जैव विविधता और पर्यावरण
भारत की जलवायु प्रतिज्ञा
- 08 Sep 2022
- 12 min read
प्रिलिम्स के लिये:पेरिस समझौता, जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (COP-26), राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC), यूरोपीय संघ (EU), जलवायु परिवर्तन। मेन्स के लिये:पेरिस जलवायु समझौता और उसके प्रभाव। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक अध्ययन में पेरिस समझौते के लिये भारत की अद्यतन जलवायु प्रतिज्ञा को अनुपालन में पाँचवांँ और महत्त्वाकाँक्षा में चौथा स्थान दिया गया है।
अध्ययन की मुख्य विशेषताएँ:
- परिचय:
- यह अध्ययन वैज्ञानिक पत्रिका ‘नेचर क्लाइमेट चेंज’ (Nature Climate Change) में प्रकाशित हुआ था।
- इसमें आठ देश भारत, अमेरिका, चीन, ऑस्ट्रेलिया, सऊदी अरब, रूस, ऑस्ट्रेलिया और ब्राज़ील और यूरोपीय संघ शामिल हैं।
- पेरिस समझौते के लगभग सभी हस्ताक्षरकर्त्ताओं ने जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (United Nations Conference on Climate Change- COP 26) के 26वें सत्र के दौरान अपनी जलवायु प्रतिज्ञाओं/प्रतिबद्धताओं का अद्यतन किया।
- परिणाम:
- यूरोपीय संघ (European Union-EU) इसमें शीर्ष पर था, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका अनुपालन में अंतिम स्थान पर और महत्त्वाकांक्षा में दूसरे स्थान पर था।
- अनुपालन: अनुपालन श्रेणी में, यूरोपीय संघ ने अग्रणी स्थान हासिल किया जिसके बाद चीन, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, भारत, रूस, सऊदी अरब, ब्राज़ील और अमेरिका का स्थान रहा।
- महत्त्वाकांक्षा:
- महत्त्वाकांक्षा श्रेणी में, यूरोपीय संघ के बाद चीन, दक्षिण अफ्रीका, भारत, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका और सऊदी अरब का स्थान है।
- यूरोपीय संघ (European Union-EU) इसमें शीर्ष पर था, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका अनुपालन में अंतिम स्थान पर और महत्त्वाकांक्षा में दूसरे स्थान पर था।
- मानदंड:
- अपने जलवायु प्रतिज्ञाओं या राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (Nationally Determined Contributions-NDCs) को पूरा करने की संभावना वाले राष्ट्रों को अनुपालन में उच्च स्थान दिया गया था।
- साहसिक प्रतिबद्धताओं वाले देशों को महत्त्वाकांक्षा में उच्च स्थान दिया गया था।
- अपने जलवायु प्रतिज्ञाओं या राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (Nationally Determined Contributions-NDCs) को पूरा करने की संभावना वाले राष्ट्रों को अनुपालन में उच्च स्थान दिया गया था।
- सांख्यिकीय विश्लेषण:
- स्थिर शासन वाले राष्ट्रों में साहसिक और अत्यधिक विश्वसनीय प्रतिज्ञाओं की संभावना अधिक होती है।
- इसके अलावा चीन और अन्य गैर-लोकतंत्र भी अपनी प्रतिबद्धताओं को पूर्ण करने की संभावना रखते हैं।
- इन देशों की प्रशासनिक और राजनीतिक प्रणालियाँ उन्हें जटिल राष्ट्रीय नीतियों को लागू करने में सक्षम बनाती हैं।
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भारत का प्रदर्शन:
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भारत को अनुपालन में पाँचवाँ और महत्वाकांक्षा में चौथा स्थान प्राप्त है।
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पेरिस समझौता:
- परिचय:
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पेरिस समझौते (जिसे कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज 21 या COP 21 के रूप में भी जाना जाता है) को वर्ष 2015 में अपनाया गया था।
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इसने क्योटो प्रोटोकॉल का स्थान लिया जो जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये पहले का समझौता था।
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- पेरिस समझौता एक वैश्विक संधि है जिसमें लगभग 200 देश, ग्रीन हाउस गैसों (GHGs) के उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण करने के लिये सहयोग करने पर सहमत हुए हैं।
- यह पूर्व-उद्योग स्तरों की तुलना में ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे, अधिमानतः 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का प्रयास करता है।
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- कार्य:
- ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती के अलावा पेरिस समझौते में प्रत्येक पाँच वर्ष में उत्सर्जन में कटौती के लिये प्रत्येक देश के योगदान की समीक्षा करने की आवश्यकता का उल्लेख किया गया है ताकि वे संभावित चुनौती के लिये तैयार हो सकें। वर्ष 2020 तक, देशों NDCs के रूप में ज्ञात जलवायु कार्रवाई के लिये अपनी योजनाएँ प्रस्तुत की थी।
- दीर्घकालिक रणनीतियाँ: दीर्घकालिक लक्ष्य की दिशा में प्रयासों को उचित ढंग से तैयार करने के लिये पेरिस समझौता देशों को वर्ष 2020 तक दीर्घकालिक कम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन विकास रणनीति (LT-LEDS) तैयार करने एवं प्रस्तुत करने के लिये आमंत्रित करता है।
- दीर्घकालिक कम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन विकास रणनीतियांँ (LT-LEDS) NDC के लिये दीर्घकालिक क्षितिज प्रदान करती हैं परंतु NDC की तरह वे अनिवार्य नहीं हैं।
- प्रगति रिपोर्ट:
- पेरिस समझौते के साथ देशों ने उन्नत पारदर्शिता ढाँचा (ETF) स्थापित किया। वर्ष 2024 से शुरू होने वाले ETF के तहत, देश जलवायु परिवर्तन शमन, अनुकूलन उपायों और प्रदान या प्राप्त समर्थन में की गई कार्रवाइयों एवं प्रगति पर पारदर्शी रूप से रिपोर्ट करेंगे।
- इसमें प्रस्तुत रिपोर्टों की समीक्षा के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रक्रियाओं का भी प्रावधान है।
- ETF के माध्यम से एकत्र की गई जानकारी वैश्विक स्टॉकटेक में उपलब्ध होगी जो दीर्घकालिक जलवायु लक्ष्यों की दिशा में सामूहिक प्रगति का आकलन करेगी।
- पेरिस समझौते के साथ देशों ने उन्नत पारदर्शिता ढाँचा (ETF) स्थापित किया। वर्ष 2024 से शुरू होने वाले ETF के तहत, देश जलवायु परिवर्तन शमन, अनुकूलन उपायों और प्रदान या प्राप्त समर्थन में की गई कार्रवाइयों एवं प्रगति पर पारदर्शी रूप से रिपोर्ट करेंगे।
आगे की राह
- इस दीर्घकालिक तापमान लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये देशों को सदी के मध्य तक जलवायु-तटस्थ विश्व निर्माण के लिये जल्द से जल्द ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी हेतु वैश्विक शिखर पर पहुँचने का लक्ष्य रखना चाहिये।
- मध्यम अवधि के डीकार्बोनाइज़ेशन के लिये स्पष्ट मार्ग के साथ विश्वसनीय अल्पकालिक प्रतिबद्धताओं की आवश्यकता है, जो वायु प्रदूषण जैसी कई चुनौतियों को ध्यान में रखता है, साथ ही विकास के लिये अधिक रक्षात्मक विकल्प हो सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ):प्रश्न. वर्ष 2015 में पेरिस में UNFCCC बैठक में हुए समझौते के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 3 उत्तर: b व्याख्या:
अतः विकल्प (b) सही है। |