: आपदाओं में अपने प्रियजनों और संपत्ति को खोने वाले व्यक्तियों के मानसिक स्वास्थ्य को सहायता प्रदान करने के लिये मनोवैज्ञानिक पुनर्वास कार्यक्रमों को आपदा प्रबंधन नीतियों में एकीकृत करने की आवश्यकता है।
- गतिशील नीति अनुकूलन: उभरते जोखिमों, तकनीकी प्रगति और पिछली आपदाओं से सीखे गए सबक के आधार पर आपदा प्रबंधन नीतियों को नियमित रूप से अद्यतन कीजिये।
- प्रतिक्रियात्मक रणनीतियों से सक्रिय रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करना, आपदा तैयारी, शमन और लचीलापन निर्माण पर ज़ोर देना।
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